THE EFFECTIVE EXECUTIVE by peter drucker.

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About Book

आज कंपनियां तेज़ी से फेल हो रही हैं. क्यों? क्योंकि executives अच्छे से परफॉर्म नहीं कर पा रहे हैं. वो उन्हीं घिसी पिटी पुरानी स्ट्रेटेजीज को यूज़ कर रहे हैं जिन्हें उनके पहले कई लोगों ने इस्तेमाल किया था और यही सिलसिला चला जा रहा है. तो आप एक इफेक्टिव एग्जीक्यूटिव कैसे बन सकते हैं? आपके सवाल का जवाब इस बुक में छुपा है. यह समरी किसे पढ़नी चाहिए?

Executives

नीचे लेवल पर काम करने वाले एम्प्लाइज

टॉप मैनेजमेंट ऑफिसर्स

बिजनेसमैन

ऑथर के बारे में

पीटर ऍफ़. ड्रकर एक टीचर, कंसलटेंट और ऑथर हैं जिन्होंने कई किताबें लिखी हैं. उन्हें “Father of

management Thinking” कहा जाता है. उन्होंने बिज़नेस मैनेजमेंट पर कई इनोवेटिव आईडिया इंवेंट किए हैं. बिज़नेस कम्युनिटी के कई एग्जीक्यूटिव आज भी गाइडेंस के लिए पीटर की किताबें पढ़ते हैं.

इंट्रोडक्शन

ऐसा क्यों है कि कुछ कंपनियां कामयाब हो जाती हैं और बाकी फेल? कुछ executives अच्छा परफॉर्म कर ज़्यादा रिजल्ट डिलीवर कर पाते जबकि दूसरे नहीं? क्या वो इन स्किल के साथ पैदा हुए हैं या उन्हें सिखाया जाता है कि उन्हें क्या करना है? इन कंपनियों और टॉप executives का राज़

क्या है जो उन्हें मार्केट में बने रहने में मदद करता है? वो ऐसा क्या अलग और ख़ास करते हैं? किसी भी आर्गेनाइजेशन में एक एग्जीक्यूटिव बहुत ही इम्पोर्टेन्ट इसान होता है. वो जो भी डिसिशन लेता है उसका बड़े स्केल पर आर्गेनाइजेशन पर

असर होता है. उनके द्वारा लिए गए डिसिशन या उठाए हुए कदम किसी भी कंपनी को या तो ऊँचाई पर ले जा सकते हैं या उसे ज़मीन पर पटक सकते

हैं. लेकिन एक इफेक्टिव एग्जीक्यूटिव अच्छे से जानता है कि उसे क्या करना है और वो सोच समझकर सही डायरेक्शन में कदम उठाता है, आपको ये पता होना चाहिए कि कोई भी ये स्किल सीखकर पैदा नहीं होता.

प्रताप

इस बुक में आप सीखेंगे कि इफेक्टिवनेस एक स्किल है जिसे कोई भी सीख सकता है, आप किसी भी काम को किस तरह करते हैं बस वो मायने खता है. इस बुक में कुछ ख़ास qualities बताई गई हैं जिनका इस्तेमाल कर इफेक्टिव एग्जीक्यूटिव सक्सेसफुल हुए हैं. तो क्या आप एक ग्रेट एग्जीक्यूटिव बनने के लिए तैयार हैं जिसे हमेशा याद रखा जाएगा? अगर हाँ, तो ये बुक आपको सिखाएगी कि कैसे.

KNOW THY TIME.

हर एग्जीक्यूटिव के लिए टाइम सबसे इम्पोर्टेन्ट फैक्टर होता है. इसका ज्यादा से ज्यादा फ़ायदा उठाने के लिए कई एग्जीक्यूटिव कहते हैं कि अपने काम के लिए पहले प्लान बनाना चाहिए. लेकिन रियल लाइफ में ये मेथड ज्यादा काम नहीं करता इफेक्टिव एग्जीक्यूटिव पहले ठीक से अपने टाइम

को एनालाइज करते हैं. फिर वो unproductive और बेकार के काम पर लगने वाले समय को कम से कम करने की कोशिश करते हैं. लेकिन हम इंसानों को ठीक से टाइम मैनेज करना ही नहीं आता. असल में, हम अक्सर समय की सुध बुध खो देते हैं.

एक साइकोलॉजिकल एक्सपेरिमेंट किया गया जिसमें लोगों को एक अँधेरे कमरे में रखा गया और वहाँ से बाहर निकलने का कोई रास्ता नहीं था. उन लोगों में सेंस ऑफ़ स्पेस तो बरकरार थी लेकिन उन्होंने जल्द ही अपना सेंस ऑफ़ टाइम खो दिया था. अब इसी एक्सपेरिमेंट को लाइट जलाकर दोहराया गया. उनमें से ज्यादातर लोग अभी भी समझ नहीं पा रहे थे कि वो उस कमरे में कितनी देर से बंद थे. इसलिए टाइम का ट्रैक खो देना और समय बर्बाद करना हम सभी करते हैं जिसका मतलब ये हुआ कि हर एग्जीक्यूटिव को सीखना होगा कि टाइम को मैनेज कैसे किया जाए.

