HOW TO RAISE AN ADULT by Julie Lythcott Haims.

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यह किसके लिए है

-वैजो अपने बच्चों की हद से ज्यादा टैस्यभाल करते हैं।

वे जो एक पैरेंट बनने वाले है और एक अच्छे पैरेंट बनने के तरीके जानना चाहते हैं।

वैजो अपने बच्चों की देखभाल करने की वजह से तनाव में रहते हैं।

लेखक के बारे में

जूली लिथकाट हेम्स(ulie Lytheort-Haimg) दस सालों तक स्टैन्फार्ड यूनिवर्सिटी की डीन आफ फ्रेशमेन के पद पर काम कर चुकी है। वे एक लेखिका और एक स्पीकर है जो दुनिया को ओवरपरेटिंग की समस्या से निकालना चाहती है और लोगों को बच्चों की देखभाल करने के बेहतर तरीकों के बारे में बताना चाहती हैं।

यह किताब आपको क्यों पढ़नी चाहिए?

बहुत से पेरेंट्स की यह चाहत होती है कि वे अपने बच्चों को हर वो सुविधा दें जो उनके बचपन में उन्हें नहीं मिली। बहुत से पैरेंट्स अपनी कोलोनी के सबसे अच्छे पेरेंट बने की कोशिश करते रहते हैं। ये खुद की तुलना दूसरों से करते हैं और फिर अपने बच्चों को उनसे बेहतर सुविधा ेने की कोशिश करते हैं।

लेकिन क्या अपने बच्चों की इस तरह से देखभाल करना वाकई सही है? क्या आपको नहीं लगता कि बच्चों का हर काम कर कर, उन्हें जिन्दगी की कड़वी राच्चाई से छुपा कर उन्हें कमजोर बना रहे हैं? एक दिन आप उनके साथ नहीं होंगे और उन्हें खुद से सारा काम करना होगा। क्या आप उस दिन के लिए अपने बच्चे को तैयार कर रहे हैं?

यह किताब हमें बताती है कि किस तरह से आप बेहतर माता पाता बन सकते हैं और अपने बच्चों को थोड़ी आजादी देकर किस तरह से आप खुद के लिए कुछ समय निकाल सकते हैं। यह किताब आपको ओवरपैरेटंग से होने वाले नुकसान के बारे में बताती है।

इसे पढ़कर आप सीखेंगे

बच्चों की ज्यादा देख-भाल करना क्यों गलत है।

-ज्यादा देखभाल से बच्चे किस तरह से कमजोर हो जाते हैं।

बच्चों को कुछ समय के लिए आजाद छोड़ना क्यों है।

अपने बच्चों की बहुत ज्यादा देखभाल करना अच्छी बात नहीं है।

बहुत से माता पिता ऐसे होते हैं जो अपने बच्चों को हर सुख सुविधा देने की कोशिश करते हैं और उन्हें हर तरह की तकलीफ से दूर रखते हैं। वे अपने बच्चों के बुरे वक्त में उनकी मदद करने के लिए हमेशा खड़े रहते है। चाहे स्कूल हो या कालोनी, वे वाहते हैं कि हर कोई उनके बच्चों के साथ वेसा ही बर्ताव करे जैसा वे उनके साथ करते हैं।

इस तरह के माता पिता अपने बच्चों की हद से ज्यादा फिक्र करते हैं। अखबारों में छपने वाले किडनेपिंग और हत्या की खबरों की वजह से वे कुछ ज्यादा चिंता करने लगते हैं। इसलिए वे अपने बच्चों को हर तरह से सुरक्षित रखने की कोशिश करते हैं।

सुनने में यह बातें बहुत अच्छी लगती हैं, लेकिन क्या यह आपके बच्चों को आने वाले वक्त के लिए तैयार कर रहा है? हर जगह उसके साथ खड़े होकर, उसका काम खुद कर कर, उसकी हर जरूरत पूरी कर कर कहीं आप उसे कमजोर तो नहीं बना रहे हैं?

