SUPER THINKING by Gabriel Weinberg with Lauren McCann.

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ये किनके लिए है?

-विचारक और लोजिशियन्स के लिए

  • विज्ञान में गहरी रुचि रखने वाले लोगों के लिए

-आत्म-सुधारकों के लिए

लेखक के बारे में

Gabriel WEinbergy DuckDuckGo नउडर व CEO जो कि एक अरबों डॉलर की इटरनेट प्राइवेसी कंपनी के मालिक है. चेracticn (2015)के लेखक भी है. ये पुस्तक स्टार्ट-अप-सैक्टर में कस्टमर ग्रोथ में मददगार है.

Lauren McCani Ep दशक से फार्मास्युटिकल इंडस्ट्री में क्लिनिकल ट्रायल के विशेषण पर रिसर्च कर रही हैं, उनके पास गणित की द्विप्निया है. उन्होंने काई मैडिकल जर्नल्स में कई लेख लिखे हैं.

यह किताब आप को क्यों पढ़नी चाहिए

सांसारिक ज्ञान क्या है? रोजमर्रा के जीवन से जुड़ी बातें जरुरी है. इन्हें हम जानकारी भी कह सकते हैं. लेकिन बातें इससे आगे भी हैं.

कभी-कभी जानते हुए भी हम उस जानकारी का सही इस्तेमाल नहीं कर पाते. एक बार अमेरिकन इन्चेस्टर; Charlie Munger ने कहा था कि बड़ा सोचने के लिए कुछ दिखाना नहीं है.

हमारी परिभाषा भी यही है कि सांसारिक ज्ञान इन्हीं मेंटल मॉडल्स को रोजाना के जीवन में लागू करना है. रोज़मर्रा की समस्याएं सुलझाना है. अब आप पूछेगे कि ये मॉडल्स

कहाँ मिलेंगेर

यही जवाब तोGabriel Weinberg aLauren McCann दे रहे है. अर्थशास्त्र, फिजिक्स, दर्शनशास्त्र जैसे दूसरे विषयों से संबंधित ये मॉडल्स ही तो आपको रोजाना के जीवन में अपने निर्णयों को बेहतर बनाना सिस्माते हैं. यही आपको अगले लेवल पर ले जाते हैं.

इसके अलावा आप सीखेंगे

-14ची शताब्दी का दार्शनिक आपको डेटिंग के बारे में क्या समझा सकता है;

होने : लतियां न करना ज्यादा है;

-आपसी सामंजस्य के बारे में एक इजरायली डेकेयर क्या बता सकता है,

दुनिया को बेहतरीन नजरिये से देखने के लिए और उपयुक्त निर्णय लेने के लिए सुपर थिंकिंग एक शानदार जरिया है.

दैनिक जीवन में हमें कई तरह के निर्णय लेने होते हैं. चाहे वे छोटे निर्णय ही क्यों न हो लेकिन अगर गलत हो तो हमें पछताना पड़ता है, वाहे वो गलत लाइफ पार्टनर का चयन हो या अपनी जमा पूंजी खत्म करना हो या नाखुश करने वाली जॉब हो जिंदगी में बहुत-सी पहेलियाँ है लेकिन निश्चय पक्का कर लो तो वही उलझनें सुलझ भी जाती हैं.

अब भाप पूठेंगे कि क्या है कोई तरीकार तो हम कहेंगे – सुपर थिंकिंग है ना! इसकी बदौलत आप दुनिया को निश्चित ढाँचे से हटकर एक नये अंदाज में देखते हैं. चलिये। आपको खुलकर बताते है. हर इंडस्ट्री का अपना एक मेंटल मॉडल होता है जिसके आधार पर समस्या का चित्रण दिमाग में होता है इन तकनीकों को काम में लिया जाता है जिन्हे ही मॉडल माना जाता है. इन्हें बार-बार अपनाकर जीवन की समस्याएं कम की जा सकती है

ज्यादातर मेटल मॉडल्स को तो साधारण आदमी जानते ही नहीं, उन्हें केवल विशेषज्ञ इस्तेमाल करते हैं, ये सुपर मॉडल्स हमारी रोजमर्रा की जिंदगी को शानदार बना सकते हैं, विशेषज्ञ अभी इसका इस्तेमाल कम ही कर रहे है लेकिन बदलते तकनीकी माहौल में ये मॉडल बहुत ही उपयोगी साबित होगा.

