GENIUS by James Gleick.

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यह किसके लिए है

-साईस के पात्रों और साहस के लवर्स के लिए।

-उन पाठकों के लिए जो प्रॉब्लम को सॉल्व करने में दिलचस्पी रखते हैं।

इतिहास की जानकारी पाने के एक व्यक्तियों के लिए।

लेखक के बारे में

जास ग्लोक एक इतिहासकार होने के साथ साथ एक लेखक भी हैं। वह अपनी किताबों के ज़रिये लोगों को टेक्नोलॉजी से जोड़ते हैं। उनकी प्राुख स्चनाओं में शामिल है. इसाक न्यूटन औरद इन्फॉर्मेशन-ए हिस्ट्रो, ए थ्योरी, ए फ्लड़ा

यह किताब आपको क्यों पढ़नी चाहिए?

यह कहानी है एक महान फिजिसिस्ट की जिनका नाम रिचर्ड फेमैन है। हम सभी में से कई लोगों ने इनका नाम भी नहीं सुना होगा लेकिन 20वीं सदी में फिजिक्स के देवेलपमेंट मैं उन्होंने काफी अहम भूमिका निभाई है।

1 मई 1918 को जन्मे रिचर्ड फेगेन ने फिजिक्स के क्षेत्र में शानदार योगदान दिया। खासतौर पर क्वांटम फिजिक्स और सुपर फ्लूडीटी के क्षेत्र में। रिचई 20चीं सदी के एक महान प्रोजेक्ट का भी हिस्सा रहे थे। एक ऐसा प्रोजेक्ट जिसने की साइंस को नई दिशा दी और दुनिया का काफी नुकसान भी किया। तो आइए एक नजर डालते है रिचर्ड फेमेन के जीवन पर।

इन अध्यायों में आप जानेंगे कि

  • किस तरह फेमैन के पिता ने बचपन से ही उन्हें साइंस पढ़ने के लिए प्रेरित किया।

मैन मेथड के किस पार्ट की वजह से वो नोबेल पुरस्कार जीत सके हैं।

आखिर क्यों फेमेन के मरने के बाद भी उनके लेक्चर इतने फेमस है।

बचपन से ही रिचर्ड को साइंटिफिक तरीके से सोचने की आदत डलवाई गयी।

रिचर्ड के पैदा होने से पहले ही उनके माता पिता ने ये सोच रखा था कि अगर बेटा होगा तो वो आगे चलके महान साइंटिस्ट बनेगा। और हुआ भी जैसा उन्होंने सोचा था। लेकिन रिचर्ड के लिए बचपन से लेकर एक महान साइटिस्ट बनने का सफर उतना आसान भी नहीं था। मिलविल्ले जो कि रिचर्ड के पिता थे वो न्यूयॉर्क में रहा करते थे। उनका खुद का सपना था कि वह साइंटिस्ट बनें लेकिन उन्हें पता था कि उनके पास इतने संसाधन नही है कि वो अपने सपने पूरे कर सकें। इसलिये उन्होंने जीवन भर एक सेल्समैन के तौर पर काम करते हुए अपने सपनों का बोझ अपने बेटे के ऊपर डाल दिया। और इसी वजह से बचपन से ही रिचर्ड को दुनिया एक साइंटिफिक तरीके से दिखाई गई। बचपन में जब रिचर्ड बात तक नहीं कर सकते थे तभी से उन्हें उनके आसपास होने वालों चीजों को साइंटिफिक तरीके से दिखाया जाने लगा।

