AGAINST EMPATHY by Paul Bloom.

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यह किसके लिए है -:

-वेजो साहकोलाजी पढ़ना पसंद करते हैं।

-वैजो सहानुभूति के बारे में जानना चाहते हैं।

वे जो यह जानना चाहते हैं कि सहानुभूति किस तरह से हमस गलत काग करवा सकती है।

लेखक के बारे में –:

पाउल ब्लूम (Paul EBOOST) एक कैनेडियन अमेरिकन साहकोलाजिस्ट हैं। वे येल यूनिवर्सिटी में काग्निटिव साइंस और साइकोलाजी के प्रोफेसर है। उनकी रीसर्च हमें यह बताती है कि किस तरह से बच्चे और बड़े इस दुनिया को देखते हैं। वे यह समझाने की कोशिश करते हैं कि किस तरह से बच्चे और बड़े भाषा, नैतिकता, धर्म, कहानियाँ और कला को समझते हैं और किस तरह से उसका सामना करते हैं।

यह किताब आपको क्यों पढ़नी चाहिए -:

सहानुभूति के बारे में आज लगभग हम बिजनेस कोच और मोटिवेशनल स्पीकर बात कर रहा है। लोग यह कहते हैं कि यहाँ पर हर कोई जिन्दगी के साथ एक जंग लड़ रहा है और हमें उनकी तकलीफ को समझने की कोशिश करनी चाहिए। साइकोलाजी में भी हम सहानुभूति को समझने की कोशिश कर रहे हैं और इसके फायदे और नुकसान के बारे में जान रहे हैं।

हर किताब हमें यह बताती है कि सहानुभूति दिखाने के क्या फायदे हो सकते हैं। लेकिन कोई किताब यह नहीं बताती कि इसके क्या नुकसान हो सकते हैं। कोई किताब हमें यह नहीं बताती है कि सहानुभूति के पीछे की वजह क्या है। यह किताब इन पहलुओं पर नज़र डालती है। यह किताब हमें बताती है कि किन हालातों में हम दूसरों से

सहानुभूति नहीं दिखाते और किन हालातों में दिखाते हैं।

इसे पढ़कर आप सीखेंगे

सहानुभूति क्या और क्यों होती है।

किन किन हालातों में हम लोगों से कम सहानुभूति दिखाते हैं या फिर सहानुभूति नहीं दिखाते।

-ज्यादा सहानुभूति दिखाने के क्या नुकसान हो सकते हैं।

सहानुभूति एक ऐसी भावना है जिससे हम दूसरों की भावनाओं को खुद महसूस करते हैं।

बहुत बार ऐसा होता है कि हम किसी दूसरे व्यक्ति को तकलीफ में देखते है जिससे हमें खुद तकलीफ होने लगती है। इसे ईमोशनल एपैथी कहा जाता है। एक्जाम्पल के

लिए, आप ने जलियांवाला बाग हत्याकांड के बारे में सुना होगा, जहाँ पर 1919 में जनरल डायर ने अधाधुध गोलिया चला कर हजारों लोगों को मार दिया था। इन लोगों में बहुत से बच्चे और बूढ़े भी थे जो सिंर्फ बहाँ का गेला देखने के लिए आए थे। लेकिन उन लोगों ने किसी को नहीं छोड़ा। आज इसके 100 साल के बाद भी जो इसके बारे में सुनता है, वो वहाँ पर फंसे लोगों की तकलीफ को महसूस कर सकता है।

ठीक इसी तरह मुंबई में हुए 26/11 के हमले की खबरें भी हमारे अंदर इस तरह की भावना पैदा करती है। वो हवलदार जो कसाब को पकड़ने में मारा गया, उसकी कहानी बहुत से लोगों की आँखों में आँसू ला देती है। यह सहानुभूति की भावना है जो हमें दूसरों का दर्द महसूस कर सकने की क्षमता देती है।

कभी- कभी हम दूसरों का दर्द समझते तो हैं, लेकिन उसे महसूस नहीं कर पाते। इसे कान्प्रिटिच एंपैथी कहा जाता है। इसमें हम सामने वाले की कमजोरी को समझते हैं और

उसका फायदा उठाने की कोशिश करते हैं। ऐसा करने वाले लोग जानते हैं कि सागने वाले को तकलीफ हो रही है, लेकिन वे उसका इस्तेमाल अपने फायदे या अपने मजे के लिए करते हैं।

