
यह किसके लिए है
-ये जो इतिहास पड़ना पसंद करते हैं।
-वैजो मिडिल ईस्ट का इतिहास जानना चाहते हैं।
वो जो प्रथम विश्व युद्ध की घटनाओं के बारे में जानना चाहते हैं।
लेखक के बारे में
डेविड फ्रामिक्रन (David Frormkn) एक अमेरिकी लेखक, वकील और इतिहासकार थे जो मिडिल ईस्ट के इतिहास के बारे में लिखने के लिए जाने जाते थे। 11 जून 2017 में उनकी मृत्यु हुई। उनकी अ पीस टु एन्ड माल पीस (A Peace to End All Peace) किताब को पुलित्जर प्राइज मिल चुका है। इसके अलावा उन्होंने 7 और किताबें लिखा है।
यह किताब आपको क्यों पढ़नी चाहिए
क्या आपने मिडिल ईस्ट में चल रहे युद्धों के बारे में सुना है? क्या आप जानना चाहते हैं कि इन युद्धों की शुरुआत कब और क्यों हुई? इस किताब की मदद से आपको इन सभी सवालों के जवाब मिलेंगे।
ओटोमन साम्राज्य एक समय में बहुत शक्तिशाली साम्राज्य था। 17वीं शताब्दी में ये अपनी शक्ति के चरम सीमा पर था। लेकिन 20वीं शताब्दी के शुरू होते ही इस महान साम्राज्य पर ग्रहण लगना शुरु हो गया।
इसके पतन के पीछे ब्रिटेन और फ्रांस का हाथ था। मिडिल ईस्ट के युद्ध इन्हीं देशों की देन है। इस किताब में हम देखेंगे कि ओटोमन साम्राज्य का पतन कैसे हुआ और ब्रिटिश और फ्रांस का इसमें क्या हाथ था और आज मिडिल ईस्ट की ऐसी हालत क्यों है।
इसे पढ़कर आप सीखेंगे
ओटोमन साम्राज्य का पतन कैसे हुआ।
किस तरह से ब्रिटेन के झूठे वादों ने मिडिल ईस्ट को अशांति से भर दिया।
20वीं शताब्दी की शुरुआत से ही ओटोमन साम्राज्य का पतन होना शुरु हो गया।
इंडस्ट्रीयल रेवोल्यूशन के बाद सभी कंपनियाँ टेकोलॉजी और इकोनोमी के मामले में आगे बढ़ने लगी। लेकिन ओटोमन साम्राज्य अभी भी बहुत पीछे चल रहा था। यूरोप के बाकी देशों में स्ट्रीट लाइट बहुत पहले से ही लगा दिए गए थे लेकिन ओटोमन साम्राज्य में ये 1912 में लगा। बाकी के देशों के लिए ये साम्राज्य बहुत पिछड़ा हुआ था और वे इसे “यूरोप का बीमार आदमी’ कह कर बुलाते थे।
ओटोमन साम्राज्य में ज्यादातर मुस्लिम धर्म के लोग ही रहते थे। यहाँ कुछ क्रिश्चन और ज्यु धर्म के लोग भी थे लेकिन ज्यादातर लोग मुस्लिम ही थे। धर्म का यहाँ खास महत्व था।
हर किसी की पहचान उसके धर्म से होती थी।
यूरोप के बाकी देश जैसे फ़ास और इंगलैंड ने समयम के हाथ अपने साम्राज्य को फैलाया लेकिन ओटोमन साम्राज्य की शक्ति सिर्फ तुर्की सीमाओं तक सिमटी रह गई। उनका साम्राज्य बहुत छोटा था। जो राज्य तुकी नहीं थे वे अपने आप पर या करते थे। ओटोमेन की सेना तो थी लेकिन फिर भी उसने इन सबको आजाद छोड़ रखा था।
ओटोमैन की इसी व्यवस्था की वजह से यूरोप के बाकी देशों ने ओटोगैन के राज्य में आने वाली बहुत सारे राज्यों को अपने कब्जे में ले लिया। 20वीं शताब्दी की शुरुआत में ओटोमैन अपने बहुत सारे जरूरी हिस्सों को खो चुका था। 1912 में में इटली ने ये घोषणा की कि ओटोमैन ही अब यूरोप की आखिरी एफ्रिकी साम्राज्य है। इस समय ओटोमौन ने अपने दक्षिण -पुरबी राज्यों के ज्यादातर हिस्सों को खो दिया था।
