MINIMALIST PARENTING by Cristine Koh and Asha Dornfest.

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यह किसके लिए है

बैजो अपने बच्चों को सबसे होनहार बनाने की कोशिश करते हैं।

व पैरेट जो खुद की तुलना दूसरे पैरेंट्स के साथ करते हैं।

वेजो अपने बच्चों की जिम्मेदारियों की वाह से तनाव में रहते हैं।

लेखक के बारे में

क्रिस्टीन कोट (Crstne koh) एक लेखिका और एक साइकोलॉजिस्ट हैं। वे एक बनॉगर भी हैं जो पेटेंटस की मदद करने के लिए अलग अलग ब्लॉग लिखती हैं। इसी मकसद में उन्होंने मिनिमलिस्ट परेटिंग लिली जो कि एक बेस्टसेलर है।

आशा डानफेस्ट ( Asha bomfest) एक लेश्चिका हैं जो पिछले 20 साल से इंटरनेट पर बहुत सारे ब्लॉग और पोस्ट लिखती आई है। अब वे भी पेरेंटिंग के कपर ब्लॉग लिखती हैं।

यह किताब आपको क्यों पढ़नी चाहिए?

खुद से बहुत ज्यादा उम्मीद रखना नुकसानदायक हो सकता है। अब से कई सौ साल पहले गौतम बुद्ध ने कहा था कि इस दुनिया के सभी दुखों की वजह ख्वाहिश है। अगर आप अपने ख्वाहिशों को कम कर दें तो आपके दुख भी कम हो जाएगा तो वक्त आ गया है कि आप अपनी उम्मीदों को कम कर दें और मिनिमलिस्ट पेरेंटिंग को अपनाएँ।

मिनिमलिस्ट पैरेंटिंग आपको बताती है कि किस तरह से आप कम काम कर कर भी एक खुशहाल जिन्दगी जी सकते हैं। इसका सबसे पहला सबक यह है कि आप अपनी आशाओं को कम कर दें। इस किताब की मदद से आप यह जान पाएंगे कि कैसे आप सबसे अच्छे पैरेट ना बनकर या अपने बच्चों को सबसे होनहार ना बनाकर उनसे ज्यादा खुश रह सकते हैं जो सबसे अच्छे पेरेंट माने जाते हैं या जिनके बच्चे सबसे होनहार हैं।

इसे पढ़कर आप सीखेंगे

किस तरह आप अपने बच्चों को कुछ जिम्मेदारी देकर अपना बोझ हल्का कर सकते हैं।

किस तरह आप अपने अंदर की आवाज पहचान कर अपनी शता पर जिन्दगी जी सकते हैं।

किस तरह आप अपने परिवार को मजबूत बना सकते है।

अपने बच्चों को बड़ा करने के अपने तरीके बनाइए।

क्या आपका लगता है कि ज्यादा सुख सुविधा होने का मतलब है ज्यादा खुशियाँ होना नहीं।

बहुत बार हमारे साथ ऐसा होता है कि हम अपने बच्चों को खुश करने के लिए या फिर उन्हें हर सुविधा देने के लिए सब कुछ करने की कोशिश करने लगते हैं। इस तरह से हम खुद से बहुत सारी उम्मीदें करने लगते हैं और खुद की तुलना दूसरों से करने लगते हैं, जो कि खुद को परेशान रखने का बहुत अच्छा तरीका है।

मिनिमलिस्ट पेरेंटिंग का मतलब है सिर्फ उन चीज़ों पर अपना ध्यान लगाना जिनसे आपका परिवार खुशी से जी सके। इसमें आप खुद से बहुत ज्यादा उम्मीद नहीं रखते और ना ही खुद को सबसे अच्छा बनाने की कोशिश करते हैं। आप बहुत सारी इच्छाओं को अपने अंदर लेकर मत चलिए, सिर्फ उन पर ध्यान लगाहए जो जरूरी हैं। इसका मतलब यह नहीं है कि आप अपने बच्चों का ध्यान रखना एकदम से छोड़ दें और एक सन्यासी बन जाए। इसका मतलब यह है कि आप अपने बच्चों की हर जिद्द पुरी करने पर ध्यान नहीं देंगे और ना ही खुद को सबसे अच्छा बनाने की कोशिश करेंगे।

