FOUR AGREEMENTS by Don Miguel Ruiz.

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About Book

क्या आप जानते हैं कि आपके सपने असल में आपके नहीं हैं? हम एक ऐसा जीवन जी रहे हैं जिसके रूल्स हमारे पेरेंट्स और सोसाइटी ने बनाएं है. हम यही सोचते हैं कि हम असल में जैसे हैं वैसे ही जी रहे हैं लेकिन हमें एहसास तक नहीं कि हम इस बारे में कितने गलत हैं. ये बुक आपको सपनों की दुनिया से निकालकर सच्चाई के सफ़र पर ले जाएगी.ये आपको एक रियलिटी चेक देगी. ये आपको सिखाएगी कि अपनी रियलिटी को जीने के लिए कैसे अपनी पुरानी आदतों को तोड़ कर नए सपने बनाएं जाएं. यह समरी किसे पढ़नी चाहिए?

जो लोग बदलाव की तलाश में हैं

जो लोग सच्ची ख़ुशी ढूंढ रहे हैं

जो लोग पूरी तरह आज़ाद होकर जीना चाहते हैं

जो लोग अपनी असली पहचान की तलाश में हैं

ऑथर के बारे में

डॉन मिगेल रुइज़ एक मेक्सिकन ऑथर हैं. उन्हें New Thought Movement के एक प्रभावशाली मेंबर के रूप में जाना जाता है. यह मूवमेंट हमारी रियलिटी के क्रिएशन में हमारे माइंड के पॉवर के बारे में बताता है. “The Four Agreements” रुइज़ की सबसे पोपुलर बुक रही है. अब तक इसकी 8 मिलियन कॉपी बिक चुकी है और इसे 45 से ज़्यादा भाषाओं में ट्रांसलेट किया गया है.

इंट्रोडक्शन (Introduction)

क्या आप अपना बचपन मिस नहीं करते? क्या आप हर समय खुश रहना, हर चिता फ़िक्र से दूर, किसी भी ड्यूटी से फ्री होना मिस नहीं करते? उदास मत होइए आप बड़े होने के भी खुश रह सकते हैं और शांति से अपनी लाइफ जी सकते हैं, सिर्फ इसलिए कि आपके ऊपर बहुत सी जिम्मेदारियां है इसका मतलब ये तो नहीं आप हर वक़्त चिंता में डूबे रहे या दुखी रहे.

बुक आपको अपना गोल अचीव करने में मदद करेगी. इन पन्नों में ऐसे राज छुपे हैं जो आपको जीवन जीने की आर्ट सिखा देंगे, आपको तो शायद एहसास भी नहीं लेकिन आप अब तक ऐसा जीवन जी रहे हैं जो आपका अपना है ही नहीं,इस बुक को पढ़ने के बाद आपको पता चलेगा कि आपके सपने असल में वो आपके हैं ही नहीं, वो तो सोसाइटी के सपने हैं. तो आप सीखेंगे कि सोसाइटी के रूल्स से खुद को केसे आज़ाद करना है जिसने आपकी लाइफ को कंट्रोल कर रखा है.

सबसे पहले आप सीखेंगे कि सोसाइटी में अच्छे काम करने के लिए अपने शब्दों यानी वर्डस का कैसे इस्तेमाल करना चाहिए. एक माइटीयर देन स्वोर्ड यानी लिखे हुए या बोले हुए शब्दों में एक तलवार से ज़्यादा धार होती है. आपके शब्दों में बहुत पॉवर होती है तो कहावत है “पैन इज़ उनकी पॉवर को खुदके लिए और आस पास के लोगों में पॉजिटिव एनर्जी को बढ़ावा देने के लिए कैसे यूज़ किया जाए. आप सीखेंगे कि आपको समझ में आने लगेगा कि कई बार लोग यू हीं कुछ कह देते हैं लेकिन उनका मकसद आपको ठेस पहुंचाने का नहीं होता. इसलिए आपको चीज़ों को पकड़ कर रखने की बजाय उन्हें भुलाकर आगे बढ़ने की सोच को डेवलप करनी चाहिए. हर बात को पर्सनली लेना सही सोच नहीं है. कई बार हमारे दुःख का कारण हमारी खुद की सोच होती है क्योंकि हम बस मान लेते हैं कि उसने मुझे जानबूझकर नीचा दिखाया या हर्ट किया लेकिन असल में ऐसा नहीं होता.

हम अक्सर उम्मीद करते हैं कि लोग एक पर्टिकुलर तरीके से हमारे साथ बिहेव करेंगे और जब ऐसा नहीं होता तो हम दुखी और निराश हो जाते हैं. हमें इस हैबिट को बदलने की जरुरत है. ये बुक हमें सिखाएगी कि कैसे चीज़ों को assume करना बंद करके एक ड्रामा फ्री लाइफ जिया जा सकता है. ये बुक आपको अपना बैस्ट परफॉर्म करने में भी मदद करेगी.आप सीखेंगे कि अपना बेस्ट देना कोई मुश्किल काम नहीं है, इसके लिए बस प्रैक्टिस की ज़रुरत है. हाँ, आपका रिजल्ट हमेशा परफेक्ट नहीं हो सकता लेकिन समय के साथ आपका परफॉरमेंस इतना कमाल का होगा कि आपको खुद पर गर्व होने लगेगा.