विश्व युद्ध के शुरू होने से पहले ओटोमन ने बलकन, ग्रीक और बल्जेरिआ में मौजूद अपने राज्यों को खो दिया। उसके पास सिर्फ तुर्क, लेबानन, जाईन,
इसराइल इराक,सीरिआ और अरबी पेनिनसुला के कुछ हिस्से बच गाए थे।
1913 के बाद ओटोमैन साम्राज्य को मुश्किल हालातों का सामना करना पड़ा।
1908 में जब ओटोमन साम्राज्य कमजोर पड़ने लगा तब कमेटी आफ यूनियन एन्ड प्रोग्रेस (CUP) ने एक क्रांति की। सीयूपी को यंग तुर्क भी कहा जाता मकसद साम्राज्य में लोकतंत्र को वापस लाना था, जिसे सुल्तान अब्दुल हामीद ने 1878 में खत्म कर दिया था।
था। इस क्रांति का
इस क्रांति में वे सफल भी हो गए लेकिन बाद में यंग तुर्क के लोग आपस में ही लड़ने लगे जिससे उनकी शक्ति स्वतरे में आ गई थी। 1913 में ओटोगेन साम्राज्य बल्कन युद्ध हार रहा था। यह युद्ध सर्बिया, बल्जेरिआ,ग्रीक और मोंटेनेग्रो के विरुद्ध हो रहा था। यंग तुर्क ने इसका फायदा उठाया और ओटोमन साम्राज्य पर कब्जा कर वहाँ बिजली और ट्रेन की सुविधाओं को विकसित करने लगे। उन्हें लगा कि इससे वे पश्चिमी देशों की शक्तियों से बच सकेंगे।
इसी बीच गेराल्ड फिट्समोरीज (Gerald Fizmaurice) नाम के एक व्यक्ति की गलतफहमी की वजह से ओटोमन खतरे में पड़ गया। वह कान्सटेनटिनोपल में ह्वेगलैंड के राजदूतों का सलाहकार था।
गेराल्ड को लगा कि यंग तुर्क इंगलैंड के लिए एक खतरा हैं। उसने लंदन में एक चिठ्ठी भेजी जिसमें उसने यंग तुर्क के बारे में बहुत सारी झूठी बातें लिखी थी। उसने लिखा कि यंग तुर्क फ्रीमैंशन ग्रुप है जो ज्यूबिंश लोगों द्वारा चलाए जा रहे हैं।उसने उनकी कमेटी का नाम ज्यू कमेटी आफ यूनियन एन्ड प्रोग्रेस बताया। असल में ऐसा बिल्कुल नहीं था। वंग तुर्क पूरी तरह से तुकी थे और वे दूसरे धर्मों के लोगों से अच्छा व्यवहार करते थे। लेकिन गेराल्ड की एक चिट्ठी की वजह से गलैंड ने ओटोमैन को विश्व युद्ध में हराने के लिए एक तरीका टूट लिया।
ओटोमेन साम्राज्य पर ज्यू धर्म के लोगों का राज था इगलैंड के अधिकारियों ने प्लान बनाया कि यह पैलेस्टाइन में बने ज्यू धर्म के लोगों के घरों को सपोर्ट करेंगे और फिर ओटोमेन पर कब्जा कर लेंगे।
ओटोमैन साम्राज्य अपने आप को बचाने के लिए जर्मनी से जा मिला।
जब इंगलैंड से समझौता नहीं हो पाया तब उसने अपने आप को इटली और औस्ट्रिया हगरी से बचाने के लिए जर्मनी से समझौता कर लिया। उन्होंने मिलकर एक गुप्त समझौता किया और जर्मनी ने वादा किया कि वो ओटोमैन की हिफाजत करेगा।
लेकिन उनका ये राज़ ज्यादा दिन तक नहीं छुप सका। धीरे धीरे इंगलैंड को उनके समझौते के बारे में पता चलने लगा।
