यह किसके लिए है
-वेजो अपने तनाव को कम करना चाहते हैं।
वैजो अपनी भावनाओं को काबू करना चाहते हैं।
वे जो दिमागी कसरत के बारे में जानना चाहते हैं।
लेखक के बारे में
फिलिपा परी ( Philippa Perry ) एक ब्रिटिश साइकोथेरापिस्ट और लेखिका है। वे मपनी नावेल – फाइच पिक्शन के लिए जानी जाती हैं और अपनी किताब हाउ टुस्ट सेन के लिए जानी जाती हैं।
यह किताब आपको क्यों पढ़नी चाहिए
अवसर हम कुछ इस तरह से बर्ताव करते हैं जिससे हमें लगता है कि हम हर काम सोच समझा कर कर रहे हैं। हम यह सोचते हैं कि हम जब चाहें जो वाहें वो काम कर सकते हैं। लेकिन यह बात एक तरफा है। हमारा दिमाग एक बहुत अनोखी चीज़ है जिसे अगर गुलाम बना कर रखा जाए तो वो दुनिया को हमारे कदमों में झुका सकती है। लेकिन अगर ये हमारा मालिक बन जाए तो ये हमें अपने ही आगे झुका देती है। ज्यादातर लोग अपने दिमाग के गुलाम होते हैं। यह किताब हमें बताती है कि ऐसा क्यों है और किस तरह से हम इसे अपना गुलाम बना सकते हैं। यह किताब हमें बताती है
कि कैसे हम खुद को समझ कर लोगों के साथ अच्छे रिश्ते बना सकते हैं और किस तरह से खुद को कामयाबी की तरफ ढकेल सकते हैं।
इसे पढ़कर आप सीखेंगे
-तनाव किस तरह से अच्छा साबित हो सकता है।
-किस तरह से भाप अच्छे रिश्ते बना सकते हैं।
कहानियों का हमारे दिमाग पर क्या असर होता है।
हमें लगता है कि हम सोच समझ कर काम करते हैं पर ऐसा होता नहीं है।
शायद आपको भी लगता होगा कि इंसान के अंदर सोच समझा कर काम करने की काबालियत होती है। वैसे तो यह बात सच है, लेकिन हम इस कावालियत का इस्तेमाल
करें, यह जरूरी नहीं है। हम अपनी जिन्दगी के ज्यादातर फैसले अपनी भावनाओं के आधार पर लेते हैं ना कि सोचने समझने के आधार पर जब हम दो साल के होते हैं तो हमारे दिमाग के दायां हिस्सा बहुत तेजी से विकास कर रहा होता है। यह हिस्सा हमारी भावनाओं के लिए जिम्मेदार है। जब हम तीन साल के होते हैं तब हमारे दाएं हिस्से के साथ साथ हमारे बाएँ हिस्से का विकास भी होने लगता है जो कि सोचने, समझने के लिए जिम्मेदार है। लेकिन जब यह बाएँ हिस्से का विकास होना शुरू होता है, हमारा दाएं हिस्सा हमारे ऊपर काबू कर चुका होता है। इसका मतलब यह कि हम अपनी ज्यादातर जिंदगी में अपनी भावनाओं के काबू में रहते हैं।
बचपन में ही हमारे स्वभाव का विकास होना शुरू हो जाता है। हम विनम्न होंगे या गुस्सैल स्वभाव के, यह उसी वक्त तय हो जाता है। जिस व्यक्ति से हमारा सबसे ज्यादा लगाव होता है. दम उसी के स्वभाव को अपना लेते हैं।
जब भी हम अपनी भावनाओं के हिसाब से कोई फैसला लेते हैं, हमारा बायां दिमाग उस फैसले के सही दिखाने के लिए एक वजह को खोज लेता है। अगर आपको आलस आ रहा है और आपका काम करने का मन नहीं कर रहा है, तो आप काम ना करने के हजार बहाने खोज लेंगे। इसलिए हमें लगता है कि हम सोच समझ कर फैसले कर रहे हैं क्योंकि हमें हमारे हर फैसले के पीछे एक सही वजह दिखती है। वो फैसला हमारा दिमाग हमारी भावनाओं के हिसाब से पैदा करता है।
खुद पर ध्यान लगा कर आप अपने दिमाग को अपने काबू में कर सकते हैं।
अब शायद आप सोच रहे होंगे कि किस तरह से आप अपने दिमाग को अपने काबू में रख सकते हैं। इसके लिए सबसे पहले आपको खुद को, अपनी भावनाओं को और अपने स्वभाव को समझना होगा। हालांकि आप अपनी भावनाओं को काबू नहीं कर सकते, लेकिन आप सोच समझ कर काम करना सीख सकते हैं।
इसके लिए सबसे पहले आप खुद पर ध्यान देना शुरु कोजिए। आप अपने साथ एक डायरी रखिए और उसमें अपने दिन भर की भावनाओं को लिखिए। आप उसमें अपनी हर उस भावना को लिखिए जो एक दिन में आपके अंदर आती हैं।
