AGAINST THE GODS by Peter L.Bernstein.

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About Book

क्या ये बात आपको पता थी कि गैंबलिंग की शुरुवात जानवरों की हड्डियों से बने डाइस से हुई थी ? और क्या आप ये भी जानते है कि ग्रीक्स लोग इस बात पे यकीन करते थे कि इन्सान की किस्मत का फैसला भगवान् के हाथो में है, और यही वजह थी कि ग्रीक्स कभी फ्यूचर की टेंशन नहीं लेते थे. इस बुक में आप प्रोबबीलीटीज़ और रिस्क के बारे में पढोगे. और साथ ही आप इसमें बर्नोली पोइंकेयर (Bernoulli and Poincare) जैसे मैथमेटीशियन के बारे में पढ़ेंगे और साथ ही रिग्रेशन टू द मीन जैसे मज़ेदार कॉन्सेप्ट्स भी आपको पढने को मिलेंगे.

ये समरी किस-किसको पढ़नी चाहिए?

जो लोग statistician बनना चाहते है जो लोग मैथमेटीशियन बनना चाहते है

.

प्रोबबीलीटीज़ और लक के गेम में रुचि रखने वाले लोग

ऑथर के बारे में

पीटर बर्नस्टीन (Peter Bernstein ) एक इकोनोमिस्ट, एजुकेटर और राइटर थे. इन्वेस्टमेंट इकोनोमिक्स के मामलो में वो अपने समय के बेस्ट एक्सपर्ट माने जाते थे. बर्नस्टीन ने इकोनोमिक्स और फाईनेंस पर 10 किताबे लिखी और साथ ही उनके कई आर्टिकल्स बड़े-बड़े पब्लिकेशन जैसे द वाल स्ट्रीट जर्नल और हार्वर्ड बिजनेस रीव्यू में छप चुके है.

इंट्रोडक्शन

क्या आपने कभी सोचा है, ये दुनिया कैसे बनी? इंसानी सभ्यता यहाँ तक कैसे पहुंची? या फिर ये कहे कि कब इंसान को ये यकीन हुआ कि उसकी

किस्मत का फैसला ग्रीक गोड्स के हाथों में नहीं बल्कि खुद उसके हाथ में है ? इस बुक में आप जानेंगे कि प्रोबबीलीटीज़ यानी संभावनाओं की, रिस्क लेने की और जुआ यानी गेंबलिंग की शुरुआत कैसे हुई और आप ये जानकर

हैरान रह जायेंगे कि ये सब एक दूसरे को कितनी गहराई से अफेवट करते है. आपको ये भी पढने को मिलेगा कि गैंबलिंग किस फॉर्म में शुरू हुआ था की और इंसानियत पर इसका किस हद तक और कैसा असर पड़ा.

इस बुक में आप उन महान लोगों के बारे में भी पढ़ेंगे जो बहुत दूर की सोच रखते थे और जिन्होंने ऐसी नींव रखी जो आज हमारे प्रोबबिलीटीज़ और रिस्क फैक्टर के नॉलेज का बेस है.

तो क्या आप टाइम ट्रेवल करने के लिए तैयार हैं ?

To 1200: Beginnings

गैंबलिंग जिसे हम आमतौर पर दांव लगाना या जुआं भी बोलते है, हमेशा से ही ह्यूमन हिस्ट्री का एक पार्ट रहा है बल्कि यूं कह सकते है कि ये रिस्क टेकिंग का सबसे पुराना तरीका है. कहा जाता है कि जब जीसस क्राइस्ट को सूली पर चढ़ाया जा रहा था तो उस वक्त पौटियस पाइलेट (Pontius Pilate) के सैनिको ने शर्त लगाई थी कि जीसस का चोगा कौन लेगा. वे भी कहा जाता है कि अर्ल ऑफ़ सैंडविच ने सैंडविच इसीलिए बनाया था ताकि उन्हें अपनी गैंबलिंग टेबल से उठना ना पड़े. क्या आपको नहीं लगता

है जीतना कितना एक्साईटिंग है? हम जब किसी भी तरह की शर्त लगाते है या जुआ खेलते है, तो हमे लगता है कि किस्मत हमारा साथ देगी और अगर

सही लग जाए तो हम और बड़ा रिस्क लेने को भी तैयार रहते हैं. और अगर ऐसा नहीं होता, तो भी हम ये सोचकर दांव लगाते रहते हैं कि हमारा तुक्का सही लगा ये नही तो अगला वाला दांव तो ही जायेंगे,

