JWALAMUKHI by Munshi premchand.

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About

डिग्री लेने के बाद में रोज लाइब्रेरी जाया करता। अखबार या किलाबों को पढ़ने के लिए नहीं। किताबों को तो मैंने न छने की कसम खा ली थी।

जिस दिन गजट में अपना नाम देखा, उसी दिन मिल और कैंट को उठाकर अलमारी पर रख दिया। मैं सिर्फ अंग्रेजी अखबारों के वाटेड’ column को देखा करता। जीवन की फिक्र सवार थी। मेरे दादा या परदादा ने किसी अंग्रेज़ को लड़ाई के दिनों में बचाया होता या किसी इलाके का ज़मींदार होते, लो कहीं नामिनेशन के लिए कोशिश करता। पर मेरे पास कोई सिफारिश न थी। दुख कुत्ते, बिल्लियों और मोटरों की माँग सबको थी। पर बी.ए. पास की कोई पूछ न थी। महीनों इसी तरह दौड़ते र गये, पर अपने पसंद के हिसाब की कोई जगह नजर न आयी। मुझे अक्सर अपने बी.ए. होने पर गुस्सा आता था। ड्राइवर, फायरमैन, मिस्त्री, गुजर खानसामा या बावर्ची होता, तो मुझे इतने दिनों बेकार न र बैठना पड़ता।

एक दिन में चारपाई पर लेटा हुआ अखबार पढ़ रहा था कि मुझे एक माँग अपनी इच्छा के हिसाब से दिखाई दी। किसी अमीर को एक ऐसे प्राइवेट सेक्रेटरी की की जरूरत थी, जो अक्लमंद, खुशमिजाज, अच्छे दिल का और सुंदर हो। तनख्वाह एक हज़ार महीना मैं उछल पड़ा। कहीं मेरी किस्मत खुल और यह नौकरी मिल जाती, तो जिंदगी चैन से कटती। उसी दिन मैंने अपना एप्लिकेशन अपने फोटो से साथ रवाना कर दिया, पर अपने आसपास के लोगों में किसी से इसका ज़िक्न न किया कि कहीं लोग मेरी हँसी न उड़ाएँ। मेरे लिए 30 रु. महीने भी बहुत थे। एक हज़ार कौन पर दिल से यह न होता ! बैठे-बैठे शेखचिल्ली की तरह सपने देखा करता। फिर होश में आकर खुद को समझाता कि मुझमें अच्छी दगी? से यह ख्याल दूर नौकरी के लिए कौन सी काबीलियत है। मैं अभी कालेज से निकला हुआ किताबों का पुतला हूँ। दुनिया से बेखबर ! उस नौकरी के एक से के लिए एक-से एक अक्लमंद, अनुभवी आदमी मुँह फैलाए बैठे होंगे। मेरे लिए कोई उम्मीद नहीं। मैं सुंदर सही, सजीला सही, मगर ऐसे पर्दो के लिए सिर्फ सुंदर होना काफ़ी नहीं होता। विज्ञापन में इसकी बात करने से सिर्फ इतना मतलब होगा कि बदसूरत आदमी की ज़रूरत नहीं, और सही भी है। बल्कि बहुत सिर्फ : । सजीलापन तो ऊँचे पदों के लिए कुछ अच्छा नहीं लगता। मध्यम वर्ग, तोंद भरा हुआ शरीर, फूले हुए गाल और अच्छे से बात करने का तरीका ही ऊँचें पद के अधिकारियों की निशानियां है और मुझ में इनमें से एक भी नहीं है।

इसी उम्मीद और डर में एक हफ्ता गुजर गया और निराश हो गया। मैं भी कैसा बेवकूफ़ हूं कि बे सिर-पैर की बात के पीछे ऐसा फूल उठा, इसी को कहते हैं। जहाँ तक मेरा ख्याल है, किसी मस्तीखोर ने आजकल के पढ़े लिखों के समाज की बेवकूफी की परीक्षा करने के लिए यह नाटक किया बचपना है। मुझे इतना भी न सूझा। मगर आठवें दिन सुबह डाकिये ने मुझे आवाज़ दी। मेरे दिल में गुदगुदी-सी होने लगी। लपका हुआ आया। टेलीग्राम खोलकर देखा, लिखा- “स्वीकार है, जल्दी आओ। ऐशगढ़। मगर यह खुशखबरी पाकर मुझे वह खुशी न हुई, जिसकी उम्मीद थी। मैं कुछ देर तक खड़ा सोचता रहा, किसी तरह यकीन न आता था। ज़रूर किसी की बदमाशी है। मगर र कोई नुकसान नहीं, मुझे भी इसका मुँहतोड़ जवाब देना चाहिए। टेलीग्राम दे दूँ कि एक महीने की तनख्वाह भेज दो।

खुद ही सारी सच्चाई बाहर आ जाएगी। मगर फिर सोचा, कहीं सच में किस्मत खूल गई हो, तो इस हरकत से बना-बनाया खेल बिगड़ जायगा। चलो, की सही जीवन में यह घटना भी याद रहेगी।

