लेखक के बारे में
इमिंड फेटल ली (Inand Hotel Leo) एक जानी मानी डिजाइनर हैं, जिनका ‘द एस्थेटिक्स ऑफ जॉय (The Aesthetics of loy) नाम का डिजाईनर ब्लॉग पाठकों के बीच काफी लोकप्रिय है. उन्होंने कई बड़ी मैगनिनों जैसे न्यू यॉर्क टाइम्स (New York Times), साइकोलांजी टुडे (Psychology Today) और यायई (Wired) के लिए आर्टिकल लिस्थे है. 2018 में द्विजाईनिंग के बारे में सबसे ज्यादा पसंद किया जाने वाला टेड टॉक शो की मार्गदर्शक भी वही थी.
रंगों के इस्तेमाल से आप किसी भी कोने को सज़ा सकते हैं, बशर्ते आप कुछ बुनियादी नियम सीख लें.
एक ऐसी दुनिया कि कल्पना करन कितना अजीब होगा, जहाँ सभी मकान एक ही मूल ढांचे में ढले हों, केवल कुछ मुख्य हमारतें को छोड़ कर बाकी सभी लगभग एक ही जैसे
रंग की हों जहाँ हरियाली के लिए लगे छायादार वृक्ष भी एक सिरे से एक जैसे हों यहाँ तक कि सड़क किनारे की झाड़ियाँ भी बिलकुल एक ही जैसे अकार में कटी हों यही नहीं घरों में भी कोई खास सजावट नहीं केवल सीधी साधी काम में आने वाली चीजों हों ऐसी दुनिया की इमेजिनेशन भी कितनी बोरिंग सी लग रही है लेकिन आजकल यही इमेजिनेशन डिजाइनिंग के क्षेत्र का मूल आधार बनती जा रही है. आजकल लोग रंगों और आकारों को लेकर कुछ नया करने से डरने लगे है.
ये किताब आपको एक ऐसी रोमाचक दुनिया के सफर पर लेकर जाएगी जहाँ आप अपने आस पास कि चीज़ों, रगों और आकारों कि मदद से अपने जीवन में बड़े बदलाव ला सकते हैं. इससे आप केवल खुद को ही नहीं बल्कि दूसरों को भी कई फायेदे पहुंवा सकते हैं.
अल्बानिया के मंदी और जुर्म से जूझ रहे शहर तीराना में, साल 2000 की पतझड़ में कुछ ऐसा हुआ जिसने वहाँ के लोगों की सोच और जीने का तरीका ही बदल दिया. एक दिन अचानक कुछ लोग साधारण सी दिखने वाली एक ईमारत को चटकीले ऑरेंज कलर में पेंट करने लगे, देखते हीं देखते उस कॉलोनी के कई लोगों ने अपने घरों में ऑरेंज कलर करवा दिया.
बाद में पता चला ये सब वहाँ के मेयर के कहने पर शुरू किया गया था, इसके जरिये वो अपनी जनता तक ये सन्देश पहुंचाना चाहते थे कि उन्हें अपना और अपने आस पास के लोगों का ख्याल रखना चाहिए अपने शहर में इतना बड़ा बदलाव लाने के लिए उन्हें मेयर ऑफ़ द हयर’ का अवार्ड भी मिला ये घटना इस बात का संकेत है कि कैसे रंगों के फेर बदल से हम बड़े बदलाव ला सकते हैं, खासतौर पर चात करें तो रगों का सीधा संबंध खुशी से है इस खुशी को डिफाइन करना मुश्किल है इसे तो केवल वही लोग समझ सकते हैं जिन्होंने इसे महसूस किया है.
