यह किसके लिए है
-वे जो विज्ञान की मदद से इतिहास में आंकना चाहते हैं।
-वै जो जैनेटिवस की पढ़ाई कर रहे हैं।
-वैजो जेनेटिक्स की गदद से खुले राज के बारे में जानना चाहते हैं।
लेखक के बारे में
एडम व्यरफोई (Adarri Rutherford) ब्रिटेन के जेनेलिस्ट, लेखक और ब्रोडकास्टर हैं। उन्होंने नेचर जर्नल में एडिटर का काम लगभग 10 साल तक किया। वे गार्जियन न्यूजपेपर के लिए अक्सर कुछ लिखते रहते हैं। उन्होंने बहुत सी साइस डॉक्यूमेटरी बनाई हैं। इसके अलावा उन्होंने जेनेटिक्स पर कुछ किताबें भी प्रकाशित की है।
यह किताब आपको क्यों पढ़नी चाहिए? विज्ञान की नज़र से इंसानों का इतिहास जानिये
कही ना कहीं हमारे अन्दर यह जानने की जिज्ञासा रहती है कि इंसानों का जन्म इस धरती पर कैसे हुआ। हम सभी जानना चाहते हैं कि जब इसान धरती पर आए तो वे कैसे थे। आपके लिए अच्छी खबर यह है आपकी जिज्ञासा को शांत करने के लिए विज्ञान के पास जेनेटिक्स नाम की एक ब्राव है।
जेनेटिक्स की मदद से हमने इतिहास के बारे में बहुत सारी दिलचस्प बातें पता की हैं। इसकी मदद से हम यह पता कर पाए हैं कि इंसानों का जन्म इस धरती पर कैसे हुआ। इसकी मदद से हमने और भी बहुत सी बातें पता की हैं जो हम किताब के जरिए जानने की कोशिश करेंगे।
इस किताब में हम इतिहास को विज्ञान की नजर से देखवेंगे। इसके अलावा हम बहुत सी दिलचस्प बातों के बारे में जानने की कोशिश करेंगे।
इसे पढ़कर आप सीखेंगे
विज्ञान की मदद से हम इतिहास के बारे में कैसे जान सकते हैं।
- वातावरण और कल्चर हमारे ऊपर कैसे असर डालते हैं।
-नस्ल के बारे में विज्ञान का क्या कहना है।
साइंस की मदद से हम इतिहास में आसानी से झाँक सकते हैं।
हमारे इतिहासकारों ने इतिहास को समझाने के लिए बहुत सारे तरीके खोजे हैं। उन्होंने अलग अलग चीजों का सहारा ले कर इतिहास को समझने और हमे समझाने की कोशिश की है। लेकिन अगर हम पास्ट में कुछ ज्यादा ही पीछे जाएँ तो उसमें छुपी हुई सच्चाई को जानने के लिए हमें विज्ञान की मदद लेनी होगी।
19वीं और 20 वीं शताब्दी में ग्रेगर मेंडल, फ्रांसिस क्रिक और जेम्स वाटसन ने इंसानों के जीन्स (Genes) को समझने के लिए बहुत सारे तरीके बनाए। उनकी इस टेक्नोलॉजी को हम आगे ले जा कर और अपने DNA को समझ कर अपने इतिहास के रहस्य के बारे में जान सकते हैं।
इंसानों के DNA को हमने सन 2000 में पूरी तरह से समझ लिया था अब हम इंसान के DNA की तुलना उन जानवरों से मिले हुए DNA से कर सकते हैं जो लाखों साल पहले मर चुके हैं। इससे हम उनके और अपने बीच के संबंधों के बारे में जान सकते है।