मजाक

पहुँचा। पूछने पर मालूम हुआ कि यह जगह ঠ क ह ভालू यह तये करक टेलीग्राम से अपने आने की खबर दी और सीधी रेखने केल की ओर है।

टाइमटेबल में उसके बारे में लिखा था। जगह बहुत सुंदर है, पर मौसम ठीक नहीं। हाँ, तंदुरुस्त नौजवानों पर उसका असर जल्दी नहीं होता। नजारे बहुत सुंदर। पर ज़हरीले जानवर बहुत मिलते हैं। जितना हो सके अधेरी घाटियों में नहीं जाना चाहिए। यह सब पढ़कर बेचैनी और भी बढ़ी ज़हरीले जानवर हुआ करें, कहाँ नहीं हैं। में अँधेरी घाटियों के पास भूलकर भी न जाऊंगा। आकर सफर का सामान पैक किया और भगवान का नाम लेकर तय समय पर स्टेशन की तरफ चला, पर अपने बातूनी दोस्तों से इसका जिक्र न किया, क्योंकि मुझे पुरा यकीन था कि दो-ही-चार दिन में फिर अपना-सा मुँह लेकर लौटना पड़ेगा।

गाड़ी पर बैठा तो शाम हो गई थी। कुछ देर तक सिंगार और अखबारों से दिल बहलाता रहा। फिर मालूम नहीं कब नींद आ गई। आँखें खुली और खिड़की से बाहर तरफ झांका तो सुबह का सुंदर नजारा दिखाई दिया। दोनों ओर हरे पेड़ों से ढकी हुई पहाड़ियां, उन पर चरती हुई उजली-उजली गायें भेड़े सूर्य की सुनहरी किरणों में रँगी हुई बहुत सुन्दर मालूम होती थीं। जी चाहता था कि कहीं मेरी कुटिया भी इन्हीं सुखद पहाड़ियों में होती, जंगलों के फल खाता, झरनों का ताजा पानी पीता और खुशी के गीत गाता अचानक नजारा बदला कहीं उजले-उजले पक्षी तैरते थे और कहीं छोटी-छोटी डॉगियाँ कमजोर आत्माओं की तरह डगमगाती हुई चली जाती थीं। यह नजारा भी बदला। पहाड़ियों के बीच में एक गांव नजर आया, झाडियों और पेड़ों से ढका हुआ, मानो शांति और संतोष ने यहाँ अपना बसेरा बनाया हो।

बच्चे खेलते थे, कहीं गाय के बछड़े उछलते थे। फिर एक घना जंगल मिला। झुण्ड-के-झुण्ड हिरन दिखाई दिये, जो गाड़ी की आवाज सुनते ही छलांग मारते दूर भाग जाते थे। यह सब नजारे सपने के समान आँखों के सामने आते थे और एक पल में गायब हो जाते थे। उनमें ऐसी शांति देने वाली खूबसूरती थी, जिससे दिल में इच्छाओं की लहरें उठने लगती। आखिर ऐशगढ़ पास आया। मैंने बिस्तर संभाला। जरा देर में सिगनल दिखाई दिया। मेरा दिल धड़कने लगा। गाड़ी रुकी। मैंने उतरकर इधर-उधर देखा, कहीं कुलियों को पुकारने लगा कि इतने में दो वरदी पहने हुए आदमियों ने आकर मुझे इज्जत से सलाम किया और पूछा- “आप.से आ रहे हैं न, चलिये मोटर तैयार है।

खुश हो गया। अब तक कभी मोटर पर बैठने का मौका न मिला था। शान के साथ जा बैठा। मन में बहुत शर्मिंदा था कि ऐसे फटे हाल क्यों आया? अगर जानता कि सचमुच किस्मत का तारा चमका है, तो ठाट-बाट से आता। खैर, मोटर चली, दोनों तरफ मौलसरी के घने पेड़ थे। सडक पर लाल वजरी बिछी हुई थी। सड़क हरे-भरे मैदान में किसी सुंदर नदी के तरह बल खाती चली गई थी। दस मिनट भी न गुजरे होंगे कि सामने एक शांत सागर दिखाई दिया। सागर के उस पार पहाड़ी पर एक विशाल भवन बना हुआ था। भवन अभिमान से सिर उठाए हुए था, सागर संतोष से नीचे लेटा हुआ, सारा नजारा कविता, श्रृंगार और खुशी से भरा हुआ था।

हम दरवाजे पर पहुंचे, कई आदमियों ने दौड़कर मेरा स्वागत किया। इनमें एक शौकीन मुंशीजी थे जो बाल सँवारे आँखों में सुरमा लगाए हुए थे। मेरे लिए जो कमरा सजाया गया था, उसके दरवाजे पर मुझे पहुंचाकर बोले- “सरकार ने फरमाया है, इस समय आप आराम करें, शाम के समय मुलाकात

कीजिएगा।”

