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रमजान के पूरे तीस रोजों के बाद ईद आ गई। कितना खूबसूरत और सुहाना एहसास था। पेड़ों पर अजीब सी हरियाली थी, खेतों में रौनक, आसमान पर दिल लुभाने वाली लालिमा छायी थी। आज का सूरज तो देखो, कितना प्यारा, कितना ठंडा है, जैसे दुनिया को ईद की मुबारक दे रहा हो। गाँव में कितनी हलचल है। ईदगाह जाने की तैयारियाँ हो रही हैं। किसी के कुरते में बटन नहीं है, तो वो पड़ोस के घर में सुई-धागा लेने दौड़ा जा रहा है। किसी के जूते कड़े हो गए हैं, तो वो उनमें तेल डालने के लिए तेली के घर पर भागा जा रहा है। सब जल्दी-जल्दी बैलों को चारा-पानी दे रहे हैं। ईदगाह से लौटते-लौटते दोपहर हो जाएगी। तीन कोस का पैदल रास्ता, फिर कई आदमियों से मिलना-जुलना, दोपहर के पहले लौटना नामुमकिन है।
रमजान के पूरे तीस रोजों के बाद ईद आ गई। कितना खूबसूरत और सुहाना एहसास था। पेड़ों पर अजीब सी हरियाली थी, खेतों में रौनक, आसमान पर दिल लुभाने वाली लालिमा छायी थी। आज का सूरज तो देखो, कितना प्यारा, कितना ठंडा है, जैसे दुनिया को ईंद की मुबारक दे रहा हो। गाँव में कितनी हलचल है। ईदगाह जाने की तैयारियाँ हो रही हैं। किसी के कुरते में बटन नहीं है, तो वो पड़ोस के घर में सुई-धागा लेने दौड़ा जा रहा है। किसी के जूते कड़े हो गए हैं, तो वो उनमें तेल डालने के लिए तेली के घर पर भागा जा रहा है। सब जल्दी-जल्दी बैलों को चारा-पानी दे रहे हैं। ईदगाह से लौटते-लौटते दोपहर हो जाएगी। तीन कोस का पैदल रास्ता, फिर कई आदमियों से मिलना-जुलना, दोपहर के पहले लौटना नामुमकिन है। आज लड़के सबसे ज्यादा खुश हैं। किसी ने एक रोजा रखा है, वह भी दोपहर तक, किसी ने वह भी नहीं रखा, लेकिन ईदगाह जाने की खुशी सबके दिल
में ज़ोरों शोरों से थी। रोजे बड़े-बूढो के लिए होंगे। इनके लिए तो ईद है। रोज ईद का नाम रटते थे, आज वह आ गई। अब जल्दी पड़ी है कि लोग ईदगाह इन्हें प्र क्यों नहीं चलते। इन्हें घर की चिंताओं से क्या मतलब सेवैयों के लिए दूध और चीनी धर में है या नहीं, इन्हें कोई परवाह नहीं है, ये तो बस सेवेयां खाएंगे। वह क्या जाना । वह क्या जानें कि अब्बाजान क्यों हैरान परेशान चौधरी कायम अली के घर दौड़े जा रहे हैं। उन्हें क्या खबर कि चौधरी मन बदल लें, तो सारी ईद मुहर्रम में बदल जाएगी। उनकी अपनी जेबों में तो कुबेर का खजाना भरा हुआ है। बच्चे तो बार-बार जेब से अपना पैसा निकालकर गिनते हैं और खुश होकर फिर रख लेते हैं। महमूद गिनता है, एक-दो, दस,-बारह, उसके पास बारह पैसे हैं। मोहनसिन के पास एक, दो, तीन, आठ, नो, पंद्रह पैसे हैं। इन्हीं अनगिनत पैसो से अनगिनत चीजें लाएँगें खिलौने, मिठाइयां, बॉल और ना जाने क्या-क्या और सबसे ज्यादा खुश है हामिद। चह चार-पाँच साल का गरीब दुबला-पतला लड़का है, जिसके पिता पिछले साल हैजे की चपेट में आ गए और माँ न जाने क्यों पीली होती-होती एक दिन मर गई। किसी को नहीं पता कौन सी बीमारी थी। वो कहती भी तो किससे, कौन सुनने वाला था? दिल पर जो कुछ बीतती थी, वह दिल में ही सह लेती थी और जब नहीं सहा गया..
