INDIA AFTER GANDHI by Ramachandra Guha.

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INDIA AFTER GANDHI by Ramachandra Guha
इण्डिया आफ्टर गाँधी - बुक समरी

इण्डिया आफ्टर गाँधी

"इण्डिया आफ्टर गाँधी" बुक में आपको लेखो का एक कलेक्शन मिलेगा. इस बुक के हर एक ऐसे या लेख को ऑथर ने काफी डीप रीसर्च करने के बाद लिखा है जिनमे 1950 से लेकर 2000 के शुरुवाती टाइम तक की इन्डियन हिस्ट्री कवर करने की कोशिश की गयी है. इसमें आपको आजादी की घोषणा से लेकर कोंस्टीटयूशन के निर्माण और पाकिस्तान के बनने तक की जानकारी मिलेगी. इस बुक में आप इण्डिया में हुए फर्स्ट जनरल इलेक्शन के बारे में भी पढेंगे और कश्मीर के कंट्रोवर्शिय्ल इश्यू के बारे में भी. अगर आप जानना चाहते है कि हमारा देश क्यों सर्वाइव करता है और इसकी पहचान क्या है तो आपको ये बुक ज़रूर पढनी चाहिए.

ये समरी किसको पढनी चाहिए?

स्टूडेंट्स, सिविल सर्वेन्ट्स, एसपाईरिंग पोलीटीशियंस, इण्डिया के सभी सिटीजंस और वर्ल्ड के सभी एसपाईरिंग लीडर्स को ये बुक पढनी चाहिए.

इस बुक के ऑथर कौन है? ऑथर के बारे में

राम चन्द्र गुहा एक रिस्पेक्टेड हिस्टोरियन, इकोनोमिस्ट और कोलुम्निस्ट है. इण्डिया की पोलिटिकल, इकोनॉमिक, सोशल, एन्वायर्नमेंटल और क्रिकेट हिस्ट्री लिखने में वो एक एक्सपर्ट रहे है. वो हिन्दुस्तान टाइम्स, द टेलीग्राफ और अमर उजाला जैसे न्यूज़ पेपर्स में रेगुलर कोंट्रीब्यूटर रहे है. गुहा को 2009 में पद्मा भूषण मिला है जोकि इण्डिया का तीसरा सबसे बड़ा सिविल अवार्ड है.

परिचय (Introduction)

आजादी के बाद देश का क्या हुआ? वो कौन लोग थे जिन्होंने इतिहास रचा था? ऐसी कौन सी घटनाए थी जिसने 50 सालो में इण्डिया की पॉलिटिक्स, इकोनॉमी और सोसाइटी को शेप दिया था?

तो इन सब सवालों के जवाब आपको इस बुक summary के अंदर मिलेंगे. इण्डिया की जियोग्राफी, कल्चर और हेरिटेज़ सब काफी रिच है. हम एक डेवलपिंग कट्री है मगर हम अभी भी सर्वाइव कर रहे है. ये बुक Summary पढकर आपको अपने इन्डियन होने पर प्राउड होगा.

फ्रीडम और पैरासाइट (Freedom and Parricide)

इण्डिया का ऑफिशियल इंडिपेंडेंस डे है 15 अगस्त, 1947. ब्रिटिश ने इस डेट को इसलिए चूज़ किया था क्योंकि इस दिन सेकंड वर्ल्ड वार में जापान ने सरेंडर किया था, क्योंकि लार्ड माउंटबेटेन, जोकि इण्डिया के लास्ट वाईसरॉय थे अब और वेट नहीं करना चाहते थे. कुछ एस्ट्रोलोजर्स मानते है कि 15 अगस्त अनलकी डेट है. इसलिए नई दिल्ली में 14 अगस्त को सुबह 11 बजे से ही फॉर्मल इवेंट्स शुरू हो गए थे. और इसे लेजिसलेटिव कौसिल ऑफ़ राज में कोंस्टीट्यूशनल असेंबली ने लीड किया था.

एजेंडे की फर्स्ट चीज़ थी पेट्रियोटिक सोंग वन्दे मातरम् गाना, फिर उन लोगो के लिए 2 मिनट का साइलेंस जिन्होंने इण्डिया की फ्रीडम के कुर्बानी दी थी. उसके बाद औरतो ने नेशनल फ्लैग प्रेजेंट किया उस रात तीन खासम खास लोगो ने स्पीच दी थी, इनमे से पहले से इन्डियन मुस्लिम्स के रिप्रेजेन्टेटिव. सेकंड, फिलोसोफी और पोलिटिकल ऐनालिस्ट के लिए जान की डॉक्टर, और थर्ड कोई और नहीं बल्कि खुद नेशन के फर्स्ट प्राइम मिस्निटर जवाहर लाल नेहरु थे.