जब रिचई थोड़े बड़े हुए तो उनके पिता उन्हें म्यूजियम ले जाते थे और वहां पर पिक्चर्स में मौजूद नम्बर और फैक्ट्स को रिचर्ड के साथ साझा करते थे जिससे कि रिचई उसे याद कर सकें। जैसे कि एक टायरानोसोरस रेक्स के बारे में बात करते हुए उन्होंने रिचर्ड को बताया कि डायनासोर अपने सिर के जरिये अपने बेडरूम की खिड़की तक पहुंच सकता था लेकिन उसका सर इतना चौड़ा था कि खिड़की में फिट नहीं हो सकता था। रिचर्ड के पिता यह भी चाहते थे कि रिवर्ड यह जरूर समझें कि चीजें किस तरह से काम करती हैं क्योंकि यह काफी जरूरी था। एक दिन एक पहाड़ यात्रा के दौरान उनके पिता ने उनसे कहा कि उनके रास्ते में जितनी भी विड़िया मिले वो उन्हें पहचान कर उनका नाम बताएं। रिचर्ड को काफी नाम मालूम थे लेकिन अगर वो किसी चिड़िया को नहीं पहचान पाते थे तो उनके पिता उस चिड़िया का नाम अलग अलग भाषा में लेके रिचर्ड को थोड़ा हिंट दे दिया करते थे।

ये बात अजीब लगेगी लेकिन रिचर्ड के पिता का मानना था कि दुनिया के हर कोने में हर चिड़िया का नाम अलग हो सकता है इसलिए जरुरी है कि हम विडिया की प्रकृति से उन्हें पहचाने न कि नाम से जिससे कि हमको कहीं भी किसी भी कोने में उसको पहचानने में दिक्कत न हो।

बाद में जब रिचर्ड स्कूल में थे तब एक बार उन्हें पढ़ाया गया कि फ्रिकशन की वजह से धीरे धीरे जूते घिस जाते हैं। लेकिन रिचर्ड ने इससे आगे बढ़ कर लिखा कि “साइड वाक की दरारों में जूते का चमड़ा अटकने से यह फट जाता है।” तब रिचर्ड को पता चला कि बच्चों को ऊपरी जानकरी दे दी जाती है बस, उन्हें ज्यादा गहरी जानकारी से वंचित रखा जाता है।

फेमैन ने कुछ अजीब ट्रिक्स का इस्तेमाल करके मैथ्स्स प्रतियोगिता जीती और बाद में उन्होंने वो ट्रिक्स फिजिक्स में भी इस्तेमाल की।

फेमेन भले ही स्कूल के समय में अलजेब्रा में काफी निपुण थे लेकिन उन्हें बेसबॉल और लड़कियों को समझने में काफी समस्या थी। उन्हें अलजेब्रा लीग के द्वारा आयोजित की जाने वाली प्रतियोगिता में हिस्सा लेने में बहुत आनंद आता था। मैथ्स क्लास के दौरान बच्चों को बताया जाता है कि किसी प्रॉब्लम के रिजल्ट तक कैसे पहुंचा जाए और बात की जाए मैथ्स कॉम्पिटिशन की तो उसमें सिर्फ रिजल्ट का महत्व होता है न कि रिजल्ट तक केसे पहुंचा जाए इस बात का। और कॉम्पिटिशन के दौरान समय बहुत कम होता हे इसलिए छात्रों के लिए आवश्यक है कि वो शॉर्टकट मेथड का इस्तेमाल करके जल्द से जल्द रिजल्ट तक पहुंचे। फेमैन के लिए मैथ्स प्रॉब्लम सॉल्च करना बहुत आसान था क्योंकि बचपन से ही उन्होंने विज़वलाईज़ेशन करके चीजों को समझने का प्रयत्न किया था।

बाकी सभी बच्चे पुरा प्रोसेस करके रिजल्ट निकलने का प्रयत्न करते थे जबकि रिचर्ड सवाल को दिमाग में साल्व करके नोटबुक में सिर्फ उसका उत्तर लिखते थे। प्रश्न को पढ़ते पढ़ते दिमाग में ही रिचर्ड उसको सॉल्व करने की काबिलियत रखते थे।

उदाहरण के तौर पर फेमैन के सामने एक प्रश्न था कि मान लीजिये एक नाव नदी में जा रही है और अचानक से उस नाव पर रखी हैट पानी में गिर जाती है। हैट के गिर जाने का एहसास नाविक को 45 मिनट के बाद होता है तो बताइए कि नाविक को वापस उस हैट तक जाने में कितना समय लगेगा। प्रश्न में नाव और नदी दोनों की स्पीड दे रखी थी। रिचर्ड को तुरंत एहसाह हुआ कि स्पीड बस ध्यान हटाने के लिए दी गयी है। नाविक को 45 मिनट ही लगेंगे हैट तक वापस ज्ञाने में।