तो दुनिया से विदा हो गई।
अब हामिद अपनी बूढ़ी दादी अमीना की गोद में सोता है और उतना ही खुश है। उसकी दादी कहती हैं कि उसके अब्बाजान रूपये कमाने गए हैं। बहुत-सी थैलियाँ लेकर आएंगे। अम्मीजान अल्लहा मियाँ के घर से उसके लिए बड़ी अच्छी-अच्छी चीजें और दुआएं लाने गई हैं, इसलिए हामिद बहुत खुश है। उम्मीद तो होती ही बड़ी चीज़ है, और फिर बच्चों की उम्मीद उनकी कल्पना तो राई का भी पहाड़ बना लेती है। हामिद के पाँव में जूते नहीं थे, सिर पर एक पुरानी सी टोपी थी, जिसका गोटा काला पड़ गया था, फिर भी वह खुश था। जब उसके अब्बाजान थैलियाँ और अम्मीजान दुआएं लेकर आएँगी, तो वह अपने दिल ल का हर अरमान पूरा कर लेगा। वो तब देखेगा, मोहसिन, नूरे और सम्मी कहाँ से उतने पैसे निकालेंगे। अभागिन अमीना अपनी कोठरी में बैठी रो रही थी। आज ईद का दिन, उसके घर में खाने का एक दाना तक नहीं था! आज आबिद होता, तो क्या इसी तरह आती और चली जाती! इस दुःख और निराशा में वह डूबी जा रही थी। किसने बुलाया था इस निगोड़ी ईद को? इस घर में उसका काम नहीं है, लेकिन हामिद! उसे किसी के मरने-जीने का क्या मतलब समझ में आता? उसके अन्दर खुशी की रौशनी और बाहर उम्मीद ऐसी थी कि अगर मुसीबत अपनी पूरी ताकत लेकर आता तब भी, हामिद की प्यार भरी आँखें उसे चूर-चूर कर देती।
हामिद अंदर जाकर दादी से कहता है-तुम डरना नहीं अम्मीं, मै सबसे पहले आऊँगा। बिल्कुल नहीं डरना”। अमीना का दिल छोटा हो । था। गाँव के बच्चे अपने-अपने पिता के साथ जा रहे थे। अमीना के सिवा हामिद का पिता था ही कौन! उसे कैसे अकेले में जाने दे? उस भीड़-भाड़ में बच्चा कहीं खो जाए तो क्या होगा? नहीं, अमीना उसे ऐसे नहीं जाने देगी। नन्ही-सी जान! तीन कोस चलेगा कैसे पैर छाले नहीं पड़ जाएँगे। जूते भी तो नहीं हैं उसके पास । वैसे तो मैं खुद उसे ले जाती और थोड़ी-थोड़ी दूर पर गोंद में ले लेती, लेकिन यहाँ सेवैयाँ कौन बनाएगा? पेसे होते तो लौटते वक़्त सब सामान जमा करके फ़टाफ़ट बना लेती।
लेकिन यहाँ तो घंटों चीजें जमा करने में लग जाएंगे। मांगने का ही तो सहारा है। उस दिन उन्होंने फहीमन के नए कपड़े सिले थे और उसके लिए दादी को आठ आने पैसे मिले थे। उस उठन्नी को वो बड़ी इमानदारी से बचाती चली आ रही थी इस ईद के लिए लेकिन कल दूध देने वाली सिर पर सवार हो गई तो वो क्या करती? हामिद के लिए तो कुछ बचा ही नहीं, सेवइयों के लिए दो पैसे का दूध तो चाहिए ही। अब तो बस दो आने पैसे बचे हुए हैं। तीन पैसे हामिद की जेब में, पांच अमीना के पर्स में यही तो हैसियत है और ईद का त्यौहार, अल्ला ही बेड़ा पार लगाए। धोबन, नाइ और मेहतरानी सभी तो आऐगी। सभी को सेवइया चाहिए और किसी को थोड़ा सा देना अच्छा भी तो नहीं लगता। किस-किस से मुँह चुरायेगी? और मुँह क्यों चुराए? साल-भर का त्योंहार हैं। बस अल्लाह बच्चे को सलामत रखे, यें दिन भी कट जाएँगे।
गाँव से मेला चला। दूसरे बच्चों के साथ हामिद भी जा रहा था। कभी सबके सब दौड़कर आगे निकल जाते। फिर किसी पेड़ के नीचे खड़े होकर साथ वालों का इंतजार करते। वो सोचते, यह लोग क्यों इतना धीरे-धीरे चल रहे हैं? हामिद के पैरो में तो जैसे पंख लग गए थे। वह कभी थक सकता है क्या? चलते-चलते शहर भी आ गया। सड़क के दोनों ओर अमीरों के बगीचे थे। पक्की चारदीवारी बनी हुई थी। पेड़ों में आम और लीचियाँ लगी हुई थीं। कभी-कभी कोई लड़का पत्थर उठाकर आम पर निशान लगाता और माली अंदर से गाली देता हुआ निकलता। इस बात पर लड़के खूब हँसते कि माली को कैसा उल्लू बनाया।
शहर में बड़ी-बड़ी बिल्डिंग बनी हुई थी। यह कोर्ट है, यह कालेज, यह क्लब है। इतने बड़े कालेज में कितने लड़के पढ़ते होंगे? सब लड़के नहीं हैं जी! बड़े-बड़े आदमी भी हैं, सच। उनकी बड़ी-बड़ी मूंछे हैं। इतने बड़े हो गए, अभी तक पढ़ते जा रहे हैं। न जाने कब तक पढ़ेंगे और क्या करेंगे इतना पढ़कर! हामिद के गाँव के स्कूल में दो-तीन बड़े-बड़े लड़के हैं, बिल्कुल निकम्मे रोज मार खाते हैं, काम से जी चुराने वाले। इस जगह भी उसी तरह के लोग होंगे क्या? क्या ? क्लब में जादू होता है, सुना है, यहाँ मुर्दों के सर दौड़ते हैं और बड़े-बड़े तमाशे होते हैं, पर किसी को अंदर नहीं जाने दिया जाता। वहाँ शाम को साहब लोग खेलते हैं। बड़े-बड़े आदमी खेलते हैं, मूँछो-दाढ़ी वाले। और औरतें भी खेलती हैं, सच! हमारी अम्मी को यह दे दो, क्या नाम है, बैट, तो उसे पकड़ ही न सके। घुमाते ही लुढ़क जाएगी।
