यह किसके लिए है –
वे जो ज्यादा तनाव में रहते हैं।
-वैजो ध्यान के बारे में जानना चाहते हैं।
-वे जो अपने गन को हल्का करने के तरीके के बारे में जानना चाहते हैं।
लेखक के बारे में -:
मार्क विलियम्स { Mark Williams आक्सफाई यूनिवर्सिटी में विलेनिकल साइकोलाजी के प्रोफसर थे। वे एक लेखक भी हैं।
डेनी पेनगेन (Dammy Periman) ध्यान के एक टीचर हैं और साथ ही एक काबिल जर्नलिस्ट और लेखक हैं। व चागोकेमिस्ट्री के एक्सपर्ट हैं और अलग अलग न्यूज़ पैपर्स के लिए आर्टिकल्स लिखा करते हैं।
यह सबक आपको क्यों पढने चाहिए?
आज के वक्त में तनाव पर एक पूरी बिजनेस इंडस्ट्री चलती है। बहुत सी कंपनियां तनाव से छुटकारा दिलाने के लिए अलग अलग तरह की दवाइयां बनाती हैं। कुछ कंपनियाँ इसे कम करने के लिए अलग अलग तरह के प्रोडक्ट बेवती है। लोग इन सबका इस्तेमाल कर के अपने तनाव को कम करने की कोशिश करते हैं, लेकिन फिर भी वे समय समय पर फिर से इसकी चपेट में आ जाते हैं। वे फिर से उनका प्रोडक्ट खरीद कर अपना तनाव कम करते हैं और इस तरह से वे एक और लत पाल लेते हैं। ध्यान हमारे शरीर और दिमाग के हर समस्या की दवा है। यह कोई तंत्र विद्या नहीं है। साइंस ने यह साबित कर के दिखाया है कि ध्यान से हमारे दिमाग को बहुत फायदा
होता है। इस किताब में हम उन फायदों के बारे में जानेंगे। यह किताब हमारी मुलाकात उस 8 हफ्ते के सफर से कराती जिसकी मदद से हम एक खुशहाल जिन्दगी पा सकते हैं।
इसे पढ़कर आप सीखेंगे
-ध्यान करने का सही मतलब क्या होता है।
-साइस का ध्यान के बारे में क्या कहना है।
-आठ हफ्ते का प्लान आपको किस तरह से तनाव से दूर कर सकता है।
ध्यान का किसी धर्म से कुछ लेना देना नहीं है।
इससे पहले हम ध्यान के बारे में जानें, सबसे पहले यह जान लेते हैं कि ये होता क्या है। बहुत से लोग इसे धर्म से जोड़ देते है और फिर कहते हैं कि वे धर्म में नहीं मानते। सबसे पहली बात, इसका किसी धर्म से कोई मतलब नहीं है। बहुत से अलग अलग धर्म मन की शांति के लिए इसे प्रेक्टिस करने की सलाह देते हैं जो कि सही है।
इसके बाद, यह कोई जरूरी नहीं है कि इसे करने के लिए आप एक जगह एक साधू की तरह बैठेंা अगर आप चाहें तो उस तरह से बैठ सकते हैं वरना आप अपने पसंद के किसी भी जगह पर आराम से बैठकर ध्यान कर सकते हैं। इसके लिए किसी खास जगह या किसी खास तरह से बैठने की जरूरत नहीं है। इसके लिए सिर्फ आराम से बैठने की जरूरत है।
तीसरी बात यह कि यह जरूरी नहीं है कि आप इसे बहुत देर तक करते रहें। आप अपने सुविधा के हिसाब से इसे एक मिनट से ले कर पूरे दिन तक कर सकते हैं। अगर आपको वाकई अच्छा लग रहा है तो आप पुराने वक्त के ऋषि की तरह इसे कई साल तक भी कर सकते हैं।