एक्जाम्पल के लिए अगर आपके बगल में कोई जोर जोर से बात कर रहा है और आपको शोर की वजह से गुस्सा आ रहा है तो गुस्सा करने की बजाय इस घटना को लिख लीजिए। इसके बाद आप उसे पढ़िए और देखिए कि किस माहौल में आपके अंदर किस तरह की भावना पैदा होती है और फिर उससे निकलने के लिए एक समाधान खोज लीजिए।
इसके बाद आप अपनी भावनाओं को काबू करने के लिए ध्यान का सहारा ले सकते हैं। ध्यान लगाने से आप अपने दिमाग को काबू करना सीखते हैं । आप बस कहीं बेठ जाइए और अपनी साँसों पर ध्यान दीजिए। हो सकता है कि आपका ध्यान कुछ वक्त के बाद उस पर से हट जाए, लेकिन आप फिर से उसे खींच कर वापस साँसों पर ले आइए।
इस तरह से आप अपनी भावनाओं को समझा कर उन्हें काबू कर सकते हैं।
अच्छे रिश्ते बनाने के लिए आपको पहले खुद को समझना होगा।
हम में से हर किसी को दुसरों में कमियां निकालना पसंद है। कभी कभी हम किसी व्यक्ति से कभी मिले भी नहीं होते लेकिन फिर भी हम यह बताने लगते हैं कि उसका स्वभाव कैसा है। इस तरह से हम पहले उसके बारे में बुरा सोचने लगते हैं और बाद में उससे अच्छे रिश्ते नहीं बना पाते। लेकिन इसके लिए सबसे पहले आपको खुद को समझना होगा।
हम लोगों को अपने नजरिए के हिसाब से देखते हैं। अगर हमने कभी किसी से प्यार किया हो और उसके बदले हमें धोखा मिला हो तो हम फिर कभी किसी दूसरे व्यक्ति से रिश्ते नहीं बनाते क्योंकि हमें लगने लगता वो व्यक्ति भी हमें छोड़कर चला जाएगा। इसलिए अगर आप यह जान जाए कि हर व्यक्ति एक जैसा नहीं होता तो आप यह समझ पाएंगे कि यह आपका नजरिया और आपका अनुभव है जो आपको रिश्ते बनाने से रोक रहा है।
इसका सबसे अच्छा तरीका है एक डायरी रखना। अगर आप अपने हर दिन के अनुभव को लिखते रहेंगे और यह देखते रहेंगे कि किसी से किस तरह से आपके रिश्ते की शुरुआत होती है और किस तरह से उसका अंत होता है तो आप यह समझ पाएंगे कि कहाँ पर जा कर बात फैस रही है।
कुछ नया सीखते रहने से हमारा दिमाग सेहतमंद रहता है।
आप अब तक हर जगह यह पढ़ते आए होंगे कि किस तरह से तनाव आपको लिए नुकसानदायक हो सकता है। लेकिन आप ने यह भी सुना होगा कि हर चीज़ का एक अच्छा और एक खराब पहलू होता है। तो क्या तनाव का भी कोई अच्छा पहलू हो सकता है? जवाब है – हाँ।
हमारे दिमाग को अगर बहुत आराम दे दिया जाए तो यो काम करना बंट कर देगा। सोचिए अगर आप अगले 5 साल तक सिर्फ आराम करें और खाना खाएँ, तो क्या उसके बाद आपकी शरीर काम करने के लायक रहेगी। लेकिन अगर आप हर रोज 1 घंटा कसरत कर के अपने शरीर को तनाव में डालें, तो 5 साल के बाद आपकी सेहत बहुत अच्छी हो जाएगी।
ठीक इसी तरह से अगर आप हर वक्त कुछ नया सीखते रहेंगे और उसे लिए अपने आप को तनाव में डालेंगे, तो समय के साथ आप बेहतर बन जाएंगे। जब आप अपने आराम के घोसले को छोड़कर बाहर निकलते है तो आप अपनी सीमाओं को बढ़ाते हैं। इससे ना सिर्फ आपके दिमाग की सेहत अच्छी रहती है बल्कि आप समय के साथ ज्यादा काबिल बन जाते हैं।
इसकी शुरुआत होती है एक छोटा कदम उठाने से। मान लीजिए कि आपको एक स्पीकर बनना है। आप यह मत सोचिए कि आप सीधा 2 हजार लोगों को एक आडिटोरियम मैं खुला कर उन्हें स्पीच देंगे। माप छोटी शुरुनात कीजिए। सबसे पहले अपने दोस्तों को बेठाकर उन्हें स्पीच दीजिए इसके बाद आप अगर चाहें तो अपना वीडियो रिकॉर्ड करे के इंटरनेट पर अपलोड कीजिए।
इस तरह से आपके अंदर सुधार होगा और उससे आपका आत्मविश्वास बढ़ेगा। एक दिन आप देखेंगे कि आप वाकई स्टेज पर खड़े होकर 2 हजार को एक आडिटोरियम में बुला कर उन्हें स्पीय दे रहे हैं।