एक एग्जीक्यूटिव कई executives को बेकार का काम सौंप दिया जाता है जिस वजह से उनका बहुत टाइम बर्बाद होता है लेकिन जॉब की वजह से उन्हें इस प्रेशर को भी झेलना पड़ता है. एक बार एक ने बताया कि उसकी जॉब का एक हिस्सा ये भी था कि उसे हर रात डिनर मीटिंग अटेंड करनी पड़ती थरी इसमें उसका बहत समय बर्बाद होता था लेकिन फिर भी वो इसे टाल नहीं सकता था, बेकार के काम में सभय बर्बाद करना एक एग्जीव्यूटिव के

काम का जैसे एक हिस्सा होता है, इसलिए ज्यादातर

ज्यादातर executives अपने डेली रूटीन में कम से कम समय देकर समय बचाने की कोशिश करते हैं, लेकिन ये तो unproductive

होना हुआ ना, अगर आप प्रोडक्टिव बनना चाहते हैं तो आपको हर काम या एक्टिविटी के लिए ज्यादा समय देना चाहिए और अगर आप अपने एम्प्लाइज के साथ एक अच्छा और मज़बूत रिश्ता बनाना चाहते हैं तो आपको उनसे बातचीत करने के लिए भी समय देना होगा, एक एग्जीक्यूटिव किसी भी बड़े आर्गेनाइजेशन में लीडर का रोल निभाता है और उसे कई इम्पोर्टेन्ट डिसिशन लेने पड़ते हैं, जल्दबाजी में लिया गया डिसिशन अक्सर गलत साबित होता है. आपको

कमिटमेंट देने से पहले वो कई को कई बार ऐसी प्रॉब्लम का सामना करना पड़ सकता है. ज्यादातर एग्जीक्यूटिव इसके लिए पूरा टाइम लेते हैं. बार अपने डिसिशन के बारे में सोच विचार करते हैं।

एल्फ्रेंड पी. स्लोएन जूनियर सबसे बड़ी मैन्युफैक्चरिंग कंपनी जनरल मोटर्स के कभी सीईओ हुआ करते थे. ऐसा कहा जाता है कि खड़ी होती तो १ भी कोई प्रॉब्लम एलफ्रेड कभी भी तुरंत फैसला नहीं लेते थे. वो पहले टेस्ट करने के लिए एक SOlution लेकर आते थे. कुछ दिनों और हफ़्तों के बाद वो टेस्ट एक दोबारा उस प्रॉब्लम को एनालाइज करते. अगर फिर से उनका डिसिशन दही होता तभी उसे अप्लाई किया जाता था वरना नहीं. इसी तरह एक दूसरे केस में, एक सीनियर एडमिनिस्ट्रेटिव ऑफिसर लंबे समय से गवर्नमेंट रिसर्च इंस्टिट्यूट में काम कर रहे थे. उन्होंने उस इंस्टिट्यूट में

बहुत अच्छे से काम संभाला था लेकिन बाद में उनकी परफॉरमेंस ख़राब होने लगी. अब ना तो उन्हें काम से निकाला जा सकता था और ना ही उनकी

मौजूदा पोजीशन से उन्हें नीचे की पोजीशन दी जा सकती थीं क्योंकि कंपनी उनके सालों की सर्विस और वफ़ादारी को नज़रंदाज़ नहीं कर सकती थीं,

लेकिन क्योंकि वो एडमिनिस्ट्रेटिव पोजीशन पर थे तो कंपनी को उनके गलत फ़ैसलों की भारी कीमत चुकानी पड़ रही थी. वो। उस कंपनी के डायरेक्टर और deputy किसी प्रॉब्लम के बारे में सोच रहे थे लेकिन उसका कोई हल नहीं निकाल पाए. बाद में जब उन्होंने उस प्रॉब्लम के लिए ज़्यादा समय निकाला तो उन्हें उसका हल मिल गया. वो इतना आसान सा उपाय था जिसने उन्हें आश्चर्यचकित कर दिया था कि उन्होंने पहले ऐसा क्यों नहीं सोचा. इसलिए एक आर्गेनाइजेशन में किसी भी बड़े डिसिशन को लेने से पहले एक इफेक्टिव एग्जीक्यूटिव को उसे ज़्यादा टाइम देना चाहिए.