उस दिन के बाद से उनकी इंस्पायरिंग स्पीच को कई बार कोट किया गया था. एक बार एक जर्नलिस्ट ने रिपोर्ट दी थी कि सिल हाउस के बाहर ग्राउंड ने सेलिब्रेट किया था. इसमें हिन्दू, सिख, मुस्लिम हर रिलिजन के लोग थे. सब के सब नेहरु जी को देखना चाहते थे. एक औरत, दो अछूत, एक सिख और दो प्र एक प्राइम मिनिस्टर भी थे. इसमें इंडियन नेशनल कांग्रेस के 6 रिप्रेजेन्टेटिव्स और एक बिजनेसमेन, (यानी वो लोग जो भगवान को नही मानते) भी शामिल थे. ये वो लोग थे जिन्हें आजाद इण्डिया के लिए एक नया कोंर्टीट्याशन तैयार करना था.

15 अगस्त की सुबह कोंस्टीट्यूट असेंबली ने ओथ लेकर (swore in) गवर्नमेंट हाउस में अपना ऑफिस संभाला. इवनिंग में फ्लैग सेरेमनी हुई और पटाखे भी छोड़े गए. दिल्ली में लोग जब फ्लैग होइस्ट कर रहे थे और खुशियाँ मना रहे थे, हमारे फादर ऑफ द नेशन गाँधी जी उस टाइम कलकत्ता में थे. वो किसी भी सेलिब्रेशन में शामिल नहीं हुए.

दरअसल देश में हुए हिन्दू मुस्लिम दंगों की वजह से जान और माल का जो नुकसान हुआ था उससे गांधी जी बेहद दुखी थे, बीबीसी ने गाँधी जी से इंडिया की आजादी के लिए कोई मैसेज देने की रिक्वेस्ट की तो गांधी ने उन्हें नेहरु के पास जाने को बोला, बीबीसी वालो ने गांधी से बोला" आपकी स्पीच ट्रांसलेट करके पूरे वल्र्ड में ब्रोडकास्ट की जायेगी लेकिन गांधी फिर भी नहीं माने, उन्होंने बीबीसी वालो से कहा में इंग्लिश में बोलना भूल चुका हैं", और सेलिब्रेट करने के बजाये गांधीजी ने 15 अगस्त,1947 के दिन फास्ट रखा, क्योंकि वो जानते थे इंडिया को आजादी तो मिल गयी है लेकिन इसकी उसे काफी भारी कीमत इंडिया और पाकिस्तान पिछले 2 महीनो से हिंदूओं और मुस्लिम्स के ही या और वो कीमत थी देश का बंटवारा.

इण्डिया के दो पार्ट हो चुके थे, में चुकाना डी थी। बीच स्ट्रगल चल रहा था. में कलकत्ता से दंगे शुरू हुए थे. दोनों तरफ के हज़ारो मासूम लोग मारे गए थे. और ये दंगे-फसाद तब तक नहीं रुके जब तक कि पकिस्तान नहीं बना. मुस्लिम्स लीग के लीडर थे मोहम्मद अली जिन्ना, उन्होंने भी गाँधी और नेहरु की तरह इंग्लैण्ड से लॉ की पढ़ाई की थी. जिन्ना पहले इन्डियन नेशनल कांग्रेस के मेंबर थे, मगर उन्होंने इसलिए पार्टी छोड़ी थी क्योंकि उन्हें लगता था कि कांग्रेस हिन्दुओं को ज्यादा फेवर करती है. उन्हें लगता था कि पार्लियामेंट में मुस्लिम्स को ज्यादा अच्छे से रिप्रेजेंट नहीं किया जाता है.

एक्चुअल में कलकता के दंगों का एक ही मकसद था, हिन्दू और मुस्लिम में फूट डालना. और ये ब्रिटिश लोगों की एक ऐसी चाल थी कि जाने से पहले इस देश के टुकड़े कर दिए जाए. इन दंगो में कलकत्ते से लेकर पूरे बंगाल, बिहार और पंजाब तक खून की नदियों बही थी. उस वक्त गांधी जी 77 साल के हो चुके थे फिर भी चो हिन्दू, मुस्लिम और सिखों को समझाने के लिए 100 मील तक सफ़र करते थे. उन्होंने सात हफ्तों तक गाँव-गाँव जाकर लोगों को समझाया. 15 अगस्त, 1947 की शाम गांधी जी ने कलकत्ता में एक प्रेयर मीटिंग रखी जिसे करीब 10,000 लोगों ने अटेंड किया था.

