THE YEAR OF LIVING DANISHLY by Helen Russell.

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यह किसके लिए है

-जिस किसी को भी डेनमार्क के रीती-रिवाजों में दिलचस्पी हो।

-सोशियोलॉजी (sociology) के स्टूडेंट और हैप्पीनेस मेजरमेट (हैप्पीनेस measurement) के शोधकर्ता।

जो लोग सामाजिक लोकतंत्र का समर्थन करते है और उसके बारे में जानने की जिज्ञासा रखते हैं।

लेखक के बारे में

हेलेन रसेल (Helen Russell) एक ब्रिटिश पत्रकार और लेखिका है। उनके लेखन के कई सराहनीय नपूने जाने माने जर्नलों और मैगजिनों में प्रकाशित हुए है जैसे की द टाइम्स (The Times. ट शारडियन (The Guardian), द वाल स्ट्रीट जर्नलhe wall street Journal) आदि।

यह किताब आपको क्यों पढ़नी चाहिए?

अगर हम विश्व के खुशहाल देशों की बात करें तो लगभग एक दशक से दुनिया का एक छोटा सा देश इस लिस्ट में सबसे पहले नंबर पर बना हुआ हैं पेस्ट्रीज (pasteries) और लेगो (LEGO) नाम की कंपनी के लिए मशहूर इस छोटे से देश की आबादी तो दुनिया के कई शहरों से भी कम है, तो फिर आखिर ऐसा क्या है यहाँ की हवाओं में जो यहाँ इतनी खुशहाली और समृद्धि है। आईये इस किताब के जरिए जानते हैं डेनमार्क की फिजाओं के इस राज को।

इसे पढ़कर आप सीखेंगे

डेनमार्क में ऐसा कौनसा कानून है जो वहाँ के पेरेंट्स को एक अच्छी परवरिश करने में मदद करता है।

डेनमार्क के लोगों में ऐसा कौनसा gene है जो कि उनकी खुशी का राज़ है।

कैसे यहाँ के लोग खुद को खुश रखते हैं।

डेनमार्क में लोगों का मानना है की असली खुशियाँ घर से शुरु होती हैं।

बाहर की दुनिया से जुदा के जब इंसान अपने घर आता है तो यही वो जगह होती है जहाँ हम सुकून की आशा रखते है। शायद डेतमार्क के लोगों को ये बात बहुत अच्छे से पता है इसलिए वो अपने घर को ही स्वर्ग जेसा सुन्दर और आरामदायक बना कर रखने में विश्वास रखता है।

अक्सर लोगों को डेनमार्क के नाम से LEGO नाम की कंपनी, कड़ाके की ठंड या फिर उनकी कंफ्यूज करने वाली भाषा याद आती है। लेकिन इस से परे भी एक ऐसी चीज़ है जो उनको खास बनती है वो है उनकी खुश रहने की आदत और उन लोगों का मानना है की खुश रहने के लिए सबसे जरुरी है अपने आस पास के माहौल का खुशनुमा होना। इसके लिए डेनमार्क के लोग एक खास लफ का इस्तेमाल करते है वो है होगी (Hygge) जिसका मतलब है अपने परिवार के साथ एक आरामदायक भंदाज़ में समय व्यतीत करना। यही कारण है की डेनमार्क के लोग आपना ज्यादा से ज्यादा समय घर पर हीं बिताना पसंद करते हैं और अपने घर को ऐसा सजाते हैं की वहाँ का हर एक कोना सुकून दे।

डेनमार्क में घरों की सबसे खास बात ये है कि वहाँ लोग अपने घरों में बहुत सारी मोमबतिया जला के रखते हैं जिस से की रोशनी के साथ साथ गर्माहट का एहसास भी मिले। आप ये बात जानकर हैरान हो जाएँगे कि इतनी कम आबादी के बाद भी दुनिया में डेनमार्क सबसे ज्यादा गोगबत्तियां इस्तेमाल करता है। आपको अक्सर वहां घरों की छत पर खूबसूरत से झूमर और डिज़ाइनर लाइटिंग देखने को मिलेगी। घर के हर एक कोने में आराम का और परिवार के साथ क्वालिटी टाइम बिताने का सब सामान मौजूद होता है।

यूनिवर्सिटी ऑफ ल दन के द्वारा 2017 में किया गया सर्वे बताता है की जब हम अपने आस पास खुशनुमा माहौल देखते हैं तो हमारे दिमाग से डोपामिन (dopamine) नाम का एक हॉर्मोन निकलता है जो की हमें खुशी का एहसास दिलाता है।

ये बात हमें भी डेनमार्क के लोगों से सिमाना चाहिए कि खुशियों को कहीं बाहर हूडने की जरुरत नहीं पड़ती हम चाहें तो हमारे घर को हीं एक खुशियों का आशिया बना सकते हैं।

