LEARN TO EARN by john Rothchild and Peter Lynch.

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Learn to Earn

इंट्रोडक्शन(Introduction)

हमें बचपन में स्कूल में बहुत कुछ सिखाया जाता है जैसे एकाउंट्स, इकोनॉमिक्स, साइंस यहाँ तक कि कुकिंग और drawing भी लेकिन वो हमें

सबसे ज़रूरी चीज़ सिखाना तो भूल ही गए जो है इन्वेस्टमेंट हम देशभक्ति की बात करते हैं, आर्मी की बात करते हैं लेकिन हम एक बात भूल जाते हैं कि एक देश को उसका बिज़नेस महान बनाता है. बिज़नेस की वजह से ही हमारी CDP बढ़ती है, इकॉनमी बढ़ती है जिसकी वजह से लोगों को जॉब

मिलती है और फाइनली देश की ग्रोथ होती है. लेकिन क्या हमने कभी सोचा है कि बिज़नेस कैसे ग्रो करते हैं? वो तब ग्रो करते हैं जब कोई उनमें पैसा इन्वेस्ट करता है. आज हम इसी बारे

आखिर इन्वेस्टमेंट होता क्या है, कंपनी कैसे ग्रो करती है, हम किन किन चीज़ों में पैसा को उतना ही एन्जॉय करेंगे जितना इसे बनाते वक्त हमने एन्जॉय किया,

अशोर्ट हिस्ट्री ऑफ़ कैपिटलिज्म (A Short history of Capitalism)

में सीखेंगे कि

इन्वेस्ट कर सकते हैं. तो हम उम्मीद करते हैं कि आप इस समरी

तो सबसे पहले ये समझते हैं कि आखिर कंपनी होती क्या है. जब कई लोग साथ मिलकर एक बिज़नेस करना चाहते हैं तो वो एक कंपनी बनाते हैं. कंपनी बनाना कोई मुश्किल काम नहीं है, बस आपको कुछ पेपर्स देने होंगे, फीस भरनी होगी और कंपनी बन जाती है.और अब तो ये और भी आसान हो गया है भारत सरकार ने केवल आधार कार्ड सबमिट करने पर ही कम्पनी फोर्मेशन की अनुमति दी है। कई लोग सोचते हैं कि कंपनी का मतलब एक बिल्डिंग या ऑफिस होता है. लेकिन कंपनी कुछ लीगल पेपर्स का फोल्डर है.

लॉ की नज़र में कंपनी एक अलग इंसान होता है जैसे कि आप और मैं, जिसे गवर्नमेंट सज़ा भी दे सकती है और उस पर फाइन भी लगा सकती है. इसका फायदा ये है कि मान लीजिये एक कंपनी खोली और आपने उस कंपनी में 1 लाख रूपए इन्वेस्ट किया. कल अगर उस से कोई गलती हो जाती है तो केस कंपनी के ऊपर होगा आपके ऊपर नहीं. इसमें आपका ज्यादा सा ज्यादा । लाख का नुक्सान हो सकता है, वही । लाख जो धा.गवर्नमेंट आपके पर्सनल asser जैसे घर, गाड़ी, गोल्ड नहीं ले सकती. आपने कंपनी में इन्वेस्ट किया था.

यही कंपनी बनाने का सबसे बड़ा फायदा है कि आपकी लायबिलिटी लिमिटेड होती है यानी आप उतनी ही चीज़ों के लिए liable हैं जितनी आपने इन्वेस्टमेंट की है. इसलिए कंपनी के नाम के आगे Limited शब्द लगाया जाता है जैसे कि Reliance Industries Limited,

टाइप्स ऑफ़ कम्पनीज (Types of companies)

कंपनी दो तरह की होती हैं – प्राइवेट कंपनी और पब्लिक कंपनी. प्राइवेट कंपनी उसे कहते हैं जिसमें आम पब्लिक पैसा इन्वेस्ट नहीं कर सकती. अगर आपको किसी प्राइवेट कंपनी में हिस्सा चाहिए तो एक ही रास्ता है, आपको ओनर से शादी करनी पड़ेगी.