इसी खुशी के एहसास से जुड़ी घटला ऑथर के जान पहचान के एक कपल के साथ घटी अपने बोरिंग से घर में रहकर वो काफी उद्या से गए थे इसलिए उन्होंने, अपने लिविंग रुम का हुलिया बदलने की जिम्मेदारी न्यू यॉर्क की एक आर्किटेक्चर फर्म स्टेमबर्ग अफरीएट एड एसोसिएट्स (Stamberg Aferiat and Associates) को दी स्टेमबर्ग के लोगों ने ये निर्णय लिया के वो इसे थोडे भड़कीले रगों के प्रयोग से सजायेंगे इसलिए उन्होंने दरवाजों को पीला रग दिया. इन रंगों नें कमरे को रोशनी से भर दिया और कमरे का वातावरण ही बदल गया.
रंगों और रोशनी का गहरा रिश्ता है. गहरे रंगों के ज्यादा प्रयोग से कमरा थोडा बोरिंग सा लगता है, वहीं दूसरी और हल्के रंग रौशनी को उभार कर कमरे को रोशन और हवादार दिखाते हैं,
आप भी अपने घर में रगों से खेल सकते है बस इन बेसिक रूल्स को फॉलो करें –
सबसे पहले कमरे को पूरा खाली कर साफ़ कर ले फिर दीवारों पर हलके रंग जैसे सफ़ेद या हल्का पीला इनका प्रयोग करें फिर थोड़े भड़कीले रंगों के फरनींचर या अन्य वस्तुओं से कोनों को सजाएं या फिर आप दीवारों पर भी हलके रगों के ऊपर भड़कीले रगों कि पत्तियां बना सकते हैं, ऐसा करने से आपके कमरे में सकारात्मक उर्जा का प्रवाह होगा और आप आनंदित महसूस करेंगे.
मिनिमलिज्म (Minimalism) हमारी नैतिक जड़ों में बस गया है, जबकि असली आनंद तो मैक्सीमलिज्म (Maximalism) में है.
आर्किटेक्चर हो या डिजाइनिंग हर जगह आजकल मिनिमलिस्म (Minimalism) का प्रचलन जोरों पर है. आजकल लोग यह विश्वास करने लगे हैं कि कम ही ज्यादा है। आपको अक्सर ही खाली और व्यवस्थित कोनों वाले घर मिल जायेंगे जिनकी केवल एक ही विशेषता होगी वो है उनका सरल, एकरूप आकार,
असल में मिनिमलिजा (Minimalism) थोड़ा घुटन भरा हो सकता है क्यूंकि इसमें शायद ही किसी तरह की क्रिएटिविटी की कोई जगह है, अगर हम मिनिमलिज्म (Minimalism) के मूल रूप का पालन करने लगे तो शायद हम खुद को अपने बिस्तर फे साथ एक खाली ग्रेनाइट के बक्से नुमा घर में पाएंगे जहाँ बस रौशनी के लिए थोड़ी सी जगह हो. मिनिमलिज्म के सिद्धांत को मानने वाले लोग इसे Sprituality से जोड़ते हैं. पर ये Sprituality केवल दिखाने के लिए ही है क्यूंकि बिना सुशी के Sprituality हासिल नहीं हो सकती असली आनंद तो आस पास के वातावरण से आता है,
अगर आप मिनिमलिस्म के इतिहास को देखेंगे तो आप पाएंगे की इसकी जड़ों में Sprituality ज्यादा जातीय भेदभाव का असर है, मिनिमलिज्म का जन्म बीसवीं शताब्दी की शुरुआत में हुआ था. वास्तुकार एडॉल्फ लूमोस (Adolf Loos)द्वारा इसकी शुरुयात की गयी.
वो सजावटी और वस्तुओं से भरी-भरी जगहों को निंदा कि दृष्टि से देखते थे ऐसा इसलिए क्योंकि उन दिनों पर्शिया (Persia) और पूर्वी यूरोपीय देशों में ऐसी सजावटों का प्रचलन था. और चूंकि उन देशों को वो अपना दुश्मन मानते थे इसलिए वहाँ के रिवाजों से भी उन्हें परहेज़ था.