जब इंगलैंड ने जर्मनी के दो जंगी जहाजों से युद्ध करने का फैसला किया तब ओटोमैन ने जर्मनी की जहाजों को अपने राज्य की सीमा में आने वाले समुद्री रास्तों से चोरी छुपे निकाल दिया। इसके बाद डैईतेल्स में माइनफिल्ड बिछाने की घटना हुई। डैनेल्स एक पतला पानी का रास्ता था जो कान्सटैनटिनोपल में जाकर मिलता था। इन सभी घटनाओं की वजह से इंगलैंड को शक होने लगा कि ओटोमन साम्राज्य ने जर्मनी से समझौता किया है। इसके बाद जब ओटोमैन ने रशिया पर हमला रना शुरू कर दिया तो इंगलैंड ने ओटोमैन के खिलाफ 31 अक्टूबर, 1914 को युद्ध का ऐलान कर दिया। रशिया इगलैंड के संधि का एक हिस्सा था।
जय युद्ध शुरू हो गया तब फ्रांस और इंगलैंड मिलकर ओटोमेन पर जीत हासिल करने के बाद उसे बदलने के बारे में सोचने लगे। उन्होंने ने मोटोमैन को रशिया और ओस्ट्रो गरों के फायदे के लिए बचा कर रखने के बारे में सोचना बंद कर दिया। ओटोमन पर कब्जा करने की पालिसी से गलैंड को भारत के लिए व्यापार के नए रास्ते खोलने में मदद मिली।
जब इगलैंड ने देखा कि ऐफ्रिका में अब राज करने के लिए ज्यादा जगह नहीं बवी तो उसने अपना रुख ओटोमन साम्राज्य की तरफ मोड़ा। अपनी शक्तियों को बड़ता हुआ देख कर एलाइड शक्तियों ने मिडिल ईस्ट पर जीत हासिल करने के प्लान बनाने शुरू किये।
इंगलैंड की मिडल ईस्ट पालिसी के साथ एक आदमी की महत्वाकांक्षा ने छेड़खानी की।
1974 की अगस्त में हर्बर्ट किचनर की युद्ध के लिए ब्रिटिश सेक्रेटरी आफ स्टेट बना दिया गया। किचनर पहले इजिष्ट में इंगलैंड के राज को देखता था। वो एक ही ऐसा
कैबिनेट मिनिस्टर था जिसके पास मिडिल ईस्ट से सबंधित कुछ अनुभव था। ब्रिटिश सरकार में किसी को मिडिल ईस्ट के बारे में उससे ज्यादा जानकारी नहीं थी। इसलिए उसके विचारों की कदर की जाती थी। लेकिन बाकियों की तरह ही उसे भी मिडिल ईस्ट के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं थी। वो जो भी बोलता था लोग उसे मान लेते थे क्योंकि उनके पास इतनी जानकारी नहीं थी
कि वे उसे गलत साबित कर सकें।
किचनर का प्लान था कि वो सभी अरबी भाषा बोलने वाले लोगों को एक इस्लामी धर्म के शासक के राज में रख दे जिससे वे इकठ्ठा रह सकें। उसे लगा कि अरब के लोग धर्म का नाम सुनते ही एक हो जाएंगे लेकिन उसे नहीं पता था कि वे एक ही धर्म के होने के बाद भी अलग अलग हिस्सों में बँट हुए थे।
हालाँकि वहाँ पर रहने वाले ज्यादातर लोग एक ही भाषा बोलते थे और इस्लाम धर्म को ही मानते थे लेकिन फिर भी उनके रीति रिवाज में बहुत अंतर था। इस्लाम धर्म दो भागों में बँटा था- शिया और सुनी। इसकी खबर किचनर को नहीं थी।
अज्ञानता की वजह से उसने एक सुती को उस जगह का राजा बना दिया जहाँ पर शिया की जनसंख्या ज्यादा थी।