आप टोल टेक मेंटालिटी के प्रिन्सिप्ल के बारे में जानेंगे. ये आपको बेहतर अवेयरनेस, बेहतर ट्रांसफॉर्मेशन और बेहतर intention की तरफ़ गाइड करेगा.ये बुक आपको बदलाव के बारे में सोचने के लिए मजबूर करेगी. ये इस बात का प्रूफ है कि बस कुछ स्टेप्स फॉलो करके आप अपनी पसंद का जीवन क्रिएट कर सकते हैं. ये स्टेप्स आपको कुछ मुश्किल लग सकते हैं लेकिन आपके पर्सनल फ्रीडम और नए सपने की दिशा में ले जाने के लिए सिर्फ

यही एक रास्ता

डोमेस्टिकेशन एंड द ड्रीम ऑफ़ द प्लेनेट(Domestication and the Dream of the Planet) क्या आपने कभी सोचा है कि आपके सपने कहाँ से आते हैं? क्या वो आपकी अपनी इच्छा है या वो किसी और की इच्छा है? हम ऐसी दुनिया में जन्म

हैं, बड़े होते हैं जहां पहले से ही कई रूल्स बने हुए हैं. हम जिस माहौल में रहते हैं, जो देखते हैं सुनते हैं उन सब का हमारी सोच और बिलीफ होता है.आइए आएगा कि इन सब पर सोसाइटी के रूल्स का कितना असर ह वाने का तरीका अलग था. सैम के जन्म के बाद उन्होंने उसके लिए सब कुछ तैयार सैग के जन्म पहले उसके माता पिता की लाइफस्टाइल, उनके सोचने

सिस्टम पर गहरा असर होता है, आपको ऐसा लग सकता है कि ये आपकी अपनी सोच है लेकिन जब आप गहराई से देखेंगे तब आपको समझ में सैम की कहानी से समझते हैं.

किया, यहाँ तक कि सैम किस तरह सोचेगा ये भी उन्होंने ही डिसाइड कर लिया. अब सैम के पैदा होने के बाद उसके थॉट्स और सोचने के तरीके पर उसके परिवार, पड़ोसी, स्कूल, सोसाइटी सबका असर होता है. इसलिए अपनी एक अलग सोच होने के बजाय वो भी उनकी तरह ही सोचने लगता है.

यहाँ तक कि अगर सैम किसी चीज़ पर सवाल उठाएगा तब भी सोसाइटी उसे चुप करा देगी. ये सोसाइटी लंबे समय से है और किसी भी नई सोच को अपनाने में । इसे दिलचस्पी नहीं होती या ये उसे अपनाना ही नहीं चाहती. अक्सर एक अकेली आवाज़ सोसाइटी के सामने दब कर रह जाती है. अब ज़रा सैम बारे में सोचें, वो मानो एक बुक की तरह है जिसमें हज़ारों रूल्स और लॉज़ लिखे हुए हैं. उसके हर डिसिशन को इन रूल्स के हिसाब से ही आंका जाता है. यहाँ तक कि उसके सही या गलत होने को भी इन रूल्स के बेसिस पर ही जज किया जाता है. लेकिन ये बुक आखिर बनी कैसे? इसे इस तरह सोचिये कि सैम जब छोटा था तो जब भी वो कोई अच्छा काम करता तो उसकी माँ उसे इनाम देती और

जब भी उससे कोई गलती हो जाती तो उसे सज़ा मिलती थी. बस यहीं से इन सभी चीज़ों की शुरुआत होती है.

लेकिन अब सवाल ये उठता है कि ये अच्छा या बुरा आखिर किसके हिसाब से है? सैम की माँ ने तो हर चीज़ को उसी तरह से जज किया, उसी नज़रिए से समझा जैसा उनकी माँ ने उन्हें सिखाया था और ये लिस्ट ऐसे ही एक जनरेशन से दूसरे जनरेशन तक चलती रहती है. इसलिए एक्चुअल या रियल चेंज तो हुआ ही नहीं, हमने बस रूल्स का एक सेट बना लिया है जिसे सब कुँए के मेंडक की तरह फॉलो करते जा रहे हैं. ना हमारी अपनी कोई सोच है और ना हम अपने पसंद के सपने देख सकते हैं क्योंकि सोसाइटी जो हम पर पहरा लगाए बैठा है. चाहे हमें पसंद हो या ना हो, चाहे हम सोसाइटी की बातों और सोच से सहमत हो या ना हों, हमें तो सोसाइटी का हिस्सा बने रहने के लिए उसके रूल्स को मानना ही पड़ता है, है