महमूद ने कहा हमारी अम्मी जान का तो हाथ कॉपने लगे, अल्ला कसम”।
मोहसिन बोल—’चलो भी कुछ भी मत बोलो, वो तो कई कई किलो आटा पीस डालती हैं। जरा-सा बैट पकड़ लेगी, तो क्या हाथ कपने लगेंगे! वो
हज़ारों मटके पानी रोज निकालती हैं। पाँच मटके तो तेरी भैंस पी जाती है। किसी शहर की औरत को एक मटका पानी भरना पड़े, तो आँखों के सामने तो नहीं सकतीं।
अंधेरा छा जाएगा।
महमूद बोला -लेकिन दौड़ती तो नहीं, उछल-ता मोहसिन ने जवाब दिया-“हाँ, उछल-
कूद तेज दौड़ी कि मैं भी उन्हें पकड़ नहीं सका, सच”।
तो
म िन मेरी गाय खल गई थी और चौधरी के खेत में जा पड़ी थी तो अम्मी इतना
वो सब आगे चले। हलवाइयों की दुकान शुरू हुई। आज सभी खूब सजी हुई थीं। इतनी मिठाइयाँ कोन खाता है? देखो न, एक-एक दुकान में कितनी भूत जिन्न आकर इसे खरीद ले जाते हैं। अब्बा कहते थें कि आधी रात को एक आदमी हर दुकान पर जाता है और जितना माल बचा होता तुलवा लेता है और सचमुच रूपये देता है, बिल्कुल ऐसे ही असली रूपये। हामिद को यकीन नहीं हुआ “ऐसे रूपये जिन्न को कहाँ से मिल जाएंगे?” मोहसिन ने कहा जिन के पास रूपये की क्या कमी है? जिस खजाने में चाहें चला जाए। लोहे के दरवाजे तक उन्हें नहीं रोक सकते जनाब, आप हैं किस ख़याल हीरे-जवाहरात तक उनके पास
मिनट में में कलकत्ता पहुँच जाएंगे”।
रहते हैं। जिससे खुश हो गए, उसे टोकरे भर-भर कर जवाहरात दे देते हैं। अभी यहाँ बैठे हैं तो पाँच
हामिद ने फिर पूछा-जिन्न बहुत बड़े-बड़े होते हैं क्या ?”
मोहसिन ने कहा-एक-एक सिर आसमान के बराबर होता है जी! जमीन पर खड़ा हो जाए तो उसका सिर आसमान से जा लगे, मगर चाहे तो एक लोटे में भी घुस सकता है”। हामिद ने फ़िर सवाल किया- लोग उन्हें कैसे खुश करते होंगे? कोई मुझे यह मंत्र बता दे तो में भी एक जिन्न को खुश कर दूं”।
मोहसिन बोला-अब में यह तो नहीं जानता, लेकिन चौधरी साहब के काबू में बहुत-से जिन्न हैं। कोई चीज चोरी हो जाए तो चौधरी साहब उसका पता लगा देंगे चोर का नाम बता देगें। जुमराती गाय का बच्चा उस दिन खो गया था। वो तीन दिन बहुत हेरान हुए, जब कहीं नहीं मिला तब झख मारकर चौधरी के पास गए। चौधरी ने तुरन्त बता दिया, जानवरों के घर में है और वहीं मिला। जिन्न आकर उन्हें सारे दुनिया जहां की खबर दे जाते हैं।
सत समानी सागर में आ गया कि चौधरी के पास क्यों इतना पैसा है और क्यों उनका इतना सम्मान है। मोहसिन ने कहा “यह कांस्टेबल पहरा देते हैं? अजी हजरत, तुम कुछ नहीं जानते, ये चोरी करते हैं। शहर के जितने चोर-डाकू हैं, सब इनके मुहल्ले में जाकर ‘जागते रहो! जागते रहो।’ पुकारते हैं। तभी इन लोगों के पास इतने रूपये आते हैं। मेरे मामू एक थाने में कांस्टेबल हैं। उन्हें बीस रूपया महीना मिलता है, लेकिन घर पचास रूपये भेजते हैं। अल्ला कसम! मैंने एक बार पूछा था कि मामू, आप इतने रूपये कहाँ से लाते हैं? तो वो हँसकर कहने सत और आगे चले। आगे पुलिस लाइन थी। राही सब् कांस्टेबल प्रैक्टिस करते थे। रात को बेचारे घुम-घुमकर पहरा देते नहीं तो चोरियाँ हो जाएंगीं।
लगे-“बेटा, अल्लाह देता है । फिर खुद ही बोले- हम लोग चाहें तो एक दिन में लाखों मार लाएँ फ़िर भी हम तो इतना ही लेते हैं, जिसमें अपनी बदनामी न हो और नौकरी न चली जाए”।
हामिद ने पूछा-“यह लोग चोरी करवाते हैं, तो कोई इन्हें पकड़ता नहीं है?”
मोहसिन उसकी नादानी पर दया दिखाकर बोला..”अरे, पागल! इन्हें कौन पकड़ेगा! पकड़ने वाले तो यह लोग खुद हैं, लेकिन अल्लाह, इन्हें सजा भी खूब देता है। फोकट की कमाई कभी काम नहीं आती, यूहीं बर्बाद हो जाती है। थोड़े ही दिन पहले मामू के घर में आग लग गई थी। सारी पूँजी जल गई। एक बरतन तक नहीं बचा। कई दिन पेड़ के नीचे सोए, अल्ला कसम, पेड़ के नीचे! फिर ना जाने कहाँ से एक सौ रुपया उधार लाए तो बरतन-भँडे खरीदे।
हामिद “एक सौ तो पचास से ज्यादा होते है?”
कहाँ पचास, कहाँ एक सौ। पचास एक थैली-भर होता है। सौ तो दो थैलियों में भी न आएँ?
