गांधीजी की कहानी
हम सभी गांधी को भगवान् में विश्वास करने वाले और एक नेशनल लीडर के रूप में जानते हैं. इस बुक में, आप उन्हें एक बेटे, एक हस्बैंड, एक पिता, एक स्टूडेंट, एक टीचर और एक विनम्र आदमी के रूप में जानेंगे. गांधी अपनी गलतियों पर हंसते थे और ऐसे काम करते थे जो दूसरे कभी करने को तैयार नहीं हो सकते. अगर आप गांधीजी के सच के बारे में जानना चाहते हैं, तो आपको ये बुक पढ़नी चाहिए.
यह बुक किसे पढनी चाहिए
जो लॉयर बनना चाहते हैं, रिलीजियस लीडर, पॉलिटिशियन, कॉलेज स्टूडेंट्स, टीचर्स।
ऑथर के बारे में
महात्मा गांधी एक लॉयर, सिविल राइट एक्टिविस्ट और पोलिटिकल ऑर्गेनाइजर हैं. वो भारत के राष्ट्रपिता हैं. वो एक महान लीडर, बुद्धिमान और शांति को बढ़ावा देने वाले आदमी थे.
परिचय
गांधी जी के कुछ फ्रेंड्स ने उन्हें अपनी लाइफ स्टोरी लिखने के लिए एंकरेज किया. लेकिन वो खुद इस बात पे कांफिडेंस नहीं थे कि इस बुक को ऑटोबायोग्राफी कहा जाए. क्योंकि गांधीजी का मानना था कि ये बुक सच के साथ किये गए उनके एक्सपेरीमेंट्स पर बेस्ड है. उन्होंने लिखा था कि उनकी लाइफ का अल्टीमेट गोल मोक्ष पाना यानी सच को स्वीकार करके ज्ञान प्राप्त करना।
उन्होंने ये भी लिखा कि उन्हें पसंद नहीं था कि लोग उन्हें "महात्मा" बुलाये हालाँकि जो लोग उन्हें बहुत रिस्पेक्ट देते थे उन्होंने उनका ये नाम रखा था. ऐसा नहीं था कि गाधी जी लोगो की रिस्पेक्ट की कद्र नहीं करते थे बल्कि उन्हें तो ये लगता था कि वो इतनी रिस्पेक्ट डिजर्व नहीं करते है. उनका मानना था कि बाकियों की तरह उनकी भी कुछ लिमिटेशंस है और उनसे भी लाइफ में मिस्टेक्स हुई है, खैर जो भी हो, आपको इस बुक में गांधीजी के बारे में और काफी कुछ ऐसी इन्फोर्मेशन मिलेगी जो शायद आज तक आपको पता ना हो.
गांधीजी का बचपन
यह तो सब जानते है कि गांधीजी एक इंस्पायरिंग लीडर थे लेकिन वो एक बेटे और पिता भी थे, वो सही मायनों में सेवा और विश्वास की मूर्ती थे.
एक बेहद प्यार करने वाले पेरेंट्स और चाइल्डहुड (Parentage and Childhood)
मेरा जन्म पोरबंदर में 2 अक्टूबर, 1869 को हुआ था मेरी फेमिली बनिया कम्यूनिटी से बिलोंग करती है. मेरे दादा पोरबंदर में दीवान थे और मेरे फादर भी यही काम करते थे. मैं अपने माँ-बाप का सबसे छोटा बेटा हूँ, मेरे फादर एक बहादुर, काइंड और बड़े दिलदार इंसान थे. उन्हें रूपये पैसे का कोई लालच नहीं था.
हालांकि उन्होंने कोई फॉर्मल एजुकेशन नहीं ली धी लेकिन उनके पास अनुभवो का खज़ाना धा. उनकी खूबी धी कि वो लोगो को बड़े अच्छे से समझते थे और उनके झगड़े सुलझाते थे. मेरी माँ बड़ी ही रिलीजियस लेडी थी, खाने से पहले भगवान् को शुक्रिया अदा करना उसकी आदत शामिल था. चतुरमास के दिनों में माँ सिर्फ एक टाइम खाना खाती थी. उसका नियम था फिर चाहे वो बीमार ही क्यों ना हो. उसने फ़ास्ट रखना और प्रे करना कभी नहीं छोड़ा.
एक बार ऐसे ही चतुरमास के दिन थे जब माँ कसम ली कि वो सूरज निकलने तक कुछ नहीं खाएगी. मै और मेरे भाई-बहन बाहर निकलकर देखने गए कि सूरज निकला या नहीं. लेकिन बारिश के दिन थे इसलिए सूरज बड़ी मुश्किल से निकलता था. लेकिन माँ ने अपनी कसम नहीं तोड़ी. मेरी माँ एक बड़ी स्मार्ट लेडी थी, उसका कॉमन सेन्स बड़ा स्ट्रोंग था और उसे स्टेट पॉलिटिक्स की पूरी नॉलेज रहती थी.
