MINDSET by Carol S.Dweck.

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About Book

आप अपने बारे में क्या सोचते हैं, इस बात पर गौर करना अपने माइंडसेट को बदलने का पहला क़दम है. हो सकता है कि ये सुनने में बेतुका लगे लेकिन आप अपने बारे में क्या सोचते हैं उसका आपकी जिंदगी के हर पहलू पर गहरा असर होता है. जब आप लगातार निराश और दुखी महसूस करते हैं तो समझ जाइए कि अपना नज़रिया बदलने का समय आ गया है और इसमें आपकी मदद करने के लिए इस बुक से बेहतर गाइड नहीं हो सकती.

यह समरी किसे पढ़नी चाहिए?

स्टूडेंट्स, यंग एडल्ट्स

पेरेंट्स, टीचर्स, कोच

ऑथर के बारे में

कैरल एस. ड्वेक एक अमेरिकन साइकोलोजिस्ट और ऑथर हैं. उन्होंने पर्सनालिटी और सोशल डेवलपमेंट के फील्ड में बहुत योगदान दिया है ख़ासकर माइंडसेट के ऊपर उनकी थ्योरी ने. 2011 में अमेरिकन साइकोलॉजिकल एसोसिएशन ने उन्हें “Distinguished Scientific Contribution Award” से नवाज़ा था.

इंट्रोडक्शन

जब आपका सामना फेलियर से होता है तो आपके मन में सबसे पहला थाँट क्या आता है? क्या आपका कांफिडेंस तुरंत कम हो जाता है या आप उस हार को एक लर्निंग एक्सपीरियंस के रूप में देखते हैं? क्या आप हर एक चैलेंज को इस नज़रिए से देखते हैं कि वो बस ये साबित करने का एक मौका है कि आप कितने स्मार्ट और टैलेंटेड हैं या आप उसे ऐसी चीज़ के रूप में देखते हैं जो आपको ग्रो करने में मदद करती है? क्योंकि हर इंसान बिलकुल यूनिक और दूसरों से अलग होता है इसलिए हमारे एक्सपीरियंस भी एक दूसरे से बहुत अलग होते हैं. यहाँ तक कि अगर

हमारा सामना बिलकुल एक जैसी प्रॉब्लम से होता है जैसे कि किसी टफ एग्जाम को पास करने के लिए तैयारी करना, तब भी हम अपने खुद के तरीके से उससे डील करते हैं. तो ऐसा क्यों होता है कि कुछ लोग एक चैलेंज को पार करने के बाद ग्रो करने लगते हैं वहीं कुछ लोग उसके आगे घुटने टेक कर वहाँ से कभी आगे ही नहीं बढ़ पाते? आपके हर सवाल का जवाब इस बुक में मौजूद है. इस बुक के द्वारा आप समझेंगे कि केसे अपने बारे में आपकी सोच आपकी जिंदगी के हर पहलू पर अपना गहरा असर डालती है. आप जानेंगे कि आपका माइंडसेट यानी नज़रिया कितना इम्पोर्टेन्ट होता है.

ये आपके जीने के तरीके और प्रॉब्लम का सामना करने की एबिलिटी पर असर डालता है. इसमें आपको अलग-अलग माइंडसेट वाले लोग किस तरह

अपनी जिंदगी जीते हैं उसकी भी झलक देखने को मिलेगी. इस तरह आप अपने खुद के माइंडसेट के बारे में जानेंगे और ये भी समझेंगे कि अगर जरुरत पड़ी तो आप खुद को कैसे बदल सकते हैं,

The Mindsets क्या ये प्रकृति है या परवरिश है जो एक इंसान को उसकी पर्सनालिटी देती है? हालांकि, इंसान होने के नाते हम सभी में कुछ बातें कॉमन ज़रूर हैं

लेकिन फिर भी हम सब एक दूसरे से बिलकुल अलग और यूनिक हैं. हमारे जैसा बिलकुल कार्बन कॉपी पूरी दुनिया में नहीं है.

कुछ एक्सपर्ट्स का कहना है कि हर इंसान का एक बेसिक नेचर होता है जो कभी नहीं बदलता. कुछ फिजिकल कैरेक्टरिस्टिक का फ़र्क ज़रूर होता ह एक दूसरे से अलग बनाता है. वहीं दूसरी और, कुछ एक्सपर्ट्स का मानना है कि लोगों का माइंडसेट इस बात से बनता है कि उनकी परवरिश जो हमें किस तरह की गई थी, उन्हें अपनी जिन्दगी में कैसे माहौल और challenges का सामना करना पड़ा और वो किस नज़रिए से चीज़ों को देखते हैं. तो

अब इन दोनों में से कौन सही तो जवाब है, दोनों. ये दोनों साथ-साथ चलते हैं. अब, आप खुद को कैसे देखते हैं वो आपको बना भी सकता है और बिगाड़ भी सकता है. ये बात सुनने में अजीब लग रही होगी लेकिन ये बिलकुल सच है.