इसलिए उन्होंने घोषणा की, जाए. कला और डिजाइन दोनों क्षेत्रों में मिनिमलिजा को सादगी का पर्याय माना जाए और के अनुसार रंगों और आकारों का सिलेक्शन पर्यावरण के प्रति अपने नज़रिए और कचरे के प्रति अरुचि के कारण, मिनिमलिज्म आजकल फिर से चर्चाओं में है. लेकिन इन सबके वाबजूद मिनिमलिज्म वो खुशी नहीं देता जो मेक्सीमलिज्म में है.
आप मैक्सीगलिज्न को जीवन के मूल सिद्धांतो से भी समझ सकते हैं, जैसे गोर के खूबसूरत परख जो शुरु में शायद आपको थोड़े ज्यादा भड़कीले और गेरजरूरी लगे. परन्तु इसके बिना बो मोरनी को संभोग का संकेत नहीं दे पायेगा. इसलिए हम ये मान सकते हैं कि मैक्सीमलिज्म का मूल सिद्धांत ‘संकेत है. अपके अन्दर कि क्रिएटिविटी और उज्जा का संकेत, नए और खुले विचारों का संकेत,
दोरोथी ट्रेपर (Dorothy Draper) मशहूर अमेरिकन इंटीरियर डिजाइनर का काम भी इस बात का संकेत है. जब उन्हें वेस्ट वेजिंनिया के एक होटल को री डिजाईन करने का मौका मिला तो उन्होंने उसकी लॉबी को हरे और हल्के नीले रंगों कि पट्टिओं से सजा दिया और उसके साथ बीचों बीच टगे झूमर नें तो उस लॉबी में मानी जान ही भर दी जब ली (Lee) उस लॉबी से गुजरी तो उन्हें ऐसे आनंद का एहसास हुआ जो कि एकसार से लगने वाले सीमेंट के डब्बे जैसे होटलों में कभी नहीं मिला.
आप अपने गार्डन में आज़ादी का मज़ा ले सकते हैं बशर्ते आप उसको थोड़ा खुला-खुला बनाएँ, याद है बचपन के वो दिन जब आपका मन करता था कि सामान बांध कर कहीं दूर जंगलों में निकल जायें, अपने मन को टटोलेंगे तो आज भी हमारा मन कुछ ऐसा ही करता है, क्यूकि प्रकृति के बीच रहकर हमें आजादी का एहसास होता है. लेखिका कहती है कि ऐसा आजादी भरा वातावरण आप अपने घर में भी बना सकते हैं, जरुरत है तो बस अपने गार्डन के डिजाईन को थोड़ा समय देने जी, आईये जानते हैं कि अपने गार्डन को आप कैसे सजा सकते हैं.
इच गाईन डिज़ाइनर पीट ओडोल्फ (Piet Oudoif) द्वारा डिजाईन किये हुम्मेलो (Hummelo) के गाईन्स से लेखिका काफी प्रभावीत हुई. ये गाईन जर्मनी की सीमा पर बनाया गया है. इस गाईन में स्तिथ ब्लू सैल्विया (blue salva) और होली होक (holy hock) के फूल और लंबी लंबी झाड़ियाँ लेखिका को प्रकृति के करीब होने का एहसास करवा रही थी. रास्ते की क्यारियों में छोटे छोटे पत्तों और फूलों के बीच मंडराती तितलियों को देख लेखिका इतनी मोहित हुयीं कि उन्होंने एक दिन की छुट्टी लेकर वहाँ पिकनिक का लुत्फ उठाया.
पीट ओडोल्फ (Piet Oudolf) नें गार्डन डिजाइनिंग की ट्रेनिग अमेरिकन स्टाइल ऑफ़ गार्डनिंग में ली, पर धीरे धीरे उन्हें ये स्टाइल बोरियत से भरा लगने लगा क्यूकि इसमें हर फुल, पेड़ यहाँ तक की रंगों और झाड़ियों को लगाने के लिए भी बहुत से कड़े नियम थे. इसलिए उनकी रुची जेटीसोरनिंग ट्रेडिशन (Jettisoning tradition ) में जगी क्यूकि वहाँ उन्हें अपनी कल्पनों के साथ प्रयोग करने की आजादी मिलती थी.