पब्लिक कंपनी जो कंपनी होती है जिनके शेयर्स मार्केट में खरीदे और बेचे जाते हैं. इनके शेयर्स कोई भी खरीद सकता है – चाहे आप अभीर हो या गरीब, लंबे हो या छोटे, कोई भी.कोई आपको पब्लिक कंपनी में शेयर्स खरीदने से नहीं रोक सकता बस उन शेयर्स को खरीदने के लिए आपके पास पैसे होने चाहिए. जब भी हम किसी कंपनी के शेयर्स खरीदते हैं तो लीगली हम कंपनी के मालिक बन जाते हैं, बेशक छोटे से ही सही लेकिन मालिक ज़रूर बनते हैं. हम अपनी पसंद की किसी भी कंपनी के शेयर्स खरीद सकते हैं. अगर हम Tata बस या कार में जाते हैं तो हम Tata के शेयर्स में इन्वेस्ट कर सकते हैं. अगर हम Airtel या Jio पूजा करते हैं तो उनके शेयर्स खरीद सकते हैं. इन शोर्ट, हम अपने favourite न्यूज़ चैनल से लेकर एक aeroplane की कंपनी के भी शेयर्स खरीद सकते हैं. और ये एक शेयरहोल्डर के लिए गर्व की बात भी हो सकती हैं कि आप SBI बैंक में जाते हैं और लोग SBI की तारीफ़ कर रहे हों तो आपको गर्व महसूस होगा कि आपने SBI में इन्वेस्ट किया है और आप भी उनकी अच्छी परफॉरमेंस का एक हिस्सा हैं.

द बेसिक्स ऑफ़ इन्वेस्टिंग (The Basics of Investing) अक्सर देखा गया है कि ज़्यादातर लोग अपनी जिंदगी में काफ़ी लेट इन्वेस्टमेंट करने के बारे में सोचते हैं क्योंकि उनका ये कहना होता है कि अभी जॉब नहीं लगी या अभी मैं इस ज़िम्मेदारी को पूरा कर लूँ वगैरह वगैरह. लेकिन हम जितनी जल्दी इन्वेस्टमेंट करना शुरू करते हैं उतना ही ज़्यादा हमें फ़ायदा होता है.इन्वेस्टमेंट का पहला लेसन है कि हमें सेविंग्स करने की शुरुआत करनी होगी. आइए इसे एक एक्जाम्पल से समझते हैं. एक लड़का है श्याम जिसकी नई नई जॉब लगी है और उसे लोगों को दिखाना है कि वो अमीर बन चुका है.अब चो सोचला है कि क्यों ना मैं एक अच्छी सी 20 लाख तक की गाड़ी ले लूँ, इसे खरीदने के लिए वो लोन लेता है. वो अपनी सारी सेविंग्स निकाल कर 2 लाख डाउनपे्मेट देता है और 18 लाख का लोन ले लेता है.उसने 5 साल का लोन I.67% इंटरेस्ट रेंट पर लिया धा. अब हर महीने वो लगभग 40,0000 nstallment भरता है. शुरू शुरू में श्याम जब भी अपनी नई गाड़ी कहीं पार्क करता तो लोग वाह वाह करते रह जाते लेकिन 5 सालों के बाद गाड़ी पुरानी सी लगने लगी, वो कहते हैं ना कि दुनिया में ऐसी कोई गाड़ी नहीं है और ऐसा कोई दिल नहीं है जिस पर कोई खरोंच ना लगी हो, तो श्याम की गाड़ी पर भी कई जगह खरोंच लग गई धी.अब ऐसी गाड़ी को देख कर कौन वाह वाह व लेकिन इसे खरीदने के चक्कर में श्याम ने लोन लिया ने लोन लिया और लोन चुकाने के लिए उसे बैंक को 6 लाख एक्स्ट्रा देना पड़ा यानी कि एक गाड़ी पर 20 की वाह करता. जगह 26 लाख का खर्च हुआ और 5 साल के बाद जब उसने लोन चुका दिया तब उसके पास एक ऐसी गाड़ी थी जिसे वो अब पसंद भी नहीं करता था आर जिसकी कीमत मार्केट में सिफ 8 लाख रह गई वहीं दूसरी तरफ़ राम नाम के एक समझदार लड़के को भी बिलकुल सेम सैलरी पर जॉब मिली थी. राम ने भी गाड़ी ली लेकिन सेकंड हैंड और वो भी बिना लोन के. वो इस बात को समझता था कि गाड़ी उसके लिए बस एक ट्रांसपोर्ट का साधन है जो उसे एक जगह से दूसरी जगह तक ले जा सकती . गाड़ी में कोई डेंट या स्क्रैच लगने से उसे कोई फ़र्क नहीं पड़ता था क्योंकि वो अपनी सैलरी का एक बड़ा हिस्सा सेव और इन्वेस्ट कर रहा था. फिर एक ऐसा समय आया जब राम ने अपना खुद का घर खरीदा. उसने ऊपर के दो फ्लोर को रेट पर दे दिया और हर महीने पैसिव इनकम कमाने लगा. पैसिव इनकम यानी कोई भी एक्टिविटी जिसमें किसी इंसान को actively इन्वोल्व होकर कुछ नहीं करना पड़ता लेकिन फिर भी उसकी कमाई होती में थी.