विज़चलाईजेशन की ये स्किल फेमैन को जीवन भर काम आयी। फेमेन के साथी कहते थे कि उनकी सबसे अच्छी बात यह थी कि वो खुद को एटम, इलेक्ट्रान, और अलग

अलग पार्टिकल्स के स्थान पर रखकर प्रॉब्लम को सॉल्व करते थे।

कॉलेज के दौरान रिचर्ड का फिजिक्स के लिए प्यार और बढ़ गया।

मैसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी में भपने पहले साल के दौरान रिचर्ड ने अपने अध्यापक से पूछा कि आखिर मैथ पहने से उन्हें क्या लाभ होगा। रिचर्ड को बहुत ही सटीक जवाब मिला कि अगर तुम्हें यह पूछना पड़ रहा है तो तुम गलत सब्जेक्ट पढ़ रहे हो।

अपने स्कूल के दौरान रिचर्ड को मैथ में बहुत रुचि थी और वो मैथ में इतने अच्छे थे कि उन्होंने कई बार स्कूल में मैथ्स की क्लास भी ली थी। लेकिन कॉलेज में आने के बाद उनका मैथ्स से मन भर गया था। और परिणामस्वरूप उन्होंने अपना ध्यान फिजिक्स की ओर बढ़ा दिया। कॉलेज के दौरान उनका फिजिक्स में इंटरेस्ट बढ़ता ही गया रिचर्ड प्रॉब्लम को सॉल्व करने के अलग अलग तरीके ईजाद करते थे। उन्हें फिजिक्स की प्रॉब्लम सॉल्च करने में बहुत मजा आता था। कभी कभी तो वो कॉरिडोर में खड़े बच्चों के पास रुककर पूछ लेते थे कि आखिर वो कौन सी प्रॉब्लम पर अटके हुए हैं। फिजिक्स पढ़ने में वो इतने लीन हो गाए थे कि बाकी के सब्जेक्ट्स में वो पिछड़ गाए। उन्होंने आर्ट, इतिहास और अंग्रेजी में सबसे खराब किया। रिचर्ड ने संगीत का बहुत तिरस्कार किया वो कहते थे की उसे सुनकर उन्हें शारीरिक दर्द का एहसास होता है। वो फिलॉसफी को भी काफी नापसन्द करते थे। उनका मानना था कि फिलॉसफी एक ऐसा सब्जेक्ट है जिसमें लॉजिक की बहुत ज्यादा कमी है। उनका मानना था कि इग्लिश और फिलॉसफी में निपुण होने से अच्छा है कि व्यक्ति उस चीज को पढ़े जिससे कि इंसान की रवना हुई है। खेर, उन्होंने पास होने के लिए अपने दोस्तों की नोटबुक से चीटिंग की। उनके खराब नम्बर की वजह से एक बार तो ऐसा प्रतीत हुआ कि उनका करियर ही खता हो जाएगा क्योंकि जब उन्होंने प्रिंसटन गें पड़ाई के लिए अप्लाई किया तब प्रिंसटन ने उन्हें खराब नम्बर के कारण एक बार लगभग रिजेक्ट ही कर दिया था।

1942 में फेमैन ने वो टीम जॉइन की जिसने की आगे चलके एटम बम का आविष्कार किया।

दूसरे विश्व युद्ध के दौरान कई लोग इस बात पर चर्चा कर रहे थे कि आस्विर किस तरह एटम को कई भागों में तोड़कर एटम बम बनाया जा सकता है। दुतिया भर के फिजिसिस्ट का मानना था कि एटम बम बनाया जा सकता है लेकिन इसके लिए थोड़े समय की आवश्यकता है। इनमें से कई साइंटिस्ट दुनिया के पहले परमाणु हथियार को विकसित करने के लिए न्यू मैक्सिको के लॉस अलामोस में एक गुप्त सुविधा पर काम कर रहे थे।