ना? तो अब इसका हल क्या है? खुल कर जिंदगी जीने का बस एक ही रास्ता है कि सोसाइटी के जिन लॉज़ को हमारे दिलो दिमाग में बैठाया गया है उनसे बाहर निकल कर अपने माइंड को आज़ाद किया जाए.हमें अपने सोचने का तरीका बदलना होगा. जब हमारी सोच बदलेगी तब हमारी पर्सनालिटी भी बदलेगी.,अपने पसंद का जीवन जीने के लिए, अपनी पसंद के सपने देखने के लिए शायद अब हमें ख़ुद से बात करने की ज़रुरत है.

द फर्स्ट अग्रीमेंट : बी इम्पेकेबल विथ योर वर्ड (The First Agreement: Be Impeccable With Your Word) अगर आप सच में खुश रहना चाहते हैं तो आपको ख़ुद बदलाव करने की पहल करनी होगी, आथर इसे खुद से कुछ प्रॉमिस करना कह सकते हैं, इस

बुक के ऑधर इसे खुद के साथ अग्रीमेंट करना कहते हैं. तो आइए पहले अग्रीमेंट के बारे में जानते हैं जो है सोच समझ कर शब्दों का इस्तेमाल करना. क्या आपको बचपन का कोई किस्सा याद है जब आपने अपनी मम्मी को कोई जोक सुनाया हो और हंसने की जगह उन्होंने कहा हो कि “चुप हो जाओ, म बिलकुल भी फनी नहीं हो और मुझे हंसी नहीं आई, उस दिन से आप किसी को भी जोक सुनाने में uncomfortable महसूस करने लगे क्योंकि आपने अपने मन में ये बात बेठा ली कि आप एक बोरिंग इंसान है जो बिलकुल फर्ी नहीं है,

हमारे वर्ड्स बहुत पावरफुल होते खुद को या किसी और को जज करते हैं तो वो एक पावरफुल डिसिशन होता है. जब आप किसी से कहते हैं कि तुम स्टुपिड हो तो कहीं ना कहीं वो इस बात को मानने लगता है कि वो स्टुपिड है. वो पूरी जिंदगी तब तक खुद को स्टुपिड मानता रहेगा जब तक कोई और उसे ना कहे तुम स्मार्ट हो या जब तक उसकी खुद की सोच नहीं बदल जाती.आपको अदाज़ा भी नहीं है कि आपके वर्ड्स का किसी

के मन और कॉन्फिडेंस पर क्या असर हो सकता है. इसलिए बहुत सोच समझ कर अपने वर्ड्स को यूज़ करना चाहिए. ऐसी बातें ना कहें जो आपको या दूसरों को हर्ट करे. पॉजिटिव वर्ड्स को यूज़ करके अपने अंदर और दूसरों में भी पॉजिटिव एनर्जी क्रिएट करें. आइए इसे एक एक्जाम्पल से समझते हैं. इमेजिन कीजिए कि एक माँ है जो थक हार कर घर पहुंची हैं. पूरे दिन के काम ने उन्हें थका दिया है और अब वो सिर्फ थोड़ा रेस्ट करना चाहती हैं.उनकी एक छोटी सी बेटी थी जो उस दिन बहुत खुश थी. घर आने के बाद वो औरत अपने सोफे पर थोड़ा आराम करना चाहती थी लेकिन उनकी बेटी नटखट थी और उसे सोफ़े पर उछलने का, कुदने का मन हो

रहा था.

अपनी माँ को देख कर दोमस्त होकर गाना गाने लगी और सोफे पर जम्प करने लगी. वो बहुत खुश और excited थी, अब बच्चे तो ऐसे ही होते है ना, नटखट और चंचल. वो अपनी धुन में जोर जोर से गाए जा रही थी. उसकी माँ बड़ी शांति से सब देख रही थी. उन्होंने बच्ची पर कोई ध्यान नहीं दिया और अपने काम में लग गई. वो कभी बेडरूम में जाती तो कभी ड्राइंग रूम में और हर जगह वो बच्ची उनकी पूँछ बनकर उनके पीछे पीछे जा रही थी. लेकिन एक पॉइंट आने पर उनका पैशेंस ख़त्म हो गया और उन्होंने ज़ोर से बच्ची को डांट दिया. उन्होंने कहा कि “बुम्हारी आवाज़ मेरे कानों में चुभ रही है और वो इतनी सुरीली भी नहीं है इसलिए चुप हो जाओ,

हालांकि बच्ची की आवाज़ प्यारी थी लेकिन उसने गाना बंद कर दिया. बस उसी समय उसने ये मान लिया कि उसकी आवाज़ इतनी बुरी है कि उसे अब