मेरा स्कूल जीवन (School Life)
जब मै सात साल का था मेरे फादर राजस्थानिक कोर्ट के मेंबर बने. इसलिए हमारी फेमिली को पोरबंदर छोडकर राजकोट जाना पड़ा. और वही पर मैंने हाई स्कूल तक की पढ़ाई की. मै स्कूल में बड़ा शर्मिला स्टूडेंट था. मुझे अपने क्लासमेट के साथ खेलने से ज्यादा बुक्स पढना पसंद था. और इसी वजह से मैं हमेशा अकेला ही रहता था.
सुबह स्कूल जल्दी आना और स्कूल ओवर होते ही सीधे घर जाना मेरी आदत थी. मेरे क्लासमेट अक्सर मेरा मज़ाक उड़ाते थे इसलिए उनसे बचने के लिए में स्कूल से भागते हुए घर जाता था. और घर जाकर फिर अपनी किताबो में डूब जाता था.
चाइल्ड मैरिज (Child Marriage)
वैसे अपनी लाइफ के इस चैप्टर पर मुझे कोई प्राउड फील नहीं होता लेकिन जो भी हो मुझे अपने रीडर्स से इसे शेयर करना ही होगा अगर मुझे वाकई सच का पुजारी बनना है तो, मेरी वाइफ कस्तूरबा से मेरी शादी तब हुई थी जब हम दोनों सिर्फ 13 साल के थे. मेरे घर के बड़े लोगो ने मेरी, मेरे भाई और (Cousins) कजन की एक ही साथ शादी कराने का डिसीजन लिया, मेरा भाई और (cousins) कजन मुझसे 2 साल बड़े थे.
मैं हिन्दू घरों में शादी से पहले कई महीनो तक तैयारी चलती है. खाने में क्या बनेगा, क्या कपड़े पहने जायेंगे और क्या-क्या गहने बनेंगे इस पर कई सारी प्लानिंग होती है साथ ही पैसा भी खूब खर्च किया जाता है. मेरे फादर और अंकल बूड़े हो रहे थे, उन्हें लगता था कि बच्चो की शादी इस उम्र के करवाकर वो अपनी रिसर्पोंसेबिलिटी से छुटकारा पा लेंगे. तो इस तरह हमारे घर में एक साथ तीन शादियाँ अरेंज हुई.
उस वक्त मुझे अच्छे कपड़े, शादी की धूम-धाम, ढोल की आवाज़ और खूब सारा टेस्टी खाना सिर्फ यही सब समझ आता था. शादी का मतलब क्या होता है, ये मुझे मालूम नहीं था. मुझे याद है जब मै पहली बार एक अजनबी लड़की से मिला, हम शादी के मंडप में सात फेरे ले रहे थे. उसके बाद मैंने और मेरी छोटी दुल्हन ने एक दुसरे को कसार खिलाया.
हम दोनों एक दुसरे से शर्मा रहे थे, मै तो अभूत नर्वस हो गया था. मुझे समझ नहीं आ रहा था कि उससे क्या बात कर. लेकिन फिर धीरे-धीरे हम दोनों एक दुसरे को समझने लगे. वो मेरे लिए फेथफुल थी और मैं उसके लिए.
मेरे फादर की डेथ और मेरी डबल शेम (My Father's Death and My Double Shame)
मै 16 साल का था जब मेरे फादर की डेथ हुई. उन्हें फिसट्यूला हुआ था. वो काफी टाइम से बीमार चल रहे थे इसलिए माँ और मै उनकी सेवा में लगे रहते थे. मै उनके घाव साफ़ करता था और मेडिसिन देता था. हर रात सोने से पहले मै उनके पैरो की मसाज करता था. मुझे अपने फादर का ध्यान रखना अच्छा लगता था. मैंने एक दिन भी अपनी ड्यूटी नहीं छोड़ी.
मेरा टाइम स्कूल की पढ़ाई और अपने फादर का ख्याल रखने में गुजरता था. हालाँकि मुझे एक चीज़ का हमेशा मलाल रहेगा जिसकी वजह से मुझे खुद पर हमेशा शर्म आई, और वो चीज़ थी अपनी वाइफ के लिए मेरा लस्ट. अपनी जवानी के दिनों में मेरा खुद पर कण्ट्रोल नहीं रहता था.
अपने फादर की सेवा में होता तो भी मेरा दिल कस्तूरबा में लगा रहता. और पिताजी के सोते ही में सीधा अपने बेडरूम में घुस जाता था. फिर धीरे-धीरे मेरे फादर की तबियत बिगड़ती चली गयी. अब (davalyon) मेडिसिन से भी उन्हें कोई फायदा नहीं हो रहा था, फेमिली डॉक्टर ने बताया कि इस एज में उनका ओपरेशन करना रिस्की होगा.
मेरे अंकल राजकोट से आयें, फादर और उनके बीच काफी क्लोजनेस थी. वो फादर के साथ उनके आखिरी टाइम तक रहे. वो पूरा दिन फादर के सिरहाने बैठे रहते. और सोते भी उसी कमरे में थे. मुझे आज भी वो रात याद है जब मै हमेशा की तरह फादर के पैरो की मसाज़ कर रहा था, मेरे अंकल ने मुझे बोला "लाओ अब मै करता हूँ". मैंने तुरंत उनकी बात मानी और कस्तूरबा के पास चला गया.