द बिगेस्ट गेम्बल इन हिस्ट्री (The Biggest Gamble in History)

वेस्टर्न सोसाइटी में फर्स्ट टाइम जब इलेक्शन हुआ था तो वो सिर्फ एलीट क्लास तक ही लिमिट था, वर्किंग क्लास आदमी और औरतो को चौटिंग का हक नहीं था. लेकिन इंडिया में, जोकि एकदम न्यू डेमोक्रेसी थी, जब फर्स्ट इलेक्शन हुए तो हिस्ट्री क्रिएट हुई. यहाँ 27 से साल से ऊपर चाहे मर्द हो या औरत, माइनोरीटीज से हो या अनपढ़ सब वोट दे सकते है. 1947 में हमारे देश को आजादी मिली थी और उसके सिर्फ दो साल बाद इलेक्शन कमिशन बनाई गयी.

1950 में सुकुमार सेन चीफ इलेक्शन कमिश्नर इलेक्ट हुए थे और पार्लियामेंट में रिप्रजेंटेशन ऑफ़ पीपल एक्ट अपूब हुआ था. सुकुमार सेन के कंधो पर काफी बड़ी रिस्पोंसेबिलिटी थी. उन्होंने लंदन से एक प्राइम मिनिस्टर नेहरू को उम्मीद थी कि नेशनल इलेक्शन काफी जल्दी यानी 1951 से ही स्टार्ट हो जायेंगे, मगर कमिश्रर सेन ने उन्हें धथोंड़ा वेट करने को बोला. 175 मिलियन इंडियंस को वोटिंग का राईट मिला था. जिसमे 21 साल से बड़े लोग धे और उनमे से भी 85% अनपढ़ थे. तो इतने लोगों को आईडेंटीफाई करके रजिस्टर करना काफी बड़ा चेलेंजिंग टास्क था.

अब रजिस्ट्रेशन के बाद भी काफी काम बचा था, अनपढ़ वोटर्स के लिए बेलट पेपर्स और बॉक्सेस का इंतजाम करना था, फिर पोलिग स्टेशन भी बनाने थे, पोलिंग स्टेशन्स पर पोलिंग ऑफिसर्स की ड्यूटी लगानी थी. तो ज़ाहिर है इसके लिए उन्हें ऑनेस्ट और हार्ड वर्किंग ऑफिसर्स की ज़रूरत थी. इलेक्शन के लिए फाइनल शेड्यूल जनवरी से फरवरी 1952 के बीच रखा गया. ये सारे फिगर्स हमे दिखाते है कि इण्डिया की हिस्ट्री में से कितना बड़ा गैम्बल यानि जुआ था.

पोजीशंस संख्या
कुल पोजीशंस 4,500
पार्लियामेंट के लिए 500
प्रोविंशियल असेम्बलीज के लिए 4,000
पोलिंग स्टेशन्स 224,000
स्टील बैलट बॉक्सेस 2 मिलियन
वलवर्स 16,500
इलेक्शन ऑफिसर्स 56,000
पुलिसवाले 224,000

हमारी कंट्री इतनी बड़ी और डाइवरसिटी से भरी है कि दूर-दराज़ के गाँवों तक पहुँचने के लिए हमे ब्रिजेस की ज़रूरत थी. इन्डियन ओसीन में हमारे इतने छोटे-छोटे आईलैंड है. और उन जगहों तो पहुँचने के लिए हमे शिष्स की भी काफी ज़रूरत थी. इसके अलावा हमारे देश में कई और भी जियोग्राफिकल चेलेन्जेस है जैसे कि कल्चरल और ट्रेडिशनल डिफरेंस, नोर्थन इण्डिया के कई पार्ट्स में तो औरतो ने अपने ओरिजिनल नाम तक रजिस्टर नहीं करने दिए.

दरअसल ज्यादातर ये औरते किसी की बीवी या किसी की माँ के नाम से जानी जाती थी. सुकुमार सेन काफी चिढ़ गए थे. उन्होंने इलेक्शन ओफिशिरल्स को ऑर्डर दिया कि दुबारा जाकर उन औरतों के रियल नेम पता करो, बावजूद इसके 2.8 million औरतो ने अपने असली नाम नहीं बताए. और बाद में उन्हें लिस्ट से आउट कर दिया गया. अनपढ़ लोगों की प्रोब्लम सोल्व करने के लिए पोलिटिकल पार्टीज़ के पिक्टोरियल सिम्बल्स बनाये गए.

