
यह किनके लिए है?
-फिलोसोफी के छात्रों के लिए
जो अपने मन से नकारात्मक सोच मिटाना चाहते हैं
जो एक साधारण एय शांतिपूर्ण जीवन बिताना चाहते हैं
लेखक के बारे में
विलियग बी. अरविन Dayton, Ohio के Wright state विश्वविद्यालय के अध्यापक है। रो On Desire : Why we wanr what we want and a silap in the face: why insults hurt and why they shouldn’t के लेखक है।
ये सबक आप को क्यों पढ़ना चाहिए?
क्या आप को किसी लाइन में खड़े होने पर बड़ा गुस्सा आता है? अन्य लोगों के धीरे धीरे काम करने पर क्रोध आता है? और इस प्रकार आप एक बुरी मानसिक स्थिति में पहुँच जाते हैं? ऐसे में आप खुद को कैसे सयम में रख सकते हैं?
प्राचीन काल ग्रीस के फिलोसोफ़र को आजकल स्टरोइकवादी के नाम से जाना जाता है। इनका जीवन अत्यंत साधारण होता है। इनका मन हमेशा प्रसन्न रहता है। ऐसा जीवन पाना आसान नहीं होता मगर यहाँ दिए गए कुछ सबक से हम अपने जीवन को और बेहतर बना सकते हैं।
‘स्टोडकवाद’ प्राचीन ग्रीस अथवा युनानी विचारधारा पर आधारित है।
उस समय में फिलोसोफी अर्थात तत्वज्ञान को शिक्षा के क्षेत्र में सबसे प्रधान समझा जाता था। ‘द स्टोईक स्कूल’ वहाँ का एक प्रसिद्ध शिक्षा केन्द्र है, जहाँ स्टोइकवाद का प्रशिक्षण दिया जाता है। फिलोसोफी हमारा मार्गदर्शन करती है। यह हमें अपने लक्ष्य को प्राप्त करने में सहयोग करती है।
आज कल के समय में लक्ष्य प्राप्ति बहुत कठिन है, क्योंकि हर जगह आकर्षण के साधन मौजूद हैं। ऐसे हालातों में मनुष्य का मन काफी व्याकुल रहता है। स्टोइकवाद हमें धैर्य एवं संयम सिखने में मदद करता है। स्टोडकवाद हमें संत अथवा भौतिकवादी बनने के लिए नहीं कहता। यह हमें बीच का मार्ग चुनने कहता है जहाँ हमें मन की शांति एवं खुशी पाने के लिए किसी वस्तु या किसी अन्य मनुष्य पर निर्भर नहीं होना पड़े।
स्टोइकवाद के दो केंद्रीय लक्ष्य है : नैतिकता और शांति
सभी मनुष्य के जीवन में लक्ष्य बेहद जरूरी होता है, मगर स्टोइकवादी लोग नैतिकता और शांति को प्राथमिकता देते हैं।
नैतिकता हमें सबके साथ प्रेम, सम्मान एवं सहानुभूति के साथ जीना सिखाती है। यह बताती है, हमारे काम से केवल हमारा ही नहीं पूरे समाज का फायदा होना वाहिए।
दूसरा लक्ष्य है शांति- यह बताती है, किस प्रकार मन से सभी नकारात्मक एवं खराब सोच हटा देने से हम संपूर्ण रुप से खुश रह सकते हैं। अपने मस्तिष्क को शांत रखने के लिए हमें हमेशा सकारात्मक सोच रखनी चाहिए, साथ ही, सभी के प्रति सदभावना रखनी चाहिए।
नैतिकता एवं शांति एक दूसरे पर परस्पर निर्भर करते हैं। नैतिकता प्राप्त करने के लिए मनुष्य को बुद्धि का प्रयोग करना पड़ता है और इसी से शाति भी प्राप्त होती है। शांति प्राप्त करने से हमें एक सुखमय जीवन मिलता है एवं साथ ही अपने भावनाओं पर नियंत्रण करने की शक्ति मिलती है।
अपने लालच पर नियंत्रण पाने के लिए हमें संतुष्ट रहने की आवश्यकता है।