कुछ मिनट बाद ही एक सर्वेट ने बेडरूम दरवाजे पर नॉक किया. "जल्दी उठो, फादर की हालत खराब हो रही है" उसने कहा. शॉक के मारे बेड से कूद पड़ा. "क्या हुआ? मुझे बताओ?" मैं जोर से बोला. "पिताजी हमे छोड़कर चले गए" मुझे इतना सदमा लगा कि बता नहीं सकता. मै कुछ भी नहीं कर पाया. मुझे खुद पर बड़ी शर्म महसूस हुई.
अगर मैं अपनी वासना की आग में अँधा नहीं होता तो फादर के आखिरी टाइम में उनके साथ होता. वो अपने बेटे की बांहों में दम तोड़ते, लेकिन मेरे बदले मेरे अंकल उनके साथ थे. ये उनकी किस्मत थी कि मेरे फादर के आखिरी पलों में वो उनके साथ थे. इस गलती के लिए आज तक मैं खुद को माफ़ नहीं कर पाया हूँ. मैं हमेशा इस बात को रिग्रेट करके रोता था.
इंग्लैंड जाने की तैयारी (Preparation for England)
1887 में मैंने मैट्रिक पास किया. फिर कुछ टाइम के लिए मैंने सामलदास कॉलेज भावनगर में पढ़ा. लेकिन एक फेमिली फ्रेंड ने मुझे एडवाईस किया कि मुझे आगे की पढ़ाई के लिए इंग्लैण्ड जाना चाहिए, मावजी दवे ने मेरी माँ को बोला कि मुझे बीए की डिग्री लेने में 5 साल लगेंगे. और दीवान बनने के लिए इतनी क्वालिफीकेशन काफी नहीं थी.
उसके लिए मुझे लॉ करना होगा जिसमे और ज्यादा टाइम लगेगा. इसलिए मेरे लिए बैटर यही है कि मुझे इंग्लैण्ड पढने भेजा जाए. वहाँ जाकर में सिर्फ 3 साल में ही बेरिस्टर बन सकता हूँ. उसने ये भी बोला कि मुझे तुरंत इंग्लैण्ड भेजा जाए. वहां से बेरिस्टर की डिग्री लेने पर मेरी रेपूटेशन बढ़ेगी और मुझे आसानी से दीवानशिप मिल जाएगी.
मावजी ने मुझसे पुछा "क्या तुम यहाँ पढ़ाई करने के बजाये इंग्लैण्ड नहीं चाहोगे?" में उनकी बात से एग्री था. मेरी माँ ये सोच के परेशान थी कि मै कहीं इंग्लैण्ड जाकर मीट खाना और शराब पीना शुरू ना कर दूँ, लेकिन मैंने माँ से कहा "क्या तुम्हे मुझ पर यकीन नहीं है? मै तुमसे कभी झूठ नहीं बोलूँगा. मै तुम्हारी कसम खाता हूँ इन चीजों को कभी हाथ तक नहीं लगाऊंगा." उन्होंने मुझे कसम दिलबाई कि मै कभी भी मीट, शराब और पराई औरत को टच नहीं करूंगा. इसके बाद मेरी माँ ने मुझे जाने की परमिशन दे दी.
इंग्लैण्ड का जेंटलमेन (Playing the English Gentleman)
इंग्लैण्ड जाकर मैंने वेजीटेरियनिज्म की बहुत सारी बुक्स पढ़ी. जितना मैं पढता गया उतना ही मुझे वेजीटेरियन डाईट पसंद आने लगा था. वैसे तो मै एक वेजीटेरीयन फेमिली में पैदा हुआ था मुझे इसके सारे हेल्थ बेनेफिट्स नहीं थे. बाद में मुझे रिएलाइज हुआ कि मेरी वेजीटेरियन डाईट और स्प्रिचुएलिटी के बीच एक स्ट्रॉंग कनेक्शन है.
इग्लैण्ड आने के कुछ सालो तक मै एक प्योर इंग्लिश जेंटलमेन की तरह रहा, मैंने नया सूट सिलवाया, नहीं टाई और नया हैट लिया. सुबह मुझे पूरे 10 मिनट लगते थे अपनी टाई फिक्स करने और बालों को स्टाइल करने में, किसी ने मुझे बोला कि एक प्रॉपर इंग्लिश मेन बनने के लिए ग्रेसफूली डांस करना और कांफिडेंस के साथ बोलना जरूरी है.
तो मैंने डांसिंग और स्पीच लेंस लेने स्टार्ट कर दिए. वैसे बता हैं कि मैं बहुत ही टेरिबल डांसर था, मै कितनी भी कोशिश कर लें लेकिन कभी म्यूजिक के साथ नहीं चल पाता था, मेरे स्पीच इंस्ट्रक्टर ने रेकमंड किया कि मुझे "बेल'स स्टैण्डर्ड एलोकोशिनिस्ट (Bel's Standard Elocutionist)" की टेक्स्ट बुक्स पढ़नी चाहिए.
