ये किताब किसके लिए है
-जो लोग अपनी लाइफ के पर्पस की तलाश में है
-जो लोग सफलता की बुलंदियों पर पहुंच कर भी संतुष्ट नहीं महसूस करते
जो लोग गर्ने गन्दर छुपी प्रतिभा की तलाश में हैं.
लेखक के बारे में
पैसे से हंजिनियर, गौर गोपाल दास, हेवलेट पैकाई (Hewlett Packard) नामक कंपनी में काम करते थे. 1996 में यो नौकरों छोड़कर इंटरनेशनल सोसाइटी फॉर कृष्णा कौनशीसनेस (international Society for krishna ConscicuSTESE) यानी SCKON मे जुड़ गट. आज वो एक मोटिवेशनल स्पीकर हैं और लोगों को जीवन जीने का सही तरीका समझाते हैं. गोर गोपाल दास संत के तौर पर गुबई स्तिथ आश्चा में रहते हैं. बतौर लेखक ये उनकी पहली किताब है,
जीवन में आभार को महसूस करना हमेशा आसान तो नहीं है, पर एक खुशहाल निजी जीवन के लिए ये सबसे जरुरी है.
आपने कभी टायरों में कम हवा के साथ गाड़ी चलया है? ऐसे में गाड़ी चल तो सकती है, लेकिन अगर आपने जल्दी इसका कोई उपाय नहीं किया तो आपकी गाड़ी के एक-दो टायर पक्चर हो जायेंगे जिसके बाद गाडी को चलाना नामुमकिन हो जाएगा. कुछ ऐसा ही हमारे जीवन के साथ भी है. लेखक जीवन को एक मोटर गाडी की तरह देखते हैं हैं, जिसके चार जरुरी स्तम्भ हैं जैसे गाड़ी के चार पहिये. ये स्तमा हैं आपका निजी जीवन, आपका कार्यस्थल का जीवन, आपके रिश्ते और आपका सामाजिक योगदान. आध्याता हंस गाड़ी की स्टीयरिंग व्हील की तरह है, जिसके बिना हम गाड़ी को सही दिशा में चलाने का सोच ही नहीं सकते. इस किताब में हम जीवन की गाड़ी के इन्हीं जरुरी पहलुयों पर चर्चा करेंगे और जीवन के इंजन के रहस्यों को उजागर करेंगे.
लेखक अपने एक दोस्त की कहानी के साथ इस अध्याय की शुरुवात करते है, उनके दोस्त की साढ़े चार साल की बेटी गधर्विका को इतनी छोटी उम्र में बरकिटस लिफोमा (Burkitr’s Lymphoma) नाम का जानलेवा कैंसर हो गया था ये घटना किसी भी परिवार को तोड़ कर बिखेर सकती है. लेकिन मायूस होने का इतना बड़ा कारण होने बावजूद उसके मां-बाप ने कभी जीवन में आशा का साथ नहीं छोड़ा. उनके रिश्तेदारों और दोस्तों ने भी उनका भरपूर साथ दिया फिर यो वाहे गंधर्विका के ठीक होने के लिए प्रार्थना हो या उसके इलाज के लिए पैसा जिससे जो बन पड़ा, उसने वो किया.
उसके माता-पिता भी चाहते तो अपनी किस्मत पर रोते हुए जीवन बिता सकते थे, पर उन्होंने इश्वर से कोई शिकायत नहीं की बल्कि वह इतने मददगार दोस्त और रिश्तेदार देने के लिए शुक्रगुजार थे.