डेनमार्क के लोग घर और काम का बेहतरीन बैलेंस बनाना जानते हैं और वही काम करते हैं जिसमें उनकी रुचि हो।

अक्सर हमारे समाज में हम लोगों को उसकी सैलरी और उसके पद के हिसाब से औकते है लेकिन डेनमार्क में ये मान्यता बिलकुल नहीं है बल्कि वहाँ के लोग मानते है की ज्यादा सैलरी का मतलब महज ज्यादा टैक्स देना है, और इसलिए वहाँ लोग कमाने के लिए नहीं बल्कि अपने पसंदीदा काम को करने के लिए जॉब करते हैं।

और अगर किसी व्यक्ति ने कोई ऐसा काम या प्रोफेशन चुन लिया है जिसमें उसे इंटरेस्ट नहीं आ रहा तो वो बहुत ही आसानी से उसे बदल सकता है, क्यूंकि वहाँ की सरकार ऐसे लोगों के लिए बेरोज़गारी भत्ता देतो है जो की उसकी सैलरी का 70-80% होता है जिसमें आसानी से उसका घर चल जाता है। ये भता वो लगभग 2 साल तक ले सकता है और इस दौरान वो कुछ नया सीख कर नयी जॉब कर सकता है। और तो और वहाँ की कमानियों ने मिलकर एक संस्था बनायीं है जिसका नाम है आर्गेनाइजेशन फॉर इकोनोमिक कोऑपरेशन रेड डेवलपमेंट (Organisation for Economic Co-operation and Development) रखा है, इस संस्था में सरकार और कंपनियाँ दोनों ही निवेश करती हैं और ये संस्था लोगों को ट्रेनिंग देती है ताकी वो अपने पसंद का काम सीख सके और वो भी बिलकुल मुफ्ता वहाँ की सरकार इतनी जागरुक है कि एक निम्न स्तरीय शिक्षा वहाँ मुफ्त और अनिवार्य है।

लोगों को अक्सर अपनी जॉब से यही शिकायत होती है की उनके पास अपने परिवार के लिए वक्त नहीं होता जिसके कारण उनके मन में फ्रस्ेशन और असंतोष आ जाता है। इसलिए डेनमार्क में सरकार ने काम करने के सगय को ही कम कर दिया है वहां काम करने का औसतन समय केवल एक हपत्ते में 34 से 37 घंटे हीं है और यकीन मानिये ये दुनिया के ज्यादातर देशों से कम है। अपने काम पर कम वत्त बिंताने के कारन डेनमार्क के लोग अपने परिवार के साथ अपना भरपूर समय बिता पाते हैं और अपने काम को एजॉय भी करते हैं। जाब सैटिसपैकशन का उनके जीवन में एक स्वास रोल है, क्यूंकि उनका मानना है की अगर आप अपने पसंदीदा काम को अपनी जॉब बना लें तो आप सारा काम खुशी से और बेहतर ढंग से कर सकते हैं।

फुर्सत के लम्हों का सही इसतेमाल करना हमें डैनिश (danish ) लोगों से सीखना चाहिए।

चाहे आपका वीकेंड हो या फिर आपका हॉलिडे अपने फुर्सत के लम्हों में अपनी हॉबी को एन्जॉय करता किसे पसंद नहीं आता। यहाँ तक की कई साइंटिफिक स्टडीज ने भी ये सिद्ध किया है कि अपनी हॉबी को एन्जॉय करना हमारी खुशियाँ और हमारी सेहत दोनों में इजाफा करता है। इसलिए डेनमार्क में रहने वाले लोग और डेनमार्क की सरकार दोनों इन बातों के लिए काफी जागरुक है और अपने फुर्सत के दिनों के सही इस्तेमाल के लिए वहा काफी सारे विकल्प है। यहाँ तक की वहां की सरकार भी ऐसी एक्टिविटीज को करवाने वाले क्लब्स और एसोसिएशन को काफी प्रोत्साहन देती है, जिसका नतीजा ये है की वहाँ है 10 गे से 9 व्यक्ति किसी न किसी क्लब या एसोसिएशन का सदस्य जरूर है।

इन संस्थायों की खास बात ये है की चाहे कोई सीइ.ओ. हो या आम एम्प्लोय सब बराबर है लोगों को खुश और तंदुरुस्त रखने के साथ साथ यहाँ करवाई जाने वाली एक्टिविटीज समाजिक सदभावना को भी बढाती है। तो ये तो रही संस्थानों और क्लबों की बात आईये देखते हैं की आमतौर पर यहाँ के लोगों को क्या करना सबसे ज्यादा पसंद है।