लेकिन मिस्टर बेल ने मेरे कानो में घंटी बजाकर मुझे फूलिशनेस से जगाया. मैं अपनी पूरी लाइफ इंग्लैण्ड में नहीं रहने वाला था, मैं वहां स्टडी के लिए गया था. उस दिन से मैंने सिर्फ अपनी स्टडीज पर ध्यान देना शुरू कर दिया. मैंने वेजीटेरियन सोसाइटी ज्वाइन की और एक्जीक्यूटिव कमेटी में elect हो गया.
मुझे ने बैरिस्टर बनने के लिए दो एक्जाम्स पास करने थे. एक रोमन लॉ में और दूसरा कॉमन लॉ ऑफ़ इंग्लैण्ड. मैंने कई महीनों तक इन एक्जाम्स की तैयारी की, मैंने इक्विटी, रिपेल प्रॉपर्टी और पर्सनल प्रॉपर्टी पर ढेर सारी मोटी-मोटी बुक्स पढ़ी. फाइनली 10 जून, 1891 में मुझे बार में एक्सेप्ट कर लिया गया.
साउथ अफ्रीका जाना (Arrival In South Africa)
इंडिया में मेरी लॉ प्रेक्टिस कुछ खास नहीं चल रही थी. मुझे जब मेरा फर्स्ट केस मिला तो मैं कोर्ट रूम में काफी नर्वस था. ब्रिटिश ऑथोरिटी के साथ भी मेरी अनबन हो गयी थी. ऐसे में साऊथ अफ्रीका जाके काम करने का मौका मेरे लिए एक बढ़िया अपोरच्यूनिटी थी. मुझे सेठ अब्दुल करीम झवेरी का लैटर मिला, यो दादा अब्दुल्ला एंड कंपनी में पार्टनर थे और पोरबंदर में उनका ऑफिस था..
"ये जॉब तुम्हारे लिए डिफिकल्ट नहीं होगी" सेठ ने कहा. "ऑफ़ कोर्स तुम हमारे यहाँ गेस्ट की तरह रहोगे, तुम्हे अपनी तरफ से कोई खर्च नहीं करना होगा." "ये जॉब कब तक रहेगी? और पेमेंट क्या मिलेगी मुझे?" मैंने पुछा, "तुम्हे बस साल भर काम करना होगा और मै तुम्हे फर्स्ट वलास का रिटर्न फेयर और E(euros)l05" मैंने खुशी से हाँ कर दी.
एक नयी कंट्री में काम करने का मौका मिल रहा था, ये बात मेरे लिए बहुत एक्साईटिंग थी. मुझे नयी चीजे सीखने को मिलेगी, एक अलग एक्स्पिरियेश और इस तरह में समुद्री यात्रा करके अफ्रीका पहुँच गया. सेठ अब्दुल मुझे पोर्ट में लेने आये और अपने साथ ऑफिस ले गए. अगले दिन मैं उनके साथ कोर्ट गया. मजिस्ट्रेट मुझे देखकर थोड़ा परेशान लग था, फाइनली उसने मुझसे बोला कि मैं अपनी पगड़ी उतार दूं, मैंने मना कर दिया और कोर्ट छोड़कर चला आया.
मुझे ये बात मालूम हुई कि साऊथ अफ्रीका में रहने वाले इंडियंस के दो ग्रुप है. एक तो मुसलमान मर्चेट्स जो खुद को "अरब्स" बोलते थे और दुसरे हिंदू और पारसी clerks, और एक सबसे बड़ा ग्रुप उन लेबर्स का था जो नार्थ इंडिया, तेलगु और तमिल से आये थे. इंग्लिश मेन इंडियन लेबर्रस को "कुली" कहकर बुलाते थे, और क्योंकि इंडियन्स यहाँ मेजोरिटी में थे इसलिए साउथ अफ्रीका में सारे इंडियंस कूली के नाम से ही जाने जाते थे.
मेरा प्रीटोरिया जाना (On the way to Pretoria)
रात में मुझे ख्याल आया कि मुझे पगड़ी की जगह इंग्लिश हैट पहननी चाहिए. लेकिन सेठ अब्दुल ने मुझे मना किया "अगर तुम ऐसा कुछ करोगे तो ये एक तरह से कम्प्रोमाईज होगा, अगर तुम इंग्लिश हैट पहनोगे तो ये लोग तुम्हे वेटर की तरह ट्रीट करेंगे.
मुझे ट्रेन से प्रीटोरिया जाकर कुछ क्लाइट्स से मिलना था. सेठ अब्दुल ने मेरे लिए फर्स्ट क्लास का टिकेट बुक करवाया था, शाम को रेलवे का एक सर्वेट आया और मुझे बेड ऑफर किया. मैंने उससे कहा कि मै अपना बेड अपने साथ लाया हूँ तो वो वापस चला गया.