अब मेले में भीड़ बढ़ने लगी। ईगाह जाने वालो की टोलियों नजर आने लगी। लोग एक से एक भड़कीले कपड़े पहने हुए थे। कोई इंक्के-तॉगे पर सवार था, कोई मोटर पर, सभी इत्र लगाए हुए, सभी के दिलों में उमंग भरा था। गाँव वालों का यह छोटा-सा दल अपने दुखों से बेखबर, सन्तोष और धैर्य में मगन चला जा रहा था। बच्चों के लिए शहर की सभी चीजें अनोखी थीं। वो जिस चीज की ओर ताकते, बस ताकते ही रह जाते और पीछे से हॉर्न की आवाज होने पर भी उन्हें कुछ समझ नहीं आता। हामिद तो एक बार मोटर के नीचे आते-आते बचा।
तभी सामने ईदगाह नजर आई। ऊपर इमली के घने पेड़ों की छाया थी। नीचे पक्की ज़मीन , जिस पर चादर बिछी हुई थी और रोजे रखने वालों की लाइन एक के पीछे एक न जाने कहाँ तक चली जा रही थी,जहाँ चादर भी नहीं था। नए आने वाले लोग पीछे की लाइन में आकर खड़े हो जाते। आगे जगह ही नहीं थी। यहाँ कोई पैसा और पद नहीं देखता। अल्लाह की नज़र में सब बराबर है। इन गाँव वालों ने भी हाथ पैर धोए और पिछली लाइन में खड़े हो गए। कितने सुंदर तरीके से सब कुछ किया जा रहा था, इतना अच्छा मैनेजमेंट! लाखों सिर एक साथ सजदे में झुक जाते, फिर सबके सब एक साथ खड़े हो जाते, एक साथ झुकते और एक साथ खड़े हो जाते, कई बार यही सिलसिला चलता रहा, जैसे बिजली की लाखों बत्तियाँ एक साथ जल हों और एक साथ बुझ रही हो। कितना खूबसूरत नज़ारा था, जो दिल को श्रद्धा, गर्व और परम सुख से भर रहा था, जैसे भाईचारे के एक धागे ने इन
सभी आत्माओं को एक साथ माले में पिरो दिया हो। जब नमाज खत्म हुई
लोग आपस में गले मिलने लगे। उसके बाद मिठाई और खिलौने की दुकान पर हमला होने लगा। गाँव वालों के दल में इस मामले में भी जोश की कोई कमी नहीं थी। यह देखो झूला, एक पैसा देकर चढ़ जाओ। कभी आसमान तक जाओगे फिर कभी जमीन पर नीचे आ जाओगे के हाथी, घोड़े, ऊँट, छड़ो में लटके हुए हैं एक पैसा देकर बैठ जाओं और पच्चीस चक्करों का मजा लो। महमूद, मोहसिन, नूरे, सम्मी इन घोड़ों और ऊँटो पर बैठते हैं। हामिद दूर खड़ा था। तीन ही पैसे तो थे उसके पास। अपने खज़ाने का एक तिहाई हिस्सा बो जरा-सा चक्कर खाने के लिए तो नहीं दे सकता था ना।
सब बच्चे चर्खियों से उतरते हैं और खिलौनों की दुकान पर जाते हैं। उधर दुकानों पर लंबी लाइन लगी हुई थी। उसमें तरह-तरह के खिलौने थे-सिपाही और चौर राजा और मंत्री, धोबिन और साधु। वाह! कितने सुन्दर खिलोने हैं। महमूद सिपाही लेता है, खाकी व्दी और लाल पगड़ी वाला, कंधे पर बंदूक करने चला जा रहा था। मोहसिन को पानी भरने वाला पसंद आया। उसकी कमर झुकी हुई थी, सर पर मटका अभी ड्रिल कलम पकड़े रखा हुआ था और उसने मटके का मुँह एक हाथ से पकड़े हुए था। ये कितना खुश है! शायद कोई गीत गा रहा है। बस, मटके से पानी उडेलना ही चाहता है। नूरे को वकील पसद आया। उसके चेहरे से कितनी बुद्धिमानी झलक रही है! काला कोट, नीचे सफेद अचकन, अचकन के सामने की जेब में घड़ी, सुनहरी जजीर, एक हाथ में कानून की किताब लिये हुए। मालूम होता है, अभी किसी अदालत में बहस करने जा रहा है। यह सब दो-दो पैसे के खिलौने थे। हामिद के पास कल तीन पैसे थे तो इतने महँगे खिलौने वह कैसे ले? खिलौना कहीं हाथ से छूट गया तो चूर-चूर हो जाएगा। उस पर ज़रा सा
रखे हुए, ऐसा लगता है कि अभी हार साधु। वाह!
पानी पड़े तो सारा रंग रंग धुल जाए। ऐसे खिलौने लेकर चह क्या करेगा, ये किस काम के! मोहसिन कहता है–“मेरा भिश्ती रोज पानी दे जाएगा सुबह-शाम
महमूद बोला-और मेरा सिपाही घर पर पहरा देगा, अगर कोई चोर आया, तो फौरन बंदूक तान कर भगा देगा”। और मेरा वकील कई मुकदमें लड़ेगा”।
सिम्मी कहाँ चुप रहने वालो थी और मेरी धोबिन रोज कपड़े धोएगी।
हामिद खिलोनों की की बुराई करता है-“मिट्टी ही के तो हैं, गिरे तो चकनाचूर हो जाएँगे”, लेकिन वो ललचाई हुई आँखों से खिलौनों को देख रहा था और चाहता था कि काश थोड़ी देर के लिए उन्हें हाथ में ले सकता। उसके हाथ अपने आप ही खिलौनों की ओर बढ़ते हैं, लेकिन लड़के इतनी आसानी से अपने खिलौने नहीं देते खासकर जब वो नए-नए हों। हामिद ललचता ही रह जाता है। खिलौने के बाद बारी आती है मिठाइयों की। किसी ने रेवड़ियाँ ली, किसी ने गुलाब जामुन, किसी ने सोहन हलवा। सब बड़े मजे से खा रहे थे। हामिद इन सबमें अलग खड़ा था। बेचारे के पास तीन पैसे ही थे। क्यों कुछ लेकर नहीं खाता? ललचाई आँखों से सबकी ओर देखता है। मोहसिन कहता है-“हामिद रेवड़ी ले जा, कितनी खुशबूदार है!”