1942 में प्रिंसटन से अपनी प्रेजुएशन पूरी करने के बाद 25 साल के रिचर्ड को मैनहट्टन प्रोजेक्ट में शामिल किया गया जोकि एक न्यूक्लियर वेपन बनाने का प्रोजेक्ट था। इस प्रोजेक्ट में साइंटिस्ट इस बात की खोज कर रहे थे कि चैन रिएक्शन के लिए कितने यूरेनियम की आवश्यकता होगी।

फेभेन को टीम में इसलिए शामिल किया गया था क्योंकि वो एक युवा और अत्यंत जिज्ञासु फिजिसिस्ट थे लेकिन जल्द ही उन्हें टीम का लीडर बना दिया गया। लीडर की पोस्ट एक अनुभवी फिजिसिस्ट को दी जाती थी लेकिन रिचर्ड के ज्ञान और उनकी हणता देखते हुए यह पोस्ट उन्हें मिली।

रिचर्ड को यह स्थान इसलिए मिला क्योंकि वो समस्याओं का समाधान बहुत जल्द निकाल देते थे। कुछ लोगों को रिचर्ड की थ्योरी पसन्द नहीं आती थी और उनका मानना था कि रिचर्ड की थ्योरी काम नहीं करेगी लेकिन समय के साथ साथ जब उनकी थ्योरी ही सही साबित होती गई तो और सभी ने रिचर्ड फेमैन को लोडर के रुप में स्वीकारा।

टीम को बम बनाने के जरूरी कैलकुलेशन में उतनी दिक्कत नहीं आयी जितना कि प्रैक्टिकल करने में थी क्योंकि समाधानों की बहुत कमी थी। फेमैन का मानना था कि अगर कैलकुलेशन में थोड़ी भी ऊंच नीच हुई तो काफी नुकसान हो सकता है। लेकिन जल्द ही रिचर्ड और उनकी टीम ने इस बात का पता लगा लिया कि आखिर चैन रिएक्शन के लिए कितने यूरेनियम की आवश्यकता होगी। और साथ ही साथ उन लोगों ने यह भी पता किया कि आखिर किस तरह बम को नियंत्रित किया जा सकता है जिससे कि वो खुद ब खुद न फ़टे। और, जैसा कि हम सभी जानते हैं, 16 जुलाई, 1945 को सूर्योदय से ठीक पहले, परमाणु बग के पहले विस्फोट से न्यू मैक्सिको रेगिस्तान के ऊपर का आकाश धुआंधुआ हो गया था।

रिचर्ड की प्रॉब्लम को विज़्बुलाइज़ करने की क्षमता ने उन्हें नोबल पुरस्कार जितवाया।

कुछ लोगों का कहना है कि संगीत के किसी भी इस्ट्मेंट में महारत हासिल करने में दस हजार से बीस हजार घंटे तक का समय लगता है।