पर क्या कभी आपने सोचा है, गैंबलिंग की शुरुवात आखिर हुई कैसे ? जानकारो का मानना है कि भेड़ या हिरन के पैर की हड़डी,जिसे एस्टैगलस (astragalus) बोला जाता इसे आमतौर dice जो देखने में चौकोर होती है, शायद इसे इंसान ने पहली बार खेलने के लिए इस्तेमाल किया होगा. मॉडर्न समय में, में जाना जाता है. इस बात के सबूत ईजिप्ट के पिरामिड की दीवारों पर बनी पेंटिंग्स से मिलते है जिसमे लोगों

को एस्ट्रगलस से खेलते दिखाया गया. यही नहीं ग्रीक सिविलाईजेशन में जानवरों की हड्डियों को डाइस बनाने में यूज़ किया जाता था, इस बात का प्रूफ फूलदानों पर बनीं तस्वीरों से मिलता है जिसमें आदमियों को छोटे से गोले में हड्डी फेंकते हुए दिखाया गया है. अब बात करते है कैसिनो की जोकि दुनिया भर में सबसे ज्यादा खेला जाने वाला गैंबलिंग गेम है. इसके अलावा हॉर्स रेस और डॉग रेस भी काफी पॉपुलर है जहाँ काफी बड़े-बड़े दांव लगाए जाते है. ये सारे गेम्स इस बात का प्रूफ है कि रिस्क लेना या खतरा मोल लेना सदियों से इन्सान की फितरत रही है.

दरअसल ग्रीक सिवाइलेशन में माना जाता था कि इस दुनिया की शुरूवात ही गैंबलिंग से हुई है. ज़्यूस, पोसायडन और हेड्स (Zeus, Poseidon, and Hades,) तीन गाँड थे जो भाई थे, उन्होंने डाइस रोल करके आपस में दुनिया को बाँट लिया था. ज्यूस ने स्वर्ग लिया, पोसायडन को समुद्र का राज मिला और हेड्स को अंडरवर्ल्ड यानी पाताल लोक मिला. इस बात से पता चलता है कि पुराने वक्त से ही ग्रीक लोगो को गैंबलिंग का कितना शौक था, उनका इतिहास एक राज है और उन्होंने प्रोबबीलीटीज़ स्टडी करने की शायद ही कभी कोशिश की हो, ग्रीक लोगों को अपने सवालों का जवाब पाना और उसके पीछे लोजिकल एविडेंस ढूंढना अच्छा लगता था. इसके बावजूद उन्हें फ्यूचर के बारे में जानने की ज्यादा दिलचस्पी नहीं थी. इसका एक एक्जाम्पल ये है कि वो किसी बात को प्रेडिक्ट करने के लिए लोजिक के बजाए ओरेक्लस के पास जाते थे. इसके पीछे बजह ये थी कि ग्रीवस अपने गोड्स पर बहुत ज्यादा भरोसा करते थे और ये मानकर चलते थे कि उनकी तकदीर गोंड पहले ही लिख चुका चाहे कुछ भी हो जाए उनके गोद ज़ीउस की कही बात ही उनके लिए फाइनल डिसीजन होती थी. यानी गॉड के फैसलों में दखल देने का मतलब था

सजा-ए-मौत.

हमारे पूर्वज फ्यूचर में क्या होगा, कैसे होगा, इन बातों को ज्यादा इम्पोर्टस नहीं देते थे. उन्हें सिर्फ दो चीजों से मतलब था, एक तो सरवाईव् करना ग्रानी किसी तरह जिंदा रहना और दूसरा, बच्चे पैदा करना. पर ये भी सच है कि अगर वो लोग हंटिंग और फिशिंग के अलावा बाकि चीजों के बारे में सोचते तो सर्वाइव कैसे करते? लेकिन सभ्यता के विकास के साथ ही प्रोबबीलीटीज़ की अहमियत भी बढ़ती चली गई, जब ईसाई धर्म तेज़ी से फैल रहा था तो लोग सोचने पर मजबूर हो गये कि उनके बिहेवियर से उनके स्वर्ग में जाने के ज्यादा चांस है या नर्क में जाने के. अब लोग अपने फ्यूचर को लेकर भी कई तरह प्रोबबीलीटीज़ सोचने लगे थे.