अगर आप समय बचाना चाहते हैं तो उन चीज़ों को हटाए जो समय बर्बाद करते हैं. पहला स्टेप ये पहचानना है कि सिस्टम की कमी के कारण कौन से काम समय बर्बाद करते हैं. बहुत सारे एम्प्लाइज को काम पर रखना, बहुत ज्यादा मीटिंग बुलाना और गलत चीज़ों पर ध्यान फोकस करना बहुत समय बर्बाद करता है. हैरी हॉपकिंस (Harry Hopkins) वर्ल्ड वॉर 2 के दौरान प्रेसिडेंट रूज़वेल्ट के सलाहकार थे, पेट के कैंसर की वजह से उनकी हालत बिगड़ती जा

रही थी इसलिए हॉपकिंस ने ज्यादा इम्पोर्टेन्ट चीज़ों पर फोकस करने का फ़ैसला किया. इसका नतीजा ये हुआ कि उन्होंने उस हालत में भी कंपनी से

जुड़े हर इंसान से बढ़कर परफॉर्म किया था. अगर आप एक इफेक्टिव एग्जीक्यूटिव बनना चाहते हैं तो आपको अपने टाइम को अच्छे से मैनेज करना

सीखना होगा, आपको बैठकर लिखना होगा कि आपका समय किन किन चीज़ों में लग रहा है. इस तरह आपको पता चलेगा कि कहाँ समय कम देने की

ज़रुरत है और कहाँ ज़्यादा. तभी आप ज़्यादा से ज़्यादा अचीव कर पाएंगे.

WHAT CAN I CONTRIBUTE?

एक इफेक्टिव एग्जीक्यूटिव अपने आस पास देखकर खुद से पूछता है, “मैं इस आर्गेनाइजेशन के फ़ायदे के लिए और क्या कर सकता हूँ?” कई executives अच्छा परफॉर्म करने में इसलिए फेल हो जाते हैं क्योंकि वो अपने एम्प्लाइज के रिजल्ट के बजाय अपने एफर्ट के बारे में ज़्यादा सोचने लगते हैं. उन्हें लगता है कि आगेनाइजेशन को उनका अहसानमंद होना चाहिए क्योंकि वही तो सब कुछ संभाल रहे हैं लेकिन ऐसे एग्जीक्यूटिव कभी किसी चीज़ की ज़िम्मेदारी नहीं लेते.

एक बड़ी कंपनी के पब्लिकेशन डिपार्टमेंट में एक डायरेक्टर काम करते थे, वो कई सालों से उस कंपनी से जुड़े हुए थे. साइंस का बैकग्राउंड ना होने के बावजूद वो साइंटिफिक टॉपिक पर भी लिखा करते थे. लेकिन उनके काम की क्वालिटी इतनी अच्छी नहीं थी क्योंकि वो एक मंजे हुए अच्छे राइटर नहीं थे. उनके रिटायर होने के बाद एक प्रोफेशनल को काम पर रखा गया जो हाई क्वालिटी का काम कर रहा था. नए डायरेक्टर के आने से उस डिपार्टमेंट में बहुत कुछ इम्प्रूव हुआ था, पब्लिकेशन अब ज़्यादा प्रोफेशनल हो गया था लेकिन आक्षर्य की बात तो ये थी कि अब उनके टारगेट ऑडियंस ने उनका आर्टिकल पढ़ना बंद कर दिया था. एक साइंटिस्ट ने इसके जवाब में कहा कि उन्होंने पढ़ना इसलिए बंद किया क्योंकि अब आर्टिकल उन पर लिखे जा র में रहे थे. वो सभी उस पुराने डायरेक्टर को पसंद करते थे क्योंकि वो आर्टिकल उनके लिए लिखते थे. रहे थे तो

अब यहाँ पुराने डायरेक्टर इसलिए इफेक्टिव बने रहे क्योंकि वो लगातार खुद से सवाल किया करते थे कि, “ज़्यादा से ज़्यादा लोग हमारे आर्टिकल

में बया कर

। यंग साइंटिस्ट

को पढ़े इसके लिए क्या सकता हूँ?” उन्हें एहसास हुआ कि जितने भी यंग

थे उन्हें उ

न सब में उनकी एजेंसी में काम की दिलचस्प को

उन

जगाना होगा, बस उसके बाद हर फैसला इसी बात को ध्यान में रखकर लिया जाने लगा. उनका मानना था कि पब्लिकेशन की क्वालिटी मायने नहीं

रखती इसके बजाय ज्यादा साइंटिस्ट को उनकी एजेंसी में जॉब करने के लिए attract करना ज़्यादा मायने रखता है. जब आप खुद से सवाल करते हैं। आप अपनी तरफ से ज़्यादा से ज्यादा क्या दे सकते हैं तो आप अपने अंदर छुपे हुए पोटेंशियल के बारे में जान पाते व खुद से ये सवाल नहीं पूछता है. जो एग्जीक्यूटिव खुद उसका गोल भी बहुत छोटा होता है और उसका कंपनी में योगदान भी बहुत कम होता है, जब एक एग्जीक्यूटिव कट्रीब्यूट करने पर फोकस करता है तो उससे कंपनी के लोगों पर भी असर पड़ता है. ऐसा ही एक एम्ज़ाम्पल तब सामने आया जब