मुझे अब तक इसकी कुछ खबर न थी कि यह सरकार कौन है, न मुझे किसी से पूछने का हिम्मत हुई क्योंकि अपने मालिक का नाम तक न जानने देना चाहता था। मगर इसमें कोई शक नहीं कि मेरा मालिक बड़ा अच्छा इंसान था। मुझे इतने आदर-सत्कार की बिल्कुल उम्मीद न थी। अपने सजे हुए कमरे जाकर जब मैंने एक आराम-कुर्सी पर बैठा, तो खुशी से भर गया। पहाड़ियों की तरफ से ठंडी हवा के धीमें धीमें झोंके चल रहे थे। सामने छत थी।

नीचे झील।

। साँप के केंचुल की तरह रोशनी से भरे, और मैं, जिसे किस्मत की देवी ने हमेशा अपना सौतेला बेटा समझा था, इस समय जीवन में पहली

बार बिना बाधा के के सुख उठा रहा था। तीसरे पहर शौकीन मुंशी जी आकर खबर दी कि सरकार ने याद किया है। मैंने इस बीच में बाल बना लिए थे। तुरन्त अपना सबसे अच्छा सूट पहना प्रहर और मुंशीजी के साथ सरकार की सेवा में चला। इस, समय मेरे मन में यह शक हो रहा था कि मेरी बातचीत से मालिक नाखुश न हो जायेँ और उन्होंने मेरे बारे में जो सोचा हो, उसमें कोई अंतर न पड़ जाय, फिर भी मैं अपनी काबिलियत का परिचय देने के लिए खूब तैयार था। हम कई बरामदों से होते आखिर में सरकार के कमरे के दरवाजे पर प्रहुँचे। रेशमी परदा पड़ा हुआ था। मुशीजी ने पर्दा उठाकर मुझे इशारे से बुलाया। मैंने कॉपते हुए दिल से कमरे में कदम रखा और आश्चर्य से चकित रह गया! मेरे सामने सुंदरता की एक आग जल रही थी। से र फूल भी सुन्दर है और दीपक भी। फूल में ठंडक और सुगंध है, दीपक में रौशनी और गरमाहट। फूल पर भ्रमर उड़-उड़कर उसका रस लेता है, दीपक में पतंग जलकर राख हो जाता है। मेरे सामने कसीदे किए हुए गद्दी पर जो सुन्दरी बैठी थी, वह सुंदरता की एक रोशनी से भरी आग थी। फूल की पंखुड़ियाँ हो सकती हैं लेकिन आग को अलग करना नामुमकिन है। उसके एक-एक अंग की तारीफ करना आग को काटना है। वह सर से पैर तक एक आग थी, वही दीपक, वहीं चमक बही लालिमा, वही रोशनी, कोई चित्रकार सुंदरता की प्रतिमा का इससे अच्छा चित्र नहीं बना सकता था। सुंदरी ने मेरी तरफ प्यार भरी नजरों से देखकर कहा- “आपको सफर में कोई खास तकलीफ तो नहीं हुई ?”

मैने सँभलकर जवाब दिया- “जी नहीं, कोई तकलीफ नहीं हुई।”

रमणी- ” यह जगह पसंद आई?” मैंने हिम्मती जोश के साथ जवाब दिया- “ऐसी सुन्दर जगह धरती पर न होगी। हाँ गाइड-बुक देखने से पता चला कि यहाँ का मौसम जैसा अच्छा दिखता है, असल में वैसा है नहीं, जहरीले जानवरों की भी शिकायत है।” यह सुनते ही उस लड़की का चेहरा मुरझा गया। मैंने तो बात इसलिए कर दी थी, जिससे साफ हो जाय कि यहाँ आने में मुझे भी कुछ त्याग करना पड़ा पर मुझे ऐसा मालूम हुआ इस बात से उसे कोई खास दुख हुआ। पर पल भर में उसका चहरा ठीक हो गया, बोली- “यह जगह अपनी सुंदरता के कारण बहुत से लोगों की आँखों में खटकता है। गुण की इज्जत न करने वाले सभी जगह होते हैं और अगर मौसम कुछ नुकसानदायक हो भी, तो आप ताकतवर इंसान को इसकी क्या चिन्ता हो सकती है। रहे जहरीले जीव-जंतु, वह अपने आँखों के सामने धूमते रहे हैं। अगर मोर, हिरन और हंस जहरीले जीव है, जो बेशक यहाँ जहरीले जीव बहत है।” मुझे शक हुआ कहीं मेरी द बात से उसका मन खराब न हो गया हो। गर्व से बोला- “इन गाइड-बुकों पर भरोसा करना बिल्कुल भूल है।” इस बात से सुंदरी का दिल खिल गया, बोली- “आप सीधे बात करने वाले मालूम होते हैं और यह एक अच्छा गुण है। में आपका फोटो देखते ही इतना समझ गई थी। आपको यह सुनकर आश्चर्य होगा कि इस नौकरी के लिए मेरे पास एक लाख से ज्यादा एप्लिकेशन आये थे। कितने एम.ए.थे, कोई कोई जर्मनी से पी-एच.डी. डिग्री किए हुए था, मानो यहाँ मुझे किसी दार्शनिक विषय की जाँच करवानी थी मुझे अबकी यह अनुभव डी.एस-सी. था, हुआ कि देश में ऊँचें पढ़े लिखे इंसानों की इतनी भरमार है। कई महाशयों ने खुद से लिखे हुए ग्रंथों की लिस्ट लिखी थी, मानो देश में लेखकों और पंडितों को ही जरूरत है।