अगर हमफुर्सत की गतिविधियों की बात करें तो यहाँ के लोगों को सबसे ज्यादा साइकिलिंग का शौक है। लोगों के इसी शोक को देखते हुए वहाँ की सरकार ने डेनमार्क में 7,500 मील के बाइक पाथ बनाएँ हैं और यही नहीं कोपेनहेगेन (Coperhagen) जैसे बिजी शहरों के लिए रोड के किनारे अलग से सेफ्टी पाथ भी बनाया है। वहां हर टेक्सी को बाइक स्टेंड रखना अनिवार्य है ताकी जब कोई बाइकर थक जाए या थोड़ी इिंक कर ले तो टेक्सी से सुरक्षित घर पहुँच सके। ऐसा इसलिए क्यूकि वहां अमीर से अमीर लोग भी अपनी साइकल्स और बाइक्स पर ही जाना पसंद करते हैं।

अगर हम हार्वर्ड जैसी जानी मानी यूनिवर्सिटी के रिसर्च पर जायें तो वो भी डैनिश लोगों द्वारा अपनाये जाने वाले इस तरीके की सिफारिश करते हैं और कहते हैं की साइकिलिंग से आपकी सेहत और आपका व्यवहार दोनों ही बेहतर हो सकते हैं।

डेनमार्क में ज्यादातर लोग अपने देश और अपने रीती-रिवाजों से बहुत प्यार करते हैं।

परम्परायों से मानव जाती का गहरा सबंध है ये परम्पराये न सिर्फ हमें समाज के साथ जोड़ती है बल्कि एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक जाने वाली एक महत्वपूर्ण कड़ी का भी काम करती हैं। कई वैज्ञानिकों ने रिसर्च कर पाया की परम्परा का पालन करने से जो खुशी और संतोष मिलता है वो हमारे जीने के अंदाज़ को और जिन्दगी के प्रति हमारी सोच को सकारात्मक बना देता है।

डेनमार्क की आबादी का 90% हिस्सा प्रोटेस्टेंट स्टेट चर्च को मानता है और उनमें ये रिवाज़ है की जब उनके बच्चे 14 साल के हो जाते हैं तब वो एक कन्फर्मेशन सेरेमनी करते हैं जिसमें की उन्हें उनके धर्म और धार्मिक क्रिया कलापों के बारे में बताया जाता है। इस सेरेमनी में कई दोस्त रिश्तेदार भी शामिल होते हैं और वो सब आशीर्वाद के तौर पर बच्चे को गिफ्ट्स और पैसे देते हैं। एक बैंक के सर्वे के अनुसार इस सेरेमनी के दौरान औसतन 3.2005 तक पैसे इक्कठे हो जाते हैं जो की उस बच्चे के फ्यूचर में काम मा सकते हैं। ये तो रही पैसों की बात लेकिन इस सेरेमनी की सबसे खास बात ये है कि इसमें लोग अपने करीबी रिश्तेदारों से मिल कर खुशी का अनुभव करते हैं और सबके साथ से वो माहौल बहुत ही खुशनुमा हो जाता है।

जिस तरह डेनमार्क वासी अपनी परम्परायों को आज तक संजोये हुए है ठीक उसी सिंहत से वो अपने देश को भी चाहते हैं। एक वैज्ञानिक रिपोर्ट की मानें तो बो लोग जो अपने देश और सरजमीं के बारे में गर्व महसूस करते हैं वो ज्यादा खुश रहते हैं। इस राष्ट्रप्रेम की भावना का एक सबूत ये है की यहाँ के लोग अपने देश के झन्डे से बहुत प्यार करते हैं और इस देश में डेनमार्क के देनेब्रोग(Dannebrog) झंडे के अलावा कोई और झंडा लगाना एक अपराध है।

इस तरह से यहाँ के लोग अपने पूर्वजों से मिली परंपरा और देश प्रेम के कारण खुश और संतुस्ट महसूस करते हैं।

सरकार के सपोर्ट और मदद के कारण यहाँ के पेरेंट्स अपने बच्चों की और बेहतर परवरिश कर सकते हैं और उनके साथ ज्यादा से ज्यादा समय बिता सकते हैं।

कल्पना कीजिये एक ऐसी दुनिया की जहाँ हर बच्चा अपने जीवन के शुरुआती महीने किसी आया या मेड की गोद में नहीं बल्कि अपने माँ बाप की छत्र छाया में बिताये। वैज्ञानिक बताते हैं की जिन बच्चों को शुरू से ही माँ-बाप का साया मिला हो उनकी मानसिक और शारीरिक ग्रौथ बेहतर होती है और जो माँए अपने बच्चे की सही देख रेख कर पाए उनके मन पर कोई बोझ नहीं होता और कामकाजी महिलायों में आमतौर पर पाया जाने वाला डिप्रेशन भी नहीं होता। इसलिए डेनमार्क की सरकार ने ये अनिवार्य कर दिया है की पेरेंट्स को 52 हफ़्तों की छुट्टियाँ मिलेगी जिससे वो अपने बच्चों का लालन पालन कर सकें।