कुछ लोगों को लगता है कि वो बहुत होशियार और स्मार्ट हैं और इसमें उन्हें बिलकुल भी डाउट नहीं होता तो इसे फिवस्ड माइंडसेट कहते हैं. इन लोगों का मानना है कि हम सब एक लेवल ऑफ़ इंटेलिजेंस और लिमिटेड कैपेसिटी के साथ पैदा होते हैं और इसे कम या ज़्यादा नहीं किया जा सकता. इनका माइंडसेट जैसे एक पत्थर की लकीर हो जाती है जहां वो ख़ुद को बदलना ही नहीं चाहते और ये इनके अंदर एक गहरी इच्छा को जन्म देता है. ये लोग

हर किसी को ये साबित करना चाहते हैं कि ये कितने स्मार्ट हैं.

ऑथर ने इस माइंडसेट को बहुत से लोगों में देखा है जो इसे अपने एजुकेशन, करियर और रिलेशनशिप में दिखाने की कोशिश करते हैं. ऐसे लोगों को

लगता है कि हर सिचुएशन खुद को स्मार्ट साबिल करने का एक मौका है और अगर वो ऐसा नहीं पाए तो वो खुद को एक फेलियर समझने लगते हैं. इन सब से अलग एक और माइंडसेट है जो कहती है कि एफर्ट के ज़रिए ख़ुद को बदला जा सकता है. इसे ग्रोथ माइंडसेट कहा जाता है. ऐसा तब होता है जब आपको लगता है कि जिन qualities के साथ आप बड़े हुए हैं उसकी वजह से आप एक पॉईंट पर आकर अटक गए हैं. इसलिए आप बड़े जुनून और जोश के साथ खुद को बदलने की कोशिश करने लगते हैं क्योंकि आप जानते हैं कि आपको अभी बहुत कुछ सीखना बाकी है. इन लोगों का मानना कि पैदायशी टैलेंट जैसी कोई चीज़ नहीं होती और किसी भी चीज़ को एफर्ट और लगातार प्रैक्टिस के जरिए हासिल किया जा सकता है. आइए इसे

एक एग्जाम्पल समझते हैं,

इमेजिन कीजिए कि आप एक कॉलेज स्टूडेंट हैं और जब आप मंडे को कॉलेज गए तो आपका वो दिन बहुत ही बुरा गुज़रा. ना सिर्फ़ आपको अपने लास में बहुत कम मार्क्स मिले बल्कि आपको पार्किंग का फाइन भी देना पड़ा. इसके बाद जब आपने अपने दोस्त के साथ अपने इमोशंस को पसंदीदा क्लास शेयर करने की कोशिश की तो उसने आपकी बात पर ध्यान ही नहीं दिया. अब अगर यहाँ आपका फिक्स्ड माइंडसेट होगा तो आप खुद के लिए बुरा महसूस करने लगेंगे । . और तो और आप यहाँ तक सोच लेंगे कि आपकी जिंदगी बिलकुल बेकार है और इस पूरी दुनिया में आप सबसे बड़े बेवकूफ हैं. जब आपका माइंडसेट फिक्स्ड होता है तो आप खुद पर दया करने लगते हैं, अपने गुस्से और दुःख को कम करने के लिए जंक खाने लगते हैं और

इस बात पर गंगा जमुना बहाने लगते हैं कि आप कितने बड़े loser हैं. ऐसे लोग दूसरों को दोष देने और बहाने बनाने की सोच को अपना लेते हैं. ये किसी चीज़ की जिम्मेदारी लेना नहीं चाहते.

आप इन सब चीज़ों में ना जाने कितना टाइम waste करते हैं लेकिन दो मिनट इस बात पर गौर नहीं करते कि क्या सच में आपका दिन इतना बुरा था कि आप इस तरह रियेक्ट करें? क्योंकि फिक्स्ड माइंडसेट वाले लोग हर वक़्त खुद को साबित करने की कोशिश में लगे रहते हैं उन्हें लगता है कि छोटी सी भी गलती का मतलब है कि वो फेल गए हैं. उनके इमोशन एक्सट्रीम होते हैं, उन्हें बीच का रास्ता दिखाई नहीं देता. अगर वो पहली कोशिश में कामयाब नहीं होते तो वो बस मान लेते हैं कि उनके पास दो स्किल और टैलेंट ही नहीं है और उन्हें अब कोशिश करना बंद कर देना चाहिए. अब इसी सिचुएशन को ग्रोथ माइंडसेट में इमेजिन करें. अब खुद को बुदुधू कहने की बजाय आपके साध हुई हर घटना को आप एनालाइज करने लगते हैं. आपको लगता है कि शायद आपको पढ़ने की अलग technique यूज़ करनी चाहिए, गाड़ी को पार्किंग जोन में पार्क करना चाहिए और सोचना चाहिए कि शायद आपका दोस्त खुद उस वक्त परेशान होगा इसलिए आपकी बात पर ध्यान नहीं दे पाया, भले ही आपको बुरा लग रहा हो कि आपका दिन कितना खराब था, आप हर चीज़ को एक अलग नज़रिए से देखकर उसे डील करने की कोशिश करते हैं. क्या आप फ़र्क देख पा रहे हैं? ये हमें कितने नेगेटिव इमोशन से बचाता है.