उन्हें समय का जरा सा भी अंदाजा नहीं है। प्राचीन धर्म-कथाएँ अब सिर्फ अंधविश्वासों के मजे के लिए ही हैं, उनसे और कोई फायदा नहीं है। सह उन्नति का समय है। आजकल लोग भौतिक सुख पर अपनी जान देते हैं। कितने ही लोगों ने अपने फोटो भी भेजे थे। कैसी-कैसी अजीब शक्लें थीं, जिन्हें देख कर घंटों हँसिए। मैंने उन सभी को एक अलबम में लगा लिया और छुट्टी मिलने पर जब हँसने की इच्छा होती है, तो उन्हें देखा करती हूँ। मैं उस विद्या को बीमारी समझती हूँ, जो इंसान को बंदर बना दे। आपका फोटो देखते ही आँखें मोहित हो गई। तुरंत आपको बुलाने का टेलीग्राम दे दिया।”

मालूम नहीं क्यों, अपने गुण स्वभाव की तारीफ की मुकाबले हम अपने बाहरी गुणों की तारीफ से ज्यादा संतुष्ट होते हैं और एक सुंदरी के मुख से तो वह चलते हुए जादू के समान है। बोला- “जितना हो सके आपको मुझसे निराश होने का मौका न मिलेगा।” सुन्दरी ने मेरी और तारीफ भरी नजरों से देखकर कहा- “इसका मुझे पहले ही से भरोसा है। आइए, अब कुछ काम की बातें हो जायें। इस घर को आप अपना ही समझिए और शर्म छोड़कर आराम से रहिए। मेरे भक्तों की सख्या बहुत है। वह दुनिया के हर भाग में हैं और अक्सर मुझसे कई तरह के सवाल । करते हैं। उन सबकों में आपके हवाले करती हूं। आपको उनमें अलग अलग स्वभाव के इंसान मिलेंगे। कोई मुझसे मदद माँगता है, कोई मेरी बुराई किया करता है, कोई तारीफ करता है, कोई गालियाँ देता है। इन सब लोगों को संतुष्ट करना आपका काम है।

देखिए, आज की चिट्ठियों को देर। एक महाशय कहते हैं- “बहुत दिन हुए आपकी प्रेरणा से में अपने बड़े भाई की मौत के बाद उनकी जायदाद का मालिक बन बैठा था। अब उनका बेटा बड़ा हो चुका है और मुझसे अपने पिता की जायदाद लोटाना चाहता है। इतने दिनों तक उस सम्पत्ति का इस्तेमाल करने के बाद अब उसका हाथ से निकलना अखर रहा है, आपकी इस बारे में क्या सहमति है ? इन्हें जवाब दीजिए कि इस समय कूटनीति से काम लो, arz अपने भतीजे को झूठे प्यार से मिला लो और जब वह बेफिक्र हो जाए तो उससे एक सादे स्टाम्प पर साईन करा लो। इसके पीछे पटवारी और दूसरे लोगों ने हों, तो की मदद से इसी र्टाम्प पर जायदाद अपने नाम लिखा लो। अगर एक लगाकर दो मिलते हों, तो आगा-पीछा मत करो।”

यह जवाब सुनकर मुझे बड़ा आश्चर्य हुआ। नीति-ज्ञान को धक्का-सा लगा। सोचने लगा, यह सुंदरी कौन है और क्यों ऐसे गलत काम की सलाह देती है।

खुल्लम खुल्ला तो कोई वकील भी किसी को यह राय न देगा। उसकी ओर शक के भाव से देखकर बोला- “यह तो बिल्कुल नाइंसाफी लगती है।

ऐसे की आपने भली कही। यह सिर्फ धर्म से अंधे हुए इंसानों के मन का समझौता है, दुनिया में इसकी कामिनी खिलखिलाकर हँस पड़ी और बोली- “इसाफ की 3 कोई जगह नहीं। बाप कर्ज लेकर मर जाए, लड़का एक एक पैसा भरे। विद्वान् लोग इसे इंसाफ कहते हैं, मैं इसे धोर अत्याचार समझती हूँ। इस इंसाफ के परदे में महाजन की हेकड़ी साफ़ झलक रही है। एक डाकू किसी बड़े आदमी के घर में डाका डालता है, लोग उसे पकड़कर कैद कर देते हैं, धर्मात्मा लोग इसे भी इंसाफ कहते हैं, लेकिन यहाँ भी यही पैसा और अधिकार की भयानकता है।

