ये किताब किसके लिए है
जिसे सपनों के बारे में कोई जर्नल या आर्टिकल लिल्पना हो.
न्यूरोसाईस और साइकोलॉजी के स्टूडेंट्स
और कोई भी चो व्यक्ति जो सपनों को रंगीन दुनिया के बारे में जानना चाहता है
लेखक के बारे में
लैख्पिका एंड्रिया रॉक (Andrea Rock) एक अवार्ड विनिंग खोजी पत्रकार हैं. उन्होंने अपने कैरियर में बहुत से सामान जनक अवाड्स हासिल किये है जैसे नेशनल मैगजीन अचाई इनवेस्टिगेटिव जनलिस्ट भवाई और एडिटर्स मावई
ये सबक आपको क्यूँ पढ़ने चाहिए?
कॉलेज के दिनों में सारी सारी रात जाग कर एग्जाम की तैयारियों करने में या अपना लास्ट मिनट प्रोजेक्ट बनाने में यकीनन हमें कोई तकलीफ नहीं होती थी. लेकिन जैसे जैसे हम बड़े होते जाते हैं जाने क्यूँ नीट न पूरी होना या एक भी रात जाग के बिताना हमें चिडचिडा या बीमार सा फील करवाने लगता है.
जब हम सोते हैं तो आखिर ऐसा क्या चलता है हमारे दिमाग में जो हमें सुबह इतना रिफ्रेश फील करवाता है? तो आईये इस किताब के जरिये जानते हैं की जब हम सोते हैं तो हमारा दिमाग किन कामों में बिजी रहता है और क्यूँ हमारी नींद और हमारे सपने हमारे जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं.
इस से आप ये भी जानेंगे
आखिर एक डिप्रेशन के पेशेंट को कैसे सपने आते हैं.
कैसे आपके सपने कभी कभी आपके जीवन की सच्ची समस्याभों में आपका मार्गदर्शन कर सकते हैं.
- कैसे आप खुद को सिखा कर के अपने सपनों को पंख लगा सकते हैं.
हम रोज़ अपनी नींद की पाँच स्टेजों से गुजरते हैं.
आपको ये जान कर बड़ी ही हैरानी होगी की हम अपने जीवन का एक तिहाई हिस्सा सोने में गुजारते हैं, इसलिए ये जानना बड़ा जरुरी है की आखिर सोना क्यूँ इतना जरुरी है। और सोते समय क्या चलता है हमारे दिमाग में जब हम सोते है तो उस दौरान रोजाना हम नीद की पाँव स्टेजों से गुज़तरे हैं,
नींद का सबसे पहला स्टेज है प्रो-स्लीप जिसमें की हमारा दिमाग दुनिया भर की चिंतायों की छोड़ कर फाइनली एक शांत और मैडिटेशन जैसी स्टेज में पहुँच जाता है. ये स्टेज नींद के लिए तैयारी की स्टेज होती है. इसके बाद हम लाइट स्लीप की अगली दो स्टेजों में पहुँचते हैं. इसमें से पहली स्टेज के दौरान हम हल्की नींद में होते हैं और हमारे दिमाग के अन्दर हल्की घुंदली इमेजेज प्रोजेक्ट होने लगती हैं, इन इमेजेज को हिपनेगोगिक इमेजरी (hypnagcgic imagery) कहते हैं. उस स्टेज के दौरान हमारा दिमाग हमारे दिन भर के एक्सपीरियस में से क्या रखना है और क्या भूलना है उसे छांटता रहता है. कई चीजें हमारी लॉन्ग-टर्म मेमोरी में चली जाती है तो कई चीज़ों को हम भूल जाते हैं. इसके बाद हल्की नीद की दूसरी स्टेज आती है जिस दौरान हमारा दिमाग गहरी नीद में जाने की तैयारियां करने लगता है.
उसके बाद बारी आती है गहरी नींद के तीसरे और चौथे स्टेज की जिसमें की हमारी दिमागी तरंगें यानी की ब्रेन चेव्स (brain waves) बहुत ही स्लो हो जाती है. गहरी नीद के आखरी स्टेज में पहुंचने से पहले हमारा दिमाग नींद की सभी स्टेजों को एक बार फिर से दोहराता हैं इस समय की नींद को रेग स्लीप (REM sleep) भी कहते हैं.
