ये किताब किसके लिए है?
-वैज्ञानिक रूप से आाध्यात्म की चाह रखने वालों के लिए
-ध्यान, योग और ताईची को संदेह की नजरों से देखने वालों के लिए
- “लफर-तेंट” कहे जाने वाले लोगों के लिए, बानी वो लोग जो अपने बाये मस्तिष्क का प्रयोग ज्यादा करते हैं.
लेखक के बारे में
क्रिस निचाउर (Chris NEbauer) पेन्सिलवेनिया (Pennsylvania) के स्निपरी राक यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर है. वो न्यूरोसाइकोलॉजी के विशेषज्ञ हैं. वह लेफ्ट और राईट ब्रेन के बीच के फर्क, माईडफुलनेस और कॉनशिजसनेस जैसे विषयों पर पड़ाते हैं. इससे पहले उन्होंने दन्यूरोटिक्स गाइड टूर अवॉइडिंग एनलाइटनेंट और फेविंग अप विथ द बुद्धा ताम को किताबें भी लिखी हैं.
आधुनिक न्यूरोसाइंस और बौद्ध धर्म के सिद्धांत एक दुसरे से सहमत हैं कि मैं केवल एक भ्रम है
यदि आप पश्चिमी देशों को फिलोसोफी से परिचित है तो यकीनन आपने ये वाया सुना होगा ‘कोगिटी, एगो मम (Codite, ergo sum) जिसका अर्थ है कि मुझे लगता है, इसलिए मै सन्त्रावी साठाब्दी में में इसकार्टम (REne Descartes) द्वारा कई गष्ट ये इ, पश्चिमी देशों की संस्कृति का एक दृष्टिकोण दर्शाता है जिसके अनुसार मानव जाति, उसको सोच से परिभाषित होती है।
सका्टस की खाते आपको ये सोचने पर मजबूर कर देंगी कि एक स्थिर, निरवर में जैसा भी कुछ है सके अनुसार मै एक सस्था है जाां में विचार निकलते औ. पशिमी देशों के ज्यादातर लोग तो नसे सहमत भी होंगे. भी तो, हम हर समय फुट को में बह कर बुलाते हैं और ऐसा कहते हुए हमारे मन को स्पष्ट अंदाजा भी होता है कि इस विनाको घाटा कर रहे हैं।
लेकिन क्या सच में मैं जैसा कुछ है? जैसा कि पूर्वी देशों की फिलोसोफी में और बौद्ध धर्म के सिद्धांतों में बताया गया है कि मैं बस एक uम है, यहीं भन व्यक्ति के सभी दुखों और तकलीफों का कारण बनता है.
इन अध्यायों को पढ़कर आप जानेंगे कि केले अब न्यूरोसाइंस भी गरसों पुरानी पूर्वी विंचारधारा को सिद्ध कर रहा है कि तैन हुद्धिस्टों का कहना शायत सही था कि ‘नो सेल्प नो प्रोयनेम पाती जस में नहीं तो कोई समस्या भी नहीं.
जब आप म शब्द का प्रयोग करते हैं तो असल में, आप किसका जिक्र कर रही यदि आप ज्यादातर वेल लोगों जैसे हैं, तो ये सवाल आपको काफी अजीब लगेगा और आपकी कि में मतलब – सोल और नेतना जो कि आपकी बाती को कंट्रोल करती है जो आपके गाई में की आपकी आँखों के पी रहती है जय भी हम में के बारे में बात करत तब हम असल में इसी सचेत मायलट की बात करते हैं जो हमारे शरीर को चला रहा है
यदि आप पशिन देशों में रहते हैं तो आप इस को सही तरीके से नहीं समझते, आपको लगता है कि सी में कहीं आपके दिमाग में में जैसी कोई चीज है, जैसे कि प्लेन में पायलट बैठा होता है वैसे ही मी काही आपके दिमाग में बैठा हुआ है. पर गौर करने वाली बात ये है गिजाब अमल में आप अपने मसिौष्क में में को इंदनै जाओगे तो आपको यो कहाँ नहीं मिलेगा,
आज न्यूरोमाईस मस्तिष्क में शरीर कि हर प्रतिक्रिया के केंद्र की मबिग करने में सफल रहा है, उसे भाषा का दया एवं करुणाकर, हमारे चेहरे के उमौसम का, सबकासक केट मिला है पर आज तक का कोई केट नहीं मिला
लेकिन, एक बौद्ध धर्म को मानने वाला इस बात को सुनकर हैरान नहीं होगा क्यूकि सालों से बौद्ध धर्म और ताओवाद (Tanism] इस बात को सिखाते आ रहे हैं कि निरता और अखण्ठ ‘मैं’ जैसा कुछ नहीं है. केवल हमारा अपहे.