किचनर के काम को देखकर ऐसा नहीं लगता कि उसने इतना बड़ा फेसला अज्ञानता की वजह से लिया होगा। उसके लिए गए फेसले से ऐसा लग रहा था कि अरब के लोग ही अपने आप पर राज कर रहे हैं लेकिन असल में ब्रिटिश सरकार वहाँ पर राज कर रही थी।
किचनर ने ये सब काम अपने फायदे के लिए किया था। उसका ख्वाब था कि वह मिडिल ईस्ट में रहने वाले अरबी लोगों का ब्रिटिश वाइसराय बन सके।
इंगलैंड में हो रहे राजनीतिक बदलाव ने ओटोमैन में रहने वाले अरबी लोगों के प्रभाव को बढ़ाया।
किचनर की सलाह मानकर जब इंगलैंड ने गैलिपोली पर आक्रमण किया तो उनके हाथ असफलता ही लगी। इसके बाद एक नए प्राइम मिनिस्टर डेविड लॉडड जार्ज (David Lloyd George) को चुना गया। डेविड ने फैसला किया कि उन्हें एक नाए तरीके की जरूरत पड़ेगी।
डेविड ने कहा कि ओटोमन साम्राज्य को बाहर से हराने के बजाय इसे अदर से तोड़ने की कोशिश की जाए। इसके लिए उन्होंने उन अरबी लोगों का सहारा लिया जो बरसों से तुर्की राज में रह रहे थे।
किचनर ने एक मिडिल ईस्ट एक्सपर्ट मार्क स्काडईस (Mark Sykes) को चुना जिन्होंने खुद मिडिल ईस्ट का सर्वे किया था।
मार्क ने सुझाव दिया कि वे मक्का के शरीफ हुस्सेन को एक कठपुतली राजा के रूप में इस्तेमाल करें और उसे अरबी बोलने वाले लोगों का राजा बना दें। लेकिन जब हस्सेत ने इसके बदले एक आजाद अरब देश की मांग की तो समझौता नहीं हो पाया।
ब्रिटिश सरकार अपना राज नहीं छोड़ना चाहती थी। जल्द ही उन लोगों की मुलाकात एक अरबी ओटोमैन स्टाफ आफिसर से हुई जिसका नाम मुहम्मद-अल-फारुकि था।
अल फारुकि का कहना था कि अरब के मिलिट्री लीडर्स के संपर्क में रहता है और उसने हुस्सैन और ब्रिटिश सरकार को ये यकीन दिलाया कि उसके पास लाखों सैनिक हैं जो
उसके इशारों पर काठ करते है। ब्रिटिश सरकार को यकीन हो गया कि अल फारुकि ओटोमैन को हराने में उनकी मदद कर सकता है।
अल फारुकि ने ब्रिटिश सरकार के लोगों से कहा कि वो उनकी मदद तभी करेगा जब वे हस्सैन की शर्तों को मानेंगे। इसके बाद ब्रिटिश सरकार के लोगों ने अपनी भी बहुत सारी शर्ते रखी।
लेकिन ये सौदा एक झूठ पर ठिका हुआ था। अल फारुकि का ये दावा कि उ के पास लाखों सैनिक हैं, झूठा निकला। इसकी बाद ब्रिटिश सरकार और अरबी संधि के रिश्तों में गहरी दरार पड़ गई।
सारे समझौते हो जाने के बाद अरबी लोगों के विद्रोह का इंतजार था।
टीई लॉरेंस (T. E. Lawrence) ब्रिटिश सरकार के एक आमी आफिसर थे जो हुस्सैन की अरबी सेना से मिले हुए थे। आज हम अरब देश के बारे में जो भी जाने हैं उन में से ज्यादातर बाते हमें लॉरेंस की लिखी गयी किताबों से पता चली है।
अल फारूकि का ये दावा कि उसके पास लाखों सैनिक हैं, झूठा निकलने के बाद भी ब्रिटिश सरकार के लोगों ने मक्का पर कब्जा कर लिया जो हुस्सैन का घर और उसका पावर बेस था।