Inside the Mindsets

जब आपका माइंडसेट फिक्स्ड होता है तो आप एफर्ट को एक बुरी चीज़ समझते हैं. क्योंकि आपकी सोच फ्लेक्सिबल नहीं होती, तो आप बस मान लेते

हैं कि या तो आप बहुत स्मार्ट हैं या बिलकुल स्मार्ट नहीं हैं.

लेकिन अगर आप ग्रोथ माइंडसेट वाले हैं तो आप समझते करना नहीं होता बल्कि आपका गोल होता है ख़ुद को लगातार इम्प्रूव करते रहना.

हैं कि एफर्ट करना ही आपको स्मार्ट बनाता है. इसमें आपका मकसद किसी को कुछ साबित

हालांकि ये माइंडसेट सिर्फ एक बिलीफ सिस्टम है लेकिन

पावरफुल होते हैं. कैरल ड्वेक ने होंगकोंग यूनिवर्सिटी में एक एक्सपेरिमेंट करने का फैसला किया, इस यूनिवर्सिटी में पढ़ाने के लिए इंग्लिश लैंग्वेज का इस्तेमाल किया जाता है, जाहिर सी बात है कि वहाँ कुछ स्टूडेंट्स ऐसे भी थे जो इस लैंग्वेज को अच्छे से नहीं समझते थे, जब उन्हें एक सर्वे में पूछा गया कि अगर उन्हें एक ऐसा कोर्स ऑफर किया जाए जो उनकी इंग्लिश लैंग्वेज की

ये बहुत

स्किल को बेहतर करेगा तो क्या वो उसे करना चाहेंगे?

जिन स्टूडेंट्स ने हाँ में जवाब दिया उनका ग्रोथ माइंडसेट था, उनका मानना था कि आप कुछ सीखकर या खुद को बदल कर ज़्यादा स्मार्ट बन सकते हैं.

करेल कलित सेवस का फियर गाटेटसेंट था उन्तें उस कोर्स में बिलकाल दिलचस्पी नहीं थी और उनका जवाब ना था. उनका मानना था कि वहीं दूसरी ओर,

हर इंसान की बुद्धिमानी का एक लेवल होता है और इसे बदलने के लिए कुछ नहीं किया जा सकता. जब ब्रेन वेव्स (brainwaves) की बात आती है। तब भी फिक्स्ड और ग्रोथ माइंडसेट के लोगों में अलग अलग पैटर्न देखा गया है.

कैरल ने कोलंबिया के लेबोरेटरी में कुछ लोगों के ब्रेन वेव्स को स्टूडी किया और ये समझने की कोशिश की कि वेन्स किस पॉइंट पर बढ़ते हैं या उसमें उनकी टीम ने कुछ participants से सवाल पूछे और उनकी वेव्स को तब measure किया गया जब उन्हें ये बताया जाता

कुछ बदलाव आता

था कि उनका जवाब सही था या गलत. जिन लोगों फिक्स्ड माइंडसेट था,

उनके ब्रेन वेव्स में तभी कोई हलचल दिखाई दी जब उन्हें जवाब बताया जाता था. दूसरे शब्दों में, वो लेबोरेटरी में

मौजूद लोगों को साबित करना चाहते थे कि वो कितने स्मार्ट और बुद्धिमान थे. लेकिन जब उन्हें कोई इनफार्मेशन दी जाती जिससे वो कुछ सीख सकते थे, तब उनके वेदस ने कोई इंटरेस्ट नहीं दिखाया वानी जब उन्होंने गलत जवाब दिया तो उन्होंने सही जवाब से कुछ सीखने की कोशिश नहीं की. जब ग्रोथ माइंडसेट वालों को स्टडी किया गया तो टीम ने ये देखा कि जब उन्हें कोई इनफार्मेशन दी जाती तो उनमें उसे जानने की दिलचस्पी जाग उठती थी. वो स्टूडेंट्स जानते थे कि सीखने से उन्हें आगे बढ़ने और ग्रो करने में मदद मिलेगी क्योंकि फिक्स्ड माइंडसेट वाले चुनौतियों का सामना करने से कतराते हैं, वो हमेशा अपने कम्फर्ट ज़ोन में रहना चाहते हैं और अपना काफिडेंस उन