किश्चिनिटी को दुनिया के हर कोने तक फैलाने के लिए धर्मयुद्ध किये गए. ईसाइयों ने अरबों से मुकाबला किया जो हिन्दू नंबर सिस्टम सीख रहे थे. हिन्दू नंबर सिस्टम की बदौलत दुनिया की हर सिविलाइजेशन में काफी बड़े बदलाव आये. अब गिनती करना बेहद आसान हो गया था और साथ ही इससे टाइम, ट्रेवलिंग और आर्किटेक्चर का एकदम सटीक अनुमान लगाने में भी काफी मदद मिली. रेनेसांस (Renaissance) पीरियड के दौरान रिस्क और प्रोबबीलीटीज़ को सबसे ज्यादा अहमियत मिली. लोग अब इस बात पे यकीन करने लगे

थे कि ऊपरवाला उनकी किस्मत का फैसला नही करता. बल्कि वो खुद अपनी किस्मत के जिम्मेदार है. हम जैसा करेंगे, हमे रिजल्ट भी वैसा ही मिलेगा..

इस दौर के आते-आते लोग अपने फ्यूचर के बारे में सोचने लगे थे,

1200-1700: अ थाउजेंड आउटस्टैंडिंग फैक्ट्स (एक हजार आउटस्टैंडिंग सच) A Thousand Outstanding Facts रैनेसांस (Renaissance) एक ऐसा वक्त था जिसमे इंसान की नॉलेज काफी बढ़ी. आर्ट से लेकर मैथमेटिक्स तक हर फील्ड में इम्परूवमेंट आई. आज आप अपनी हिस्ट्री बुक्स में जितने भी महान लोगो के बारे में पढ़ते हो, दो सब रेनेसाँस पिरियड के ही थे. और उन्ही में से एक थे, लुका पैचियोली (Luca Paccioli)

लुका इटली के महान मैथमेंटीशियस में से एक थे. उनका सबसे फेमस वर्क है, उनकी किताब सुम्मा डे एरिदमेटिक,जियोमेट्रीया एट प्रोपोर्शनेलिटा (Summa de arithmetic, geometria et proportionalita.) सुम्मा में बेसिक एलजेबरा की जानकारी के अलावा 60X60 तक मल्टीपिकेशन टेबल्स है. अब क्योंकि नंबर सिस्टम उन दिनों एकदम नया-नया था तो ख़ासलौर पर रेनेसांस पीरियड में ये सारे टोपिक्स बड़े काम आए. हमे ये याद रखना चाहिए कि प्रोबेबीलीटीज़ या रिस्क कैलकुलेट करने जैसे कॉम्प्लेक्स कॉन्सेप्ट्स की शुरुवात कहीं न कही से तो हुई होगी. तो लुका जैसे लोगो ने ही हमारे लिए उस रास्ते की नींव रखी थी, जिस पर आज हम चल रहे है,

साँस के दौर का एक और इंसान है जो बदकिस्मती से उतना फेमस नही हो पाया, गिरोलामो का्डानो (Girolamo Cardano) पेशे से

फिजिशियन था. लेकिन गिरोलामो को अपने डॉक्टरी के ईज्जतदार पेशे की बजह से नही बल्कि अपने गैबलिंग के शौक की वजह से पहचान मिली. उसे गैंबलिंग का इतना शौक था कि उसने इस पर एक बुक ही लिख डाली थी. इस बुक का नाम है लिबर डे लुडो एलिया (Liber de Ludo Aleae ) जिसे Book on Games of Chance भी कहते है. एलिया बुक में डाइस के गेम का जिक्र आता है और इसमें गिरोलामो ने ये भी बताया है कि गैंबलिंग की शुरुवात सबसे पहले कहाँ हुई थी. यही वजह है कि ये ऑफिशियली पहली किताब मानी गई है जिसमे प्रोबदीलीटी और स्टेटिसटिक्स पर गंभीरता से लिखा गया है. हालाँकि इस बुक में

एक बार भी गिरोलामो ने प्रोबेबीलिटी मेंशन नही किया है बल्कि उसने चासेस” वर्ड यूज़ किया है क्योंकि गेंबलिंग में खेलने वालों को कई ऐसे चांसेस

मिलते है जहाँ उन्हें अपनी हार या जीत का ज़रा भी अंदाज़ा नही होता.

वक्त के साथ-साथ प्रबबीलीटी के मायने भी बदलले गए. लीबनिज (Leibniz) नाम के एक जर्मन स्कोलर ने प्रोबबीलीटी को एक ऐसी चीज़ बताया है जो एविडेंस और रीजन से तय होती है. इसका एक और मतलब है यानी आपके अंदाजे किस हद तक सही निकलेंगे, उसे प्रोबबीलीटी बोल सकते है. गिरोलामो के वक्त में प्रोबेबिलिटी को इंसान के दम-खम या रिस्क लेने की हिम्मत से जोडकर देखा जाता था. यानी किसी बात या घटना के होने का आपको किस हद तक यकीन है?

