THE RUTHLESS ELIMINATION OF HURRY by John Mark Comer.

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ये किताब किसके लिए है?

-उन लोगों के लिए जो खुद को बहुत बिजी मासूस करते हैं, लेकिन इस लगातर चलने वाले जिन्दगी के पहिये से उतरना नहीं जानते.

ऐरो किस्वियन जो बाइबिल के मॉडर्न और प्रेक्टिकल इंटरप्रिटशन को जानना चाहते हैं.

हर वो व्यक्ति जो ये जानना चाहता है कि कैसे मांडत टेकोलाजी ने हमारी लाइफ को बदल कर रख दिया है.

लेखक के बारे में

जॉन मार्क कांगर पोर्टलैंड ओरेगन में ब्रिजटाउन चर्च के पादरी है उन्होंने वैस्टूर् सेगिनरी से बाइबिल और विमोलॉजिकल स्टडीज में मास्टर्स की डिग्री हासिल की है उनकी पिछली किताबे जैसे माई ना इजा होप और लवोलाजी चिंता, डिप्रेशन और शादी को अध्यात्मिक नजरिए से देखने की कला सीखाती है.वो द कल्चरल मोमेंट नाग के पॉडकास्ट के को-होस्ट भी रहे हैं जिसमें उन्होंने गॉडर्न दुनिया में स्पिरियुभल रहने के दौरान आने वाली परेशानियों के बारे में बात की है.

पादरी जॉन मार्क कॉमर को ये एहसास हुआ कि जरुरत से ज्यादा बिजी होने के कारण उनकी सेहत, उनके रिश्ते और भगवान में उनका विश्वास सब खतरे में पड़ गया है.

हम सबके पास हमेशा समय की कमी रहती है. यहाँ तक कि बिल गेट्स भी अपनी सारी समझदारी और पैसे लगा कर अपने लिए एक्स्ट्रा टाइम नहीं खरीद सकते तो हम इतने कीमती समय को अपने स्मार्टफोन की स्क्रीन पर देखते हुए या लाइफ की अधी दौड़ में भागते हुए क्यूँ बीता देते हैं?

हस किताब के लेखक, पादरी जॉन मार्क कॉगर भी हमारी ही तरह उस बीमारी से ग्रसिंत थे जिसे उन्होंने हरी डिजीज यानी जल्दबाजी की बीमारी का नाम दिया है, कागजी तौर पर देखा जाए जो जॉन मार्क कॉमर एक बहुत ही सफल व्यक्ति थे. वो एक तेज़ी से बढ़ते हुए चर्च के पाटरी थे और बहुत से लोग उनकी बातें सुनना चाहते थे. पर अन्दर से वो थके हुए और परेशान थे, उन्हें ये एहसास हुआ कि अगर ऐसा ही चलता रहा तो शायद वो सफलता की बुलंदियों पर तो पहुँच जायेंगे लेकिन उनकी ज़िन्दगी और ज्यादा मुश्किल हो जाएगी.

वो अपनी जिन्दगी जीने के तरीके में बदलाव लाना चाहते थे लेकिन कैसे और क्या? इन सभी सवालों का जवाब उन्हें बाइबिल में मिला जीसस क्राइस्ट की बातों को शब्दों से ज्यादा अपनी जिंदगी में अपनाते हुए लेखक ने जाना कि कैसे ज़िन्दगी की रफ्तार को कम करके वो अपने आसपास की दुनिया में बिखरी सी खुशियों का स्वाद चख सकते हैं और एक सुकून भरी ज़िन्दगी जी सकते हैं. इस किताब में उन्होंने चार आसान और बहुत ही असरदार तरीकों के बारे में बताया है जिनके इस्तेमाल से आप भी लेखक की तरह अपनी ज़िन्दगी में बदलाव ला सकते हैं.

एक-एक गुज़रते हुए पलों को जोड़ कर हमारी जिंदगी बनती है. लेकिन, क्या होगा अगर हम इतने बिजी और स्ट्रेस में हों कि जिंदगी के इन्हीं गुज़रते पलों का स्वाद ही ना चल पाएं? कागजों के हिसाब से तो लेखक जॉन मार्क कॉमर एक बहुत ही सफल व्यक्ति थे वो पोर्टलैंड, ओरेगन के एक तेज़ी से बढ़ रहे चर्च के पादरी थे. हर साल सैंकड़ों लोग उनके चर्च से जुड़ते थे, जो कि पादरी के तौर पर उनकी योग्यता का प्रतीक था, घर में भरा-पुरा परिवार या साथ ही वो कई कामयाब किताबों के लेखक भी थे. कहीं से कोई कमी नजर ही नहीं आती थी.