माप भी अपने गार्डन में कुछ नए प्रयोग करके उसे प्रकृति के और करीब ला सकते हैं. जैसे गार्डन में झाड़ियों की जगह घास लगाएं और उनके बीचों-बीच फूल. हवा के झोके से घास का हिलना ऐसा लगेगा मानों प्रकृति के द्वारा ही रचा गया कोई दृश्य हो इसलिए लेखिका कहती है की अच्छा गाईन बनाने की ट्रिक ये है कि खुद को प्रकृति की नज़र से देखें उसके और कुछ ऐसा बनाएं जहाँ खुलेपन और आजादी का एहसास हो. अपने ऊपर किसी खास गार्डनिंग स्टाइल की पाबन्दियाँ त लगायें.
फेंग शुई की मदद से अपने घर को एक खुशनुमा माहौल दें जिससे वहाँ शांति और आनंद का सर्कुलेशन हो.
फेंग शुई आजकल नयी पीढ़ी के बीच काफी फेमस होती जा रही है. पर हर किसी ने इसका अपना ही स्वरुप बना लिया, जिससे धीरे-धीरे ये संदेह के घेरे में आती जा रही हैं. फेन शुई के मूल स्वरूप को देखें तो ये एक चाइनीज कला जिसमें ये सिखाया जाता है कि केसे हम घर के कोर्नो को उस हिसाब से सजा सकते हैं जिससे कि वहीं किये जाने वाले कामों में आसानी हो जैसे कि कसी बेडरूम की सजावट ऐसी करना कि वहाँ अच्छी नींद आ सके. फेंग शुई एक बहुत ही सरल तरीका है घर की चीज़ों को जमाने का. आपको बस इस बात का ध्यान रखना है कि घर के किस कोने में आपको किन चीजें को जरुरत ज्यादा पड़ती है और आप उसे कहाँ रखें कि आप उस तक आसानी से पहुँच सकें फेन शुई में पूजा के कर्णों को ‘यनी का नाम दिया गया है, और इसके हिसाब से धरती पर मौजूद हर एक चीज़ में ये उर्जा किसी न किसी रुप में होती है, अगर इस उर्जा का प्रवाह आपके घर में ठीक ठग से नहीं हो पा रहा है तो आपके घर में नकारात्मकता बढ़ेगी आप सोच रहे होंगे कि इस उर्जा के बहाव को कैसे नापा जा सकता है? इसका जवाब बहुत आसान है, आप बस अपने प्यारे पेट को उस कमरे में छोड़ कर देखें अगर वो आसानी से उस कमरे के हर कोने में जा सकता है तो समझें कि सब सही है. अब जरा सोचें कि अगर आपके कमरे में बीचों बीच कोई फर्नीवर होता या सामान का ढेर यहाँ-बहाँ पड़ा होता तो उसके लिए कमरे में घूमना कितना मुश्किल होता, ठीक इसी तरह कि आज़ादी उर्जा के कणों को भी चाहिए आपके घर का सबसे जरूरी हिस्सा होता है आपका एंट्रेस अगर आपने दरवाज़े के साथ में इतना सामान रख दिया कि वो मुश्किल से खुल पा रहा हो तो आते-जाते वो आपको एक अजीब सी नकारात्मक सोच से भर देगा जिसका असर आपके जीवन में भी हो सकता है,
अगली थात लेखिका ने कपल्स के बारे में कही है, उनके हिसाब से नवविवाहित जोड़े को अपने बेडरुम का विशेष ध्यान रखना चाहिर फेंग शुई के अनुसार बेडरुम का बेड ऐसी जगह पर होना चाहिए, जहां से दोनों के लिए उस तक पहुँचना आसान हो, यानी वो दीवार से सटा हुआ नहीं होना चाहिए, ताकि आपको बराबरी का एहसास हो सके. ऐसी ही छोटी छोटी बातों से आप अपने घर को सकारात्मक उ्जा से भर सकते हैं, जिसका असर आपके काम और आपके रिश्तों पर भी पड़ता है.