मदीना पर करजा करने की कोशिश नाकाम रही। लॉरेंस ने अपनी किताबों में लिखा कि अरी सैनिकों के पास इतना अनुशासन और ट्रेनिंग नहीं थी कि वे ओटोमन की सेना का मुकाबला कर सके जिन्हें यूरोप के तरीकों से लड़ना सिखाया गया था। जब विद्रोह होने लगे तो ब्रिटिश सरकार की रुचि हुस्सैन और लॉरेंस के गोरिल्ला कम्पेय में नहीं रही।
1917 की जुलाई में हुस्सेन और लॉरेंस की सेना ने अकाबा पर कब्जा कर लिया। अकाबा पैलेस्टाइन का एक मात्र दक्षिणी बंदरगाह था जिसपर जीत हासिल करना बहुत
जरूरी साबित हुआ।
इसके बाद अंग्रेजों को लगा कि विद्रोह करने वाली अरबी सेनाएँं उनके काम आ सकती हैं। वे उनकी मदद से पैलेस्टाइन में चल रहे युद्ध में आसानी से दखलअंदाजी दे सकते हैं।
इसके बाद हुस्सैन और लॉरेंस की सेना अंग्रेजों की सेना के साध मिलकर पैलेस्टाइन पर आक्रमण करने चल पड़ी। दिसम्बर तक उन्होंने जैरूसालेम पर कब्जा कर लिया और जाईन पर हमला करने लगे। ओटोगेन के लोगों को इनमें बहुत तकलीफ झेलनी पड़ी।
अब जब उन्होंने बगदाद और जेरुसालेम पर कब्जा कर लिया था तो डामस्कस पर हमला करने के रास्ते खुल चुके थे।
मिडिल ईस्ट से युद्ध हो जाने के बाद राज्य पर कब्जा करने के लिए ब्रिटिश और फ्रेंच सरकारों ने आपस में समझौता
किया।
ब्रिटिश सरकार ने मार्क स्काईस के कहने पर हुस्सैन से समझौता किया तब मार्क दूसरी तरफ फ्रास के डिप्लोमैट फ्रैंकोइस पिकाट से भी समझौता करने लगा।
पिकाट का मानना था कि फ्रांस को मिडिल ईस्ट के राज्यों पर सीधा राज्य करना चाहिए। वो सीरिया और पैलेस्टाइन को फ्रांस के पूर्वजों की सम्पत्ति मानता था जिसे कुसेड्स ने मध्य काल में जीता था। जब उसने अपने इरादों के बारे में स्काईस को बताया तो ब्रिटिश और फ्रेंच सरकार ने आपस में समझौता किया। इस समझौते का नाम
स्काईस-पिकॉट एग्रीमेंट था।
अब आइए देखें कि इस समझौते की शर्ते क्या थी। जब फ्रांस और ब्रिटेन मिलकर मिडिल ईस्ट पर जीत हासिल कर लेंगे तब ब्रिटेन वहाँ राज करेगा जहाँ इस समय इराक और जॉर्डन है और इसके अलावा वो पैलेस्टाइन के दो बंदरगाह भी लेगा। फ्रांस का कब्जा वहाँ होगा जहां इस समय लेबानन है और वो सीरिया को अपने प्रभाव में रखेगा।
इस समझौते में बहुत सारी खराबियाँ आने लगी। सोरिया ने अपने मामलों में फ्रांस के लोगो की दखलअंदाजी का विरोध किया। इसके अलावा अरबी पेनिन्सुला को कागज़ पर आजादी दे दी गई थी लेकिन ब्रिटेन और फ्रांस अब भी उसके ऊपर राजनीतिक रूप से असर डाल रहे थे।
सबसे ज्यादा परेशानी पैलेस्टाइन में हुई। ब्रिटिश सरकार ने वहाँ पर जीओनिस्म के आइडिया को लागू करना शुरु कर दिया था। जीओनिस्म एक प्रोजेक्ट था जिसमें वे
पैलेस्टाइन को ज्यू धर्म के लोगों का घर बना देते और इस तरह से वे पेलेस्टाइन को फ्रांस के प्रभाव से बचा लेते।
जब इन दोनों देशों के समझौते में दरारें आने लगी तब इन दोनों ने मिलकर एक इंटरनेशनल एडमिनिस्ट्रेशन बनाया जो पैलेस्टाइन पर राज करने के मसले को सुलझाएगी। आने समय में स्काईस और पिकाट मिडिल में होने बहुत सी समस्याओं कारण