हामिद को शक हुआ, ये सिफसका सिर्फ इसकी बदमाशी और शरारत है, मोहसिन इतना उदार नहीं है, लेकिन फ़िर भी वह उसके पास जाता है मोहसिन दोने से
एक रेवड़ी निकालकर हामिद और बढ़ाता है। हामिद हाथ आगे करता हैं और मोहसिन रेवड़ी अपने मुँह में रख लेता तालियाँ बजा-बजाकर हँसते हैं। हामिद चिढ़ जाता है। मोहसिन
-अच्छा, अबकी जरूर देंगे हामिद, अल्लाह कसम, ले जा। हामिद ने कहा-“अपने पास ही रखे रहो। क्या मेरे पास पैसे नहीं है?” सम्मी ने कहा ही पैसे तो हैं। तीन पैसे में क्या-क्या लोगे?”
बोला महमूद “हमसे गुलाबजामुन ले जाओ हामिद। मोहमिन बदमाश है”। हामिद “मिठाई कोन अ सी बहुत अच्छी चीज़ है । किताब में इसकी कितनी बुराइयों लिखी हैं । माहसिन “लेकिन तुम मन मन में कह रहे होगे कि अगर मिल जाए तो लें। अपने पैसे क्यों नहीं निकालते?”
“सब समझते इसकी चालाकी। जब हमारे महमूद सवाल पैसे खर्च हो जाएंगे, तो हमें ललचा-ललचाकर खाएगा”। मिठाइयों के बाद कुछ दुकानें लोहे की चीजों की, कुछ गिलट और कुछ नकली गहनों की थीं। लड़कों के लिए यहाँ कोई दिलचस्प या मनोरंजक नहीं
था। ये सब आगे बढ़ जाते हैं, हामिद लोहे की दुकान पर रूक जाता है। कई चिमटे रखे हुए थे। उसे ख्याल आया, दादी के पास चिमटा नहीं है। वो जब तवे से रोटियाँ उतारती हैं, तो उनका हाथ जल जाता है अगर वह चिमटा ले जाकर दादी को दे दे तो वह कितना खुश होंगीं ना! फिर उनकी ऊगलियाँ कभी नहीं जलेंगी। घर में एक काम की चीज आ जाएगी। खिलौने से क्या फायदा? बेकार में पैसे बर्बाद होते हैं। उससे थोड़ी देर ही तो खुशी मिलती है। बाद में तो खिलोने को कोई आँख उठाकर भी नहीं देखता। यह तो घर पहुँचते-पहुँचते टूट-फूट कर बराबर हो जाएँगे। चिमटा कितने काम की चीज
है। रोटियाँ तवे से उतार लो, चूल्हें में सेंक लो। कोई आग
मॉगने आये तो चटपट चूल्हे से आग निकालकर उसे दे दो। अम्माँ बेचारी को कहाँ फुर्सत है कि
बाजार आएँ और इतने पैसे ही कहाँ मिलते हैं? रोज हाथ जला लेती हैं। हामिद के साधी आगे बढ़ गए। सबील पर सबके सब शर्वत पी रहे थे। देखो, सब कितने लालची हैं। इतनी मिठाइयाँ लीं, मुझे किसी ने एक भी नहीं दी।
उस पर कहते है, मेरे साथ खेलो। मेरा यह काम करो। अब अगर किसी ने कोई काम करने को कहा, तो बताऊंगा। खाएँ मिठाइयाँ, उनका ही मुँह सड़ेगा, फोड़े-फुन्सियाँ निकलेंगी,उनकी ही जीभ चटोरी हो जाएगी। तब घर से पैसे चुराएँगे और मार खाएँगे। किताब में झूठी बातें थोड़े ही लिखी हैं। मेरी ज़बान क्यों खराब होगी? अम्मी चिमटा देखते ही दौड़कर मेरे हाथ से ले लेंगी और कहेंगी-“मेरा बच्चा अर्मों के लिए चिमटा लाया है। कितना अच्छा लड़का इन लोगों के खिलौने पर कौन इन्हें दुआएँ देगा? बड़ों की दुआएँ सीधे अल्लाह के दरबार में पहुँचती हैं, तुरंत सुनी जाती हैं। मैं भी इनसे तेवर क्यों सहूँ? मैं गरीब सही, लेकिन किसी से कुछ माँगने तो नहीं जाता। आखिर अब्बाजान कभी न कभी तो आएँगे। अम्मा भी औएगी ही। फिर इन लोगों से पूछूँगा, कितने खिलौने लोगे? एक-एक को टोकरी भरकर खिलौने दूंगा और दिखा दूंगा कि दोस्तों के साथ इस तरह का सलूक किया जाता है । यह नहीं कि एक पैसे की रेवड़ियाँ लीं, तो चिढ़ा-चिढ़ाकर खाने लगे। लेकिन सबके सब हँसेंगे कि हामिद ने चिमटा लिया है। हंसें तो हंसें मेरी बला से! उसने दुकानदार से पूछा-“यह चिमटा कितने का है?”
दुकानदार ने उसकी ओर देखा और कोई बड़ा आदमी साथ न देखकर कहा-“तुम्हारे काम का नहीं है जी!”