लेकिन ये का मायाजाल इतना मजबूत है कि इससे निकलना इतना आसान नहीं है. आम इतनी बाते मनन के बाद भी यही सोच रहे होंगे की ये बात है तो बड़ी रोचक लेकिन फिर आपका मन काह र होगा कि भभी मी मही पूरी तरह से विश्वाचा नही हुआ, यकीनन ये विचार करते समय गो नामका मायलटही आपके दिमागको चला रहा होगा
भाप मोच रहे होंगे कि इसमें क्या घडी घातक र मास्थिर हतो रोमाचक लेकिन काल्पनिक में पर विक्षास करने में नुकसान ही क्या?
संक्षिप्त में कहा जाए तो मैं के होने से हमें कई मानसिक कष्ट भोगने पड़ते हैं, इससे पहले कि हम इस बात की गहराई में जाएँ, या इससे पहले कि हम ये जातें कि मैं का ये धन मैदा केस होता है, हम जरा ये देख लेते हैं कि
हमारा दिमाग काम कैसे करता है.
1960 के दशक में फछ मरीजों पर एक रोडबाल और एक्सपेरिमेंटल सर्जरी की गयो उनका कार्पस कैलोसम निकाल चिया गया यानी चौ हिस्सा जो मस्तिष्क के दोनों भागों को जोड़ता है. ये सर्जरी एखो मरीजों में निगों के डोर के इलाज के रूप की गयी थी लेकिन अपना अमली काम करो के साथ साथ इस मजरी नवनायिका को एक नया शाप का विषय दे दिया.
ये महला अवसर था कि हानिक ऐसे लोगों का परिक्षण कर सकते थे जिनका लफ्ट और राईट रेन एक दुसरे के संपर्क में नहीं था. ऐसे मरीजा पर किये गए परिक्षणों से हम मस्तिष्क के दोनों भागों का काम स्वतंत्र रूप
से देख सकते थे यही से हमें ये अनारी लगता है कि आरिवर ये मैं की धरम आया कहाँ से.
इस विषय की गहराई में जाने से पहले हम युध महत्त्वपूर्ण जानकारियों को देशा लेते हैं, जो इन विभाजित मस्तिष्य वाले मरीजों से हासिल हुई, सबसे जरूरी बात कि हमारे शरीर के दायें हिस्स को मस्तिष्क का बाया हिमा नियजित करता है जाकि बाये हिस्से को दायों मस्तिष्क नियत्रित करता है
फिर सवाल आया है कि आखिर सोप्ट न और क्या करवा असाल में होपट यन. एका इंटरप्रेटर की तरह काम करता है. ये वास्तविकता हो समझाने के प्रयास में कुछ न कुछ स्पष्टीकरण देशा रहता है. और देवनी की
बात ये है कि इसके ज्यादातर से वशीकरण गलत होते हैं.