कभी नहीं गाना चाहिए, साल बीतते गए, बच्ची बड़ी होने लगी लेकिन वो कोशिश करती कि जितना कम हो सके उतना कम बोले क्योंकि उसे चिश्वास हो ” नहीं गया था कि उसकी आवाज़ बहुत बुरी है और कोई उसे ना सुने तो ही अच्छा होगा. इस वजह से वो बड़ी होकर शर्मीली बन गई और लोगों के सामने जाने uncomfortable महसूस करने लगी, * uncomror उसकी माँ को तो एहसास तक नहीं होगा कि जानबूझकर ना सही लेकिन उनके शब्दों ने उनकी बेटी के मन को inferiority complex को भर

था जिसने उसके मन पर गहरा असर ुस्से में थी और उन्हें नहीं पता था कि वो क्या कर रही हैं. लेकिन वो बच्ची छोटी थी और उसका मन कोमल । बच्चे स्पंज तरह होते हैं, अपने आस पास की चीज़ों को, बातों को बड़ी जल्दी absorb कर लेते हैं. इसलिए हमें सोच समझ कर उनके साथ पेश आना चाहिए, हमें लगता है कि हम कुछ भी कह सकते हैं और इससे कोई फ़र्क नहीं पड़ेगा लेकिन हमारे शब्दों में जादू के जैसी ताकत होती है,ये या तो लोगों को चोट पहुंचा सकते हैं या उनके निराश मन में भी जान डाल सकते हैं.

दिया था.वो तो बस उस दिन थकी हुई

छोड़ दिया.

तो आइए सब नेगेटिव कमेंट और गॉसिप को खत्म करके एक दूसरे को मोटीवेट करने की सोच को बढ़ावा देते हैं. आपकी सिर्फ एक तारीफ किसी निराश इंसान के मन में उम्मीद जगा सकती है इसलिए ये ज़िम्मेदारी आपको लेनी होगी कि आप किन शब्दों को यूज़ करते हैं.

द सेकंड अग्रीमेंट :डॉट टेक एनीथिंग पर्सनली (The Second Agreement Don’t Take Anything Personally) पिछले चैप्टर में हमने बात की कि शब्दों का क्या इम्पोटैंस होता है और वो कितने पावरफुल होते हैं. किसी का एक नेगेटिव कमेंट जैसे आप किसी काम के नहीं या आप जिंदगी में कुछ नहीं कर सकते, हमेशा के लिए आपके ज़हन में बैठ सकता है. लेकिन आपको चीजों को लेट गो करना और हर चीज़ को

पर्सनली लेने की हैबिट को बदलना होगा.

एक बात हमेशा याद रखें कि अगर आपके बारे में कोई कुछ बुरा कह रहा है वो तो सिर्फ़ उसका ओपिनियन है, सबका नहीं और वो गलत भी तो हो सकता है ना? वो अपनी सोच और समझ के नजरिए से आपको देखता है लेकिन जब तक आप उसे हर्ट करने की पोंवर नहीं देंगे तब तक वो आपको चोट नहीं पहुंचा सकता. जब आप किसी की बातों को पर्सनली लेने लगते हैं तो कहीं ना कहीं आप उसकी बात से सहमत हो जाते हैं कि वो जो आपके बारे में बुरा कह रहा है वो बिलकुल सच है. और ये भी तो हो सकता है कि उसका मकसद आपको हर्ट करना नहीं हो या उस दिन उसका मूड खराब हो

और उसने गुस्से में आपके लिए बुरा कह दिया हो.

जिंदगी की सच्चाई यही है कि आप किसी का मुह बंद नहीं कर सकते, ना किसी की सोच बदल सकते हैं इसलिए खुद की सोच को बदलिए. अगर आप

हर चीज़ को पर्सनली लेने लगेंगे तो जीवन जीना मुश्किल हो जाएगा. लोग जब उदास होते हैं या जब खुश होते हैं तब वो आपको अलग अलग नज़रिए से देखते हैं. तो उनकी सोच की वजह से आप अपनी लाइफ को क्यों एफेक्ट होने देते हैं.

एक्जाम्पल लिए, अगर किसी दिन आपके बॉस का मूड अच्छा हो तो वो आपसे कह देते हैं कि आप उनकी कंपनी के सबसे प्रोडक्टिव एम्प्लोई हैं लेकिन जिस दिन उनका खराब हो तो वो आपको कंपनी का सबसे बुरा एम्प्लोई कह सकते हैं.