रहती है, अब राम को अपनी सैलरी भी मिल रही थी और रेट भी यानी वो समझ गया था कि पैसों से और ज्यादा पैसा कैसे बनाया जाता है यानी अपने पैसों का सही इस्तेमाल कैसे किया जाता है.

फाइव बेसिक इन्वेस्टमेंट्स (Fve basic investments)

जो इस बात को समझ गए हैं कि इन्वेस्टमेंट करना कितना ज़रूरी होता है उनके पास पैसे इन्वेस्ट करने के 5 आप्शन हैं. पहला आप्शन है – सेविंग्स अकाउंट -ये बड़ा सिंपल सा कासेप्ट है जिसे हम में से ज़्यादातर लोग यूज़ करते हैं.इसमें हम हर महीने कुछ पैसे बैंक में डालते हैं. बैंक उन पैसों को दूसरों को लोन देने में इस्तेमाल करती है. बैंक लोन पर दिए हुए पैसों पर ज़्यादा इंटरेस्ट लेती है और उससे कुछ कम इंटरेस्ट हमें देती है.यानी आप पैसे सेव करके उन पैसों से और पैसा कमा सकते हैं.सेविंग्स करने का हमारा मकसद होता है कि हम कम से कम इन्फ्लेशन को तो बीट कर सकें यानी महंगाई को.आइए इसे एक्जाम्पल से समझते हैं

मान लीजिये कि आज आपने बैंक में 5% के हिसाब से 700 रूपए जमा किए. एक साल के बाद आपको 106 रूपए मिलेंगे यानी 100 जो आपने जमा किए थे और 6 जो आपको इंटरेस्ट मिला है और आप ख़ुश हो जाएँगे कि मेरे पैसों ने मेरे लिए और पैसे कमाए. लेकिन बदकिस्मती से हुआ ये कि उस है कि आपका रियल सि ना जा सामान आप पहले I00 रूपए में खरीद सकते थे आज आपको वही सामान I06 रूपए में मिलेगा.इसका मतलब भी 6% था तो 0% हुआ यानी कि आपका पैसा आपके लिए कुछ नहीं कमा सका.