नींद की पहली चार स्टेजेंस को पूरा करने में 50 से 70 मिनट का टाइम लगता है जबकि रेम स्लीप (REM sleep) 10 मिनट की होती है. तो कुल मिलाकर ये पूरी साइकिल लगभग 90 मिनट की हो जाती है.
हलाकि हमारी नींद के हर स्टेज का अपना महत्व है पर हम अपने जीवन के सबसे अनोखे सपने रेम स्लीप (REM sleep) के दौरान देखते है. तो आईये जाने की आखिर क्या होता है रेग स्लीप (REM sleep) दौरान.
रेम स्लीप (REM sleep) की सबसे खास बात ये है की इस दौरान हमारे दिमाग में सबसे ज्यादा शारीरिक बदलाव आते हैं.
वैसे तो हमे नीद की किसी भी स्टेज में सपना आ सकता है लेकिन सबसे ज्यादा इटेंस सपने हमें रेम स्लीप (REM 5leep) के दौरान आते हैं क्यूकि उस समय हमारे सपनो में हमारे इमोशंस भी मिले होते हैं.
नींद की इस स्टेज में हमारे दिमाग का लिम्बिक सिस्टम (Limbic system) जागने के मुकाबले 15% ज्यादा एक्टिव होता हैं. ये सिंस्टम हमारे दिमाग का बही हिस्सा है जहाँ से हमारा दिमाग हमारे सारे इमोशनल फैसले लेता है. हमारे लिम्बिक सिस्टम (limbic system) का सबते एक्टिव हिंस्पा होता है ऐंटीरियर सिंगुलेट गाइरस (anterior cingulate gyrus) जो सेल्फ-कॉनशीअसनेस और सेल्फ अवेयरनेस के लिए जिम्मेदार है. माम भाषा में कहा जाए तो ये हिस्सा हमें ये याद रखने में मदद करता है की हम कौन है हमारी सोच क्या है और हम क्या चाहते हैं. इस सिस्टम का दूसरा सबसे एक्टिव हिस्सा है हिप्पोकैम्पस (hippocampus) जो की हमारे पास्ट की मेमोरी और इमोशस को स्टोर कर उन्हें आज की घटनायों के साथ जोड़ता है.
हमारे मस्तिष्क के अन्दर पूरी रात नींद की ये 5 स्टेज साइकिल चलती रहती है, और जैसे जैसे हमारी नींद गहरी होती जाती है रेग स्लीप (REM sleep) का समय बढ़ता जाता है. शुरुयात में इसका टाइम 10 मिनट का होता है जो की बढ़ते बढ़ते 1 घंटे तक पहुँच सकता है. इस समय देखे हुए सपने हमारी लॉन्ग टर्म मेमोरी में कहीं ना कहीं स्टोर हो जाते हैं,
जब हम सो रहे होता है तब हमारे दिमाग के प्री फटल कोर्टेक्स (pre-frontal cortex) का काम लगभग बंद रहता है इसलिए हमारे सपने ज्यादातर असली दुनिया से अलग और काफी अजीब से होते हैं. क्यूकि प्री फ्रटल कोर्टेक्स दिमाग का वो हिस्सा है जो की हमारी लॉजिकल रीजनिंग में मदद करता है.
प्री-फ्रंटल कोर्टेक्स का छोटा सा जो की नींद के दौरान भी काम है वो हमारे लिंम्बिक सिस्टम (limbic system) के एगीगडाला (Amygdala) नाम के हिस्से से जुड़ा रहता है, ये वही हिस्सा होता है जो की डर या खुशी की अवस्था में हमारे शरीर को कंट्रोल करता है. इसी कारण से हम नींद में लगभग पैरेलाएस्ड (paralysed) रहते हैं और सपनों के दौरान खुद को चोट नहीं पहुंचाते,
अब आप जान चुके है की सपने क्यूँ आते है, लेकीन अगला बड़ा सवाल है की सपने क्यूँ जरूरी हैं, तो आईये इस बात को अगले लेसन में जानते हैं,
सपनों को समझने के कारण और हम सपना देख रहे हैं इस बात को जान पाने के कारण सपने और भी ख़ास हो जाते हैं.
कई लोग सपनों का मतलब निकालने की और उसे हकीकत के साथ जोड़ने की कोशिश करते, ये बहुत अच्छी बात है क्यूकि सपने सिर्फ हमारे इमोशंस को एक जीवत रूप ही नहीं देते बल्कि एक इसान के तौर पर हमारे विकास के लिए भी सपने बहुत जरूरी हैं.