1840 में फैक्स मशीनों का आविष्कार हुआ लेकिन जटिल होने की वजह से 100 सालों तक इसका इस्तेमाल शुरू ही नहीं हुआ. इतनी महंगी तकनीक को अपनाना हर व्यक्ति या संगठन के बूते में नहीं था अगर जैसे-तैसे आप फैक्स मशीन खरीद भी लेते हैं तो भी आप अपने जान-पहचान वालों से बात तो नहीं कर सकते, कीमत कम हुई तो कई लोगों ने फैक्स खरीदी और ज्यादा संपर्क संभव हुआअगर संख्या बात करें तो दो डिवाइस मिलकर एक कनेक्शन बनाते हैं, मिलकर दस और बारह मिलकर 66 कनेक्शन बनाते है, 1970तक फेक्सिंग काफी लोकप्रिय हुई इतनी ज्यादा मशीने होने से नेटवर्क उपयोगी हो गया अपना खुद का डिवाइस होने पर भाप किसी से भी संपर्क कर सकते हैं.

इसी से साथ कई बिजनेस होड़ में आ गए. उबर व लिफ्ट जैसी राइड शेयरिंग सर्विस की माग बढ़ी लोगों ने विश्वास किया तो ड्राइवर्स की संख्या बढ़ने लगी वैसे ये केवल एक सुपर मॉडल नहीं है जिसका आप आसानी से इस्तेमाल कर सकें आपकी सहूलियत के लिए हम आगामी लेसस में बहुत सारे आसान शोर्टकट्स बताने वाले हैं,

गलतियों से बचने के लिए पहले सिद्धांत की मदद लें.

चीजों को देखने का हमारा नजरिया ही हमारे निश्चय को पक्का बनाता है. 19वीं शताब्दी के जर्मन गणितज्ञ काल जेकोबी के सिद्धांतों की बात करें तो उसका कथन हमेशा चैज लाता है. इसका मतलब है कि जब आप दूसरे नज़रिये से समस्या को देखेंगे तो इसे सुलझाना आसान हो जायेगा. इनवर्ट

इन्चेस्ट करने वालो का एक ही उद्देश्य है कि वे लाभ कमायें लेकिन जेकोबी का कहना है कि इससे ये रुपया बचाते है. इसलिए निर्णय लेते हैं. ये सामान्य ज्ञान की वात है कि कई बार कुछ बेहतर के लिए इंतजार कर लेना अच्छा होता है और गलत निर्णय की संभावना नहीं होती.

इस तरह की गलतियों को टेनिस खिलाड़ी अनफोर्ट एरर्स कहते तो आपको भी ये ख्याल आयेगा. जो सामने वाले की खूधी नहीं बल्कि खुद की गलती होती है. अगर आप भी जीवन में इस अनुभव से गुजरे इन अनफोर्ड एरर्स को दूर करने के लिए सावधान रहना होता है, मूल विचार यही है कि पहले सिद्धात से ही काम करो और सही राह बुनो. ऑटोमोटिय व एनी कंपनी टेस्ला के फाउंडर; एलन मस्क इसे ही मूल सत्य कहते हैं.

जब मस्क अपने सेल्फ-ड्राइविंग व्हीकल के लिए बैटरी पैक की तलाश में थे तो उन्हें कहा गया कि उन्हें प्रति किलोवाट प्रॉवर के लिए5600 से कम कीमत नहीं मिलेगी. उन्हें विश्वास नहीं हुआ. उनके दिमाग में पहला सवाल आया कि बैटरी पैक बनाने के लिए क्या चाहिये मार्केट में इस सामान की कीमत क्या है?

जवाब था कि उन्हें कोबाल्ट, निकल, एल्युमिनियम, पोलीमर व सील की जरूरत है जिसकी कीमत महज $80 per kilowatt-hour है. मस्क को लगा कि उन्हें सामान खरीदकर अपनी खुद की सेल बनानी चाहिये. इसका परिणाम क्या हुआ? दुनिया को सस्ती बैटरी मिल गई.

आप यही बातें अपने रोजमर्रा के निर्णयों में अपना सकते हैं. अब जॉब ढूंढने की बात ही लौजिये, कई लोग हजारों जगह अप्लाई करते हैं और फिर जो भी पहला अवसर मिलता है उसे स्वीकार कर लेते हैं. पहला सिद्धांत ही है कि अपनी एप्रोच अलग रखो.