लेकिन इस कामयाबी के पीछे छुपा था बिजी रहने के कारण उनका अन्दर ही अन्दर तनाव और चिंता में रहना,

बो हफ्ते में 6 दिन काम करते थे और रोज़ की 6 क्लास लेते थे. उनके स्टाफ के साथ भी उनके रिश्ते कुछ खास अच्छे नहीं थे क्यूकि यो उनपर चिल्लाते रहते थे. उनका तनाव कई बार उनके आस-पास के लोगों के ऊपर भी निकल जाता था. रात में घर आकर अपनी थकान मिटाने के लिए अपना सारा समय वो बिना सोचे बस यूँ ही कुंग फू की फिल्में देखने में बिता देते थे. वो अन्दर ही अन्दर एकदम खाली महसूस करने लगे थे, मनो भपनी ही ज़िन्दगी को किसी अनजान की तरह जी रहे हों लंदन से अपने घर की ओर हवाई जहाज़ के सफर के दौरान उन्हें अपनी गलती का एहसास हुआ उन्होंने खुद से पूछा आखिर में ये क्या बनता जा रहा हूँ ऐसा लग रहा है में किसी बर्फ का पादरी नहीं बल्कि एक बड़ी कंपनी का सीईओ हूँ जो हमेशा मीटिंग में व्यस्त रहता है. मेरा जूनून तो मेरे इश्वर के साथ जुड़ने का हे तो ये सब क्या चल रहा है मेरी ज़िन्दगी में?

हुन सवालों नें उन्हें हिला कर रख दिया. उन्होंने हिम्मत जुटाई और चर्च के लोडरों को बता दिया कि वो रिजाइन कर रहे हैं. उन्होंने पोर्टलैंड सिटी के एक छोटे से चर्च में पादरी बनने की इच्छा जताई, लीडरों ने उनकी बात मान ली और वो आज़ाद हो गए.

शुरू के 6 महीने उनके लिए बहुत कठिन थे, पुरानी जिन्दगी कि थकान अभी भी उनके अन्दर मौजूद थी. उन्हें लगा कि उन्हें अपने शरीर को डेटोक्स करने की जरूरत है. मानों किसी दावा के साइड इफेक्ट की तरह बिजी रहने से उनकी ज़िन्दगी पर भी कोई साइड इफेक्ट हो गया है.

धीरे-धीरे वो इमोशनल और स्पिरिचुअल रूप से ठीक हो गए, अब उनके पास बच्चों के साथ खेलने का. अपने कुत्ते को घुमाने का और थेरेपी के लिए जाने का भी भरपूर समय था कोई बाहरी रूप से देखे तो अब वो कामयाबी के पायदान में काफी नीचे पहुँच गए थे. पोर्टलैंड के इतने बड़े चर्च जिसकी कई शाखाए और लाखों फालोअर धे, उसके पादरी रहे जॉन कामेर अब बस एक छोटे से चर्च में आ गए थे. लेकिन उन्हें समझ आ गया था कि इमोशनल और स्पिरिचअल रुप से स्वस्थ रहना ही असली कामयाबी है.

जल्दबाजी हमारी लाइफ के इमोशनल और स्पिरिचुअल पहलुओं के लिए एक खतरा है.

जब हमसे कोई पूछता है कि आपकी लाइफ कैसी चल रही है तो ज्यादातर हम यही कहते हैं कि मैं बहुत बिनी हूँ या स्टेस में हूं, भाजकल एक काम से दुसरे काम पर भागता तना आम हो गया है कि कई बार हमें ध्यान भी नहीं रहता कि हम क्या कर रहे हैं और ये ख्याल भी नहीं आता कि इस भागदौड़ के अलावा भी एक जिन्दगी हो सकती है.

ये बिजी रहने की बीमारी किसी खास स्टेटस या किसी स्थास जगह के लोगों तक सीमित नहीं है एक बड़ी कंपनी का सीईओ भी बिजी हो सकता है और एक परेलु माँ भी बिनी हो सकती.

लेकिन बिजी रहने में आखिर क्या बुराई है?

जरूरत से ज्यादा बिजी रहना आपके मेंटल और फिजिकल हेल्थके लिए अच्छा नहीं है. और अगर आप एक धार्मिक व्यक्ति हैं तो ये भगवान के साथ आपके रिश्तों पर भी असर डाल सकता है. कार्ल जंग ने एक बार कहा था कि, ‘जल्बाजी शैतान की पहचान नहीं है, बल्कि जादबाजी खुद एक शेतान है माना कि ये कमेंट थोड़ा बढ़ा-चढ़ा के कहा गया सा लगता है. लेकिन जरा आप जल्दबाजी के प्रभावों को तो देखो.

शान्ति और सुकून से इश्वर के लिए अपनी श्रद्धा को बढ़ाने और उसका ध्यान करने की बजाये हम इस्टाग्राम पीड देखने में या ईमेल के जवाब देने में बिनी रहते हैं संडे को भी अपने परिवार के साथ समय बीतने या चर्च जाने के बजाये हम बस मुर्गियों कि तरह एक काम से दसरे काम की ओर भागते रहते हैं.

