यह किसके लिए है
-पै जो तेज भागने वाले जमाने से बहुत प्यार करते हैं।
जो एक आराण की जिन्दगी जीना चाहते हैं।
वे जो दुनिया में हो रहे एक नार बदलाव के बारे में जानना चाहते हैं।
लेखक के बारे में
काल दोनोरी (Carl Horrore) स्काटलैंड में पैदा हुए थे, लेकिन वे अब कैनेडा के रहने वाले हैं। वे एक पत्रकार और एक लेखक हैं जो अपनी बेस्ट सैलिंग किताब हन प्रेज़ आफ स्लोनेस के लिए जाने जाते हैं। इसके अलावा व अडर प्रेशर और स्लो फिक्स के लैखक हैं।
यह किताब आपको क्यों पढ़नी चाहिए
अगर आप अपनी जिन्दगी पर एक नजर डालें तो आपको लगेगा कि जिन्दगी वाकई एक रेस बन चुकी है जहां पर कोई फिनिश लाइन नहीं है। हमें खुद नहीं पता कि इस तरह से भाग-दौड़ कर के हम अंत में कहाँ पहुँचना चाहते हैं। सबह उठने से लेकर रात को सोने तक हम कुछ ना कुछ काम करने के लिए भागते ही रहते हैं। हम अपने बच्चों को भी यह आदत सिखा रहे हैं। हम ना तो खुद को ज्यादा समय दे पाते हैं और ना ही अपने परिवार को।
यह किताब हस तेज भागने वाली जिन्दगी के बुरे नतीजों के बारे में हमें बताती है। यह किताब हमें यह बताती है
ज्यादा खुश रह सकते हैं और किस तरह से यह हमारे लिए और हमारे समाज के लिए फायदेमंद हो सकता है।
किस तरह से एक धीरे चलने वाली जिन्दगी में हम
इसे पढ़कर आप सीखेंगे
-तेज का मतलब अच्छा क्यों नहीं होता।
बच्चों को ज्यादा काम क्यों नहीं देना चाहिए।
-यह भाग-दौड़ वाली जिन्दगी किस तरह से हमें नुकसान पहुंचा रही है।
आज के वक्त में हम समय के गुलाम हो गए हैं।
समय हमारी जिन्दगी का एक ऐसा हिस्सा बन गया है कि हम अपनी जिंदगी को समय से ही नापते हैं। हम यह देखते हैं कि कोई व्यक्ति कितने साल जी कर मरा। उम्र को भी हम समय में नापते हैं। सुबह सो कर उठने के बाद हम सबसे पहले समय देखते हैं, सारा दिन समय बचा कर काम करने की कोशिश करते हैं और रात को सोने से पहले हम समय देखकर सोते हैं।
इन सबसे एक बात तो साबित हो गई कि आज हम समय के गुलाम बन गाए हैं। हम इसे नापने की कोशिश बहुत पहले से करते आए हैं। पहले के वक्त के लोग दिनों को
लकड़ियों से लाइन खींच खींच कर नापा करते थे कि उन्होंने कितने दिन बिता लिए। बाद में हम एक दिन को अपनी जरुरतों के हिसाब से छोटे छोटे हिस्सों में बाँटने लगे।
लेकिन उन्होंने नहीं पता था कि समय हमें एक दिन गुलाम बना देगा।
बहुत समय तक हम अपने हिसाब से काम किया करते थे। हम अपने शरीर की रफ्तार और अपने जानवरों कि रफ्तार के हिसाब से खेती करते थे। लेकिन टेक्रोलॉजी ने आज सब कुछ इतना बदल दिया है कि आज हम उसकी रफ्तार से काम करने के लिए मजबूर हो गए हैं। आज आराम से खेती करना तो दूर, हम आराम से खाना भी नहीं खा पाते। लोग जल्दी से जल्दी खाना खा कर अपने काम पर भागने के बारे में सोचते हैं।