अपना रिज्यूम भेजने से पहले अपनी कीमत समझो आपके लिए अपनी आजादी, रूपया या स्टेटस – क्या जरुरी है? फिर अपने कमजोर पहलुओं पर नजर डालो आप कैसी पोजीशन को स्वीकार करने को तैयार हो भले ही वो आपकी योग्यता से कम हो. फिर अंत में सभी वेल्यूज़ की तुलना कीजिये. इसके बाद आप ये नहीं पूछेंगे कि कौनसी जाँब उपलब्ध है बल्कि अपनी जरूरत के अनुसार जॉब चुनेंगे,

Ockham’s Razor आपकी लव लाइफ बदल सकता है.

हमने अभी पढ़ा कि मूल सत्य पर ही ठोस तर्क आधारित होते हैं. लेकिन वे कितने सव हैं? ये आपको कैसे पता चलेगा? ये पुराना सवाल है. दूसरी शताब्दी के रोमन एस्ट्रोनोमर Ptolemyका तर्क है कि परिदृश्य को साधारण रखना ही अच्छा सिद्धांत है.

1200 साल बाद अंग्रेज दार्शनिक विलियम Ockham ने भी यही निष्कर्ष निकाला, जब उसका सामना भी इन्ही स्थितियों से हुआ तो उसने कहा जितना सादा उतना सत्य इस सिद्धांत कोockham’s Razorसिद्धांत कहा जाता है. इसका मतलब है कि बेकार की सफाई न दो. अगर hoof beatsशब्द सामने आता है तो घोड़ों के बारे में सोचो; जेना की बात मत करो,

इस मॉडल में बहुत से उपयोगी एप्लिकेशन्स हैं. अब डेटिंग का ही उदहारण लौजिये. डेटिंग एप्स और वेबसाइट आने के बाद सही जीवनसाथी चुनना आसान हो गया है. बहुत से लोगों को नीली आँखों वाले ब्राजीलियत को रेस्पबेरी आइसक्रीम और हाँट योग का कम्बीनेशन चाहिये. डेटिंग एप पर अब ऐसी चीजें मिलना असंभव नहीं है.

ockham’s Razor थ्योरी की गाने तो ये भटकाने वाली चीजें हैं पहले की बात करें तो रेस्पबेरी, चॉकलेट व भूरी आँखें कोई बड़ी बात नहीं है. लेकिन अगर उनमें कोई आकर्षण, मजाकिया स्वभाव या कोई और खास बात न हो तो सब बेकार है, गुण ज्यादा जरूरी है,

बस इसी तरह आम बातों का जाल टूटता है. 1983 में Amos Iversky वाpaniel Kahneman नाम के साइकोलोजिस्ट ने एक एक्सपेरिमेंट किया. 31 वर्षीयाः लिंडा नामक महिला कुंआरी, चतुर और बातूनी है. उसने दर्शनशास्त्र की पढ़ाई की और यूनिवर्सिटी में डेमोन्सट्रेशन अटेंड किया. अब इसे ऐसे भी कह सकते हैं कि लिंडा एक बैंक टेलर है और स्त्रियों विषयक आदोलनों में सक्रिय रहती है.

ज्यादातर लोगों को दूसरी ऑप्शन पसंद आयेगी. ये होती है कंजक्शन फैलेसी मतलब जो होता नहीं है वो दिखता है. दो घटनाओं के साथ होने की संभावना हमेशा किसी अकेली घटना की संभावना से कम होती है, अब ये तो सबको पता है कि बैंक टेलर होने का मतलब ये तो नहीं कि फेमिनिस्ट ही हो अब डेटिंग की बात करें तो आइसक्रीम फ्लेवर की पसंद जानने ज्यादा अच्छा होगा कि आप ऐसा मैच देखें जो अच्छा हो और आपके कल्चर के अनुसार हो. अब भाप जञान गाए होंगे कि कोई बात सिपल क्यों होनी चाहिये.

स्वयं को दूसरे के स्थान पर रखना कठिन है लेकिन कुछ न जानने से भी कभी निर्णय आसान हो जाते है.

अजनबी होने पर दूसरे लोगों को मोटिवेट करना कठिन क्योंकि अक्सर हम गलत निष्कर्ष निकाल लेते हैं. अगर हमारा कलीग हमें कोई छोटा, अशिष्ट मेल भेजता है तो हम या तो उसे गलत मान लेते हैं या ये मानते है कि वो जल्दी में होगा.