इसके लिए आप सबसे पहले अपने मन को हल्का कर के खुद की तुलना दूसरे माता-पिता से करना बंद कीजिए। आप यह मत देखिए कि वे अपने बच्चों के लिए हर हफ्ते नए नए खिलौने लाते हैं या फिर उनके लिए हर सुविधा का इंतजाम करते हैं। भाप खुद की वैल्यू बनाइए और उसके हिसाब से काम कीजिए।

इसके बाद आप खुद को और अपने परिवार को समझाने की कोशिश कीजिए। आप यह सोचिए कि वो कोन सा काम है जिसे करने से सब लोग खुश रह सकेंगे। आप खुद को पहले से बेहतर बनाने की कोशिश कीजिए ना कि सबसे बेहतर बनाने की। आप हर मायने में सबसे अच्छे नहीं बन सकते।

हर किसी की बात सुनना बंद कर के अपने अंदर की आवाज को पहचानिए।

हम अनजाने में वही करने लगते हैं जो हमारे आस पास के लोग कर रहे होते हैं। अक्सर ही हमें यह पता होता है कि वो रास्ता जिस पर सब लोग चल रहे हैं, हमारे लिए सही नहीं है। लेकिन फिर भी हम खुद की आगज पर शक कर के यह सोचने लगते हैं कि अगर वह सबके लिए काम कर रहा है तो उसे हमारे लिए भी करना वाहिए। यहीं से आपकी परेशानी शुरू होती है।

सबके साथ चलना अच्छा लगता है। लेकिन जब इस भीड़ में आप अपनी आवाज नहीं सुन पाते तो आप भीड़ के गुलाम हो जाते हैं और एक गुलाम कभी खुश नहीं रह सकता।

इसलिए आप वो कीजिए जो आपको सही लग रहा है।

जरूरी नहीं है कि आप हर एक्सपर्ट की या किताब में लिखी गई हर सलाह को मारने। आप खुद को महत्व देना सीखिए, तभी आप अपने रिश्तों को सुधार सकते हैं।

यह मत सोविए कि खुद की परवाह करने से आप मतलबी हो जाएगे। बच्चों ध्यान देने का मतलब यह नहीं है कि आप खुद को भूल जाएं। खुद की परवाह कर के ही आप खुश रह सकते हैं। इसलिए अपने बच्चों की हर जरुरत पूरी करने से अच्छा है आप खुद पर भी थोड़ा ध्यान दीजिए।

माप अपने लिए कुछ नए और अच्छे कपड़े खरीद सकते हैं या फिर अपना कोई शौक पूरा करने की कोशिश कर सकते हैं। इसके साथ ही अपने पार्टनर को भी कुछ समय दीजिए। आपको अपने इस रिश्ते पर भी खास ध्यान देने की जरुरत है। आप अपनी जिन्दगी में बोड़ा को कम कर के एक बार फिर से खुश रहने की कोशिश कीजिए। भाप ऐसा तभी कर पाएंगे जब आप मिनिमलिस्ट पैरेंटिंग का तरीका अपनाएंगे।

अपने समय के अच्छे से मैनेज करना सीखिए।

यहाँ सभी के पास सिर्फ 24 घंटे ही होते हैं, चाहे वो दुनिया का सबसे अमीर व्यक्ति हो या फिर सबसे गरीब। तो फिर ऐसा क्यों होता है कि कुछ लोग इतने समय में ही बड़े बड़े काम कर लेते हैं और कुछ लोग कुछ नहीं कर पाते? कामयाब लोगों को अपना समय अच्छे से मैनेज करना आता है।