भी ने कितने ही घरों को लूटा बड़े आदमी , कितनों ही का गला दबाया और इस तरह पैसा जमा किया, किसी को भी उन्हें आँख दिखाने की हिम्मत न हुई। डाकू ने जब उनका गला दबाया, तो वह अपने पैसा और power के दम से उस पर हमला कर बैठे। इसे इंसाफ नहीं कहते। दुनिया में पैसा, धोखा, झूठ धूर्तता का राज्य है यही जिंदा रहने की लड़ाई है। यहां हर साधन, जिससे हमारा काम निकले, जिससे हम अपने दुश्मनों पर जीत पा सकें सही और उचित है। धर्म-युद्ध के दिन अब नहीं रहे।

यह देखिए, यह दूसरे इंसान का है। वह कहते हैं- “मॅंने first class में एम.ए. पास किया, first class में कानून की परीक्षा पास की, पर अब कोई मेरी नहीं पूछता। अब तक यह उम्मीद थी कि काबिलियत और मेहनत का जरूर ही कुछ फल मिलेगा, पर तीन साल के अनुभव से मालूम सिर्फ धार्मिक नियम है। तीन साल से घर की पूँजी खा चुका। अब मजबूर होकर आपकी शरण लेता हूँ। मुझ बदकिस्मत इंसान पर दया कीजिए और मेरा बेड़ा पार लगाइए।”

इन्हें जवाब दीजिए कि नकली कागजात बनाइए और झूठे दावे चलाकर उनकी डिग्री करा लीजिए। थोड़े ही दिनों में आपकी परेशानी हल हो जाएगी। यह देखिए, एक इंसान कहते हैं- “लड़की सयानी हो गई है, जहाँ जाता हूं, लोग दहेज माँगते हैं, यहाँ पेट की रोटियों का ठिकाना नहीं, किसी तरह अच्छाई के रहा हूँ, चारों बदनामी हो रही है , जो आदेश हो, उसका पालन करे।’ इन्हें लिखिए, बेटी का विवाह किसी बुड़े चालाक सेठ से कर दीजिए। वह दहेज लेने की जगह कुछ उल्टे और दे जाएगा। अब आप समझ गए होंगे कि ऐसे सवाल करने वालों को किस ढंग से जवाब देने की जरूरत है। जवाब छोटे होने चाहिए, बहुत टीका-टिप्पणी बेकार होती है। अभी कुछ दिनों तक आपको यह काम मुश्किल जान पड़ेंगा; पर आप चालाक इंसान हैं, जल्दी आपको इस काम की आदत हो जाएगी। तब आपको मालूम होगा कि इससे आसान और कोई उपाय नहीं है। आपके द्वारा सैकड़ों दुख भोगने वालों का कल्याण होगा और वह पूरी जिंदगी आपका यश गाएँगे।”

मुझे यहाँ रहते एक महीने से ज्यादा गया, पर अब तक मुझ पर यह राज पता नहीं चला कि यह सुन्दरी कौन है ? मैं किसका नौकर हूँ? इसके पास इतना ज्यादा पैसा, ऐसे-ऐसे विलास के सामान कहाँ से आते हैं ? जिधर देखता था, ऐश्वर्य ही का दिखावा दिखाई देता था। मेरे आक्षर्य की सीमा न थी, मानो किसी जादू में पैसा हूँ। इन सदालो क्या रिश्ता है यह राज भी न खुलता था। मेरी रोज उससे मूलाकात होती, उसके सामने आते ही मैं बेहोश-सा हो 1- सा हो जाता, का इस सुंदरी से आँखों में एक आकर्षण था. जो मेरी जान को खींच लिया करता था। मैं बेजूबान हो जाता, सिर्फ छिपी हुई आँखों से उसे देखा करता था। पर मुझे उसकी दयालु मुस्कान, रसमयी बुराईयों और मीठी, कविता के भावों में प्यार के सुख की जगह एक बड़ी मानसिक अशांति का अनुभव होता था। उसकी आँखें सिर्फ दिल को बाणों के समान छेदती थीं. उसकी बातें मन को परेशान करती थी।

शिकारी अपने शिकार को खिलाने में जो सुख पाता है, वहीं उस परम सुंदरी को मुझे प्यार के लिए बेचेन देखकर मिलता था। वह एक सुंदर आग थी जलाने के सिवाय और क्या कर सकती है ? उस पर में पतंगे की तरह उस आग पर खुद को झॉंकना चाहता था। यही इच्छा होती कि उन पैरों पर सिर रखकर जान दे दें। यह सिर्फ उपासक की भक्ति थी, काम और वासनाओं से शून्य। कभी-कभी वह शाम के समय अपने मोटर-बोट पर बैठकर सागर की सैर करती तो ऐसा जान पड़ता, मानो चंद्रमा आकाश-लालिमा में तेर रहा है। मुझे इस नजारे में सुख मिलता था।