इन्वेस्टमेंट होती है कलेक्टिब्लस । (Collectibles) 2 दूसरी

इसका मतलब होता है कोई ऐसी चीज़ खरीदना जिसके लिए फ्यूचर में लोग हमें ज़्यादा पैसे देने के लिए भी तैयार हो जाएं.एक्जाम्पल के लिए पुराने सिक्के, कोई एंटीक आइटम, कोई यूनिक पेंटिंग, जब हम इन चीज़ों में इन्वेस्ट करते हैं तो सोचते हैं कि आने वाले समय में ये लोगों को ज़्यादा अपील करेगी, जैसे मोना लिसा की पेंटिंग, और लोग हमें उसके लिए ज्यादा पैसे देंगे. लेकिन इसका सबसे बड़ा नुक्सान ये है कि हो सकता है कि ये सामान टूट की पंटिंग ।

जाए, जल जाए या चोरी हो जाए. ऐसी सिचुएशन में हमारी इन्चेस्टमेंट ज़ीरो हो सकती है. में । 3. हाउस एंड अपार्टमेंट (House and apartment) :- ये एक ऐसा इन्वेस्टमेंट है जिसे एक अच्छा इन्वेस्टमेंट कहा जा सकता है क्योंकि इसमें हम OPM यानी other people’s money का इस्तेमाल कर सकते हैं यानी दूसरों के पैसों को यूज़ कर के अमीर बन सकते हैं. जिसका मतलब है कि इस तरह के इन्वेस्टमेंट के लिए लोन मिल जाता है. इसमें अवसर लोग घर की पूरी कीमत का सिर्फ 20% डाउनपेमेंट अपनी जेब से खर्च करते हैं।

और बाकि का 80% लोन आला

ज्यादातर लोगों का घर में इन्वेस्टमेंट करने का मकसद ये होता है कि वो उसे रेंट पर दे सकें और उनकी रेंटल इनकम इतनी हो कि वो लोन की इन्सटॉलमेंट से ज्यादा हो ताकि उनकी जेब से लोन का एक रुपया भी खर्च ना हो. देखा जाए तो उसे वो प्रॉपर्टी 20% जो उसने डाउनपेमेंट दिया था उस पर मिली है. इतना ही नहीं, लोन चुकाने के बाद भी उसे उस घर से रेंटल इनकम मिलती रहेगी यानी जिंदगी भर के लिए पैसिव इनकम, इसके साथ ही ममा जसा छठ की कीपल बडेगी तो उसकी नेटवर्थ भी बढ़त जब जब उस नी जाएगी.

  1. अगली इन्वेस्टमेंट है बांड्स (Bonds) : बांड्स बस एक कागज़ का टुकड़ा होता है जो ये कहता है कि आपने किसी को लोन दिया है और जिसे आपने लोन दिया है तो कब और कितने पैसे आपको देगा.अब क्योंकि सेविंग्स अकाउंट से ज़्यादा इंटरेस्ट बांडस में मिलता है तो लोग बांड्स में भी इन्वेस्ट करते हैं, गवर्नमेंट से लेकर पब्लिक कंपनी सब हमें बांडस बेचती है यानी हमसे लोन लेती है, अगर हम रिस्क लेने से डरते हैं या सिक्योर
    1. माइंडसेट के हैं तो हम गवर्नमेंट बांड्स खरीद सकते हैं क्योंकि बैंक की तरह उनके पीछे भी गवर्नमेंट का सपोर्ट होता है, है। दूसरा आप्शन है पब्लिक कंपनी से बांड्स लेना. अब सबके मन में ये डाउट होता है कि अगर हमने किसी कंपनी के बांड्स खरीदे और दो कंपनी ही बंद हो गई तो क्या होगा? तो इस केस में हमारे पैसे तब तब भी सिक्योर होते हैं क्योंकि अगर कंपनी का दिवाला निकल जाता है तब उस कंपनी के assers की नीलामी की जाती है. उस नीलामी से जो पैसा आता है वो सबसे पहले बांड होल्डर्स को दिया जाता है और बाद में शेयर होल्डर्स को. हाँ, हमारी इन्वेस्टमेंट तब रिस्क में होती है जब उस कंपनी के सारे assets को बेचने के बाद भी इतने पैसे इकट्ठे नहीं होते कि सभी बांड होल्डर्स के पैसे चुकाए जा सकें. इस वजह से कई लोग गवर्नमेंट बांड्स ही लेना पसंद करते
  1. अगली इन्वेस्टमेंट है स्टॉक्स (stocks) : कई लोग स्टॉक्स यानी शेयर्स को बेस्ट इन्वेस्टमेंट मानते हैं क्योंकि इसकी रखवाली हमें नहीं करनी पड़ती जैसे अपने गाय या घोड़ों की करनी पड़ती है. इस तरह के इन्वेस्टमेंट में जितनी परसेंट कंपनी ग्रो करेगी हमारी वेल्थ भी उतने परसेंट ग्रो करती रहेगी और में संटरेस्टि उस कंपनी में कोर नहीं सबसे बात तो ये है कि हमें काम भी करना पडेगा.

