BATTLE HYMN OF THE TIGER MOM by Amy Chua.

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यह किसके लिए है

वे लोग जो बच्चे या उनके माता पिता के साथ काम करते हैं।

-वे माता पिता जो अपने बच्चों की देखभाल पश्चिमी तरीकों से नहीं करना चाहते।

वे लोग जो एक अलग तरीके के परिवार के बारे में ज्ञानना चाहते हैं।

लेखिका के बारे में

एमी चुमा येल लॉ स्कूल (Vale Law Schod) में लॉ की प्रेफेसर हैं। उनकी किताब है माछापावर ( Day Or Empire ) एक बेस्ट सेलर किताब है। इस किताब में उन्होंने बताया है कि कैसे बड़ी बड़ी शक्तियाँ दुनिया पर राज करती हैं और क्यों उनका पतन होता है। 2011 में पैटाहम मैगजीन के 100 सबसे प्रभावशाली लोगों में से एक थी।

ये सबक आप को क्यूँ पढ़ने चाहिए? टाइगर मदर बनने के तरीकों के बारे में जानें।

एक अच्छे माता-पिता को अपने बच्चे का साथ हमेशा देना चाहिए। यह आपका मानना हो सकता है पर एमी चुआ का नहीं। एमी चुभा मानती है कि आपको अपने बच्चे से

बहुत सारी माँगें करनी चाहिए। आपको उसे परेशानियों में डालना चाहिए और उसपर भरोसा करना चाहिए कि वो उन परेशानियों से खुद निकल कर सफलता की ओर बढ़ सकता है।

आने वाले सबक में हम सीखेंगे कि एमी चुआ ने कैसे चाइनीज़ तरीकों से अपने बच्चों को बड़ा किया और कैसे यह उनके लिए एक सफल तरीका रहा।

इसे पढ़कर आप सीखेंगे कि

  • क्यों स्कूल के खेल टाइगर माम के लिए जरूरी नहीं है।
  • क्यों चाइना के माता पिता अपने बच्चे के आत्मसम्मान की परवाह नहीं करते।

• अपने बच्चे को वजन कम करने के लिए डाँटना क्यों ठीक है।

चाइना और पश्चिमी देशों के माता पिता के विचारों में बहुत अंतर होता है।

हर माता पिता अपने बच्चे की परवरिश अच्छे से अच्छे तरीके करना चाहते हैं। पर इस मामले में चाइना और पश्चिमी देशों के माता पिता की सोच में बहुत अंतर है। इन में से तीन अंतर ये हैं:

पहला: जब बच्चे के आत्मसम्मान की बात आती है तो पश्चिमी देशों के माता पिता उसके आत्मसामान को ठेस नहीं पहुँचाना चाहते। उनके फेल होने या हारने पर वे उनसे प्यार से बातें करते हैं और उनकी भावनाओं को ठेस नहीं पहुँचाते। जबकि एक चाइनीज़ माता पिता अपने बच्चे के आत्मसम्मान की फ़िक न करते हुए उसे और बेहतर बनाने के लिए उसपर दबाव डालते हैं। वो उन्हें अन्दर से मज़बूत बनाते हैं।

दूसरा: चाइनीज़ माता पिता सोचते हैं कि उनके बच्चों पर उनका कर्ज है।

पक्षिमी देशों के माता पिता का मानना है कि एक माता या पिता बनने का फेसला उनका था इस लिए ये उनका कर्तव्य है कि वो अपने बच्चों की देख भाल करें। उनके बच्चों का उनके लिए कोई फ़र्ज़ नहीं बनता। लेकिन चाइना के माता पिता का कुछ और ही मानना है। उनका गनना है कि उन्होंने अपने बच्चे को एक अच्छी जिन्दगी और शिक्षा देने के लिए बहुत मेहनत की है। इसलिए ये उनके बच्चे का फ़र्ज़ है कि वो जीवन भर उनकी सेवा करे और उनके लिए गर्व का कारण बने।

तीसरा: चाइना के माता पिता जानते है की उनके बच्चे के लिए क्या सही है।

पश्चिमी देशों के माता पिता अपने बच्चों के भविष्य को उनके हाथ में सौंप देते हैं। उनका मानना है कि उनके बच्चे को वही करना चाहिए जो उसे अच्छा लग रहा है। लेकिन चाइना के माता पिता अपने बच्चे को वो करने के लिए कहते हैं जो उसके लिए अच्छा है। उनका मानना है कि उनके बच्चे को वहीं काम करना चाहिए जिसमें वो सफल हो सके।

चाइनीज़ पैरेंट्स अपने बच्चों को हार नहीं मानने देते। वो उन्हें भविष्य के लिए तैयार करते हैं।

