लेखक के बारे में
डेविड ग्रेबर (David Graeber एक अमेरिकी समाजशास्त्री और एक लेखक हैं। लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स में प्रोफेसर हैं। वे अपनी किताब डेब्ट द फस्ट 5000 ईयर्स के लिए जाने जाते हैं। उनकी यह किताब 20 में पब्लिश हुई थी।
यह किताब आपको क्यों पढ़नी चाहिए
टेकोलॉजी के मामले में हम आज बहुत आगे आ चुके हैं। पहले के वक्त में हमें अपना ज्यादातर काम अपने हाथों से करने पड़ते थे। लेकिन अब हमारा ज्यादातर काम मशीनें करती हैं। पहले के वक्त में जनसंख्या कम थी और काम ज्यादा था जिससे हर किसी को नौकरी मिल जाती थी। लेकिन अब जनसख्या ज्यादा है और काम कम, लेकिन फिर भी लगभग हम किसी के पास एक नोकरी है। यह कैसे संभव है? इसका जवाब है कि आज बहुत सी नौकरियाँ बेमतलब की हैं जिन्हें करने का कोई फायदा नहीं है। आज के वक्त में काम वाकई बहुत कम है लेकिन फिर भी हर किसी के
पास नौकरी इसलिए है क्योंकि वे ऐसा काम कर रहे हैं जिसे करने का कोई फायदा नहीं है।
लेकिन इस तरह की नौकरियां लोग क्यों कर रहे हैं? उससे भी पहले हमें यह सोचना चाहिए कि बिना फायदे का काम करने के लिए उन्हें कंपनी पैसा क्यों दे रही है? इस किताब में हम इस तरह के दूसरे सवालों का जवाब देने की कोशिश करेंगे।
इसे पढ़कर आप सीखेंगे
बेमतलब की नौकरियों क्या और क्यों होती है।
-इन नौकरियों से किस तरह लोगों की खुशियाँ कम हो जाती हैं।
-बेमतलब की नौकरियों को किस तरह हम समाज से निकाल सकते हैं।
आज हम बेमतलब की नौकरियों से घिरे हुए हैं।
क्या आपको लगता है कि आप जो काम कर रहे हैं उसका भसल में कोई मतलब है? क्या आपको लगता है कि अगर आप अपनी नौकरी छोड़ देंगे और आपकी पोजीशन कर काम करने वाला हर व्यक्ति अगर अपनी नौकरी छोड़ देगा तो इस दुनिया को कुछ खास नुकसान होगा? हमारा समाज आज कुछ ऐसी नौकरियों से भरा पड़ा है जिनके होने या न होने से हमें कोई फर्क नहीं पड़ रहा है।
एज़ाम्पल के लिए आप लॉबिस्ट, रिसेप्शनिस्ट, मिडल मैनेजर, पफार्मेस मैनेजर को ले लीजिए। अब से 100 साल पहले इस तरह की कोई नौकरियां नहीं थीं।
जैसे जैसे हम टेक्नोलॉजी के मामले में आगे बढ़ते जा रहे हैं वैसे वैसे ही इस तरह की नौकरियां बढ़ती जा रही हैं। 1930 में इकोनोमिस्ट जॉन मेनार्ड कीस ने कहा था किसी सदी में हम टेनोलॉजी के मामले में इतने आगे होंगे कि हमें एक हफ्ते में सिर्फ 15 घंटे काम करने की जरूरत होगी। आज की टेक्रोलॉजी तो वाकई बहुत बढ़ गई है लेकिन लोग अब भी उसी तरह काम कर रहे हैं जैसे पहले किया करते थे।
बहुत से लोगों का कहना है कि टेनोलॉजी के आ जाने ने बहुत सी नौकरियों खत्म हो जाएंगी। टेक्रोलॉजी लोगों का काम बहुत आसानी से कर सकती है और वो कर भी रही है। कुछ सालों में रोबोट पूरी तरह से लोगों की जगह ले लेंगे। लेकिन जैसे जैसे हम टेक्नोलॉजी के मामले आगे बढ़ते जा रहे हैं वैसे वैसे ये बेमतलब की नौकरियां बढ़ती जा रही है।
