BENJAMIN FRANKLIN by Walter Isaacson.

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यह किताब किसके लिए है?

-अमेरिकी इतिहास की पढ़ाई करने वाले स्टूडेंट्स के लिए

-उन लोगों के लिए जो अमेरिकन पॉलिटिक्स को जानने में रुचि रखते हैं

-हर उस व्यक्ति के लिए जो जानना चाहता है कि केस कोई व्यक्ति समाज को गहराई से प्रभावित कर सकता है

लेखक के बारे में

CNN के पूर्व चैवरगैन वाटर आइसेकसन ने कई बैस्टसेलिंग किताबें लिखी हैं जिनमें से Einstein: His Life & Universe; kissinger A Biography: और Steve Jobs: A Mari Who Thought Different प्रमुख हैं। लेखक होने के साथ ही शाहसक्सन एक एजुकेशनल आगनिजेशन ऐपन इंस्टिट्यूट के प्रेसीडेंट और CEO भी हैं।

एक बच्चे के रुप में बेंजामिन के तेवर काफी बगावती थे और ज्यादा स्कूल ना जाने के बावजूद भी वे काफी इंटेलिजेंट थे।

इतिहास में ऐसे बहुत ही कम लोग हुए हैं जिन्हें अपनी फील्ड ऑफ एक्स्पर्टीज बदलने में कामयाबी हासिल हुई हो। हेनरी फोर्ड ने औद्योगिक क्राति की रफ्तार को बढ़ाया; अल्बर्ट आइन्स्टाइन ने फिजिक्स के तिलिस्मों से पर्दा उठाया वहीं टेड टर्नर ने मॉडर्न मीडिया को बनाने में अपना योगदान दिया है।

हम सब लोगों ने अपने-अपने फील्ड को आगे बढ़ाने में अपना योगदान दिया है। हालांकि ऐसे बहुत ही कम लोग हुए हैं जिन्होंने एक नहीं बल्कि कई सारी अलग-अलग फील्ड्स में अपना योगदान दिया है और उन्हें आगे बढ़ाने में मदद की है। ऐसी ही एक शख्सियत हैं अमेरिकन लेजेंड- “बैंजमिन प्रंकलिना अपने लंबे और महान करियर में बेंजमिन ने बिजली के नेचर से जुड़ी अपनी कुछ खोजों के जरिए विज्ञान की दुनिया को काफी हैरान किया है। वे अमेरिकन प्रिंटिंग इंडस्ट्री के अनी पाइनीयर्स में से एक थे। इसके अलावा उन्होंने यूनाइटेड स्टेट्स की पोलिटिकल फाउंडेशन को बनाने में भी अपना बहुमूल्य योगदान दिया है।

बेंजामिन का जन्म 17 जनवरी सन 705 को अमेरिका के बोस्टन में हुआ था। फ्रेंकलिन में बवपन से ही कुछ ऐसे लक्षण मौजूद थे जो आजादी और आविष्कारों के प्रति उन्हें प्रेरित करते थे। स्विमिंग सीखने का उनका तरीका इस बात का एक अच्छा उदाहरण है।

एक नौसिखिये तैराक के रुप में बेंजामिन चाहते थे कि वे और तेजी से तेरें। हालांकि ऐसा करने में उनके पैर के अंगूठे और उँगलियाँ उनका साथ नहीं दे रहे थे। अपने तैरने की गति बढ़ाने के लिए फ्रेंकलिन ने अपने स्विमिंग हइकिपमेंट्स से छेड़छाड़ करनी शुरू कर दी। आखिरकार उन्हें ऐसा करने में सफलता मिल ही गई। उन्होंने अपने हाथों के लिए पैडल्स बनाए और पैरों के लिए फ्लिपर्स।

फ्रेंकलिन के पेरेंट्स ने उन्हें शिक्षा दिलाने की योजना बनाई जिसे फ्रेंकलिंन को चर्च में भेजा। हालांकि उनके पिता जोशीआ (Joshiah) को जल्द ही एहसास हो गया कि उनके सबसे छोटे बेटे यानि बेजमिन में क्लर्जी बनने का कोई लक्षण मौजूद नहीं है और उसमे धर्म को लेकर कोई गहरी निष्ठा उपस्थित नहीं है।

