THE PERSONALITY BROKERS by Merve Emre.

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यह किसके लिए है

वै जो जानना चाहते हैं कि पर्सनैलिटी टेस्ट की शुरुजात किस तरह से हुई थी।

-वैजो साइकोलाजी के स्टूडेंट हैं।

वेजो काल जग के काम के बारे में जानना चाहते हैं।

लेखक के बारे में

मर्व इगरे (Herve Ema मैकगिल में एक मासस्टेंट प्रोफेसर है। वे एक लेख्बिका है जो अपनी किताब पैरालिटररी के लिए जानी जाती हैं। उनके काम की चर्चा न्यू यॉर्कर, हार्पर्स मैगजीन, बुकाफोरम और न्यू रीपब्लिक में की गई है। वे लास एंजेलेस रौव्यू आफ बुक्स में एक सीनियर एडिटर की तरह काम करती है।

यह किताब आपको क्यों पढ़नी चाहिए?

शायद आपने कुछ किताबें पढ़ी होंगी जिसमें भाप के अलग अलग तरह की पर्सनैलिटी के बारे में बताया गया होगा। इसमें से एक पर्सनैलिटी टेस्ट का नाम है – मायर्स ब्रिस इंडिकेटर टेस्ट, जो हमें 16 अलग अलग तरह की पर्सनैलिटी के बारे में बताता है। यह दुनिया का सबसे फेमस पर्सनैलिटी टेस्ट है जिसका मकसद है लोगों की मदद करना ताकि वे खुद को बेहतर तरीके से समझ सके और यह पता लगा सके कि इन 16 में से उनकी पर्सनैलिटी कौन सी है।

लेकिन क्या आपको यह पता है कि इसका इतिहास से क्या है? किस तरह से इस टेस्ट का जन्म हुआ था? क्या सब लोग इस टेस्ट को सही मानते थे? अगर नहीं तो क्यों

नहीं: किस वजह से कुछ लोग इसे बेबुनियाद मानते हैं? यह किताब हमें इस तरह के सवालों के जवाब देती है। यह किताब मायर्स ब्रि्स हडिकेटर टेस्ट के दिलचस्प

इतिहास के बारे में बताती है।

इसे पढ़कर आप सीखेंगे

मायर्स ब्रिग्स इंडिकेटर टेस्ट किस किताब पर आधारित है।

क्यों लोग इस टेस्ट को बेबुनियाद मानते हैं।

-क्यों कुछ लोग पर्सनैलिटी टेस्ट को गलत मानते हैं।

मायर्स ब्रिग्स टाइप इंडिकेटर (MBIT) पर्सनैलिटी को पहचानने का एक बहुत बेहतर तरीका माना जाता है।

अलग-अलग तरह की पर्सनैलिटी को पहचानने के बहुत से तरीके है, लेकिन मायर्स ब्रिग्स टाइप इंडिकेटर उसमें से सबसे बेहतर माना जाता है। इसकी वजह यह है कि इसमें कोई भी पर्सनैलिटी किसी दूसरी पर्सनैलिटी से बेहतर नहीं है। हर पर्सनलिटी की अपनी खूबी और अपनी खामी है और इस हिसाब से वे एक दिया गया काम किसी दूसरी पर्सनैलिटी वाले व्यक्ति से ज्यादा अच्छे तरीके से कर सकते हैं।

इसे बनाने वाली महिलाएं माँ-बेटी थीं, जिनका नाम था कैथरीन कुक्स ब्रिस और इसाबेल ब्रिग्स मायर्स। इसमें चार अलग अलग पहलुओं पर लोगों की पर्सनैलिटी का पता लगाया जाता है। वो चार पहलू हैं इंट्रोव्जशन (0 या एक्सट्रोवर्ज़न (E), इंट्यूशन (N) या सेंसिंग (S), फीलिंग (F) और थिंकिंग (T) और अंत में जजिंग () और पसीविंग (P),