और शायद यहाँ धान विभाजित मरिष्क वाले लोगों के गाय किये गए सबसे लोकप्रिय एकरपेरिमेंट यो साबित होती है शोधकाला नमतिमागियों को पायौं आमा (जो कि दार्च मस्तिपाद्वारा संचालित होता है के सामने अपाल स्थान का एक दृश्य रखा और दायाँ भारत (जो कि बायें मास्तष्क द्वारा सवालित होठा डै) के सामने मुर्गी के पैर का एक चित्र रखा
उसके बाद उन्होंने उनकी दोनों आंखों के सामने कुछ और चित्र को और उन्हें पहले वाले दिनों से मिलते जुलते चित्रों को चुनने को कहा
प्रतिभागियों ने दायें मस्तिष्क से संचालित गाये हाथ में ह्याफ हटाने वाले फाठड़े की चुना जो कि ्फ के चित्र से मिलता जुलता है, वहीं उन्होंने वाये मस्तिष्क से संचालित वाये हाथ से चूजे को चुना जो नुगी के पैर वाले मित्रसे मेल साता-या
जाडा प्रतिभागियों से पूछा गया कि आपने अपने खायें हाथ में अफ हटाने वाले फावडे को क् बुगा तो में मिला जवाब एकदम हैरा कर देने वाला था जैसा कि आप जानते हैं लेपर हमारी भाषा के संचाल का केद भी होता है जो हर सवाल का जवाब भी वहीं से आता है मायदे से लेफ्टनेन का ये जवाब आना चाहिए था कि मुझे क्या पता पिरेशन के बाद मेरा राईट बेन के माथ संपर्क नहीं है लेकिन, प्रतिभागियों के लेपर बनने
व्याख्या के रूप में अपनी मनगट कानी रव दी
प्रतिभागी बोले कि नकि मुर्गी के पैर का चित्र मुगों से मेल खाता है और मुर्गों के खाते को माफ करने के लिए फावड की जरूरत होती है इसलिए मैंने बायें हाथ से फावड़े को चुना. इससे ये साफ पता चलता है कि हमारा लेण्ट पेन किस तरह से राय का स्पष्टीकरण अपने ही अंदाज में देता है.
सच को समझाने के लिए लेफ्ट ब्रेन भाषा का उपयोग करता है.
लेपन में हमारी भाषा का केंद्र है केवल वो भाषा ही नहीं जो लोगों को सुनाई देती है बल्कि अपने मन में सोचते समय आने वालौ भषा भी लेप्ट बैन ही कटोल करता है, और सी चीजे आगे चल कर मारी मौन और वशसनेस का रूप ले लेती है
मच को समझने और समझाने के लिए हमारा दिमाग भाषा का प्रयोग करता है, किसी भी चीन या घटना को बताने के लिए हमें भाषा का इस्तेमाल करना पड़ता है जैसे कि जब आपसे कोई कुर्सी पर बैने को कहता है तो आपकी निगाहें तुरंत किसी चार पैरों वाली चीज को टूटने लगती है. जिसमें बैठने पोर टिंकने की बागाह हो
इस प्रकार भाषा हमारे रोज़ मरी के जीवन की चीजों और घटनाओं को समझने के लिए बहुत उपयोगी है, लेकिन खुट से ये पूछना भी बहुत जरूरी है कि हम भाषा का इस्तेमाल कर रहे है कि भाषा हमारा स्तेमाल कर रही
हे सबसे बड़ी दिवकत ये है कि हम मामा के इस्तेमाल के इतने बादि हो गए हैं कि कई बार हम किसी चीज के नाम को ही सबकुछ मान लेते हैं बस नाम का ही महप रह जाता है असल चीज़ की अहमियत गल जाते हैं
जैसे कुर्सी को ही ले लें. ये कुर्मी आस्विर होली क्या है? आपको किसी ने बताया कि ये एक इसान द्वारा बनायी गई चीज है जिसके चार पैर होते हैं और खीच में बैठने की जगह होती है हम सब कु्सी को ऐसा भी मानते है लेकिन क्या किसी ने ये सोचा कि आखिर असल में है वया, उसमे च्या पुचीयाँ है?