आभार का भाव रखना एक स्वस्थ और खुशहाल जीवन के लिए बहुत जरूरी है. पर समस्या ये है कि ईसानी दिमाग दुःख और गुस्सा भरी घटनाओं को भूल ही नहीं पता, इसलिए शुक्रगुजारी को जीवन में लाना मुश्किल हो जाता है. लेकिन कभी भी अगर आपको अपने जीवन में शुक्रगुजारी की कमी महसूस हो तो गंधविका के माता-पिता को याद कर जरूर ली जिएगा जिनकी बदकिस्मती भी उनके जीवन से शुक्रगुजारी को मिटा सकी,
लेखक मानते हैं कि जीवन में शुक्रगुजारी लाना इतना आसान नहीं है, लेकिन अगर हम थोड़ा प्रयास करें तो ये मुमकिन है. आप अपने जीवन से रोज बस 10 मिनट निकालिए और किसी द्वायरी में आज के दिन की उन बातों को नोट कीजिये जिनके लिए आप शुक्रगुजार हैं. वो कोई भी छोटी सी बात हो सकती है जैसे किसी अजनबी द्वारा दी गयी मुस्कान या किसी पुराने दोस्त का अचानक मिल जाना. ऐसा करने से आप अपने जीवन के उन पलों को पहचान पाएंगे जिनके लिए आपको शुक्रगुजार रहना चाहिए साथ ही साथ आपको उन बातों को याद रखने में भी आसानी होगी. एक बार आपने शुक्रगुजारी से भरे उन पलों को पहचान लिया उसके बाद आप दूसरों से शुक्रगुजारी व्यक्त करना सीखें. इसे करने का सबसे आसान तरीका है कि आप पिछले 24 घंटों में जिस-जिस व्यक्ति या पलों के शुक्रगुजार रहे हैं उनके बारे में सोचें, उसके बाद उन लोगों को अपनी भावना जाहिर करने के उपाय सोचें, जैसे कि अपनी बीवी को स्वादिष्ट खाना बनाने के लिए शुक्रिया कहना. ये हर हफ्ते करें और आप देखेंगे कि आभार के माव को अपने जीवन में लाने से आपका जीवन स्वस्थ, संतुष्ट और खुशहाल बन गया है.
अपने निजी जीवन को संतुलित बनाने के लिए चिंताओं का त्याग करें और आध्यात्म को जीवन का हिस्सा बनाएं.
क्या आप व्हाट्स ऐप के जउडर ब्रायन ऐचन (Brian Actor) की कहानी जानते हैं? 2 साल तक पहले एप्पल फिर याहु के लिए जी तोड़ मेहनत करने के बाद ब्रायन ने अपने दोस्त जोन कोग (lari Kaum) के साथ कहीं घुमने का फैसला किया, उन्होंने एक साल साउथ अफ्रीका में बिताया. जब वो वापस आये तो उन्हें कहीं नौकरी नहीं मिली फेसबुक और ट्विटर दोनों ने उनका गल्लीकेशन रिजक्ट कर दिया, पर इस टिजक्शन को उन्होंने निराशा में कभी नहीं बदलने टिया. अस दौरान ट्विटर पर किये गए उनके जोशीले पोस्ट उनकी जिंदादिली का सबूत है.
के इसी जोश और लगन का नतीजा हाट्स ऐप के रूप में उन्हें मिला जिस फैसबुक नैं कभी उन्हें नौकरी पर नहीं सवा था उसी को 19 ब्िलियन डॉलर में उन्होंने व्हाट्स एप बैचा. इस कहानी से हमें ये सीख मिलती है कि जो चीजें हमारे बस में नहीं है उसकी चिंता हमें छोड़ देती चाहिए, और जो हम कर सकते हैं उसपर ध्यान देना चाहिए. जैसे फेसबुक और हिटर में नौकरी मिल्मा ऐक्टन के हाथ में नहीं था लेकिन स रिजिक्शन के प्रति अपना शिवशन के हाथ में था.
जीवन की समस्याओं से निपटने के लिए लेखक ने एक पत्तो चार्ट तैयार किया है. जिसमें कुछ सवाल है जिनके जवाब मापकी समस्याओं का समाधान कर सकठे हैं.
सबसे पहला सवाल है कि बचा मेरे जीवन में कोई समस्या है? अगर इसका उत्तर ना है तो क्यूँ चिंता करना अगर इसका उत्तर हाँ है तो अगला सवाल है कि क्या मैं इसके लिए कुछ कर सकता है अगर हाँ तो चिंता क्यूँ करना अगर ना तो भी चिता क्यूँ करना.