जो कंपनी के बांड होल्डर्स होते हैं यानी जिन्होंने कंपनी को लोन दिया है उन्हें बस उतने ही पैसे दिए जाते हैं जितना उस बांड सर्टिफिकेट में लिखा हुआ होता है फिर चाहे वो कंपनी आगे चलकर Microsoft या Rellance ही क्यों ना बन गई हो, लेकिन जो शेयर होल्डर्स होते हैं वो कंपनी की ग्रथ का पूरा मज़ा उठाते हैं यानी अगर कंपनी 20 गुना बढ़ेगी तो उनकी इन्वेस्टमेंट भी 20 गुना हो जाएगी.

अगर हमें इन्वेस्ट करना शुरू करना है तो ऐसा नहीं है कि हमें करोड़पति होना होगा या लखपति होना होगा. हम 500 रूपए भी इन्वैस्ट कर इसकी शुरुआत कर सकते हैं, State Bank of India का आज शेयर प्राइस 18750 रूपए चल रहा है यानी हम 18750 रूपए में ही 5tate Bank of India का कुछ हिस्सा खरीद सकते हैं, इस बुक के आँधर पीटर कहते हैं कि अगर आप ये भी नहीं करना चाहते हैं तो हम किसी कंपनी को ट्रैक करना शुरू कर सकते हैं फ़िर उसकी फाइनेंसियल स्टेटमेंट को पढ़कर ये इमेजिन कर सकते हैं कि हमने उसके शेयर्स खरीद लिए हैं.अब हमें देखना होगा कि क्या लोग टर्म में हम उस कंपनी के उतार चढ़ाव के बिहेवियर को प्रेडिक्ट कर पा रहे हैं या नहीं, यानी क्या हमारे imaginary शेयर की वैल्यू बढ़ी है या नहीं, और जब हमें कुछ कुछ अदाज़ा होने लगे तब हम सच में शेयर्स खरीदना शुरू कर सकते हैं. जब लोगों को शेयर्स में नुक्सान होता है तो ये शेयर्स की गलती नहीं होती. उसमें गलती होती है शेयर्स खरीदने वाले की क्योंकि जितना वक़्त हम एयर कंडीशनर खरीदने में लगाते हैं उतना वक्त हम किसी कंपनी के शेयर्स खरीदने में नहीं लगाते. जल्दबाज़ी में किसी भी कंपनी में इन्वेस्ट करना बहुत बड़ी बेवकूफी है.

म्यूच्यूअल फंड्स (Mutual funds) :

अगर हम खुद अपने पैसों को इन्वेस्ट नहीं करना चाहते तो पीटर कहते हैं कि हम म्यूच्यूअल फंड में भी पैसा इन्वेस्ट कर सकते हैं.म्यूच्यूअल फंड में एक एक्सपर्ट होता है जिसे फंड मैनेजर कहा जाता है. उसका काम होता है मार्केट में अलग अलग कपनी को स्टडी करना और ये देखना कि कौन सी कंपनी फ्यूचर में ग्रो कर सकती है. म्यूच्यूअल फंड में कई लोग पैसा इन्वेस्ट करते हैं. एक्जाम्पल के लिए, आपने 10,000 दिए, मैंने 20.000 दिए. अब फंड मैनेजर सारे पैसों की कई अलग अलग कंपनी में इन्वेस्ट कर देता है. अगर