अब हम जान गए हैं कि ध्यान में कौन सी बातें जरूरी नहीं होती हैं। आइए जानते हैं कि इसमगें कौन सी बातें होती हैं। सबसे पहले, ध्यान करते वक्त आप अच्छे बुरे के अंतर को भूल जाइए। यह सोचिए कि यह सारी अच्छी बुरी भावनाएं एक बादल की तरह हैं जो कुछ देर में आपके ऊपर से हो कर गुजर जाएंगी। ध्यान करने का मतलब है कि आप अपने भावनाओं को समझिए, लेकिन उनपर अच्छे या बुरे का लेबल मत लगाइए। नेगेटिव भावनाओं को अपने अंदर से निकाल दीजिए।
ध्यान करने के बहुत से शारीरिक और मानसिक फायदे हैं।
अगर आप से कोई कहे कि ध्यान करता पुराने जमाने का रिवाज था और इससे कोई फायदा नहीं होता तो समझा जाइए कि उसे अभी इसके बारे में कुछ भी नहीं पता है और ना ही उसने कभी जानने कि कोशिश की। क्योंकि अगर उसने इसके बारे में जानने की जरा सी भी कोशिश की होती तो उसे पता होता कि साइस ने ध्यान से होने वाले बहुत से फायदों के बारे में बताया है। 2003 में कुछ लेखकों ने अमेरिकन मेडिकल जर्नल साइकोसोमैटिक मेडिसीन में बताया कि ध्यान करने से हमारा इम्यून सिस्टम मजबूत होता है जिससे हम कम बीमार पड़ते हैं।
2006 की एक स्टडी में यह पाया गया कि ध्यान करने से चिड़चिड़ापन, बेचैनी और तनाव कम होता है। 2007 में अभीशी द्वा ने बताया ध्यान करने वाले ज्यादा सेहतमंद होते हैं और उनकी याहाश भी बहुत अच्छी रहती है। उसी साल नार्मन फेब ने दिखाया कि ध्यान करने से हमारे दिमाग का वो हिस्सा विकसित होता है जो सहानुभूति दिखाने के लिए जिम्मेदार होता है। यानी कि ध्यान करने वाले लोग खुद की ओर दूसरों की भावनाओं को अच्छे से समझ पाते हैं।
2008 में जॉन कोबेट जिंन ने दिखाया कि किस तरह से ध्यान करने से दर्द से राहत मिलती है। इसके बाद बेल्निया के प्रोफेसर कीस बैन हीरिंगेन ने बताया कि जो लोग यान करते हैं वे डिप्रेशन के बहुत कम शिकार होते हैं। उन्होंने बताया कि ध्यान करना एंटी डिप्रेशन की दवा से ज्यादा फायदेमंद है।
ध्यान लगाने का मतलब है प्रेजेंट में जीने और दिमाग में जीने के बीच के अंतर को समझना।
बहुत बार ऐसा होता है कि आप कहीं बाहर घूम रहे होते हैं और आपके सामने बच्चे खेल रहे होते हैं। लेकिन आपका ध्यात उनके खेल पर ना हो के लगा होता है। आप अपने सामने रखी हुई चीजों पर ध्यान ना देकर उस पर ध्यान देते हैं जो कहीं और है।
अपनी किसी समस्या पर इसे कहते हैं अपने दिमाग में जीना। यह एक तरह से आपके लिए जरुरी है क्योंकि अगर यह नहीं होता तो आप कभी प्लान नहीं बना पाते और ना ही यह तय कर पाते कि आपको घर पर जा कर किस तरह से अपने परिवार के साथ समय बिताना है। लेकिन कभी कभी यह हमारे ऊपर इतना हावी हो जाता है कि हम इस वक्त की उन छोटी खुशियों का मज़ा लेने की बजाय अपनी परेशानियों के बारे में सोचते रह जाते हैं।
दिमाग में रहने से आपकी एनर्जी खत्म होती है और इसलिए ज्यादा सोचने से आप तनाव में आ जाते हैं। क्योंकि आपकी एनर्जी इसमें खत्म हो रही है, आप कुछ काम नहीं कर पाते या करते भी है तो उसे अच्छे से नहीं कर पाते। इसलिए अपने दिमाग में सिर्फ उतना ही रहिए जितने की आपको जरूरत है।