चीज़ों के ज़रिए बढ़ाते हैं जिन्हें वो आसानी से और अच्छे से कर सकते हैं. वो खुद को सबसे ऊपर और बेस्ट समझते हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि उनके पास जो नॉलेज और टैलेंट है उसके ऊपर कुछ सीखने की गुंजाइश ही नहीं है और दो सब कुछ पहले से ही जानते हैं. लेकिन अगर वो इसे भी इम्यूद कर अपने फुल पोटेंशियल तक पहुँच जाते तो क्या होगा? यहाँ फ़िर वही बात आती है कि ऐसे लोग मेहनत करना और

रिस्क लेना पसंद नहीं करते. इनकी सोच होती है कि अगर आपको किसी चीज़ में एफर्ट लगाने की ज़रुरत है तो इसका मतलब है कि आप उस चीज़ में अच्छे नहीं हैं तो उसे बेकार में ट्राय करने करने का क्या मतलब, उनकी सुई इसी बात पर अटकी रहती है कि या तो उनके पास पास पूरी स्किल है या

बिलकुल भी नहीं है.

लेकिन अगर आपने सीखने से इंकार कर दिया तो आप इ्पूव केसे करेंगे? ग्रोथ माइंडसेट वाले अक्सर खुद से यही सवाल पूछते हैं इसलिए वो चैलेंज एक्सेप्ट करने के लिए तैयार रहते हैं क्योंकि जानते हैं कि अगर वो फेल भी हुए तब भी वो उससे कुछ ना कुछ ज़रूर सीखेंगे और ऐसा नहीं है कि ग्रोथ माइंडसेट वालों को फैलियर से तकलीफ़ नहीं होती लेकिन वो इस फेलियर को खुद को तोड़ने नहीं देते, उनका ज़ज्बा होता है कि “मैं फेल हुआ तो क्या हुआ, मैं अपनी गलतियों से सीखकर दोबारा इसका सामना कर इसे पार करूंगा.”

The Truth About Ability and Accomplishment

अब सवाल आता है कि क्या आपके माइंडसेट का आपके स्कूल की परफॉरमेंस पर असर पड़ता है? केरल और उनके साथियों द्वारा किए गए एक स्टडी ने साबित किया है कि हाँ इसका असर होता है. उन्होंने कुछ केमिस्ट्री स्टूडेंट्स की परफॉरमेंस और उनके माइंडसेट को स्टडी किया. उनका कोर्स ये डिसाइड करने वाला था कि वो प्री मेड करिकुलम में सिलेक्ट होंगे या नहीं, वो स्टूडेट्स काफ़ी tensed थे लेकिन उन्हें कहीं ना कहीं उम्मीद भी थी. जब स्टूडेंट्स क्लास अटेंड करते थे तो रिसर्च करने वालों ने उनके पढ़ने की स्ट्रेटेजी और उनके माइंडसेट को नोट करना शुरू किया. उन्होंने देखा कि ग्रोथ माइंडसेट वाले स्टूडेंट्स को अच्छे मार्क्स मिले थे. जब उन्हें किसी टेस्ट में कम मार्क्स मिलते तो वो ज़्यादा मेहनत कर दोबारा टेस्ट के लिए तैयारी करते, वहीं फिक्स्ड माइंडसेट वाले स्टूडेंट्स का अगर एक एग्जाम खराब हो जाता तो तो बाकी बचे हुए एग्जाम में भी अच्छा परफॉर्म नहीं करते थे. फिक्स्ड माइंडसेट वालों के पढ़ने की स्ट्रेटेजी कुछ इस तरह है, यो अपनी किताबें और नोट्स पढ़ते हैं, अगर उन्हें कोई कासेप्ट समझ नहीं आता तो चो उसे समझने की कोशिश नहीं करते बल्कि उसे ने लगते हैं, अब अगर उन्हें कम मार्क्स मिलते हैं तो वो मान लेते हैं कि उनका डॉक्टर बनने का सपना

वहीं खत्म हो गया है, वो इसी बात पर अड़े रहते हैं वहीं ग्रोथ माईंडसेट बाले स्टूडेटस हैं कि उनसे जितना हो सकता था उन्होंने किया और मेहनत करने से कुछ नहीं होता. ने सिर्फ एग्जाम पास करने के लिए पढ़ाई नहीं की बल्कि उन्होंने उस कोर्स को समझने की कोशिश की. वो कांसेप्ट को समझते हैं, उसे अंधाधुन रट्टा नहीं मारते. जब उन्हें कम मार्क्स मिलते तो वो उसे एक मोटिवेशन के रूप में लेकर और मेहनत से पढ़ते थे. यहाँ एक और पूफ़ है कि सही माइंडसेट और सही टीचिंग के ज़रिए कोई भी एक्स्ट्राऑर्डिनरी परफॉरमेंस दे सकता है.