प्यार सबसे बड़ा धर्म है, लेकिन जिंदगी की जल्दबानी इस भावना को पूरी तरह खत्म कर देती है सोचिये आपका परिवार आपके आने का पलकें बिधाए हेतज़ार कर रहा है, और आप काम से झुंझलाते हुए गुस्से में घर पहुंचते हैं ऐसे में आप किसी को प्यार कैसे दे पाएंगे,

दूसरी और हमरि-घरि काम करने याले को आजकल बेवकूफ समझते हैं, और धरि होना किसी बेती के जैसा हो गया हैं जैसे अगर होटल में जल्दी खाना नहीं मिला तो खाने के स्वाद पर ध्यान दिए बिना ही हम उस होटल को बुरा करार दे देते हैं, जबकि असल में थोडा धीर होकर हम जिंदगी की कई नयी चीज़ों से जुड़ कर एक सतोष भरी जिंदगी जी सकते हैं, शायद यही कारण है कि हमने वाक विथ जीसस यानि जीसस के साथ चलो सुना है स्प्रिंट विथ जीसस यानि जीसस के साथ भागो नहीं सुना है. धीमापन हमें अपने रिश्तों को खुलकर जीने का अपने काम पर विचार करने और अपने स्पिरिचुमल मेंटर से जुड़ने का मौका देता है.

तो अगली बार जब आप अपने परिवार के साथ टेबल पर बैठ के हंस रहे हो और आपका फोन एक और अर्जेंट ईमेल के लिए बजे तो आप महसूस करना कि आपका वो डील आपको बस आपके नारते से ही नहीं बल्कि आपके परिवार से भी दूर कर रहा है.

नयी टेकोलॉजी ने समय के साथ हमारे रिश्तों को बदल कर हमें बिजी बना दिया है. जब हसान के पास घड़ी नहीं थी तब कैसा था? सगय जानने का गात्र एक ही साधन था आसमान में सूरज की दिशा को देखना पर ये सब तब बदल गया जब एक मोंक ने मैकेनिकल क्लॉक का अविष्कार ये सोच के किया कि वो लोगों को प्रार्थना के लिए समय पर बुला सके 1330 में सबसे पहला पब्लिक क्लॉक टावर, जर्मनी के कोलोन में लगा. अब आता-जाता हर व्यक्ति आसानी से चर्च में प्रार्थना का समय पता लगा सकता था.

लोगों ने चाँद और सूरज की जगह अब हस आर्टिफीशियल टाइमपीस पर भरोसा करना शुरू कर दिया दूसरी बहुत बड़ी खोज जिसने समय के साथ हमारे रिश्ते को प्रभावित किया वो है 1879 में थॉमस अल्वा एडिसन के द्वारा बनाया गया इलेक्ट्रिक बल्ब अब मोमबती के आस पास डेश लगा कर बैठने कि बजाये राब अपने रोशन घरों में अपनी-अपनी जगह बैठ सकते हैं. इस बल्ब के अविष्कार का सीधा असर हमारी नींद और आराम करने के समय पर पड़ा. एक एवरेज इंसान पहले घटे की नींद लेता था जो अब पट कर 6-7 घंटे या और कम ही रह गयी है इसलिए अवसर हमखुद को थका हुआ महसूस करते हैं, करोड़ों ऐसी टेक्नोलॉजी हे जो हमारा समय बचाने के लिए बनायीं गयी है. जैरी अब घोड़े की सवारी करने की बजाये हम कार में बैठ कर कहीं भी बस कुछ घटों में पहुँच सकते है. अब खुद को गर्म करने के लिए पेड़ काटने की बजाये बस अपने समार्टफोन से एक बटन दया का थर्मोस्टेट को चालू कर सकते हैं. हुन तकनीकों ने यकीनन हमारा समय बचाया है.जैसे समार्टफोन को ही ले लीजिये कि ये कितना उपयोगी है, अब बस में समय बर्बाद करने की बजाये आप बैठे-बैठे अपने ईमल का जवाब दे सकते हैं, दुनिया के किसी भी कोने से बच्चों की फोटो सके दादा-दादी तक पहुँचा सकते है और बस नैप के नीले डॉट को फॉलो कर के माप दुनिया के किसी भी रास्ते का पता लगा सकते हैं

लेकिन स्मार्टफोन ने हमारा समय बचाने के साथ-साथ हमारा समव बाद भी बहुत किया है, बिजनस इनसाइडर में हाल में ही छपे एक लेख के अनुसार एक इसान रोज़ कम से कम 2.67 बार आपने फोन तो टच करता है,

तो फिर अब इस समस्या का क्या हल है? क्या हम ये सब छोड़ के दुनिया के दुसरे कोने में भाग जायें, लेकिन घड़ी, फ़ोन, बिजली और लाइट के बिना अब वापरा पीछे जाना तो असभव है. लेखक कहते हैं हमें ये सब करने की जरूरत नहीं है, इर देक्रोलॉजी अपने आप में जरुरी है लेकिन इसपर अपनी निर्भरता को कम करना होगा. जैसा एक-दो बार रास्ते डूडते हुए मंजिल से पहले भटक जाने में कोई बुराई नहीं है. आखिर ऐसी ही मटकी हुई राहें कई बार हमें अपने-आप से मिलवा देती हैं.