आज ईसानों को होमो सेपियस (Homo Sapiens) कहा जाता है। लेकिन इनसे पहले बहुत से दूसरे जीव भी थे जिन्हें हम होमो नीएनडरथैलेंसिस (Homo
Neanderthalensis), होमो हैबिलिस (Homo Habilis), होमो एगैस्टर (Homo Ergaster), होमो हीडेल्बर्जेसिस (Homo Heidelbergensis) और होगो हरेक्टस
(Homo Erectus) कहते हैं। होमो इरेक्टस पहला ऐसा बंदर था जो सीधे खड़े होकर चल सकता था।
होमो इरेक्टस अब से लगभग 19 लाख साल पहले इस धरती पर आए थे। वे एफ्रिका में पैदा हुए थे और एफ्रिका में ही होमो सैपियंस भी पैदा हुए थे। अब से 2 लाख साल पहले होमो सेपियस एफ्रिका छोड़कर यूरेसिया गए जहाँ उनकी मुलाकात होमो नीएनडरथैलेंसिस से हुई।
होगो सैपियस और होगो नौएनइरथैलेंसिरा ने मेटिंग की। आज जीन्स को अच्छे से समझने के बाद हमें यह पता लगा है कि एक यूरोपीयन के DNA का 27% भाग होगो नीएनडरथैलेसिंस से मिलता है। समय के साथ होमो नीएनडरथैलेसिंस मिट गए पर उनके अंश आज भी हमारे अंदर मौजूद हैं।
जीन्स की मदद से हम पुराने कल्चर और वातावरण के बारे में भी जान सकते हैं।
क्या आपको पता है कि हमारे कल्चर का असर हमारे जीन्स पर होता है? आइए हम इसका एक उदाहरण देखें।
दुनिया में बहुत सारे लोग दूध नहीं पीते क्योंकि ये इसे पचा नहीं पाते। लेकिन कुछ लोगों को दूध पीना बहुत पसंद है। इसका जिम्मेदार हम कल्चर को ठहरा सकते हैं। दूध पचाने के लिए हमें लेक्टेस नाम के एक एंजाइम की जरूरत होती है जो हमारे LCT जीन में मौजूद है। यूरोप के लोगों को छोड़कर ज्यादातर लोगों के लिए यह जीन उनके बचपन के बीत जाने के बाद काम करना बंद कर देता है।
5000 से 10000 BC में यूरोप के लोगों से डेरी के सामानों को बनाना और बेचना शुरू किया। उनके इस कल्चर की वजह जिसकी वजह से वे दूध को पचाने के काबिल बन गाए। उनके LCT जीन में एक छोटा सा बदलाव आया इस क्षमता की शुरुआत स्लोवेकिया, पोलैंड या हंगरी के आस पास कहीं हुई थी। इसके अलावा अलग अलग बदलाव की वजह से एफ्रिका और एशिया के लोगों में भी यह क्षमता आ गई। यह क्षमता हमारे लिए काफी जरूरतमंद साबित हुई क्योंकि इसी की बदौलत हम आज जिन्दा हैं।
इसके अलावा वातावरण का भी हमारे ऊपर बहुत असर पड़ता है। इसका एक अच्छा एक्साम्पल स्किन कलर है। यूरोप के लोग कुछ ज्यादा ही गोरे होते हैं जबकि एफ्रिका के लोग बहुत काले होते हैं। काला रंग तेज धूप में रहने की निशानी है। सारे होमो सैपियस का जन्म एफ्रिका में हुआ था फिर भी यूरोप के रहने वाले इतने गोरे क्यों हैं?