बिकाऊ है कि नहीं?’ बिकाऊ क्यों नहीं है? नहीं तो यहाँ क्यों लाद कर लाता ?
तो बताते क्यों नहीं, कितने पैसे का है?’ छ: पैसे लगेंगे।
हामिद का दिल बैठ गया।
ठीक-ठीक पाँच पैसे लगेंगे, लेना हो तो लो, नहीं तो चलते बनौ।’
हामिद ने दिल मजबूत करके कहा -“तीन पैसे लोगे?”
यह कहता हुआ व आगे बढ़ गया कि दुकानदार की बक बक ना सुननी पड़े । लेकिन दुकानदार ने बुलाकर उसे चिमटा दे दिया। हामिद ने उसे इस तरह कधे पर रखा, मानों तो कोई बंदूक है और शान से अकड़ता हुआ दोस्तों के पास गया। जरा सुनूँ तो, सबके सब क्या-क्या बुराइयां करते हैं!
मोहसिन ने हँसकर कहा-“यह चिमटा क्यों लाया पगले, इसका क्या करेगा?”
हामिद ने चिमटे को जमीन पर पटकर कहा-“जरा अपना भिश्ती जमीन पर गिरा दो। सारी पसलियाँ चूर-चूर हो जाएंगीं उसकी”।
महमूद बोला ना-भला यह चिमटा भी कोई खिलौना है?”
हामिद ने कहा-“खिलौना क्यों नही है! अभी कन्धे पर रखा तो बंदूक हो गई। हाथ में ले लिया तो फकीरों का चिमटा हो गया। चाहूँ तो इससे मजीरे का काम भी ले सकता हूँ। एक चिमटा जमा दूं, तो तुम लोगों के सारे खिलौनों की जान निकल जाएगी। तुम्हारे खिलौने कितना ही जोर लगाएँ, मेरे चिमटे का बाल भी बांका नही कर सकतें, मेरा चिमटा बहादुर शेर है”।
सम्मी ने खैजरी ली थी। वो इम्प्रेस होकर बोला-“इसे मेरी खँजरी से बदलोगे? दो आने की है। हामिद ने खँजरी को अनदेखा करते हुए कहा “मेरा चिमटा चाहे तो तुम्हारी खँजरी का पेट फाड़ तूफान में बराबर डटा खड़ा रहेगा।
डाले। मेरा बहादुर चिमटा आग में, पानी में, ऑधी में,
चिमटे ने सभी को मोहित कर लिया, अब पैसे किसके पास बचे थे? फिर सब मेले से दूर निकल आए थे, नौ कब के बज गए, धूप तेज हो रही थी। घर पहुंचने की जल्दी भी थी। अब अगर पिता से जिद भी करें, तो चिमटा नहीं मिल सकता था। हामिद बड़ा चालाक है। इसीलिए बदमाश ने अपने पैसे बचा रख था
अब बच्चों के दो दल हो गए थे। मोहसिन, महमद, सम्मी और नूरे एक तरफ और हामिद अकेला दूसरी तरफ। सम्मी तो दूसरे पक्ष से जा मिला, लेकिन मोहसिन, महमूद और नूरे भी हामिद से एक-एक, दो-दो साल बड़े होने पर भी हामिद की बातों से बौखला उठे थे एक ओर मिट्टी है, दूसरी ओर लोहा, जो इस वक्त अपने को फौलाद कह रहा है। वह अजेय है, खतरनाक है। अगर अभी कोई शेर भी सामने आ जाए तो मियाँ भिश्ती के छक्के छूट जाएंगे,
मिट्टी का सिपाही भी बंदूक छोड़कर भाग जाएगा और वकील साहब की नानी मर जाएगी। मगर यह चिमटा, यह बहादुर, यह रूस्तमे-हिंद लपककर शेर की गरदन पर सवार हो जाएगा और उसकी आँखे निकाल लेगा।
मोहसिन ने एडी-चोटी का जोर लगाकर कहा- “अच्छा, ये चिमटा पानी तो नहीं भर सकता?”
हामिद ने चिमटे को सीधा खड़ा करके कहा-“भिश्ती को एक डाट लगाएगा, तो वो दौड़ता हुआ पानी लाकर उसके दरवाजे पर छिड़कने लगेगा”। मोहसिन हार गया, पर महमूद ने कहा “अगर कोई बच्चे को पकड़ ले जाए तो अदालत में बँधे-बँधे फिरेंगे। तब तो वकील साहब के पैरों पड़ेगे।
हामिद इस तर्क का जवाब न दे सका। उसने पूछा- “हमें पकड़ने कौन आएगा?”
नूरे ने अकड़कर कहा-“यह सिपाही बंदूक वाला।
हामिद ने मुँह चिढ़ाकर कहा- यह बेचारे हम बहादुर रूस्तमे हिंद को पकड़ेगे! अच्छा लाओ, अभी जरा कुश्ती हो जाए। चिमटे की सूरत देखकर दूर
से ही भाग जाएँगे, पकड़ेगें क्या बेचारे!”
मोहसिन को एक बात सूझी-“तुम्हारे चिमटे का मुँह रोज आग में जलेगा”। उसने समझा था कि हामिद के पास इसका कोई जवाब नहीं होगा, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। हामिद ने तुरंत जवाब दिया-“आग में बहादुर ही कूदते हैं
जनाब, तुम्हारे यह वकील, सिपाही और भिश्ती घर में में घुस जाएँगे। आग वो बला है, जो यह रूस्तमे-हिन्द ही झेल सकता है। महमूद ने जोर लगाया-वकील साहब कुरसी मेज पर बैठेगे, तुम्हारा चिमटा तो रसोई में जमीन पर पड़ा रहने के सिवा और क्या कर सकता है?” इस तर्क ने सम्मी और नूरे को भी चौंका दिया! कितने पते की बात कही है इसने चिमटा रसोई में पड़ा रहने के सिवा और क्या कर सकता है?