हर समय हर जगह मौजूद होने की कोशिश हमें थका देती है.

आपके मन में भी अक्सर आता होगा कि अगर आपके पास दिन में चंद घंटे और होते तो शायद आपकी सारी समस्या हल हो जाती सोचिये, मगर भापक के लिए रोज़ के 10 घंटे बढ़ जाएँ तो?

लेकिन ज्यादा खुश होने की जरूरत नहीं क्यूंकि ज्यादा समय होने का ये मतलब नहीं कि आप अब फ्री रहेंगे इसका बस इतना मतलब है कि आपके पास बिजी रहने के लिए थोड़ा और समय मिल जायेगा.

ऐसा इसलिए क्यूंकि हम सब FOMO में रहते हैं यानी Fear of missing out इसका मतलब है कि हमें हमेशा इस बात का डर सताता रहता है कि कहो हम इस दुनिया से पीछ न रह जायें. इसलिए हम हर चर्चित फिल्म देखने की कोशिश करते हैं. हर जरूरी बात जानने की कोशिश करे है. दुनिया का हर संभव कोना घुमने की कोशिश करते हैं. लेकिन इस कोशिश के बीच हम ये भूल जाते हैं कि हम कोई सुपर हीरो नहीं बल्कि एक आम हसान हैं, जिसकी अपनी कुछ सीमाएं है

इसलिए अपनी बिजी और हेक्टिक जिंदगी को थोड़ा आसान बनाने के लिए हें ज्यादा समय की जरूत नहीं है बल्कि, जरूरत है तो इतनी कि जितना समय हमारे पास है उसमें हम केवल उन कामों पर फोकस करें जो हमारे लिए जरूरी है भर जिन्हें हम अच्छे से कर सकते हैं,

हम सब एक दुसरे से अलग है. कोई काम के प्रेशर में ज्यादा अच्छा परफॉर्म कर पता है तो कोई प्रेशर हैडल नहीं कर पता और परेशान हो जाता है, किसी को लोगों से बात करने की कला माती है तो कोई अपने आप में सौमित रहता है.

हम सबको उपरवाले ने अलग-अलग टैलेंट के साथ पैदा किया है इसलिए हम सबकी अपनी सीमाए है. जेसे आप अपने शौक और मन की शांति के लिए वायलिन जरूर बना सकते हैं, लेकिन एक प्रोफेशनल वायलिन प्लेयर बनने के लिए हमें सुरों का ज्ञान होना बहुत जरूरी है.

हमारे परिवार की आर्थिक स्थति भी इस बात को तय करती है कि हम अपना सीमित समय किस काम को दें जैसे अगर भाप एक मभीर परिवार से भाते हैं तो मापकों पैसों की कोई चिंता नहीं इसलिए आप अपना समय पढाई को दे सकते हैं, लेकिन वहीं अगर आप एक गरीब परिवार से आते हैं तो हो सकता है अपने परिवार का पेट पालने के लिए आपको अपनी पडाई छोड़नी प़.

इन सीमाओं में खुद को बांधने की बात शायद आपको थोड़ी नेगेटिव लगे लेकिन सच यही है और जितनी जल्दी हम इस सच को अपना ले हमारे लिए उतना ही अच्छा है इससे कम से कम हमारे ऊपर से हर कुछ कर पाने का थोडा प्रेशर तो कम होगा. भर इस बात को ध्यान में रखते हुए हम आपनी सीमायों के अन्दर अच्छे से अच्छा परफॉर्म कर सकते हैं. इसलिए अनगिनत समय तो हमें की नहीं मिल सकता तो अच्छा यही होगा कि हम इसका सही हस्तेमाल करना सीख ले जल्दबाजी से बचने और अपनी जिंदगी को एक मकसद देने के लिए जीसस जैसी लाइफस्टाइल अपनानी होगी. अगर आपने कभी किसी चर्च में सेवा की है तो आपको बाइबिल के टैन कमाडेट दिल से याद होंगे लेकिन, क्या आपको ये भी याद है कि जीरारा अपनी रोजमर्रा की जिन्दगी में क्या करते थे?

बाइबिल केवल एक नैतिक और धार्मिक किताब नहीं है, बल्कि वो एक बायोग्राफी भी है लेकिन हम में से कुछ ही लोग उसे इस नज़र से देखते है, इस किताब में जीसस की जिंदगी की सभी डिटेल मौजूद हैं. उन्होंने क्या क्या कहा, अपनी लाइफ में क्या किया और वो अपने ईश्वर की आराधना कैसे करते थे ये सब आपको बाइबिल में मिल जायेगा स्पिरिचुअल शब्द सुनते ही ऐसा लगता जैसे एक टिव्या भौर दुनिया-दारी से परे किसी चीज की चर्चा हो रही हो, जबकि सब ये है कि सभी स्पिरिचुअल काम अपने आप में एकदम ज़मीन से जुड़े हैं.