आपने देखा कि को जीवन के हर सवाल का जवाब एक ही है कि चिंता क्यू करें. यही बात अलगाव यानि detachment के सिद्धांत का मूल है, जो आपके जीवन को प्रबोधन यानि erilightenmient की ओर ले जा सकती है
अगर आप अपनी समस्याओं के बारे में कुछ कर सकते हैं तो इसका मतलब है असल में आपको कोई समस्या है ही नहीं, और अगर आप उन समस्याओं का कुछ कर ही नहीं सकते तब भी चिंता करने में समय बर्बाद करने का कोई तुक नहीं बनता इसका ये मतलब बिलकुल नहीं है कि आपको अपनी समस्या को सुलझाने के लिए कोई प्रयास नहीं कसा.इसका बस ये महलब है कि चिंता किये झिा जो आपसे हो सके वो कला है
अपने निजी जीवन को सुधासे का एक और उपाय है भा यात्म को जीवन का हिस्सा माना ईसान की आत्मआा का हमेशा आयात्म की ओर झुकाय रहता है आध्यात्म आत्मा की जरुरत है. यहाँ लेखक ये साफ़ करते हैं कि आध्यात्म का मतलब कोई त्यास देवी-देवता नहीं बल्कि उस महाशक्ति से है जिसका प्रतिक हम अपने ईश्वर को मानते हैं अपने और अपने इश्वर के बीच इस सम्बन्ध को महसूस करके हम अपने जीवन को प्यार से भर सकते हैं और दूसरों के जीवन में भी प्यार ला सकते हैं
अपने जीवन में आध्याता को शामिल करने का सबसे सरल उपाय है मेडिटेशन गोपाल दास जी मंत्र मैडिटेशन की सलाह देते हैं जिसमें मेडिटेशन के दौरान जीवनदायनी मत्रों को दोहराया जाता है और ऐसा करते हैं हुए हम ज़िन्दगी के मायनों को भी सामडा सकते हैं,
जिन्दगी की गाड़ी का अगला पहिया है हमारे रिश्ते, जो जीवन में प्यार और साथ का एहसास करवाते हैं. लेखक का मानना है कि रिश्तों को मधुर बनाने से पहले अपने व्यव्हार को समझना जरूरी है.
इस बात को समझाने के लिए लेखक नें एक कहानी का सहारा लिया है एक बार एक पति पत्नी एक कॉलोनी में रहते थे पत्नी अक्सर अपनी खिड़की से लोगों के घरों में टो कपड़ों को देख उनपर ताने कसा करती थी, कि वे कपड़ों को सही ढंग से नहीं धोते. एक दिन अचानक उसने देखा कि उसके पड़ोसियों के घर टगेकपड़े साफ़ सुधरे लग रहे है, उसने फो अपने पति से कहा कि लगता है आज टा लोगों में किसी और से कपडे धुलवाये है तब हँसते हुए उसके पति नैं बताया कि आज सो खिड़को साफ़ की है. अके कपड़े नहीं हमारी खिड़की गन्दी थी.
इसी तरह दूसरों के बारे में राय बनाने से पहले हमें ये देख लेना चाहिए कि हम उन्हें किस खिड़की से देख रहे हैं.
लेखक कहते हैं कि दुनिया में पांच प्रकार के लोग होते हैं और पाँचों का दूसरों को देखने का अपना-अपना नज़रिया होता है.
पहले वो लोग जो दुसरों में केवल बुराईयाँ ही देखते हैं ये लोग नफरत और असुरक्षा यानि insecurity से मर होते हैं. लोगों की छोटी से छोटी चुराई भी इन्हें बड़ी लगती है और उनका बड़े से बड़ा गुण भी इन्हें नजर नहीं आता. ये लोग कुछ इस प्रकार होते हैं कि अगर की खिड़की साफ भी कर दें तो भी उन्हें कपडे गंदे हीं लगेंगे
दुसरे किस्म के लोगों को अच्छाई और बुराई दोनों नज़र तो आती है पर उनका मन बुराई की तरफ थोडा ज्यादा ध्यान देता है उनके बारों तरफ कितनी भी अच्छी चीज़े क्ून हो रही हों वो बुराई की तरफ ज्यादा आकर्षित महसूस करते हैं.