जब हमने हड्डियों की जाँच की तो हमें पता लगा कि 7700 साल पहले सीडन के आस पास रहने वाले लोगों के जीन जब आपस में मिले तो उनकी चमड़ी का रंग हल्का हो गया, उनकी बालों का रंग भी सुनहरा हो गया और उनकी आँखों का रंग नीला हो गया।
DNA की मदद से हम हमारे वंश या जनजाति का पता नहीं लगा सकते।
कोलम्बस के अमेरिका आने से पहले वाईकिस योद्धा वहाँ आ चुके थे। लेकिन उन्होंने वहाँ के लोगों को परेशान करने के बारे में नहीं सोचा। अमेरिका के लोग अमेरिका में कोलम्बस के आने से 20000 साल पहले से रहने का दावा करते है। जीन्स को समझा कर दम यह बता सकते हैं कि अलग अलग देश के लोगों के बीच क्या संबंध है।
29.000 BC से 14,000 BC के समय हमारी धर्ती इतनी ठंडी थी कि पूरा नार्थ हेमिस्फीयर ग्लेशियर से डका हुआ था। इस समय के दौरान साइबेरियन एशिया के लोगों ने रशिया और अलस्का के बीच के रास्ते को तय करने के लिए जमे हुए ब्रिज का इस्तेमाल किया। वहां से वे दक्षिण की तरफ बड़े जहाँ वे पूरे द्वीप पर फेल गए। जीन्स की मदद से हम यह सब पता कर पाए हैं।
दक्षिण और उत्तर में रहने वाले अमेरिका के लोगों के जी स एक जैसे ही है। उनका संबध ग्रीनलैंड में रहने वाले लोगों से है जो यह दिखाता है कि वे एक दूसरे से संबंधित हैं। ग्रीनलैंड के लोग खाने में सिर्फ मछलियां खाते थे जिनमें फैटी एसिड पाया जाता था। इस फैटी एसिड को अनसेचुरेटेड फैट में बदलने के लिए उनके अदर में FADS नाम के जीन्स पाए जाते थे। यह FADS जीन अमेरिका में रहने वालों में भी पाया जाता है जो यह दिखाता है कि दक्षिण और उत्तर में रहने वाले लोगों के पूर्वज ग्रीनलैंड के लोग ही थे।
DNA से हम इस बात का पता नहीं लगा सकते कि हम किस जनजाति से संबंधित हैं। बहुत सारी कंपनियाँ हस बात का दावा करती हैं का ये आपके पूर्वजों के बारे में बता सकती हैं लेकिन ऐसा नहीं है।
ऐसी कंपनियां आप से कुछ पैसे लेती हैं लेकिन इनके नतीजों पर हम भरोसा नहीं कर सकते। ऐसा इसलिए क्योंकि इसकी कोई भी वैज्ञानिक बुनियाद नहीं है। सभी लोग आपस में मिक्स हो चुके हैं और ऐसे में बहुत सारी जातियों के अश हमारे अदर मोजूद हैं जिससे हम यह पता कभी नहीं लगा सकते कि हम किस जाति से सबंधित हैं।
हम सभी का संबंध कहीं ना कहीं शाही खानदान से है।
जोसेफ चैग (Joseph Chang) येल यूनिवर्सिटी के स्टेटिस्टीसियन है जिन्होंने गणित की मदद से यह पता लगाया कि हम शाही खानदानों से किस तरह संबंधित है। ऐसा करने के लिए उन्होंने यह पता लगाया कि हम कितने साल पीछे जाएँ जिससे हमें सभी लोगों के पूर्वज मिल जाएँ। इसका जवाब था सिर्फ 600 साल पीछे। इसका मतलब है अगर हम सभी लोगों के पूर्वजों को एक पेपर पर बना कर लगभग 600 साल पीछे तक ले जाए तो हम देखेंगे कि सभी लाइन आपस में मिल रही है और हम सभी एक दूसरे से संबंधित हैं।
लेकिन अब आपके दिमाग में सवाल उठ रहा होगा कि हमारे दो पैरेंट्स हैं, उन दोनों के चार पैरेंट्स थे, उन चार के आठ पेरेंट्स थे इसका मतलब हमारे करोड़ों पूर्वज हो सकते हैं। फिर हम सभी शाही खानदान से कैसे संबंधित हैं?