मुझे अब अपने काम की आदत हो गई थी मेरे पास हर दिन खतों का पोथा पहुँच जाता। मालूम नहीं, किस डाक से आता था। लिफाफ्फो पर कोई मोहर न होती थी। मुझे इन सवाल करने वालों में अक्सर वह लोग मिलते थे, जिनका मेरी नजरों में बड़ा आदर था; कितने ही ऐसे महात्मा थे, जिनमें मुझे श्रद्धा थी। बड़े-बड़े विद्वान् लेखक और टीचर, बड़े-बड़े अमीर, यहाँ तक कि कितने ही धर्म के आचार्य, रोज अपनी आप बीती सुनाते थे। उनकी हालत बहुत दयनीय थी। वह सबके-सब मुझे रंगे हुए सियार दिखाई देते थे। जिन लेखकों को मैं अपनी भाषा स्तम्भ समझता था, उनसे नफरत होने लगी। वह सिर्फ बदमाश थे, जिनकी सारी प्रसिद्धि चोरी, अनुवाद और कांट छांट के सहारे थी। जिन धर्म के आचार्यों को मैं महान समझता वह स्वार्थ, लालच और घोर नीचता के दलदल में फँसे हुए दिखाई देते थे। मुझे धीरे-धीरे यह अनुभव हो रहा था कि दुनिया के जन्म से अब तक, था। इतने लाखों शताब्दियाँ बीत जाने पर भी इंसान वैसा ही का, वैसा ही वासनाओं का गुलाम बना हुआ है। बल्कि उस समय के लोग सरल प्रकृत्ति के चालबाज, इतने चालाक न होते । ते थे।

कारण

एक दिन शाम के समय उस सुंदरी ने मुझे बुलाया। में अपने घमंड में यह समझता था कि मेरे बाँकपन का कुछ-न-कुछ असर उस पर भी होता है। अपना बढ़िया सूट पहना, बाल सँवारे और बेपरवाह भाव से जाकर बैठ गया। अगर वह मुझे अपना शिकार बनाकर खेलती थी, तो में भी शिकार बनकर उसे में पहुंचा, उस सुंदरी ने मुस्कराकर मेरा स्वागत किया, पर चहरा कुछ बुझा हुआ था। मैंने बेचैन होकर पूछा- “सरकार का मन तो अच्छा है ?

खिलाना चाहता था।

जैसे ही मैं ।

उसने निराश भाव से जवाब दिया- “जी हां, एक महीने से एक मुश्किल रोग में फँस गई हूं। अब तक किसी तरह अपने को सँभाल सकी हूं, पर अब रोग se सहन नहीं होता। उसकी दवा बेदिल इंसान के पास है। वह मुझे हर दिन तड़पते देखता है, पर उसका पत्थर दिल जरा भी नहीं पिघलता।” मैं इशारा समझ गया। सारे शरीर में एक बिजली-सी दौड़ गई। साँस जोर से चलने लगी। एक पागलपन का अनुभव होने लगा। निडर होकर बोला- “हो सकता जिसे आपने बेदिल समझ रखा हो वह भी आपको ऐसा ही समझता हो और डर से मुँह खोलने का हिम्मत न कर सकता हो।” सुंदरी ने कहा- तो कोई ऐसा उपाय बताइए, जिससे दोनों ओर की आग बुझे। प्रियतम! अब मैं अपने दिल की दहकती हुई जुदाई की आग को नहीं छिपा सकती। मेरा । मेरा सब कुछ आपको दिया। मेरे पास वह खजाने हैं, जो कभी ख़ाली न होंगे, मेरे पास वह साधन हैं, जो आपको बहुत मशहूर कर देंगे। मैं पूरी आपके पैरों पर झुका सकती दुनिया की कना

-बड़े राजा भी मेरी आदेश को नहीं टाल

सुंदरी के चेहरे पर जलती हुई आग की सी चमक थी। वह दोनों हाथ फैलाए काम वासना से भरी हुई मेरी ओर बढ़ीं। उसकी आँखों से आग की चिनगारियाँ निकल रही थी। लेकिन जिस तरह आग से पारा दूर भागता है उसी तरह में भी उसके सामने से एक क़दम पीछे हट गया। उसकी प्यार के से मैं डर गया, जैसे कोई गरीब इंसान किसी के हाथों से सोने की ईंट लेते हुए डर जाए। मेरा मन एक अंजान डर से काँप उठा। सुंदरी ने मेरी उतावलेपन

और आग भरी आँखों से देखा, मानो किसी शेरनी के मुँह से उसका शिकार छिन जाए और बोली- ” यह कायरता क्यों ?”

मैं- ” मैं आपका छोटा सा नौकर हूँ, इस महान् आदर आप मुझसे नफरत करते हैं?”