तीसरी तरह के लोग भी लगभग दुसरे किस्म के लोगों जैसे ही होते हैं बस फर्क ये है कि इन्हें बुराई हो वा अच्छाई दोनों ही से कुछ खास फर्क नहीं पड़ता चौथे फिस्म के लोगों को अच्छाई और बुराई दोनों का ज्ञान तो होता है पर वो अपना ध्यान केवल अचाई के तरफ केन्द्रित रस्पते हैं. ये लोग मानते हैं कि इंसानों का मूल स्वाभावहीं है बुराईयों को पकड़ के के रहने का. इन लोगों को ऐसा करने के लिए काफी मेहनत भी करनी पड़ती है, लेकिन ये मेहनत उन्हें सही निर्णय लेने और रिश्तों को संजो कर रखने में काफी हद तक मदद करती है
जैसे आप हिंडाल्को (Hindalco) इंडस्ट्रीज और आदित्य बिरला ग्रुप के सीईओ को ही ले लीजिये अपने किसी भी गालोयों के बारे में कोई भी निर्णय लेने से पहले वो उसकी अचईों की लिस्ट बनाते हैं जिसके कारण कनी को फायदा होता आया है. ऐसा करने से वो अपने गुस्स पर काबू पा लेता है और सही फैसले ले पाते हैं.
और पांचवें किस्म के लोग तो बहुत कम हीं पाए जाते हैं, इन लोगों को किसी में बुराई बिलकुल नजर ही नहीं आती. किसी व्यक्ति में अच्छाई की झलक मात्र को वो अपने हृदय में कई गुना बहा लेते हैं लेकिन हम में से ज्यादातर के लिए ऐसा कर पाना संभव नहीं है. केवल कुछ महाज्ञानी भोर साधक व्यक्ति हीं ऐसा कर पाते हैं.
हम साधारण लोगों को कम से कम चौथे किस्म का व्यक्ति वनाने का प्रयास करना चाहिए अगर इम ऐसा कर पाते हैं तो हम यकीनन अपने रिश्तों में मधुरता और प्रेम ला सकते हैं.
किसी को भी फीडबैक देने से पहले सोच समझ लें, और लोगों को माफ़ करना सीखें.
इस अध्याय में लेखक ने हमें बताया है कि हम चौथे प्रकार के व्यक्ति केसे बन सकते हैं? एक ऐसा व्यक्ति जो दूसारों की अच्छाईओं और बुराईयों दोनों को जानते हुए भी अच्छाई पर ही ध्यान केन्द्रित करें और दूसरों को हमेशया और सम्मान से देखें
इसके लिए सबसे पहले ये जानना जरूरी है कि किसी को कोई बात कहते हुए हमें किन शब्दों का इस्तेमाल करना चाहिए खासतौर पर जब हम किसी को उसके काम का फीडबैक दे रहे हों,
अंग्रेजी की एक पुरानी कहावत है कि Sucks and stones can break my bones but words will never hurt me?” जिसका मतलब है कि पत्थरों और डों से तुम मेरी हड्डियाँ तोड़ सकते हो, पर अपने शब्दों से मेरे हौसले को नहीं लेकिन लेखक का मानना है कि ये बात सच नहीं है क्यूकि शब्द एक ऐसा हथियार हैं जिसके प्रयोग से हम लोगों को ऐसे जन्म दे जाते हैं जो उनकी आत्मा को चोट पहुंचाते हैं. माघार्यों को भरने में बहुत समय लगता है तो भार आप किसी से कोई जरूरी और संवेदनशील बात कही जा रहे हैं तो एक बार खुद से ये चार स्थाल जरूर पूछ लें. पहला सवाल है कि क्या आप जो कहने जा रहे हैं, उसे कहने के लिए आप सही व्यक्ति हैं या नहीं इसका मतलब है क्या आपस इंसान को अच्चो से जानते हैं, क्या माप उसके जीवन में इतना मायने रखते हैं या वो आपके जीवन में इतना मायने रखता है?
अगर इन सवालों का जवाब हाँ में मिले तो आप खसटे सवाल की ओर जा सकते हैं, दूसरा सवाल है कि क्या मेरे पास ये बाते कहने का साही मकसट है? लेखखक कहते हैं कि अक्सर लोग दूसरों की आलोचना इसलिए नहीं करते कि वो उनका दिल से भला चाहते हैं बल्कि इरलिए करते हैं क्यूकि उनके मन में अा व्यक्ति के प्रति दु्ावना या नाराज़गो होती है.