बेंजमीन के पिता खाना खाने से पहले हर बार ऊपर वाले का शुक्रिया अदा किया करते थे जिसने उन्हें भोजन उपलब्ध कराया है। हालांकि बैंजमिन को अपने पिता का यह रिचूअल काफी बोरिंग लगता था। एक बार फ्रेंकलिन परिवार सर्दियों के लिए मीट को अपने गोदाम में स्टोर और उसे प्रीवेन्ट कर रहा था तभी बैजमीन ने अपने पिता से कहा, यहीं पर सारे भोजन के लिए भगवान का शुक्रिया अदा कर लीजिए ताकि आपको रोज-रोज ये रिचूअल न दोहराना पड़े और इससे आपका कीमती समय भी बचेगा।

फ्रेंकलिन दो साल तक एक लोकल स्कूल में गए जहाँ उन्होंने राइटिंग और कुछ अंकगणित यानि Arithmetic से जुड़ी कुछ बेसिक चीजे सीखीं। इसके बाद जब वे 10 साल के हुए तो उन्होंने एक अप्रेंटिस के रूप में काम करना शुरू वर दिया। पहले उन्होंने अपने पिता के अंडर में काम किया और बाद में अपने भाई जेम्स के साथ, जो बोस्टन का पहला स्वतंत्र अखबार “New England Courant” निकाला करते थे। आखिरकार फ्रेंकलिन को अपने भाई के साथ काम करते हुए बोरियत महसूस होने लगी और एक अप्रेंटिस के तौर पर अपने सबॉर्डनेट रोल से उन्हें चिड होने लगी। खासकर तब वे बहुत छिंड़चड़े हो जाते थे जबकि उनका भाई जेम्स किसी काम से इंग्लैंड गया होता और उन्हें कई महीनों तक सारा अखबार अपने बलबूते पर संभालना होता।

और शायद यही वजह थी कि एक टीनेजर होने के बावजूद भी फ्रेंकलिन ने खुद के दम पर कुछ नया करने का फैसला किया।

बेंजमिन फ्रेंकलिन की यात्रा ने उन्हें अमेरिका से इंग्लैंड और इंग्लैंड से वापस अमेरिका ले गई लेकिन उनका सपना सिर्फ और सिर्फ लिखना था।

1723 में जब फ्रेंकलिन सिर्फ 17 साल के थे तो वै फिलाडेल्फिया जाने के लिए एक छोटी सी नाव में सवार हो गए। फिलाडेल्फिया में उन्हें सेमुअल कीमर नाम के एक आदमी के यहाँ काम मिल गया जो कि एक प्रिंटर था। बैजमिन के अनुसार, वह एक Odd Fish” यानि सनकी आदमी था। बैज्मीन को सैमुएल के फिलासफी से जुड़े लबे-लंबे डिस्कशन को सुनने में बड़ा मज़ा आता था जिसकी वजह से वे उसके यहाँ काम करते रहे। सैगुएल के यहाँ रहते हुए ही बैजमिन ने अपनी बहस करने के कौशल यानि डिबेटिंग स्किल्स को धार देना शुरू किया जो बाद की जिंदगी में उनके बहुत काम आयी।

पेंसिलवेनिया के गवर्नर सर विलियम कीथ से दोस्ती हो जाने के बाद बेंजमीन को लंदन जाने का मौका मिला; जहाँ उन्होंने एक प्रिंटर के असिस्ट्ट की हैसियत से काम करते हुए 2 साल बिताए। इसके बाद फिलाडेल्फिया में एक क्वेकर मर्चन्ट ने बैंजमिन को अपने जनरल स्टोर में एक क्लर्क की नौकरी ऑफर की, जिसको उन्होंने स्वीकार किया और चापस अमेरिका आ गए। जमीन को बिजनेस की काफी अच्छी परस थी हालांकि उनका असल इन्टरस्ट किसी और ही चीज में था और वो चीज थी- “राइटिंग।’

फ्रैंकलिन राइटिंग के प्रति अपने प्रेम से अच्छी तरह वाकिफ थे। अपने भाई की प्रिंटिंग प्रेस मे काम करने के दौरान वे बहुत सारी किताबें और अखबार पड़ा करते थे। ब्रिटिश लेखक जॉन बनियन की किताब ‘Piligrims Progress” ने उन्हें काफी गहराई से प्रभावित किया। और तरक्की और सेल्फ-इमपलूवमेंट के बारे में इस किताब में मौजूद विचारों ने इस हद तक प्रभावित किया कि उनकी छाप जमिन के बाद के जीवन में भी देखी जा सकती है।