इसके अलावा हम दूसरों के शारीरिक दर्द को भी महसूस कर सकते हैं। अगर किसी व्यक्ति का एक्सिडेंट हो जाए और उसका सिर फट जाए तो आपको भी लगेगा कि आपका सिर फट रहा है। इस तरह से सहानुभूति के बहुत से रुप हो सकते हैं।

हम अनुभव के जरिए लोगों में सहानुभूति पैदा कर सकते हैं।

आज के वक्त में बहुत से स्पीकर्स और यूट्यूब चैनल सहानुभूति के ऊपर बातें करते हैं। लीडरशिप की हर किताब में एक सहानुभूति का टापिक जरूर होता है। बहुत से लोगों

का मानना है कि अगर हम हर किसी के अंदर इस सहानुभूति की भावना को पेदा कर सकें, तो इम किसी भी तरह की समस्या को सुलझा सकते हैं। अगर हर कोई एक दूसरे का दर्द समझे, तो वे एक दूसरे की मदद कर सकते हैं और किसी भी समस्या को सुलझा सकते हैं। सहानुभूति आज साइकोलाज़ी के एक बहुत अहम टापिक बन गया है। किताबे और लौडर्स हमेशा इसकी बात करते हैं। उनका मानना है कि इससे हम अपनी निजी जिन्दगी और काम की जिन्दगी, दोनों में बदलाव ला सकते हैं।

एक्जाम्पल के लिए 2014 में अमेरिका की पुलिस बहुत सारे काले लोगों को मार रही थी। इस तरह से दो तरह के ग्रुप बने। एक ग्रुप इस बात को लेकर धर्ना कर रहा था कि पुलिस काले लोगों के प्रति सहानुभूति नहीं दिखाती। दूसरा ग्रुप इस बात को लेकर धन्ना दे रहा था कि लोग पुलिस के काम की इज्जत नहीं करते। पुलिस हर रोज खतरे मौल लेकर उन्हें सुरक्षित रखने की कोशिश कर रही है और वे उनकी कदर नहीं कर रहे हैं।

हस तरह से यहाँ पर दो ग्रुप्स हैं जो एक दूसरे के खिलाफ जा रहे हैं और एक दूसरे पर इल्जाम लगा रहे हैं। जब हम सिर्फ एक तरह के लोगों से सहानुभूति दिखाते हैं, तो विरोध और बढ़ जाते हैं। इसलिए हमें दोनों तरफ के लोगों की भावनाओं को समझना होगा और दोनों से सहानुभूति दिखानी होगी। तभी हम ऐसा समाधान खोज पाएंगे जिसमें सबकी भलाई होगी।

इसके अलावा पैरेंट्स भी अपने बच्चों को सहानुभूति दिखाना सिखा सकते हैं। वे उनसे यह आसान सा सचाल पूछ कर उन्हें किसी के साथ बुरा बर्ताव करने से रोक सकते हैं। तुम्हें कैसा लगेगा अगर किसी ने तुम्हारे साथ ऐसा बर्ताव किया तो?

ठीक इसी तरह से आप अपने आस पास के सभी लोगों को सहानुभूति दिखाना सिखा सकते हैं।

सहानुभूति की वजह है हमारे मिरर न्यूरान्स, जिनकी मदद से हम सामने वाले की नकल करते हैं।

हम ज्यादातर चीजें दूसरों को देखकर और उनकी नकल कर-कर सीखते हैं। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि हमारे दिमाग में मिरर न्यूरान्स पाए जाते है जो कि सामने वाले की नकल करते हैं। जब हम किसी व्यक्ति के कुछ काम करते हुए देखते हैं, तो हमारे दिमाग के उन्हीं हिस्सों में हरकतें होती हैं जो उनके में होती हैं। यह कुछ ऐसा है कि जब भी हम किसी को कोई काम करते हुए देखते हैं. हमारा दिमाग भी वो काम करने की कोशिश करता है। यह एक्सपेरिमेंट गियाकोमो रिज़ोलाटी ने बंदरों पर की थी। जब वे बंदर साइंटिस्ट को अलग-अलग चीजें इस्तेमाल करते हुए देखते थे, तो उनके दिमाग में भी वही हरकतें होती थी जो उन साइंटिस्ट्स के अंदर होती थी। हमारे पूर्वज मिरर न्युरान्स की मदद से बहुत जल्दी चीजों को सौख पाते थे।