ताकि अनपढ़ लोग इन सिम्बल्स को पहचान कर अपनी चॉइस की पार्टी को वोट दे सके, जैसे कि बैलो की जोड़ी, झोपडी, हाथी या मिटटी का लैंप. एक और मल्टीपल बैलट बॉक्सेस यज़ करना, हर बॉक्स में एक पोलिटिकल पार्टी का सिम्बल बना होता था. जिन सोल्यूशन था, लोगो पढना नही आता था वो अपना बैलट पेपर उस बॉक्स में डाल देते थे जिस पार्टी को उन्हें वोट देना है.

फ्रोड वोटर्स की भी प्रोब्लम थी तो इसे सोल्व करने के लिए साइंटिस्ट ने एक ऐसी इंक बनाई जो वोटर की फिंगर में एक हफ्ते तक रहती थी. लोगों को वोटिंग के लिए एंकरेज करने के लिए इलेक्शन कमिशन ने एक डोक्यूमेंटरी फिल्म प्रोड्यूस की जिसे पूरे इण्डिया के करीब 3000 सिनेमा हाल्स में दिखाया गया था. कमिशन ने आल इंडिया रेडियो में कई सारे प्रोग्राम्स भी स्पोॉंसेर्ड किये, इन सब चीजों का एक ही मकसद था कि लोगों को एजुकेट किया जाए कि एक डेमोक्रेसी में इलेक्शन की और वोटिंग की कितनी इम्पोर्टस होती है.

सिक्योरिंग कश्मीर (Securing Kashmir)

पाकिस्तान और इण्डिया कश्मीर पर अपने कब्ज़े को लेकर कई सालो से स्टूगल कर रहे है. क्या एक हिन्दू डोमीनेटिंग मगर सेक्युलर नेशन में मुस्लिम स्टेट पीसफुल रह पायेगा? या फिर ये लैंड लॉक्ड टेरीटोरी अपने दम पे सर्वाइव कर पायेगा? फरवरी 1950, में यूनाईटेड नेशन ने इण्डिया और पाकिस्तान दोनों से रिक्वेस्ट की कि वो कश्मीर से अपनी-अपनी आर्मीज़ हटा ले लेकिन दोनों में से कोई पीछे नहीं हटा. इण्डिया ने पाकिस्तान को बोला कि वो पहले अपनी आर्मी हटाए.

तो पाकिस्तान ने भी मी इण्डिया को पहले कश्मीर का नेशनल कांफ्रेंस रीमा करने को बोला, फाइनली यूनाईटेड नेशन भी इस इश्यू को सोल्व करने में नाकामयाब रहा. अर्टिकल 370 में लिखा है "कश्मीर भारत का एक अभिन्न अंग है". जबकि पाकिस्तानी पोलिटीशियंस को लगता है कि कश्मीर पर उनका हक है और इस हक को किसी भी सर्टिफिकेशन की ज़रूरत नहीं है, मगर एक ब्रिटिश जर्नलिस्ट था जिसने कश्मीर के इश्यू पर बगैर कोई फेवर लिए एक रिपोर्ट दी.

लिओनेल फिएल्डेन (Lionel Fielden) आल इण्डिया रेडियो के के लीडर रहे थे. पाकिस्तान और इंडिया उनके कई सारे फ्रेंड्स धे जो प्रेस से जुड़े हुए थे. 1950 में Lionel इण्डिया और पाकिस्तान दोनों कंट्रीज़ गए और अपने दोस्तों से इस बारे में बात की. Lionel ने कहा "दोनों कंट्रीज़ एक दूसरे पर इलजाम लगाती है और एक दुसरे को गलत बताती है" इन्डियन प्रेस काफी मीठी-मीठी बाते करता है मगर रियल में ये लोग बड़े जिद्दी है जो खुद को हमेशा सही बताते है| और दूसरी तरफ पाक्सितानी प्रेस है काफी एरोगेंट और एग्रेसिव है.

फिएलडेन (Fielden) ने अपनी बात ये कहते हुए खत्म की कि अगर ये मामला सोल्त ना हुआ तो आगे चलकर इसका खामियाज़ा दोनों देशो के आम लोगों को भुगतना पड़ेगा. क्योंकि कश्मीर मसले पर दोनों देश अपनी मिलिट्री पर काफी पैसा खर्च कर रही है जबकि इस बजट को दोनों देश अपनी गरीबी दूर करने में यूज़ ते है.