फ्रेंकलिन की दूसरी सबसे पसंदीदा किताब थी डेनियल डिफो (Daniel Defoe) की “An Essay Lipon Projects: दिफो का मानना था कि महिलाओं को शिक्षा के उस अधिकार से चचित रखना अमानवीय है जिसका आनंद पुरुष स्वतंत्र रूप से ले रहे हैं।

फ्रेंकलिन हमेशा अपना ज्ञान बढ़ाने और राइटिंग स्किल्स को सुधारने का प्रयास करते रहते थे जिसके वे नियमित तौर पर ब्रिटिश अ्वबार The Spectator’ में छपने बाले Essays पड़ा करते थे। कुछ समय बाद जिन Essays को वे अखबार में पड़ा करते थे उन्हें अपने शब्दों में लिखने लगे और फिर वे अपने वर्क की तुलना ऑरीजिनल वर्क से करते थे।

फ्रेंकलित के शुरुआती Essays उनके भाई के अखबार “The England Courant में पब्लिश हुए थे। इन मजेदार ऐसेज़ को फ्रेंकलिन अपने नाम से पब्लिश नहीं करते थे बल्कि चे इन्हें एक काल्पनिक महिला “Mrs silence Dagood” के नाम से पब्लिश करते थे। एक टीनेजर के हिसाब से फ्रेंकलिन का शुरुआती काम बहुत ज्यादा कल्पनाओं से भरा हुआ था।

एक जैसी सोच रखने वाले विचारकों का ग्रुप बना लेने के बाद कम्यूनिटी और सरकार से जुड़े फ़ेंकলिन के विचारों को बल मिलने लगा। पेंसिलवेनिया की एक दुकान में क्लर्क के तौर पर काम करते हुए फ्रेंकलिन ज्यादा दिन नहीं टिक पाए और वे वापस ईग्लैंड चले गए, जहाँ उन्होंने एक बार फिर सैमुएल कीमर की प्रिटिंग शॉप में काम करता शुरु कर दिया। हालांकि यह उनकी जिज्ञासा और ऐम्बिशन को शांत करने के लिए काफी नहीं था।

1727 में फ्रेंकलिन ने लेदर ऐप्रन क्लब के नाम से एक क्लब बनाया जिसे बाद में unto के नाम से जाना गया। उस वक्त मौजूद एक अन्य क्लब “ओल्डर मैन्स क्लब” के उलट Junto के ज्यादातर मेंबर्स युवा व्यापारी और कारीगर थे जो वहाँ पर हाल-फिलहाल में हुए इवेंट्स पर चर्चा करने के लिए इकट्टे होते थे।

समाजिक सुधारों को लेकर फ्रेंकलिन के ज्यादातर महान विचारों का आधार जून्टो ही था। जून्टो ही वह जगह थी जहाँ पर फ्रेंकलिन के मन में सब्स्क्रिप्शन लाइब्रेरी, मित्र (Neighbourhood) पुलिस, एक वालटीर फायर डिपार्मर के साथ ही साथ एक अकेडमी बनाने का आइडिया आया। फ्रेंकलिन के द्वारा शुरू की गई अकेडेमी को ही आज्ञ हम “यूनिवर्सिटी ऑफ पेनसिलवेनिया के नाम से जानते हैं।

सरकार और सुरक्षा को लेकर फ्रेंकलिन के विचार उस वक्त नवजात थे। 747 में उनके मन में पेनसिलवेनिया की कोलोनीयल सरकार से स्वतंत्र एक जनसेवा (Voluntary Military) बनाने का विचार आया। उनका मानना था कि कालोनी फ्रांस और इंडियन (तेटिव अमेरिकन) दुश्मनों से मिल रही धमकियों पर सही एक्शन नहीं ले पा रही है इसलिए इस तरह की एक मिलिटरी की काफी जरूरत है।

बहुत बड़ी संख्या में, करीब 10 हज़ार, लोगों ने इस जनसेना को जॉइन करने के लिए हस्ताक्षर किये और फ्रेंकलिन को अपना कर्नल (colonel) चुनने पर मुहर लगाई हालांकि फ्रेंकलिन ने कर्नल बनने से इनकार कर दिया। इसके बजाय फ्रेंकलिन ते सेना और इसके डिविजस के लिए मोटो और बैज बनाने का जिम्मा सभाला। एक साल बाद ही यानि 748 में यह सेना भंग (disband) हो गई हालांकि तब तक युद्ध का खतरा भी टल चुका था।