अगर आप उनके मूड और शब्दों का असर खुद पर होने देंगे तो आपने अपना रिमोट कंट्रोल तो उनके हाथों में दे दिया यानी अब उनके मूड के हिसाब से

आपका मूड होगा. जब आप हर चीज़ पर्सनली लेने लगते हैं तो आपके लिए दूसरों के शब्द ज्यादा इम्पोर्टेन्ट हो जाते हैं. ऐसे में आप खुद की अहमियत

भूलने लगते हैं. ऐसी सिचुएशन में जब कोई आपसे झूठ बोलता है तो आपको दुःख होता है. आपको खुद पर भरोसा रखने की ज़रुरत है.अगर आपका खुद पर कोई कॉन्फिडेंस नहीं होगा तो आपकी पर्सनालिटी ज़ीरो हो जाएगी. आपको किसी की बातें सुनकर गुस्सा होने की या दुखी होने की कोई ज़रुरत नहीं है. एक बात याद रखें कि लोग सिर्फ ইठে बोलते रहते हैं. तो ेालए झूठ बोलते हैं क्योंकि वो डरते हैं कि आप उन्हें जज करेंगे. और वो झूठ इसलिए भी बोलते हैं व्योंकि वो खुद से भी।

लोगों की बात से क्यों हर्ट होना! इस बुक ने हमें सिखाया है कि हम क्या बोलते हैं उसकी ज़िम्मेदारी हमें खुद लेनी चाहिए. अब ये आपको खुद से ज़्यादा प्यार करने के लिए कह रहा है.

कोई आपको सिर्फ तब हर्ट कर सकता है जब आप उसे ऐसा करने देते हैं इसलिए उन्हें ये पॉवर ना दें नहीं तो वो कभी रुकेंगे नहीं, आप बस दूसरों के कड़वे शब्दों के शिकार बन कर रह जाएँगे. अपनी सोच ऐसी बनाओ जो किसी की राय की परवाह नहीं करता.आप ऐसा इसलिए नहीं कर रहे हैं क्योंकि लोग आपके लिए मायने नहीं रखते बल्कि ये करना इसलिए जरूरी है क्योंकि आपके बारे में उनकी राय उनकी सोच की बजह से है आपकी वजह से नहीं,

इसलिए आज खुद से ये प्रॉमिस करें कि किसी के कमेंट को पर्सनली नहीं लेंगे क्योंकि वो सिर्फ उनका ओपिनियन है बस और उनकी बात पत्थर की लकीर नहीं है,ये है खुद से दूसरा अग्रीमेंट.

द थर्ड अग्रीमेंट : डोंट मेक अज़म्प्शन (The Third Agreement Don’t Make Assumptions)

एक और कारण है जिससे हम अनजाने में खुद को चोट पहुंचाते रहते हैं और वो ये है कि बिना पूरी बात जाने हम बस अपने मन में कुछ सोच कर उसे सच मान लेते हैं यानी assume कर लेते हैं. अक्सर हम लोगों को देख कर दस अनुमान लगा लेते हैं कि वो कैसे हैं, उनकी लाइफ में क्या चल रहा और उन्हें जज करने लगते हैं और ये उम्मीद करते हैं कि वो बिलकुल उस तरह बिहेव करे जैसी मेंटल इमेज हमने अपने मन में उनके लिए बनाई है. लेकिन जब वो अलग तरह से बर्ताव करते हैं तो हमें दुःख होता है.

इसे कहते हैं चीजों को पर्सनली लेना. हम खुद अपने दुःख का कारण बन जाते हैं, या हम कह सकते हैं कि बचपन से हमारी सोच ही ऐसी बना दी गई है, अगर हम रिलेशनशिप की बात करें तो हमने देखा है कि ज़्यादातर कपल्स हर वक्त लड़ते रहते हैं क्योंकि वो बस मान लेते हैं कि उनका पार्टनर उन्हें बहुत अच्छे से समझता एक्जाम्पल के लिए, एक पति खुशी खुशी ऑफिस के लिए निकलता है, उस समय उसकी पत्नी का भी मूड अच्छा था. लेकिन जब वो घर लौटता है तो

उसकी पत्नी बिलकुल गुस्से में लाल थी. वो उसे गुस्से से देख रही थी. वो उससे कुछ expect कर रही थी और बस मान कर बैठी थी कि उसके पति

को बिना कहे सब समझ में आ जाएगा क्योंकि वो तो उससे प्यार करता है. उसके माइंड में अब एक पूरी फ़िल्म चल रही है कि उसका पति सब समझ जाएगा फ़िर उसे मनाएगा. लेकिन वो ये देख ही नहीं पाती कि असल में सिचुएशन बिलकुल अलग है. ये है प्रॉब्लम की जड़. मन में सोच लेने से कोई प्रॉब्लम सोल्द नहीं हो सकती, इसके लिए बातचीत करना, कम्यूनिकेट करना बहुत ज़रूरी है. आप बिना कुछ कहे कैसे मान सकते हैं कि सामने वाला आपकी प्रॉब्लम को समझ जाएगा? इस ग़लत फ़हमी की दजह से ना जाने कितने रिश्ते बर्बाद हुए हैं.