पर गिरोलामो ही वो पहला आदमी था जिसे लगता था कि प्रोबबीलिटी को मैथमेटिक्स की नजर से देखा जाना चाहिए. यानी दुसरे शब्दों में कहे तो उसके हिसाब से प्रोबबीलिटी को ना सिर्फ मापा जा सकता है बल्कि एकदम सही अनुमान भी लगाया जा सकता है.

हालाँकि गिरोलामो उस हद तक कभी पहुंचा ही नहीं, वो जानता था कि प्रोबबीलिटी को लेकर उसकी सोच किसी इन्वेंशन से कम नही है. इसीलिए उसने इस पर लिबर डे लुडो एलिया (Liber de Ludo Aleae) नाम से बुक लिख दी जो उसकी सबसे बड़ी अचीवमेंट थी, गिरोलामो ने यहाँ तक कहा था कि सिर्फ उसकी डिस्कवरी की वजह से ही लोग थाऊर्जेड आउटस्टैंडिंग फैक्ट्स के बारे में जानते है. बैशक गिरोलामो गैंबलिंग के पीछे के फैक्ट्स की

बात कर रहा था,

1700-1900 मेजरमेंट अनलिमिटेड (Measurement Unlimited)

एक और महान इंसान जिसने रिस्क और प्रोबेबीलीटी को आपस में जोड़ कर देखा था, स्विस मैथेमेटीशियन डैनियल बर्नोली (Daniel Bernoulli) था. रिस्क अब एक ऐसा इंट्रेस्टिंग कांसेप्ट बन चूका था जो इंटेलेक्चुअल्स स्टडी करते थे. क्या आपको नहीं लगता जब गैंबलिंग में ज्यादा रिस्क होता है तो और मजा आता है? बर्नोली ने ना सिर्फ इस सब्जेक्ट को अच्छे से स्टडी किया था बल्कि उसने इसे ह्यूमन बिहेवियर से भी जोड़ा, कोई

इंसान किस हद तक रिस्क लेने को तैयार होता है? एक अमीर और फेमस फेमिली से बिलोंग करने वाले बनौली कमाल के इंसान थे. वो मैथमेटिक्स, स्टेटिसस्टिक, प्रोबबीलिटी और रिस्क में माहिर थे, उनका मानना था कि कोई इन्सान अपनी प्रोबबीलीटी को कितनी अहमियत देगा, ये एक क्रूशियल फैक्टर पर डिपेंड करता है. यूटीलिटी या यूज़फ़ुलनेस वो क्रूशियल फैक्टर है जो हमेशा एक इंसान के दिमाग में रहती है.

बर्नोली के टाइम पर एंटोनी अनौल्ड (Antoine Arnauld) नाम के एक राइटर ने उसके आईंडिया के खिलाफ आग्ग्यमेंट दिया था, अनौल्ड ने पॉइंट

किया कि जो लोग बिजली और तूफान से डरते है, उन पर ही बिजली गिरने के चांस ज्यादा बढ़ जाते हैं. लोगों को पता है कि बिजली गिरने का चांस बहुत कम है तो फिर क्यों वो तूफान से इतना डरते है? दूसरे शब्दों में कहे तो कैसे लोग बेहद कम प्रोबबीलीटी के बेस पर अपने ऊपर बिजली गिरने से डरते है? चांसेस कम है ये जानते हुए भी लोग डरते हैं, क्या ये बेवकूफी नहीं है? पर बर्नोली के पास इसका जवाब था. रिस्क और प्रोबबीलिटी भांपने के हम सबके अपने-अपने तरीके है. कुछ लोगो को खुद पर बिजली गिरने का डर सताता हे बेशक चांसेस ना के बराबर हो. जबकि कुछ लोग ऐसे भी है जो थंडरस्ट्रोम में भी बिना किसी डर के बाहर निकलते है. तो जब प्रोबबीलिटी काफी कम है तो उन्हें फ़िक्र करने की क्या जरूरत है? ये तो बस अपना-अपना तरीका है कि आप रिक्स या प्रोबबीलीटी को किस नजर से देखते है. अब जैसे कुछ लोगों को लगता है कि खास बिजनेस में अगर में एक छोटी रकम इन्वेस्ट करने से पैसा कमाने के थोड़े बहुत भी चांस है तो उन्हें इन्वेस्ट कर लेना चाहिए. जबकि कुछ लोग बड़ी शुरुवात करना पसंद करते वो किसी बिजनेस में काफी पैसा लगा लेते है क्योंकि उन्हें लगता है