बिल्कुल उसी तरह फेमेन ने भी काम किया। उन्होंने प्रॉब्लम को विज्बुलाइज़ करने में अपने जीवन के हजारों घण्टे बिता दिए। और यही कारण था कि पहले वो अलजेब्रा में और बाद में फिजिकल फोर्सेज के बारे में बहुत कुछ जानने लगे थे। रिचर्ड की मैथ्स पर इतनी अच्छी पकड़ थी जिसकी वजह से उन्हें थ्योरीटिंकल साइंस को समझने में कभी दिक्कत नहीं हुई। अपने विज्ञवुलाइज़ेशन की मदद से रिंचर्ड किसी भी फिजिकल ट्रांसमिशन को आसानी से फार्मूला में डाल देते थे। फेमैन से एक बार पूछा गया कि किस रंग ने उनकी साइंटिफिक प्रोसेस में भूमिका निभाई है, और उन्होंने कहा कि जब भी वो किसी फार्मूला की रचना करते हैं वे अक्सर ऐसे रंगों को देखते हैं जैसे कि डार्क एक्स या वायलेट एना 1947 में रिचर्ड ने फेमैन डाईग्राम की रचना करके क्याटम फिजिक्स के छात्रों के लिए क्वाटम फिजिक्स को आसान बता दिया। उसी समय उन्होंने इलेक्ट्रोमेग्रेटिक के क्षेत्र में अपने काम को सबके सामने रखता। उन्होंने यह बताया कि किस तरह से चार्ज पार्टिकल इलेक्ट्रोमेट्लेटिक फील्ड में इट्रेरत करते है। उनके द्वारा विकसित किये गए डाईग्राम से गदद से काम्प्लेक्स ईक्वेशन को समझना काफी आसान हो गया। यह विशेष रुप से क्चांटम फिजिक्स का गामला था, जहां उनके डाईग्राम ने बहुत ही हाई ईक्वेशन की एक सीरीज को शामिल करने के लिए हर अकादमिक आर्टिकल की आवश्यकता को कम किया। साल 1965 में उन्हें उनके अभिन्न योगदान के लिए नोबल पुरस्कार से नवाजा गया। आधी रात का समय था जब न्यूयॉर्क में उन्हें यह खबर मिली कि उन्हें नोबल पुरस्कार मिला है। कुछ ही क्षणों में उनके दरवाजे पर रिपोर्टर्स का ताता लग गया। सभी साईस में उनके अनमोल योगदान के बारे में जानना चाहते थे। रिचर्ट ने अपनी तरफ से पूरी कोशिश की लेकिन किसी को उनकी बात समझ नहीं आयी। अंत में एक रिपोर्टर ने उनसे कहा कि वो अपनी खुशी को एक लाइन में बताए तो उन्होंने कहा की अगर मैं अपने काम को एक लाइन में कह सकता तो शायद मैं नोबल पुरस्कार का अधिकारी ना होता।

रिचर्ड के द्वारा ली गई कुछ ऐसी क्लासेस थी जो कि आज भी सभी के जहन में बसी हुई हैं।

रिचर्ड एक बहुत ही उम्दा अध्यापक रहे। उन्होंने ज्यादा लेक्चर तो नहीं दिए लेकिन जिसने भी उनके लेक्चर को अटेंड किया वो अभी उस लेक्चर को जीवन भर याद जरूर रखेंगे। यूनिवर्सिटी में अपने आखिरी दो साल फेमेन ने कैलटेक में फिजिक्स पढ़ाने में बिताये। रिचर्ड अपने लेक्चर के दौरान बच्चों को एक अलग ही दुनिया में ले कर चले जाते थे। वो इसी प्रकार बच्चो को पढ़ाते थे जिस प्रकार उन्होंने खुद विज्ञबुलाइज़ करके पढ़ाई की थी। जैसे-जैसे कोर्स आगे बढ़ा, फ्रेशमेन और सोपोरम स्टूडेंट्स को क्लास में बने रहने लिए संघर्ष करना पड़ा, कुछ स्टूडेट्स बाहर हो गए। लेकिन यह स्पष्ट नहीं है कि फेनमैन अपने शत्रों को खोने के बारे में चिंतित थे क्योंकि प्रोफेसरों और स्नातक छात्रों को किसी भी सीट को भरने के लिए ज्यादा प्रयास नहीं करना पड़ रहे थे।

फेमैन की क्लास बहुत भानंदमयी होती थी और उन्होंने अपने काम के ऊपर कोई किताब भी नहीं लिखी तो इस वजह से लोगों के पास उनके लेक्चर अटेंड करने के अलावा कोई और उपाय नहीं बचता था। बाद में उनके द्वारा दिए गएर लेक्चर को नोट्स के माध्यम से और लोगों तक पहुंचाया गया और उसे रेड बुक कहा गया। कई विश्वविद्यालयों ने रेड बुक को अपने पाठ्यक्रम का हिस्सा बनना चाहा परतु वो किताब बच्चों की समझ से परे थी इसलिए उन्हें पाठ्यक्रम में शामिल करने का विचार त्याग दिया गया।