किसी हॉस्पिटल में एक नए एडमिनिस्ट्रेटर ने काम करना शुरू किया. पहली स्टाफ़ मीटिंग के दौरान एक बड़ी प्रॉब्लम जिसका वो सामना कर रहे थे उसके लिए एक डिसिशन लिया गया. तब एक नर्स ने पूछा, क्या नर्स ब्रांड इससे सहमत होंगी? उसके बाद फिर से चर्चा शुरू हो गई. नए एडमिनिस्ट्रेटर को बाद में पता चला कि नर्स ब्रेंडा ना तो किसी ऊँचे पोजीशन पर थीं और ना ही कोई खास मेंबर थीं, वो तो औरों की तरह एक आम नर्स थी, लेकिन जो बात उन्हें आम से ख़ास बनाती थी वो ये थी कि वो हमेशा खुद से पूछती रहती थीं “क्या ये मेरे पेशेंट्स के लिए अच्छा होगा?” जिस वजह से उनके यूनिट के पेशेट हमेशा जल्दी और बेहतर तरीके से ठीक हो जाते थे. ये देखकर वहाँ की हर नर्स अब इस बात को फॉलो करने लगी थी. वो सब भी खुद से पूछने लगी थी, “क्या ये हमारे पेशेंट के लिए सबसे बेस्ट साबित होगा?” भले ही नर्स बेंडा को रिटायर हुए दस साल हो चुके थे, लेकिन उन्होंने हॉस्पिटल के स्टाफ़ के लिए एक मिसाल और हाई स्टैण्डर्ड सेट कर दिया

था.

जब हम अपनी तरफ से contribute करने का वादा कर लेते हैं तब हम ज्यादा इफेक्टिव हो जाते हैं. आज executives इसलिए फेल हो रहे हैं क्योंकि यो बदलने के लिए तैयार नहीं हैं. जब उन्हें एक ऊँची पोजीशन पर प्रमोट कर दिया जाता है तब भी वों वही करते रहते हैं जो पहले कर रहे थे और वही उनके फेलियर का कारण बनता है.

आज के दौर में, आर्गेनाइजेशन के लगभग हर इंसान ने हायर एजुकेशन हासिल की है और वो काफ़ी नॉलेज भी रखते हैं. लेकिन इस नॉलेज को आईडिया और कांसेप्ट में बदलना हर किसी को नहीं आता, इफेक्टिव बनने के लिए, किसी एक एरिया में फोकस करना चाहिए और उसमें परफेक्ट होने की कोशिश करनी चाहिए. अगर आप चाहते हैं कि आपको काबिल और इफेक्टिव कहा जाए तो आपको अच्छे रिजल्ट देने होंगे, जो सिर्फ नॉलेज को अप्लाई करने से ही पाया जा सकता है.

कई executives अपने जूनियर्स के साथ अच्छे से पेश नहीं आते हैं जिनमें एल्फ्रेड स्लोएन भी शामिल हैं लेकिन इसके बावजूद उनके एमप्लाइज

उन्हें बहुत सम्मान और अहमियत देते थे. इसका कारण ये था कि उन्हें भी कंपनी का इग्पोर्टेन्ट हिस्सा माना जाता था. नीचे लेवल पर काम करने के

बावजूद उन्हें बड़े डिसिशन लेते वक्त शामिल किया जाता था. एल्फ्रेड इन फैसलों को लेने में वक़्त ज़रूर लगाते थे लेकिन उनके डिसिशन हनेशा अच्छे

और सही साबित हुए क्योंकि वो हर एक की भलाई | ध्यान में रखकर डिसिशन लेते थे. अगर आज आप एक इफेक्टिव एग्जीक्यूटिव बनना चाहते हैं तो नीचे के लेवल से लेकर टॉप लेवल तक अच्छे कम्युनिकेशन सिस्टम को बनाने पर ध्यान दें. अगला स्टेप है टीमवर्क को बढ़ावा देना. उसके बाद आप खुद को और दूसरों को डेवलप करने पर फोकस करें. हमेशा बड़े और इम्पोर्टेन्ट डिसिशन सोच समझकर लें, उसे थोड़ा एक्स्ट्रा समय दें और हमेशा ऐसे तरीकों के बारे में सोचें जो चीज़ों को पहले से बेहतर बना सके.

MAKING STRENGTH PRODUCTIVE

अगर हम कमजोरियों पर ध्यान देंगे तो कभी कुछ अचीव नहीं कर पाएँगे, एक इफेक्टिव एग्जीक्यूटिव आर्गेनाइजेशन में नीचे से लेकर टॉप मैनेजमेंट तक की ताकत पर फोकस करता है. उसके बाद वो आर्गेनाइजेशन की ग्रोथ के लिए उस ताकत को यूज करने के बारे में सोचता है. वो जानता है कि कंपनी में प्रेसिडेंट लिंकन केंटकी में पले-बढ़े थे जहां उन्होंने शराब से होने वाले बुरे असर को बहुत करीब से देखा था. अमेरिकन सिविल वॉर के दौरान उन्होंने ऐसे

जो लोग । प्रमोशन पाने के लायक है वही कंपनी की असली ताकत हैं.

generals को सिलेक्ट किया था जो किसी

तरह का नशा नहीं करते थे. हालांकि ये जेनरल काबिल थे लेकिन वो अच्छा परफॉर्म नहीं कर पाए क्योंकि

उन्हें वो कॉन्फिडेंस और पक्का इरादा नहीं था इसका नतीजा ये हुआ कि काबिल ऑफिसर्स होने के बावजूद, अमेरिका के northern स्टेट्स तीन सालों तक जंग हारते चले गए.