अगर आप भी समय की समस्या से परेशान है तो राबसे पहले खुद से यह सवाल पूछिए कि आपके लिए सबसे जरूरी काम क्या है। आप सब कुछ करने की कोशिश मत कीजिए। अपना समय सिर्फ उस काम को दीजिए जो आपके लिए अहमियत रखता हो।

सबसे पहले आप खुद के लिए कुछ खाली समय निकालने के बारे में सोचिए। इसके लिए आप यह देखिए कि किस वक्त आपके साथ कोई नहीं रहता। अगर आप सुबह जल्दी उठ जाते हैं और आपके परिवार वाले देर से उठते हैं तो यही वो समय है जब आप चैन से अकेले बैठ सकते हैं।

साथ ही अपने परिवार के खाली समय को भी देखते रहिए। अगर आपके बच्चों को देर रात तक पढ़ने की आदत है तो उन्हें सुबह जल्दी उठने को मत कहिए। उन्हें अपना काम रात में ही पूरा कर लेने दीजिए।

इसके बाद आप यह देखिए कि आपको इस 24 घंटे में कौन कौन से काम करते हैं। जो काम सबसे मुश्किल लग रहा हो उसे सबसे पहले कर लीजिए। क्योंकि जैसे जैसे यह 24 घंटे बीतेंगे, आप थकते जाएंगे और अगर मुश्किल काम पहले ही पूरे हो जाएँ तो आपको ज्यादा परेशान होने की जरूरत नहीं पड़ेगी।

इसके बाद अगर आपका परिवार बड़ा है तो आप अपने परिवार के हर सदस्य

फक्शन है तो आप वहां जाकर घटों बोर मत होइए।

लिए समय निकालने के बारे में सोविए। अगर आपके खानदान में किसी के घर पर कोई

इसके बाद आप अपने बच्चों को घर के काम दीजिए ताकि वे अपनी जिम्मेदारी समझ सके और खुद को परिवार का एक हिस्सा समझें। इस तरह से आप खुद के लिए कुछ और समय निकाल लेंगे।

सिर्फ उन्हीं चीज़ों को खरीदिए जिनकी आपको वाकई जरुरत हो।

हम अक्सर चीजों पर पैसे खर्च कर देते हैं जिनकी हमें जरूरत नहीं होती है। एक्जाम्पल के लिए आपने शायद कभी फर्श पर बिछाए जाने वाले मैट खरीदे हों। लेकिन क्या आपको उसकी जरुरत थी या आपने अपने घर को सुंदर बनाने के लिए उन्हें खरीदा था? ठीक इसी तरह शायद आपने एक नया फोन खरीद लिया हो क्योंकि आप अपने पुराने फोन को इस्तेमाल कर कर के ऊब गए थे। इस तरह के खर्चे ही आपको सुकून से जीने नहीं देते। समय के साथ वो आपके घर में फालतु जगह ले लेते हैं और आपका घर भरा भरा सा लगने लगता है। खुद से सवाल कीजिए कि अगर इसी वक्त आपके घर में आग लग जाए और सब कुछ जल जाए तो वो कौन कौन सी चीजें हैं जिन्हें आप एक महीने के अदर फिर से खरीदना चाहेंगे। दूसरे शब्दों में वो कौन सी चीजें हैं जिनके बिना आपका एक महीना भी नहीं बीतेगा। बस, यही वो चीजें हैं जिनकी आपको जरूरत है और इसके अलावा सब कुछ आपके लिए एक बोड़ा है।

अगली बार जब भी आप कुछ नया खरीदने जाए तो खुद से सवाल कीजिए कि क्या आपको वह चीज वाकई चाहिए। अगर आपको लगता है कि उसके बगेर आपका गुजारा नहीं होगा तो ही उसे खरीद लीजिए। इस तरह से आप अपने खर्चे काम कर के कुछ पैसे बचा सकते हैं। इससे आपको काम कम करना होगा और साथ ही आपको अपने परिवार के साथ बिताने के लिए कुछ समय भी मिल जाएगा।