गाईडफुलनेस के काराट के आने से कई साल पहले ही जीसस ने ये बताया था कि केसा हम आज में जीते हुए जिन्दगीं का भरपूर मज़ा कैसे ले सकते हैं,

बाइबिल की कहानियाँ हमें बताती है कि जीसस ने कभी जल्दबाजी नहीं की, हालाँकि उनके पास करने के लिए बहुत काम होते थे लेकिन फिर भी वो हर काम को करने में अपना समय लेते थे. उदाहरण के तौर पर बाइबिल की एक कहानी में जैरुस नाम का एक व्यक्ति जीरस के पास आया और उन्हें अपने साथ चलकर अपनी बेटी जिसकी जिन्दगी खतरे में थी उसे ठीक करने का अनुरोध किया जेरस के साथ जाते हुए रास्ते में जीसस को एक बहुत दिनों से बीमार औरत मिली जिसे तुरंत मदद की जरूरत थी, इसलिए जीसस नें पहले उस औरत की मदद करने का निर्णय लिया जीसस ने पुरे ध्यान और मन से उसका इलाज किया. उनके चेहरे पर कहीं कोई जल्दबाजी का भाव नहीं था. उस औरत का इलाज़ पुरे इत्मीनान से करने के बाद ही जीसस जैर्स के साथ गाए, उनकी काफी बिजी थी लेकिन फिर भी वो हमेशा टेशन फ्री रहते थे.जल्टबाजी और टेंशन के लिए उनकी दिनचर्या में कोई जगह नहीं थी,

जीसस अपने आप के लिए भी पूरा समय निकालते थे. लेकिन इसका ये मतलब नहीं कि वो अकेले थे, यो भी हमारी और आपकी तरह अपने दोस्तों के साथ डिनर किया करते थे और जिंदगी को लेकर कई चर्चाए भी चलती थी.

उनके पास इन सब चीजों के लिए समय इसलिए है क्यूंकि वो हमारी तरह ज्यादा से ज्यादा पैसे कमाने, बड़े घर और बढ़ी गाड़ी खरीदने की दौड़ में नहीं भाग रहे थे. जीसस एकदम सरल जिन्दगी जीत थे और केवल उन्हीं चीज़ों और कामों पर ध्यान देते थे जो उनके लिए जरूरी हुआ करते थे.

आप यही सोच रहे होंगे की जीसस के लिए ये सब करना आसान इसलिए था क्यूकि वो आज के मॉडर्न ज़माने में नहीं थे, उनके ऊपर 9 टू 5 जॉब वाला प्रेशर नहीं था और साथ ही उनके बच्चे भी नहीं थे,

आपकी बात काफी हद तक सही भी है कि जीसस और हमारी लाइफ में काफी अंतर है, लेकिन फिर भी जीसस के जीवन की कई बुनियादी बातें है जो आज के मॉडर्न समय में भी उतना ही असर रखती है. आगे आने वाले अध्याय में हम जीसस के जीवन से जुड़ी उन्हीं 4 बातों के बारे में चर्चा करेंगे जिन्हें अपनी लाइफ का हिस्सा बनाकर आप अपने समय का सही इस्तेमाल करते हुए अपनी प्रायोरिटी लिस्ट बना सकते हैं

शांति और एकांत के लिए रोज़ थोडा सा समय जरुर निकालें.

हमारी दुनिया में अब पहले से कहीं ज्यादा शोर-शराबा है, हम अकेले होते हुए भी अकेले नहीं है और इसका पूरा क्रेडिट सोशल मीडिया को जाता है, जो हमारे दिमाग को कभी अकेला नहीं छोड़ती. कुछ समय पहले तक राशन की दुकानों की लाइन में या बसों में खिड़की से बाहर झाकते हुए हमें खुद के बारे में सोचने का या अपने ख्यालों को टटोलने का थोड़ा समय मिल जाता था. लेकिन आजकल तो एक पल का समय भी मिल जाए तो हम उसे अपने स्मार्ट फ़ोन की स्क्रीन को देखते हुए बिता देते हैं, और अगर ऐसा ना कर पाना हमें बोरियत लगता है.

सवाल ये उठता है कि टेक्नोलॉजी का लगातार इस्तेमाल आस्विर हमारी लाइफ में क्या असर डाल सकता है?

इसका जवाब है चिंता, थकान और चिडचिडापन ये सब टेकोलॉजी के ज्यादा इस्तेमाल का नतीजा है. हर समय अपने पॉकेट में पड़े फोन के बनने के इंतज़ार में हम खुद को खुद से ही दूर महसूस करने लगते हैं.

तो ऐसी एक्स्ट्रा बिनी ज़िन्दगी से खुद के लिए दो पल कैसे चुराए? इसके लिए फिर से हमें जीसस की जिन्दगी में झाँकना पड़ेगा शांति और एकांत के लिए उनके प्रेम को समझना होगा कि कैसे वो वाहे कितने भी बिजी हो लेकिन खुद के लिए और अपने इश्वर के लिए समय निकाल ही लेते थे.