जितना बड़ा इन्वेस्टमेंट उतना बड़ा प्रॉफिट तो रिस्क लेने का सबका अलग नजरिया होता है. बर्नोली अपने वक्त से कहीं आगे की सोच रखता था, उसके सोचने का तरीका बड़ा ही एडवांस और इम्प्रेसिव था. ये कांसेप्ट भी उसी के दिमाग का आईडिया था कि इन्सान रिस्क फैक्टर के बारे में सोचते हुए डिसीजन लेता है, एक रेशनल वर्ल्ड में हम सब गरीबी के बजाए अमीरी चूज़ करेंगे, हालाँकि

हम और अमीर होने से रोका जाता है क्योंकि हम पहले ही अमार हो डत हर का साडी तडी ही लगाई है, जैसे-जैसे आपकी दौलत बढती जाती है ईटे इमेजिन करो कि आपकी सारी दौलत ईंटो छोटी होती जाती है और आपकी दौलत का भंडार एक पिरामिड जैसा लगता है. आप टॉप की एक ईंट निकाल कर उसकी जगह एक छोटी ईट रख लेते बर्दाश्त नहीं कर सकते. असल में गैंबलिंग और रिस्क लेते है. फाउंडेशन पर आपने आपको पहले जैसी सेटिस्फेक्शन नहीं मिलती. यानी आप एक ईंट का भी नुक हे कहे कि हम अपनी हार पचा ही नहीं पाते हं

वक्त इन्सान की फितरत कुछ ऐसी ही जरा बर्दाश्त नहीं होती बल्कि यु। इस कांसेप्ट को और अच्छे से समझाने के लिए इमेजिन करते है कि दो लोग र् लगा रहे है आदमी ने सिक्का उछाला और शर्त लगाई कि हेड्स होगा जबकि दूसरे को लगता है कि टेल्स होगा. दोनों में से हर एक के पास $100-S100 है और उन दोनों ने शर्त में $50 और जोड़ दिए है. अब उन दोनों के जीतने के 50-50 चांसेस है और उनमे से एक $150 डॉलर लेकर घर जाएगा. अब इस तरह की शर्त में एक आदमी जरूर हारेगा, और भी बहुत से लोग हारते हैं. $50 का नुकसान हारने वाले को काफी बुरा लगता है जबकि $50 का प्रॉफिट विनर के लिए कोई बड़ी डील नहीं होती. एक और एक्जाम्पल है, सेनिटी और प्रोबेबीलीटी के बीच चूज़ करना. मान लो कि आपको चांस मिलता है कि या तो 525 लो या फिर एक गेम खेलो जिसमे आपके 50% जीतने के चांस है पर 50% आप हार भी सकते हो. अब अगर आपको रिस्क लेना पसंद नहीं है तो आप 525 लेकर घर जा सकते हो. कम से कम ये तो सर्टेन है. है ना? लेकिन ऐसे लोग भी है जिन्हें रिस्क लेना ही श्रिलिंग लगता है. बल्कि वो रिस्क लेने के मौके ढूंढते है. तो क्या आप रिस्क लेने वालों में से है या रिस्क से बचने वालो में से?

1900-1960: क्लाउड्स ऑफ़ वेगनेस एंड द डिमांड फॉर प्रेसिजन (louds of Vagueness and The Demand for Precision) पुराने वक्त के महान लोगो जैसे लुका पचौली, गिरोलामो कार्बानो, डेनियल बर्नोली . (Luca Paccioli, Cirolamo Cardano, Daniel Bernoulli, के ग्रेट आईडियाज ने इंसानियत की तकदीर ही बदल कर रख दी थी. और आज हम प्रोबबीलीटीज़ को एकदम सही-सही नाप सकते है. अब तो हम रिस्क को भी मैनेज कर सकते हैं और अगर बर्नोली जिंदा होते तो उन्हें ये देख कर बहुत खुशी होती.

हमारे साथ जब कुछ अच्छा होता है तो हम तुरंत उसे अपना गुडलक समझ लेते है. हम ये नहीं सोचते कि ऐसा होने के पीछे बड़ी या छोटी प्रोबबीलौटी भी हो सकती है. हालांकि अगर सच में लक जैसी कोई चीज़ है तो क्या कारण और इफेक्ट बेकार है? लक randomness पर डिपेंडेंट है. यानी लक एक ऐसी चीज़ है जो हमारे हाथ में नहीं है. लेकिन रिस्क लेकर हम यही सोचते है कि चाहे जो भी हो लक हमारे फेवर में होगा. हम अपनी फिंगर्स क्रॉस करके उम्मीद करते है कि हम लकी है पर इसके बावजूद किस्म मेटीशियन किस्मत का आखिर : पियर-साइमन लैपलेस (Pierre Sirmon Laplace) एक मतलब क्या है? बार-बार इस सवाल का जवाब ढूंढने की कोशिश करते रहे, उनके