पैसों का मतलब खुशी नहीं होती। अगर आप पहले से तनाव में रहते हैं तो पैसा आने के बाद ज्यादा तनाव में रहेंगे। पैसा आपको तभी खुश रख सकता है जब आपको पहले से खुश रहना आता हो। जब आप पैसों को हिसाब से खर्च करेंगे तब आपके बच्चे भी इन बातों को सीख पायो।

तो अब से आप खुद से यह सवाल मत पूछिए कि क्या आपके पास उस सामान को खरीदने के लिए पैसे हैं या नहीं। आप खुद से यह सवाल पुछिए कि क्या आपको वह चीज़ चाहिए या नहीं।

अपने बच्चों की पढ़ाई को सिर्फ स्कूल तक मत रखिए।

पढ़ा लिखा होने से अच्छा है पढ़ते-लिखते रहना। आप अपने बच्चों से यह उमीद मत कीजिए कि वे जल्दी से जल्दी सब कुछ सीख लें। आप उनसे यह उम्मीद कीजिए कि वे जब तक जिंदा रहें, सीखते रहें। उन्हें अपने शहर के सबसे अच्छे स्कूल में पढ़ा कर सबसे बुद्धिमान इसान बनाने की कोशिश मत कीजिए, बल्कि यह कोशिश कीजिए कि वे जहां भी रहें अपना काम खुद से कर सकें।

आप अपने बच्चों की ज्ञान की प्यास को बुझाने की बजाय उसे बढ़ाने की कोशिश कीजिए। आप उन्हें नई नई चीजें दिखाइए ताकि उसे देखकर उनकी जिज्ञासा बढ़ जाए और वे खुद से उसके बारे में जानने की कोशिश करें। आप उन्हें अलग अलग तरह के खाने खिलाइए, अलग अलग जगह घुमाने ले जाइए और अलग अलग लोगों से मिलने को कहिए।

स्कूल पढ़ने के लिए ही बनाए गए हैं, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि आपके बच्चे सिर्फ स्कूल में ही पड़ें। उन्हें बाहर भी सीखने का मौका दीजिए। स्कूल और घर के माहौल को कुछ ऐसा बनाइए जिससे आपका बच्चा हर वक्त कुछ ना कुछ सीखता रहे।

अपने बच्चों के होमवर्क से खुद को दूर रखिए। यह उनका काम है उन्हें खुद ही इससे लड़ने दीजिए।

इसके बाद आप स्कूल के टीचर्स के साथ घुलने मिलने की कोशिश कीजिए ताकि आप और वे मिलकर बच्चों के लिए कुछ अच्छा सोच सके। स्कूल के अलग अलग प्रोग्राम में जाइए और उनमें हिस्सा लीजिए।

अंत में, हारने पर खुद को या अपने बच्चों को कोसना बंद कीजिए। आप हार को सीखने का एक जरिया समझिए। अगर आपके बव्ये किसी काम को करते वक्त नाकाम हो जाते हैं तो उनका हौसला बड़ाडए ताकि वे फिर से कोशिश करे।

बच्चों के लिए खेलना जरूरी है, लेकिन इसे लेकर ज्यादा परेशान मत होड़ए।

क्या आप भी चाहते हैं कि आप अपने बच्चे के सबसे महंगा खिलौना लाकर दें या फिर उसके लिए अलग अलग तरह के वीडियो गेम खरीदें? अगर हां,

इसे बंद करने का।

तो वक्त आप गया है

बच्चों के लिए खेलना जरूरी होता है लेकिन यह जरूरी नहीं होता कि वे महंगे खिलौने या वीडियो गेम के साथ ही खेले।आप अपने बच्चों को हर तरह के खिलौनों के साथ खेलना का मौका दीजिए और साथ ही उन्हें बाहर जाकर खेलने का मौका दीजिए। इसके अलावा यह जरूरी नहीं है कि आप उनके खेलने के समय को प्लैन करें। आप बस उनके रोज के काम में खेलना भी डाल दीजिए और बाकि का काम उनपर छोड़ दीजिए। आप उनके साथ खेलने मत जाइए। उन्हें खुद से खेलने का मौका दौजिए ताकि वे कोशिश कर के कुछ नया सीरव सर्के।