यह पता करने के लिए आप आपकी पर्सनैलिटी चार पहलुओं में से एक व्यक्ति की पर्सनैलिटी किस तरह की है, हम उससे बहुत से सवाल पूछते हैं। इसमें कुल मिलाकर 93 सवाल पूछे जाते है और अत में उसकी पर्सनेलिटी को एक कोड दिया जाता है। इसमें कुल मिलाकर 16 तरह की पर्सनैलिटी हो सकती है।

एक्जाम्पल के लिए आपकी पर्सनैलिटी हो सकती है इंद्रोव्टंड-इंट्यूटिवि-फीलर-जज़र (INFJ) या फिर एक्ट्रोवटेंड-सेंसर-फीलर-पर्सीवर (ESFP) या फिर एकट्रोबर्ेंड इंट्यूटिव-फीलर-पस्सीवर (ENFP)। इस तरह से कुल मिलाकर 16 तरह की पर्सनैलिटी हो सकती है।

इनके बारे में पता करने के लिए हम जिस तरह के सवाल पूछते हैं वे कुछ इस तरह के हो सकते हैं। क्या आप अकेले रहना पसंद करते हैं या फिर बहुत ज्यादा पार्टी करना पसंद करते है? इस तरह के सवाल से यह पता लगता है कि वो च्यक्ति इटोवर्टेंड है या एक्टोवर्टेड। साथ ही हर तरह के पहलू पर एक व्यक्ति की प्सनैलिटी को पता करने के लिए उससे अलग-अलग सवाल पूछे जाते हैं। इसके बाद उसकी पसनेलिटी को एक कोड दिया जाता है।

MBIT का किसी साइंटिफिक थियोरी पर आधारित नहीं है, बल्कि इसका ज्यादातर नाता धर्म से है।

आप सोच रहे होंगे कि MBIT की मदद से अलग अलग पर्सनैलिटी के बारे में पता लगाता एक साइंटिफिक तरीका है, जो कि पूरी तरह से गलत है। इसाबेल मायर्स ने इस थियोरी को काल जग नाम के एक साइकोलाजिस्ट की थियोरी के हिसाब से बनाया, जो कि सिर्फ एक थियोरी ही कही जाती है। इसाबेल कार्ल जंग के काम को बहुत पसंद करती थी और उनके काम के हिसाब से उन्होंने MBIT को बनाया।

कैथरीन ब्रिप्स का मानना था कि एक व्यक्ति एक अलग तरह की पर्सनैलिटी के साथ पैदा होता है और उसकी पर्सनैलिटी कभी बदल नहीं सकती। जब उन्होंने कार्ल जंग की

किताबें पढ़ी, तो वह इस बात को और ज्यादा मानना लगीं। 1921 में कार्ल जंग की किताब साइकोलाजिकल टाइप्स पब्लिश हुई थी, जिसका उन पर बहुत असर पड़ा।

लेकिन जंग की थियोरी साइंस से कम और धर्म से ज्यादा मिलती थी। उनके साथ काम करने वाले लोग उनकी बात से बिल्कुल भी सहमत नहीं थे। इनमें से एक थे जान वाटसन, जो कहते थे कि कार्ल जंग के पर्सनलिटी टाइप्स की थियोरी का कोई सबूत नहीं है। यह बातें अधविश्वास पर आधारित हैं।

लेकिन कार्ल जंग को सबूत के ना होने से कोई परेशानी नहीं थी। उनका मानना था कि साहस की मदद से वे कभी इसान की परनिलिटी को पूरी तरह से नहीं समझ पाएगे, इसलिए उन्हें इसके लिए धर्म का सहारा लेना ही होगा। ब्रिग्स और मायर्स ने जिन चार पहलुओं पर दो अलग और एक दूसरे से उल्टी पर्सनैलिटी के होने की बात की है, वो असल में एफ्रिका और ग्रीस के ग्रंथों से ली गई है।

यह सारी बातें बताती है कि कालं जग के पर्सनैलिटी टाइप्स की थियोरी बिल्कुल भी साइंटिफिक नहीं है और क्योंकि MBIT इस थियोरी पर आधारित है, यह भी एक तरह