हिसाब से कॉज और इफेक्ट से किसी चीज़ को एक्सप्लेन करना मुश्किल होता दूर- दूर तक कॉज का कहीं पता ना हो. जब हमे कोई कॉज नहीं मिलता तो उसे हम किस्मत समझ बैठते है. पर ये गलत सोच है. लैपलेस ने कहा था कि ये किस्मत का काम नहीं बल्कि प्रोबबीलीटी है और कुछ नहीं. इस पॉइंट को और सही ग से समझाने के लिए उन्होंने एक सिंपल एक्जाम्पल दिया था. मान लो एक बोतल में कागज की पर्चियां है जिनमें 0 से 1000 तक नंबर लिखे है. आपको इसमें से एक पर्ची निकालने को बोला जाता है तो आप एक

पर्ची निकालते हो जिसमे 1000 लिखा है, आप हैरान हो। हो हो. पर अब ये बताओ कि 457 वी पर्ची निकालने की की किन सालालाले डरे साध सकते हो कि आपकी 1000 वी पर्ची निकालने की प्रोबबीलिटी धी प्रोबबीलीटी है? काफी कम शायद, लेप्लेस इस एक्जाम्पल से पॉइंट करते है कि कोई इवेंट जितना एक्स्ट्राओडीनरी होगा उतने ही ज्यादा लोगों को कारण के प्रूफ की जरूरत पड़ेगी. अगर कोई आदमी आपसे कहे कि उसने 457 वी पर्ची कहा कि निकाल ली है तो आपको प्रूफ मांगने की कोई जरूरत नहीं पड़ेगी. तब आप शायद अपना सर खुज़लाते हुए ये सोचे कि वो आदमी लकी है. एक और मैथमेटीशियन जिसने कॉज और एफ्केट और रेंडमनेस पर काफी स्टडी की थी, वो थे एक फ्रेंचमेन जूल्स-हेनरी पॉइंकेयर (3ules–lenri Poncare.) उनके हिसाब से हम सबके साथ जो कुछ भी होता है, उसके पीछे एक कॉज है. हालकि हम सारे कारण को पिनपॉइंट नही कर सकते स उसके पास क्योंकि हम सिर्फ मामूली इंसान और ऐसा सिर्फ वही कर सकता है जिसके पास एक बेहद पॉवरफुल और डीवाइन माइड हो.

न है. आर एसी सिर्फ वहा े

अब क्योंकि हर चीज़ के पीछे एक कॉज है, तो पोएनकारे मानते थे कि रेंडम लगने वाली घटनाए भी रेंडम नही होती. इनके पीछे भी कोई ना कोई छोटी

सी वजह जरूर होती है. एक कोन जिसे टिप पर बेलेंस किया गया हो-यानी उसके अपैक्स पर- गिर सकता है अगर जमीन समतल ना हो तो. अगर ऐसा नहीं है तो भी कोन किसी भी वक्त गिर सकता है, हवा के झोंके से या जमीन पर हलकी सी भी आहट होने से, पॉइकेयर (Poincare) इसे लोगो से भी लिंक करके देखते है जो या तो बारिश की उम्मीद कर रहे है या फिर सनशाइन की. इन लोगों को लगता है कि ये प्राथर्ना करना बेकार है कि साईक्लोन उन्हें हिट ना करे क्योंकि साईक्लोन आने के सिर्फ वन-टेंथ चांस है, पर जैसा कि सब जानते है कि मौसम का कोई भरोसा नही होता. साईंक्लोन किसी रेंडम से शहर को अचानक कभी भी हिट कर सकते है बेशक साईंक्लोन के बारे पहले से प्रेडिक्शन किया जा सकता है अगर लोग इसके होने के वन-टेथ चांस पर भी थोड़ा अटेंन दे तो, पॉइंकेयर के हिसाब से कोई भी इवेंट चाहे कितनी ही रेंडम या मामूली क्यों ना लगे उसके पीछे कहीं न कहीं एक बड़ा कारण होता है. बस आपको गहराई में सोच कर इसके पीछे की वजह ढूंढनी है.