वाहे प्यार हो या नफरत, अगर वो हद से ज्यादा बड़ जाए तो नुकसानदायक है। हालांकि कुछ खबरें हैं जो हमें अपने बच्चों की हिफाजत करने पर मजबूर कर देती हैं, लेकिन ऐसा जरूरी तो नहीं है कि आपके बच्चे को हर वक्त कोई किडनेप कर के मारने के बारे में सोच रहा हो।

अगर स्कूल में बच्चे के मार्क्स कम मा जाट तो बहुत से माता पिता स्कूल के टीचर से लड़ने लगते हैं। उनका मानना होता है कि टीचर अच्छे से नहीं पढ़ा रहा है या फिर वो ज्ञान बूड़ाकर उनका नंबर काट रहा है। उनका मानना होता है कि सिस्टम अच्छा नहीं है।इस तरह वे अपने बच्चों की कमियों को नजरअंदाज करने लगते हैं।

बच्चों की ज्यादा फिक्र करने से और उनकी हर तरह की जरूरत पूरी करने से आप उन्हें मुश्किलों से लड़ने का मौका नहीं देते। आइए देखते हैं कि इस तरह से बच्चे की परवरिश करने के क्या नुकसान हैं।

ज्यादा देखभाल की वजह से बच्चे मानसिक रूप से कमजोर होने लगते हैं।

जब आप अपने बच्चे की हर तरह से हिफाजत करने की कोशिश करते हैं तब उसे यह लगने लगता है कि जिन्दगी में सब कुछ आसानी से मिल जाता है। वे जैसे ही किसी चीज़ के लिए जिद करेंगे वो उन्हें मिल जाएगी। इस तरह से पलने वाले बच्चे जिन्दगी की असलियत छोटी उम्र में कभी नहीं देख पाते।

समय के साथ जब वे बड़े होते हैं तो उन्हें अलग अलग तरह के काम को करने के लिए डेडलाइन दी जाती है। उनके ऊपर काम करने का दबाव डाला जाता है। बहुत बार वे हार जाते हैं और हारते ही वे हार मान लेते हैं।

इस तरह जब उन्हें नाकामियों का सामना करना होता है तो वे समझने लगते हैं कि वे काबिल नहीं है और वे तनाव के शिकार होने लगते हैं बहुत से बच्चे आत्महत्या करने की कोशिश करते हैं क्योंकि उन्हें यह लगने लगता है कि वे अब कुछ भी नहीं कर पाएंगे।

अमेरिकन कालेज हेल्थ एसोसिएशन के 2013 की एक स्टडी में यह पाया गया कि कालेज में पढ़ने वाले 83.4 % बच्चों को कालेज बोझ लगने लगता है। उन में से 8% बच्चों आत्महत्या करने की कोशिश करते हैं। हालांकि इसकी बहुत सारी वजह हैं लेकिन गाता पिता का हृद से ज्यादा लाइ-प्यार करना भी उन वजहों में से एक है।

क्योंकि बच्चों को कभी मुश्किल वक्त का सामना करने नहीं दिया गया इसलिए जब उन्हें सब कुछ खुद से करना पड़ता है तो वे परेशान हो जाते हैं और इस तरह के नतीजे सामने आते हैं। अगर हम अपने बच्चों को जिन्दगी के मुश्किल पहलू के बारे में नहीं बताएगे, तो.उनहें लगेगा कि जिन्दगी बहुत आसान है। उनका यही सोचना उन्हें मानसिक रूप से कमजोर बना देता है।

बहुत से बच्चे इस तरह के हालात से लड़ने के लिए अलग अलग तरह की दवाइयां लेने लागते हैं। उन्हें काम करने में ज्यादा समय लगने लगता है और वे दिमागी रुप से कमजोर होने लगते हैं।

ज्यादा देखभाल करने से बच्चों की आजादी छिन जाती है और वे कोई मुकाम हासिल नहीं कर पाते।