हर व्यक्ति जीसस के पास किसी न किसी चमत्कार की उम्मीद में मदद मांगने आता था सबकी उमीदों को पूरा करने का बोझ होते हुए भी यो कभी अपनी प्रार्थना और आत्म-चिंतन के समय के साथ कोई समझौता नहीं करते थे. वो रोज सुबह सबके उस्ने से पहले उठकर उस समय का इस्तेमाल अपने इश्वर के साथ जुड़ने और अपने मन में चल रही भावनाओं को समझने में करते थे. एक दिन ऐसा हुआ कि उन्हें सुबह से एक मिनट भी खुद के लिए नहीं मिला तो जीसस रात को एकांत की खोज में पर्वत की चोटी पर चले गए जीसस का मानना था कि मानसिक रूप से स्वस्थ जिन्दगी जीने के लिए कुछ समय का एकात और शांति बहुत जरूरी हैं,

लेकिन, खुद के लिए समय निकालने के लिए आपको किसी पहाड़ पर चढ़ने की जरूरत नहीं है मापस अपने घर के बाकी लोगों के उले से 1 घंटा पहले उठ नायें और अपनी पसंदीदा कुर्सी पर बैठ कर खुद के साथ चाय की चुस्की का मज़ा लें, या ऑफिस से घर भाते समय अपने घर से थोड़ा पहले बस से उतर कर घर तक पैदल चलते हुए अपने आस-पास की दुनिया में बिखर रगों का मज़ा ले.

अपने हेडफोन को अपने कानों से निकालें उस पॉडकास्ट को सुनना छोड़ कर अपने अटर चल रहे विचारों के शोर को सुने उन बुरे और भनीत्व विचारों को अपने मन में आने दें जिन्हें आपकबसे रोक रहे थे. अपने अन्दर चल रही उथल पुथल को महसूस करें इन सभी आदतों को अपने ज़िन्दगी का हिस्सा बनाकर देखें और आप महसूस करेंगे की एकात का मतलब अकेलापन नहीं है बल्कि उसका मतलब है खुद के साथ कनेक्ट होना.

आराम करने के लिए और अपने घर को याद करने के लिए हर हफ्ते कम से कम एक दिन की छुट्टी जरूर लें कुछ दशकों पहले तक जब अमेरिका में लोग संडे को उठते थे तो मलग ही नज़ारा हुआ करता था, सभी दुकानें और बिज़नस सेंटर बंद होते थे और लोगों के पास करने के लिए कुछ नहीं होता था लोग उस एक दिन को अपने परिवार और इशर के साथ बिताया करते थे. कोई अपने परिवार के साथ किसी बीच पर या किसी पार्क में घुगने जाता था, तो कोई चर्च में हशर के साथ अपना दिन बिताता, तो कोई बस सारा दिन आपने प्यारे सोफ पर पड़ा रहता था.

चाहे कोई भी धर्म हो हर जगह यही लिखा है कि हफ्ते में एक ऐसा दिन होना चाहिए जिस दिन हम वो सारे काम आराम से कर सकें जो हमें पसंद हैं और जो हमें पूरा होने का एहसास दिलाते हैं.

यहाँ, तक कि हमारे ग्रंथों में ये भी लिखा है कि भगवान ने भी 6 दिन में ये दुनिया बनाकर सातवें दिन खुद को तारोंताज़ा करने के लिए एक दिन का ब्रेक लिए था आराम की जरूरत हर एक को होती है लेकिन अब लोगों का लगाव पैसों के साथ बढ़ने लगा है, जिसके कारण छटी के एक दिन का कासैष्ट भी खत्म होता जा रहा है. अब चाहे दिन हो या रात आप कभी भी शौपिंग कर सकते हैं किसी भी चीज की जरूरत हो तो वो आपको तुरंत मिल जाएगी उसके लिए आपको घर से बाहर जाने की भी कोई जरूरत नहीं बस एक बटन दबाएँ और इन्टरनेट की दुकानों से जो चाहें आर्डर कर लें.

लेकिन इस सहूलियत से हमारा जीवन भासान नहीं हुआ है, बल्कि हम सबका काम और बढ़ गया है क्यूकि अब हर फील्ड में 24 घंटे काम करने का प्रेशर है. जबकि हमारे लीडर्स फावडे वर्क वीक के लिए लड़ रहे हैं, तब भी हमारे जीवन के हर कोने में मोबाइल फोन के जरिये हमारा काम फैलता जा रहा है इसकभी न खत्म होने वाले और हर जगह मौजूद रहने वाले इस काम में हमें थका कर रख दिया है, ऐसा लगता है कि हम आराम करना ही भूल गए हैं.

लेकिन हम इन सबको ठीक कैसे करें इसके लिए हमें सब्बाथ डे’ यानी सडे के कासेट को वापस लाना होगा.