को कोई फड़कता हुआ जवाब नहीं सूझा, तो उसने यूहीं कहना शुरू किया -“मेरा चिमटा रसोई में नही रहेगा। वकील साहब कुर्सी पर बैठेगें, तो जाकर उन्हें जमीन पर पटक देगा और उनका कानून उनके पेट में डाल देगा” यहाँ बात कुछ बनी नही लेकिन कानून को पेट में डालने वाली बात छा गई। ऐसी छा गई कि तीनों सूरमा मुँह ताकते रह गए। हामिद ने मैदान जीत लिया था।
उसका चिमटा रूस्तमे-हिन्द है। अब इसमें मोहसिन, महमूद नूरे, सम्मी किसी को भी आपत्ति नहीं हो सकती। जीतने वाले को हारने वालों से जो आदर मिलना चाहिए, वह हानिद को भी मिला। औरों ने तीन-तीन, चार-चार आने पैसे खर्च किए, पर कोई काम की चीज नहीं ले सके। हामिद ने तीन पैसे में रंग जमा लिया। सच ही तो है, खिलौनों का क्या भरोसा? टूट-फूट जाएँगी। हामिद का चिमटा तो सालों तक समझौते की शर्त तय होने लगीं। मोहसिन ने कहा-“जरा अपना चिमटा दो, हम भी देखें। तुम हमार भिश्ती लेकर देखो”।
बना रहेगा.
महमूद और नूरे ने भी अपने-अपने खिलौने पेश किए।
हामिद को इन शर्तों को मानने में कोई आपत्ति न थी। चिमटा बारी-बारी से सबके हाथ में गया, और उनके खिलौने बारी-बारी से हामिद “कितने खूबसूरत खिलौने हैं”, हामिद ने सोचा. सच! यह चिमटा भला, इन खिलौनों की क्या बराबरी करेगा”।
उसने अपने साथियों के आँसू पोंछे “अरे,मैं तुग्हे चिढ़ा रहा था, लेकिन मोहसनि की पार्टी को इस दिलासे से संतोष नहीं हुआ।
मोहसिन-“लेकिन इन खिलौनों के लिए कोई हमें दुआ तो नहीं देगा?” महमूद-“दुआ की तो बात छोड़ो, ये सोचो कि मार ना पड़े। अम्मा जरूर कहेंगी कि मेले में यही मिट्टी के खिलौने मिले?”
हामिद को स्वीकार करना पड़ा कि खिलौनों को देखकर किसी की मां इतनी खुश नहीं होंगीं, जितनी दादी चिमटे को देखकर होंगी। तीन पैसों में ही तो उसे सब-कुछ करना था और उन पैसों के खर्च होने पर उसे कोई पछतावा नहीं था। फिर अब तो चिमटा रूस्तमें-हिन्द है और सभी खिलौनों का बादशाह। सस्ते में महमूद को भूख लगी। उसके पिता ने केले खाने को दियें। महमूद ने सिर्फ़ हामिद को केले दिए। उसके दूसरे दोस्त मुंह ताकते रह गए। यह उस चिमटे का प्रसाद था।
ग्यारह बजे गाँव में हलचल मच गई, “मेले वाले आ गए मोहसिन की छोटी बहन ने दौड़कर भिश्ती उसके हाथ से छीन ली और मारे खुशी के उछल पड़ी, तो मियों भिश्ती नीचे आ गिरे और टूटकर परलोक सिधार गए। इस पर भाई-बहन में जमकर मार-पीट हुई। दानों खूब रोए। उसकी अम्मा यह शोर सुनकर बहुत नाराज़ हुई और दोनों को ऊपर से दो-दो चाँट और लगा दिए।
मियाँ नूरे के वकील का अंत उनके पद के अनुसार इससे ज्यादा अच्छा था। वकील जमीन पर या ताक पर तो नहीं बैठ सकता। उसकी मर्यादा का विचार तो करना ही होगा। दीवार में खूँटियाँ गाड़ी गई। उन पर लकड़ी का एक पटरा रखा गया। पटरे पर कागज का कालीन बिछाया गया। वकील साहब राजा भोज की तरह सिंहासन पर विराजे । नूरे ने उन्हें पखे से हवा देना शुरू किया। अदालत में तो बिजली के पंखे रहते हैं। क्या यहाँ मामूली पंखा भी नहीं होगा! कानून की गर्मी दिमाग पर चढ़ जाएगी कि नहीं? बॉस का पंखा आया और नूरे हवा करने लगा. मालूम नहीं, पंखे की हवा से या पंखे की चोट से वकील साहब स्वर्गलोक से मृत्युलोक में चले गए और उनकी मिट्टी का शरीर मिट्टी में ही मिल गया! फिर बड़े जोरदार रोने धोने से उनके टूटने का शोक मनाया गया।
अब रहा महमूद का सिपाही। उसे चटपट गाव का पहरा देने का चार्ज मिल गया. लेकिन पुलिस का सिपाही कोई साथारण इंसान तो है नहीं, जो अपने पैरों पर चलें. वह पालकी पर चलेगा। एक टोकरी आई, उसमें कुछ लाल रंग के फटे-पुराने चिथड़े बिछाए गए जिसमें सिपाही साहब आराम से लेटे। नूरे ने यह टोकरी उठाई और अपने दरवाजे का चक्कर लगाने लगा। उनके दोनों छोटे भाई तुतलाती आवाज़ में सिपाही की तरह ‘छोने वाले, जागते लहो पुकारते हुए चल रहे थे। मगर रात का वक़्त था, अँधेरा था तो नुरे को ठोकर लगी और टोकरी उसके हाथ से छूटकर गिर पड़ी और मियाँ सिपाही अपनी बन्दूक लिये जमीन पर धड़ाम से गिर गए और उनकी एक टॉग टूट गई। महमूद को आज पता चला कि वह अच्छा डाक्टर है। उसे ऐसी दवा मिल गई थी जिससे वह टूटी टाँग को तुरंत जोड़ सकता था। सिर्फ गुलर का दूध चाहिए। गूलर का दूध आता है। टाँग जावब दे देती है, ऑपरेशन फेल हो गया तब उसकी दूसरी टाँग भी तोड़ दी जाती है। अब कम-से-कम एक जगह आराम से बैठ तो सकता है। एक टॉग से तो न चल सकता था, न बैठ सकता था। अब वह सिपाही संन्यासी हो गया था। अपनी जगह पर बैठा-वैठा पहरा देता था।
अब मियाँ हामिद का हाल सुनिए। अमीना उसकी आवाज सुनते ही दौड़ी और उसे गोद में उठाकर प्यार करने लगी। उसके हाथ में चिमटा देखकर वह चाक गईं।
यह चिमटा कहाँ से आया?