आज कल के दौर में जहाँ महिलाएं भी पुरुषों की तरह कामकाजी हो गयी है ऐसे में अगर पुरुष भी घर के कामों और बच्चों के पालन पोषण में महिला की मदद करेंगे तो घर स्वतः ही स्वर्ग के समान बन जाएगा। स्कैनडेवियन देशों में और खास कर देनमार्क में तो ये चलन आम है इसलिए जितनी छुट्टियाँ महिलायों को मिलती है उतनी ही पुरुषों को भी ताकि वो भी अपना ज्यादा से ज्यादा समय घर पर बिता कर और परिवार के प्रति अपनी सारी जिम्मेदारियां पूरी कर खुशी का अनुभव कर सकें

सरकार अपनी ज़िम्मेदारियाँ बस छुट्टियाँ देने तक ही नहीं सिमित रखती बल्कि जब गाँ-बाप नौकरी पर वापस जाते हैं तो कम से कम खर्चे में डे केयर सुविधाए पहुँचाना भी सरकार अपना फ़र्ज़ समझती है। इसलिए डेनमार्क में 6 महीने से लेकर 6 साल तक के बच्चों को गारंटीड डे केयर सुविधा सरकार की तरफ से मुहैया करवाई जाती है। इस सुविधा का खर्च बाकि देशों में होने वाले खर्चे से 75% तक कम है क्यूंकि सरकार भी इसपर पैसा खर्च करती है। तो अगर सरकार का इतना सपोर्ट हो तो माँ-बाप बिना टेंशन के अपना ध्यान काम और घर दोनों पर लगा सकते हैं और स्ट्रेस और टेशन न होने के कारण खुश रहना तो स्वाभाविक है।

ऐसा लगता है मानो डेनमार्क के लोगों के जीन (gene) में हीं खुश रहने का गुण भरा हुआ है।

अगर हम खुशी देने वाली वस्तुयों की बात करें तो आमतौर पर पैसा, रिश्ते नाते और हमारी सेहत कुछ ऐसी चीजें है जो हमारे दिमाग में आएंगी। लेकिन क्या आपने कभी ये सोचा है की मुश रहना हमारे जीन (gene) पर भी निर्भर करता है।

लेकिन कोपेनहेगेन (copenhagen) यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर नील टॉमरअप (Niels Tommerup) के एक शोध के अनुसार जेनेटिक डिस्टेंस का भी हमारे व्यवहार, सोच और मूड पर बहुत असर पड़ता है। जेनेटिक डिस्टेंस का मतलब होता है किसी स्थान की आबादी के जीन में पायी जाने वाली समानता। यानी की जिस देश की आबादी में जीनों की बनावट में जितनी ज्यादा समानता होगी वो लोग आपस में उतने सोहाद् और भरोसे से रहेंगे और उतने ज्यादा खुश रहेंगे क्यूंकि समान जीन होने के कारण ये सारे लोग एक बहुत बड़े परिवार की तरह है। इस समानता का एक कारण ये भी है की डेनमार्क के लोग ज्यादातर अपने स्थान पर ही रहना पसंद करते हैं और वो अपना शहर या देश छोड़ कर नहीं जाते, जिसके कारण वह की मूल आबादी लगभग एक जैसी ही बानी रहती है।

सेरोटोनिन (serotonin) नाम का एक होर्मोन हमारे दिमाग से निकलता है जो की हमें खुश होने का एहसास करवाता है इसलिए इसे हैप्पी हॉर्मोन भी कहते हैं। लेकिन इस हॉर्मोन का हमारे शरीर में सही तरीके से इस्तेमाल हो पाए इसके लिए एक और पदार्थ की जरुरत पड़ती है जिसका नाम है 5-एच.टी.टी. इसका मतलब ये है की जिन लगों के शरीर में इस पदार्थ को बनाने वाले जीन ज्यादा संख्या में पाए जाते हैं उनके दिमाग में सेरोटोनिन तेजीसे इस्तेमाल होता है और वो खुश महसूस करते हैऔर डेनमार्क के लोगों में ये gene बहुत ज्यादा मात्र में होते हैं। शायद यही बात डेनमार्क के लोगों के gene को खास बताती है और इसलिए कई शोधों में ये पाया गया है की जिन देशों के जीन डेनमार्क के लोगों से मेल खाते हैं वहां भी खुशहाली है।

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