ये सारी कंपनियां ग्रो करती हैं तो सारा प्रॉफिट इन्वेस्टर्स को उनके लगाए हुए पैसों के हिसाब से दिया जाएगा. इसी तरह, अगर loss हुआ तो वो भी इन्वेस्टर्स को सहन करना पड़ेगा. अब

व्योंकि फंड मैनेजर हमारे लिए काम करता है पीकिंग योर ओन स्टॉक्स (Picking your own stocks)

कहा जाता है.

तो वो इसके लिए हमसे कमीशन लेता है जिसे expense ratio

अगर हमें इन्वेस्ट करने में मज़ा आरहा है तो हम शेयर्स खरीद सकते हैं. पीटर कहते हैं कि इसके लिए हमें MBA करने की ज़रुरत नहीं है. एक आम आदमी भी अपने लिए शेयर्स ढूंढ सकता है, यहाँ तक कि कई फंड मैनेजर से ज़्यादा रिटर्न भी कमा सकता है. पीटर कहते हैं कि जो लोग खुद इन्वेस्ट करते हैं उन्हें 5 केटेगरी में डिवाइड किया जा सकता है

1 पहली केटेगरी है Darts ये वो लोग होते हैं जो guessकरते हैं यानी तुक्का मारते हैं. इन्हें कंपनी के बारे में कुछ पता नहीं होता लेकिन फिर द लेते हैं सिर्फ ये सोच कर कि किसी दिन उन शेयर्स की वैल्यू बढ़ जाएगी.ये बिलकुल एक lottery का टिकेट खरीदने जैसा है. इन्हीं भी ये शयस खरीद लोगों को शेयर्स से नुक्सान होता है जिनकी वजह से लोग शेयर मार्केट के साथ नेगेटिव इमोशन जोड़ देते हैं. ए हुए अपने दोस्तों और मेहमानों से शेयर्स की टिप लेते हैं. अगर कोई कहता है कि 2. दूसरी कैटेगरी है Hot LIps एस लाग सिक्के से सन में देयर खरीद लेते हैं क्योंकि इन्हें लगता है कि इनका दोस्त बड़ा होशियार और

*Reliance के शेयर के दाम बढ़ने

स्मार्ट है और इनके दोस्त को लगता आप बहुत स्मार्ट हैं क्योंकि आपने भी उसे ऐसी ही टिप दी थी. 3. अगली केटेगरी है Educated Tips : अगर हम टीवी पर बोलने वालों की टिप सुनते हैं तो हम इस केटेगरी में आते हैं. हालांकि, ये पिछली दोनों कुछ better होते हैं लेकिन फिर भी इसमें गलत डिसिशन लेने का चांस ज्यादा होता है क्योंकि लाखों लोग उसी सोर्स के टिप को सुन कर शेयर्स खरीद लेते हैं जिसकी वजह से किसी को फ़ायदा नहीं हो पाता. 4. चौथी केटेगरी है Broker List: ये लोग एक ब्रोकर की टिप पर डिसिशन लेते हैं, ब्रोकर जब आपसे कहता है कि सर मैंने कंपनी को एनालाइज किया हुआ है, इन कम्पनीज में इन्वेस्ट कर दीजिये..आपका पैसा डबल हो जाएगा”. अब हो सकता है कि आपका ब्रोकर इंटेलीजेंट हो और उसने सच में कंपनी को एनालाइज किया हो. लेकिन ब्रोकर तो कमीशन बेसिस पर काम करते हैं यानी वो आपको उन स्टॉक्स को खरीदने के लिए कहेगा जिससे उसे ज़्यादा फायदा हो. इसलिए उसकी टिप का झुकाव उसके फ़ायदे के हिसाब से होता है. 5. फाइनली पाँचवी केटेगरी है Doing your own research : जब हम खुद अपनी समझ से कंपनी को स्टडी करते हैं और अपनी तसल्ली के बाद ही उसमें पैसा इन्वेस्ट करते हैं तो ये सबसे बेस्ट इन्वेस्टर्स होते हैं, अगर आप एक बेसिक इन्वेस्टर भी हैं मगर इस केटेगरी में आते हैं तो बहुत हाई चांस है कि आप सक्सेसफुल होंगे.