डिजाईनों के साथ खेल कर आप अपनी कल्पनाओं को नयी उड़ान देने के साथ साथ आनंदित भी महसूस कर सकते है. जीवन में कभी-कभी ऐसे पल आते हैं जब हम अपनी सारी परेशानियों को भूल कर जीवन के असली आनंद को महसूस करते हैं, लेखिका के लिए ऐसा पल तब आया जब वो अपनी छुट्टियाँ बिताने गेलापागोस (Gallapagos) आइलैंड गयौ थी. वहाँ उन्होंने सी-लायन (5ea Lion) के साथ खेलने के दौरान जो महसूस किया वो उनके लिए एक खुशी से भर देने वाला अनुभव था. सी-लायन का पानी के बहाव के साथ उनके पास आना और फिर अचानक उनसे दूर चले जान इस एहसास नें उन्हें गुदगुदा दिया.
कुछ ऐसा ही हम डिजाईनिंग के साथ भी कर सकते हैं. एक सार से जिओमेट्रिकल (Geometrical) आकारों से कुछ अलग कर हम भी डिजाईनों के साथ खेल सकते हैं. यकीनन ये एक आनंदमयी एड्रेस होगा. मशहूर इटालियन डिज़ाइनर गेटानो पेस्के (Gaetano Pesce) को ही ले लें जिनके द्वारा बनाये गए फर्नीचरों में बेपरवाही की झलक मिलती थी, मानों वो एक आजाद सी सोच को दर्शा रही हो. उनके द्वारा बनाये गए फर्नीचरों में हमेशा जीवन से भरे खिले-खिले रंगों का प्रयोग होता था, उनका एक सोफे तो न्यू यॉर्क स्काइलाइन का छाया-चित्र जैसा लगता था जिसका हेडरेस्ट किसी बड़े से चाँद की तरह गोल था.
78 साल की उम्र में भी पेस्के का रुकने का कोई इरादा नहीं था, वो इस उम्र में भी न्यू यॉर्क की सोहो (SoHo) नाम की कपनी में काम करते रहे. उन्हें ये ट्रायगल, स्क्वायर जैसे आकार बहुत बोरिंग और बीते जमाने जैसे लगते थे. उनका मानना था कि अपनी डिजाईन के माध्यम से कुछ नया और हैरतगेज कर के लोगों के जीवन में मुस्कान लायी जा सकती है उनके इतने लम्बे करियर का राज भी यही था कि यो अपने डिजाईन के माध्यम से हमेशा लोगों का जीवन खुशनुमा और आरामदायक बनाने की कोशिश करते थे
डिजाईनो से खलने का दूसरा फायदा ये भी है कि ये डिज़ाइनर को और अधिक क्रिएटिव बनाती है, पेस्के की प्रारंभिक डिजाईनों में से एक ‘द अप 5 चेयर भी कुछ ऐसे ही सोच का नतीजा है, ये चेयर इतनी आरामदायक है कि इसपर बैठ कर भापको किसी राजशाही ठाट का अनुभव होगा. इसके गहरे चमकीले रंग की धारिया इसे और भी खूबसूरत रूप देती है, लेकिन असल जादू तो इसके अन्दर छुपा है क्यूकि ये चेयर किसी भी ठोस ढांचे से नहीं बना इसके अन्दर तो बस पोलीयुरेथेन फोम (polyurethane foam) है. अपनी इस बनावट के कारण से वेयर आसानी से अपने असल साइज़ से दस गुना छोटी हो सकती है, जिससे इसे यहाँ वहाँ ले जाना बहुत ही आसान हो जाता है, डिज़ाईनों के साथ नए प्रोयोग करने का जज़बा और अपनी सोच में नयापन रखे बिना पेस्के इतनी बेहतरीन चीज़ नहीं बना पाते.