इसी बीच शेख मोहम्मद अब्दुल्ला, कश्मीरी नेशनल कांग्रेस के लीडर ने जम्मू और कश्मीर के लोगो की तरफ से अपनी बात रखने का ऑफर दिया, शेख ने कहा "कश्मीर को इंडीडेट स्टेट बनाना प्रैक्टिकल नहीं होगा, और ना ही ये पाकिस्तान में मिल सकता है इसलिए कश्मीर के लिए बेस्ट आप्शन यही है कि वो इंडिया में मिल जाए लेकिन उसके लिए शर्त ये होगी कि कश्मीर का अपना प्राइम मिनिस्टर होगा और इसका पलेग भी इण्डिया से अलग होगा" हलाकि प्रजा परिषद यानी जम्मू की पीपल'स पार्टी इसके सख्त खिलाफ थे.

जम्मू के लीडर्स चाहते थे कि कश्मीर पूरी तरह इण्डिया का पार्ट बने, उन्होंने एक स्लोगन निकाला "वन कोस्टीलाशन, वन हेड ऑफ़ स्टेट, वन फ्लैग".

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इंडिया की इकोनॉमी का विकास

माइंडसेट बनाने की काफी ज़रूरत थी ताकि प्राइवेट एंटरप्राइजेस सभी यो कर सके। 1960 से 1970 के बीच गवर्नमेंट ने एक मिक्स्ड इकोनॉमी की तरह मूव करना शुरू कर दिया था।

लेकिन इंडस्ट्रीएलिस्ट चाहते थे कि गवर्नमेंट फ्री इकोनॉमी का डिफरेंस समझ सके। जैसे कि उन दिनों सिंगापोर, ताईवान और साउथ कोरिया में होता था, इन कंट्रीज की इकोनॉमिक पोलीसीज़ फ्री एंटरप्राइजेस को सपोर्ट करती थी। जिसकी वजह से इन देशो में काफी अच्छी इकोनॉमी सक्सेस देखी जा सकती थी।

1980 के टाइम में इण्डिया के की-इंडस्ट्रीयल सेक्टर्स के लाइसेंस गो में हटा दिए गए जिसकी वजह से सिचुएशन काफी इम्यूब हुई। इन प्रो बिजनेस पोलीसीज़ की वजह से इन्डियन इकोनोमि ज्यादा प्रॉफिटेबल और प्रोडक्टिव होगी हा गया था, अब अगला कदम था, प्रो मार्किट पोलीसीज़ बनाना जो इंडियन और फॉरेन फरम्म्स को देश के अंदर-बाहर स्मूथली अपना बिजनेस चलाने की फ्रीडम दे।

राजीव गांधी और पीवी नरसिम्हा राव का दौर

साल 1991 में पीवी एन राव प्राइम मिनिस्टर बने। वो एक ऐसे मिनिस्टर थे जो इंदिरा और राजीव गांधी की लीडरशिप के नीचे चुपचाप काम करते रहे थे, मगर जब उन्होंने पोजीशन ली तो उनका बोल्ड और स्ट्रॉग केरेक्टर निकल कर सामने आया। पीएम राव ने फाइनेंस मिनिस्टर डॉक्टर मनमोहन सिंह को पूरी फ्रीडम दी थी कि उन्हें जैसा ठीक लगे उस हिसाब से नेसेसरी इकोनोमिक रीफोर्म्स एक्शन इम्प्लीमेंट करे।

डॉक्टर मनमोहन सिंह इण्डिया की इकोनॉमी सेक्टर में काफी ग्रेट चेंजेस लेकर आए, उनकी वजह से रूपये की वैल्यू स्ट्रोंग हुई। और इम्पोर्टेड गुड्स के लिए कोटा भी खत्म कर दिया गया था। टैरिफ घटा दिया गया। एक्सपोर्टर्स और डायरेक्ट फॉरेन इन्वेस्टर्स को एकरेज किया गया, इसके अलावा डोमेस्टिक मार्किट को भी पूरी फ्रीडम दी गयी।

प्रमुख बदलाव और उनका प्रभाव

फाइनली, इंडस्ट्रीयल लाईसेंस हटा लिया गया। इंडस्ट्रीज़ अब बिना गवर्नमेंट इंटरवेंशन के ऑपरेट कर सकती थी सिर्फ आर्मरी, हथियार, हेजार्डीयस केमिल्स, अल्कोहल और सिगरेट मेन्यूफेक्चरिंग छोड़ कर ये पॉलिसी बाकि सब पर अप्लाई होती थी। इंडस्ट्रियल सेक्टर के अलावा सर्विस सेक्टर को भी लिबरल कर दिया गया था। एयर ट्रेवल, टेलीकम्यूनिकेशंस, बैंकिंग और इश्योरेंस, ये सारे पहले स्टेट के कण्ट्रोल में थे पर 1990 से इंडियन एंटरप्रेन्योर्स का एवरेज किया गया कि वो इन सेक्टर्स में भी इन्वेस्टमेंट करे।