लॉस ।

एंजिल्स में गारफील्ड हाई स्कूल सबसे खराब स्कूल था. वहाँ के टीचर्स और स्टूडेंट्स दोनों में ही जोश और मोटिवेशन की कमी थी. लेकिन वहाँ ग्रोथ माइंडसेट वाले ऐसे दो खास टीचर थे जिन्होंने सोचा कि वहाँ के स्टूडेंट्स कॉलेज लेवल का calculus सीख सकते थे, उन दोनों टीचर के नाम थे Jaime Escalante और Berijamin Jimenez. उन्होंने बच्चों को सिर्फ calculus पद्धाया ही नहीं बल्कि उन्हें मैथ्स में नेशनल चार्ट पर सबसे वत टीप पर पहुंचाया भी. अपने ग्रोथ माइंडसेट के कारण, जेमी और बेंजामिन ने बच्चों को पढ़ने के लिए मोटीदेट किया. उन्होंने उनसे कहा कि वो खुद को एक फैलियर ना समझें

और मेहनत हमें कुछ भी अचीव करने के लायक बना देती है. स्टूडेंट्स ने उनकी बातों को सीरियसली लिया और ख़ुद पर यक्ीन करने का माइंडसेट

अपनाने लगे कि वो उस एग्जाम को बखूबी पास कर सकते थे और अंत में बिलकुल वैसा ही हुआ. उन्होंने इतना अच्छा परफॉर्म किया था कि उन्हें इसके लिए अवार्ड भी दिया गया. तो ये हमें क्या बताता है? स्टूडेंट्स को बुद्ध, स्टुपिड जैसे लेबल देना उन्हें पढ़ने से रोकता है. लेकिन जब इन दोनों टीचर्स ने बच्चों को पढ़ाना शुरू किया तो उन्होंने अपने स्टूडेंट्स को बेवकूफ नहीं समझा बल्कि इन एक्स्ट्राऑर्डिनरी टीचर्स ने उन्हें मोटीवेट करने के लिए अलग अलग रास्ता हूँढ़ा. उन्होंने बच्चों पर विश्वास दिखाया और इसी विश्वास ने बच्चों को खुद पर विश्वास करना सिखाया और अंत में ऐसा रिजल्ट सबके सामने था जिसकी सिवाय इन दो टीचर्स के किसी को भी उम्मीद नहीं थी.

Sports, the Mindset of a Champion

अगर आप स्पोर्ट्स में दिलचस्पी रखते हैं तो आपने कई बार इस लाइन को सुना होगा कि वो तो एकदम नेचुरल और गिफ्टेड प्लेयर है”. पहले आपकी सोच यही रही होगी कि ऐसा कहने में कुछ गलत नहीं है. वाकई कुछ लोग एक्स्ट्राआर्डिनरी टैलेंट के साथ पैदा होते हैं जैसे मानों वो एक महान स्पोर्ट्समैन बनने के लिए ही पैदा हुए हों. लेकिन अब जब आपने इस बुक को पढ़ लिया है तो आप इसे एक अलग नज़रिए से देखने लगेंगे. हालांकि, फिजिकल क्वालिटी जैसे अच्छी हाइट, लंबे पैर वगैरह आपको कुछ एडवांटेज ज़रूर देते हैं लेकिन ये सिर्फ आपका माइंडसेट ही है जो आपको दूर तक ले जा सकता है.

बिली बीन के लिए कहते हैं कि वो भी एक नेचुरली गिफ्टेड इंसान हैं. जब वो स्कूल में थे तो स्पोर्ट्स में बहुत एक्टिव थे. बास्केटबॉल में वो MVP थे और फुटबॉल में क्वार्टरबैक, बेसबॉल में वो सबसे बेहतरीन हिटर थे. उनके पास सब कुछ था सिवाय एक चैंपियन के माइंडसेट के. बिली का माइंडसेट इतना रिजिड था कि उन्हें लगता था कि उनका पैदायशी टैलेंट उन्हें सबसे यूनिक प्लेयर बनाने वाला था.

लेकिन जैसे-जैसे वो माइनर लीग से मेजर लीग की ओर बढ़ने लगे, वो खुद पर कंट्रोल खोने लगे. जब भी उनसे कोई गलती होती तो उन्हें बहुत गुस्सा आने लगता और वो उस स्ट्रेस को हैंडल नहीं कर पाते थे. वो लोगों पर अपना गुस्सा उलारने लगे थे. वो अपने फिक्स्ड माइडसेट में इतने उलझ गए कि अपनी प्रॉब्लम को सोल्व ही नहीं कर पाए. वो भी यही सोचने लगे कि अगर उनसे गलती होती है तो इसका मतलब है कि वो नैचुरली गिफ्टेड नहीं है. उनका मानना था कि एफर्ट और प्रैक्टिस सिर्फ उन लोगों के लिए है जो कभी बेस्ट हो ही नहीं सकते. दुर्भाग्य से यही माइंडसेट उनकी हार और डाउनफॉल का कारण बन गया.