लेकिन आज लोग इस बात को पहचान रहे हैं। वे एक धीमी जिन्दगी की मांग कर रहे हैं। हर अवटूबर को सोसाइटी ऑफ डिसिलेरेशन ऑफ टाइम वैग्रेन शहर में एक कान्फ्रेंस रखती है जहां पर वो लोगों को धीरे चलने के तरीकों के बारे में बताती है।
तेज काम करने का असर हमारे खान पान और हमारी सेहत पर हो रहा है।
आज के वक्त में हम ज्यादातर पैकेट का खाता खाना पसंद करते हैं। किसी को भी यह पसंद नहीं है कि वो घर पर खाना पकाए और फिर वे पूरे परिवार के साथ मिलकर उन खाने को खाए।या दूसरे शब्दों में हम यह कह सकते हैं कि किसी के पास इतना समय ही नहीं है।
लोग पैकेट का खाना इसलिए पसंद करते हैं क्योंकि उसे खाना आसान रहता है और उसे पकाने की जरूरत नहीं पड़ती। लेकिन इससे वे एक बात भूल जाते हैं कि इस तरह से वे बहुत सारा शुगर और फैट अपने शरीर में डाल रहे हैं जिससे कि उनकी सेहत खराब हो रही है। इससे मोटापा बढ़ रहा है और हम हर रोज़ नई नई बीमारियों के शिकार हो रहे हैं।
पैकेट का खाना खाने में समय बहुत कम लगता है और आप यह काम कोई और काम करते हुए भी कर सकते हैं। हम अपने परिवार के साथ खाना नहीं खाते और ना ही अपने खाने का मजा लेकर उसे खा पाते है। हम उसे तेज़ी से खाते हैं जिससे हमारे पेट को इतना समय ही नहीं मिलता कि वो दिमाग को यह संदेश भेज सके कि वो भर गया है। इसका नतीजा यह होता है कि हम जरूरत से ज्यादा खाते हैं।
हस आदत से छुटकारा पाने के लिए एक अंतरराष्ट्रीय आंदोलन स्लो फूड लोगों को सलाह देता है कि वे खुद अपना खाना उगाएँ, उसे पकाएँ और अपने परिवार के साथ बैठ कर उस खाने का मजा लें। धीरे खाना खाने से हमारा तनाव कम होता है और हम खुद को आराम दे पाते हैं।
खाने के अलावा आज हमारे सोचने की रफ्तार भी बहुत तेज हो गई है। आप सोच रहे होंगे कि यह तो अच्छी बात है। असल में तेज सोचने से हम फैसलों को अच्छे से ले पाते हैं, लेकिन धीरे सोचने से हम अपने अदर नए आइडियाज पैदा कर पाते हैं। रीसर्च में यह बात सामने आई कि जो लोग धीरे सोचते हैं उनको तनाव कम होता है और साथ ही वे ज्यादा क्रीएटिव होते हैं, जिसका मतलब ये नए आइडियाज़ आसानी से ला सकते हैं।
अगर आप धीरे सोचने की आदत को अपनाना चाहते हैं तो आप ध्यान कर सकते हैं। किसी शांत जगह पर बैठ जाहए और आँखें बंद कर के कुछ मिनट तक अपनी साँसों पर ध्यान लगाइए।
आज रफ्तार हमारी जिन्दगी के हर पहलू में घुस गई है, लेकिन इसे सुधारने की कोशिश की जा रही है।
आज अगर आप किसी भी शहर में चले जाइए, तो लगभग हर कोई कही जाने के लिए भाग रहा होता है। लोग ट्रैफिक में फैस कर उसमें से निकलने के लिए अलग अलग तरीके अपनाते रहते है। एक डाक्टर एक दिन में ना जाने कितने मरीजों को देखता है। एक कंपनी एक दिन में जल्दी से जल्दी ज्यादा से ज्यादा प्रोडक्ट बेचने की कोशिश करती हे। यहाँ तक कि बच्चे भी सुबह उठकर सबसे पहले स्कूल के लिए भागते हैं, फिर स्कूल के बाद ट्यूशन के लिए भागते हैं और दिन के अत में सारे दिन का होमवर्क करते हैं। बच्चों को आज सिखाया जा रहा है कि अगर वे तेज काम करना नहीं सौखेंगे तो वे पीछे रह जाएंगे। इनके लिए बच्चे के पैरेंट्स उसे एक दिन में करने के लिए बहुत से काम देते हैं ताकि उसके काम करने की रफ्तार बढ़ सके। लोग यह भूल गए हैं कि हम इंसान हैं ना कि मशीन। स्कूल भी उन्हें एक दूसरे से प्रतियोगिता करना सिखाता है। इसका नतीजा यह हो रहा है कि बच्चे भी तनाव के शिकार हो रहे हैं।