ब्रिटेन के ज़ीओनिस्म को सपोर्ट करने का नतीजा मिडिल ईस्ट में अच्छा नहीं हुआ।
1917 में जब ब्रिटिश सरकार ने पैलेस्टाइन के ज्यादातर हिस्सों पर कब्जा कर लिया तो फ्रांस समझा गया कि ब्रिटेन इस राज्य को उससे बाँटना नहीं चाहता था।
युद्ध से पहले ब्रिटिश सरकार को जीओनिस्म से कोई लगाव नहीं था क्योंकि पैलेस्टाइन के लोगों को इससे सख्त नफरत थी और पेलेस्टाइन की जमीन भी सूख चुकी थी जो और लोगों (ज्यू धर्म के लोगों को सम्भालने के लायक नहीं थी।
लेकिन लोहड जॉर्ज (Lloyd George) के प्राइम मिनिस्टर बनने की वजह से ब्रिटेन ने जोओनिस्म को सपोर्ट करना शुरू किया। वो पैलेस्टाइन को फ्रांस से बचाना चाहता था
ताकी वो सिर्फ ब्रिटेन के हाथ में ही रहे।
इसके अलावा स्काईस का मानना था कि अगर वे जीओनिस्म को सपोर्ट करेंगे तो उन्हें ज्यु धर्म के लोगों का युद्ध में सहारा मिलेगा। स्काईस का दोस्त गेराल्ड फिटसमोराइस था जो मानता था कि ज्यू धर्म के लोगों पर ओटोमैन के यंग तुर्क का राज है। उसी ने स्काईस को जीओनिस्म के महत्त्व के बारे में बताया।
इसके अलावा वे मानते थे की जीओनिस्म को सपोर्ट करने से दे रशिया के ज्यू धर्म के लोगों का भी इस्तेमाल कर सकते हैं।
1917 में जब ब्रिटेन पैलेस्टाइन पर कब्जा करने पर नाकामयाब होने लगा तब उसने बाल्फर घोषणा के साथ जीओनिस्म को सपोर्ट करने का फैसला किया।
इस घोषणा में लिखा गया था कि वे ज्यू धर्म के लोगों को पेलेस्टाइन की जमीन पर ला कर बसाएगे और साथ ही पैलेस्टाइन के लोगों की जरूरतों का भी खयाल रखेंगे। लेकिन बाल्फर घोषणा का नतीजा निकला – इसराइली-पैलेस्टाइन का विद्रोह जो उस हम के सबसे बड़े विद्रोहों में से एक था।
युद्ध के अंत में बहुत सारे वादे टूट गए और पश्चिमी शक्तियों ने मिडिल ईस्ट पर कब्जा कर लिया।
स्काईस अब भी इस भ्रम में था कि वो सभी से किए गए अपने चादों को निभा सकता है। लेकिन युद्ध के बाद असलीयत सामने आने लगी। सबसे पहले उन लोगों ने हुसैन को धोखा दिया।
ब्रिटिश सरकार फैसला किया कि वे हुस्सैन की जगह उसके बेटे फेज़ल को इस्तेगाल करेंगे क्योंकि वह उनके आदेश आसानी से मान लेगा। इसके बाद वे लोग इब्र साएद के पास गए जो परिवार का मुखिया था और आने वाले समय में सउदी अरब पर राज करता।
यह दो तरफा सौदेबाजी का खुलासा तब हुआ जब एलाइन फोर्स ने इमसकस पर अपना करजा किया। इसके बाद ब्रिटेन ने फैज़ल को अपने प्लान के बारे में बताया जिसे फैसल ने बेमन से मान लिया। वो जानता था कि इस पर उसका कोई कट्रोल नहीं था।
ब्रिटेन ने फैजल को बताया कि वे सीरिया को फ्रांस से बवाने के लिए एक प्रोटेक्टोरेट बना रहे हैं। उन्होंने उसे यह भी बताया कि वो सिर्फ एक कठपुतली की तरह काम करेगा और उसके पास कोई पावर नहीं होगी।