डिग्री ऑफ़ बिलीफः एक्सप्लोरिंग अनसर्टेनिटी (Degrees of Belief: Exploring Uncertainty)

प्रोबबीलीटी और रिस्क के मामले में इन्सान अक्सर क्या करते है? क्या हम रेशनल एक्ट करते है और उस प्रोबबीलीटी को चूज़ करते है जो हमे बेस्ट सूट करती है? या फिर हम आँखे बंद करके वही करते है जो हमे सही लगता है? साईकोलोजिस्ट्स ने रेशननेलिटी के डिफरेंट मॉडल्स स्टडी किये हैं. ये वो स्ट्रक्चर है जो लोगों को डिसीजन लेने में हेल्प करते है, चाहे वो रिस्की हो या नही.

ऐसा ही एक मॉडल है प्रोस्पेक्ट थ्योरी, ये थ्योरी डेनियल काहेमेन (by Daniel Kahneman और एमोस ट्रेवस्की (Amos Iversky) ने डेवलप की थी जो 1950 के दशक में इज़रायली आर्मी का एक हिस्सा थे. उन्होंने इस ध्योरी पर काम करना क्यों शुरू किया था, उसके पीछे की वजह

मी काडेमेन के एक्सपिरियेंसे., उन्होंने ट्रेवस्की

धी काहे मन के

एक लेक्चर के बारे में बताया था जो उन्होंने फ्लाइट इंस्टक्टर्स को दिया था.

कान्हा में (Kahneman ) ने कहा था कि स्टूडेंट्स को सजा देने से ज्यादा उन्हें रीवार्ड देना कहीं ज्यादा इफेक्टिव होता है. हालाँकि कामैन के एक स्टूडंट ने हाथ उठाकर ये सच नहीं है. नहीं है. स्टूडेंट ने एक्सप्लेन उसने भी एक बार फ्लाइट ट्रेनीज़ को सिखाया था. और जब उसने टेनीज़ को एक खास सेशन पर उनकी तारीफ की थी तो उसे एक पैटर्न नज़र आया. उसने जिन लोगो की पहले तारीफ की थी, वो नेक्स्ट टाइम उतना अच्छा किया कि परफोर्म नही करते थे, और जिन्हें उसने क्रिटिसाइज किया था वो अगली बार अच्छी परफोर्मेस देते थे.

का (Iversky) को ए

कान्हा मेन और ट्रेवस्की (Kahneman and Tversky) की ये थ्योरी बताती है कि हम हमेशा अच्छा या बुरा परफोर्म नहीं कर सकते. हमने पहले अच्छा किया इसका मतलब नहीं कि हम आगे भी अच्छा ही करेंगे. अपने हर काम में हम पेंडूलम की तरह आगे-पीछे होते रहेंगे, कभी अच्छा तो कभी बुरा. नेचर का लो भी यही कहता है. हम हमेशा मीन को लेकर रिग्रेस करते रहेंगे. हमारी परफोर्मेसेस हमेशा एक जैसी नहीं हो सकती. आपके एक स्किल लेवल होता है और आपकी सारी पर्फीमेंसेस उसी के आस-पास रहती है. अब जैसे एक्जाम्पल लेते है मान लो आज आपने काफी अच्छी डाँस परफोर्मेस दी तो हो सकता है कल आप सब गड़बड़ कर दो. और ये भी मुमकिन है कि फर्स्ट टाइम अपने बहुत बुरा डांस किया शायद अगली बार

आप बेटर करो,

कान्हा मेन और ट्रेवस्की (Kahneman and versky) के रिग्रेशन को मीन तक इग्नोर करना लोगो के खराब डिसीजन मेकिंग स्किल के पीछे की एक वजह है. लोग पास्ट पर इतना डिपेंड रहते है कि उसी के बेस पर फ्यूचर प्रेडिक्ट कर लेते है. हालाँकि पास्ट हमेशा हेल्प करता है पर इसके बेस पर ये नहीं कह सकते कि फ्यूचर में भी सेम चीज़ होगी.

हालाँकि इस गलती के लिए हम खुद को ब्लेम कर सकते है. लाइफ बड़ी कॉम्प्लेक्स है, और हम हमेशा जितना हो सके इसे सही ढंग से जीने की कोशीश करते है. और हमारा यही मिशन कि हम हर चीज़ सही करे, अक्सर हमे गलत फैसलों पर ले जाती है. तो जब भी आप प्यूचर के बारे में सोचो तो हमेशा कांसेप्ट ऑफ़ मीन पर भरोसा रखो. क्योंकि लाइफ हमेशा सेम नहीं रहती, इसमें उतार-चढ़ाव आते ही रहते है.