बीन एक उम्दा बेसबॉल प्लेयर तो नहीं बन पाए इसके बजाय दो एक मेजर लीग में एग्जीक्यूटिव बन गए. इसी काम के दौरान उन्हें एहसास हुआ कि उनमें कितना बड़ा दोष था और वो था उनका फिक्स्ड माइंडसेट, लेनी डिकस्ट्रा जो पहले उनके टीममेट थे उन्होंने बीन को अपनी गलती का एहसास करवाया. लेनी किसी नेचुरल गिफ्ट के साथ पैदा नहीं हुए थे बल्कि अगर उनकी तुलना बीन से की जाए तो बीन आसानी से उन्हें पछाड़ सकते थे लेकिन बीन ने देखा कि लेनी का माइंडसेट एक कितना पुराना कुछ सीख सकते थे,

चैंपियन जैसा था. उन्होंने कभी भी फेलियर को हार के रूप में नहीं देखा बल्कि एक मौके की तरह देखा जिससे वो लेनी अपने फेलियर को एक सिग्नल की तरह देखते थे जिसका मतलब था कि उन्हें और मेहनत करने की ज़रुरत थी. तब जाकर बीन को एहसास हुआ कि चाहे आपमें कितना भी नेचुरल टैलेंट हो, अगर आपका माइंडसेट गलत है तो आप कभी एक चैंपियन नहीं बन सकते. एक और जाने माने एथलिट हैं जिनका फिक्स्ड माइंडसेट था. उनका नाम पेड़ो मार्टिनेज़ था, वो बोस्टन रेड सॉक्स के सबसे कमाल के पिचर (pitcher) थे और बिलकुल बीन की तरह वो हर बार बस जीतना चाहते थे. मार्टिनेज़ और उनकी टीम ने न्यू यॉर्क बैंकीज़ को हारने की ठान ली थी. किसी भी कीमत पर जीतना चाहते थे. बोस्टन रेड सॉक्स ने पिछले 25 सालों से वल्ल्ड सीरीज़ नहीं जीती थी और उन्हें पक्का यकीन था कि टीम दो बस में मार्टिनेज़ के होने की वजह से वो इस हार के सिलसिले को ख़त्म कर ज़रूर जीतेंगे. लेकिन मैच के दौरान मार्टिनेज़ ने ना सिर्फ ये दिखाया कि उनका माइंडसेट एक चैंपियन का बिलकुल नहीं था बल्कि ये भी जाहिर कर दिया कि उनमेंकोई स्पोर्ट्समैन स्पिरिट नहीं थी. जब यैकीज़ जीत रहे थे तो उन्हें गुस्सा आने लगा. इतना ही नहीं, उन्हें batter को जोर से बॉल मारा, दूसरे प्लेयर को मारने की धमकी दी और कील के 72 साल के कोच डॉन ज़िमर के साथ बहस भी करने लगे. मार्टिनेज़ को फेलियर हैंडल करना ही नहीं आता था. और सबसे बड़ी बात, उन्होंने अपनी गलतियों से सीखने की कोशिश नहीं की जिसका नतीजा ये हुआ कि रेड सॉक्स बुरी तरह मैच हार गए. आइए अब हम न्यू यॉर्क यैंकीज़ के बारे में बात करते हैं. कई लोग इस टीम को पसंद नहीं करते थे लेकिन फिर भी बहुत सारे प्लेयर्स इस बात से सहमत थे कि इस टीम में बहुत अच्छी स्पोर्ट्समन स्पिरिट थी. जब 9/1 वर्ल्ड ट्रेड सेंटर का वो दर्दनाक हादसा हुआ तो न्यू यॉर्क के लोग शोक में डूबे हुए थे और उन्हें उम्मीद की ज़रुरत थी. हालांकि, न्यू यॉर्क पैकीज़ पर भी इस हादसे का इसका गहरा असर हुआ था लेकिन उन्होंने अपनी हिम्मत को जुटाया और एक के बाद एक गेम जीतते चले गए. अंत में उन्होंने वर्ल्ड सीरीज़ में अपनी जगह बनाई जिसने हर न्यू योर्कर के दिल में जोश भर दिया था. इतने बुरे वक्त में जब इंसान की हिम्मत पूरी तरह टूट जाती है, यकीज़ ने तब भी अपना ज़ज्बा बनाए रखा, वो पूरे जोश और हिम्मत के साथ खेले, उस फाइटिंग स्पिरिट को जिंदा किया और अच्छी परफॉरमेंस से सबका दिल और सम्मान जीता. इससे पता चलता है कि उनका कैरेक्टर कितना स्ट्रोंग है, उनमें अटूट विल पॉवर और पोजिटिव माइंडसेट है.