इसलिए एक दूसरे से ज़्यादा बात करने की हैबिट डेवलप करें. किसी से ये कहना कि तुम्हें समझ जाना चाहिए था” बंद करें क्योंकि ये रीयलिस्टिक या प्रैक्टिकल नहीं है. जितना ज़्यादा बात करेंगे आप उतने अच्छे से लोगों को समझ पाएँगे. उनके सोचने के तरीके को समझने की कोशिश करें. इससे आप जित भी ज्यादा इम्पोर्टेन्ट बात ये है कि दूसरों को भी आपको समझने का मौका दें. बस ये मान लेना कि वो सब जानते हैं, गलत है. उन्हें खुल कर clearly बताएं कि आप क्या चाहते हैं और क्या नहीं चाहते. अपना ओपिनियन उनसे शेयर करें.

जैसे आपको सब कुछ पर्सनली लेना बंद करना होगा ठीक उसी तरह बस ये इमेजिन कर लेना कि सामने वाले को तो सब पता होगा, इस आदत को भी बदलना होगा.पॉजिटिव सोच बनाए रखें, पॉजिटिव बर्ड्स को यूज़ करें और खुद से वादा करें कि आप यू ही चीज़ों को assume करने की आदत को छोड़ देंगे. जिंदगी बहुत छोटी सी है, का हाथों से निकल जाएगी आपको पता भी नहीं चलेगा इसलिए इसके हर पल को खुल कर एन्जॉय करें और ये सिर्फ तब मुमकिन है जब आपकी सोच आज़ाद होगी.ये है अग्रीमेंट नंबर 3.

द फोर्थ अग्रीमेंट ऑलवेज डू योर बेस्ट (The Fourth Agreement Aways Do Your Best )

तो पिछले चैप्टर्स में हमने अपने साथ तीन अग्रीमेंट्स करने की इम्पोर्टेंस के बारे में चर्चा की. पहला, अपने शब्दों को बहुत सोच समझ कर इस्तेमाल करें. दूसरा, किसी के भी कमेंट को पर्सनली लेना बंद करें, तीसरा, अपनी इमेजिनेशन से चीजों को मान लेने की आदत को बदलने की कोशिश करें. लेकिन ये सब सिर्फ तब काम करेंगे जब आप सच में एक्शन लेंगे, मगर सिर्फ एकशन लेना ही काफी नहीं है, आपको जो भी करना है उसमें अपना बेस्ट देने की जरूरत है, तो ये है खुद से चौथा अग्रीमेंट यानी हमेशा अपना बेस्ट देना,

हो सकता है कि आपका बेस्ट हमेशा आपकी सबसे अच्छी परफॉरमेंस ना हो क्योंकि हर समय आपकी एनर्जी की लेवल अलग अलग होता है. आपकी एनर्जी टाइम, आपके मूड और हेल्थ पर डिपेंड करती है. इसलिए अगर आपका बेस्ट भी आपका बेस्ट नहीं है तो चिंता मत कीजिये समय के साथ आप हमेशा अपना बेस्ट परफॉर्म करना सीख जाएंगे. आइए इस कहानी से इसे समझते हैं.

एक बार की बात है, काई नाम का एक आदमी था. वो अपने जीवन के दुखों से थक गया था. काई अब खुश रहना चाहता था इसलिए उसने बुद्ध के

मंदिर जाने का फैसला किया. वहाँ उसकी मुलाकात एक मास्टर से हुई. काई ने उनसे मदद मांगी. उसने कहा कि जिंदगी मुश्किल है और चो अपने सभी दुखों को दूर करके खुश रहना चाहता है. उसने मास्टर से पूछा कि “खुश होने के लिए मुझे कितनी देर मेडिटेशन करना होगा? क्या मेरे दर्द को ठीक करने के लिए हर रोज़ चार घंटे का मेडिटेशन काफ़ी है?” मास्टर ने कहा, अगर तुम हर रोज़ चार घंटे मेडिटेशन करोगे तो तुम्हारे घाव को भरने में और एक सुखी जीवन जीने में दस साल लग जाएँगे”. काई

उनका जवाब सुनकर निराश हो गया. दस साल का समय तो बहुत लंबा था और वो तुरंत बदलाव चाहता था. उसने मास्टर से दोबारा पूछा “तो क्या आठ

घंटे मेडिटेशन

पद मॉडर्न करना ज्यादा

अच्छा होगा?

मास्टर ने कहा, “अगर तुम आठ घंटे मेडिटेशन करोगे तो तुम्हें ठीक होने में 20 साल लगेंगे”. ये जवाब सुनकर काई को बहुत आश्चर्य हुआ. वो सोच में पड़ गया कि ज्यादा देर मेडिटेशन करने से ठीक होने में ज्यादा समय कैसे लग सकता है? उसने मास्टर से पूछा, लेकिन ऐसा क्यों ? मास्टर ने बड़ी शांति और धीरज से जवाब दिया. उन्होंने समझाया कि काई को हील होने में ज्यादा समय इसलिए लगेगा क्योंकि वो हर वक़्त मेडिटेशन करने में ही लीन रहेगा. दो जीवन जीना और लाइफ को एन्जॉय करना तो भूल ही जाएगा. इसलिए

मेडिटेशन करने के बावजूद वो दुखी ही रहेगा.