जब आपको लगने लगे कि आप एक अच्छे स्पीकर बन गए हैं तो उसे जारी रखिए और फिर से कुछ नया सीखने की कोशिश कीजिए।
कहानियों का हमारे दिमाग पर अच्छा और बुरा दोनों असर पड़ सकता है।
बचपन में हम सभी को कहानियां सुनना पसंद है। यहाँ तक कि आज भी लोगों को फिल्में और कहानियां पठना बहुत अच्छा लगता है। कहानियों का हमारे दिमाग पर बहुत अच्छा या बहुत खराब असर पड़ सकता है।
जब भी हम कोई ऐसी कहानी सुनते हैं जो हमारे अनुभव और हमारी जिन्दगी से मिलती है तो हम उस कहानी को पसंद करने लगते हैं। हम उसका मतलब निकाल कर उसे अपनी जिन्दगी में इस्तेमाल करने की कोशिश करते हैं। इसलिए बच्चों को जब हम परियों की या राजा रानी की कहानी सुनाते हैं तो वे उसका यह मतलब निकालने लगते हैं कि हालात चाहे कितने भी खराब हों, अंत में जाकर सब कुछ ठीक हो जाता है।
पहले के वक्त के लीडर अपने सैनिकों में जोश भरने के लिए कहानियों का इस्तेमाल करते थे वे कहानियों की मदद से किसी को भी कोई बात समझा कर उसे राजी कर सकते थे। इसका मतलब साफ है कि इनका हम पर बुरा असर भी हो सकता है।
इसका सबसे अच्छा एक्जाम्पल है फिलों। फिलों में अक्सर यह दिखाया जाता है कि विलन एक अमीर घर का आदमी है और वो गरीबों को लूट कर अपनी जेब भरता है।
इसके अलावा होरो अक्सर एक गरीब घर आदमी होता है जो गरीबों के लिए लड़ता है। इससे हमारे दिमाग में यह बात बैठ जाती है कि अमीर लोग बुरे होते हैं।
लेकिन ऐसा नहीं है। दुनिया के ज्यादातर अमीर लोग इस दुनिया को एक अच्छी जगह बनाने की पूरी कोशिश कर रहे हैं। वैरेन बुफ्फे 30 साल के हो गए लेकिन आज भी वे काम कर के अपनी 90% इनकम चैरिटी को दे देते हैं।
एक अच्छा स्वभाव अपना कर अपनी जिन्दगी को पहले से बेहतर बनाइए।
जैसा कि हमने देखा कि किस तरह से कहानियों का हमारे दिमाग पर अच्छा या बुरा असर हो सकता है। अगर आप कभी किसी सेमिनार में जाएं और वहाँ पर जब भी प्रेरणा देने की बात आए तो स्पीकर अक्सर एक कहानी सुना कर लोगों को प्रेरित करता है। इन कहानियों कि इस्तेमाल कर के आप अपने स्वभाव को पहले से बेहतर बना सकते हैं।
एक्जाम्पल लेते हैं एक सेल्समैन का। सेल्सगैन का काग बहुत मुश्किल होता है। उसे हर बार लोगों की ना सुननी होती है जो कि अपने आप में बहुत योट पहुंचाने वाली बात होती है। सबसे ज्यादा तकलीफ तब होती है जब वो सारा दिन घूमें और फिर भी वो एक भी सेल ना कर पाए।
ऐसे में उनसे काम करवाते रहने के लिए सेमिनार में उन से भवसर यह कहा जाता है कि अगर वे 10 लोगों को अपना सामान दिखाएंगे तो सिर्फ 1 व्यक्ति उनके सामान को खरीदेंगे। इस तरह से सारे सेल्समैन 9 बार तक आसानी ने ना सुन लेते हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि 10वीं बार में उनका सामान पक्का बिक जाएगा। अब क्योंकि उन्होंने अपने अदर के स्वभाव को बदल लिया है, वे आराम से काम करते रहते हैं और लोगों के ना सुनने पर उन्हें ज्यादा तकलीफ नहीं होती।
इस तरह से आप भी अपनी जिन्दगी में अच्छे स्वभाव को ला कर उसे पहले से बेहतर बना सकते हैं। एक्जाम्पल के लिए अगर आप किसी काम में बार बार नाकाम हो रहे हैं तो आप यह सोचिए कि थासम एल्वा एडिसन बल्ब बनाने से पहले 10 हजार बार नाकाम हुए थे। ठीक उती तरह अगर लोग आपका काबिल नहीं समझते तो आप यह। सोचिए कि एल्बूर्ट भाइंस्टाइन को भी उनको स्कूल के टीचर मंद बुद्धि कहा करते थे। इस तरह से माप अच्छे स्वभाव को अपनी जिन्दगी में उतार सकते हैं।