रमणी-

लायक नहीं।”

‘यह आपकी मेरे साथ नाइंसाफी है। मैं इस लायक भी तो नहीं कि आपके तलुओं को आँखों से लगाऊँ। आप दीपक हैं, में पतंगा हूँ, मेरे लिए इतना सुंदरी उदासी भरे गुस्से के साथ बैठ गई और बोली- “असल आप बेदिल हैं, में ऐसा न समझती थी। आपमें अभी तक अपनी शिक्षा के बुरे संस्कार लिपटे ही बहुत है।

हुए हैं, किताबों और सदाचार की बेड़ी आपके पैरों से नहीं निकलीं।” जल्दी ही अपने कमरे में चला आया और मन के शांत होने पर जब मैं इस घटना के बारे में सोचने लगा, तो मुझे ऐसा मालूम हुआ कि आग में गिरते गिरते बचा। कोई छुपी हुई ताकत सहायक हो गई। यह छुपी हुई ताकत क्या थी? मैं जिस कमरे में ठहरा हुआ था, उसके सामने झील के दूसरी तरफ छोटा-सा झोपड़ा था। उसमें एक बूढ़े आदमी रहा करते थे। उनकी कमर तो झुक गई र चेहरे में तेज था। वह कभी-कभी इस महल में आया करते थे। सुंदरी न जाने क्यों उनसे नफरत करती थी, मन में उनसे डरती थी। उन्हें देखते ही थी, पर घबरा जाती मानो किसी परेशानी में पड़ी हुई है। उसका चहरा फीका पड़ जाता, जाकर अपने किसी छिपी हुई जगह में मुँह छिपा लेती। मुझे उसकी यह दशा देखकर आश्चर्य होता था। कई बार उसने मुझसे भी उनकी बात की थी, पर बड़े अपमान के भाद से। वह मुझे उनसे दूर-दूर रहने का उपदेश दिया करती थी, और अगर कभी मुझे उनसे बातें करते देख लेती, तो उसके माथे पर बल पड़ जाते थे कई दिनों तक मुझसे खुलकर न बोलती थी। उस रात को मुझे देर तक नींद नहीं आयी। उधेड़बुन में पड़ा हुआ था। कभी जी चाहता, आओ आँख बंद करके प्यार-रस का पान करें, दुनिया के पदार्थों का सुख भोगें, जो कुछ होगा, देखा जाएगा।

जीवन में ऐसे मौके कहाँ मिलते हैं ? फिर खुद ही मन खिंच जाता था, नफरत पैदा हो जाती थी।

रात के दस बजे होंगे कि अचानक मेरे कमरे का दरवाजे खुद खुल गया और वही तेजस्वी इंसान अंदर आये। हालांकि में अपनी मालकिन के डर से उनसे बहुत कम मिलता था, पर उनके चहरे पर ऐसी शांति थी और उनके भाव ऐसे पवित्र तथा कोमल थे कि दिल में उनके पास जाने की इच्छा होती थी।

मैंने उनका स्वागत किया और लाकर एक कुरसी पर बैठा दिया। उन्होंने मेरी ओर दयापूर्ण भाव से देखकर कहा- मेरे आने से तुम्हें तकलीफ तो नहीं हुई?” जवाब दिया- “आप जैसे महात्माओं से मिलना मेरे सौभाग्य की बात है।”

मैंने सर सुधाकर २ महात्माजी निश्चिंत होकर बोले- “अच्छा, तो सुनों और चौकन्ना हो जाओ, मैं तुम्हें यह चेतावनी देने के लिए आया हूँ। तुम्हारे जपर एक बड़ी परेशानी आने वाली है। तुम्हारे लिए इस समय इसके सिवाय और कोई उपाय नहीं है कि यहाँ से चले जाओ। अगर मेरी बात न मानोगे तो जीवन भर तकलीफ भोगोगे और इस मयाजाल से कभी आजाद न हो सकोगे। मेरा झोपड़ा तुम्हारे समाने था, मैं भी कभी-कभी यहाँ आया करता था, पर तुमने मुझसे मिलने की जरूरत न समझी। अगर पहले ही दिन तुम मुझसे मिलते, तो हजारों इंसानों को बर्बाद करने के अपराध से बच जाते। बेशक तुम्हारे कर्मों का फल है, जिसने आज तुम्हारी रक्षा की। अगर यह पिशाचिनी एक बार तुमसे गले लग जाती, तो फिर तुम कहीं के नहीं रहते। तुम उसी दम उसके अजायबखाने में भेज दिये जाते। वह जिसे पसंद करती है, उसकी यही हालत बनाती है। यही उसका प्यार है। चलो, इस अजायब घर की सैर करो, तब तुम समझोगे कि आज किस आफत से बचे।”

यह कहकर महात्माजी ने दीवार में एक बटन दबाया। तुरंत एक दरवाज़ा निकल आया। यह नीचे उतरने की सीढ़ी थी। महात्मा उसमें घुसे और मुझे भी बुलाया। घोर अंधकार में कई क़दम उतरने के बाद एक बड़ा कमरा नजर आया। उसमें एक दीपक टिमटिमा रहा था। वहाँ मैंने जो घोर, भयानक और दिल दहलाने वाले नजारे देखे, उसका याद करके आज भी रोंगटे खड़े हो जाते हैं। इटली के अमर कवि ‘डैण्टी’ ने नरक का जो नजारे दिखाया है, उससे कहीं डरावह, रोमांचकारी तथा नारकीय नजारे मेरी आँखों के सामने मौजूद था; सैकड़ों अजीब शरीर वाले जीव तरह तरह की अशुद्धियों में लिपटे हुए, भूमि पर पड़े कराह रहे थे। उनके शरीर इंसानों के से थे, लेकिन चेहरे बदल गए थे। कोई कुत्ते से मिलता था, कोई गीदड़ से, कोई बनबिलाव से, कोई साँप से।