कुछ लोगों के बगैर हमारा चल पाना लगभग नामुमकिन है। नर्स, डॉक्टर, सफाई करने वाले लोग जैसे लोग हमारे समाज के लिए हमेशा से बहुत जरूरी रहे हैं।
बहुत से लोगों को पहले से पता है कि उनके काम करने से दुनिया का कुछ खास भला नहीं हो रहा है। ब्रिटेन के 37% और डेनमार्क के 40% लोगों ने यह बात मानी को वे बेमतलब की नौकरियाँ कर रहे हैं। हमारा कल्चर हमें इस तरह की नौकरियां करने पर मजबूर कर रहा है। इसे हटाने के लिए हमें पहले यह समझना होगा कि वो क्या चीजे हैं जो एक नौकरी को बेमतलख की बना देती हैं।
बेमतलब की नौकरी करने वाले लोग जानते हैं कि उनका काम बेमतलब का है, लेकिन वे इसे मानते नहीं हैं।
हमारे समाज में बहुत से ऐस काम है जिन्हें कोई नहीं करना चाहता लेकिन वे जरूरी है। दूसरी तरफ कुछ ऐसे भी काम है जिसकी कोई जरूरत नहीं है लेकिन फिर भी लोग उसे
कर रहे हैं।
एज़ाम्पल के लिए आप कॉरपोरेट लॉयर को ले लीजिए। एक कार्पोरेट लॉयर का काग अलग अलग कॉर्पोरेशन के लेन देन की जाँच करना होता है। वो यह देखता है कि ये लेन देन कानूनी है या नहीं। वो अलग अलग कॉर्पोरेशन को उनके अधिकारों के बारे में बताता है। लेकिन अगर वो ना हो तो भी सभी लेन देन अच्छे से हो सकते हैं और कॉरिशन को कानून के बारे में जानकारी मिल सकती है।
इस तरह की नौकरी का कोई मतलब नहीं है। अगर एक कार्पोरेट लॉयर काम करना छोड़ दे तो भी ये दुनिया अच्छे से चल सकती है। लेकिन हम में से कोई भी इस बात को खुलकर नहीं मानेगा कि उसका काम बेकार है या उसके काम करने का कोई मतलब नहीं बनता। हमारा ईगो हमें ऐसा करने से रोक लेता है।
दूसरी तरफ कुछ ऐसी नौकरियां हैं जिनका होना हमारे समाज के लिए बहुत ज्यादा जरूरी है लेकिन फिर भी लोग उन काम के कामों को करना नहीं चाहते। एज़ाग्पल के लिए आप साफ-सफाई करने वाले, किसान, घर बनाने वाले मजदूर और दूसरे लोगों को ले लीजिए। इनके काम को छोटा समझा जाता है लेकिन इन में से कोई भी अपने काम को बेमतलब का नहीं समझता। उन्हें पता है कि वे जो कर रहे हैं उससे इस दुनिया का कुछ मला हो रहा है और बिना उनके यहाँ के लोगों का चल पाना मुश्किल हो जाएगा।
नौकरों को कभी कभी सिर्फ इंप्रेशन बनाने के लिए काम पर रखा जाता है।
पहले के वक्त में जब राजा महाराजा अपने महल से बाहर निकलते थे तो उनके साथ बहुत से सिपाही और नौकर होते थे। उनका काम सिर्फ यह दिखाना था कि जो व्यक्ति महल से निकला है वो कोई आम व्यक्ति नहीं है। ठीक उसी तरह कुछ लोग आज भी नौकरों को सिर्फ इसलिए रखते हैं ताकि उनका अच्छा इप्रेशन बन सके।
बहुत सारे होटल में रिसेप्शनिस्ट का काम सिर्फ दरवाजे के सामने बैठना होता है। उनका फोन दिन में बहुत कम बजता है और ये बिना कुछ काम किए हर महीने की सेलेरी लेकर जाते हैं। होटल में उन्हें सिर्फ इंप्रेशन बनाने के लिए रखते हैं क्योंकि बिना रिसेप्शनिस्ट के होटल हाई-फाई होटल नहीं लगेगा।
होटल के दरवाजे के पास खड़े चपरासी का काम दरवाजे को खोलना होता है। मगर वो अपना काम छोड़ दे तो क्या वो दरवाजा नहीं खुलेगा?