इसके बाद अगर हम डाक्टरों की बात करें, तो वो एक मरीज को सिर्फ 6 मिनट के लिए देखता है। वो सिर्फ यह सुनता है कि उसे क्या समस्या है और उसके हिसाब से दवाइयां लिख देता है। वो यह जानने की कोशिश नहीं करता कि उसका रहन सहन केसा है और ना ही उससे यह पूछते हैं कि यो कितना काम या आराम करता है। वे बस लक्षण सुनकर दवाइयां दे देते हैं।
लेकिन आज कुल लोग इस रपत्तार वाली दुनिया को धीरे करने की कोशिश कर रहे हैं। एवज़ाम्पल के लिए इटैलियन टाउन या ने एक 50 पैज़ का मेनिफेस्टो लिखा है जिसमें उन्होंने बताया है कि उन्हें अपने धीरे चलने वाले शहर के लिए क्या चाहिए। उन्होंने ट्रैफिक और शोर को कम करने के लिए और पैड़ पौधों की संख्या बढ़ाने के लिए बहुत से नियम लिखे हैं।
ठीक इसी तरह बहुत से लोग दूसरे तरह के इलाजों को खोज कर ला रहे हैं जिसमें एक डाक्टर अपने मरीजों को ज्यादा समय देता है। साथ ही कुछ स्कूलों में बच्चों को उनकी अपनी रपत्तार से पढ़ने की सुविधा दी जा रही है।
अपनी जिन्दगी की रफ्तार को धीरे कर के हम फिर से उसे एक जिन्दगी बना सकते हैं।
आज हम सब कुछ अपने काम के आस पास ही प्लान करते हैं। अगर कोई चीज हमारे काम के रास्ते में आती है तो उससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि हम उस काम को करने के लिए कितने उत्सुक है, हमें उसे छोड़ता पड़ता है। हम अपने समय को काम के हिसाब से प्लान करते हैं। लेकिन क्या इस तरह की जिन्दगी को आप जिच्गी कहेंगे? आज हम सिर्फ काम और काम करते हैं। इसके बाद जब हमें कुछ खाली समय मिलता है तो हम यह सोचने लगते हैं कि हमें उस समय को कैसे बिंताना है। हमारे पास अपने खाली समय में खुद को आराम देने के लिए इतने सारे साधन हैं कि हम उसमें से चुनने में ही अपना खाली समय बिता देते हैं।
इस तरह की जिन्दगी हमारे रिश्तों पर भी असर डाल रही है। आज लोग सेक्स भी सिर्फ अपने तनाव को कम करने के लिए करते हैं। वे इसके लिए भी समय नहीं निकाल पा रहे हैं। वे इसे अपने तनाव को जल्दी से जल्दी कम करने का एक साधन मानने लगे हैं।
लेकिन अच्छी बात यह है कि इन हालातों में सुधार हो रहा है। नई पीढ़ी के लोग पार्ट टाइम नौकरी सिर्फ इसलिए नहीं कर रहे हैं ताकि वे अपने खाली समय को अपने हिसाब से बिता सकें। लोग अपने खाली समय को गाने सुनते हुए, बगीचे में घुमते हुए या फिर अपने मन पसन्द का काम करते हुए बिता रहे हैं। यह एक अच्छी बात है क्योंकि यह जिन्दगी हमें जीने के लिए मिली थी, ना फिर भागते रहने के लिए।