अगर बच्चा किसी काम में अच्छा नहीं है तो पश्चिमी देशों के पैरेंट्स उसे दिलासा देते हुए वो काम नहीं करने को कहते हैं, जबकि चाइनीज़ पैरेंट्स उसकी कमजोरी को उसकी

ताकत में बदलने की हर मुमकिन कोशिश करते हैं। उनका मनना है कि अपनी कमजोरियों को कमजोर करने से ही हम सफल होते हैं। वाइनीज़ पेरेंट्स अपने बच्चे को हर मुश्किल हालात का सामना करने देते हैं जबकि पक्षिमी देशों के पेरेंट्स अपने बच्चे को वो काम नहीं करने देते जिसमें वो कमज़ोर हैं। चे उनके आत्म सम्मान को ठेस नहीं पहुँचाना चाहते।

जैसे कि लेखिका की माँ लुसिआ (Louisia) को पियानो बजाने का काम मिला जो कि बहुत मुश्किल था। इसमें दोनों हाथों को अलग अलग धुन बज्ञानी थी। जब काफी समय तक कोशिश करने के बाद भी वो पियानो न बना पायीं तो उन्होंने हार मानने का फैसला किया। लेकिन उनकी मां ने उनसे कहा कि वो बेहतर कर सकती है। उनकी मां ने उन्हें आगे बढ़ने के लिए उनपर दबाव डाला और अत में लुसिआ को पियानो बजाना आ ही गया। वो बहुत खुश हुई और कुछ दिनों तक उन्होंने उस धुन को बार बार बजाया।

लेखिका ने अपने जीवन में कभी कोई फैसला खुद से नहीं किया। उनके पेरेंट्स ने उन्हें बताया कि उनके लिए क्या सही है और क्या करने से वो सफल हो सकती ठीक हो सकता है कि उनके पास आजादी नहीं थी। लेकिन आज अपनी सफलता को देखकर उन्हें अपने पैरेंट्स पर गर्व है।

चाइनीज पैरेंट्स अपने बच्चों को हर वो काम करने के लिए कहते है जिससे उन्हें सफलता मिले। जबकि पश्चिमी देशों के पैरेंट्स अपने बच्चों को चो करते देते है जो उन्हें अच्छा लगता है।

चाइनीज़ पैरेंट्स अपने बच्चों को वो देते है जो उनके लिए अच्छा है, न की वो जिनसे उन्हें खुशी मिले।

एमी चुआ के माता पिता के सख्त होने के बावजूद भी वो अपने बचपन में बहुत खुश रहती थी। उनकी खुशी पर पैरेंट्स के सख्त होने का कोई असर नहीं पड़ा।

किसी भी नए काम के शुरुवात में कुछ मुश्किलें होती है। इसलिए ज्यादातर बच्चे उन्हें नहीं करते। पर टाइगर माम्स उन्हें ये काम करने पर मजबूर करती है। वाइनीज़ ऐरेंट्स का गनना है कि जब तक उनके बच्चे उस काम में माहिर नहीं हो जाएँगे, तब तक उन्हें उसमे मज़ा नहीं आएगा। और अपने बच्चों को उसमें माहिर बनाने के लिए वो उनसे कड़ी मेहनत करवाते हैं।

उदाहरण के लिए एमी चुभा की बेटी सोफिया को ले लीजिये। पियानो सीखने के शुरुवाती दिनों में उसके लिए चीजे बहुत मुश्किल थी। लेकिन एमी चुभा ने उससे रोज़ 3 घंटे प्रक्टिस करवाई। देखते ही देखते वो बहुत अच्छा पियानो बजाने लगी और सब उसकी तारीफ करने लगे। तारीफ की वजह से सोफ़िया का आत्मविश्वास बढ़ा और पियानो बजाना उसे अच्छा लगाने लगा।

चाइनीज़ पेरेंट्स अपने बच्चों की खुशी को ज्यादा महत्तब नहीं देते लेकिन फिर भी उनके बच्चे बहुत खुश रहते हैं।

अगर आप एक चाइनीज़ बच्चे के रोज़ के काम को देखें तो आप सोचेंगे कि इतना काम होने पर कोई खुश कैसे रह सकता है। लेकिन जब एमी चुमा पश्चिमी देशों के बच्चों को बार बार टूटते हुए देखती है, तो उन्हें हैरानी होती है कि इतना कम काम होने पर भी वो कैसे हार जाते हैं, जबकि उन्हें हैंसने और खेलने की पूरी छूट दी जाती है।