आप प्रेजेंट में जीने की कोशिश कीजिए। इसका मतलब है अगर आप घूमने गए हैं तो उन बच्चों के खेल पर ध्यान दीजिए कि किस तरह से वे हँसते हुए इस वक्त को जी रहे हैं। आप अपने सामने रखे हुए खाने पर ध्यान दीजिए और मजे से उसे खाइए। ना कि खाते वक्त अपनी परेशानियों के बारे में सोचिए।
हमारा दिमाग और हमारा शरीर एक दूसरे से जुड़ा हुआ है। अगर आपका मूड खराब है तो आप सुस्त रहेंगे और अगर आपकी तबीयत खराब है तो आपका मूड अपने आप खराब रहेगा। इसका मतलब यह है कि जो आपके दिमाग को होता है वो आपके शरीर को भी होता है। इसलिए कोशिश कीजिए कि आप अपने मूड को अच्छा रखें क्योंकि ऐसा कर के आप अपनी एनर्जी बनाते हैं जिससे आपका दिमाग कुछ ज्यादा अको से काम करता है। ध्यान की मदद से आप ऐसा कर सकते हैं।
आठ हफ्ते के प्लान की मदद से आप ध्यान से होने वाले फायदे को अपना सकते हैं।
अब हम जान गए हैं कि ध्यान असल में होता क्या है। आइए हम उस आठ हफ्ते के प्लान के बारे में जानें जिसकी मदद से आप इससे होने वाले इतने सारे फायदों को अपना बना सकते हैं। इसके पहले हफ्ते में आप अपनी भावनाओं को समझने की कोशिश करते हैं।
जरा सोचिए सुबह उठने से लेकर आप कौन कोन से काम को करने से पहले सोचते हैं। शायद बहुत कम। आप हर दिन की तरह अपने हर काम करने लगते हैं। आप उसी रास्ते से हो कर अपने काम पर जाते हैं, उसी तरह से हर दिन दरवाजा खोलते हैं और उसी तरह से हर दिन वापस घर पर आ कर टीवी देखने लगते हैं। पहला हफ्ता आपको बताता है कि किस तरह से आप अपनी सूझ बूझ का इस्तेमाल कर सकते हैं।
पहले हफ्ते में आप एक दिन में दो बार इस एक्सरसाइज को कीजिए। कहीं पर शांति से बैठ जाइए और अपने पैर के अगुठे से शुरु करते हुए अपने सिर तक के हर एक अग को महसूस करने की कोशिश कीजिए। यह जानने की कोशिश कीजिए कि वो आप से क्या बताने की कोशिश कर रहा है। इसके बाद आप अपने साँस पर ध्यान दीजिए। यह देखिए कि वो किस तरह से आपके शरीर में आ और जा रही है।
इसके बाद दूसरे हफ्ते में आप हसो एक्सरसाइज़ को कुछ अलग तरह से कीजिए। अब जब आप अपने शरीर के हर एक अंग पर ध्यान लगा रहे हों तो यह कल्पना करने की कोशिश कीजिए कि जब आप साँस अंदर खींच रहें है तो आपका वो अंग गुब्बारे की तरह फूल जा रहा है। इस बीच अगर मापको कुए महसूस हो रहा हो तो उस पर खास ध्यान दीजिए।
इसे करते वक्त आपका ध्यान भटक सकता है। हो सकता है इस बीच आपका ध्यान साँसों से हट कर कहीं और लगने लगे। उसे फिर से खीच कर वापस अपनी साँसों पर ले आइए।
तीसरे और चौथे हफ्ते में आप अपने महसूस करने वाले अंगों पर ध्यान देते हैं।