एक कंपनी चाहती है कि उसे ऐसे कर्मचारी मिलें जो रिस्क को समझ कर तुरंत बेहतर फैसले लेना जानते हों। वे चाहते हैं कि उन्हें दिए गए समय के अदर सभी काम पूरे मिलें। लेकिन जिन बच्चों की ज्यादा देखभाल की जाती है वे कभी इस तरह के माहौल में नहीं पले होते जिसकी वजह से वे बड़े हो जाने पर भी बच्चे ही रहते हैं। वे अपना काम खुद से नहीं कर पाते।

ज्यादातर माता पिता अपने बच्चों के काम में उनका हाथ बटाने लगते हैं और हर जगह उनके साथ लगे रहते हैं। इससे बच्चों के हर काम में उनके माता पिता कि परछाई दिखने लगती है। उनके चलने, बोलने और काम करने के तरीके उनके माता पिता के जैसे होते हैं। दूसरे शब्दों में वे भपने मन से कुछ भी करना नहीं सौख पाते। वै खुद की पहचान नहीं बन पाते और ना ही आजाद हो कर रह पाते हैं।

इतनी ज्यादा देखभाल करना माता पिता के लिए भी तनाव की वजह होती है। उन्हें हर वक्त लगता रहता है कि वे अपने बच्चों की देखभाल अच्छे से नहीं कर पा रहे हैं और वे तनाव में रहते हैं। वे अपने बच्चों को कहीं पर भी अकेला नहीं छोड़ते चयोंकि उन्हें लगता है कि वे अपनी देखभाल नहीं कर सकते। इस तरह से ये उनकी आजादी छीन लेते हैं।

इस तरह के बच्चों को आगे चलकर पढ़ने के लिए अच्छे कालेज नहीं जा पाते हैं। अच्छे कालेज में होने वाले एक्जाम मेंज्यादातर सामाजिक सवालों पर यह सामाजिक काबिलियत पर ध्यान देते हैं। क्योंकि इस तरह के बच्चे समाज के साथ कभी अकेले नहीं रहे होते हैं, वे इन बातों को नहीं समझ पाते जिसका नतीजा होता है कि उन से कम पढ़ने वाले लड़के उन एक्जाम्स में पास हो जाते हैं जबकि वे नहीं हो पाते।

अपने बच्चों से उम्मीद कीजिए और उनकी कमियों को अपना कर उन्हें फिर से कोशिश करने के लिए बढ़ावा दीजिए।

अब तक हमने देखा कि क्यों अपने बच्चों की ज्यादा देखभाल करना अच्छी बात नहीं है। आपके मन में शायद यह सवाल उठ रहा होगा कि अगर इस तरह से बच्चों का खयाल रखना गलत है तो सही तरीका क्या है। इने जानने से पहले हम यह देखते है कि पेरेंट्स कितने तरह के होते है।

  • सबसे पहले वे माता पिता आते हैं जो कुछ ज्यादा ही सख्त होते हैं। वे अपने बच्चों को डाँटते रहते हैं और चाहते हैं कि वे उनके बनाए गए हर नीयम को गाने। वे अपने बच्चों को यह कभी नहीं बताते किं उन नीयमों को बनाने का मकसद क्या है। वे चाहते हैं कि उनके बच्चे उनकी इज्जत करें और उनकी हर बात माने।
  • इसके बाद वे माता पाता आते हैं जो अपने बच्चों की हर जिह पूरी करते हैं। वे अपने बच्चों के लिए नीयम नहीं बनाते और उसकी हर तरह की जरूरत पूरी करते रहते हैं।

इसके बाद वे माता पिता आते हैं जो अपने बच्चों के काम से कुछ खास मतलब नहीं रखते है। वे अपने बच्चों को उस तरह से जीने देते हैं जैसे वे जीना चाहते हैं और कभी उनके काम में अपनी राय नहीं देते हैं। इस तरह की पैरेंटिंग सबसे खराब होती है क्योंकि इसमें रहने वाले बच्चे अक्सर सही रास्ते पर नहीं चलते।