हो सकता है कि उस वक्त फ्रेंकलिन को इस बात का अंदाजा न रहा हो कि सरकार के काम को एक प्राइवेट ग्रुप के जरिए करना कितना कठिन हो सकता है; हालांकि कालोनी के मालिक, थॉमस पेत्र, इस बात से काफी अच्छी तरह वाकिफ थे। पेंन ने फ्ेंकलिन के कामों को कलोनियल सरकार के लिए अपमानजनक बताया और फ्रेंकलिन को एक खतरनाक व्यक्ति करार दिया। हालांकि सत्ता की असली लड़ाई अभी भी करीब 20 साल दूर थी। इस दौरान फ्रेंकलिन की रुचि राजनीति से हटकर नैचुरल वल्ल्ड की तरफ शिफ्ट हो गई और उन्होंने प्रकृति में खुद को पूरी तरह से डूबा दिया।

फ्रेंकलिन की जिज्ञासा ने उन्हें कुछ शानदार वैज्ञानिक खोजों, खासकर बिजली से जुड़ी खोजों के लिए प्रेरित किया।

श्रीक दार्शनिक प्लेटो ने कहा है जब तक आप अपनी जिंदगी पर सवाल नहीं उठाते; तब तक आपकी जिंदगी जीने लायक नहीं है। बेंजामिन फ्रेंकलिन ने इस स्टैट्मन्ट को पूरी तरह साकार किया है।

फ्रेंकलिन की ‘कभी न संतुष्ट होने वाली जिज्ञासा ही वह चीज थी जिसने उन्होंने फेमस बनाया। 1743 में बोस्टन की एक विजिट के दौरान फ्रेंकलिन ने एक प्रदर्शन देखा जिसमें बिजली पर कुछ ट्रिक्स दिखाई जा रही थी। ये वो वक्त था जब कोई ठीक से नहीं जानता था कि बिजली कैसे काम करती है।

उस प्रदर्शन से आकर्षित होकर प्रोक्लीन ने बिजली को लेकर अपने खुद के प्रयोग करने शुरु कर दिये। उन्होंने जल्द ही पता लगाया कि आकाश में चमने चाली बिजली और इलेक्ट्रिसिटी के बीच एक कनेक्शन है- इस बात को बहुत सारे लोगों ने सूपनेचरल करार दिया।

उन्होंने एक एक्सपेरिमेंटल स्थिति पर विचार किया जिसमे एक आदमी आधी-तूफान के दौरान हाथों में लोहे की एक रोड लिए पहाड़ की चोटी पर खड़ा है। उसने हाथ में लोहे की रॉड इसलिए पकड़ी है ताकि आसमानी बिजली उसकी तरफ आकर्षित हो। इस वैचारिक प्रयोग ने न सिर्फ यह साबित किया किं मटेलिक चीजें बिजली को आकर्षित करती हैं बल्कि इससे यह बात भी पुख्ता हो गई कि आसमानी बिजली भी एक तरह की इलेक्ट्रिसिटी ही होती है।

फ्रेंकलित ने इस शानदार प्रयोग की व्याख्या लंदन की रॉयल सोसाइटी को लिखे अपने लेटर में की। यह एक्सपेरिमेंट बहुत तेजी से फैला। मई 1752 में फ्रांस के एक वैज्ञानिक समूह ने भी फ्रेंकलिन जैसा ही एक प्रयोग दोहराया जिसका नतीजा भी सेम रहा।

इसी बीच फ्रेंकलिन ने अपने आप यह प्रयोग दोबारा दोहराने का प्रयास किया। इस बार उन्होंने रॉड नहीं बल्कि पतग के माँजे के साथ लिपटी मेटल की वायर का इस्तेमाल किया। पतंग को हवा में उड़ाकर फ्रेंकलिन ने यह साबित किया कि उनका प्रयोग सही था क्योंकि मेटल की पर बिजली गिरी। इसके बाद उन्होंने लाइटनिंग यानि बिजली गिरने से उत्पन्न चार्ज को एक स्पेशल जार में स्टोर किया जिसे Leyden Jar कहते हैं।

कलिन की इस सफलता लाइटिनंग रोड के आविष्कार को प्रेरित किया। फ्रेंकलिन की आगे की खोजों ने उन्हें और ज्यादा प्रसिद्धि दिलाई। फ्रेंकलिन ही वे पहले व्यक्ति थे जिन्होंने आपस में कनेक्टेड Leyden Jar के ग्रुप को बैटरी नाम दिया था।