इसके अलावा कुछ ऐसे भी लोग होते हैं जिनका काम लोगों को बेवकूफ बनाने का होता है। अक्सर आपने ब्यूटी प्रोडक्टस के ऐड में बहुत सारे मॉडल्स को किसी क्रीम या पावडर का ऐड करते हुए देखा होगा। आपकी जानकारी के लिए बता दे कि उनके ऊपर टेनोलॉजी की बहुत सी परतें चढ़ाई जाती हैं जिसकी वजह से वे बिल्कुल पर्फेक्ट दिखती हैं। क्या आपको वाकई लगता है कि केटरीना कैफ इसलिए इतनी सुंदर है क्योंकि वो 20र के लक्स साबुन से नहाती है या शाहरुख खान इसलिए इतना हैंडसम है क्योंकि वो 30र का फेयर एंड हैंडसम लगाता है?
बहुत सारे फिल्टर और फोटोशॉप का इस्तेमाल करने के बाद ये ऐड बनाए जाते हैं ताकि लोग इन पर भरोसा करें और इनके प्रोडक्ट बिकी हालांकि फोटोशॉप का इस्तेमाल सबसे ज्यादा फिल्मी दुनिया में होता है। लेकिन फिल्मों के बारे में हर किसी को यह बात पता होती है कि वे मनगढ़ित कहानियां हैं और उनका असल जिंदगी से ना के बराबर लेना देता है।
बहुत से लोगों का काम लोगों को बेवकूफ बनाने का है। वे लोगों को अपने प्रोडक्ट की तरफ आकर्षित करने का बना जाए।
अगर कुछ लोग अपना काम अच्छे से करें तो हमें कुछ तरह की नौकरियों की जरुरत नहीं पड़ेगी।
कंपनी में कुछ ऐसे लोग होते हैं जिनका काम बिन बुलाई समस्याओं से निपटना होता है। अगर कंपनी के किसी कप्यूटर में या किसी मशीन में कोई खराबी आ जाए तो उनका
काम उसे रिपेयर करना होता है। ऐसे लोगों को इक्टेपर के नाम से जाना जाता है। अगर कोई समस्या न हो तो हमें उनकी जरूरत भी नहीं होती। किसी बुरे हालात में अगर हमें किसी मकैनिक की जरूरत पड़ गई तो ऐसे में हमें इक्टेपर की याद आती है। लेकिन अगर बुरे हालात न आएँ तो हमें उनकी याद कभी नहीं आएगी। इसके अलावा कुछ ऐसे लोग होते हैं जो कंपनी के लिए दिखावा करने का काम करते हैं। बहुत से लोगों को काम पर इसलिए रखा जाता है ताकि वे यह दिखा सके,या इस बात की गवाही दे सके की कंपनी अपना काम सही से कर रही है।
एज़ाम्पल के लिए आप राधिका को ले लीजिए। उसका काम एक ऐसा रिपोर्ट तैयार करना है जिसमें यह लिखा हो कि कंपनी किसी भष्ट सप्लायर से अपना सामान नहीं मंगवा रही है। उसका काम सारे बॉक्स पर टिक करना होता था जो यह दिखाता था कि ये सामान भ्रष्ट सप्लायर से नहीं खरीदा गया है। इस तरह के लोगों को बॉक्सटिकर कहा जाता है।
डक्टैपर और बॉक्सटिकर को नहीं होती। अलावा हमारे पास तीसरे किस्म के लोग भी हैं जिन्हें हम टास्कमास्टर कहते हैं। ये लोग ऐसे सलाहकार होते हैं जिनके सलाह की जरुरत किसी
एजाम्पल के लिए एक सॉफ्टवेयर टीम के सुपरवाइजर को ले लीजिए। उसका काम सिर्फ यह देखना होता है कि सारे लोग अपना काम कर रहे है या नहीं। अगर प्रोग्रामर किसी ऐसी समस्या को लेकर फैस जाए जिसका हल वो खुल न निकाल पा रहा हो तो वो सुपरवाइजर से सलह माँग सकता है। लेकिन प्रोग्रामर्स अपने काम में माहिर होते हैं। उन्हें किसी के सलाह या देख रेख की जरूरत बहुत कम पड़ती है। इसलिए उस सुपरवाइज़र के होने का कोई फायदा नहीं है।
एक इंसान की ख्वाहिश होती है कि उसके काम का इस दुनिया पर कुछ असर हो लेकिन बेमतलब की नौकरियां उन्हें ऐसा नहीं करने देती।