30 अक्टूबर को ओटोमैन ने ब्रिटेन के साथ एक एग्रीमेंट साइन किया जिसका मकसद सारे विवादों को खत्म करना था। इसके बाद एलाइड फोर्स भोटोमैन साम्राज्य का कोई हिस्सा अपने कहजे में नहीं रखेंगे। ओटोमैन की सरकार ने अपने लोगों को भरोसा दिलाया कि उन्होंने ब्रिटिश सरकार के आगे घुटने नहीं टेके बल्कि उनके साथ अपने फायदे के लिए समझौता किया है।
उनकी इसी गलतफहमी की वजह से 1920 में फिर से तुकियों ने आजादी के लिए लड़ाई लड़ी।
ओटोमैन के सरेंडर करने के दो हफ्ते बाद जर्मनी ने भी सरेंडर कर दिया और ब्रिटेन की फौज कान्सटेनटिनोपल पर कब्जा करने के लिए रवाना हुई। हालाँकि विश्व युद्ध खत्म हो चुका था पर मिडिल ईस्ट के सारे विवाद अब शुरु हो रहे थे।
मिडिल ईस्ट पर कब्जा करने के बाद वहाँ के लोगों ने ब्रिटेन और फ्रांस का विरोध करना शुरु किया।
युद्ध के समय ब्रिटिश सरकार ने इन साउद को बहुत सारे फड़ दिए थे। युद्ध के बाद साउद ने हमला करना शुरू किया। उसने सबसे पहले हुस्सैन पर हमला किया और 1925 मैं उसे देश से निकाल कर राज्य पर अपना कब्जा जमाने में कामयाब रहा। इस राज्य को हम आज सउदी अरब के नाम से जानता है। इसके अलावा उसने बहुत सारी जगहों पर जीत हासिल की।
इसके अलावा टर्की में एलाइल पावर्स यह नहीं देख पा रही थी कि वहाँ के लोगों ने आजादी के लिए युद्ध करना शुरू कर दिया है। 1920 में मुस्तफा कमाल अतातुर्क ने 30 हजार लोगों को लेकर विद्रोह किया और फ्रांस की एक छोटी सो युनिट पर अपना काजा कर लिया।
ब्रिटिश सरकार ने इसकी उम्मीद नहीं की थी। उन्होंने इसका जवाब दिया। उन्होंने कासटैनटिनोपल पर अपना कब्जा कर लिया और वहाँ पर मार्शियल लो को लागू कर दिया।
इसी के साथ एलाइल देशों ने घोषणा की कि वे ओटोमेन साम्राज्य को बाटेंगे जिसकी वजह से तुकियों का विद्रोह और बढ़ गया और उनमें देश भक्ति की भावना आने लगी।
अतातुर्क ने अपने अभियान की मदद से एलाइड शक्तियों को देश से बाहर निकाला। उस देश को आज हम टकी के नाम से जानते हैं। 1922 में उसकी सेना ने सुल्तान महमूद पर आक्रमण किया और ओटोमैन साम्राज्य के 600 साल के राज़ का मेत किया।
जब ब्रिटेन ने सीरिया पर से अपना कब्जा छोड़ा तब एक नया स्काईस पिकाट एग्रीमेंट ने जन्म लिया। इसके मुताबिक अरबी पेनिनसुला को छोड़कर कोई भी राज्य पूरी तरह से आजाद नहीं होगा। पैलेस्टाइन, इराक और इजिप्ट पर ब्रिटेन का और सीरिया और लेबानन पर फ्रांस का कब्जा था।
ब्रिटेन और फ्रांस ने फैसला किया था कि वो इन देशों को आजादी दिलाने में मदद करेगा लेकिन फिलहाल उसका इरादा कुछ और ही था।
लेवनेंट में ब्रिटेन और फ्रांस के मैंडेट की वजह से बहुत सारी समस्याएं खड़ी हो गई।