जाहिर सी बात है हर कुमाँ दूसरी कुसौ से अलग होती है. लेकिा,हमा उन्हें एक केटेगरी टे दी कि जो भी नौज बैठने के काम आएगी और उसके चार पैर हो, उसे हम कुमी कहगे. इसी कुसी २्ट नै साटयों से लोगों के दिमाग को छला है कुसों के लिए होने वाली लाया इस बात का सबूत है कि एक तार पैर की घैने योम् वस्तु कितनी कीमती है सच को समझने के लिए चीजों को केटेगरी में बाँटना बहुत फायदेमंद है लेकिन सिर्फ तब तक जाय तक कि इन ये बात ना समझ लॉ की यो केटेगरी फाल हमारे दिमाग में ई अमान में नहीं अब इसी सोच के साथ अपने अन्दर झांकिष्ट और खुद में पूणि कि में कौन है? देविय, आपका लेट देन केसे ठुरंत
जवाटा देता है यकीमा आपके मन में जिला भी जवान भायो तो किसी न किसी रूप से आपको किसी केटेगरी में साल रहे होगे जैसे हमारी पलाई, हमारा भोडदा, इन शादी शुदा है या नहीं
बिना इन केटेगरी के खुप को डिफाइन करना लगभग नामुमकिन है, जिस तरह पुरी भी अमल में बस एक केटेगरी हे वैसे ही ये भ्रमित करने वाला मैं और तुम भी यस गैपट होन द्वारा सानाई गया अलग-अलग केटेगरी डी
लेफ्ट इन के पेटन के समझाने की स्टाइल के कारण ही में का भ्रम पैदा होता है और यही में सारी मानसिक पीडाओं की गई है मामा के उपयोग और यीजों को केटेगरी के मुताबिक अलग करने की प्रक्रिया में एक चीज एक सामान है कि दोनों दन के पेंट को समझने की काबिलियत पर निर्भर करते हैं
अगर आप नागर और काग्यों को जोड़ने के पैटर्न वाले नहीं समझ पाए तो बाप भाषा का सही इरोमाल नहीं कर पाएगे. इसी तरह बार आर अक्षरों को साथ में जोड़कर बनने वाले शब्दों के पैटर्न को नहीं जानेंगे तो अापक
लिए यकीनन काला अक्षर भैस बराबर रहेगा. चाक भाषा और बालों को अलग-अलग करने का केंद्र लेपट गेन में मौजूद है तो मन को समझा का कद्र भी वहा होगा अगर हम ध्यान से देखें तो लेपट प्रेन पट का
पचानने के साथ साथ पेट बनाने का भी कद्र हमारा दिमाग हर चीज में कोई न कोई पैटर्न देखता है वो भी जहाँ असल में कोई पैट् हो भी ना,
इस बात को और अच्छे से समझाने के लिए 920 में डॉक्टर रमन रोम्ब (Dr. Hemann Rorscharn) नं प्रसिद्ध इंक लाट टेस्ट की खोज की इस टेस्ट में पेशंट को इक के यां से भरा एक कागज दिखाया जाता है और उनमें किसी चीज का चित्रण कसै को कहा जाता है, पेशेर अपने अतमन में एपी भाठनाभो के अनुसार उन हक के धब्यों में चौजें देता है किसी को तितली दिली तो किसी को फूल, किसी ने कुछ भयानक देखा किसी ने कुछ मजेदार
आप सोच रहे होंगे इक छलॉट पर रैडम पैटर्न देखने में क्या परेशानी है तो दरअसल, परेशानी तब शुरू होती है जब धरती पर मौजूद सबसे ताकतवर पटा लगाने की मशीन हमारे भतर्म में ही पैट छाने ला जञाट, कभी
लाल, मी नफरत की जुन्छ यादे ना किसी के बारे में बुरा मला जोगना कमी प्यार का दुस्मनी ये सारे पैटन मिल र त बनता है हमारे मस्तिथा द्वारा बनाये ये पैस वीओ को समझाने के लिए यकीनन
मददगार तो होते हैं, लोन कहई आर ये मानसिक पीडाका कारण भी बनते हैं
लेखक ने अपनी एक दोस्त का उदाहरण देते हुए इस बात को समझाया है. उनकी टोस्त को लगता याप्रवे साथ कामकसे वाले उन्हें पसद नदी करते एक दिन तो जब वो माफिस गया तो उसने देखा सब एक साथ मिल कर कुछ कानाफूसी कर रहे थे, कह लोग तो उसी तरह इशारा भी कर रहे थे. ये देख उनके दिमाग नै कुरव इस मैटल को भाषा में बदला और उसे लगा सब लोग इसवै चिलामा फाई पइयंत्र रच रहे है झा एहसास ने उसे दुःय और परेशानी की भावना से भर दिया
सायकि असल में वो लोग उसका लिया सरमाडा बद्रि पार्टी की योजना बनारहे थे, लीक इसी तरह हमारा दिमाग सब को समझाने के लिए कोई ना कोई पैटर्न बनाता रहवा दसमें कुछ पुरा नहीं है, लेचिना हर्षे अगर मानसिक पीड़ा से बचना है तो ये समझना बहुत जरूरी है कि ये सभी पटलं बस हमारे दिमाग में है असल में नहीं.