बहुत सारे लोगों को पता है कि उनके काम बेमतलब के हैं। जैसा की आपने पहले सबक में देखा कि एक स्टडी में यह पाया गया कि 37% लोग अपने काम को बिना मतलब का मानते हैं। इस स्टडी का नतीजा युगो (YouGov) के पोलिंग के बाद सामने आया। इस 37% में से 4% लोग इस बात से खुश है लेकिन बाकी के लोग इससे नाखुश हैं। आइए हम इसकी वजह जानने की कोशिश करते हैं कि क्यों इतने सारे लोग अपने काम से नाखुश हैं।
1901 की एक स्टडी में कार्ल ग्रूस नाम के एक साइकोलाजिस्ट ने देखा कि अगर बच्चों को यह पता लग जाए कि उनके काम का एक नतीजा निकल रहा है तो वे बहुत खुश हो जाते हैं। अगर वे देखेंगे कि किसी स्विलौने को हिलाने से उसमें से भावाज निकल रही है तो उसे उसे बार बार हिलाएगे। ठीक ऐसा ही हमारे साथ भी होता है।
हर कोई चाहता है कि उसके काम का एक नतीजा निकले। लेकिन जब उसे लगता है कि उसका काम बेकार है तो चो इस बात को सह नहीं पाता।
एजाप्पल के लिए आप एक ऐसे व्यक्ति को ले लीजिए जो कि एक कंपनी के लिए एडवर्टाइजमेंट बैनर बनाने का काम करता है। ये बैनर बहुत सारे वेबसाइटों पर इस्तेमाल किए जाते हैं। उस व्यक्ति को पता है कि लोग उसके बनाए गए एडवर्टाइजमेंट को नहीं देखते और अगर वो बार बार उनके स्क्रीन पर आ जाए तो लोग उससे नफरत करते हैं। लेकिन फिर भी उसकी कंपनी अलग अलग वेबसाइट को बो ऐड बेचती है और क्योंकि वो उस कंपनी के लिए काम करता है उसे ये ऐड बनाने पड़ते हैं।
ऐसे हालात में जब उसे यह पता चलता है कि उसके काम को देखने से लोगों को परेशानी होती है तो वो अपनी नौकरी से नाखुश हो जाता है।
इसके अलावा बहुत सी ऐसी नौकरियां हैं जिनमें अपने कंपनी के सामान को लोगों को बेचने के लिए कर्मचारियों को झूठ बोलना पड़ता है या फिर उन से पूरी बात छिपाना होता है। इस तरह भी अपने काम से खुश नहीं रह पाते क्योंकि कोई बेईमानी के साथ तक काम करना पसंद नहीं करता।
आज के वक्त में हम काम को देखते हुए नहीं बल्कि समय को देखते हुए काम करते हैं।
क्या आपके साथ कभी ऐसा हुआ है कि आप ने अपने दिन भर का काम पूरा कर लिया हो लेकिन फिर भी आपको अपने आफिस में बैठे रहना हो क्योंकि अभी छूट्टी का समय नहीं हुआ? बहुत बार ऐसा होता है कि हम अपना काम पूरा कर चुके होते हैं लेकिन हमें फिर भी काम पर रुकना पड़ता है क्योंकि हम समय हिसाब काम करते हैं ना कि काम के हिसाब से।
जब लेखक एक होटेल में बर्तन साफ करने का काम करते थे तो अक्सर वो और उनके साथी काम जल्दी पुरा कर लिया करते थे। फिर वे एक जगह बैठ कर आराम किया
करते थे। लेकिन जैसे ही उनका बाँस उन्हें खाली बेठा देख लेता था वो गुस्सा हो जाता था। वो उनसे किचन साफ करने के लिए कहता था। जब वे कहते थे कि वे पहले ही
साफ कर चुके हैं तो उनका बॉस उन्हें फिर से साफ करने के लिए कहता था।
आज के वक्त का एम्प्लॉयर आपको आपके काम के लिए नहीं बल्कि आपके समय के लिए पैसे देता है पहले के वक्त में लोगों का काम जब पूरा हो जाता था तब वे अपने घर चले जाते थे। एक सफाई करने वाला जब परी बस्ती की सफाई कर लेता था तो चो बचा हुआ समय अपने हिसाब से बिताता था। पहले के बुक्त में काम करने का कोई समय नहीं होता था। एक किसान के खेतों में अगर रात के 1 बचे कोई जानवार घुस जाए तो वे यह नहीं कहता था कि मेरे काम करने का समय 9 से 5 बजे तक है। वो जा कर उस जानवर को खेत से निकालता था।