किसी से बदला लेने के लिए उसकी आलोचना कभी ना करें, अगर आप इस बात के लिए आश्वस्त हैं कि आपका इरादा नेक है तो आप अगले सवाल की ओर जा सकते हैं.
अगला सवाल है कि क्या मुझे पता है कि फीडबैक देते हुए कैसे शब्दों का इस्तेमाल करना है? कई बार असल मुद्दे से ज्यादा आपके द्वारा इस्तेमाल किये हुए शब्द लोगों को चौट पहुचती है, किसी पर देवजह चौरमै चिल्लाने ना लगे, बात करते समय अपना लहजा, अपने चेहरे का भाव और आपो शब्दों का इस्तेमाल ऐसा रखें कि उसमें दया और विनम्रता की झअलक हो,
और आस्थरी सवाल है कि वया ये समय हस फीडबैक के लिए सही है जैसे कि आपकी बीवों ने अभी अभी इतनी मेहनत से आपके लिए खाना बनाया है और आप तुरंत ये कह दे कि खाना अच् नहीं बना तो ये ठीक नहीं, इसकी अनाये वक्त देखकर भाप आराम से उसे बताएं ताकि आप उसकी भावनाओं को चोट पहुंचाए बिना अपनी बात रख सके.
रिश्तों में दूसरी बड़ी चीज है माफ कर देना आप व्यक्तिको समस्या से अलग कर के देखें तो आपको माफ करने में आसानी होगी. ये सब मेरे कारण हुआ सोच कर खुद को कोसने या ये सब उसके कारण हुआ सोच कर दुसरे पर नाराज़ होने कि बजाये ये सोचें कि ये सब कैसी हुआ.
अगर आप व्यक्ति को समस्या से अलग करने में सफल हो गए तो आप एक-दुसर पर आरोप-प्रत्यारोप लगाने से बच जायेंगे और आपके लिए समस्या का समाधान निकालना आसान होगा. ऐसा करने से आपके लिए माफ़ करना भी आसान हो जायेगा.
आगे लेखक कहते हैं कि वर्कप्लेस पर कम्पटीशन का होना लाजमी है, लेकिन आपको हमेशा एक हेअलवी कम्पटीशन का हिस्सा बनना चाहिए, अब जबकि आपने निजी जीवन और रिश्तों को सुधार लिया तो जीवन की गाड़ी के अगले पहिये कि और चलते हैं जो है आपका कामः चर्कप्लेस पर कम्पटीशन का होना स्वाभाविक है और इसमें कुछ गलत भी नहीं, लेकिन भगर भाप तनाव मुक्त वातावरण चाहते है तो आपको हेअली और अनहेअली कम्पटीशन में फर्क करना भाना चाहिए,
एक अनहेमलथी कम्पटीशन को हम इस उदाहरण से समझते हैं
लेखक का जेमिन नाम का दोस्त था. वो एक बहुत ही होनहार और बेहतरीन फोटोग्राफर था और एक लोकप्रिय मैगजीन के लिए काम करता था. उसका HR डायरेक्टर उसके काम से काफी खुश था और उसे उसपर पूरा विश्वास था. इसलिए उसने जमिन को अपने हिसाब से काम करने की आजादी दे रखी थी,
लेकिन जैमिन के साथ काम करने वाली स्टाइलिस्ट उसके रुतबे और सफलता से काफी जलती थी हम जालन के मारे उसने कई बार जमिन की बैकाप फोटोज डिलीट कर दी थी जमिन में पांचवीं बार उस फोटो डिलीट करते हुए पकड़ा, वो इस बात को लेकर मैनेजर के पास गया लेकिन कहानी में एक विस्ट था कि मैनेजर भी जमिन से जलता था, मैनेजर और स्टाइलिस्ट दोनों ने मिलकर उल्टा उसे ही नाकारा और जम साबित कर दिया जब ये बात डायरेक्टर को पता चली तो उसने सत् का पता लगाया डायरेक्टर ने जैमिन से काफी मिन्नतें की परवो उस जगह पर अब काम नहीं करना चाहता था, उसने काम छोड़ अपना स्टूडियो खोल लिया.