सदियों से ये सपने हमें हमारी सर्वाइवल स्किल्स यानि जीवित रहेंने की कौशलता का अभ्यास करने में, कुछ नया सीखने में और बदलते बक़्त के अनुसार अपने आप को डालने में हमारी मदद करते आये हैं, जैसे की उदहारण के तौर पर देखें तो हम में से हर किसी को कभी ना कभी ये सपना आया होगा कि कोई हमारे पीछे है और हम भाग रहा है और हम तरह तरह के तरीकों से खुद को बचा रहे हैं. कभी मापने सोचा है की ऐसे सपर्ने हमें क्यूँ आते है. वो इसलिए आते हैं ताकि हमे बचने के स्किल्स की प्रैक्टिस हो जाये हम जो भी सपने देखते हैं वो कहीं न कहीं हमारी मेमोरी में स्टौर रहते हैं तो क्यूंकि जब हम सोते हैं तब भी हमारे दिमाग का नर्वस सिस्टम (nervous system) लगभग वैसे ही चलता है जैसे जागते समय इसलिए सपने के दौरान हम जो भी करते हैं काफी कुछ हमें याद रहता है और अगर कभी वक़्त आये तो यकीनन हम उन स्किल्स का प्रयोग भी कर पाएगे.
एक और बहुत जरुरी चीज़ है जो इंसानी सपनों को बाकि जानवरों से अलग बनती है वो ये कि हम असल जीवन और सपनों की दुनिया में फर्क कर सकते हैं, जबकि जानवरों में ये क्षमता नहीं होती, वो सपनों को भी सच हीं मानते हैं. हो सकता है कि एक बिल्ली सपना देखे की पड़ोस के घर का कुत्ता मर गया और उसके लिए तो वही सच है और अगले दिन वो बेधड़क उस घर में घुस जाए जहाँ मोटा ताजा कुत्ता उसका मुँह फाडे इतज़ार कर रहा होगा.
अपनी इस काबिलियत के लिए हमें अपने पेरेंट्स का भी धन्यवाद देना वाहिए क्यूंकि शायद आपको याद होगा की जब हम छोटे थे और किसी बुरे सपने को देख कर कंफ्यूजन में रोते रहुए उठ जाते थे तब हमारे पेरेंट्स आ कर बताते थे की कुछ नहीं बेटा आपने बस एक सपना देखा. और उनकी इसी आदत को आगे बढ़ाते हुए हम भी रोज सुबह खुद को समझाते हैं की वो तो बस एक सपना था. लेकिन, अफ़सो नवरों में इतनी कगयुनीकेशन फर्क नहीं बता पाते और वो सारी उम्र सपनों को भी सच ही मानकर जीते हैं,
हमारी नींद और हमारे सपने हमारे दिन का वो समय होता है जब हम कुछ नया सीख सकते हैं और अपनी ज़िन्दगी की बड़ी समस्याओं को भी सोल्व कर सकते हैं.
लोगों का मानना है की नींद हमें रोज़ मर्रा के काम से रेस्ट देती है, पर असल बात तो ये है की जब हमारा सारा शरीर रेस्ट में होता है तब भी हमारा दिमाग काम कर रहा होता है. जब हम सो रहे होते हैं उस टाइम हमारा दिमाग हमारी दिनभर की घटनायों को हमारे दिमाग के मेमोरी बैंक में उनकी वाजिब जगह के हिसाब से उन्हें स्टोर कर रहा होता है.
साल 2001 में न्यूरोसाइंटिस्ट मैथ्यू विल्सन (Matthew wilson) ने अपनी एक रिपोर्ट में इस बात को दर्शाया था. चूहों पर किये गए अपने एक्सपेरिमेंट के जरिये उन्होंने ये बताया की कैसे नींद के दौरान भी चूहों का दिमाग मेज़ में खाना ढूंडने के रास्तों के बारे में सोच रहा है,
इस एक्सपेरिमेंट को करने के लिए साहटिस्ट ने चूहों की ब्रेन वेव्स (brain wayes) का पैटन दो बार ट्रेस किया पहली बार जब वो जाग रहे थे और मेज़ में अपना खाना एंड रहे थे, दूसरी बार जब वो गहरी नींद में सो रहे थे. और साइटिस्ट इस बात को जान कर हैरान हो गए की दोनों टाइम उनकी ब्रेन वेव्स बिलकुल एक जैसी थी. उनमें तो इतनी समानता थी की साइटिस्ट ये भी पता लगा पा रहे थे के सपनों के दौरान यो मेज की किस जगह पर घूम रहे है.