फ्रेंकलिन के काम के तारीफे भी हुई और कई लोगों ने उनकी आलोचना भी की। अब्बे नॉलेट (Abbe Nollet) जैसे धर्मगुरुओं ने उनके काम को सीधे-तौर पर भगवान का अपमान करार दिया जबकि ग्रीक फिलासफर इम्मानुएल कान्त ने उन्हें भगवान की आग को चुराने वाले नया न्यू प्रोमेथेसिंस” घोषित किया। इसके बावजूद उनके काम को पूरे विज्ञान जगत ने सराहा। उन्हें हार्वर्ड और येल जैसी यूनिवर्सिटीस द्वारा डिग्री से सम्मानित किया गया।

विज्ञान जगत में अपनी शानदार सफलता के बाद फ्रेंकलिन एक बार फिर राजनीति की तरफ वापस लौटे। हालांकि उन्हें जल्द ही इस बात का अंदाजा हो गया कि यह फील्ड यानि राजनीति लाइट के साथ खेलने से कई गुना ज्यादा रिस्की है। 1747 यानि जब से बेंजामिन ने जनसेवा बनाई थी तब से इस बात को लेकर काफी कन्फ्युशन था कि फ्रांस और नेटिव अमेरिकन ट्राइब्स के साथ होने वाली लड़ाई में इस सेना को फाइनेन्शल सपोर्ट कौन देगा। इस बात को लेकर कालोनी के मालिकों और वहाँ के निवासियों के बीच तनाव की स्थिति बनी रही।

T753 में जॉर्ज वाशिंगटन ने फ्रांस को उखाड़ फेंकने का एक असफल प्रयास किया जिसके कारण उसी साल उन्हें ओहायो (Ohio) वाले जेल में भेज दिया गया। ब्रिटिश कालोनी अर्थराइटिस ने अपनी हरेक कालोनी के प्रतिनिधि (delegates) से अलबैनी (Albany) न्यूयार्क में होने वाली एक का फ्रेंस में शिरकत करने की अपील की।

कॉलोनियों के बीच क्चॉपरेशन बनाने का आइडिया आसानी से नहीं आया था। साल 1751 में फ्रेंकलिन ने अपने दोस्त जेम्स पार्कर को एक लेटर लिखा था जिसमें उन्होंने लिखा था-“कितना अजीब है कि ‘Six Nations Of Savages” यानि नेटिव अमेरिकन ट्राइब्स के छ: राज्य एक हो गए हैं जबकि अग्रेजों की एक दर्जन कॉलोनियाँ एक साथ नहीं आ पा रही हैं।”

दोस्त के नाम लिखे फ्रैंकलीन के इस खत में एक योजना का जिक्र था। फ्रेंकलिन ने इस योजना में नेशनल काँग्रेस यानि राष्ट्रीय संसद के बारे में बताया था जिसका हरेक प्रतिनिधि कोलोनीस के माध्यम से चुना जाएगा। और इस काँग्रेस का हेड “प्रेसीडेंट जनरल होगा जिसे किंग द्वारा अपॉइन्ट करा जाएगा।

इस लेटर में एक नए पोलिटिकल आइडीया की रूपरेखा भी तैयार की गई थी शिसे बाद में फेइलिज़म (Federalism) के नाम से जाना गया। इसके अनुसार, राष्ट्रीय सरकार (General Govt) को सुरक्षा और पक्षिणी विस्तार जैसे बड़े मुद्दों पर फैसला करने का हक था जबकि प्रत्येक लोकल कालोनी के अपनी गवर्निंग पावर और नियम-कानूनों को अपने ढंग से चलाने की पर्याप्त छूट थी।

हालांकि कलिन का मलबनी प्लान फेल हो गया क्योंकि कलोनीमल असेम्ब्लींस का मानना था कि यह एक तरह से उनकी सत्ता में दखलंदाजी है। फ्रेंकलिन के मुताबिक, इग्लैंड में इस प्लान को बहुत ज्यादा खुले डेमक्रेटिक नजरिए से देखा गया। उन्हें लगा कि इस प्लान का मकसद लोकतंत्र की स्थापना करना है। वे लोग जो कोलोनीस को चलाते थे फ्रेंकलिन को शक की नजर से देखते थे। हालांकि यह जल्द बदलने वाला था।

फ्रेंकलिन ने कॉलोनियों की आपसी लड़ाई को इंग्लैंड तक पहुंचाया मगर वे कालोनी के मालिकों को झुकने पर मजबूर नहीं कर पाए।