मनुष्य चाहे जितना मी शिक्षित या प्रतिष्ठित क्यों ना हो जाये, उसमे कोई ना कोई दोष रहता ही है। ज्यादातर लोगों को अपने लालच पर नियंत्रण करना ही नहीं आता। मनोवैज्ञानिक सेन फ्रेडरिक एवं जोर्ज लोवेंस्टीन ने इस व्यवहार को हेडोनिक ऐडापशन (hedonic adaption) का नाम दिया है। यह एक मानसिक अक्षमता है जिसमे मनुष्य किसी भी सुन्दर वस्तु से आकर्षित हो जाता है और उसे पाना चाहता है, पर कुछ ही दिनों में उसका मन उससे ऊब जाता है। उदाहरण के तौर पर, बड़ी कोई रंगीन टीवी या कोई विदेशी हैंडबैग देखकर हमें उसको पाने की चाह उठती है, पर खरीदने के कुछ दिन बाद ही वह वस्तु उतनी प्रिय नहीं रहती और हमारा मन उससे ऊब जाता है। फिर हमारा मन कोई अन्य चीज देखकर आकर्षित हो जाता है। इस तरह मनुष्य का मन एक दुष्चक्र में घूमता रहता और वो सदा ही असंतुष्ट रहता है।
पर हम किस प्रकार इस चक्र से निकल सकते हैं? स्टोडकवादी हमें उपदेश देते हैं कि हमें हमारे पास जो भी चीज़ है, उसकी सराहना करनी चाहिए एवं उसको मूल्य देता चाहिए। इससे दूसरे वस्तुओं के प्रति हमारा प्रलोभन कम हो जायेगा और अपने वस्तुओं की कदर बढ़ जाएगी।
स्टोडकवाद की एक पद्धति से हम हमारी चीजों और आस पास के लोगों को अधिक मान दे सकते हैं, इस पद्धति का नाम हे नकारात्मक दृष्टिकोण। इस पद्धति से हमें समझाया जाता है कि अगर हमारी कोई प्यारी वस्तु या कोई प्रिय परिजन अचानक गायब हो जाये, तब हम कितने दुखी हो जायेंगे। और जब फिर वह वस्तु या मनुष्य वापस आ जाये हम कितने खुश हो जायेंगे।
नकारात्मक दृष्टिकोण सिखाता है किस प्रकार किसी अभाव में जीने के बाद कोई चीज़ मिल जाने से उसकी ख़ुशी और अधिक बढ़ जाती है।
मुश्किल हालातों में रहकर हम अपने आस पास के लोगों और अपनी चीजों को ज्यादा सराह सकते हैं।
हमने पिछले सबक से जो सिखा यह पद्धति उसी का एक विस्तृत माग है। इस अभ्यास में जो मनुष्य या वस्तु हमें अत्यंत प्रिय है , हमें उसे त्याग देना होता है, और हमें अपनी प्रतिक्रिया पर पूर्ण रूप से संयम रखना पड़ता है। यह अभ्यास प्रसिद्ध रोमन स्टोइकवादी सेनेका के लेख टू प्रैकटिस पावटी (to practice poverty) पर आधारित है। इस अभ्यास में किसी स्टोडकयादी को ज्यादा दुःख नहीं पहुँचता क्योंकि उसका मन मुश्किल हालात में भी खुश रहता। इस अभ्यास से हम और ज्यादा सशक्त बनते है। जब हमारे पास कोई वस्तु नहीं रहेगी तब खुद को काबू में रख सकेंगे और जब वह वस्तु साथ रहेगी तब उसको बहुमूल्य समझेंगे।
उदाहरण के तौर पर, सोचिये हमारे पास कार और बाहक दोनों है, और कुछ दिनों तक हम खाली बाइक चलाते रहे। फिर कुछ दिनों बाद, जब हम कार में सफ़र करेंगे, तब
हमें बहुत आराम महसूस होगी और हम कार के रहने पर शुक्रगुज़ार होंगे।