साइकोलोजिस्ट इसे मूल रूप से आरोप लगाने की भावना मानते हैं जब हम अपने व्यवहार को साबित करें तो बाहरी परिस्थितियों का जिक्र करते हैं लेकिन दूसरे के व्यवहार में कमी ढूंढते हैं. अगर आप ट्रैफिक रूल तोड़ते हैं तो जायज है क्योंकि आपको हॉस्पिटल जाना है और अगर कोई और ऐसा करे तो लापरवाह है.

इसलिए आपको अपनी सोच पर फिर से विचार करना चाहिये. अब जहाँ तक Hanlon’s Razorके मॉडल का सम्बन्ध है इसमें कहा गया है कि जहाँ लापरवाही की गई हो वहाँ आपको आरोप नहीं लगाना चाहिये. अगर आपका पड़ोसी तेज आवाज में गाने बजा रहा है तो जरूरी नहीं आपको विहाने के लिए ऐसा कर रहा हो! हो सकता है उसे अहसास न हो कि दीवारें बहुत पतली है.

अगर आप इन छोटी-मोती बातों को भूलकर पॉजिटिव सोचें तो आपका कई बातें न जानना ज्यादा अच्छा है. इस मॉडल को अमेरिका के फिलोसोफर John Rawls ने1971 में अपनी किताब – A Theory of Justiceमें स्पष्ट किया है. ये ऐसे काम करता है जन्म लेना एक लोटरी की तरह है. कुछ लोग इतने खुशकिस्मत होते हैं कि उन्हें बहुत से भवसर मिलते हैं. दूसरे बदनसीब होते हैं जिन्हें कुछ नहीं मिलता. लेकिन हमें ये मानना नहीं छोड़ना है कि हमारी सुविधा और दूसरे का नुकसान लाजिमी है, Rawls के अनुसार हमें इसे समझादारी से मान लेना चाहिये लेकिन कल्पना कीजिये कि आपको आगे का कुछ पता नहीं है और आपको ऐसे समाज की रचना करनी हे जो अच्छा है. Rawls के अनुसार आपको ये भी पता नहीं है कि आप एक गुलाग के रूप में जन्म लोगे या एक आजाद शख्स के रूप में तो आप तय करेंगे कि गुलाम होना बहुत ही गलत है. आप अपने खुद को ध्यान में रखकर नहीं बल्कि सभी की भावनाओं को ध्यान में रखते हुए निर्णय लोगे.

खुद के लिए निर्णय लेने में ये मॉडल उपयोगी होगा. मान लीजिये आप एक कंपनी के मैनेजर है जो एक ऐसी पॉलिसी को खत्म करने का विचार कर रहा है जिसमें एम्प्लोयीज ऑफिस से बाहर रहकर काम कर सकते है. आपको इसमें कई फायदे नज़र आ रहे हैं, लेकिन अगर आप इस बारे में ज्यादा नहीं जानते तो तो आप क्या इस पालिसी के खिलाफ जायेंगे? आपको किसी एम्प्लोयी के सिंगल पेरेंट या बुजुर्ग होने का ख्याल हो? इससे आपको दूसरे लोगों के संघर्षों का पता लगेगा.

सामाजिक परिवर्तन में खुद को पिछड़ते नहीं देखना चाहते तो आपको एडजस्टिव बनना होगा.

ब्रिटेन में सर्दियों की रात में एक विशेष किस्म के पतंगे होते हैं. इंडस्ट्रीज़ के आने से पहले ये peppered moths हलके रंग के होते थे जिससे वो पेड़ों के रंग के समान होने सुरक्षित रहते थे लेकिन 1817 से 1995 के बीच गहरे रंग केpeppered moths की संख्या 0.01 पसेटसे98 परसेट तक बढ़ गई. क्या कारण था? ये डार्विन की survival of the fittest थ्योरी का बेहतरीन उदहारण है. कोयले की खान केप्रदुषण की वजह से पेड़ों पर गर्द की परत जगने लगी. हलके रंग के पतंगे

आसानी से दिखते और शिकार बन जाते. लेकिन रंग गहरा होने से उन्हें छिंपने में आसानी हो गई.

अमेरिका के वैज्ञानिक; Leon Megginson का कहना है कि लोग “the fittest को ताकत, बौद्धिक क्षमता या उच्च वंशानुगतता मानकर कन्फ्यूज होते हैं. लेकिन सबसे खास बात है कि आप अपने आपको कितना दाल सकते है परिस्थिति के अनुसार! पतंगों के रंग बदलने की कहानी से हमें यही संदेश मिलता है. अगर समाज में आपको कामयाब बनाना है तो आपको खुद को हालात के अनुसार डालना आना चाहिये.