एक पेसेंजेर् ने मुझे बड़ी नफरत के साथ देखा क्योंकि उनकी नजरो में मै एक kaala aadmi था, वो पेसेंजर अपने सीट से उठा और थोड़ी देर बाद एक ऑफिशियल के साथ मेरे पास आया, "चलो उठो, तुमको देन में मै कम्पार्टमेंट में जाना होगा" ऑफिशियल मुझसे बोला. "लेकिन मेरे पास फर्स्ट क्लास की टिकेट है" मैंने कहा,
"इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता, मै बोल रहा हूँ, उठो और वेन कम्पार्टमेंट में जाओ" "सर, मुझे फर्स्ट क्लास में ट्रेवल की परमिशन है और मैं इसी से जाऊंगा" "नहीं, तुम नहीं जाओगे" ऑफिशियल बोला, "तुम्हे अभी इसी वक्त ये कम्पार्टमेंट छोड़ना होगा वर्ना धक्के देकर बाहर फेंक दूंगा" लेकिन मैं भी अड़ गया था, मैंने उठने से साफ साफ इंकार कर र दिया.
ऑफिशियल ने मेरी बाजू पकड़ी और मुझे फर्स्ट क्लास से बाहर घसीटा, उसने मेरा लगेज भी ले लिया था. उन लोगो ने मुझे धक्का देते हुए ट्रेन से नीचे उतार दिया और मुझे वेटिंग रूम में बैठना पड़ा.
मेरे मन में इंडिया लौट जाने का खयाल आया. लेकिन मैं डरपोक नहीं था और ना ही बनना चाहता था. मैंने सोच लिया था कि मैं साउथ अफ्रीका के इस रेशियल डिस्क्रीमीनेशन के बारे और पता लगाऊंगा और उससे भी ज्यादा इम्पोर्टेंट इस प्रोब्लम को हमेशा के लिए दूर करने के बारे में सोचूंगा,
इंडियंस के साथ टच में रहना (Seeking in Touch with Indians)
प्रीटोरिया में मेरी मुलाकाल शेठ तैयब से हुई, वो भी हमारी लॉ फर्म में काम करते थे. मैंने उन्हें कहा कि मैं साऊथ अफ्रीका में रहने वाले सारे इंडियंस के साथ टच में रहना चाहता हूँ और यहाँ वो किस हालत में रहते है इस बारे में जानना चाहता हूँ. शेठ तैयब मेरी हेल्प करने को तैयार हो गए और उन्हॉंने एक मीटिंग अरेंज करवा दी.
ये मीटिंग एक और शेठ के चर पर रखी गई थी, इनमे से ज्यादातर लोग मेमन मर्चेंट्स थे. कुछ हिन्दू क्लर्क भी आये थे. मैंने बिजनेस में सच्चाई और ईमानदारी के टॉपिक से अपनी बात शुरू की. और सुनने वालो को ये भी कहा कि हमे अपने-अपने डिफरेंसेस भूल कर यूनिटी दिखानी चाहिए. मेरा मानना था कि मुस्लिम, हिंदू, पारसी, गुजराती, मद्रासी, पंजाबी, क्रिश्चियंस या जो भी लोग इंडिया से यहाँ आये है उन्हें साऊथ अफ्रीका में जो भी हार्डशिप फेस करनी पड़ रही है, उसे सबको मिलकर फेस करना चाहिए.
मैंने बोला कि हम एक एसोशिएशन बनानी चाहिए ताकि हम यहाँ की ऑथोरिटीज तक अपनी प्रॉब्लम्स और कन्सेन्न्स लेकर जा सके. और लास्ट में मैंने सबसे बोला कि मै किसी भी टाइम अपनी सर्विस और जो भी हेल्प मै कर सकेँ वो करने को तैयार हूँ, मैंने उन्हें ये भी कहा कि मैं उन्हें इंग्लिश सीखने में हेल्प कर सकता हूँ जो उन्हें बिजनेस में काफी हेल्पफुल रहेगा.
मैंने तीन लोगो को इंग्लिश सिखाई जिनमे दो मुस्लिम्स थे. एक बार्बर था और दूसरा एक क्लर्क. तीसरा वाला एक हिन्दू शॉपकीपर था. ये डिसाइड किया गया कि हम लोग वीक में एक दिन अपनी मीटिंग करेंगे. इस मीटिंग में हम अपने प्रॉब्लम्स और सोल्यूशन्स पर चर्चा करेंगे.
Experiences in Pretoria
आईडियाज और डे टू डे लाइफ के एक्स्पिरियेंश शेयर करते थे. इसका रीजल्ट ये हुआ कि प्रीटोरिया में रहने वाला हर इन्डियन मुझे अच्छे से जानता था. मैं साऊथ अफ्रीका एक लॉ फर्म को रीप्रेजेंट करने आया था लेकिन अब मेरा ज्यादातर टाइम पब्लिक वर्क में गुजरता था.
The Boer War
साउथ अफ्रीकन्स का इंग्लिश लोगो के साथ स्ट्रगल चल रहा था. इसी बीच बोअर वार शुरू हो गयी धीं. मुझे बोअर्स यानी पीपल ऑफ़ ट्रांसवाल और ओरेंज फ्री स्टेट के साथ पूरी सिम्पेथी थी लेकिन इंग्लैण्ड के लिए भी मैं पूरी तरह से लॉयल फील करता था. मैंने ब्रिटिश सोल्जर्स के लिए एम्बुलेंस कोर्स रखने के बारे में सोचा, ब्रिटिश लोग इंडियंस को डरपोक समझते थे, उन्हें लगता था कि हम लोग रिस्क लेने डरते है और अपने सेल्फ इंटरेस्ट के अलावा और कुछ नहीं सोच सकते.