अब मिलियन डॉलर का सवाल तो ये है कि हम खुद स्टॉक्स को ढूँढ़ना कैसे शुरू करें: सबसे पहला स्टेप है कि हम अपने आस पास डेली लाइफ में यूज़ किए जाने वाले प्रोडक्ट्स को देखें जैसे कि एक डॉक्टर देख सकता है की कौन सी नई दवाई है जो एक रेयर डिजीज को ठीक करने के काम आ सकती है, एक फोटोग्राफर देख सकता है कि कौन सा नया कैमरा लोग आजकल ज़्यादा खरीद रहे हैं, एक हाउस वाइफ देख सकती है कि कौन सा नया केचप उसकी सहेली ज़्यादा यूज़ कर रही है. एक बार जब हम किसी प्रोडक्ट को कस्टमर की नज़र से देखते हैं तो हम बता सकते हैं कि उस प्रोडक्ट को बनाने वाली कंपनी में सच में कोई दम और पोटेंशियल है भी या नहीं. लेकिन इसका मतलब ये नहीं है कि आप बस क़ौरन उस कंपनी के शेयर की खरीदने के लिए तैयार हो जाएं. ये बस कंपनी को शोर्ट लिस्ट करने का प्रोसेस होता है.

ला स्टेप है कंपनी की एनालिसिस करना यानी उसका डेटा देखना कि कंपनी ने असल में पिछले कई सालों में कितने की सेल की है, उस पर कितना लोन है, उस कंपनी का मैनेजर कौन है, क्या उस कंपनी को नए आर्डर मिल भी रहे हैं या नहीं और उस कंपनी के बैंक अकाउंट में कितना cash पड़ा है. इसके बाद ये देखना भी ज़रूरी है कि कंपनी को जो प्रॉफिट हो रहा है उसे किन चीज़ों में यूज़ किया जा रहा है यानी क्या वो प्रॉफिट को कंपनी की ग्रोथ के लिए खर्च कर रहे हैं या फिर कंपनी के पैसों क को नई गाड़ियों, नए जेट खरीदने में लगा रहे हैं. इन शोर्ट, जितना ज़्यादा हमें किसी कंपनी के बारे में पता होगा हम उतना बेहतर डिसिशन ले सकेंगे. आइए एक एक्जाम्पल से समझते हैं. पीटर कहते हैं कि 1993 में Johnson & Johnson के स्टॉक के दाम 57$ से गिर कर 39$ हो र थे. इतनी अच्छी कंपनी जो अच्छे प्रोडक्ट्स बनाती थी उसके स्टॉक्स के दाम गिरते जा रहे थे. अगर आप होते तो आपको भी लगता कि इस कंपनी में कुछ ना कुछ तो गड़बड़ ज़रूर है. लेकिन पीटर ने जब उनकी annual रिपोर्ट पढ़ी तो उन्हें पता चला कि Johnson & Johnson की अर्निंग पिछले दस सालों से लगातार ग्रो कर रही थी. इतना ही नहीं Johnson & John शेयर होल्डर्स को डिविडेंड भी दे रही थी, ises में JohnsonsJohnson ने 5 बिलियन के प्रोडक्ट बेचे और 1993 में यानी ठीक दस साल बाद 14 बिलियन की सेल की थी. यानी कि Son पिछले 32 सालों से अपने सि 10 सालों में इस कंपनी ने डबल से भी ज़्यादा ग्रो किया था.रिपोर्ट में पीटर को कोई नेगेटिव पॉइंट नहीं दिख रहा था जिसकी वजह से कंपनी के दाम गिरते जा रहे थे मगर वो जानते थे कि कुछ ना कुछ तो कारण ज़रूर होगा.