इससे इण्डिया की जीडीपी और पर इनकम में काफी बड़ा इन्क्रीमेंट देखा गया, साल 1970 में जो जीडीपी रेट 3.5% था वो 1980 में 5.2% बढ़ गया था। और 1990 में करीब 6.0% की बढ़ोतरी हुई। सर्विस सेक्टर में सबसे ज्यादा प्रोग्रेस देखने को मिली।

सॉफ्टवेयर इंडस्ट्री की भूमिका

1990 के दौर में इसमें एवरेज हर साल 8.7% की ग्रोथ देखी गयी। सॉफ्टवेयर इंडस्ट्री की वजह से सर्विस सेक्टर में एक सिग्नीफिकेंट चेंज आया और इसका रेवेन्यू रेट 1990 में $97 मिलियन था जो बढकर 2000 में 58,000 मिलियन हो गया।

वर्ष GDP वृद्धि दर
1970 3.5%
1980 5.2%
1990 6.0%

ये फिगर काफी इप्रेसिव था। साल 2000 में इण्डिया के अंदर करीब 340,000 सॉफ्टवेयर इंजीनियर्स थे और हर साल 50,000 फ्रेश ग्रेजुएट्स इसमें एड होते जा रहे थे। कमाल की बात ये थी कि इनमे 20% तो लड़कियां ही थी।

बॉडी शॉपिंग और आउटसोर्सिंग

सॉफ्टवेयर इंडस्ट्री की ये फास्ट पेस्ड ग्रोथ 2004 में रिफ्लेक्ट हुई। और आज देश में 600,000 सॉफ्टवेयर इजीनियर्स 513 बिलियन की सर्विस प्रोवाइड कर रहे है। हमारा देश एक इंडिजेनस प्रोडक्ट के तौर पे अपनी सॉफ्टवेयर इंडस्ट्री पर प्राउड कर सकता है। जहाँ ये लोग इन्डियन यूनिवरसिटीज से निकले फ्रेश इन्डियन इंजीनियर्स को रीकूट करके अपनी कंपनीज को आगे बढ़ा रहे हैं।

हालांकि उन सॉफ्टवेयर फर्म्स ज्यादातर अपने फॉरेन क्लाइंट्स के लिए काम करती है। साल 2000 के शुरुवाती टाइम में बॉडी शौपिंग का ट्रेंड था यानी अमेरिका और यूरोप जैसे देश काम के लिए इन्डियन इंजीनियर्स को शोर्ट टर्म वीज़ा देकर बुलाते थे।

इंटरनेट और कॉल सेंटर इंडस्ट्री का उदय

फिर इंटरनेट के बढ़ते यूज़ के साथ आउटसोर्सिंग का ट्रेंड आया। इन्फोसिस, टीसीएस और विप्रो जैसी कुछ इन्डियन सॉफ्टवेयर कंपनीज जिन पर देश प्राउड कर सकता है, ये सब की सब न्यू यॉर्क स्टॉक एक्सचेंज में लिस्टेड है। और इनके प्रोडक्ट्स इंटरनेशनल लेवल पर यूज़ होते हैं।

और दुनियाभर में इनकी सब्सिडायरी कंपनीज़ भी है। ज्यादातर सॉफ्टवेयर इंडस्ट्री हैदराबाद, चेन्नई, दिल्ली जैसी सिटीज़ में है और सबसे ज्यादा बेंगलोर में है जो इण्डिया की सिलिकॉन वैली है। इन्फोसिस और चिप्रो के हेडक्वार्टर्स भी यही पर है।

इसके अलावा हमारी कंट्री में कॉल सेंटर इंडस्ट्री भी काफी कर रही है। और इंडियंस के पास ये भी एडवांटेज है कि हम लोग बढ़िया इंग्लिश बोल सकते है और बाकियों से वन टेंथ कॉस्ट पर काम करने को तैयार है।

साल 2002 में इण्डिया के अंदर 300 से ऊपर कॉल सेंटर्स थे जिनमे 10,000 के करीब एम्प्लोईज़ काम करते थे। कॉल सेंटर इंडस्ट्री हर साल 70% ग्रो कर रही है। 2008 में इण्डिया में आलरेडी 2 मिलियन सेंटर एजेंट्स थे जो एनुअल $25 बिलियन जेनरेट करके इण्डिया की जीडीपी में 3% की बढत कर रहे है।