इस वजह से जब हम किसी दूसरे के दर्द के बारे में पढ़ते, सुनते या देखते हैं तो हमें भी एक हृद तक तकलीफ होती है। फिल्मों के कुछ सीन देखने के बाद हम रोने लगते हैं जबकि हमें पता होता है कि वे नाटक कर रहे हैं।

बहुत से वीडियो क्लिप्स ऐसे हैं जिन्हें देखने के बाद एक व्यक्ति को दुख हो सकता है या घिन आ सकती है। 2005 की एक स्टडी में जब एक व्यक्ति के हाथ को जला कर उसे पकाया जा रहा था, तो जिसने भी यह देखा उसे यह लगने लगा कि उसके हाथ को जलाया या पकाया जा रहा है।

ठीक इसी तरह से जब हम किसी व्यक्ति को कुछ घिनौना काम करते हुए देखते हैं तो हमें भी खराब लगने लगता है। अगर आप डिस्कवरी चैनल पर आने वाला शो मैन वर्सेस वाइल्ड देखते हैं, तो आपने देखा होगा कि वह व्यक्ति उसमें कभी कभी छिपकलियाँ खाता है। इस तरह के काम को देखते ही हमें घिन आ जाती है। एक बार के लिए हमें लगता है कि हम छिपकलियाँ खा रहे हैं।

यह जरूरी नहीं है कि हम सिर्फ सहानुभूति में आकर ही अच्छे काम करें।

तो हमने देखा कि किस तरह से सहानुभूति की मदद से हम दूसरों की तकलीफ को समझा सकते हैं और इस तरह से उनकी मदद कर सकते हैं। लेकिन क्या हम अच्छे काम हमेशा सहानुभूति की वजह से करते है? या फिर इसके पीछे कुछ और वजह भी हो सकती है?

अच्छे काम करने के पीछे तीन वजह हो सकती है। सबसे पहली बजह है हमारी नेतिकता। हम दूसरों की गदद करते हैं क्योंकि वो सही काम है। अगर नदी में कोई व्यक्ति डूब रहा है, तो हम यह नहीं सोचते कि उसके परिवार वालों को कितना बुरा लगेगा या फिर उसे कितनी तकलीफ हो रही होगी। हम सिर्फ उसकी मदद करने के लिए चले जाते हैं क्योंकि हमें उस समय यही करना सही लग रहा था।

इसके बाद हम दूसरों की मदद करते हैं क्योंकि हमारा लाजिक कहता है कि वो सही काम है। एक्जाम्पल के लिए मान लीजिए आप एक अस्पताल में हैं जहां पर आप यह देखते हैं कि किसी व्यक्ति को एमजेंसी में खून की जरुरत है। आपको पता है कि आपका खून उस व्यक्ति के खून से मिलता है और अगर उसे 1 घटे के अदर खून नहीं मिलेगा तो वो मर जाएगा। ऐसे हालात में उसकी मदद करने में आपका कुछ सास नुकसान नहीं है। आपको पता है कि आपका शरीर नया खुन फिर से एक महीने में बना लेगा और आप फिर से नार्मल हो जाएंगे। साथ ही उस व्यक्ति की जान बच जाएगी। इसलिए आप उसकी मदद कर देंगे।

अंत में हम किसी की मदद करते हैं क्योंकि हमें हमारी सभ्यता ने सिखाया है कि हमें लोगों की मदद कर देनी चाहिए। लेस्ली जेमिसन ने अपनी किताब द एम्पैथी एक्साम में जैसन बैल्डविन के बारे में लिखा है। जेसन को एक ऐसे अपराध के लिए जेल में कई साल के लिए बंद किया गया था जो उसने किया ही नहीं था। जब उनसे पुछा गया कि उन्होंने सजा देने वालों को माफ कैसे कर दिया, तो उन्होंने कहा कि वो एक क्रिस्चन है और एक क्रिस्चन का स्वभाव होता है माफ करना।

हम सहानुभूति सिर्फ अपने आस पास के लोगों के साथ दिखाते हैं।

पहले सबक में हमने जलियाँवाला बाग हत्याकांड और मुंबई पर हुए 26/11 के हमले के बारे में बात की। इसके बारे में सुनकर शायद आपको दुख हुआ होगा या फिर थोड़ा गुस्सा भी आया होगा। लेकिन क्या आप दुनिया भर में होने वाले आतंकी हमलों पर इसी तरह से दुखी होते हैं? नहीं।