अलबनी की कान्फ्रन्स और फ्रेंकलिन के Unification यानी एकीकरण प्लान के असफल होने के तीन साल बाद यानि 1757 में पेनसिलवेनिया असेंबली ने दोबारा इस मुद्दे को उठाया। उन्होंने ताकतवर ब्रिटिश खानदानों से इस मुद्दे पर बातचीत करने के लिए फ्रेंकलिन को लंदन भेजा जिन्हें कॉलोनियों का मालिकाना हक दिया गया था। हालांकि वे ऐसा नहीं कर पाए और फिर उन्हें सीधे ब्रिटिश सरकार से बात करनी पड़ी। इस तरह फ्रेंकलिंन ने अपने 5 साल समझौते में ही बिता दिए।

1757 में फ्रेंकलिन और पेनसिलवेनिया के मालिक थॉमस पेन के बीच मीटिंग्स का दौर चला। कोलोनीस की मालिकों का कहना था कि फ्रेंच और दूसरी नेटिव ट्राइब्स से शूरक्षा देने के नाम पर जिस टैक्स का प्रावधान है उसे वापस ले लिया जाना चाहिरा हालांकि असेंबली का मानना था कि कालोनी के मालिकों की मांग पूरी तरह से अन्यायपूर्ण और क्रूर है। एक फॉर्मल कम्प्लेन्ट में फ्रेंकलिन ने पेन फॅमिली की आलोचना की और उन्हें पेनसिलवेनिया कालोनी का “असली मालिक मानने से इनकार कर दिया हालांकि यह बात पेन परिवार को जरा भी रास नहीं आई।

इसके बाद बात राजनीतिक सत्ता की आई। असेंबली ने नेटिव ट्राइब्स का मुकाबला करने के लिए कगिसनर्स का एक प्रुप बनाया हालांकि पेन ने असेंबली के फैसले पर अपने बौटो अधिकार का प्रयोग किया। इस पर असेंबली ने उन्हें जवाब दिया कि पेनसिलवेनिया के पूर्व मालिक विलियम पेन, जो कि थॉमस पेन के पिता थे, ने 1701 में असेंबली को Charter of privileges में कुछ खास अधिकार दिए थे। इस जवाब से गुस्सा होकर थॉमस ने फ्रेंकलिन के साथ सारे कान्टेक्ट तोड़ दिष्ट फ्रेंकलिन के साथ दोबारा एक होने में उन्हें एक साल का वक्त लगा।

हालांकि एक साल बाद भी पेन अपने पोलिटिकल डिसिशन को लेकर अडिग रहे। उनके मुताबिक पेनसिलवेनिया असेंबली सिर्फ और सिर्फ Advice And Consent” यानि “सलाह और सांत्वना” ही दे सकती है। यह वो वक्त था जब फ्रेंकलिन को इस बात का एहसास हो चुका था कि कोलोनीज़ के मालिकों को बदलने से उनका कोई भला नहीं होने वाला है। इस नाकामी के बाद फ्रेंकलिन कई सारे फिलोसपर्स को एक साथ ले लाये; जिनगें विषयों के फिलोफर 1762 में फ्रेंकलिन वापस अमेरिका लौटे जहाँ उन्होंने राजनीतिक स्थिति को बुरी तरह से बिगड़ा हुआ पाया। धम भी शामिल थे।

फिलाडेल्फिया वापस लौटकर फ्रेंकलिन को बहुत हैरानी हुई। कलोनीअल रेज़िङ्ट्स और नेटिव ट्राइब्स के बीच का संघर्ष बद से बदतर होता जा रहा था। लड़ाकुओं का एक दल, जो खुद को Paxton Boys कहते थे, लगातार शहर में घुसने और वहाँ मौजूद नेटिव इडियंस को मारने की धमकी दे रहे थे। उनका कहना था कि जो भी कलोनीअल रेज़िडर नेटिव इंडियन को छिपाते हुए पकड़ा गया उसे भी मौत के घाट उतार दिया जाएगा। फ्रेंकलिन इस बात से वाकिफ थे कि मौजूदा कलोनीअल सरकार इस स्थिति से ठीक से निपट नहीं पाएगी इसलिए फ्रेंकलिन ने एक बार फिर लंदन वापस जाने का फैसला लिया। इस बार उनका सफर पूरे 10 साल का था। 1765 में जब फ्रेंकलिन अपने सफर पर निकल चुके थे तो ब्रिटिश कॉलोनियों ने फ्रांस और नेटिंब अमेरिकी दुश्मनों से लड़ने के लिए फंड इकट्ठा करने के लिए स्टाम्प पर टैक्स लगाना शुरू दिया। इस “स्टाम्प ऐवर” ने कॉलोनियों के साथ ही साथ फ्रेंकलिंन के राजनीतिक दृष्टिकोण को भी बेहद गहराई से प्रभावित किया।