कन्क्लू जन

आपने इस बुक में गैंबलिंग के बारे में जाना और ये भी जाना कि गैंबलिंग की हिस्ट्री उतनी ही पुरानी है जितनी कि ह्यूमन सिविलाईजेशन, कैसिनों और हॉर्स रेसिंग खेल जहाँ बड़ी-बड़ी रकम दांव पर लगाई जाती है, इन सबकी शुरुवात जानवर की हड्डी से हुई धी जिसे हम आमतौर पर डाइस के नाम से

जानते है.

रोमन्स, ईज़ी्शीयंस और ग्रीक्स सिवीलाइजेशन के लोग जुआ खेलने और मनोरजन के लिए डाइस का इस्तेमाल किया करते थे, ग्रीक नाईथोलोज़ी में भी इस बात का जिक्र है कि ज़ीउस और उनके भाइयों ने डाइस खेलकर इस बात का फैसला किया था कि कौन दुनिया के किस हिस्से पर राज करेगा. हालाँकि बात जब प्रोबबिलिटी की आती है तो ग्रीक्स इस मामले में कमजोर थे. उन्होंने कभी जानने की कोशिश ही नहीं कि उनका फ्यूचर क्या होगा. दरअसल उनका मानना था कि उनकी किस्मत ऊपरवाला पहले ही लिख चूका है.

पर जैसे-जैसे दुनिया आगे बढ़ती गई, लोग और ज्यादा सिविलाईज्ड होते गए, प्रोबबीलीटीज़ को सिरिसयली लिया जाने लगा. खासतौर पर renaissance पीरियड के दौरान प्रोबबीलीटीज़ की तरफ लोगों का ज्यादा से ज्यादा इंटरेस्ट बढ़ा, काडानो, लुका और बनोली जैसे महान लोगो ने

प्रोबबीलीटी के फील्ड में काफी स्टडी की.

इस बुक से आपने सीखा कि प्रोबबीलीटीज़ और रेंडमनेस का किस्मत से कोई लेना-देना नहीं है. पियर साइमन लेपलेस (Pierre-Simon

Laplace) ने कहा था” इंसान खुद ब खुद किस्मत पर प्रोबबीलीटी के ज्यादा चांसेस जोड़ देता है क्योंकि इसे समझना ज्यादा आसान है. कई बार हमारे

अंदर इतना सब्र नही होता कि हम ये जानने की कोशिश करे की कोई महान घटना कैसे घट गई. इसी दौरान जुल्स-हेनरी पोइनकेयर ने ये आग्ग्यूमेंट दिया

कि हमारे माईड इस बात को समान

रे माईंड इस बात को समझने में नाकाम रहता है कि हर चीज़ के पीछे कोई ना कोई वजह है. जब किसी घटना को देखकर आप खुद को लकी समझने लगे तो एक बार उसे ध्यान से स्टडी करके देखना, आपको जानकर हैरानी होगी कि उसके पीछे एक गहरी वजह छुपी है, आपने इस बुक में पोस्पेक्ट थ्योरी के बारे में पढ़ा. ये थ्योरी डिसीजन मेकिंग के वक्त इंसानी फितरत को समझाने की कोशिश करती है. प्रोस्पेक्ट थ्योरी हमें बताती है कि हम हमेशा अपने पास्ट बिहेवियर से फ्यूचर की सटीक भविष्यवाणी नहीं कर सकते और ना ही ये बता सकते कि जो पहले हुआ वही आगे भी सेम होगा.

हम हमेशा मीन को रेग्रेस करेंगे. ओड कई बार हमारे फेवर में भी हो सकता है या नहीं भी प्रोबबीलीटीज़ कोई ऐसी चीज़ नहीं है कि जो सिर्फ स्टेटिसटीशिन और स्टॉक ट्रेडर्स को स्टडी करनी चाहिए, सच तो ये है कि प्रोबबीलीटी के बारे में जानने में कोई हर्ज नहीं है बल्कि फायदा ही है. हो सकता है कि आपकी लाइफ में कोई ऐसी चीज़ हो जो आपको हासिल करने में इम्पॉसिबल लगती हो पर इस बुक को पढ़ने के बाद आप ये जानोगे कि लाइफ में इम्पॉसिबल कुछ भी नहीं है. आपके सक्सेसफुल होने की एक छोटी सी प्रोबबीलीटी कहीं न कहीं जरूर है, तो अपने चांसेस स्टडी करके ये जानने की कोशिस करो कि आपको रिस्क कब लेना चाहिए. ग्रीक्स की तरह ये मानकर मत बैठ जाओ कि किस्मत ऊपरवाले ने लिखी है, बल्कि ये यकीन रखो कि आपकी किस्मत आपके हाथ में है और जो आप चाहते हो वो आपको जरूर हासिल होगा.

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