मैंने खरीदा है।
कितने पैसे में? तीन पैसे में।
अमीना छाती पीट ली। यह कैसा नासमझ लड़का है कि दोपहर हो गई, न कुछ खाया न पिया और क्या लाया, चिमटा! नहीं मिली, जो यह लोहे का चिमटा उठा लाया? हामिद ने मासूमियत से कहा-“तुम्हारी उँगलियाँ तवे से जल जाती है इसलिए मैने इसे लिया।
ना
‘सारे मेले में तुझे और कोई
बुढ़िया का गुस्सा तुरन्त प्यार में बदल गया, और प्यार भी वह नहीं, जो आगे बढ़कर अपनी सारी तकलीफ़ शब्दों में बिखेर देता है। यह खामोश प्रेम था, बहुत गहरा, रस और स्वाद से भरा हुआ। इस बच्चे में कितनी अच्छाई और समझदारी है! टदूसरों को खिलौने लेते और मिठाई खाते देखकर इसका मन कितना ललचाया होगा? कैसे रोका होगा इसने अपने मन को? बहाँ भी इसे अपनी बुढिया दादी ही याद आई। अमीना का मन खुशी से भर गया। और अब एक बड़ी सी अजीब बात हुई। हामिद के इस चिमटे से भी अजीब। बच्चे हामिद ने बूढ़े हामिद का पार्ट निभाया था। बूढी अमीना बच्ची अमीना बन गई थीं। वह रोने लगी। अपना दामन फैलाकर हामिद को दुआएँ देती जा रही थी और आँसू की बड़ी-बड़ी बूंदे गिराती जा रही धी। नादान हामिद इसकी गहराई और राज़ को भला केसे समझता! सीख – मुशी प्रेमचंद जी की ये कहानी हमें बलिदान और प्रेम के बारे में सिखाती है. कितनी खूबसूरती से उन्होंने दिखाया है
बच्चों का दिल कितना मासूम और साफ होता है. वो अपने आस पास की चीज़ों को कितने गौर से देखते हैं. अपनी दादी का झुलसा हुआ हाथ हामिद की नज़रों से छुप नहीं सका था और जब उसे कुछ करने का मौका मिला तो वो इसमें चूका नहीं, उसने चिमटा खरीदकर अपना प्यार जता ही दिया. इस मतलबी दुनिया में हमें उन दो के ज़ज्बात की झलक दिखाई दी जो सच्चे दिल से एक दूसरे की परवाह करते हैं.
कि एक और बूढ़ी होने के बाद भी हामिद की दादी उसे ठीक से बड़ा करने के लिए जी तोड़ मेहनत कर रही थीं. उनका दिल हमेशा इस बात की चिंता करता था कि हामिद को कैसे माता पिता की कमी ना खलने दें. तो दूसरी ओर, इतनी छोटी सी उम्र में भी हामिद ने अपने मन की हर इच्छा को मारकर अपनी दादी की जरूरत के बारे में सोचा और उनके लिए चिमटा खरीदा,
इससे पता चलता है कि वो कितना समझदार था. दूसरे बच्चों ने सिर्फ अपने बारे में सोचा लेकिन हामिद ने खुद से पहले किसी और के बारे में सोचा, ये दिखाता है कि वो एक अच्छा इंसान भी था. उसे अपनी दादी से कितना लगाव था और वो उनका कितना सम्मान करता था. दूसरे बच्चों के टूटे हुए खिलौने दिखाते हैं कि असल में चीजों का कोई मोल नहीं होता, वो तो एक ना एक दिन टूट ही जाते हैं लेकिन भावनाएं और आपकी परवाह रिश्ते में कितना प्यार और निवास भर देती है,
हामिद ने चिमटे जैसी चीज़ को भी एक खिलौने के रूप में देख लिया, ये दिखाता है कि वो चीज़ों को पॉजिटिव नज़रिए से देखता था, तो आप भी जिंदगी से शिकायतें कम कर उसे पॉजिटिव नज़रिए से देखना शुरू करें. हम अक्सर बच्चों को नासमझ समझने की गलती कर देते हैं लेकिन देखा जाए तो बच्चे अनजाने में हमें कितना कुछ सिखा देते हैं, है ना?