बहुत सारे कलोनीमल लीडर्स के लिए यह ऐक्ट ही एकमात्र रास्ता था। थॉमस जेफरमेन नाम के एक आदमी ने एक नया ग्रुप बनाया और उनका मकसद ब्रिटिश सत्ता को हमेशा-हमेशा के लिए उखाड़ फेंकना था। अक्टूबर 1765 में 9 ब्रिटिश कोलोनीस स्थिति पर चर्चा करने के लिए एक साथ आई। अलबनी कान्फ्रन्स के बाद से यह पहला मोका था जब ब्रिटिश कलौनीअल पावर के एकीकरण की बात हुई। फ्रेंकलिन ने शुरुआत में स्टाम्प ऐक्ट का समर्थन किया लेकिन जल्द ही उन्हें पता चला कि कलोतीअल ऐटिटूड में कितना बदलाव आ चुका है और उनके सागते जो विकल्प मौजूद थे वे काफी भयंकर थे। फिलाडेल्फिया में एक गुस्सायी भीड़ ने फ्रेंकलिन के घर पर हमला कर दिया जहाँ मौजूद उनकी पत्नी ने हाथ में राइफल लेकर अपनी जान बचाई।

फ्रैंकलिन अभी भी कालोनीअल स्वतंत्रता के आइडिया पर टिके हुए थे। उन्होंने जल्द ही महसूस किया कि या तो ब्रिटिश पार्लियामेंट को कोलोनीस पर सारे नियम लागू करने पड़ेंगे या फिर कोई भी नियम नहीं। फ्रेंकलिन के इस आइडिया में समझौते के लिए कोई जगह नहीं थी। 1775 में फ्रेंकलिन अपने नए नजरिए के साथ वापस फिलाडेल्फिया लोटे जहाँ उनका स्वागत एक देशभक्त की तरह किया गया।

फ्रेंकलिन के लेखन ने आजादी की बातें करनी शुरु की जिसने पूरे अमेरिका को आजादी का रास्ता दिखाया।

फ्रैंकलिन जानते थे कि अगर कोलोनीस ब्रिटिश रुल से आजादी की मांग करती है तो उन्हें एक दूसरे पर निर्भर रहना पड़ेगा। 21जुलाई 1775 को फ्रेंकलिन ने अपने विचार कॉन्टिनेन्टल काँग्रेस के साथ साझा किये जो ब्रिटेन में कॉलोनीस का प्रतिनिधित्व करती थी। फ्रेंकलिन के ड्राफ्ट का टाइटल Articles of confederation and perpetual union’ था जिसे बहुत ही गहनता से और ध्यानपूर्वक पड़ा गया।

फ्रेंकलिन का विचार एक सिंगल-चैम्बर काँग्रेस बनाने का था जिसमें मेम्बर प्रत्येक कालोनी की जनसंख्या के हिसाब से एलेक्ट किये जाने थे। इसके अलावा काँग्रेस का कोई एक प्रेसीडेंट नहीं होगा; इसके बजाय 12 सदस्यों की एक इबस्वलूसिव काउन्सिल बैठाई जाएगी। इसके अलाला फ्रेंकलिन का मानना था कि अगर ब्रिटेन कोलोनीस की मांग मानने और उन्हें आर्थिक सहायता देने के लिए तैयार हो जाता है तो कॉनफेडरेशन को भंग करने पर विचार किया जा सकता है। ज्यादातर कलोनीभल लीडर्स की तरह ही फ्रेंकलिन भी अपनी लड़ाई कुछ खास ब्रिटिश मिनिस्टर के साथ देखा करते थे ना कि सीधे तौर पर ब्रिटिश क्राउन के साथ लेकिन तभी 1776 में एक ऐसा पम्पलेट प्रकाशित हुआ जिसने बहुत सारे लोगों की सोच को बदला, खासकर कोलोनीस की आजादी की लड़ाई के प्रति सोच को।