हम सब अपनी राईट ब्रेन कॉनशिअसनेस को जगा सकते हैं, जैसा कि डॉक्टर जिल बोल्ट टेलर नें किया.
अब तक तो आप समझ गए होंगे कि लेफ्ट बैन क्या करता है. मे भाषा का केट है ये वास्तविकता को समझाता है और हमेशा किसी न किसी पलं की तलाश मै रहता है में सभी कार्य कुल मिला कर हमें निरंतर और स्विर में के भ्रम में फंसा कर रखते हैं लेफ्ट पेन से सोचत हुए कैसा महसूम होता ई माप बछे से जानता हूँ माप इन गायों को पड़ते हुए भी इस महसूस कर रहे हैं पर अगर हम लोपट सेन की जगह राईट ट्रेन के साथ दुनिया का सामना करें तो कमा महसूस होगा’ आईये न्यूरोनाटोमिस्ट डो जिल बोल्ट टेलर के साथ हुई एक घटना में इस बात को समझते हैं
1996 में डॉक्टर शिल को स्ट्रोक हुआ. उनके लेपट होन में एका घुन की नाली फट गयी, जिसके कारण उनका लेपट येन काम नहीं कर रहा या स्ट्रोक के दौरान को बोल नहीं पा रही चो यहां तक कि उनके अंतर्मन की भावान और वर्तमान और भविष्य को सभी चिताए, सबका मानो एकदम सात हो गया था. अब वो खुद को गाड़ियों से अलग एक व्यक्ति नाही महतूम करता था, बाल्क उन्हें लगता था कि वो इस ब्रह्माण्ड की जा का एक कण है, उनकी सभी सीमार खत्म हो गयी है में लगने लगा बन जो है दो यहाँ एक पल है उनके अतर्मन में भी सबकुछ शात सा था.
अगर हम सरल भाषा में बात करें तो उन्होंने वो स्थिति मा ली थी, जो लोग सरसों तक ध्यान और साधना के बाद हासिल कर पाते हैं. अपने स्टोक से पहले वो खद को एक ममझदार हुधिजीी मानती थी जैस की अधिकाश लोग अपने लेफ्ट ग्रेन की बाते सुकर मानते हैं लेकिन राईट ब्रैन के इस्तेमाल ने की सोच को आजाद कर दिया और उनका खुद को देखो का तरीका ही बदल गया, समय के साथ म्हें ये शहनास हुभा कि वो परिस्थिति के हिसाब से पुन सकती है कि नब उन्हें राईट बेन की पता सुख प्रदान करने वाला सोध का इस्तेमाल करना चाहिए और कब लेपट ओन की सुद बने दूसरों से अलग करने वाली शोध का अब सवाल ये उठता है कि हम ऐसा करेंगे कसे कैसे हम कुछ समय के लिए लैपट ब्ै को शात कर इस मैं के जनाल में हिकल का आज में जौना सौख मकते हैं? इसका जवाब यह है कि अगर आप वतमान में जोगा सीख ले तो आप अपने राईट बेन का इस्तेमाल करना भी सीख लेंगे. राईटन का-सिसस के बारे में बात करना थोड़ा मुश्किल है क्यूकि बात करने के लिए माया का योग करेंगे और जहाँ मापा आ जाती है वही में लेपर ग्रेन का काम शुरू हो जाता है. इसलिए, पचिनी संस्कृति को मानने वालों के लिए जमा हैन के मायाजाल से निकलने का कोई रास्ता ही नी है
मसान में, जब भी हम अपनी भावनाओं को शब्दों के रूप में बात करने लगते हैं तो हमारा लेपट ओन सक्रिय हो जाता है। इसलिए, राइट-बेन कॉनशिवसनेस को समझने का एकमात्र रास्ता है, उसे महसूस करना तो आइए इसे महसूस करने के कुछ तरीकों पर ध्यान देते हैं.