इसलिए लेखक कहते हैं कि हया और जलन में किया गया कार्य कियल नुक्सान ही पहुचता है आईये जाने कि कैसे हम हेल्दी कम्पटीशाका हिस्सा का सकते हैं.
आपका काम्पटीशन हमेशा अपने आपसे होना चाहिये दूसरों से नहीं दूसरों की सफलता और तरक्की देख कर उनसे आगे निकलमे किरेस में लगने कि बनाये सुद को दिनों दिन बेहतर बनाने का प्रयास करें एचटर मैथ्यू मैचफनोगी (Matthew MrCornaughey) ने 2017 में ऑस्कर लेते हुए अपने स्पीच में ऐसे ही काम्पटीशन का जिक्र किया था. उन्होंने बाताया कि 15 साल कि उम्र में उनसे किसी ने पूछा कि सका हीरो कौन है, थोड़ा सोच कर उन्होंने कहा कि आज से 10 साल का मैं फिर लगभग 10 साल बाद उसी पत्रकार ने उनसे पूछा कि अब तो आप अपने हीरो बन, उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा नहीं बिलकुल नहीं अब मरा हीरो है 35 साल का मैथ्यू मैवानोगी है.
खुट से कम्पटीशन करके न सिर्फ आप डा और दुश्मनी की भावना से दूर रह सकते हैं बल्कि आप अपने आप को निखार कर अपने अन्दर छपी काबिलियत को ढूंढ सकते हैं.
इकीगाई (Ikigai) के जापानीज मॉडल से आप अपने जीवन के मकसद को ढूंढ सकते हैं, ताकि आप जो करें उससे आपको प्यार हो, और जिससे आपको प्यार हो वही आप कर सकें.
खुद से कम्पटीशन कसे का सिद्धांत सीधा-साधा है.पर इससे पहले कि आप इसे शुरू करें अपने जीवन के असल उद्देश्य को स्ोज लें अगर ये काम आपको बहुत कठिन लग रहा हो तो जापानीज द्वारा माया हकिंगाई मॉडल इसमें भापकी मदद कर सकता है.
इकिंगाई का मतलब है जीने का मकसद ये मॉडल जावन के चार पहलुओं पर आधारित है, हर महलू से जुड़े कुछ सवाल है जिनका जवाब ढूढ़ते हुए आप अपने जीवन के उद्देश्य तक पहुंच जाएग जैसे आपको क्या पसंद है। किस काम को करने में आप बहतर है। दुनिया को किस काम की जरुरत है? ऐसा कौनसे काम हैं जिनके लिए आपको पैसे भी मिल सकते है?
जब आप इन सभी क्षेत्रों को बराबरी से हासिल कर लेंगे तो आप इकिगाई को प्राप्त कर लेंगे. इनमें से एक की भी कमी आपके जीवन में भकरापन ला सकती है.
जैसे किमान लें भाप कुछ ऐसा कर रहे है जो आपको पसंद हो और आप इसे करने में भव्छे भी है और दुनिया को इसकी जरूरत भी है, लेकिन अगर आपको उसके पैसे नहीं मिलेंगे तो थोड़े दिनों में ही पैसों की कमी के कारण आपको नाकारा जैसा महसूस होने लगेगा.
वहीं दूसरी ओर आप यदि कुछ ऐसा कर रहे हैं जिसे कसा आपको पसंद भी हो दुनिया को उसकी जरूरत भी हो और आपको उसके पैसे भी मिलते हैं. लेकिन अगर आप उसे कसे में बेहतर नहीं हैं तो आप हमेशा अपने काम को लेकर अनिशित महसूस करेंगे.
यकीनन हकीकत की खोज जीवन के मकसद को टूटने का अचूक तरीका है लेकिन अगर आप इसे अपने जीवन के शुरुवाती सालों में ढूंढ ले तब तो आप आसानी से अपना करियर बदल सकते हैं लेकिन अगर आपको इसे समझाने में देर हो जाए तब क्या करें?