Parents, Teachers, and Coaches: Where Do Mindsets Come From? ये जानते हुए भी कि हमारे पेरेंट्स, टीचर्स और वेल wishers हमारा भला चाहते हैं, कभी-कभी उनसे मिलने वाली तारीफ़ हमारा दम घुटने लगता है. वो जो कुछ भी कहते हैं उसका आपके माइंडसेट पर असर होता है और वो या तो बेहतर हो जाता है या बदतर हो जाता है. बच्चे बहुत सेंसिटिव होते और बड़े उनसे जो भी कहते हैं वो उनके माइंड और दिल में बैठ जाता है. कई बार वो उसका एक अलग ही मतलब निकाल लेते हैं.

जैसे मान लीजिए कि आपने अपने बच्चे से कहा, तुम तो बहुत इंटेलीजेंट हो, ज्यादा पढ़े बिना भी तुम्हें इतने अच्छे मावर्स मिले”. अब बच्चा इसका मतलब ये निकालता है कि “मुझे पढ़ने के लिए ज्यादा मेहनत नहीं करनी चाहिए क्योंकि मेहनत करने का मतलब है कि मैं इंटेलीजेंट नहीं हूँ.” जब आप कहते हैं कि, “तुम तो चीज़ों को बड़ी जल्दी समझ जाते हो, तुम तो बहुत स्मार्ट हो.” तब एक बच्चा सोचता है, “अगर मैं तुरंत सब कुछ नहीं सीखूंगा तो मुझे स्टुपिड कहा जाएगा.” इसलिए बचपन से ही हमारी फिक्स्ड या ग्रोथ माइंडसेट बनना शुरू हो जाती है. इसलिए हमें बहुत ध्यान से और सोच समझकर बच्चों की तारीफ़ या उनसे कुछ कहना चाहिए. अगर आप तारीफ़ करना चाहते हैं तो उस मेहनत और प्रोसेस की करें जिससे उसे सकसैस मिली है, जैसे अगर आपके बच्चे। कि तुमने खेलने के बजाय पढ़ने में जो समय दिया है और मेहनत क माक्स अच्छे आए हैँ तो ये कहने के बजाय कि तुम बहुत इंटेलीजेंट हो, ये कहें है ये उसकी वजह से हुआ है.

अगर आप एक टीचर हैं और किसी स्टूडेंट को उसके अच्छे essay के लिए शाबाशी देना चाहते हैं तो उसके काम में लगाए एफर्ट की तारीफ़ करें. अगर आप लोगों में ग्रोथ के माइंडसेट को बढ़ावा देना चाहते हैं तो आपको उनके मेहनत और एफर्ट की तारीफ़ करनी चाहिए जो को अपने काम में लगाते हैं,

उनके अचीव किए हुए रिजल्ट की नहीं,

अपने शब्दों को बहुत सोच समझकर कहें क्योंकि आप सामने वाले को क्या मैसेज भेज रहे हैं वो ज़्यादा ज़रूरी होता है. अपने आप से पूछे कि क्या आपकी बातें किसी को ग्रो करने में मदद कर रही हैं या आपकी बातों से उन्हें ऐसा लगता है कि आप उनकी काबिलियत को जज कर रहे हैं?

चाहे आप पैरेंट हों, टीचर हों या एक कोच, एक बच्चा जो अचीव करना चाहता है उसे उसमें एफर्ट लगाने के लिए मोटीवेट करें. उन्हें फेलियर को हार नहीं बल्कि कुछ सीखने के मौके के रूप में देखने के लिए encourage करें, हालांकि माइंडसेट बचपन से ही डेवलप होना शुरू हो जाता है, आप उसे बदल सकते हैं, अगर आपका माइंडसेट भी फिक्स्ड है तो चिंता ना करें. माना कि माइंडसेट बदलना आसान नहीं होता लेकिन आप अपने सोचने का दायरा बढ़ाकर, नई सोच को अपनाकर ऐसा कर सकते हैं और यकीन मानिए वो

Changing Mindsets: A Workshop

आपके पुराने नज़रिए से बहुत बेहतर होगा.

साइकेट्रिस्ट एरोन बेक ने जब अपने पेशेंट्स की बातें सुनी तब उन्हें इस बात का एहसास हुआ. उनकी प्रब्लम की जड़ थी उनका बिलीफ सिस्टम जो उन्होंने अपने बारे में और दूसरों के बारे में बना रखा था. हमारा माइंड हमारे आस पास होने वाली हर चीज़ को बड़े गौर से नोटिस करता है. यहीं से हमारा माइंडसेट बनना शुरू होता है, कई बार हम बातों का गलत मतलब निकाल लेते हैं जो हमें चिंतित और उदास महसूस कराता है. Cognitive therapy इसे सोल्च करने में मदद करती है.