अंत में प्रेसिडेंट लिंकन ने जनरल ग्रांट को सिलेक्ट किया. हालांकि यो हमेशा शराब के नशे में रहते थे, उन्होंने योजना बनाने में और आर्मी को लीड करने लिंकन में अपनी काबिलियत को साबित किया था. इसके कारण, अमेरिका के northern स्टेट्स साउथ के स्टेट्स के खिलाफ़ जंग जीतने में कामयाब हुए. इस घटना से प्रेसिडेंट लिंकन ने सीखा कि एक आदमी की ताकत इस बात से तय नहीं की जा सकती कि वो कितना शांत है या नशा नहीं करता है या उसमें कोई ऐब और कमी नहीं है. कमी तो हम सब में है लेकिन हमें सिर्फ अपनी ताकत पर फोकस करना चाहिए.

इसी स्ट्रेटेजी को अमेरिका के southern स्टेट के कमांडर जेनरल ली ने इस्तेमाल किया था, उनकी आर्मी के जवान शराब पीने के कारण बदनाम थे, लेकिन जेनरल ली जानते थे कि ये खोट मायने नहीं रखती क्योंकि वो सब आर्मी को अच्छे से लीड करने के काबिल थे. उन्होंने इस खूबी का फायदा इसलिए एक इफेक्टिव एग्जीक्यूटिव इस बात पर फोकस करने के बजाय कि एक आदमी क्या नहीं कर सकता है, वो इस बात पर फोकस करता है कि

उठाया और इस तरह वो लिंकन की आमी को हरा पाए थे,

वो क्या कर सकता वो जानता है कि अगर किसी इंसान की ताकत को ठीक से इस्तेमाल किया जाए तो उसकी कमज़ोरी मायने नहीं रखती, कहते हैं कि जेनरल ली की आर्मी के एक जवान ने उनके आर्डर को तोड़ दिया था जिस वजह से उनका पूरा प्लान बर्बाद हो गया था. तैसे तो जेनरल ली बहुत शांत स्वभाव के थे लेकिन बात को सुनकर वो आपे से बाहर हो गए. बाद में जब उनका गुस्सा शांत हुआ तो उनकी टीम के एक मेंबर ने उस जवान को निकालने की बात कही, जनरल ली उसकी बात सुनकर बहुत हैरान हुए. उन्होंने कहा कि वो अच्छा परफॉर्म करता है, बहुत काबिल इसलिए उसे निकाला नहीं जा सकता. इसलिए एक इफेव्टेव एग्जीव्यूटिव अच्छे से जानता है कि उसके नीचे काम करने वाले एम्प्लोयी का काम

अपना काम ठीक से करना होता है ना की अपने बॉस को खुश करना. तो आप खुद को इफेक्टिव कैसे बना सकते हैं? हर कोई यही शिकायत करने में बिजी है कि वो क्या नहीं बदल सकते. वो इस बात पर फोकस बनाए रखते हैं कि उनकी कंपनी, गवर्नमेंट वगैरह उन्हें क्या नहीं करने दे। हैं, लेकिन एक इफेक्टिव एग्जीक्यूटिव शिकायत नहीं करता बल्कि इस बात पर ध्यान देता है कि

वो क्या कर सकता है. अपनी प्रोडक्टिव बनाने का बस यही एक तरीका है,

ताकत को

एक एग्जीक्यूटिव का दम्पोटेन्ट काम होता है अपने साथ वालों की ताकत और खूबियों को पूरी तरह से इस्तेमाल करना, बॉस को मैनेज करना बहुत आसान है लेकिन सिर्फ एक इफेक्टिव एग्जीक्यूटिव जानता है कि ये कैसे करना है. अपने बॉस की ताकत को सामने लेकर आएं. आपको समझना होगा कि हम सब गलतियां करते हैं और इसमें कोई बड़ी बात नहीं है. अगर आप सिर्फ उनकी गलतियों को देखेंगे तो आप निराश होते जाएँगे. उनकी खूबियों पर ध्यान देना और उसका फ़ायदा उठाना सीखें इस तरह आपके सुपीरियर को लगेगा कि वो भी अपना योगदान दे रहे हैं, इस तरह तो और ज्यादा कंट्रीब्यूट करना चाहेंगे और इसी में जीत छुपी होती है. अगर आपके सुपीरियर को पॉलिटिक्स का अच्छा नॉलेज है तो पॉलिटिक्स से रिलेटेड कोई भी प्रॉब्लम आने पर उनसे मदद लें ताकि दो नई और अच्छी policy या solution के बारे में बता सकें, अंत में याद रखें कि एक इंसान की कमियाँ उसकी खूबियों की बराबरी कभी नहीं कर सकती. अगर आप लोगों की ताकत पर फोकस करेंगे तभी आप इफेक्टिव एग्जीक्यूटिव पाएँगे, इसके अलावा अपनी पूरी एनर्जी को इस बात पर लगाएं कि आप क्या कर सकते हैं, जो नहीं कर सकते उस पर टाइम waste ना करें. हमेशा याद रखें कि आप तभी अच्छे एग्जीक्यूटिव कहलाएँगे जब आप अपने सुपीरियर और एम्प्लाइज की कमियों को देखने के बजाय उनकी ताकत का इस्तेमाल करेंगे.