मास्टर की बातों ने काई को ऐसी सीख दी जिसे वो कभी नहीं भूला.उन्होंने कहा था.”इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि तुम दिन में कितनी देर meditate करते हो, जब तक तुम अपना बेस्ट करते रहोगे तब तक तुम खुश रहोगे फिर चाहे वो दिन में एक घंटे मेडिटेशन करना ही क्यों ना हो.” हमेशा इस बात को याद रखें कि चाहे कुछ भी हो जाए कभी जीना की आस को खत्म होने ना दें. हमेशा अपनी जिंदगी को खुल कर पूरी तरह जिएं और हर काम में अपना बेस्ट परफॉर्म करने की कोशिश करें. सिर्फ रिजल्ट पाने की इच्छा से या काम के बदले कोई रिॉर्ड पाने की इच्छा से काम ना करें. ये सोच कर काम करें कि आपको काम में मज़ा आता है. काम को बोझ ना समझें बल्कि उसे एन्जॉय करें सिर्फ तब आप सच्ची ख़ुशी महसूस कर पाएँगे.

द टोलटेक पाथ टू फ्रीडम ब्रेकिंग ओल्ड अग्रीमेंट्स (The Toltec Path to Freedom: Breaking Old Agreements)

हमने बुक की शुरुआत में ही जान लिया था कि हम सब कितने restriction में बंधे हुए हैं, असल में हमारी अपनी कोई सोच ही नहीं है, हमारी सोच को सोसाइटी ने कंट्रोल कर रखा है. हमें ऐसी सोच को तोड़ कर खुद को आजाद करने की ज़रूरत है. इसका सिर्फ एक ही रास्ता है, पुरानी आदतों को बदलना, हमें खुद को हर उस चीज़ से आज़ाद कराने की जरुरत है जिसने हमें पीछे पकड़ कर रखा हुआ

हैं. हम टोलटेक के एक्जाम्पल को फॉलो कर सकते हैं.

टोलटेक होने का मतलब है सभी तरह के सोशल रूल से ऊपर उठ जाना. आपके मन को किसी ने बाँध कर नहीं रखा है.आपके subconscious माइंड को कोई आर्डर नहीं दे रहा है, आप जो भी बनना चाहते हैं, जिस सपने को पूरा करना चाहते हैं उसे पाने के लिए आप आजाद हैं. इसमें आपके सपने सही मायनों में आपके होते हैं. ये वो सपना नहीं है जो आपके पैदा होने के बाद आपके पेरेंट्स या सोसाइटी आपके लिए डिसाइड करती है. टोलटेक के रास्ते पर चलने के लिए आपको तीन प्रिंसिपल्स में महारत हासिल करने की ज़रुरत है. पहला, आपको ज़्यादा जागरूक या अवेयर होना होगा. आपको पता होना चाहिए कि आप कौन हैं और आप असल जिंदगी से क्या चाहते हैं. सिर्फ एक follower ना बनें. लाइफ का कंट्रोल आपके

हाथों में होना चाहिए.

दूसरा, आपको अपने बदलाव ट्रांसफॉर्मेशन में मास्टरी हासिल करनी होगी,अगर आप खुद पर और अपनी आदतों पर फोकस नहीं करेंगे तो आप जिंदगी के रास्ते में खो भी सकते हैं, अगर आपने अपनी हैबिट को बदलना और उसे कंट्रोल करना सीख लिया तो आपकी जिंदगी पूरी तरह बदल जाएगी.सोसाइटी को डिसाइड ना करने दें कि आपको क्या करना चाहिए और क्या नहीं.

तीसरा, आपको अपने इरादे पक्के और मजबूत करने होंगे. क्या आप जानते हैं कि आपके इरादे यानी इंटेंशन में भी एनर्जी होती है? आप जो भी चाहते और जिस पर फोकस करने लगते हैं वो आपके चारों तरफ से यूनिवर्स को सिग्नल भेजने लगता है. अगर आपका इरादा है बिना किसी शर्त के प्यार करना और पाजिटिविटी तो आपके आस पास हर इंसान भी पॉजिटिव होगा. इन तीन प्रिसिपल्स को फॉलो करके आप पर्सनल फ्रीडम की ओर कदम बढाने लगते हैं.क्या आपको याद है कि जब आप बच्चे थे तो सिर्फ़ खेलने और मज़े करने की परवाह