अगर हम सरल भाषा में साहो तो जिस प्रकार लेपर दोन भाषा का मेंटरी उसी प्रकार राईटजेन स्पेसियल सेंटरयानी चीजों की बनावट और उसके स्थानको समझाने का केंद्रो जैसे जब भी हम किसी चीज को अपने हाथों से उलाते हैं तो हाथ को उस चीज़ तक पहुंचा कर गलियों को मोड़ कर उसे उठाने तक कि सारी गतिविधिया राईट ड्रग में संचालित होती है. ये मानसिक गतिविधियों हमारे सचेत मस्तिष्क के लिए ऐमाँ होती है, जैसे, उसे मालुम ही ना हो कि कैसे और कब चीजों को उठाना, खाना खाना नासो का आना जाना आदि. ऐसी ही सभी गतिविधियाँ, जिनका वर्णन शब्दों में नहीं किया जा सकता उन्हें हमारा दिमाग अनकानशिअसनेस यानी अयेतना का नाम दे देता है
ऐसे अचेतन (मनकानशिलता काम जैसे किसी चीज को उठा कर धर उ्र रचना इन्हें करने में भी दिमाग की बहुत जटिल रूप से काम करना पड़ता है लेकिन फिर भी इन्हें हम सोच के रूप में नहीं देखते मानों इनका दिमागजो कुछ लेना देना ही ना हो. इसका कारण बस यही है कि ये कार्य माषा पर गाधारित नहीं होते. राईट ग्रेन हन्दी बिना माषा के वनों को करने के लिए है डालिए योगा और मैडिटेशन वर्षों से राईट स्पेन कांनशिअसनेस को जगाने का साधन माने जाते हैं अब आप योगा करते हैं जो ज्यादा सोच विचार की जरूरत नहीं होती कुछ जरूरी होता है तो वो हे शरीर को सांसों की लय के साथ पलाता योग का सम्पूर्ण आनंद लेने के लिए देर आपको केयले वर्तमान में जाना होगा और अपने अचर के लफ्ट खेन मी इंटरप्रेटर के ऊपर से अमना ध्यान हटाना होगा. यकीन मानिये, ये करते हुए आपको अपार भानंद प्राप्त होगा
डिटेशन के साथ कुछ ऐसा ही है अगर आपने कभी मेडिटेशन किया है तो आप जानते है कि इसे सिखाने वाले अपनी सांसो की लय पर ध्यान केन्द्रित करने के लिए कंडते हैं ऐसा इसलिए कि आमतौर पर सांस एक स्वाभाविक किया है जो अपने आप बलवी है इसपर ध्यान केन्द्रिय पारने का मतलब है कि हम अपने विभाग को एक अनकानाशिअस क्रिया की तरफ ले जा रहे हैं. जहाँ जो शखों और पेटर्न के जंजाल से दूर कुल नया महसूस करेगा.