THE ELEMENT OF DECISION MAKING

डिसिशन लेना एग्जीक्यूटिव का एक इम्पोर्टेन्ट काम होता है. कभी-कभी डिसिशन लेने में ज्यादा वक्त लग जाता है लेकिन इसका कंपनी पर बहुत बड़ा असर होता है. एग्जीक्यूटिव जानते हैं कि डिसिशन लेने में समय लगता है और इसमें कई फैक्टर के बारे में सोचना भी पड़ता है. थियोडोर वेल 1910 के आसपास Bell Telephone System के प्रेसिडेंट थे. उन्हें हिस्ट्री के सबसे अच्छे और असरदार डिसिशन लेने के लिए ता है. जब तक उन्होंने उस कंपनी में काम किया, उन्होंने उसे पूरी दुनिया में सबसे बड़ी और तेज़ी से बढ़ने वाली प्राइवेट कंपनी बना दिया था, जाना जाता कुछ लोग इस बात को सीरियसली नहीं लेते कि टेलीफोन सिस्टम का बिज़नेस एक प्राइवेट इंडस्ट्री है. अमेरिका के जिन हिस्सों में बेल सिस्टम अपनी सर्विस दे रहा था वहाँ ज़बरदस्त ग्रोथ और डेवलपमेंट हो रही थी. बेल सिस्टम ने लीडरशिप के मामले में कई रिस्क उठाने की हिम्मत दिखाई और वो सालों तक तेज़ी से ग्रो करते रहे.

इसका कारण था वो चार र स्ट्रेटेजिक डिसिशन जो थिओडोर वेल ने लिए थे. वेल जानते थे कि अगर टेलीफोन सिस्टम को प्राइवेट सेक्टर में बने रहना है तो उन्हें सोच समझकर क्लियर डिसिशन लेने होंगे. यूरोप में टेलीफोन सिस्टम गवर्नमेंट के अधिकार में था और वो भी अच्छे से काम कर रहा था. अमेरिकन गवर्नमेंट के जाना बिलकुल मिशन इम्पॉसिबल जैसा था. लेकिन वेल समझ गए थे कि कंपनी को मार्केट में बने रहने के लिए उन्हें पब्लिक के लिए कुछ ऐसा करना होगा जो गवर्नमेंट भी उनके लिए ना कर सके. इसलिए उन्होंने फ़ैसला किया कि वो एक और अपना पूरा फोकस कस्टमर पर रखकर उन्हें पूरी तरह संतुष्ट करेंगे और दूसरी ओर प्रोफिट भी कमाएंगे. लेकिन वेल ने इस बात का पूरा ध्यान रखा कि वो अपनी अच्छी सर्विस के बारे में झूठे और खोखले वादे नहीं देंगे बल्कि उसे सच में डिलीवर भी करेंगे.

वेल को ये भी पता था कि गवर्नमेंट ने policy के जरिए इस बात का ध्यान रखा था कि टेलीफोन सिस्टम पूरी तरह से फ्री इंडस्ट्री ना बन सके, उन्होंने इस बात का भी पूरा ध्यान रखा कि वो पूरी इमानदारी और सच्चाई से काम करें ताकि उनकी कंपनी मार्केट से गायब ना हो जाए. वैल का दूसरा बड़ा डिसीजन था ये देखना कि हर एरिया में हर मैनेजर का मेन काम पब्लिक और कंपनी की भलाई के लिए अच्छी policy लेकर आना और उसे आगे बढ़ाना होना चाहिए. बेल