एग्जांपल के लिए. अलाना को अपनी क्लास में सबसे कम मार्क्स मिले थे. अब Cognitive therapy की मदद से वो खुद से ये नहीं कहेंगी कि मैं कितनी स्टूपिड हूँ बल्कि चो उन घटनाओं के बारे में सोचने लगेगी जब उसे अच्छे मार्क्स मिले थे. ये थेरेपी उसे सोचने में मदद करेगी कि सिर्फ मार्क्स उसकी इंटेलिजेंस को नहीं दिखा सकते. फेल होना बस हमारी ग्रोध का एक हिस्सा होता है. Cognitive therapy लोगों को ये महसूस करने में मदद करती है कि वो जो खुद के बारे में सोचते हैं चो पत्थर की लकीर नहीं है, उनकी सोच गलत भी हो सकती है. अगर आप जानते हैं कि आपका माइंडसेट भी फिक्स्ड है और आप उसे बदलना चाहते हैं तो आपने आधी जंग तो वैसे ही जीत ली. इस बात को समझें कि इतनी आसानी से आपका माइंडसेट बदलने वाला नहीं है क्योंकि आप उसी सोच के साथ पले-बढ़े हैं और अब तक आपको लगता था कि जिंदगी को देखने का बस यही एक नजरिया होता है.

अगली बार जब आपका सामना फेलियर से हो तो इस बात पर ध्यान दें कि किस तरह के थाँट आपके दिमाग में चल रहे थे. इस बात को याद रखें कि आपने खुद से क्या क्या कहा और उसने आपको कैसा महसूस करवाया. उसके बाद ये देखने की कोशिश करें कि एक ग्रोथ माइंडसेट वाला इंसान उसे किस नजरिए से देखता.

सही मायने में अपनी सोच को बदलने में थोड़ा वक़्त ज़रूर लगेगा लेकिन इस उम्मीद को बनाए रखें कि बहुत जल्द आप खुद को आज़ाद महसूस करेंगे और बाद में automatically बिना एफर्ट लगाए आपकी सोच पॉजिटिव दिशा में जाने लगेगी. तो क्या सोच रहे हैं, ग्रोथ माइंडसेट को अपनाने में अब भी देर नहीं हुई है. हर सुबह बदलाव के लिए एक नया मौक़ा लेकर आती है.

कन्क्लू ज़न

तो आपने इस बुक में दो तरह के माइंडसेट के बारे में सीखा जो है फिवस्ड माइंडसेट और ग्रोथ माइंडसेट. जब आपका माइंडसेट फिक्स्ड होता है तो आप सोचते हैं कि आपके स्किल और टैलेंट को बदला या बेहतर नहीं किया जा सकता. यही कारण है आप सिर्फ दो तरह के रिजल्ट के बारे में सोचते हैं कि या तो आपके पास नेचुरल टैलेंट है या बिलकुल भी टैलेंट नहीं है. आपकी सोच हार या जीत तक ही सीमित रह जाती है और आप ग्रोथ के बारे में सोच ही नहीं पाते.

फिक्स्ड माइंडसेट वाले मानते हैं कि हम लिमिटेड कैपेसिटी के साध पैदा होते हैं और सीखना या मेहनत करना फ़िजूल है, असल में, फिक्स्ड माइंडसेट वाले हारने से डरते हैं कि अगर वो फेल हो गए तो उनकी इमेज खराब हो जाएगी और सब उन्हें फेलियर समझेंगे इसलिए वो चैलेंज एक्सेप्ट नहीं करना चाहते. जबकि ग्रोथ माइंडसेट हमें सिखाती है कि सीखने का कोई अंत नहीं होता. इसमें आप अपनी गलतियों से सीखकर लगातार इम्पूव करते हैं. फेल होने के बाद भी आप रिस्क लेना बंद नहीं करते और अपना एफर्ट करते रहते हैं और अंत में यही मेहनत आपको लाइफ में बहुत सक्सेसफुल बनाती आपने ये भी समझा कि आपके माइंडसेट का आपकी लाइफ पर कितना गहरा असर होता है. जब आप किसी प्रॉब्लम का सामना करते हैं तो फिक्स्ड माइंडसेट आपको ढीठ बना देता है जो आपको दूसरे रास्ते को देखने नहीं देता जबकि ग्रोथ माइंडसेट आपको एक नया रास्ता दिखाकर उस प्रॉब्लम को सोल्व करने में और लाइफ में आगे लेकर जाने में मदद करता है. फिवस्ड माइंडसेट आपको महसूस कराता है कि आपमें कुछ कमी है जबकि ग्रोथ माइंडसेट आपको महसूस कराता है कि हमारा गोल परफेक्ट बनना नहीं है बल्कि एक ऐसा इंसान बनना है जो हर रोज़ इम्प्रूव कर के खुद को आगे ले जाना चाहता है,

खुद के बारे में अपनी राय को बदलना थोड़ा मुश्किल ज़रूर है लेकिन नामुमकिन नहीं, अपने ख़ुद के विचारों को आपको पीछे पकड़कर रखने ना दें और कभी सीखना और कोशिश करना बंद ना करें क्योंकि जिस दिन आपने मान लिया कि आपको सब कुछ आता है और आपको कुछ सीखने की ज़रूरत नहीं है, असल में आपकी असली हार उसी दिन होगी.

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