अमेरिका पर भी 9/1 का हमला हुआ था जिसमें बहुत से लोग मारे गए थे। लेकिन उनके बारे में पड़ने पर आपको कुछ ज्यादा दुख नहीं होगा। हिटलर ने भी बहुत से बच्चों को और लोगों को चेंबर में भर आएगा जितना जलियाँवाला बाग हत्याकांड के बारे में पढ़कर आएगा। कर जहरीली गैस सुधाई थी। लेकिन हिटलर के बारे में पढ़कर भी आपको उतना दुख या गुस्सा नहीं हम उन लोगों का दर्द अच्छे से महसूस कर पाते हैं जिनसे हमें लगाव होता है। फिल्मों में जब हीरो विलन को जला कर मार देता है तो आपको उतनी तकलीफ नहीं होती। लेकिन अगर विलन हीरो के परिवार वालों को मार दे तो आपको दुख होता है। ऐसा इसलिए क्योंकि हीरो से आपको लगाव है और विलन से नहीं।

इस तरह से सिर्फ कुछ लोगों के साथ सहानुभूति दिखाना भी नुकसानदायक हो सकता है। हम सिर्फ कुछ खास लोगों की भलाई के लिए बहुत से लोगों की जान को खतरे में डालने का फैसला ले सकते हैं, क्योंकि उन खास लोगों से हमारा लगाव ज्यादा रहता है।

रेबेक्का स्मिथ को 8 साथ की उम्र में एक वैक्सीन दी गई थी, जिससे वो लगभग मर ही गई थी। अगर भाप रेबेक्का की कहानी पढेंगे तो आपका दिल पिघल जाएगा। आपको उस वैक्सीन के ऊपर इतना गुस्सा आएगा कि आप उसे बैन करने की मांग करने लगेंगे। लेकिन सच्चाई यह है कि उसी वैक्सीनसे दुनिया भर के बहुत से बच्चों की जान बचाई जाती है।

यहाँ पर आप रेबेक्का को जान गए और इसलिए आपको उससे सहानुभूति हो गई। लेकिन दूसरे बच्चों की कहानी के साथ आप नहीं जुड़े इसलिए आपके दिमाग में तुरंत आया कि ऐसे वैक्सीन को बैन कर देना चाहिए। इस तरह से सिर्फ कुछ लोगों से सहानुभूति जताना भी नुकसानदायक हो सकती है।

अलग-अलग लोगों को लेकर हमारे विचार हमें उनको प्रति सहायत दीखने से रोकते हे

क्या आपके साथ कभी ऐसा हुआ है कि आप एक व्यक्ति से बहुत नफरत करते हों और अचानक से उस व्यक्ति को कुछ नुकसान पहुंचा हो, जिससे आपको बहुत खुशी मिली हो? इस तरह से जब हमारी नफरत हमारे अंदर की सहानुभूति को उनके प्रति कम कर देती है।

किसी के प्रति हमारी सहानुभूति तब भी कम हो जाती है जब हमें लगता है कि वो व्यक्ति अपनी ही करतूतो की चजह से परेशान है। जीन डेसेटी की एक स्टडी में यह बात सामने आई थी।

इस स्टडी में कुछ लोगों को एड्स से परेशान लोगों की वीडियो दिखाई गई। इनके बाद इन लोगों से कहा गया कि यह लोग बहुत ज्यादा ड्रग्स लेते थे और एक ही सिरिज का इस्तेमाल बार बार करते थे, जिससे इन्हें एड्स हो गया। यह सुनते के बाद उन लोगों के दिमाग के स्कैन्स यह दिखाने लगे कि उन्हें उस मरीजों के प्रति ज्यादा सहानुभूति नहीं हो रही है।

इसके अलावा जब हम किसी ऐसे व्यक्ति को तकलीफ में देखते हैं जो हमारी टीम में नहीं होता, तो भी हमें उससे कम तकलीफ होती है। ग्रिंट हीन ने कुछ स्पोर्ट्स के फेन्ससको बिजली का झटका दिया। उन्हें ऐसा करते हुए दूसरे फैन्स देखते थे। जब उन्हें देखने वाले फैन्ससको लगता था कि जिन्हें झटका दिया जा रहा है वे उनकी टीम को सपोर्ट करते हैं, तो वे ज्यादा सहानुभूति दिखाते थे। लेकिन जब वे देखते थे कि झटका दूसरी टीम के बेन को दिया जा रहा है, तो उनका दिमाग कम सहानुभूति दिखाता था।