कि बिना competition लिए क्या कर सकते हैं?” तो जाने लिए कती से हमे कंपनी की डीयनामिक और मार्केट में बराबरी की टक्कर देने वाली कानकी समे 1 के कंपनी ग्रो नहीं कर पाएगी और इसका solution था अच्छे और बेहतर टेक्नोलॉजी को लेकर आना. इससे Bell laboratories की शुरुआत हुई जो आगे चलकर सबसे सवसेसफुल ईंडस्ट्री में से एक बनी, लेकिन ऐसा नहीं था कि ये मार्केट में एक इकलौती कंपनी थी जिसने । टेक्नोलॉजी में इंवेस्ट किया था. Bell laboratories इसलिए कामयाब हुई क्योंकि वहाँ की टीम समझती थी कि नई टेक्नोलॉजी सिर्फ तभी टिक सकती है जब उसके आगे मौजूदा टेक्नोलोजी पुरानी और बेकार लगने लगे. जब वर्ल्ड वॉर का समय आया तब बेल सिस्टम ने वेल की इनोवेशन policy के कारण बहुत बड़ा प्रॉफिट कमाया. उनका अगला सबसे इम्पोर्टेन्ट डिसिशन था कैपिटल मार्केट के बारे में, अगर कोई कंपनी इन्वेस्टमेंट attract नहीं कर पाती है तो वो फेल हो जाती है, इसलिए वेल कंपनी के लिए बड़ा इन्वेस्टमेंट attract करना चाहते थे, वो AT&T का प्लान लेकर आए जिसने मिडिल क्लास के इन्वेस्टर्स का ध्यान खींचना किया, मिडिल क्लास इन्वेस्टर्स इवेस्ट करने के लिए छोटा अमाउंट अलग रखते थे, अपने प्लान में उन्होंने इन्वेस्टर्स से वादा किया कि उनके

शुरू

इवेस्टमेंट की वैल्यू कभी कम नहीं होगी. इसलिए जब डिसिशन लेने की बात आती है तो एक एग्जीक्यूटिव को उस प्रॉब्लम के नेचर को समझना चाहिए और पूछना चाहिए “क्या ये एक आम समस्या है?” उसके बाद ही आप उसका सबसे अच्छा और सटीक solution ढूंढ पाएँगे, एक इफेक्टिव एग्जीक्यूटिव फ़ीडबैक लेने के लिए भी तैयार रहता है क्योंकि तभी वो जान सकता है कि कंपनी के गोल्स असल में अचीव हुए या नहीं,

FIRST THING FIRST

इम्पोर्टेन्ट चीज़ों को पहले करना, सही समय पर करना और एक समय में एक ही काम करना इफेक्टिव बनने का सीक्रेट होता है. इसका कारण ये है। कि आपको रिजल्ट अचीव करने की जिम्मेदारी सौंपी जाती है जिसके लिए आपको ज़्यादा वक्त नहीं दिया जाता, एक एग्जीक्यूटिव जो हमेशा ज़्यादा कंट्रीब्यूट करने के लिए तैयार रहता है और अपने आस पास के लोगों की ताकत पर फोकस कर उसका भरपूर फ़ायदा उठाता है, वो कम समय में भी

बहुत ज्यादा अचीव कर लेता है

काम को ठीक से पूरा करने के लिए कंसंट्रेशन की ज़रुरत होती है. एक सीईओ थे जिन्होंने इस कांसेप्ट को फॉलो किया और उन्हें इसका ज़बरदस्त

रिजल्ट मिला, जब उन्होंने एक फार्मास्यूटिकल कंपनी के लिए काम करना शुरू किया था उस वक्त वो कंपनी काफी छोटी थी और सिर्फ एक ही देश में

अपना प्रोडक्ट बेचती थी. लेकिन जब तक वो रिटायर हुए तब कंपनी ग्लोबल लेवल पर ऑपरेट करने लगी थी और दुनिया की सबसे बड़ी कंपनी में से एक बन गई थी. एक बन गई हालांकि, वो सीईओ कोई साइंटिस्ट नहीं थे, लेकिन उन्होंने अपने ढंग से बहुत अच्छा रिसर्च किया था. उन्होंने जॉब के पहले कुछ सालों में कंपनी के लिए जरूरी हर पहलू पर बहुत रिसर्च किया था. वो जानते थे कि ग्रो करने का एक ही रास्ता है जो है काम को अलग और यूनिक तरीके से करना, उन्होंने ३े थे. देखा कि गवर्नमेंट और हेल्थ सेक्टर देश में दवाओं की खपत के बारे में जानकारी देते सक्सेसफुल होने का एक ही तरीका था जो धा सही समय का

इंतज़ार करना. इसलिए जब गवर्नमेंट ने हेल्थ सेक्टर में बड़े बदलावों को लागू किया तब कंपनी ने इंडस्ट्री में एंट्री की. इस तरह, कंपनी उन देशों में बड़ी

शुरुआत कर पाई जो उनके बारे में नहीं जानते थे और उन्हें पहले से जमी जमाई किसी कंपनी का मुकाबला भी नहीं करना पड़ा. उसके बाद सीईओ ने उस स्ट्रेटेजी पर फोकस करना शुरू किया जो मॉडर्न हेल्थ की कमियों को पूरा कर सके. उन्होंने एक प्लान बनाया जिसमें बताया गया था कि किसी भी पेशेंट के हॉस्पिटल का बिल insurance कंपनी भरेगी लेकिन पेशेंट को आप्शन दिया गया कि वो अपनी मर्जी से चुन सकते फॉलो करते हैं. कि वो किस तरह की देखभाल चाहते हैं. कई गवर्नमेंट और नॉन गवर्नमेंट आर्गेनाइजेशन इस technique को।