चुलबुलेपन और विचित्रता में जो मज़ा है वो पारंपरिकता में नहीं, और डिजाईनिंग भी हमें यही बातें याद दिलाती है.
कल्पना कीजिये आप किसी ऑफिस प्रेजेंटेशन को देने के लिए खड़े है, फॉर्मल पहने गंभीर सी शक्ल बनाये लोग आपके ओर बड़े ध्यान से देख कर कमरे के माहौल को और अधिक तनावपूर्ण बना रहे हैं. तभी अचानक एक प्रमुख अधिकारी आता है, जिसके इन्द्रधनुषीय रंगों के सॉक्स उसके जूतों के बीच से झाक रहे हों. लोग उसे देख कर अपनी हँसी रोक नहीं पाते. आप महसूस करेंगे कि कमरे का वातावरण अचानक बदल गया लोगों के वेहरे का तनाव भी बुलबूलेपन की एक झलक से गायब हो गया. ये एजाम्पल हमें सिखाता है कि खुद को परंपराओं की बंदिशों से आजाद करें और दुनिया को अपने चुलबुलेपन से गुस्कराहट के कुछ पल प्रदान करें.
खास तौर पर टीनऐजर्स और नौजवान हमेशा खुद को फैशन ट्रेंड में फिट करने की जद्दोजहद में लगे रहते हैं. हमेशा ट्रेंड को फॉलो करने से ज्यादा मजेदार खुद ट्रेंड-सेटर बनना है. जरूरी नहीं लोग हमेशा हमारे फैशन सेंस की तारीफ करें, कभी कभी उनको अचंभित करना भी जरुरी है, अगर हम पैशन टेंड के हिसाब से सही तरीके के कपड़े पहनते हैं, तो इसका मतलब समझा जाता है कि हम एक सही सोसाइटी से ताल्लुक रखते है साथ ही साथ हमारी सोच और नैतिकता भी एकदम सही है, और ऐसी ही धारणा वुलबुलेपन और विवित्रता को दबा देती है और धीरे धीरे चीजों का आनंद और नयापन भी खत्म हो जाता है.
अगर आपको लगता है कि कुछ अलग होने में खतरा है तो फ्लेमिंगो को ही ले लीजिये, उसके गुलाबी से विचित्र पैर उसे बाकी सभी पक्षियों से अलग करते हैं. परन्तु फिर भी फ्लेमिंगो की खूबसूरती को लोग पसंद करते हैं, यहाँ तक कि शो-पीस के रुप में भी फ्लेमिंगो ही सबसे ज्यादा लोकप्रिय है. इसलिए हमें भी अपनी विचित्रता और स्पेशलिटी का जशन मनाना चाहिए फिर चाहे इसका मतलब किसी पाइनएप्पल आकार की टोपी पहनना या लेपई प्रिंट कपड़े पहनना ही क्यूँ न हो,
चुलबुलेपन का आईडिया इतना मजेदार है कि फैशन और डिजाईन इंडस्ट्री में भी इसे गभीरता से लिया है. चुलबुलेपन और विचित्रता को अगर आप अपने चरम पर देखना चाहते है तो इव डिजाईन इनका जीता जागता साबुत है. डिजाईन इंडस्ट्री में विचित्रता का जन्म नीदरलैंड में हुआ और 19 वी शताब्दी में इसने दुनिया का ध्यान अपनी और खिंचा इन डिजाईनों की खासियत ये थी कि ये आम तौर पर मिलने वाले डिजाईन से अलग थी, जैसे छोटे से टेबल लेप को बड़ा और भव्य रूप दे देना वहीं दूसरी ओर बड़े से टेबल को किसी माचिस के डिब्बे जैसा छोटा बना देना, डेकोरेटिव आइटम्स को सेरेमिक की जगह सिलिकॉन बनाना ताकि जो भी देखे हैरत में पड़ जाए ये डिजाईन हमें इस बात का एहसास दिलाती हैं कि जरूरी नहीं कि चीजें हमेशा एक जैसी ही हों, चीज़ों में बदलाव हमारे जीवन में भी बदलाव लाता है. हमें अपने जीवन में भी नयेपन का स्वागत बाहें फैला कर करना चाहिए.