अगर आपने अपना करियर बना लिया है और आपने उस कार्य में महारत भी हासिल कर ली है आपको उसके पैसे भी मिलते हैं ऐसी परिस्थिति में आपक पास दो रास्ते हैं. पहला कि आपजो काम करते हैं उससे ही प्यार करना शुरू कर दें, कोई भी व्यक्ति अपने जीवन का 80% हिस्सा अपने काम में लगाता है इसलिए ये बहुत जरूरी है कि आपको अपने काम से प्यार होना चाहिए अगर आप जो करते हैं वो आपका ड्रीम जॉब नहीं है तब भी आपके पास आपके समय का 20% बवा है जिसे आप व्यर्थ की बातों और आलस से भरे पलों में न बिता कर जो काम आपको पसट है उसे कसे में बिताएं आगे लेखक कहते हैं की निस्वार्थ बनने के लिए पहले योड़ा स्वाधी बनना भी जरूरी है और सामानिकयोगवान से हम मानद प्राप्त कर सकते हैं. अब बारी आती है नीवन की गाड़ी के माखरी पहिये यानी सामाजिक योगदान की. इसके लिए आपको जानना जरूरी है कि आप मोमबत्ती की तरह हैं याआइस क्रीम की तरह लेखक कहते हैं कि आइस क्रीम की फिलोसोफी कुछ इस तरह होती है कि- पिघल्ने से पहले जीवन का पूरा आनंद उठा लो. ठंडी और मीठी आइस क्रीम जीवन को सुख लेने का जरिया मानती है और ऐसे लोग आत्म सुख को बाकि सब चीजों से ऊपर रखते है.
वहीं दूसरी तरफ मोमबती कि फिलोसोफी है कि पिझालने से पहले अपने चारों तरफ रोश्नी फेला दो मोमबती खुद पिघल कर अपने आस-पास के वातावरण को रोशन कर देती है.
हम में कोई भी पूरी तरह मोमबत्ती कि फिलोसोफी पर नहीं चल सकता क्यूकि किसी के लिए भी बस टेते रहना मुमकिन नहीं है इसलिए हम लोग मोमबती और आइस क्रीम के बीच कि फिलोसोफी में अटक है, लेखक कहते हैं कि दूसरों को कुछ देने से पहले हमें खुद को एक मजबूत व्यक्ति बनाना बहुत ज़रूरी है, इसके लिए हमें जीवन के पहले तीन पहियों को मजबूत करना होगा तभी हम इस चौथे पहिये पर ध्यान दे सकते हैं. इसलिए हमें निस्वार्थ भाव से सेवा करने से पहले थोड़ा स्वार्थी होकर खुद पर भी ध्यान देना होगा अक्सर आपने फ्लाइट में लिखा हुआ देखा होगा किसी दुसरे को ऑक्सीजन मास्क पहनाने से पहले खुद का मास्क पहन लें, क्यूकि भाप सुः होस में रहो तभी दूसरों कि मदद कर पाएगे. इसलिए अफा जीवन और व्यक्तितिय सशक्त करने के बाद हीं हम सामाजिक योगदान की तरफ बढ़ सकते हैं, जीवन का अंतिम पहिया यानी सामाजिक योगदान, आन्तरिक शांति और आनंद के लिए बहुत ही जरूरी है.
लेखक के अनुसार योगदान का काम हमें सबसे पहले अपने घर से शुरू करना चाहिए हमने ऐसे कई लोग देसे हैं जो चैरिटी में तो सुब दान करते हैं लेकिन अपने हीं घर के लोगों की जरूरतों कि तत्फ ध्यान नहीं देते. सबसे पहले हमें अपने घर के लोगों को अपना समय देना होगा जकी भावनात्मक और शारीरिक जरूरतों को समझना होगा तभी किसी भी प्रकार की चैरिटी हमें शोभा देगी परिवार को संतुष्ट करने के बाद बाहरी योगदान देना भी बहुत जरुरी है, सस्कृत में इसे सेवा कहते हैं. संचा किसी भी प्रकार की हो सकती है जैसे प्रकृति कि रक्षा, देश सेवा या जरुरतमंदों को मटट अत में लखक कहते है कि जीवन के चारों पहियों को बैलेंस में रख के चलना चाहिए ताकि हयों जीवन के सफ़र का सही और आनद ले सके और उसे सार्थक बना सके