Organizing the Ambulance Corps
मै अपने कई इंग्लिश फ्रेंड्स के पास गया लेकिन कोई भी हेल्प नहीं करना चाहता था, फिर मुझे डॉक्टर बूथ से हेल्प मिली जोकि मेरे अच्छे फ्रेंड थे. उन्होंने मुझे और कुछ वालंटियर्स को एम्बुलेंस वर्क की ट्रेनिंग दी, उन्होंने हमे मेडिकल सर्टिफिकेट भी दिए. पहले तो ब्रिटिश अथॉरिटीज ने हमारी हेल्प लेने से मना कर दिया. उन्होंने कहा कि उन्हें हमारी सर्विसेस की कोई जरूरत नहीं है, लेकिन मैंने भी हार नहीं मानी.
Support from the Bishop
डॉक्टर बूथ ने मुझे बिशप ऑफ़ नेटल से मिलवाया. हमारे वालंटियर ग्रुप में बहुत से क्रिश्चियन इंडियंस भी थे इसलिए बिशप हमारी हेल्प करने को रेडी हो गए. और उन्होंने हमारे एम्बुलेंस कोर्स के लिए अप्रूवल ले लिया. अब हमारे पास 100 वालंटियर्स धे जिन्हें 40 टीम मेम्बर लीड कर रहे थे.
Working in the War Zone
हम फाइरिंग लाइन के बाहर रुके थे, मैं भी वहां डॉक्टर बूथ के साथ गया. हम रेड क्रोस के साथ मिलकर काम कर रहे थे, अगले कुछ दिनों में वार और भी खतरनाक हो गयी थी. इसलिए अब हमें परमिशन मिल गयी कि हम फाइरिंग लाइन के अंदर ऑपरेट कर सकते थे. एक ब्रिटिश जेर्नल ने हमारे कोप्स से कहा हम घायलों को फील्ड से लेकर आये ताकि उन्हें ट्रीटमेंट मिल सके.
Recognition and Impact
हम रोज़ 25 मील चलकर घायल सोल्जेर्स को लेने जाते और उन्हें स्ट्रेचर उठाकर लाते थे. पूरे छे हफ्ते तक हमारी एम्बुलेंस कोर्स ने ब्रिटिश सोल्जेर्स की सेवा की. हमारी इस हेल्प के लिए ब्रिटिश लोगों ने हमें बड़ी इज्ज़त दी, इस तरह उनकी नजरो में इंडियंस की रेपूटेशन थोड़ी सी बढ़ गयी थी. न्यूज़ पेपर्स में कुछ ऐसी हेडलाइंस छपी थी "वी आर संस ऑफ द एम्पायर आफ्टर आल".
Return to India
बोअर वॉर सर्विस के बाद मैंने इंडिया लौटने का मन बना लिया था. मैंने अपने फ्रेंड्स से प्रोमिस किया कि अगर उन्हें मेरी हेल्प की ज़रूरत पड़े तो मैं वापस साउथ अफ्रीका आ जाऊंगा. वहां रहने वाले इंडियंस के साथ स्पेशली नेटल में मेरा एक मजबूत रिश्ता बन गया था.
Gifts and Decisions
मेरे जाने से पहले नेटल इंडियंस ने मुझे ढेर सारे गिफ्ट्स दिए, डायमंड्स, गोल्ड, सिल्वर जैसी चीज़े मुझे गिफ्ट के तौर पर मिली. मैं बड़ा ग्रेटफुल फील कर रहा था लेकिन इतने कॉस्टली गिफ्ट्स मे भला कैसे ले सकता था.
मैंने जो भी पब्लिक वर्क या कम्यूनिटी सर्विस की थी, वो इसलिए की थी क्योंकि मुझे लोगों की हेल्प करना अच्छा लगता है. उस रात मुझे नींद नहीं आई. बैचेनी से अपने रूम में चक्कर काट रहा था. मैंने सोचा कि अगर आज मैंने ये सारे कॉस्टली गिफ्ट्स एक्सेप्ट कर लिए तो अपने बच्चो के सानने कभी एक गुड एग्जांपल सेट नहीं कर पाउँगा.
मै चाहता था कि मेरे बच्चे लाइफ ऑफ़ सर्विस जिए, दूसरो की हेल्प करे. मैंने उन्हें ये समझाना चाहता था कि भलाई का फल हमेशा मिलता है और हमें सिंपलीसिटी और यूमिलिटी से जीना चाहिए.
Setting an Example
मैंने एक लेटर लिखा कि सारे कॉस्टली गिफ्ट्स कम्यूनिटी को वापस दे दिए जाए. मैंने पारसी रुस्तमजी और कुछ फ्रेंड्स को जिनपर मुझे ट्रस्ट था, इन गिपट्स का ध्यान रखने की जिम्मेदारी दे दी थी. सुबह मैंने अपनी वाइफ और बच्ची से ये बात शेयर की. मेरे बच्चों को तो कोई फर्क नहीं पड़ा लेकिन मेरी वाइफ को आईडिया कुछ खास पंसद नहीं आया.