अपने संडे यानी रेस्ट डे को बिताने का कोई खास तरीका नहीं है इसे आप अपने हिसाब से बिताएं बस याद रखें कि इस दिन नो वर्क ओनली रेस्ट. आपके रेस्ट कसे का तरीका आपके ऊपर निर्भर करता है. आप चाहे तो बीच पर जाकर लहरों के किनारे बैठ सकते हैं, या फिर अपनी बेटी के उस खिलोने को पूरा कर सकते है जिसके लिएयो कबसे आपसे जिह कर रही थी.

इसी तरह से भक्ति करने का और हश्वर से जुड़ने का तरीका भी आापके ऊपर ही निर्भर करता है माप चाहें तो चर्च जा सकते है या जो भी धर्म आप मानते हैं उसकी धार्मिक जगह पर जा सकते हैं या यूँ ही चलते हुए अपने आस-पास की दुनिया को एक नयी नज़र से देख सकते हैं. आप अपने दोस्तों के साथ डिनर करते हुए भी समय बिता सकते हैं या अपने किसी पसंदीदा म्यूजिक कॉन्सर्ट का मजा ले सकते हैं. जिस तरह म्यूजिक में पाँज की बहुत बड़ी अहमियत है उसी तरह हमारी जिन्दगी में भी पॉज जरूरी है जैसे म्यूजिक में पॉज हर एक मेलोडी और टोन को सराहने का मौका देता है उसी तरह जिन्दगी में भी अगर हम बिना रुके बस चलते चले गए तो हम उन चीज़ों का मज़ा कैरो उठाएंगे जो हमारे पास है.

इस्तेमाल कम करें और बांटें ज्यादा, ऐसा करने से आप उन कामों के लिए समय निकाल पाएंगे जो सच में आपके लिए मायने रखते हैं.

आपकी अलमारी में कितने जूते हैं, और उनमें से कितने मापने हाल-फिलहाल में पहने हैं?

अगर इन सवालों का जवाब देते हुए आपको बुरा लग रहा है, तो सुद को दोष मत दीजिये दरसाल, आजकल की मॉडर्न सोसाइटी में हमार खरीदने का तरीका जरुरत से ज्यादा हमारी चाहत पर निर्भर हो गया है. साथ ही हडस्ट्रीयों के बढ़ते चलन के कारण अब ज्यादा से ज्यादा सामान बनाना भी संभव है और बाकी की कसर इन विज्ञापनों नें पूरी कर दी है जो हमें इस बात का एहसास दिलाते है कि इन सामानों के बिना हम अधूरे है.

पर चीने हमेशा से ऐसी नहीं थी अभी महज कुछ सालों पहले ही अमेरिका के ज्यदातर लोग खेती पर निर्भर थे. लोग अपना खाना खुद प्राते थे और अपने पड़ोसियों से सामान के बदले सामान की अदला बदली करते थे उस ज़माने में पैसों का इस्तेमाल काफी काम था. लेकिन आज अमेरिका की आवादी के केवल 2% लोग ही खेती करते हैं, और पैसों का चलन इतना बढ़ गया है कि हम हराक पीछे पागल होते जा रहे हैं ताकि हम वो सब चीज़ें खरीद सकें जिसकी शायट हगें जरुरत भी नहीं. ज्यादा सामान खरीटना न केवल हमारी जब पर भारी पड़ता है बल्कि जो थोड़ा बहुत समय खुद के लिए बचता है उसे भी हम शौपिंग में बिता देते हैं. तो अगर आपको अपने जीवन से जल्दबाजी वको इटाना है, तो बेकार का सामान खरीदने से बचें जीसा भी हमेशा यही सिंख्याते थे कि पैसे असल में कोई मायने नहीं रखते, जितनी जरूरत हो उतना रस्वो और चाकि बाँट दो ये सुन कर आप शायद घबरा गाए होंगे कि आपको अपना पूरा घर स्थली कर के दो जोड़ी कपड़ों में जीवन बीतना होगा लेकिन, ऐसा नहीं है अपने जीवन को आसान बनाने और चीज़ों के ऊपर अपनी निर्भरता को खत्म करने के और भी कई तरीके हैं.

तो अगली बार अपने क्रेडिट कार्ड को स्वाइप करने से पहले खुद से पूछे क्या गुडों इसकी सव में जरुरत है, मेरे पास पहले से कुछ ऐसा है क्या जो इसका काम कर सकता है, और इसे लेने के लिए मैं जितने पैसे दूंगा उसे कमाने के लिए मुझे कितना काम करना पड़ेगा? बस जोश में आकर कुछ खरीदने से पहले सोचना शुरु कर दें कि चद्या यो चीज़ उस लायक है.