इस प्रकार जब हम किसी भी वस्तु या व्यक्ति का कुछ दिनों के लिए सपूर्ण त्याग या उपभोग करना छोर देंगे, एक तो हमें अपनी इच्छाओं पर नियंत्रण मिलेगा, दूसरा हमारे लिए उस वस्तु या व्यक्ति के होने का मूल्य बहुत ज्यादा बढ़ जायेगा। हमारी इच्छाशक्ति और ज्यादा मजबूत बनेगी जिससे हम अपने जीवन में और बेहतर निर्णय ले सकें।
जिस चीज़ को हम बदल ना पायें, उसके प्रति अपना रवैया ही बदल डाले।
हमें सर्वदा किसी ना किसी चीज की अपेक्षा रहती है चाहे वो एक खुशहाल परिवार हो या अपने कर्म क्षेत्र से संबंधित कोई बात, हम हर समस्या को कोई बड़ी मुसीबत समड़ाकर चिंतित रहते हैं।
एक स्टोडकवादी जिन चीजों को नियंत्रण कर सकता है और जिन चीजों को नियंत्रण नहीं कर सकता, दोनों को पहले ही अलग कर लेता है। वह जो चीज़ प्राप्त ना कर पाए उसकी अपेक्षा त्याग देता है, और फिर अपना पूरा ध्यान जो चीज़ संभव है उस पर केन्द्रित कर देता है।
इस तरह हम खुद पर और हमारे लक्ष्य पर नियंत्रण करना सिख जाते हैं। इससे हमारा व्यक्तित्व निखरता है और हमारे मन में नैतिकता एवं सदभावना जागती है। उदाहरण, किसी खेल में जीत या हार खिलाड़ी के हाथ में नहीं होती। ऐसे में बेहतर है कि कोई अपेक्षा ही ना रखें, जिससे की हार से हमें अत्यंत दुःख ना पहुचे और हम पूरा
ध्यान खेल में दे सकें। इससे खेल में जीत की संभावना और बड़ जाती है।
दूसरों पर गुस्सा करना या दूसरों की राय पर निर्भर होना व्यर्थ है।
सभी मनुष्यों को दुःख पहुँचता है जब कोई उन्हें भला-बुरा कहता है। पर स्टोइकवादी लोग इसे दूसरे नज़रिये से देखते हैं। उनका मानना है कि दूसरों के कारण हमें अपने मन में अशाति नहीं पैदा करनी चाहिए। पर कुछ स्वार्थी और अप्रिय लोगों के साथ काम करना अत्यंत कठिन होता है, ऐसे में हमें क्या करना चाहिए?
अपने आप को सहनशील बनाने के लिए हमें यह सोचना चाहिए कि प्रत्येक मनुष्य में कुछ दोष या अवगुण रहता ही है। इसलिए हमें प्रत्येक मनुष्य को समझने की कोशिश करनी चाहिए। इससे हमारे मन में सभी के प्रति सदभावना पैदा होगी और हम सहनशीलता सिंख पाएंगे।
साथ ही, प्रत्येक मनुष्य अलग-अलग तरह से सोचता है। हम चाहे जितनी भी कोशिश कर लें, दूसरे लोग हमारे कार्य में नुक्स निकालने में लगे रहते हैं। लोगों को दूसरों की निंदा करने में बड़ा मजा आता है। ऐसे में, बेहतर है कि हम अपने कार्य में दूसरों के मत पर निर्भर ना रहें। दूसरों की राय पर जीने से हम उन्हें हमारे फैसले लेने की शक्ति दे देते हैं, जो बिल्कुल गलत है और इससे हमें ही चोट पहुँचती है। अतः यह जरूरी है कि हम अपनी सोव-समझ का प्रयोग करें और दूसरों की देखा-देखी या दूसरों की राय पर निर्भर ना हों।
दौलत के लालच से खुद को दूर रखे।
ज्यादातर देखा जाता है मनुष्य दौलत को खुशी पाने का माध्यम समझा बैठता है। पर स्टोडकवादी लोगों का मानना है कि वास्तविक में हमारी खुशी हमारी मानसिक स्थिति पर निर्भर करती है ना कि दौलत पर। स्टोइक फिलोसोफर मुसोनिअस का कहना है, दौलत मनुष्य को और ज्यादा लोभी एवं दुखी बना देती है।