  • आखिरी तरह के माता पिता वे होते हैं जिनकी तरह बनने की कोशिश हम सभी को करना चाहिए। ये माता पिता अपने बच्चों से काफी सारी उम्मीदे रखते हैं लेकिन उनके हार जाने पर उन्हें डाँटते नहीं हैं, बल्कि उन्हें फिर से कोशिश करने के लिए उकसाते हैं। वे अपने बच्चों की भावनाओं से जुड़ने की कोशिश करते हैं और उन्हें खुद से काम करने का मौका देते हैं ताकि वो अपने तरीके से काम करना सीख सकें।

इस तरह के माता पिता अपने बच्चों के लिए नीयम बनाते हैं और साथ ही साथ उन्हें बनाने के मकसद भी बताते हैं। वे चाहते हैं कि उनका बच्चा खुद से फैसले लेना सौखे और उन फैसले के नतीजों को अपनाना भी सीखे। इस तरह की पेरेटिंग से एक बच्चा समय के साथ अपने गलत फैसलों से काफी कुछ सीख लेता है और साथ ही अपना काम खुद से करना भी सीख लेता है।

अपने बच्चों को मेहनत की कीमत बताइए और साथ ही उन्हें थोड़ा अल्हड़ भी बने रहने दीजिए।

बहुत से माता पिता अपने बच्चों से यह उम्मीद करते हैं कि वे गौर हो जाएं और अच्छे से रहें। लेकिन क्या गंभीर रहना बच्चों का काम है? क्या आप बचपन में गंभीर रहा करते थे बच्चों को बच्चे बने रहने का मौका दीजिए। उन्हें कुछ बचकानी हरकते करने दीजिए। इन्ही हरकतों से वे बहुत कुछ सौख पाते हैं। सबसे पहले तो अपने बच्चों को खेलने से मत रोकिए। जब आपके बच्चे लापरवाह होकर स्पेलने लगते हैं तब वे अलग अलग तरह की चीजों के पास जाकर यह देखने की कोशिश करते हैं कि वो क्या है। वे उसे अपनी तरह से समझने की कोशिश करते हैं और अपनी की गई गलतियों से काफी कुछ सीखते हैं।

अब आप सोच रहे होंगे कि अगर बच्चों को हर वक्त खेलने दिया जाएगा तो वे काम करना कब सीखेंगे? बच्चों को यह भी सीखता चाहिए कि किस तरह से वे उस चीज़ को हासिल कर सकते हैं जो वे करना चाहते हैं। उन्हें मेहनत की कीमत समझानी होगी। उन्हें यह समझाना होगा कि यहीं पर हर चीज़ की एक कीमत है और उसे हासिल करने के लिए वो कीमत चुकानी होगी। उन्हें यह जानना होगा कि हर चीज की कीमत ही उसे अहमियत देती है। अगर बो आसानी से मिल जाती है तो उसकी अहमियत कम हो जाएगी।

इसके लिए सबसे पहले आप अपने बच्चों की सोच को विकसित करने की कोशिश कीजिए। जब तक आपके बच्चे अपनी सोच विकसित कर खुद से बातें करना नहीं सीखेगे,

वे इस तरह की बातों को नहीं समझ पाएंगे। आप उन्हें ज्ञान मत दीजिए, उन्हें सोचना सिखाइए। उन्हें बोलने का मौका दीजिए, हर वक्त अपना हुक्म मत चलाइए।

अपने बच्चों से यह मत कहिए कि वे कुछ भी हासिल कर सकते हैं। उन्हें यह बताइए कि वे किस तरह से सब कुछ हासिल कर सकते हैं। उन्हें मेहनत की कीमत बताइए। इसके लिए सबसे अच्छा तरीका यह होगा कि आप उन्हें घर के काम करने की जिम्मेदारियां दीजिए। जब वे खुद से किए गए काम के नतीजे देखेंगे तब वे इस बात को अच्छे से समझ पाएंगे।