इसके अलावा जब बहुत से लोगों को फोटोग्राफ दिखाई गई जो कि इग्स की लत की वजह से बेघर हो गए थे, तो उन्हें देखने के बाद लोगों को घिन आती थी। उनके दिमाग का स्केन दिखाता था कि उनके अंदर उन बेघर लोगों को देखने के बाद सहानुभूति की भावना पैदा नहीं हो रही थी। इस तरह से कुछ लोगों के लेकर हमारे विचार हमें उनके प्रति सहानुभूति नहीं दिखाने देते।

सहानुभूति कभी कभी हमें गलत फैसले लेने पर मजबूर कर सकती है।

हम सहानुभूति जताते हुए दूसरों की मदद कुछ इस तरह से करने लगते हैं जिससे उन्हें लम्बे समय में परेशानी होती है। एक्जाम्पल के लिए भगर एक बच्चा खिलौने के लिए बहुत रो रहा है, तो उसके माता पिता उसे वो खिलौना लाकर दे देते हैं। लेकिन हर बार ऐसा करने से उनका बच्चा बिगड़ सकता है। छोटे समय में इससे उनके बच्चे को तकलीफ नहीं होगी, लेकिन लम्बे समय में वो मेहनत की कीमत को नहीं समझेगा।

इसी तरह से पश्चिम देश के आर्थनाइजेशन गरीब देशों में कुछ इस तरह के बदलाव करते हैं जिससे उन्हें छोटे समय के फायदा होता है। वे भूखे लोगों का खाना खिलाते हैं

और उन्हें पहनने के लिए कपड़े देते हैं। लेकिन इस तरह से वे उन गरीब देशों को खुद पर निर्भर बना रहे हैं। ऐसा कर के वे वहाँ के लोगों को तकलीफ को तुरंत तो खत्म कर दे रहे हैं लेकिन लम्बे समय में उन्हें खुद पर निर्भर बना रहे हैं।

इसके अलावा कुछ लोग सहानुभूति दिखाने के चक्कर में दूसरों का कुछ ज्यादा नुकसान कर देते हैं। मेक-अ-विश फाउंडेशन एक संस्था है जो मर रहे बच्चों की कोई भी एक ख्वाहिश पूरी करती है। ऐसे में 5 साल के एक बच्चे ने कहा कि उसे एक दिन के लिए बैटमेन बनना है। उस बच्चे को ल्यूकेमिया हुआ था। उस बच्चे के लिए एक छोटी बैटमैन की गाड़ी बनाई गई और उसे एक दिन के लिए बैटमैन बनाया गया जहाँ वो फैसे हुए लोगों को बचाता है और बाद में शहर के मेयर उसे ईनाम देते हैं।

उसके इस सपने को पूरा करने में 7,500 डालर का खर्च आया था, जिससे कम से कम उ दूसरे बच्चों की जान बचाई जा सकती थी।

ठीक इसी तरह से अलग अलग हालातों में हम अलग अलग फैसले लेते हैं जो कि सही नहीं है। एक्जाम्पल के लिए कुछ लोगों ने पूछा गया अगर एक व्यक्ति की हालत बहुत खराब है तो क्या उसे एमर्जेसी ट्रीटमेंट के लिए सबसे पहले भेज देना चाहिए? बहुत से लोग ने नहीं में जवाब दिया। उन्होंने कहा कि बहुत से दूसरे लोग भी हैं जिन्हें एमजैसी ट्रीटमेंट की जरूरत है और वे पहले से लाइन में इतगार कर रहे हैं।

लेकिन जब उन्हीं लोगों से कहा गया कि एक छोटी बच्ची जो बहुत तकलीफ में है और उसे ट्रीटमेंट की जरुरत हो, तो क्या उसे लाहन में आगे कर देना चाहिए? इसमें बहुत से लोगों ने हाँ कह दिया। इस तरह से सहानुभूति हमें कभी कभी गलत फैसले लेने पर मजबूर कर सकती है।

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