असल में कारण ये था कि 993 में अमेरिका में हेल्थकेयर के नए लॉज़ बनाने पर विचार किया जा रहा था जिसे वहाँ की कांग्रेस और क्लिंटन प्रमोट कर जाते तो सभी हेल्थ केयर प्रोडक्ट्स बनाने वाली कंपनियों को बहुत नुक्सान होता, इस वजह से सारे इन्वेस्टर्स डरे हुए थे और वो ]ohnson&]ohnson को हेल्थ केयर कंपनी मान कर उसमें पैसा इन्वेस्ट नहीं करना चाहते थे.

लेकिन पीटर ने इस कंपनी की annual रिपोर्ट पढ़ी थी और वो जानते थे कि इस कंपनी का 50% प्रॉफिट अमेरिका से नहीं बल्कि बाहर के देशों से आता था. इतना ही नहीं बल्कि अमेरिका में भी 20% प्रॉफिट नॉन हेल्थ केयर प्रोडक्टस से आ था जैसे कि शैम्पू और दूसरे व्यूटी प्रोडक्टूस.

लॉ पास भी हो जाता तब भी Johnson & Johnson एक फायदे की कंपनी साबित होती. इस रिपोर्ट को पढ़ने में पीटर को 20 इसलिए अगर वो लॉ मिनट लगे और उन्होंने कंपनी में इन्वेस्ट कर दिया. 18 महीने में उनके स्टॉक्स के प्राइस डबल हो गए यानी इन्वेस्टर्स के पैसे डबल हो गए. तो दोस्तों इस समरी में हमने जाना कि 5 तरह की इन्वेस्टमेंट होती है जो है : सेविंग्स, कलेक्टिब्लस, रियलएस्टेट, बांड्स और स्टॉक्स,इन सब में स्टॉक्स

कन्क्लू ज़न (Conclusion)

में इन्वेस्ट करना सबसे बेहतर आप्शन माना गया है.स्टॉक्स में भी लोग 5 तरीके से इन्देस्ट करते हैं या तो वो quess करते हैं, दोस्तों से टिप लेते हैं, टीवी पर सो called फाइनेंसियल एक्सपर्ट की टिप को सुनते हैं, ब्रोकर से टिप लेते हैं या ख़ुद मार्केट को एनालाइज कर के शेयर्स खरीदते हैं और जो खुद एनालाइज करके स्टॉक्स खरीदते हैं उनके ही सक्सेसफुल होने के ज़्यादा चांसेस होते हैं. इसके बाद हमने देखा कि किसी भी कंपनी के मार्केट को समझने के लिए सबसे पहले एक कस्टमर के पॉइंट ऑफ व्यू से देखना चाहिए कि क्या उस प्रोडक्ट की सच में मार्केट में डिमांड है या नहीं. अगर है तो उसके बाद हमें उसकी annual रिपोर्ट और फाइनेंसियल स्टेटमेंट को पढ़ना चाहिए जिसके लिए हमें पीटर ने ने Johnson sJohnson का बेहतरीन एक्जाम्पल दिया.

तो देखा आपने इन्वेस्टमेंट कोई रॉकेट साइंस नहीं है जिसे समझना मुश्किल हो. इन्वेस्टमेंट को कई लोग करते हैं लेकिन स्मार्ट इन्वेस्टमेंट बस कुछ ही लोग करना जानते हैं. इस बुक ने हमें इन्वेस्टमेंट के बेसिक लॉजिक को समझाया है लेकिन खुद को नुक्सान से बचाने और अच्छी रिटर्न कमाने के लिए आप इसे कितनी स्मार्टली यूज़ करते हैं वो सिर्फ आप पर depend करता है, इसलिए don’t be an ordinary investor, be a smart investor”.

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