अपने बच्चों को समझ कर उन्हें वो बनाइए जो वे बनना चाहते हैं।

बहुत से माता पिता अपने बच्चों को एक साँचे में अपने हिसाब से ढालने की कोशिश करते हैं। वे चाहते हैं कि उनका बच्चा वो काम करे जो उन्हें पसंद है, वो पढ़े जो वे उसे पढ़ाना चाहते हैं और वो बने जो वे उसे बनाना चाहते हैं। यह बिल्कुल गलत बात है। आपका बच्चा इस दुनिया में बने बनाए रास्ते पर चलने के लिए नहीं आया है, वो यहाँ पर खुद के लिए रास्ते बनाने आया है। सबसे पहले आप यह देखिए कि आपके बच्चे को असल में क्या करना अच्छा लगता है। अगर उसे आर्ट पसंद है तो आप उसे मैथ्स में माहिर बना कर इंजीनियर बनाने की कोशिश मत कीजिए। आप अपने बच्चे की मदद कीजिए ताकि वो अपने अंदर की आवाज सुनकर वो कर सके जो वह करना चाहता है।

यहाँ पर हर किसी को आजाद रहने का अधिकार है। हर किसी के पास यह हक है कि वो अपने फैसले खुद से ले। आप अपने बच्चों के ऊपर अपने फैसले मत थोपिए, बल्कि उसे इस काबिल बनाइए कि वो अपने मनपसंद रास्ते पर चलते वक्त खुद सही फैसले लेना सीख सके।

इसके साथ ही अगर आपका बच्चा कालेज में अपने मन से कुछ चुनना चाहता है तो उसे रोकिए मत। उसे यह देखने दीजिए कि कौन सा कालेज जसके लिए सबसे अच्छा होगा। उस यह फैसला खुद से लेने दीजिए कि वो कहाँ पर रहकर अपना मनपसंद काम करसा सीख सकता है। अगर वो किसी बड़े कालेज में एडमिशन नहीं ले पाता तो इसका मतलब यह नहीं है कि उसकी जिन्दगी खत्म हो गई और अब वह कुछ भी नहीं कर सकता।

खुद अपना कुछ समय देकर तनाव को कम कीजिए।

जब आप अपने बच्चे की बहुत चिंता करते हैं, तो आप अपने काम के साथ साथ उसके हर काम पर ध्यान देते हैं जिसकी वजह से आपका तनाव बढ़ता जाता है और आप समय के साथ अंदर ही अंदर से कमजोर होते चले जाते है। वक्त आ गया है कि आप अपने बच्चों को थोड़ा आजाद छोड़ कर खुद के लिए कुछ समय निकालें।

बच्चे अपने माता पिता को अपना आदर्श मानते हैं। लेकिन आज के वक्त के माता पिता काम और बच्चों की जिम्मेदारियों की वजह से इतने थके हुए होते हैं कि वे अपना काम भी अच्छे से नहीं कर पाते। इस तरह से समय के साथ वे अपने बच्चों के आदर्श नहीं रह जाते।

जब आप अपने बच्चों को कुछ जिम्मेदारियां देकर उसे आजाद छोड़ देते हैं तब आप खुद के लिए कुछ समय निकाल पाते हैं। भाप उन चीजों को ना कहना सीखिए जो जरुरी नहीं है या जिन्हें आपके बच्चे भी कर सकते हैं।

जब आप इस तरह से अपने बच्चों की देखभाल करेंगे तो जाहिर सी बात है कि बहुत से दूसरे माता पिता आपको गलत ठहराएंगे। वे आप से कहेंगे कि बच्चों से इस तरह से काम करवाना गलत है और आपको उनका सारा काम करना चाहिए। जब आप अपने बच्चों के स्कूल के हर स्पोर्ट्स फंक्शन में नहीं जाएंगे तो लोग आपको लापरवाह माता या पिता भी कहेंगे। लेकिन आप इन सब बातों को अपने रास्ते में मत आने दीजिए।

इनसे बचने का सबसे अच्छा तरीका यह है कि आप अपनी तरह के दूसरे माता पिता के साथ रहना शुरु कीजिए। अपने तरह के लोगों को खोजिए।

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