बहुत बार हम उन चीजों के बारे में चिंता करने लगते हैं जिन्हें हम काबू नहीं कर सकते। इसके बारे में हम पिछले सबक में जान चुके है। ऐसा तब होता है जब आप अपने दिमाग में कुछ ज्यादा रहते हैं। ऐसा करने से आपकी एनर्जी खत्म हो जाती है और फिर आप बाकी के काम पर ध्यान नहीं लगा पाते। इसके अलावा जब आप चिंता करते हैं तो आपका दिमाग या तो आपको और ज्यादा सोनने पर मजबूर कर देता है या फिर वो आपके अदर इर की भावना पैदा करता है।
यह दोनों ही काम आपकी सोचने की क्षमता को कम करते हैं। लेकिन अगर आप अपनी समस्याओं को किसी अलग नजर से देख सकें तो आप उन्हें चुनौती समझ कर उनका सामना कर सकते हैं। जिन तरह से एक गेम में अलग अलग तरह के लेवेल आपको पसंद आते हैं, उसी तरह ये जिन्दगी भी मजेदार बन सकती है अगर आप अपना नजरिया बदल सकें तो।
इसके लिए सबसे पहले हालात को अच्छा या बुरा बोलने से पहले उसे समझने की कोशिश कीजिए। आठ मिनट के एक्सरसाइज से आप ऐसा कर सकते हैं। सबसे पहले अपने हाथों को धीरे धीरे उठा कर अपने कंधे के लेवेल में लेकर आहए और उसके बाद उसे कुछ इस तरह से ऊपर उठाइए कि आप पेड़ पर से फल तोड़ रहे हों।
इसके बाद उसे अपनी कमर पर लाकर रखिए और फिर अपनी कंधों को गोल गोल घुमाइए। इसके साथ ही यह सोचिए कि आप कहाँ तक अपने हाथों को फैला सकते हैं। अगर आपको इस चीच कुछ महसूस होता है तो उसे महसूस कीजिए। इसे दिन में एक बार एक हपते तक कीजिए।
इसके अलावा तीसरे हफ्ते में आपको तीन मिनट की एक और एक्सरसाइज़ करनी है। इसमें दो मिनट तक अपनी भावनाओं पर ध्यान लगाइए और तीसरे मिनट में तेजी से सांस लीजिए। इसे एक दिन में दो बार कीजिए।
इसके बाद चौथे हफ्ते में आप आवाज़ों पर ध्यान लगाने की कोशिश करेंगे। यह करना बहुत ही मजेदार है। इसमें आप सिर्फ एक जगह पर बैठ जाइए और अपने आस पास की आवाज को सुनने की कोशिश कीजिए। साथ ही अपने दिमाग में उन आवाज़ों से कुछ कहानियां बनाने की कोशिश कीजिए यह सोचिए कि उस आवाज के आने की वजह क्या हो सकती है। इससे आपको यह पता लगेगा कि आपका दिमाग किस तरह से काम करता है।
पाँचवें और छठवें हफ्ते में आप अपनी परेशानियों के साथ समझौता करना सीखते हैं।
अब तक हम यह देखते आएँ कि किस तरह से ध्यान की मदद से आप अपनी नेगेटिव भावनाओं को अपने ऊपर के एक बादल की तरह गुजरने दे कर खुद को शांत कर सकते हैं। लेकिन क्या अपनी परेशानियों से भागना अच्छा है? बिल्कुल नहीं। इसलिए अब से आप अपनी परेशानियों को समझने की कोशिश करेंगे। इसके लिए सबसे पहले खुद को किसी आरामदायक जगह पर लेकर जाइए और उस चीज़ के बारे में सोचिए जिससे आपको परेशानी होती हो। एक्साम्पल के लिए आप अपने प्रमोशन के बारे में या फिर अपने कैरियर के बारे में सोचिए। इसके बाद यह पता करने की कोशिश कीजिए कि आपके शरीर का कौन सा अंग उस भावना को महसूस कर रहा है।