एक और शानदार तरीका है कि आपका माईड सेट प्रयोगात्मक होना चाहिये ये पूरी तरह से वैज्ञानिक सिद्धांत की कड़ी है पहले कल्पना करना फिर उसकी जांच करना फिर डेटा का विश्लेषण करना, नये सिद्धांत ईजाद करना, सफल लोग और संस्थायें यही माईड-सेंट अपनाते है अपनी काम करने की क्षमता को बढ़ाने के लिए नये टूल्स पर नजर रखते हैं.

अपनी हेल्थ काही उदहारण लीजिये – अगर आपको पता लगे कि एक विशेष प्रकार का खाना आपकी बॉडी के लिए अच्छा है. कोई शाकाहारी बनने को कहेगा, कोई विशेष प्रकार के भोजन के लिए तो कोई उपवास रखने के लिए कहेगा. आप एक्सपेरिमेंट करके खुद पता लगायेंगे हालाँकि आपको अलग-अलग चीजें करनी पड़ेगी. एक-एक करके कई तरह की डाइट्स खाकर खुद पता लगाना होगा कि आपको कोनसी डाईट सूट कर रही है.

यही बात आपकी बौद्धिक शक्ति पर भी लागू होती है, अगर आप नये विचारों पर एक्सपेरिमेंट नहीं कर रहे हैं तो आप पुराने विचारों में उलझे रहेंगे. हर समय भाव और विचार बदलते रहते हैं. शायद आपने पढ़ा होगा कि asteroid से डायनासौर का सफाया हो जाता है और Tyrannosaurus की स्किन काफी स्मूद होती है. आज कितने ही एक्सपर्ट्स ने इन बातों को नकार दिया है. ये बाते अब पुरानी हो गई है, बस इसी तरह आपको भी अपने विचारों में नयापन लाना है जैसे पतंगों ने अपना कलर बदल लिया था

वास्तविक साक्ष्य और हेत्वाभास के मिश्रण से उत्पन्न हुआ ज्ञान

हम ऐसे संसार में रहते हैं जहाँ डेटा को महत्व दिया जाता है. मौसम बदलने से लेकर हमारे रोजाना के जीवन के परिवर्तन को समझना जरूरी है. अब तो ऐसी एप्स भी आ गई है जो ये बता देती है कि रोजाना आप कितने घटे सोते हैं.

क्या ये अच्छा है? हाँ या ना? अमेरिका के लेखकMark Twain का कहना है कि झूठ को आईना अच्छा नही लगता. इस तरह ये संख्या आपको भटका सकती है. इसलिए बेहतर होगा कि हर जगह आप गिनती न करे.

चाहे ये आपके खाने के न्यूट्रीशन की बात हो या गवर्नमेंट की कोई पालिसी लोग दावा करेंगे कि आँकड़ा उनके पक्ष में है, चाहे वे आपको पीछे छोड़ने की कोशिश में न भी हो; लेकिन उनके आकड़े बढ़े हुए भी दिखाये जा सकते हैं.

गलती का सबसे बड़ा कारण है कि हम सही साक्ष्यों पर विश्वास कर लेते हैं. गलत डेटा पर विश्वास करना मायने रखता है. अगर आपने किसी को बेरी खाकर मरते हुए देख लिया तो आप बेरी खाना छोड़ देंगे बजाय ये सोचने के कि आपको इसे लिमिट से खाना है. बस इसी तरह तो कन्फ्यूजन पैदा होता है.

लोगों की वो कहानियाँ भी सुनिए कि उनके दादाजी एक दिन में सिंगरेट का एक पैकेट पीते थे और 90 साल तक जिए. ये स्पेशल केस हमें सामान्य बातों के बारे में नहीं बताते हैं. ये तो वही बात हुई कि आप किसी रेस्तरों पर खाना खाने गए और अपने मित्रों को खाने के अच्छा या बुरा होने के बारे में बता रहे हैं. हर मामले में तो सिगरेट पीने से फैफड़े का कैंसर नहीं होता. लेकिन ऐसा भी नहीं है कि ये नुकसानदेह नहीं है.