काम चाहे रात में आए चाहे दिन में, अगर वो पुरा नहीं होता तो उसे पूरा करना एक अच्छी नौकरी में होने की निशानी है। एक डॉक्टर को अगर रात में अस्पताल से फोन आ जाए तो वो मरीज को देखने के लिए जाता है और अगर अस्पताल में कोई मरीज नहीं है तो वह सुबह 10 बजे ही वापस घर आ जाता है। वो समय के हिसाब से नहीं काम के हिसाब से काम करता है।
हमारा कल्चर हमें अपने काम को अच्छे नजरिए से देखने की सलाह देता है।
हम में से बहुत लोगों ने स्कूल एसब्ली में वर्क इस वच्च्यू कर्म ही पूजा है की लाइन पर तालियां बजाई होंगी। हमारा धर्म और हमारा समाज हमें हमेशा से यह सलाह देता
आया है कि हमें अपने काम को पूरी लगन के साथ करना चाहिए। शायद इसलिए कुछ लोग अपने बेमतलब की नोकरियों पर रोज सुबह उठ कर जाते हैं। सदियों से लोग हमें यह शिक्षा देते आए हैं कि काग करने से भगवान खुश होता है। लेकिन 16वीं सताब्दी के। पुरीतनों ने बताया की काम एक सजा है। वो भगवान की दी हुई इस खूबसूरत जिन्दगी पर एक बोझ है। थॉमस कैरलाइल ( Thomas Cariyle ) एक बहुत प्रसिद्ध एस्सेइस्ट थे जिन्होंने कहा कि हमें मजदूरों को इसान की जरूरत पूरी करने
वाले और उनके आराम की भूख मिटाने वाले लोगों की तरह नहीं देखना चाहिए।
लेकिन हम में से बहुत से लोग इन सब बातों से वाकिफ नहीं है। आज के वक्त में लोग काम को इतना महत्व देते हैं कि एक व्यक्ति की पहचान उसके काम से ही की जाती है। जब आप किसी से पूछते हैं कि वो क्या कर रहा है तो भले ही वो अपनी नौकरी से नफरत करता हो लेकिन वो अपनी नौकरी के बारे में ही आपको बताएगा। कोई इस सवाल का जवाब आपको यह कह कर नहीं देगा कि उसे अपने खाली वक्त में कहानियां पड़ता है।
हमारे समाज का असर हम पर इतना ज्यादा हुआ है कि हम अपने बेकार के काम को करने में भी गर्व महसूस करते हैं। इसके अलावा बहुत से परिवारों में लोग अपने बच्चों को कभी रवाली नहीं बैठे रहने देते हैं। कुछ परिवारों में ऐसा होता है कि अगर एक पिता अपने बच्चे को खाली बैठा देख ले तो वो तुरंत उसके लिए एक काम खोज लेते हैं। वे उसे बाजार भेज देंगे, अपने किसी छोटे मोटे काम पर लगा देंगे या फिर पढ़ाई करने के लिए डाँट देंगे। उनके दिमाग में यह बात रहती है कि हमारा बेटा अगर खाली बैठेगा तो आलसी हो जाएगा। इसलिए उससे कुछ न कुछ काम करवाते रहना चाहिए भले ही वो बेमतलब का हो।
बेमतलब की नौकरियों के होने के पीछे बहुत सारी राजनीतिक और बिजनेस की बाते हैं।
अब आप सोच रहे होंगे कि अगर इस दुनिया में वाकई इतने सारे काम हैं जिनको करने का कोई फायदा नहीं है तो इससे पहले किसी का ध्यान इस पर क्यों नहीं गया? बिजनेसमैन क्यों ऐसे लोगों को काम पर रख रहे हैं जिन्हें कुछ भी नहीं करना है? कंपनियां क्यों ऐसे लोगों को सैलेरी देने में हर साल इतने पैसे बरबाद कर रही है? अगर हम इतने सारे लोगों को काम के काम पर लगा दें और जो पेसे इन्हें दिए जा रहे हैं उसे विकास में लगा दें तो सोविए ये दुनिया कितनी तेजी से विकास कर सकती है। लेकिन ऐसा हो क्यों नहीं रहा है?