फॉरेन इन्वेस्टमेंट और इसकी भूमिका

हमने इंडस्ट्रीयल और सर्विस सेक्टर की बात की। अब फॉरेन इन्वेस्टमेंट की बात करते है। 1997 से 2000 के बीच गवर्नमेंट ने कई सारी कंपनीज के 10,000 के करीब प्रोपोज़ल अपरूव किये थे इसमें फूड प्रोसेसिंग, पेपर प्रोडक्ट्स, केमिल्स, टेलीकम्यूनिकेशन जैसे बिजनेस ऑफर किये गए थे।

इनमें कुछ बड़े इन्येस्टर्स है हौंडा, फोर्ड, सैमसंग, नोकिया, पेप्सी और कोका कोला जिनके एडवरटीजमेंट बड़ी-बड़ी सिटीज़ के अंदर देखे जा सकते है। इसके अलावा माइक्रोसॉपट, जनरल इलेक्ट्रिक और फिलिप्स ने भी अपने ऑफिस इण्डिया में खोले है।

व्हाई इण्डिया सर्वाइव्स (इण्डिया क्यों सर्वाइव कर लेता है)

इण्डिया में कई मेजर एक्सट्रीमिस्ट और सेशेनिस्ट मूवमेंट्स हुए है। नार्थ में कश्मीर और सिख सेप्रेटिस्ट और नार्थ ईस्ट में मिज़ो और नागा सेप्रेटिस्ट की वजह से देश में कई बार अशांति का माहौल पैदा हुआ है। सेन्ट्रल इण्डिया में माओईस्ट रेवोल्यूशन और साउथ में कम्यूनिस्ट लोगों ने देश में काफी उथल-पुथल मचाई है क्योंकि इनमे से हर एक ग्रुप इण्डिया से अलग होकर खुद का अपना इंडीपेंडेटी स्टेट बनाना चाहता है।

लेकिन टोटल में ये इन्डियन कोंस्टीट्यूट का सिर्फ 20% है। इसलिए हम प्राउडली बोल सकते है कि 90% इण्डिया आज भी एक है और हमेशा रहेगा।

इण्डिया का फोर्थ फिपथ पार्ट हमारी चुनी हुई सरकार की ऑथोरिटी और पॉवर को एक्सेप्ट करता है और उसका सम्मान करता है। और इन एरिया में देश का हर सिटीजन फ्रीडम है जीने के लिए, एजुकेशन लेने के लिए, अपनी रोजी रोटी कमाने के लिए और बिजनेस वगैरह करने के लिए।

क्योंकि हमारे देश में जो पॉलिटिकल स्टेबिलिटी है वो इकोनोमिक स्टेबिलिटी की वजह से ही आई है। दोनों एक दसरे से जुड़े है। एक व्होल नेशन के तौर पर हम जितना स्ट्रोगली फील करेंगे उतना ही हमारे इकोनॉमिक स्टेबिलिटी की फाउन्डेशन डाल दी थी।

जैसे एक्जाम्पल के लिए भिलाई स्टील मिल में आन्ध्रा प्रदेश, गुजरात और पंजाब के लोग साथ काम करते है और मिल कर रहते हैं। ये लोग एक दुसरे के कल्चर, लेंगुयेज़ और खान-पान की रिस्पेक्ट करते है। और ये प्रूफ है इस बात का कि हम लोग अपने आप को एक सिंगल नेशन के रूप में देखते है और हमेशा देखते रहेंगे।

प्राइवेट सेक्टर की भूमिका

और अभी रीसेंटली कुछ टाइम से हमारा प्राइवेट सेक्टर भी नेशनल इंटीग्रेशन में काफी इम्पोटेंट रोल अदा कर रहा है। तमिल नाडू में बेस्ड सीमेंट कंपनीज़ हरियाणा जैसे स्टेट्स में अपने प्लांट्स लगाए है। असाम में पैदा हुए और पले बढे डॉक्टर्स अब मुंबई जैसी सिटीज में क्लिनिक्स चला रहे है।

हैदराबाद के कई आईटी इंजीनियर्स बिहार जैसी जगहों से आये है। सिर्फ प्रोफेशनल्स ही इकोनॉमिक माइभेट्स नहीं बने बल्कि स्माल जॉब्स करने वाले लोग जैसे राजस्थान के कारपेंटर हो या फिर उत्तर प्रदेश के नाई, लोग भी बैंगलोर, मुंबई जैसी बड़ी सिटीज में जाकर रोजगार कर रहे है।

एक और बात हमे ध्यान रखनी होगी। और वो ये कि हमे सिर्फ अर्बन एरिया का ही डेवलपमेंट नहीं करना है बल्कि हमारे रुरल एरियाज को भी देश की इकोनॉमिक ग्रोथ का पार्ट बनना होगा तभी देश सही मायनों में तरक्की कर पायेगा।