योमा और मैडिटेशन करने वाले ये की नहीं मानते कि गो जो कर रहे हैं जो प्रयतन मन का कार्य है बल्कि वो कहते हैं कि या पूरी वरद सबैत थे. उनकै अनुसार अनुभव को शब्दों में बयां कर पाना बहुत मुश्किल है
तो कुछ इस तरह काम करता जमारा सईट न. बिना सोचें बिना किसी चीज का कुछ अ्थ निकाले बस जो जैसा है उसे वैसा ही देखते हुए कार्य करता है, इसलिए इसके बारे में बात कर पाना मुश्किल है, तो चलिए, इसके बारे में थोड़ी और पर्यावर तोडेर इन्टूइशन या अंतर्जान राईट ब्रेन का एक और ज़रूरी काम है.
राईट न केवल दिमाग का स्पेसियल सेंटर की नहीं है में और भी बहुत कमाल के चौज़ों को अंजाम देता है, ने अटमन के गम जान का केंद्र भी है जिसे हम माया के जरिये नहीं समझ सकते, जैसे आप इन्दशन को हो ले ले जो कई बार हमें अनबाह खतरों के बारे में आगाह कर देठी है लेकिन, लेप्ट झेन से काम लेने वाले व्यक्ति अक्सर इसको पागलपन के रूप में देखते ह जैसे कई बार आपने लोगों को कहे द्ाए सुना होगा कि आज जाने क्यूँ मुझे लगा कि मेरा दोस्त ठीक नहीं है और जब मैंने उसे काल किया तो सच में तो मार ा, या गिर जाने क्यू धूप में भी में छाता लेकर निकला और सच में गारिश आ गया. लेकिा लेपट गाण की बात सुना वाले लोग तुरंत बोली कि ये बस एक सयोग की बात है
यहाँ तक कि अभी तक न्यूरोमाईस ने भी इतना के आारे में ज्यादा नहीं जाना है, लकिन इसका ये मतलब बिलकुल नहीं कि ये असल में नहीं होता. त्यात बम इतनी मों है कि लेट बत के लिए ऐसी बातें समझाना मुश्किल है जिसमें भाषा का इस्तेमाल नहीं होता गौर करने वाली बात तो ये है कि इतना सोच समझ कर निर्णय लेने वाले लेपटं द्रेन से ज्यादा राईट बैन के लिए एक निर्णय सही होते हैं. एक अध्ययन के दौरान लोगों को ताश का खेल खेलने को कहा गया, उन्हें 52000 दिए गए और ताश की दो गहियों में से एक मा टाच लगाने को कहा गया एक गाड़ी में दाव खेलने पर नुक्सान और फायेदा दोनों ज्यादा होता और दूसरी पर लगाने पर फायेता और नुक्सान दोनों कम होते. उन्हें कहा गया कि उनका मकसद अंत में ज्यादा से ज्यादा पैसे कमाना है
असल में, टिंक ये थी किजो का नुक्सान और कमा फागदे वाली मझी पर दाव लगाता दूसरी ओर राईट ग्रेन में इस बात को कहाँ पहले भाग लिया था. ज्यादा पैसे कमा मता पर ये बात उनके लेप नको कारी कग 50 से 80 बार गलत दाव लगाने के बाद समर आई, जबकि लोधी ने इस बात का पता लगाने के लिए प्रतिभागियों की धराट को नापने के लिए उनकायों के पसीने की प्रवियों पर नजर रखी महज दाव के बाद ही पहली गयी पर नाब लगाते समय प्रतिभागियों के हाय ज्यादा में पसीना आने लगा. ये गाना इस बात का मयूल था कि उनके अचेतन मन को उनके वेतन मन से पहले ही इस तरे का आभास हो गया था और भी देशान कर देने वाली बात ये है कि कुछ प्रतिभागियों को ये पता ही नहीं था कि गाड़ियों में फेरबदल हुआ है, फिर भी जोगिम भरी पहानी गढ़ी से कार्ड लेते समय उनकी येलियों में भी ज्यादा पसीना आने लगा ये अध्ययन इस बात को दर्शाता दे कि इन्सान कैसे काम करती है राईट खेल उन खतरों को भी भाप लेता है जिम लेपार सेन नहीं समझ पाया और फिर वो ये संदेश मष्ट ग्रेन को मेगळा है. इसी संदेश को लेपर बेन इन्टइशा’ या गटामगलिंग का नाम देता है. इस बात को शब्दों में ग्रया करो में असमर्थ राईट ब्रेन ये नहीं बता पाता कि उसे ये जानकारी कहाँ से मिली.