का खरीदने के साथ-साथ जो चीज़ें हागने हक्कठा कर रखी है उसे बाँट कर भी हम अपने गटेरियलिस्टिक लाइफ से छुटकारा पा सकते हैं. जैसे कार शेयर स्कीम चलाकर आप और आपका पड़ोसी अपने पेट्रोल के पैसे (यानी उन्हें कमाने में लगा हुआ आपका वक्त भी) बचा सकते है. बचत के साथ दससे आप अपने आस-पास के लोगों से बेहतर सबंध भी बना सकते हैं.

सबसे बड़ा झूठ जो हमारे सामने रोज़ परोसा जाता है वो है कि जिन्दगी का मज़ा लेने के लिए पेसों का होना बहुत जरूरी है. जबकि, अगर हम समय निकाल कर अपने चारों तरफ देखें तो हमें कई ऐसी आनंद देने वाली चीजें मिलेंगी जो प्रकृति ने हमें मुफ्त में दी है जैसे सुबह-सुबह गर्म चाय की चुस्की, अपने किसी पुराने दोस्त से भचानक हुई बात या नजारों के बीच एक बाइक राइड, किसी पार्क में जा कर खुली हवा में सांस लेने के लिए आपको किसी फेसी एक्सरसाइज गियर की जरूरत नहीं पतझड़ में गिरे पत्तों के ऊपर से चलने में आपके पुराने जूते भी उतना ही मज़ा देंगे जितना कि नए जूते देते. ज़िन्दगी की रफ्तार को थोडा धीमा करें, और याद रखें जिन्दगी में थोड़ा कम सफल होकर मन की शांति प्राप्त करने में कोई बुराई नहीं है, हम सब सुपरमार्केट की लाइन में खड़े होने के एहसास को जानते हैं जब हमारे सामने वाला आदमी अपने सामान का वजन करवाना भूल गया या उसे अपना कार्ड नहीं मिल रहा हो. गुस्से और चिडचिडेपन से भरे जम यही सोच रहे होते हैं कि जल्दी करो यार इतना इंतजार करने का समय किसके पास है लेकिन आखिर हमें किस बात की जल्दी है? कई बार तो हम बिना मतलब के जल्दबाजी करते हैं. वेसे तो हम कई घंटे मोबाइल में सोशल मीडिया और गेम खेल कर बिता देते हैं लेकिन सड़क पर हम बाइक चलाते हुए इतनी जल्दी दिखाते हैं जैसे डम से ज्यादा बिनी दुनिया में कोई नहीं है. हम सब चाहते हैं कि हम सारे काम बिलकुल बेहतरीन तरीके से और जल्द से जल्ट कर सकें. लेकिन एक बार अपनी ज़िन्दगी की सफ़तार थोड़ी धीमी कर के देखें.

जैसे अपने ऑफिस से घर तक के सफर को आप एक रेस ता समझ कर खुद के साथ समय बिताने और आस पास की चीजों का आनंद उठाने का मौका समझे, भपनी गाटी की रफ्तार लिमिट में रखें, ज़ेबरा क्रासिंग पर रुक और कमी कभी दूसरी गाड़ियों को भी खुद से आगे निकलने दें. अपनी भागती हुई जिंदगी को रोकने के लिए हमें उसके हर कोने में चल रहे कामों की रफ्तार थोड़ी सी कमकरती होगी. जैसे स्मार्ट फ़ोन को ही ले लीजिये हसे बनाया तो हमारी ज़िन्दगी को आसान बनाने के लिए था, लेकिन टॉयलेट सीट पर बैठ कर भी ईमेल का जबाब देते हुए आपको ये एहसास होगा कि हमने जिन्दगी आसान बनाई या और कठिन, क्या वाकई में हमें इतनी ज्यादा तेजी दिखाने की जरूरत है?

अपनी जिन्दगी में ठहराव लाने का एक तरीका है कि आप अपने फोन को स्मार्ट फोन सैडम्ब फोन बना दें, ताकि उसपर केवल जरुरी कॉल और मैसेज ही आये यानी उसमें से ईमेल और सोशल मीडिया हटा दें अगर आप ये भी नहीं कर सकते तो दिन में 12 घंटे फिचस कर लें जब आप सोशल मीडिया और ईमेल का जवाब देंगे और बाकी टाइम अपने फोन को आराम दें अपने फोन के ऊपर अपनी निर्भरता कम कर के आप काफी हद तक रिलेक्स महसूस करेंगे. मल्टी-टाम्क करने के चक्कर में पांच कामों को एक साथ शुरु कर के एक को भी ना कर पाने से अच्छा है कि एक बार में एक ही काम करें.

तो अगली बार जब आप सुपरमार्केट की लाइन में लगे तो अपने फोन पर मैसेज करने की बजाये केशियर से थोडी बात कर लें या अपने सामान को आप घर तक आसानी से कैसे ले जायेंगे इसके बारे में सोचे एक बार में एक काम खत्म कर के फिर दूसरा शुरू करें आप जो कर रहे हैं उसी में अपना ध्यान लगाकर आप उस काम को अच्छे से भी कर सकते हैं और मन की शांति भी प्राप्त कर सकते हैं.

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