यही तो गलत विचार है कि आपसी सम्बन्ध किसी कारण से ही होते हैं. अगर दो घटनायें एक के बाद एक होती है तो पहली दूसरी का परिणाम है. बस यही बात ऐसे देखी जाती है कि हर साल लोग फ्लू की बेक्सीन लगवाते है. इसी समय अगर किसी को जुकाम हो जाता है तो वो इसे फ़्लू समझकर वेक्सीन का फेल होना मानते हैं.

इसमें उलझाने वाला तथ्य ये है कि लोग वैक्सीन लेने के बाद भी सामान्य से ज्यादा संख्या में बीमार हो रहे हैं. फ़्लू की इम्युनिटी लेने में सामान्य जुकाम को न पहचानकर वैक्सीन को दोष देना कहाँ तक उचित है?? यही खराबी डेटा के साथ है अक्सर ये हमें विश्व की बातों को जानने में मदद करता है लेकिन अक्सर ये हमें उलझा भी देता है.

भ्रमित सामाजिक व आर्थिक नियमों से आपसी विश्वास कम होता है.

जीवन अनिश्चितताओं से भरा है. अर्थशास्त्र में इन हालातों को सामाजिक खेल’ कहा जाता है जहाँ लोग खिलाड़ी है और एक दूसरे के खिलाफ खेल रहे हैं. अगर एक जीतता है तो दूसरा हारता है, जीवन शतरंज की तरह ब्लैक एड वाइट नहीं है, कभी कभी सभी जीत सकते हैं.

एक अमेरिकन साइकोलोजिस्ट Robert Cialdiniकी एक किताब984में आई थी जिसमें टिंप के बारे डिस्कस किया गया था. जो भी चेटर्स अपने कस्टमर्स को गिफ्ट देते हैं उन्हें ज्यादा टिप मिलती है. डिनर के बाद मिंट पेश करना मतलब 3 परसेंट का इजाफा. दो मिंट की पेशकश 14 परसेंट, एक एक्स्ट्रा होते ही 23 परसेंटहोना,

आपसी सहयोग का ये बेहतरीन उदहारण है. एक दूसरे का अहसान चुकाते रहो ये पूरे विश्व के कल्चर में हैं. रोम्स इसे – quid pro quo कहते है जिसका मतलब है कुछ के बदले कुछ. आज के वक्त में कह सकते है एक-दूसरे की पीठ खुजाना,

ये आपसी सहयोग एक सामाजिक कायदा है. कहीं लिखा नहीं है पर लोग इसका पालन करते हैं. लेकिन हमेशा तो हम ऐसा व्यवहार नहीं करते हैं. कभी-कभी मार्केट के कायदे पर चलना भी अच्छा होता है. सामाजिकता में सबका भला और मार्केट नॉर्ग में खुद का भला. अंतर खुद देखिये अगर आपको बेबी को रखने की जॉब के लिए पांच हज़ार रुपये मिले तो ये आपको कम लगेगा लेकिन एक दोस्त मदद के लिए उसके बच्चे को आप मुफ्त में चार घंटे तक अपने साथ रख लेते हैं,

दोनों ही उपयोगी नजरिये हैं, अगर भ्रम हो तो चीजें खराब हो जाती हैं. अब इजरायल के एक किंडरगार्टन का मामला ही देखिये. अर्थशास्त्रीan Arielyकी2008में लिखी किताब – Predictable Irrationality में जिक्र है कि बच्चों को लेने पेरेंट्स लेट आते थे. स्कूल ने लेट आने पर फाइन लगा दिया ये पालिसी तब विपरीत हो गई जब पेरेंट्स हमेशा ही लेट आने लगे!

इसक कारण ये है कि पहले लेट आने पर पेरेंट्स को कुछ शर्म महसूस होती थी और वे जल्दी आने की कोशिश करते थे लेकिन अब वे फाइन दे रहे थे इसलिए वे लेट भी आते और इसके लिए उन्हें कोई शर्म भी नहीं थी, जब किंडरगार्टन ने फाइन लेना बंद कर दिया तो भी पेरेंट्स की आदत नहीं सुधरी इस एक्सपेरिमेंट में दोनों ही तरह के नोर्स को टेस्ट कर लिया गया,.

इससे आप ये समझ सकते हैं कि कहाँ पर कौनसा मॉडल सही तरह से इस्तेमाल करना है. इस किंडरगार्टन के उदहारण से आप समझ सकते हैं कि चीजों को किस तरह से सही तरह से फ्रेम करना है.

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