कल्चरल फैक्टर का महत्व

पोलिटिकल और इकोनोमिक फेक्टर के अलावा कल्चरल फैक्टर भी उतना ही इम्पोटेंट है जो देश को एक धागे में बांधता है। यहाँ सबसे ज्यादा इन्फ्लुएश हमारे हिंदी सिनेमा यानी बॉलीवुड का है। क्योंकि हर इन्डियन चाहे किसी भी कास्ट, क्लास, रिलिजन या लँगुएज़ से बिलोंग करता हो, चाहे औरत हो या आदमी, बॉलीवुड सबके दिलो पर राज़ करता है।

इण्डिया के हर स्टेट का अपना कल्चर और ट्रेडिशन है। जैसे एक्जाम्पल के लिए गुजरात, पंजाब, राजस्थान, बंगाल, केरला ये सारे स्टेट एक दुसरे हर चीज़ में अलग है। फिर भी हिंदी सिनेमा की यूनीक एबिलिटी है जो हर कल्चर की खूबियों को साथ लेकर चलती है और पूरे देश सूत्र में पिरोती है।

हर हिस्से से डायरेक्टर्स, म्यूजिशियंस, एक्टर्स और टेक्नीशियन्स हिंदी सिनेमा में काम करते है और इससे जुड़े है। हिंदी सिनेमा में वो खूबी है जो हर रिलिजन, कल्चर की अच्छी-अच्छी बाते एडोप्ट करके ऐसी मूवीज बनाता है जो ऑडियंस के दिलो पे छा जाती है।

हिंदी सिनेमा की प्रभावशाली भूमिका

सड़को पर, धरो और स्कूल्स में या ऑफिस में इन पॉपुलर मूवी के गाने गाए जाते है और बजाये जाते है। अब जैसे आप किसी भी ब्लाक बस्टर हिंदी मूवी का कोई फेमस डायलाग बोल के देखो कोई भी झट से पहचान लेगा। क्योंकि हिंदी सिनेमा ने अपनी एक अलग लेंगुएज बनाई है जिसे हर कोई समझता है।

एक इंट्रेस्टिंग फेक्ट आपको बताते है। जब नेशनल गवर्नमेंट हिंदी को ऑफिशियल लेंगुएज डिक्लेयर कर रही थी तो साउथ और ईस्ट के लोगों को ये बात पसंद नहीं आई।

लेकिन आज बॉलीवुड ने अपनी फिल्मों के ज़रिए हिंदी को देश के कोने कोने में में पहुंचा दिया है। जब तक कोस्टीट्यूशन है, जब तक फेयर और रेगुलर इलेक्शन होते रहेंगे, जब तक सेक्यूलेरिज्म रहेगा, हमारा ये प्यारा देश भी बना रहेगा।

जब तक हमारे पास फ्रीडम ऑफ़ स्पीच है, इंटीग्रेशन ऑफ़ इकोनॉमी है, सिविल सर्विस है और देश के बॉर्डर पर हमारी स्ट्रोग आर्मी मौजूद है तब तक कोई हमारे देश का कुछ नहीं बिगाड़ सकता।

और हम ये कभी ना भूले कि जब तक बॉलीवुड के लिए हमारा प्यार जिंदा है, ये देश एक रहेगा।

निष्कर्ष (Conclusion)

इस बुक Summary में आपने इण्डिया के इंडीपेंडेंस और पार्टीशन के बारे में पढ़ा, आपने इसमें फर्स्ट जनरल इलेक्शंस के बारे में पढ़ा। आपने इसमें कश्मीर के बारे में पढ़ा और इण्डिया के सेप्रेटिस्ट मूवमेंट के बारे में भी पढ़ा।

आपने ये भी सीखा कि केसे 1950 से लेकर 1990 तक हमारे देश की इकोनॉमिक पोलिसीज़ में क्या-क्या चेंजेस आए। आपने ये भी सीखा कि इण्डिया ने केसे सर्वाइव किया। कई सारे एंटप्रेन्योर्स, साइंटिस्ट, पोलीटीशियंस, राइटर्स और इंजीनियर्स ने नेशन को डेवलप करने में अपना कोंट्रीब्यूशन दिया है।

अब ये हमारे ऊपर है कि हम न्यू जेनरेशन अपने देश को आगे ले जाए कि हमारा देश लॉन्ग टर्म में डेवलपमेंट करता रहे और इसी तरह आगे बढ़ता रहे।

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