हैरत का एहसास जीवन को आनंद से भर देता है. और आर्किटेक्चर आपके जीवन में हैरत ला सकता है. न्यू मेक्सिको में हर साल अक्टूबर में अल्बूकुएरकुए बलून फिएस्टा (Albuquerque Balloon Fiesta) आयोजित की जाती है जिसमें हर आकार के रग-बिरंगे गुब्बारों को असमान में उड़ाया जाता असमान में बिरे इस रंगीन सीन को देख कोई भी इंसान हेरत से भर जाएगा. ऐसे पल जीवन को आनंद से भर देते हैं.
अमेरिकन मनोवैज्ञानिक डेचर केल्टनर और जोनाथन हैदत (Dacher Keltner and Jonathan Haidt) पिछले 15 साल से हसौ हैरत का अध्यन कर रहे हैं. उनका कहना है कि जीवन में आहा यानी हैरत की स्थितियों का होना बहुत जरुरी है ताकि हमें जीवन की भव्यता का एहसास होता रहे. जब भी कोई ऐसी घटना होती है जो इंसानी सोच के परे हो तब जीवन में इसी भव्यता और हैरत का एहसास होता है.
ऊँचे पहाड़ों में घिरी घाटियाँ और उसपर आसमान का अनंत घना साया, ऐसे कई दृश्य हमारे चारों तरफ हैं जिसे देख हम जीवन में विस्मय को महसूस कर सकते हैं. ये कहना गलत नहीं होगा कि ऐसे दृश्य जीवन के प्रति हमारे नज़रिए को बदलने में मददगार साबित होते हैं. इसका सबूत मनोबैज्ञानिक यांग बाय (Yang Bai) द्वारा 2017 में की गई स्टडी से मिलता है इस स्टडी में सन फ्रांसिस्को और योसेमिते नेशनल पार्क (Yosemite National Park) से भये लोगों को अपने पसंदीदा माहोल में अपना फोटो बनाने के लिए कहा गया. हैरानी कि बात ये है कि नेशनल पार्क से भाये लोगों ने खुद को प्रकृति की गोद में खेलते हुए जंगलों के साथ दर्शाया वहीं दूसरी ओर शहर से भाये लोगों ने खुद को बड़ी बहु मंजिला इमारतों में दर्शाया. यह अध्ययन इस बात का साबुत है कि जीवन के छोटे-बड़े सभी अनुभव हमारे विचारों को काफी हद तक प्रभावित करते हैं. इसी तरह आपके आस पास का आर्किटेक्चर भी आपको जिन्दादिली का एहसास करवा सकता है. इसलिए, पुराने ज़माने में मंदिरों को भव्य और आवकर्षक बनाया जाता था, ताकि वहाँ जाने वाला इंसान हैरत और आनंद से भर जाए.
ठीक इसी तरह ग्रैंड सेंट्रल स्टेशन का बड़ा, भव्य हाल और अमेरिकन म्यूजियम ऑफ नेचुरल हिस्ट्री किं छत से टंगी 94 फीट लम्बी ब्लू वेल (Blue Whale) ये सभी चीजें यहाँ आने वाले लोगों के लिए कभी न भूलने वाला अनुभव होता है. ऐसी भव्यता का प्रयोग अगर हम अपने घरों में करेंगे तो हमारा जीवन यकीनन दिव्यता के एहसास से हर जायेगा.
फेस्टिवल शुरु से जीवन में आनंद लाते आए हैं, और सही जगह का चुनाव फेस्टिवल में चार चाँद लगा देता है.