इसका जवाब है कि 9वीं शताब्दी में रहने वाला हर व्यक्ति हमारा पूर्वज है। वे सभी हम से किसी ना किसी तरह से जुड़े हुए हैं। यूरोप के रहने वाले चालमेग्न 18 बच्चों के पिता थे। इस हिसाब से देखा जाए ये यूरोप में रहने वाले हर एक व्यक्ति के पूर्वज हैं। एशिया में रहने वाले लोग चंगेज़ स्पान से से संबंधित हैं और एफ्रिका में रहने वाले नेफर्टिटि से। हग में से हर किसी का पूर्वज एक राजा था।
लेकिन हमारे सभी पूर्वज्ञ शाही खानदान से नहीं थे जो कि एक अच्छी बात है। अगर आपके सभी पूर्वज शाही परिवार से होते तो शायद आज माप यह नहीं पढ़ रहे होते। माइए देखें क्यों।
पहले के समय के शाही लोग अपने चश को शुद्ध रखने के लिए अपने ही घर में शादी कर लिया करते थे। इसकी वजह से उनके अंदर जिन्स से सबंधित बीमारियां पेदा होने लगी। इसका एक अच्छा उदाहरण हैं स्पेन के चार्ल्स द्वितीय। उनकी बीमारी कुछ ऐसी थी कि ये पिता नहीं बन सकते थे। इसकी वजह यह थी कि उनके पूर्वजों की संख्या सिर्फ 82 थी जबकि किसी आम आदमी के पूर्वजों की संख्या 254 होते है। उनके परिवार के लोग आपस में ही शादी कर लिया करते थे, जिससे उनके पूर्वजों की संख्या कम हो गई और वे अपाहिज हो गए।
नस्ल का विज्ञान से कोई लेना देना नहीं है।
काफी समय तक हमारे अंदर यह वहम रहा है कि विज्ञान भी नस्ल को मानता है। लेकिन यह सच नहीं है। इस सच तक पहुंचने में हमें कुछ समय लग गया। सच यह है कि एक ही नस्ल के लोगों में जितने अंतर पाए जाते हैं उतने अन्तर दो नस्ल के लोगों में नहीं पाए जाते।
इसका खुलासा रिचार्ड लेवोटिन (Richard Lewontin) ने किया था। उन्होंने अलग अलग लोगों के खून का सैंपल लिया और पाया कि एक ही नस्ल के लोगों के खून में ज्यादा अंतर था।
लेकिन बहुत सारे लोग इस गलतफहमी में थे कि कुछ खास नस्ल के लोगों में कुछ खास खूबियाँ होती हैं लेकिन ऐसा नहीं है। इन में से एक थे निकोलस वेंड जिनके हिसाब से हमारा DNA हमारी सफलता के लिए जिम्मेदार है। विज्ञान के हिसाब से नस्ल का कोई अस्तित्व नहीं है।
18वीं और 19वीं शताब्दी के वैज्ञानिक जैसे जोहेन ब्लमेनबैच ने इसान को पाँच मुख्य नस्ल में बाँटा था। इनका नाम था कोकेसियन, मंगोलियन, एथियोपियन, मलयन और नेटिव अमेरिकन। लेकिन 2002 में इन सभी बातों को स्टेनफॉर्ड के साइंटिस्ट नोह रोसेंबर्ग ने गलत साबित कर दिया।
रोसेंचर्ग ने 1056 लोगों के जेनेटिक सैंपल लिए जो 52 अलग अलग जगहों पर रहा करते थे। उन्होंने कंप्यूटर की मदद से हन सेंपल्स को मलग अलग करने की कोशिश की। जब उन्होंने कंप्यूटर से उन्हें पांच भागों में बाँटने के लिए कहा गया तब उसने ऊपर दिए गए पांच भागों में उसे बाँटा। लेकिन जब कंप्यूटर को दो, तीन या चार भागों में बाँटने के लिए कहा गया तब कप्यूटर ने उसे एकदम अलग तरह से बाटा। ठीक उसी तरह से जब उन्होंने कप्यूटर से उसे 6 भागों में बांटने के लिए कहा तब कप्यूटर ने एक नई नस्ल को बनाया जो पाकिस्तान की एक नस्ल से मिलती जुलती थी।