इसकी वजह है बिजनेस और राजनीति। आप ने अक्सर नेताओं को वादे करते हुए सुना होगा कि अगर हमारी सरकार आई तो हम नौकरियों की लाइन लगा देंगे, कोई बेरोजगार नहीं रहेगा। लेकिन असल में आज के वक्त में टेकोलॉजी की वजह से बहुत कम नौकरियां रह गई हैं। नेताओं को यह बात पता है इसलिए वे बिजनेसमैन के पास जाते हैं ताकि वे उन से नोकरिया बढ़ाने की मांग कर सकें। बिजनेसमैन नेताओं से टैक्स से संबंधित समझौता करते हैं ताकि वे ज्यादा पेसा कमा सकें। इन तरह से नेता अपने फायदे के लिए और बिजनेसमैन अपने फायदे के लिए इन बेमतलब की नौकरियों को पैदा कर रहे हैं।
हालांकि बराक ओबामा ने इस समस्या को पहचाना और उन्होंने कहा कि इन नौकरियों को हटा देने से हम विकास की तरफ तेजी से बढ़ सकेंगे। लेकिन साथ ही उन्होंने यह
बात भी मानी कि इससे बहुत सारे लोग बेरोजगार हो जाएंगे और हमारे पास उन्हें खिलाने के लिए कुछ नहीं रहेगा।
इसके अलावा हमने पहले ही देख लिया कि बहुत से लोगों को काम पर सिर्फ इंप्रेशन बनाने के लिए रखा जाता है। अगर उन्हें काम से निकाल दिया जाएगा तो प्रेशन नहीं बन पाएगा और उनके और आम लोगों में कोई अंतर भी नहीं दिखेगा।
एज़ाम्पल के लिए सूरज को ले लीजिए जो कि अपनी कंपनी के लिए एक ऐसा सॉफ्टवेयर बनाता है जिससे बहुत सारे काम ऑटोमैटिक हो जाएंगे। लेकिन उसके साफ्टवेयर को कंपनी रिजेक्ट कर देती है। सूरज को बाद में यह बात समझ में आई कि उन्होंने उसके सॉफ्टवेयर को इसलिए रिजेक्ट कर दिया क्योंकि उसके आ जाने से बहुत लोगों का काम खत्म हो जाएगा।
इस तरह की नौकरियों को हटाने के लिए हमें लोगों को हर महीने की एक इनकम देनी होगी।
अगर हमें इन बेमतलब की नौकरियों को अपने समाज से हटाना है तो हमकुछ ऐसा करता होगा जिससे हर किसी को अपना काम चुनने की आजादी मिल जाए। हमें कुछ ऐसा
करना होगा जिससे लोगों की मजबूरियाँ खत्म हो जाए और वे अपने हिसाब से अपनी जिन्दगी बिता सकें। इसको लिए इमें सभी को फाइनेंशियल फ्रीडम देना होगा। अगर हम हर किसी को महीने का खर्च चलाने के लिए कुछ रुपये दे दे जिससे वो बिना काम किए भी अपना खर्च चला सके तो हम में से हर कोई बो कर सकेगा जो चो करना
चाहता है। इसके बहुत से फायदे हैं।
कोई भी किसी के ऊपर हुकुम नहीं चला सकेगा। हमें पता है कि कर्नचारी पैसों के लिए काम करते हैं और उनके बॉस उनसे अपने हिसाब से काम करवाते रहते हैं क्योंकि उन्हें भी पता है कि बिना पैसों के उनका रह पाता नामुमकिन है। वो उनकी मजबूरी का फायदा उठाते हैं। लेकिन अगर हम हर किसी को हर महीने कुछ रुपये देंगे तो कर्मचारी अपना काम छोड़ सकता है और उसे इसका अजाम भी नहीं भुगतना होगा।
इससे लोग वो काग चुन सकेगे जो पसंद है। अब क्योंकि उन्हें पैसों की चिंता करने की जरूरत नहीं है इसलिए वे वो काम करने में नहीं हिचकेंगे जिसमें पैसे का मिलते थे। ना
ही वे किसी काम को बड़ा या छोटा समझेंगे।
जब लोगों के पास काम चुनने की आजादी होगी तो वे वही काम करना चाहेंगे जिसे करने से समाज का कुछ भला हो रहा हो। कोई भी अपना समय बिना फायदे के काम को करने में नहीं बिताना चाहेगा। इस तरह हम बेमतलब की नौकरियों से छुटकारा पा सकते है। इससे दुनिया की सारी समस्याए हल नहीं हो जाएगी लेकिन अगर हम इतने सारे लोगों से बेमतलब का काम करवाने की बजाय कुछ अच्छा काम करवाएँ तो यह दुनिया पहले से अच्छी जगह जरूर बन जाएगी।