न्यूयॉर्क सिटी से हर सुबह एक टूर बस निकलती है, जो लोगों को इटली से लेकर टाइम्स स्क्वायर का सफ़र करवाती है. इस सफ़र के दौरान एक जगह है जहाँ हर व्यक्ति जाने के लिए सबसे ज्यादा उत्साहित रहता है और वो है सिटी हॉल, जहाँ लोग अपने जीवन के खास पलों का फेस्टिवल मानते हैं. फेस्टिवल हमारे जीवन का एक अभित्र अंग हे ये हमें जिंदा होने का एहसास कराते है. वैसे अगर सोचा जाए तो आखिर वो कौनसी ऐसी वजह है जो अनंत काल से इंसान फेस्टियल्स पर इतना पेसा और वक्त बर्बाद करते आए हैं क्यूँ लोग इक्कठा होकर वो सब करते हैं जो करता इतना जरूरी भी नहीं इस विषय में डच प्राइमेटोलोगिस्ट फ्रांस डी वाल (Frans de Waal) का कहना है कि फेस्टिवल की भावना मनुष्य के विकास का हिस्सा है इसलिए हमारे पूर्वज कहे जाने वाले चिंपांजीओं में भी ये देखने को मिलती है. 1975 से 1981 तक के अपने अध्ययन से उन्हें ये बात पता चली. उन्होंने चिड़ियाँ घर के चिंपांजीओं में पाया कि जब भी कोई खास तरह का खाना उन्हें दिया जाता था तो उसे खाने से पहले वो एक दुसरे को किस करके और गले लगा के अपनी खुशी जाहिर करते थे मानों वो कोई फेस्टिवल मना रहे हों, बात आती है कि हम आस्विर फेस्टिवल क्यूँ मनाते हैं?
मनोवैज्ञानिक एस. एल.गेबल (SL. Gable) ने 2004 से 2012 तक किये गए प्रयोगों से पाया की फेस्टिवल असल में इसान को सोशल और प्रैक्टिकल रेलाशनस के होने का एहसास दिलाता है. उनके अध्ययन में पाया गया की जो लोग साथ मिलकर फेस्टिवल मानते हैं वो इमोशनली जुड़े होते हैं और वक्त आने पर एक दुसरे के काम भी आते हैं, बिना रिश्तों और समाज के इंसान का होना लगभग नामुमकिन है क्यूंकि इंसान एक सोशल एनिमल है इसलिए सोसाइटी में आनंद और प्यार को निरंतर महसूस करने के लिए फेस्टिवल्स का होना बहुत जरूरी है,
फेस्टिवल्स में जितना महत्त्व भावनाओं का है उतना ही महत्व फेस्टिवल के लिए चुने गए स्थान का भी है. एज़ाम्पल के तौर पर जब आर्किटेक्ट देविड रॉकवेल (David Rockwell) को 2008 में लोस अन्जेल्स (Los Angeles) में होने जा रहे अकादमी अवार्ड के स्थल को री डिजाईन करने का मौका मिला तो उन्होंने बोरियत से भरे माहौल को मजेदार शाम में बदल दिया. ऐसा करने के लिए उन्होंने कुर्सियों कि व्यवस्था को सीधा न करते हुए गोलाकार रुप दिया ताकि दर्शकों को ज्यादा जगह मिले साथ ही साथ उन्होंने स्टेज को भी ऐसा ही आकर दिया जिसके कारण दर्शकों के लिए परफॉरमेंस देखना आसान हो गया. इसके पहले तो दर्शक भीड़ के कारण गुश्किल से कुछ देख पाते थे, उस वर्ष का अकादमी अवार्ड बहुत फेमस हुआ.
इस किताब के जरिये लेविका ने बताया है कि कैसे हमारे आस पास के वातावरण आया छोटा सा बदलाव हमारे जीवन में बड़े बदलावों का रास्ता खोल देता है. इसलिए अपनी सोच से सारे बंधनों को हटा के थोड़ा रगों, डिजाईनों और आकारों के साथ खेल कर देखें हम ये सब अब करना ही होगा अपने लिए, अपने आनंद के लिए और अपने रिश्तों में मधुरता लाने के लिए.