इसके अलावा आप अपने बच्चों को इस तरह का माहौल देने की कोशिश कीजिए कि चे सूपूद से कुछ खिलौने बना सकें। इससे वे अपने अदर और साथ ही उस काम में अपना मन लगा सकते हैं जिसमें उन्हें मजा आता है। टैलेंट को पहचान सकते हैं

इलेक्ट्रानिक गेम्स जैसे प्लेस्टेशन, मोबइल गेम्स या फिर लैपटॉप गेम्स के बारे में लोगों का मानना है कि वे बच्चों को आलसी बना देते हैं। लेकिन आप इसे भी कुछ समय दीजिए। बस इस बात का ध्यान रखिए कि बच्चे उसी में उलझे ना रह जाए। उन्हें बाहर की दुनिया देखने का मौका दीजिए। इससे वे खिलौनों के बिना भी खेलना सीख सकेंगे।

खेलने और पढ़ने के अलावा आप अपने बच्चों को दूसरे काम जैसे स्पोट्र्स, स्चिमिंग या फिर म्यूजिक क्लास लेने का भी मौका दीजिए। जब आपका बच्चा अलग अलग तरह के काम करेगा तब वह यह पता कर पाएगा कि उसे किसमें दिलचस्पी है और फिर वो उसके हिसाब से अपना कैरियर चुन पाएगा।इसके साथ ही आप अपने बच्चे को मोटिवेट करना मत भूलिए।

अपने परिवार के साथ खाना खाना अपने रिश्तों को मजबूत बनाने का सबसे अच्छा तरीका है।

अपने परिवार के साथ बैठकर खाना खाना वाकई मजेदार हो सकता है। इसके लिए आपको कुछ काम करने होंगे,शायद ये काम उबाऊ हों, लेकिन इसका फायदा बहुत ज्यादा है। तो आइए देखें कि ये काम कौन से हैं।

सबसे पहले आप यह प्लान कीजिए कि आप अगले दिन क्या खाएंगे और फिर उसके लिए सामान खरीदने जाएंगे। आप यह सोचिए कि अगले दिन आप अपने परिवार के साथ किस तरह का स्वादिष्ट खाना खाना चाहेगे। अगर वो खाना सेहत के लिए अच्छा है, तो आप उसे रोज बना सकते हैं।

इसके बाद आप सामान खरीदने के लिए अपने बच्चों को भी साथ में लेकर जाइए। इससे उन्हें यह जानकारी होगी कि खाना बनाने के लिए क्या क्या सामान लगते हैं और वे सामान कहाँ से आते हैं।

आप ऐसा खाना मत बनाइए जिसे बनाने में बहुत मेहनत हो और खाने को अच्छे से अच्छे तरीके से परोसने की कोशिश मत कीजिए आप अपना ध्यान अपने परिवार और उनकी बातों पर लगाइए।

इसके अलावा भाप अपने बच्चों को भी कुछ काम सौंप सकते हैं ताकि वे भी इसमें मापकी कुछ मदद कर सकें।

जब आप मिनिमलिस्ट पेरेंटिंग को अपना लेंगे तो आप देखेंगे कि कम काम करने पर भी आप अच्छी जिन्दगी जी रहे हैं। आप खुद की तुलता हर पैरेंट से करना छोड़ देंगे और सिर्फ उन चीज़ों को खरीदेंगे जो आपके लिए जरूरी है। आप कम पैसों में अपना घर वला पाएगे और अपने बच्चों को खुद पर निर्भर रहना सिखा पाएंगे।

यात्रा पर जाने से पहले भी बहुत प्लान मत कीजिए। आप अपने साथ बहुत सारे सामान मत लेकर जाइए। सफर पर जाने से आप अपने बच्चों को बहुत सी चीजे सिखा सकते हैं।

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