Family Discussion
"मुझे समझ नहीं आ रहा कि तुम मुझे ये क्यों नहीं दे रहे?" उसने कहा. "और मेरी बहू भी ये गहने पहनेगी" "अभी बच्चों की शादी कहाँ हुई है?" मैंने उसे समझाने की कोशिश की. "हम इतनी छोटी उम्र में उनकी शादी नहीं करेंगे और ना ही अपने बेटो के लिए ऐसी बहूएँ लायेंगे जो इन सब चीजों की लालची हो." फिर किसी तरह मामला सेटल हुआ.
Trust Deed
मैंने सारे गिफ्ट कलेक्ट किये और एक ट्रस्ट डीड्स तैयार की. सारी चीजे बैंक में डिपोजिट करा दी गयी. अगर मेरा ट्रस्टी उन्हें कम्यूनिटी सर्विस के लिए यूज़ करना चाहे तो वो ऐसा कर सकता था. मुझे अपने इस डिसीजन पर कभी रिग्रेट नहीं हुआ, धीरे-धीरे मेरी वाइफ भी समझ गयी कि मै अपनी फेमिली को लालच से बचाना चाहता हूँ.
मै ये मानना है कि एक पब्लिक वर्कर को किसी भी तरह का कॉस्टली गिफ्ट एक्स्पेट नहीं करना चाहिए.
In India Again
जब मै इंडिया वापस आया तो मुझे पता चला कि कैलकटा में कांग्रेस की मीटिंग है, मैं भी वहां एक डेलीगेट के तौर पर गया. मैंने वहां कुछ रेजोल्यूशन प्रजेंट किये जिससे साउथ अफ्रीका में इंडियंस की सिचुएशन धोड़ी इम्पूव हो सके. मुझे सर वाछा(Wacha) के साथ ट्रेवल करने का मौका मिला जो उस टाइम कांग्रेस के प्रेजिडेंट थे. मैंने कुछ टाइम उनके साथ ट्रेन में जर्नी की.
Observations at Congress
र वाला मुझसे कहा कि वो मेरे रेजोल्यूशन पढेंगे. कोलकाता में मुझे रिपोन । (Ripon) कॉलेज ले जाया गया जहाँ पर सारे डेलिगेट्स एक फायदा और हुआ कि मुझे अपन ताकत आपस में बनती नहीं थी. अगर एक वालंटियर से कुछ पूछो तो वो दुसरे को सवाल पास कर देता था और रुकने वाले थे, दूसरा तीसरे को, उनमें भी बताई.
Friendships and Insights
लेकिन पब्लिकके साथ मेरी अच्छी फ्रेंडशिप हो गयी थी. मैंने उन्हें साउथ अफ्रीका की स्टोरीज़ सुनाई, मैंने उन्हें पब्लिक सेवा की इम्पोरटेंस लोगों में इतनी जल्दी नहीं डाली जा सकती. भावना क्योंकि ये फीलिंग किसी इंसान में लोगों की हेल्प करनी है.
Volunteering Issues
प्रोब्लम ये थी कि कांग्रेस की मीटिंग साल में सिर्फ 3 दिन होती थी. आती बाकी टाइम ये रेस्ट में होती थी. इसलिए वालंटियर्स को कोई प्रॉपर ट्रेनिग नहीं भिल पाती थी. मैंने ये भी देखा कि कॉलेज कंपाउंड में हाई लेवल की छुवाछूत का माहौल .जैसे एक्जाम्पल के लिए, तमिल लोगो का किचेन बाकियों से एकदम अलग दूर था. और दिवार से घिरा था क्योंकि तमिल डेलिगेट नहीं चाहते थे कि खाना खाते वक्त कोई उन्हें देखे.
Hygiene Issues
उनके लिए बाकी लोगो की नज़र किसी छुवाछूत से कम नहीं थी. फाइनली, एक और चीज़ मैंने नोटिस की, हमारी बिल्डिंग की लेट्रीन्स बहुत ही बुरी हालत में थी. साफ़-सफाई का नामो-निशान तक नहीं था. चारो तरफ पानी भरा रहता था और बदबू के मारे बुरा हाल हो रहा था मैं वालंटियर्स पास जाकर इस बारे में बात की लेकिन उनका जवाब था "इसमें हम क्या कर सकते है, ये स्वीपर का काम है".
Taking Initiative
तो मैंने उनसे पुछा कि झाडू कहाँ पर मिलेगी. वो हैरानी से मेरी तरफ देख रहे थे, मैंने झाडू हूढी और सारी लैट्रीन्स खुद अपने हाथो से साफ़ की. लेकिन मैं अकेले सारी सफाई नहीं कर सकता था, लोग लैट्रीन्स करने आते, करके चले जाते लेकिन गंदगी को इग्नोर करते थे, कांग्रेस मीटिंग अभी शुरू नहीं हुई थी इसलिए मैंने ऑफिस ऑफ़ द सेक्रेटरी के लिए अपनी सर्विस ऑफर कर दी.
Working with the Secretary
मै बाबु बासु और सुजीत घोष का क्लर्क अपोइन्ट हुआ. वो लोग भी मुझे देखकर खुश थे.