जब ब्रिटेन की सेनाएं सीरिया से निकल गई तब फैजल को कुछ शक्तियाँ मिल गई थी जिससे सीरिया एक आजाद देश बन गया और फ्रांस एक सलाहकार की तरह काम करने लगा। लेकिन जब 1920 में फ्रांस माएक नया प्रधान मंत्री चुना गया तो बात बिगड़ गई। एलेक्सेंडर मिलेरेंड (Alexandre Millerand) सीरिया को आजाद नहीं करना चाहता था। इसके अलावा अरब के राष्ट्रवासियों ने फैजल के फ्रांस के साथ समझौते को नामंजूरी दे दी।
मार्च में सीरिया के लीडर्स ने उसे एक आजाद देश बना दिया। इ का नतीजा यह हुआ कि फ्रांस ने सीरिया से युद्ध की शुरुआत कर दी जो इमसकस पर उनके कब्जे से स्वतम हुई। इसठे बाद फैज़ल को देश से निकना पड़ा।
ब्रिटिश सरकार के मैंडेट की वजह से पैलेस्टाइन में कुछ ऐसी ही समस्या पैदा हुई। पैलेस्टाइन के लोगों ने जीओनिस्म का जमकर विरोध किया।
जोओनिस्म से सेनाएँ उभर आई और इसके बाद 1920 में जेरूसालेम में दंगे होने लगे। ब्रिटिश सरकार को लगने लगा कि जीओनिस्म प्रोजेक्ट के लिए पैलेस्टाइन का विरोध एक खतरा है।
ब्रिटिश सरकार ने बहुत सारे समझौते करने की कोशिश की। उन्होंने कहा कि वे उन लोगों को बिजली और पानी की सुविधा देंगे और पैलेस्टाइन को ज्यू धर्म के लोगों का घर नहीं बनाएंगे बल्कि उनकी जमीन वही पर रहेगी। लेकिन उनकी सारी कोशिश बेकार गई। पैलेस्टाइन के लीडरों ने जीओनिस्म प्रोजेक्ट को अपने लोगों के लिए और मानव अधिकारों के लिए एक खतरा बताया।
लेकिन इसके बाद भी उन्होंने अपना प्रोजेक्ट जारी रखा। 1922 में लोग आफ नेशस ने इस प्रोजेक्ट के मंजूरी दे दी। जीओोनिस्म प्रोजेक्ट में से कुछ बातों को निकाल कर अब उसे छोटे रूप में नए राज्य पर लागू किया जाएगा।
ओटोमैन साम्राज्य का पतन बहुत सारी समस्याएं खड़ी कर गया जिन्हें अब भी सुलझाना बाकी है।
1922 में मिडिल ईस्ट को अलग अलग राज्यों में बाँट दिया गया। उसे वो रूप दे दिया गया जिससे आज हम परिचित है। मिडिल ईस्ट पर राज करने की यूरोप की ख्वाहिश अब काफी हद तक कम हो गई थी। इसके अलावा उनके पास पैसों और लोगों कि कमी पड़ गई जिनकी मदद से वे वहाँ राज,कर सकें।
ब्रिटेन के हुस्सैन को सपोर्ट करने की वजह से बहुत अशांति फैल गई थी और हुस्सैन को देश छोड़कर जाना पड़ा था। इसके अलावा फैजल इराक पर राज करने लगा ना की सीरिया पर। 1922 में लोईड जार्ज प्रधान मंत्री नहीं रहे जिसकी वजह से ब्रिटेन को अपने जीओनिस्म प्रोजेक्ट को छोड़ना पड़ा।
मोटोमन साम्राज्य खत्म हो चुका था। अब उसकी जगर पर बहुत सारी सीमाएं बना दी गई थी जहाँ कहीं यूरोप के लोग ताज करते थे, कहीं राजाओं का राज था तो कहीं विपक्षी ग्रुपों का राज था। उनके दिए गए आदेशों में हमेशा कंफ्यूशन रहती थी।
इसके बाद ब्रिटेन और फ्रांस की वजह से बहुत सारे युद्ध होने लगे जो आज भी चल रहे हैं। इनमें से कुछ के नाम हैं अरब-इसराइल युद्ध, इराकी युद्ध और सीरिया का गृह युद्ध।
अंत में जब रोम का पतन हुआ तब यूरोप के 1000 साल की लड़ाई का अंत हुआ। इन सभी युद्धों के परिणाम माने वाले समय में दुखने को मिल सकते हैं।