छात्रों के लिए तो नहीं लेकिन बहुत से प्रोफेसर के लिए रिचर्ड की रेड बुक काफी काम आयी। कडयों को तो उनके प्रयोग में रिचर्ड की किताब से काफी मदद मिली। यह सब इसलिए सम्भव हो पाया क्योंकि रिचर्ड का प्रॉब्लम सॉल्च करने का तरीका सबसे अलग था और थोड़ा आसान भी।

रिचई ने इस बात का बहुत विरोध किया कि छात्रों को उसी तरीके से पड़ाना नहीं चाहिए जिस तरीके से प्रोफेसर ने पढ़ाई की क्योंकि उनका मानना था कि प्रोफेसर को हमेशा शार्ट तरीके की खोज में रहना चाहिए।

आज भी हम उनके द्वारा दिये गए तरीकों का इस्तेमाल करते हैं चाहे हो एटम से निकलने वाली किरणों के बारे में हो या फिर उनके द्वारा बताए गए एनालिटिकल मैथइ।

रिचर्ड फेमैन ने एक जोकर की तरह खुद को प्रस्तुत किया लेकिन उनके जीवन से हमें बहुत सी सीख मिलती है।

रिचर्ड को याद करने के बहुत से कारण हैं और उनमें से एक है बोंगो बजाना। जब भी आज किसी अच्छे इंस्ट्रूमेंट वादक के बारे में सोचते हैं तो शायद ही आपको कोई बोंगो प्लेयर याद आता होगा। रूस में रहने के दौरान रिचर्ड ने दो बोंगो इम खरीदे। फेमेन को मॉडर्न म्यूजिक बिल्कुल पसन्द नहीं था लेकिन उन्हें इम बहुत पसंद थे क्योंकि उसके जरिये वो अपने से म्यूजिक और साउड निकाल सकते थे। और वो प्रैक्टिस करते करते इतने निपुण हो गए कि उन्हें एक बैंड में भर्ती कर लिया गया। रिचर्ड एक जोकर के तौर पर भी काफी फेमस थे क्योंकि वो बहुत सी मजाकिया कहानियां कहा करते थे। उन्होंने अपनी कहानियों को दो किताबों का रूप दे दिया और ये दोनों ही किताबें काफी बिकी भी।

सभी अच्छे कहानीकारों की तरह, रिचर्ड ने सचाई को यहाँ वहां फेलाया, लेकिन उनके सहयोगियों इस बात से वितित थे कि विज्ञान की गंभीर कितायों को हसी मजाक में समझाया जा रहा है। इस बात को भी नकारा नहीं जा सकता की वह किताबें फेनमेन के चरित्र के एक महत्वपूर्ण हिस्से को दर्शाती है।

रिचर्ड की सबसे खास बात यह थी कि लोगों के काम को नजरअंदाज कर देते थे हस सोच में की वो उसी काम के लिए किसी नए आईडिया की खोज करेंगे। इसलिए रिचर्ड किसी भी साइंटिफिक किताब का पहला पत्रा नहीं पढ़ते थे क्योंकि उसपर रिजल्ट मौजूद होता था। यो बस उस किताब में जिस समस्या का वर्णन हुआ है उसको जानना चाहते थे और बाद में खुद ही उसका उपाय ढूंढते थे। उनके साथ काम करने वाले लोगों को यह पसन्द नहीं था क्योंकि फेमैन अपने साथ किसी को शामिल नहीं करते थे। रिचर्ड फेमैन के द्वारा विकसित कई चीजें ऐसी भी थी जोकि दुनिया के सामने नहीं आ पाई क्योंकि रिचर्ड को लगता था कि वो इतनी जरूरी नहीं है।

कई लोगों को रिवर्ड इसलिए भी नहीं पसन्द थे क्योंकि जिस समस्या को सुलझाने में लोगों को 6 महीने लग जाते थे रिचर्ड उसको एक रात में साँल्य कर देते थे। रिचर्ड ने अपने जीवन में वो राह चुनी जो कि कम लोगों के द्वारा चनी गई थी और अपने छात्रों को भी वो वही शिक्षा देते हैं।

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