एक जगह पर एक मोटा, इंसान एक कमजोर इंसान के गले में मुँह लगाए उसका खून चूस रहा था एक ओर दो गिद्ध की सूरत वाले इंसान एक सड़ी हुई लाश पर बैठे उसका मांस नोंच रहे थे। एक जगह एक अजगर की सूरत का इंसान एक बच्चे को निगलना चाहता था, पर बच्चा उसके गले में लटका हुआ था। दोनों ही जमीन पर पड़े छटपटा रहे थे। एक जगह मैंने बहुत डरावनी घटना देखी। दो नागिन की सूरत वाली औरतेध एक भेड़िये की सूरत वाले इंसान के गले में लिपटी हुई उसे काट रही थीं। वह इंसान बहुत तकलीफ़ से चिल्ला रहा था। मुझसे अब और न देखा गया। तुरंत वहां से भागा और गिरता-पड़ता अपने कमरे में आकर दम लिया। महात्माजी भी मेरे साथ चले आये। जब मेरा मन शांत हुआ तो उन्होंने कहा- “तुम इतनी जल्दी घबरा गए, अभी तो इस रहस्य का एक भाग भी नहीं देखा।

यह तुम्हारी मालकिन के घूमने की जगह है और यही उसके पालतू जीव हैं। इन जीवों को ऐसी हरकतें करते देखने में उसका खास मनोरंजन होता है। यह सभी इंसान किसी समय तुम्हारे ही समान प्यार के पात्र थे, पर उनकी यह बुरी हालत हो रही है। अब तुम्हें मैं यही सलाह देता हूँ कि इसी दम यहाँ से भागों, नहीं तो सुंदरी के दू दूसरे वार से । बिल्कुल न बचोगे।” यह कहकर महात्मा गायब हो गए। मैंने भी अपनी गठरी बाँधी और आधी रात के सन्नाटे में चोरों की तरह कमरे से बाहर निकला। ठंडी सुखद हवा चल रही थी, सामने के सागर में तारे छिटक रहे थे, मेहंदी की सुगंध उड़ रही थी। मैं चलने को तो चला, पर दुनिया के सुख-भोग का ऐसा अच्छा मौका छोड़ते हुए दुख होता था। इतना देखने और महात्मा के उपदेश सुनने पर भी मन उस सुंदरी की ओर खिंचता था। में कई बार चला, कई बार लौटा, पर अंत में आत्मा ने इंद्रियों पर विजय पायी। मैंने सीधा मार्ग छोड़ दिया और झील किनारे-किनारे गिरता-पड़ा, कीचड़ में फैसता हुआ सड़क तक आ पहुँचा। यहाँ आकर मुझे एक अजीब खुशी हुई, मानो कोई चिड़िया बाज हालांकि मैं एक महीने के बाद लौटा था, पर अब जो देखा, तो अपनी चारपाई पर पड़ा हुआ था। कमरे में जरा भी धूल न धी। मैंने लोगों से इस घटना की के चंगुल से छूट गई हो। बात की, तो लोग खूब हँसे और दोस्त तो अभी तक मुझे प्राइवेट सेक्रेटरी कहकर चिदाया करते हैं। सभी कहते हैं कि में एक मिनट के लिए भी कमरे बाहर नहीं निकला, महीने-भर गायब रहने की तो बात ही क्या? इसलिए अब मुझे भी मजबूर होकर यही कहना पड़ता है कि शायद मैंने कोई सपना देखा कुछ-भी हो, भगवान को लाख लाख धन्यवाद देता हूं कि मैं उस पापकुंड से बचकर निकल आया। वह चाहे सपना ही हो, पर मैं उसे अपने जीवन का एक असल अनुभव समझता हूँ, क्योंकि उसने हमेशा के लिए मेरी आँखें खोल दी।

सीख – यह कहानी लिखने के पीछे मुंशी जी का सिर्फ यह मकसद था कि वो लोगों को बता सकें कि लालच, लोभ छल कपट और अधर्म देखने में जितने भी सुंदर और आकर्षक लगे उनका आखिर में परिणाम भयानक ही होता है। वह सुंदरी, जो उस आदमी से सब पाप करवा रही थी, वह और कोई नहीं हमारे अवगुण का एक मानवीय रूप थी। वह बूढ़ा आदमी हमारा विवेक, और अजायबघर में बंद जीव, अधर्म और पाप करने के बाद हमारी आत्मा का जो परिणाम होता है उसका जीवित रुप थे।

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