हमारे दिमाग के साथ भी बिलकुल ऐसा ही होता है. हम ये सोच के सोते हैं की हम अपने दिमाग को रेस्ट दे रहे हैं पर वो उतनी ही तेजी से अपना काम कर रहा होता है जैसे की जागते वक्त करता है. बस इंसानी दिमाग में ये फर्क है की हमारे सपने क्लू की तरह होते हैं जिन्हें समझ कर हम असल दुनिया की समस्यों को दूर कर सकते हैं.
इस बात का एक अच्छा उदहारण हमें सपनों के बारे में रिसर्च कर रहे जाने माने साइंटिस्ट विलियम देेंट (VWiliam Dement) के एक एक्सपेरिमेंट से मिल सकता है. उन्होंने 10 लोगों का एक ग्रुप बनाया और उन्हें H0KLMNO’ लेटर्स को सोते समय याद रखने को कहा फिर अगली सुबह उन्होंने सभी से पूछा की क्या उन्होंने अपने सपनों में HUKLMINO के बारे में कुछ देखा तो उनमें से एक ने कहा की उसने अपने सपनों में बहुत सारा पानी देखा वो व्यक्ति केमिस्ट्री का स्टूडेंट था तो साइटिस्ट विलियम देमेंट (William Dement) ने उसे प्रकार समझ HIJKLMNO” मतलब ब्रेन ने H to 0 निकाला मतलब H20 यानी का केमिकल फार्मूला इसलिए उस केमिस्ट्री के स्टूडेंट को तभी अपने सपनों में पानी दिखा.
इसलिए हम कह सकते है की सपने हमें चीजों को याद रखने में, उन्हें आपस में कनेक्ट करने में और हमारी बुद्धि में मददगार होते हैं,
आपके सपने एक सेल्फ-थेरेपी की तरह काम करते हैं, पर आपका डिप्रेशन इसमें बाधक बन सकता है.
आपको हेल्दी रहने के लिए ना अपने सपनों को याद रखने की जरुरत है और ना उनका मतलब निकालने की. आप बस सपने देखिये और ये खुद ब खुद आपको इमोशनली हेल्थी रहने में आपकी मदद करेंगे अगर आपने कभी भी साइकोथेरेपी ली होगी या उसके बारे में पढ़ा होगा तो आप जानते होंगे की उसके सेशस में आपको नींद की अवस्था में ले जाकर आज के नेगेटिव इमोशन को किसी पुरानी घटना के साथ जोड़ते हैं. सपनों में भी बिलकुल ऐसा ही होता है, हसलिए हम कह सकते है की सपने हमारे लिए एक सेल्फ-थेरेपी की तरह काम करते जब हमारा दिमाग सपनों के जरीए हमारे किसी आज के नेगेटिव इमोशन जैसे डर या घबरहट को पुरानी किसी घटना के साथ कनेक्ट करता है तो असल में वो ये बताना चाहता है कि जैसे पहले सब ठीक हो गया वैसे आज भी हो जाएगा. इन बातों को याद कर हमारे दिमाग को इन सिचुएशन से लड़ने की हिम्मत मिलती है. लेकिन ज्यादातर ऐसा होता की हमें अपने सपने बड़े अजीबो गरीब और एक दुसरे से डिसकनेक्रेड से लगते हैं, लेकिन असल में ऐसा नहीं होता हमारे दिमाग ने भपने नयुरोंस रुपी शेल्चस में हमारी हर याद को किसी न किसी इमोशन का टैग दे कर रखा होता है. इसलिए जब भी हमारे वर्तमान में कोई बहुत इमोशनल घटना होती है तो दिमाग पास्ट की वैसी ही घटना को उसके इमोशनल टैग के हिसाब से हूड कर आपको सपने के रूप में दिखता है इन सपनों को पॉजिटिव तरीके से दिखाने के पीछे हमारे दिमाग का ये मकसद होता है कि हमें कॉन्फिडेंस मिले और हम अपने इस नेगेटिव इमोशन से पिछली बार की ही तरह बाहर आ सके.