किया करते थे. आप बिलकुल सिंपल और दिल के साफ थे. आप सिर्फ लाइफ को एन्जॉय करने में और हर किसी से प्यार से पेश आना जानते थे. जब हम छोटे थे तो ना पास्ट की चीज़ों को लेकर खुद को जज करते थे और ना फ्यूचर के बारे में चिंता करते थे. हम बस एक खुशहाल जीवन जी रहे थे. बड़े होने के बाद हम ये सब क्यों भूल जाते हैं? बड़े होने के बावजूद हम ये सब क्यों नहीं कर सकते? इसलिए हमें अपनी सोच को बदल कर अपना रास्ता बनाने की जरुरत है. इन तीन प्रिंसिपल्स को फॉलो करने से ये हमें एक ऐसे रास्ते पर ले जाएगा जो खूबसूरत और खुशहाल दोनों होगा. यहाँ कोई रूल या लॉ नहीं होगा जो हमें कैद में जकड़ कर रखते हैं. यहाँ हम सिर्फ आगे बढ़ेंगे और लाइफ के हर पल को एन्जॉय करेंगे. अगर आप खुद की कदर करते हैं तो आपको खुद से ये चार वादे करने होंगे. आपफ्रीडम और खुश रहना deserve करते हैं इसलिए इन्हें अपनाकर

अपनी लाइफ में बदलाव की शुरुआत करें.

कन्क्लू ज़न (Conclusion)

तो इस बुक में आपने उनचार अग्रीमेंट्स के बारे में सीखा जो आपको खुद के साथ करने हैं.पहला, अपने शब्दों को सोच समझ कर इस्तेमाल करें. दूसरा, हर बात को पर्सनली लेना बंद करें. तीसरा, बिना पूरी बात जाने चीज़ों को assume करने की आदत को बदलें और चौथा, हमेशा अपना बेस्ट परफॉर्म करें.

जिंदगी सिर्फ इस बारे में है कि आप किस नज़रिए से दुनिया को देखते हैं. अगर आप पॉजिटिव नज़रों से दुनिया को देखेंगे तो हमेशा खुश रहेंगे लेकिन

अगर आप नेगेटिव सोच से चीज़ों को देखेंगे तो आपको दुख के सिवाय कुछ नहीं मिलेगा.ये बिलकुल ऐसा है कि अगर आप ब्लू कलर के गॉगल्स लगाते

तो आपको हर चीज़ ब्लू ही नज़र आएगी, अगर आप ग्रीन कलर के गॉगल्स लगाएँगे तो आपको हर चीज़ ग्रीन नज़र आएगी तो क्यों ना अपने गॉगल्स पर पाजिटिविटी का स्क्रीन लगाया जाए ताकि हम हर चीज़ में पाजिटिविटी देख कर पोजिटिव सोच को बढ़ावा दें. आप अपने पसंद की दुनिया क्रिएट कर सकते हैं. अपने बीते हुए कल में जीना और आने वाले कल की चिंता करना बंद करें. आपको अपने सपनों की पॉवर पर विश्वास करना होगा. जब आप हॉप और उम्मीद के सपने देखेंगे तब आप में उम्मीद जिंदा रहेगी.आपको छोटी छोटी चीज़ों में खूबसूरती नज़र आने लगेगी और अगरलाइफ घोड़ी टफ भी हुई तब भी आप खुश रहेंगे,

आपको अपने इमेजिनेशन का इस्तेमाल कर दुनिया को एक नए नज़रिए से देखने की ज़रुरत है,जब आप सोसाइटी के रूल्स आज़ाद होंगे तो आप

कहीं भी उड़ान भर सकते हैं,

अपने शब्दों को कंट्रोल करना सीखें और सिर्फ पाजिटिविटी को बढ़ावा दें, किसी के कमेंट को पर्सनली ना लें और ये सोचना बंद करें कि हमारे आस पास

हर कोई हमें हर्ट करने की कोशिश कर रहा है.

तो खुद से ये चार प्रॉमिस कर आज़ादी की ओर अपना कदम बढ़ाएं. अपने साथ नए अग्रीमेंट करें जोहोप, सेल्फ-कंट्रोल और प्यार भरा हुआ हो.इस बुक के ऑथर कहते हैं कि हर इंसान अपने आप में एक आर्टिस्ट होता है जो एक खूबसूरत पेंटिंग बना सकता है. अपनी लाइफ की पेंटिंग में आप दुःख के फ़ीके रंग भरना चाहते हैं या जिंदादिल रेनबो के रंग ये सिर्फ़ हमारे नज़रिए पर डिपेंड करता है. लोगों को बातों को दिल से ना लगाएं. एक शायर ने बहुत खूब लिखा है कि “दिल आखिर तू क्यों रोता है, दुनिया में यूहीं होता है, आँख तेरी बेकार ही नम है, हर पल एक नया मौसम है,क्यों तू ऐसे पल खोता है.दुनिया में यूहीं होता है तो क्यों बेकार की चिंता करते हैं और एक दुखी जीवन जीते हैं जब आप अपने लिए और दूसरों के लिए एक खूबसूरत जिंदगी बना सकते हैं और इस बात पर विश्वास रखिए कि ये पॉवर आपमें बिलकुल है !

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