Faith on its Trial
मेरा ज्यादातर टाइम पब्लिक वर्क में गुजरता था. सब सही चल रहा था. लेकिन फिर मेरा दूसरा बेटा मणिलाल बुरी तरह बीमार पड़ गया. उसे टाइफाइड और न्यूमोनिया हो गया था. वो अक्सर रातो को उठकर रोने लगता और पागलो की तरह बडबड़ाता था.
Dealing with Illness
डॉक्टर ने हमे बोला कि हम मणिलाल को चिकेन सूप और अंडे खिलाये ताकि उसे ताकत मिले. मेरा बेटा सिर्फ 10 साल का था. अब मुझे डिसाइड करना था कि उसे नॉन-वेज खिलाना है या नहीं, "तुम्हारे बेटे की जान को खतरा है डॉक्टर ने मुझे समझाया. हम उसे पानी मिला दूध दे सकते है लेकिन ये काफी नहीं होगा, मुझे लगता है कि आप अपने बेटे की सेहत के लिए उसकी डाईट में ज्यादा सख्ती नहीं करेंगे," मेरा धर्म मुझे अंडे और मीट खाने की परमिशन नहीं देता, चाहे जो भी सिचुएशन हो.
Alternative Treatment
इसलिए मै ये रिस्क लेने को रेडी हूँ" मैंने जबाब दिया. मैंने डॉक्टर से कहा कि वो मेरे बेटे की कंडिशन चेक करते रहे हालाँकि हमने उसे मीट या अंडा नहीं दिया. मैंने डॉक्टर से ये भी पुछा कि क्या हम कोई आल्टरनेटिव ट्रीटमेंट ट्राई कर सकते है, तो डॉक्टर ने हाँ बोल दिया. मैंने उसका धन्यवाद किया.
Treatment and Prayer
अगले 3 दिनों तक मैंने मणिलाल को कुहने का ट्रीटमेंट दिया. मै उसे टब में बैठाकर 3 मिनट का हिप बाथ देता था, मैं हर रोज़ उसके लिए ओरेंज जूस भी बनाता था. हालाँकि मणिलाल का बुखार और बड़बड़ाना कम नहीं हो रहा था. मुझे डाउट हुआ और अपने डिसीजन को लेकर मुझे रिग्रेट हो रहा था.
Turning to God
उस रात, मैंने मणिलाल के बीमार शरीर को एक वेट टॉवल से रब किया और एक और वेट टॉवल उसके माधे पर रखा. मैंने अपनी वाइफ को उसके पास रहने को बोला और वाक् के लिए बाहर चला गया. मे ऊपरवाले से प्रे कर रहा था. मैंने सब कुछ भगवान पर छोड़ दिया था. इस मुश्किल की घड़ी में हमें सिर्फ तुम्हारा ही सहारा है भगवान, हमें इस संकट से उबारो" में बार-बार राम नाम जप रहा था. और फिर में घर लौट आया.
Improvement and Recovery
मैं कमरे में आया तो मणिलाल की कमज़ोर आवाज़ सुनाई दी "तुम आ गए बापू?" "हाँ मेरे बेटे" मैंने उससे कहा. उसकी पूरी बॉडी पसीने से तरबतर थी. मैंने कम्बल हटाकर उसका पसीना सुखाया, उसका बॉडी टेम्प्रेचर थोड़ा डाउन लग रहा था, मै उसके बगल में बैठ गया और वही सो गया. नेक्स्ट मोर्निंग मणिलाल की हालत कुछ बैटर थी. उसका बुखार उतर चूका था. हमने उसे पानी मिला दूध और फ्रूट जूस देना जारी रखा. चीज़े अब हमारे कंट्रोल में लग रही थी. और धीरे-धीरे वो पूरी तरह ठीक हो गया था.
Belief and Miracle
मणिलाल बड़ा होकर एक हेल्दी बॉय बना. उसे देखके कोई भी ये बोल सकता था कि हमारी सही देख-रेख और हेल्दी डाईट ने ही उसे ठीक किया था लेकिन मेरे लिए तो ये भगवान् का चमत्कार था. ऊपरवाले पर मेरे अटूट विशवास ने ही मेरे बेटे की जान बचाई थी.
Conclusion
आपने गांधीजी के बारे में काफी कुछ पढ़ा, उनकी ह्यूमिलिटी, उनके फेथ और उनके सेवा भाव के बारे में आपने जाना, गांधीजी के अंदर अपने आस-पास के लोगों के लिए हमेशा ही एक सेन्स ऑफ रिस्पोंसिबिलिटी रही थी. उन्हें अपने ज्यादा दूसरो का ख्याल रहता था, और दूसरो को सर्व करने के इसी स्ट्रोंग डिजायर के लिए गांधीजी दूर-दराज़ की जगहों पर भी गए, कई सारे पॉवरफूल लोगो से मिले और उन्होंने अपने देश का इतिहास बदला.
अब ये प्रेजेंट जेनरेशन की जिम्मेदारी है कि वो भी गांधीजी बताये रास्ते पर चले और उनके बताये प्रिसिपल्स को फोलो करे.
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