पक्षिमी देशों के ज्यादातर बच्चे अपने पेरेंट्स के आस पास नहीं रहना चाहते। कुछ तो उनसे बातें भी नहीं करना चाहते। लेकिन एशिया के बच्चों को अपने पेरेंट्स के पास होने पर खुशी होती है। उनके पेरेंट्स के सख्त होने के बावजूद भी वो उनसे खुश है। इसलिए चाइनीज़ पैरेंट्स अपने बच्चों को बचपन में खुशियाँ और आराम देने में भरोसा नहीं करते।

चाइना में बच्चों की देखभाल करने के तरीके सख्त हैं पर वहाँ के पैरेंट्स को इससे कोई परेशानी नहीं है।

पश्चिमी देशों के पेरेंट्स अपने बच्चों के साथ बहुत ही नरमी से पेश आते हैं। वो उनके आत्मा सम्मान को ठेस नहीं पहुँचाते। पर चाइनीज़ पैरेंट्स अपने बच्चों से बहुत ही सख्ती से पेश आते हैं। पक्षिमी देशों के पेरेंट्स अपने बच्चों से उनकी सेहत के बारे में भी बात करने से हिंचाकिवाते हैं, जब्कि चाइनीज़ पेरेंट्स को अपनी बेटी से वजन कम करने के लिए कहने में कोई हिचकिचाहट नहीं होती।

पश्चिमी देशों के पैरेंट्स ये दिखाने की पूरी कोशिश करते है उन्हें अपने बच्चों की हार से कोई परेशानी नहीं है जबकि चाइनीज़ पेरेंट्स अपने बच्चों के आत्मसम्मान की परवाह किये बगैर उन्हें आगे बढ़ने पर मजबूर करते हैं।

मगर क्या अपने बच्चों के आत्मसम्मान को ठेस न पहुँचाने से कोई फायदा होता है? नहीं, बल्कि इससे उनमें एक नेगेटिव सेल्फ रेस्पेक्ट की भावना आ जाती है और उन्हें ज्यादा खाना खाने की आदत पड़ जाती है।

जब एमी चुमा एक चाइनीज़ मेडिकल स्टोर पर खड़ी थी, तो मेडिकल स्टोर का मालिक टूटी फूटी इंग्लिश में उनसे कह रहा था – मेरी बेटी स्मार्ट है पर मेरा बेटा स्मार्ट नहीं है।

एमी चुआ बताती है कि पश्चिमी देशों के पेरेंट्स अपने बच्चों की तुलता दूसरों से नहीं करते। उनका मानना है कि इससे उनके बच्चों के आत्म सम्मान को ठेस पहुंच सकती है। एमी चुआ भी एक हद तक इससे सहमत है, पर वो ये नहीं मानती कि ये उनके बच्चों के लिए नुकसानदायक है, क्योंकि बचपन में जब उनकी तुलना किसी और से की जाती थी तो वो उस काम को और अच्छा कर के दिखाती थीं।

सख्त व्यवहार यूनाइटेड स्टेट्स के चाइनीज़ परिवारों में एक परंपरा रही है पर नयी पीढ़ियों में ये परंपरा ख़त्म हो रही है।

जब एमी चुआ पिछली तीन पीढ़ियों की तुलना आने वली पीढियों से करती है तो उन्हें लगता है कि आने वाली पीठिया अपनी पिछली पीढ़ियों जितनी सफल नहीं हो पाएगी।

पहली पीढ़ी बहुत ही सख्त और मेहनती थी। एगी चुआ के पेरेंट्स इस पीढी से थे। उनके पास पैसों की बहुत कमी थी, पर अपनी कड़ी मेहनत और सख्त व्यवहार से उन्होंने सफलता हासिल की। अपने बच्चों की आँखों में वो सख्त रहे होंगे पर उन्होंने जो भी कमाया उसे उन्होंने अपने बच्चों की पढ़ाई और उनके भविष्य में लगाया।

दूसरी पीढ़ी ने अपने पैरेंट्स की मेहनत का फायदा उठाया और अपने बच्चों को भी उसी तरीके से बड़ा किया। इस पीढ़ी के लोग अपने पैरेंट्स की वजह से सफलता हासिल कर पाए। उन्होंने वाइलिन और पियानो बजाना सीखा और अच्छी यूनिवर्सिटी में पढ़ाई की। लेकिन वो अपने पेरेंट्स जितने सख्त नहीं थे।

मगर आज की पीढ़ी आराम के माहौल में पैदा हुई है। इस पीढ़ी को बो परवरिश नहीं मिल रही है जो इनके माता पिता को मिली थी। ये बच्चे प्राइवेट स्कूलों में जाते हैं जहाँ इनके दोस्तों को B+ पाने पर भी इनाम दिया जाता है, जो कि एक चाइनीज़ परिवार सोच भी नहीं सकता। ये अपने पैरेंट्स की बात नहीं मानते। एगी बुआ के हिसाब से, ये पीढ़ी पतन की तरफ बढ़ रही है।

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