इस पापलेट का नाम था- कॉमन सेन्स, जिसे थॉमस पेन ने लिखा था। हालांकि उस वक्त बहुत सारे लोगों का गानना था कि इसे पफ्रेंकलिन द्वारा लिखा गया था जबकि फ्रेंकलिन ने सिर्फ इसे प्रकाशित होने से पहले चेक किया था और मेन को सुधार करने की सलाह दी थी। अपने प्रोस में पेन ने बड़े जोरदार ढंग से कोलोनीस की ब्रिटेन से आजादी की वकालत की थी। इसके अलावा उनका मानना था कि ऐसा कोई भी प्राकृतिक या धार्मिक तर्क नहीं है जो इंसानों को मालिक और गुलाम में बांटने की इजाजत देता हो।

पेन के इस पम्पलेट की 1 लाख 20 हजार से ज्यादा कॉपियां बिकी जो उस वक्त बहुत बड़ी संख्या थी। इस पम्पलेट ने कलोनीअल पाँवर्स के खिलाफ लोगों को रेली के रूप में जुटने की हिम्मत दी।

6 जुलाई 1776 को कॉन्टिनेन्टल काँग्रेस ने आजादी के पक्ष में वोट किया। आखिरकार जब जैफरसन ने आजादी का घोषणापत्र लिखा तो फ्रेंकलिन ने उसमें कुछ सुधार किये। एक जगह पर जैफरसन ने लिखा था- “We hold these truths to be sacred and undenieble” जिसे प्रकलिन “We hold these truths to be self-evident” में चेंज करवाया। घोषणापत्र में यह छोटा-सा बदलाव फ्रेंकलिन के जमाने के हामनिस्ट विचारकों के द्वारा उनपे पड़े गहरे प्रभाव का एक छोटा सा उदाहरण है। फ्रेंकलिन का मानना था कि भगवान ने ईसानी अधिकार सिर्फ कुछ इसानों के लिए नहीं बनाए है बल्कि उन्होंने इसे दुनिया में मौजूद हर इसान में बराबरी से बाटा है।

ब्रिटेन के खिलाफ अमेरिका की लड़ाई में फ्रांस को अपने ग्रुप में मिलाने में फ्रेंकलिन ने बहुत बड़ी भूमिका निभाई। अमेरिका की B कोलोनीस अब ब्रिटिश रूल से आजाद हो गई थी मगर अभी भी उनके उनका एक बड़ा दुश्मन मोजूद था। इस दुश्मन के खिलाफ लड़ाई जीतने के लिए नए अमेरिका को एक दोस्त की जरुरत थी जो कि था फ्रांसा लेकिन फ्रांस से बातचीत करने के लिए कौन जाएगा? बेशक, बेजमीन फ्रेंकलीन। अमेरिकन रेचलूशन की सफलता अब बस उन्हीं के हाथ में थी। साल 1776 के आखिरी दिनों में फ्रेंकालीन फ्रांस के तत्कालीन विदेश मंत्री Comte de vergennes से मिलने के लिए फ्रांस गार।

फ्रेंकलिन ने Vergennes के सामने अपनी बात रखते हुए उन्हें बताया कि वे नवजात अमेरिका, ब्रिटेन और फ्रास के बीच में सत्ता का एक हेल्थी बैलन्स चाहते हैं। फ्रेंकलीन को पता था कि Vergennes इस बात को अपने फायदे के नज़रिए से जरूर देखेंगे। अगर फ्रांस अमेरिकन्स को सपोर्ट करता तो यह ब्रिटेन के लिए एक बड़ी हार होती; जिससे उसे अपनी अमेरिकन कोलोनीस और वेस्टइंडीज दोनों को खोना पड़ता।

फ्रेंकलिन ने फ्रांस से वादा किया कि अगर अमेरिका लड़ाई में जीत जाता है तो वह उसे वेस्टइंडीज दे देगा। वही अगर फ्रांस उसे समर्थन नहीं करता है तो उसे मज़बूरी में ब्रिटेन का साथ लेना पड़ेगा जो उसके लिए सही नहीं होगा।

Vergennes ने अमेरिका को सपोर्ट करने को लेकर हामी भर दी, हालांकि फ्रास को ऐसा करने में थोड़ा वक्त लगा। और फिर आखिरकार फ्रास के राजा लुइस XVI ने इसकी आधिकारिक घोषणा कर दी। घोषणा होने के तुरंत बाद फ्रांस के लोग राजमहल के गेट पर इकट्ठे हो गए। वे उस फैमस अमेरिकन को देखना चाहते थे जिसने यह समझौता किया था। फ्रांस की जनता ने फ्रेंकलिन की “लाइव फ्रेंकलिन (Vive Franklin)” चिल्लाकर उनका स्वागत किया।

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