बहुत कम समय में सीईओ ने कंपनी का स्टैण्डर्ई बहुत ऊँचा कर दिया था, कई लोगों ने उनकी दूर की सोच को कम आका था क्योंकि ज़्यादातर लोगों

को लगता है कि ऐसी चीजें अचीव करने में बहुत समय लग जाता है और यही कारण है कि ज्यादातर लोग चीज़ों को इफेक्टिव ढंग से नहीं कर पाते हैं.

वो उस टाइम फ्रेम को देगी सेि के की देखते रहते हैं जो उनके पास है और बस मान लेते हैं कि ये काम अचीव करना तो इम्पॉसिबल है. इफेक्टिव होने लिए आपको उन पुरानी स्ट्रेटेजीज से छुटकारा पाना होगा जो अब प्रोडविटिव नहीं रहे. इसमें उन पैसों की कटौती करना भी शामिल है। कल की सक्सेस हमेशा के लिए नहीं बनी रहेगी. इफेक्टिव एग्जीक्यूटिव बहुत अच्छे से समझते हैं कि इस सक्सेस को मेन्टेन करने के लिए उन्हें नई स्ट्रेटेजीज डेवलप करते रहना होगा. काम का सिलसिला, opportunity का आना और मुश्किलों का खड़े हो जाना कभी बंद नहीं होगा. इसलिए इफेक्टिव तरीके से सब कुछ मैनेज करने के लिए एक एग्जीक्यूटिव को इन सभी चीजों को एनालाइज कर डिसाइड करना चाहिए कि अभी क्या करना बेहतर होगा और दो कौन सा काम है जो बाद में भी सकता है क्योंकि हर काम को पुरा करने के लिए आपके पास हमेशा वक़्त की कमी होगी,

जिसे गलत जगहों पर ईवेस्ट किया जा रहा है.

किया

इसका ये मतलब नहीं है कि आप काम कल पर टालते रहे क्योंकि ये सिर्फ आने वाले कल के लिए और ज़्यादा प्रॉब्लम क्रिएट करता है.

आपको काम को इम्पोर्टेंस के हिसाब से डिवाइड करने के लिए ये सम

प्रॉब्लम नाम

समझना

होगा कि फ्यूचर अतीत से बिलकुल opposite होता है. प्रॉब्लम को

ना समझकर उसे बदलाव करने के मौके के रूप में देखें. अगला स्टेप है एक अलग रास्ता अपनाना यानी अपना खुद का रास्ता बनाना और उस

रास्ते पर अंधाधुन नहीं चलना जिस पर हज़ारों लोग चल रहे हैं. फाइनल स्टेप है क्लियर गोल सेट करना, वो आपको बड़ी सक्सेस हासिल करने में मदद

करते हैं.

कन्क्लू जन

तो आपने सीखा कि एक इफेक्टिव एग्जीक्यूटिव बनने के लिए आपको अपने टाइम की कीमत समझनी होगी. प्लानिंग के बिना आप कोई भी काम पूरा नहीं कर सकते. एक एग्जीक्यूटिव के रूप में काम के साथ-साथ आपको अपने एम्प्लाइज़ के साथ मज़बूत और अच्छे रिलेशन बनाने के लिए भी समय देना होगा, आपने ये भी जाना कि एक इफेक्टिव एग्जीक्यूटिव हमेशा खुद से सवाल करता है कि “मैं क्या कंट्रीब्यूट कर सकता हूँ?” इफेक्टिव एग्जीक्यूटिव दूसरों की ताकत को अच्छे से यूज़ करना जानता है.

अंत में आपने ये भी समझा कि executives को काम पूरा करने के लिए ज्यादा समय नहीं मिलता, आपको काम को उनकी इम्पोर्टस के हिसाब से बाटना सीखना होगा कि कौन सा काम अभी करना ज़रूरी है और कौन सा काम बाद के लिए छोड़ा जा सकता है.

इफेक्टिव एग्जीक्यूटिव बनना एक कला है जिसे कोई भी सीख सकता है. हिस्ट्री के हर जाने माने अच्छे एग्जीक्यूटिव ने अपने मुकाम तक पहुँचने के लिए इन आसान से स्टेप्स को प्रेविटस कर उसे अप्लाई किया है. आप भी इन्हें अपनाकर अपनी कंपनी को एक नई ऊँचाई पर ले जा सकते हैं. बस ख़ुद पर यकीन करें, अपना फेडेंस बनाए रखें, ज्यादा सीखने के लिए अपनी सोच को बड़ा करें क्योंकि सीखने की कोई सीमा नहीं होती और अंत में आप जरूर सक्सेसफुल होंगे.

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