जोन युद्धिम में प्रजनापरामिता नाम की एक शिक्षण प्रणाली है जो एक ऐसे ज्ञान पर जोर देती है जो भाषा पर निर नहीं करवा इस शिक्षण प्रणाली को विजडम ऑफ नॉलेज यानी ज्ञान की पराकाया भी कहते हैं. ये ज्ञान का एक ऐसा रूप है जिसे केवल राईट ब्रेन ही समझ सकता है.
अब जब हम ये बात समझ चुके हैं कि राईट गरेन सबको एक ही नजर से देखता, इसके लिए ना कोई भेदभाव न बोर्ड भाषा को दीवार और तो और राहट केन पीों की खड़ी तस्वीर देशाता गिरके कारण वो इन बातों को भी समझ जालाइ जिम लगाट अंत नहीं समझ पता तो आईये अब देशाते हैं कि हम अपने राईट बेन कानशिअसनेस को कैरो जगा सकते है? शुरुचात म दया की भावना को जीवन में उतारने जी कर सकते है
टयानुना बौद्ध धर्म से जुड़ी सभी शिक्षाओं का केंद्रीय बिंदु है दया का मतलब है दूसरों को अपने आप में अलग नहीं समझना, जब आप दूसरों ने भी अपनी झलक देखो तब आप व्या और करुणा का अनुभव करेंगे और आप बिनवान नाही सोच रहे हैं कि राईट अन में ही वरुणा का केंन्द्र गौ है राईट लेन में स्तिथ राईट टेम्पोरोपराइटल जंक्शन (right temporcparietal unction (२} का का दूसरों के नरिए को समझाना हैं. इसका मतलब आपको जहा भी दूसरों के नजरिए से दुनिया को देखते हुए दया का अनुभव होता है तो समझ जाईये आपका राहट छैन काम पर लगा बौद्ध धर्म द्वारा बताई गयी एक और शिक्षा है जो कि हमारे राईटन से जुडी है और वो है ग्रेटीयूड यानी आभार. 2008 में सेेल कक नाग के जर्नल में प्रकाशित एक अध्ययन ने साधित किया कि जब हम आमार के भाव को महसूस करते हैं तो उस समय राईट होन ज्यादा एक्टिव होता है 2014 में सोशल कॉनिटिव एंड अपेबटेय न्यूरोसाइस में प्रकाशित एक अन्य अध्ययन में पता चला ई कि जो लोग नियमित रूप से अपने जीवन में आभार को महसूस करते है जाके राईट छा में दूसरों की तुलना में ज्यादा ग्रेनेटर होता है
इसलिए अपने जीवन में आभार का भाव लाय. दिन भर शिकायत करते रहने से कोई फायदा नहीं डालाट में कुछ अच्छा हुडने की कोशिश करें और ट्रैफिक म को ही ले लें हम अक्सर इसकी शिकायत करते रहते हैं
लेकिन हमें इसका शुक्रगुजार होना चाहिए कि इसके कारण इसे खुट के साथ धोटा समय मिल जाता है या फिर किसी दिन बारिश और तूफान में पान कर हम आी किस्मत को कौसले हैं, जकि हम इसी बारिश का लुक भी उठा सकते हैं महम योडासा नजरिया बदलकर साभार को अपने रोज-मरों के जीवन का हिस्सा बना सकते है
भाप ये याद रखें की ये म का भात केवान आपके दिमाग के आधे भाग का रवाया हुभा मायाजाल है, तो उसे सच मानकर खुद को मागसिक पीड़ा में ना डाले दूसरों के प्रति दयालु और आभारी रहकर अपने राईट हेन को ज्यादा से ज्यादा काम पर लगायें, इन बातों को जीवन में उतार कर आप एक तनायमूक्त और मुनाहान जीवन जी सकते हैं