इस एक्सपेरिमेंट का नतीजा यह निकला कि इंसानों को हम जिंतने चाहे उतने भागों में बाँट सकते हैं। इससे हम यह नतीजा भी निकाल सकते हैं कि हर व्यक्ति एक दूसरे से अलग है। इसमें नस्ल का कोई काम नहीं है।
इंसान के जेनेटिक कोड को समझने के बाद हमने बहुत सी बातों का खुलासा किया है।
26 जून 2000 में बिल क्लिटन ने बहुत सारे वैज्ञानिकों को वाइट हाउस पर बुलाया और यह घोषणा की कि हमने इसान के जेनेटिक्सको पूरी तरह से समझ लिया है। यह एक बहुत बड़ी खोज थी क्योंकि इसकी वजह से हमें बहुत सारी बातें पता लगी। वैज्ञानिकों ने सिर्फ आठ सालों में इस काम को अजाम दिया था। आइए देखें कि इससे हमें क्या क्या पता लगा।
सबसे पहली बात हमें यह पता लगी कि हमारे जीनोम में उतने जीस नहीं हैं जितना हम सोचते थे । इससे पहले यह माना जाता था कि हमारे अन्दर लगभग 2 लाख जीन्स हैं
लेकिन इस डिकोडिंग के बाद पता चला कि हमारे जीनोम में सिर्फ 20000 जीन्स होते हैं। केले और राउन्डवार्म में हम से ज्यादा जीन्स पाए जाते हैं।
दूसरी स्वोज यह हुई कि हमारे ज्यादातर DNA का कोई काम नहीं होता। हमारे शरीर के सिर्फ 2% DNA में पढ़ने लायक जीन्स है। बाकी के जीन्स बेकार है। इन्हें हमने जंक DNA का नाम दिया है। हालांकि अभी तक यह साफ साफ पता नहीं चल पाया है कि क्या वे पूरी तरह से बेकार है या फिर उनका कुछ काम है।
आखिरी बात हमें यह पता लगी कि किसी खास बीमारी के लिए जीन्स जिम्मेदार नहीं हैं। इससे पहले यह माना जाता था कि कुछ खास जीन्स की वजह से कुछ खास लक्षण या बीमारियाँ जैसे कैंसर होती हैं, लेकिन ऐसा नहीं है।
इसे साबित करने के लिए जीनोम वाइड एसोसिएशन स्टडीज़ (GWAS) ने हजारों लोगों के जी स पर स्टडी की जिनकी मानसिक स्थिति एक जैसी थी। उन्होंने देखा कि उनकी मानसिक स्थिति के लिए कोई एक जीन जिम्मेदार नहीं है बल्कि हजारों जीन्स मिलकर किसी मानसिक स्थिति के लिए जिम्मेदार हैं।
जीन्स बहुत सारी चीजों के लिए जिम्मेदार होते हैं।
आजकल इंटरनेट पर जी-स के बारे में बहुत सी अफवाहें फैल रही हैं जो कि बिल्कुल झूठी है। उसमें गार्जियन का एक आर्टिकल है जिसमें लिखा है कि वैज्ञानिकों ने ऐसा जीन खोजा जो ड्रग्स की लत के लिए जिम्मेदार है। लेकिन ऐसा बिल्कुल नही है।
अक्सर हम एक ही जीन को किसी खास व्यवहार की वजह मान लेते हैं। डेविस ब्रैडली वालडाउप (Davis Bradley Waldroup) के साथ ऐसा ही हुआ था। उसके बारे में यह कहा गया कि उसके MAO-A जीन में खराबी आ गई है जिसकी वजह से उसके अन्दर गुस्से और खून खराबे की भावना बढ़ गई। इसी की वजह से उसने अपने दोस्त की पत्नी की हत्या की और अपनी पत्नी की जान लेने की कोशिश की।