एक बार आपको यह पता लग जाए तो आप जोर जोर से साँस लीजिए औरयह सोचिए कि उस अंग से वो सारी परेशानी आपके साँस के साथ बाहर जा रही है। इस एक्सरसाइज को अपने पिछले सारे एक्सरसाइज़ के साथ कीजिए।
अब कन्वे हफ्ते में आप अपनी उस मेमोरी पर ध्यान लगाते हैं जो पुरानी बातों को याद कर कर के उसका गलत मतलब निकालता रहता है और आपको परेशान करता रहता है। हो सकता है किसी ने आप से कभी मजाक किया हो लेकिन आपको उस बात का बुरा लगा हो, फिर आप उसके बारे में ना जाने कितनी बार सोचकर खुद को तकलीफ देते आए हों।
ज्यादा सोचने से आपको हल कभी नहीं मिलेगा बल्कि आप हल से और दूर हो जाएगे। इस परेशानी से बाहर निकलने के लिए यह एक्सरसाइज कीजिए। आप एक जगह बैठ जाइए और किसी अच्छी बात को एक मंत्र की तरह दोहराइए। एक्साम्पल के लिए आप कह सकते हैं – सभी लोग खुश रहें, सभी लोग कामयाब रहें।
इसके बाद उस व्यक्ति के लिए बारे में सोचिए जिससे आपको लगाव हो और उसकी खुशी की कामना कीजिए दूसरों के बारे में अच्छा सोचकर आप खुद अच्या महसूस कर सकते हैं।
आठ हफ्ते के प्लान के अंत में आप अपने दिमाग और शरीर को खुश करने की कोशिश करते हैं।
बहुत से लोग कामयाबी के लिए हर उस काम को छोड़ देते हैं जिनसे उन्हें खुशी मिलती है और हमेशा उस काम पर ध्यान लगाते हैं जिससे के आगे बढ़ सकते हैं। जाहिर सी बात है कि हमेशा काम करते रहने से आप तनाव में आ जाएगे और अगर ऐसे में अगर आप अपना तनाव कम करने के लिए कुछ मजेदार नहीं करेंगे तो आपका तनाव बढ़ने लगेगा।
हमें एक दिन में बहुत से काम करने होते हैं इसलिए हमें कुछ काम अपनी लिस्ट से निकालने पड़ते हैं जिनसे हम कामयाब नहीं होते। यह चीजें अक्सर वो चीजे होती हैं जिन्हें करना हम पसंद करते हैं। लेकिन क्या अपनी सारी पसंद की चीज़ों को छोड़ देता अच्छा है? सातवें हफ्ते में आप उन कामों की लिस्ट बनाइट जिन्हें करना आपको अच्छा लगता है। उनमें से किस दो को चुनिए और एक हफ्ते तक उसे लगातार करते रहिए।
ऐसा करने के आप अपनी क्रीएटिविटि की निखार सकते हैं। आप अपने आफिस से एक घटा निकाल इस काम को एक घटा दौजिए।
आठवें हफ्ते में आप यह जानने की कोशिश करते हैं कि आपकी सबसे बड़ी समस्या क्या है और उसके हिसाब से एक एक्सरसाइज़ को चुनकर पूरे हफ्ते तक करते हैं। अगर आप अपने दिमाग में कुछ ज्यादा रहते हैं तो आपको वो एक्सरसाइज़ करनी चाहिए जो आप ने हफ्ते में की थी या अगर आप हर रोज के काम बिना सोचे समझे। करते हैं तो आपको पहले और दूसरे हफ्ते की एक्सरसाइज़ को करना चाहिए।
खुद से यह सवाल पूछिए कि कहाँ पर आपको परेशानी आ रही है और आपको खुद में कहाँ पर सुधार करने की जरूरत है। हर रोज ध्यान करने की आदत बनाने के लिए आप एक पेपर पर यह लिखिए कि आप ध्यान क्यों कर रहे है और उसे अपने कमरे में किसी ऐसी जगह पर लगाइए जहाँ आप उसे आसानी से देख सकते हैं। हर रोज ध्यान करने से आप खुद को सेहतमंद और तनाव से दूर रख सकते हैं।