लेकिन हर बार ऐसा नहीं होता कई बार हमारे सपने हमें नेगेटिविटी और डिप्रेशन की तरफ भी ले जा सकते हैं, ज्यादातर लोग सुबह के 4 बजे के बाद ज्यादा गहरी नींद में जाते हैं और इस समय उनकी रेम स्लीप का टाइम सबसे ज्यादा होता है, इसलिए सुबह के सपने बड़े अनोखे और कई पुरानी यादों से भरे हुए होते हैं ताकी जब हम सुबह उठे तो एक अच्छे मूड के साथ उठे. लेकिन डिप्रेशन से ग्रसित लोगों के साथ ऐसा नहीं होता उनके असल जीवन की तरह उनके सपने भी इल और दुनिया के बोझ तले दबे हुए से होते हैं, इसलिए कई बार डिप्रेशन के पेशेंट्स के सपने उन्हें और ज्यादा डिप्रेशन में ले जाते हैं. ऐसे केसेस में एटी-डिप्रेसेंट मेडिसिन आपकी मदद कर सकती हैं, क्यूंकि ये मेडिसिन्स लोगों को रेम स्लीप से दूर रखती है ताकी उनके सपने उनके डिप्रेशन को बड़ा न सकें.
आपके सपने अपके लिए प्रेरणादायी और प्रोत्साहन से भरे हो सकते हैं, खासकर तब जब उनका मतलब स्पष्ट हो.
बहुत से प्रसिह कलाकार ऐसे है जिन्होंने अपने सपनों से प्रेरणा लेकर उन्हें सच कर दिखाया, क्यूकि वो भाग्यशाली थे कि उन्हें अपने सपनों का अर्थ समझ में आगया. ऐसा ही एक उदहारण है म्यूजिक डायरेक्टर पॉल मेकर्टनी (Paul McCartmey) का जो कहते है की उन्होंने ‘यस्टरडे’ नामक अपने सबसे फेमस गाने की धुन सपने में सुनी थी और वहीं से प्रेरणा लेकर उन्होंने ये गाना बनाया. ऐसे ही कई उदहारण है जिन्होंने अपने सबसे सक्सेसफुल प्रोजेक्ट की प्रेरणा अपने सपनों से ली थी.
जब हम सपनों की दुनिया में होते हैं तब हमारा दिमाग सबसे ज्यादा क्रिएटिव होता हैं क्यूंकि वो किसी भी लॉजिक और समाज के बनाये किन्तु परन्तु से परे होता है. अपने सपनों के इस क्रिएटिव पोटेंशियल को बढ़ने के लिए आप खुद को सपष्ट स्वपन यानि lucid dream देखने के लिए ट्रेन कर सकते हैं. ऐसा करने के लिए आपको बस इस बात का ध्यान रखना होगा की जब भी आप कोई सपना देखें तो आपको पता हो की आप सपना देख रहे हैं लेकिन आप नींद से ना जागें और सपने को अंत तक देखें ये
प्रक्रिया सुबह के समय सबसे कारगर होती है अगर आप ये कर पाएँ तो आप वो सब हासिल कर सकते है जो आप जागते हुए असल दुनिया में नहीं कर सकते. लेकिन हर बार ऐसा कर पाना इतना आसान नहीं होता, पर कुछ टिप्स को अपना आप कुछ हद तक इसे कर सकते हैं. पहला ट्रिक ये है की जब आप जाग रहे हों तो समय समय पर खुद से ये पूछे की ये जो हो रहा है वो सच है या सपना, अगर आप बार बार इस चीज़ की प्रेक्टिस करते हैं तो सपनों में भी आप खुद को इस बार से अवेयर रख सकते हैं कि ये सच है या सपना इस तरह आम लुतिंड ड्रीमिंग (lucid drearming) कर सकते हैं. दूसरा ट्रिक ये है की आप सोने से थोड़ा पहले खुद को सपनों जैसी अवस्था में इमेजिन करें, साइटिस्ट स्टीफन लाबज का कहता है कि ऐसा करने से लुसिड डीमिंग के चासेस 150% बढ़ जाते हैं.
अपने सपनों के साथ इंटरेक्ट कर के आप अपनी कल्पनाओं और रचनाताकता को जी सकते हैं. तो अलगौ बार जब कोई आपको बोले कि सोना बस समय बर्बाद करना होता है तो उसे ये सब जरूर बताएं