डेविड के वकीलों ने कोर्ट में यह बता कर उसे आजादी दिलाई लेकिन उसके ऐसे व्यवहार के लिए कोई एक जीन जिम्मेदार नहीं है। हमारे किसी भी व्यवहार के लिए बहुत सारे जीन्स मिलकर जिम्मेदार होते हैं। डेविड का केस झूठ या गलतफहमी पर आधारित था।
बहुत ही कम हालातों में ऐसा हो सकता है कि हमने जीते जी जो गुण अपने अन्दर पैदा किए हैं वह हमारे बच्चों के अन्दर चला जाए। इसका एक एक्साम्पल हमें वर्ल्ड वार 2 से समय देखने को मिलता है जब नाजियों ने एक जगह पर खाने की सप्लाई बंद कर के वहाँ के लोगों को मरने के लिए छोड़ दिया था।
इन हालातों में कुछ लोग जिन्दा बच गए थे। बचने के बाद उन्हें बहुत सी बीमारियाँ झेलनी पड़ी। कुछ सालों के बाद जब उनके बच्चे पैदा हुए तो उन्हें भी मोटापे और डाइबिटीस जैसी बीमारियाँ हो गई। इससे हम यह कह सकते हैं कि जिन्दगी में हमने जिन लक्षणों को अपने अन्दर जगह दी है वे हमारे बच्चों तक जा सकती है।
डायिन के बाद साइस लगातार इस बात को झूठा बताते आई है। लेकिन आज हम एपिजेनेटिस नाम के ब्रांड में इन लक्षणों के बारे में पड़ते हैं। ऐसे लक्षण बहुत कम देखने को मिलते हैं और दो या तीन पीढ़ियों के बाद इनका असर खत्म हो जाता है।
नेचुरल सिलेक्शन की प्रॉसेस धीमी हो गई है लेकिन इंसानों में अब भी बदलाव आ रहे हैं।
आज हम टेनोलॉजी से घिरे हुए है जिसने हमें बहुत सारी सुविधाएँ और ताकतें दी है। साइंस की मदद से हमने अलग अलग बीमारियों से निपटने का तरीका ढूंढ लिया है
जिससे नेचुरल सिलेक्शन की प्रक्रिया धीमी हो गई है। लेकिन फिर भी हमारे शरीर के अन्दर हर पीढ़ी के साथ कुछ बदलाव आ रहे हैं। हर इंसान का DNA उसके माता और पिता के DNA से मिल कर बना होता है जिसकी वजह से उसके अन्दर कुछ ऐसे गुण पैदा होते हैं जो उनके गाता या पिता किसी में भी नहीं थे। इसका मतलब यह है कि हर पीढ़ी के साथ इस धरती पर एक ऐसा इंसान पैदा हो रहा हैं जिसके पास कुछ अलग खूबियाँ हैं।
लेकिन ये सारे बदलाव अच्छे नहीं हैं। यूनिवर्सिटी ऑफ वॉशिंगटन के जोश एकी (1osh Akey) ने देखा कि हाल में जो DNA में बदलाव आए हैं उनकी वजह से प्रोटीन का बनना कम या एकदम खत्म हो गया है। नेचुरल सिलेक्शन की मदद से सिर्फ फायदेमद गुण वाले लोग ही जिन्दा बचते और जिनमें इस तरह के नेगेटिव गुण पैदा होते हैं वे मर जाते।
हमने अपने जीने के हालातों को इतना बदल दिया है कि नेचुरल सिलेक्शन की प्रक्रिया बहुत धीमी हो गई है। इसान बीमारियों और बूड़ापे का सामना कर के हमेशा के लिए अमर होना चाहता है। इस टेक्नोलॉजी के बढ़ने की वजह से हम नेगेटिव गुण वाले लोगों को भी बचा पा रहे हैं और उनका इलाज कर पा रहे हैं।
इसान आज भी पैदा हो रहे हैं और उनके पैदा होने से उनके अन्दर कुछ बदलाव आ रहे हैं। यह प्रक्रिया हमेशा चलती रहेगी।