दौलत-शोहरत का मोह कभी खत्म नहीं होता और वह मनुष्य को पूरी तरह केद कर लेता है। इसकी चर्चा हमने पहले ही की है। इस मानसिक स्थिति को हेडोनिक ऐडापशन का नाम दिया गया है।
उदाहरण, बचपन में हम किसी टॉफी से संतुष्ट हो जाते थे, पर ज्यों हम बड़े होते गये हमें महंगे होटलों में खाना और विदेशी खाना पसंद आता गया। इसी प्रकार हमारा मन बड़ी-बड़ी चीजों के पीछे भागता रहता और कभी खुश नहीं रह पाता। पर स्टोट्कवादी साधारण रुप से जीवन यापन करते हैं। वो अपने सेहत का सोच कर नुकसानदायक डीजे सेवन नहीं करते और शायद भूख लगने पर एक सेब उठाकर खा लें और उसी में अत्यंत खुश रहें। इसी प्रकार हमारे लिए जरुरी है कि हम भौतिकवादी सोच त्याग कर साधारण रूप से जीवन में खुश रहना सीखें।
स्टोडकवाद हमें बुढ़ापे और दुःख-दर्द से लड़ना सिखाता है।
जब कभी भी हम मौत के बारे में सोचते हैं, हम सिहर उठते हैं – ऐसी परिस्थिति में क्या किया जाये?
स्टोडकवादी लोगों का मानना है. हमारा जीवन अनमोल है। इसे व्यर्थ की चिंता या दुःख में बर्बाद ना करें। मृत्यु एक अटूट सत्य है। समझदारी है कि हम इसे स्वीकार कर लें। किसी अपने को खोने का दर्द सभी को होता है, पर इससे एकदम टूट पड़ना ठीक नहीं। इससे बेहतर है कि हम जो व्यक्ति जीवित है उन्हें सम्मान दें और उनका ख्याल रखें ताकि उनके मरने पर हमें किसी बात का अफसोस ना हो और हम उन अच्छे लम्हों को याद करके खुश रह पायें।
हमें यह भी सोचना चाहिए कि अगर वह व्यक्ति आज जिन्दा रहता, क्या हमारे दुःख को देखकर वो खुश होता? यह सोंचने से हमारी पीड़ा थोड़ी कम जायेगी। हम जवानी व्यर्थ चिंता में गंवा देते और बुढ़ापा मरने के भय में यह जीवन काटने का सही तरीका नहीं। हमें हर दिन सकारात्मक सोच और नाए जोश के साथ अपना काम करना चाहिए। साथ ही हमें प्रत्येक मनुष्य के लिए प्रेम और भाईचारा रखना चाहिए।
स्टोइकवाद हमारा जीवन बदल डालेगा, सिर्फ हमें संयम रखने की ज़रुरत है।
यह हमें दो चीज़ सिखाता है – पहला हमें क्या करना चाहिए और दूसरा कैसे करना चाहिए?
जीवन के सही मार्ग पर चलने के लिए, हमें क्या करना चाहिए, यह जानना बहुत जरूरी है। स्टोइकवाद हमें सही निर्णय लेना सिखाता है, हमें अपने भावनाओं और इच्छाओं पर नियंत्रण करना सिखाता है। इससे हमें कौन सी चीज़ फायदेगंद है और कौन सी नुकसानदायक यह समझ आती है। अतः हम आत्म-निर्भर बन सकते हैं।
साथ ही हमारे लिए यह जानना जरूरी है कि कौन सा कार्य हमें खुशी और शांति प्रदान करेगा और कौन सा नहीं।
करना चाहिए इस तरह हम आसानी से अपना लक्ष्य प्राप्त कर सकते हैं।
जिस कार्य के करने से हमें शांति और सुकून मिले वह
वैसे तो यह सब देखने में बड़ा आसान लगता है। पर ऐसी दृष्टिकोण पाने के लिए समय और लगातार नियमित अभ्यास की जरूरत होती है। अतः धैर्य और संयम की विशेष आवश्यकता रहती है।