के अधविश्वास पर आधारित है।

कैथरीन ब्रिग्स को सिर्फ कार्ल जंग के काम से ही नहीं, बल्कि उनसे भी प्यार हो गया था।

जब कैथरीन ब्रिग्स कार्ल जंग के काम को पढ़कर अपनी MBIT की थियोरी और उसके सवाल बना रही थी, तो वे कार्ल जंग से बहुत ज्यादा प्रभावित हो गई थी। वे उन्हें एक इसान की तरह ना देखकर एक दैवीय व्यक्ति की तरह देखने लगी। उनका कहना था कि कार्ल उनके सपनों में अक्सर आकर उन्हें बहुत सी अलग- अलग बातें बताते हैं। 1923 में जब उन्होंने उनके काम के बारे में पढ़ा, तो एक रात उन्हें सपने में कार्ल जंग दिखाई दिए। अचानक से ये उठ गई और उन्होंने इससे पहले के परनिलिटी पर आधारित अपने सारे नोट्स को जला दिया। इसके बाद 5 साल तक वे कार्ल जंग की साइकोलाजीकल टाइप्स को गहराई में जाकर पढ़ने लगीं और उन्होंने उसे ही अपना धार्मिक

ग्रंथ बना लिया। वो उनकी सबसे बड़ी शिष्य बन गई और उन्होंने कहा कि कार्ल जंग की किताबों में ही उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होगी। वो उन्हें उनके नाम से बुलाना छोड़कर उन्हें

“ज्यूरिच से आया हुआ इंसान कहकर बुलाने लगी।

ब्रिग्स ने कहा कि कार्ल उनके सपने में आकर उन्हें बताते हैं कि वे किस तरह से अपने लिखने के काम को पूरा कर सकती है और किस तरह से अपनी जिन्दगी को बेहतर तरीके से जी सकती हैं। ये सिर्फ लिखने के काम तक ही सीमित नहीं थीं, उन्होंने कार्ल जंग के ऊपर बहुत सी कहानियाँ लिखना भी शुरू कर दिया। उनकी एक नॉवेल का नाम था द मैन फ्राम ज्यूरिच, जिसमें उन्होंने एक साइकोलाजिरट और उसे एक गरीज के अफेयर के बारे में लिखा था। लेकिन उसे पब्लिशरों ने छापने से गना कर दिया। इसके बाद वे उनकी याद में कुछ गाने भी गाने लगी। उनके एक गाने का नाम था हेल, डाक्टर जंग। कैथरीन की हरकतों से लगता था कि वे कार्ल जंग के पीछे पूरी तरह से पागल थी।

लेकिन वे कभी भी कार्ल जंग से मिल नहीं पाई। उन्होंने उनकी थियोरी के हिसाब से अपने सवाल तैयार किए जिनकी मदद से वे पर्सनैलिटी का पता लगा सकती थी। उनके इन सवालों में भी एक अजीब ताकत है जो लोगों को कार्ल जंग से जोड़ देती है।

MBIT जब पहली बार लोगों के सामने आया तो लोगों ने इसे बहुत पसंद किया।

कैथरीन ने 5 साल तक कार्ल जंग के काम को अच्छे से पढ़ा और इसके बाद उन्होंने फैसला किया कि उनके काम को बाहर ले जाने का वक्त आ गया है। MBIT सबसे पहले

1926 में न्यू रीपब्लिक नाम की मैगजीन में छापा गया था इसकी हेडलाइन थी – खुद से मिलें – परसनैलिटी पेंटबाक्स का इस्तेमाल कैसे करें। इस आर्टिकल में कैथरीन ने 15 तरह की परनिलिटी के बारे में बताया और उन्होंने हर पर्सनैलिटी को एक रंग की मदद से दिखाया। इसमें उन्होंने कुछ सवाल पूछे और उन सवालों के जवाब के हिसाब से उन्होंने लोगों से कहा कि उन 16 में से उस पर्सनैलिटी को चुनें जो उनसे मिलती है और अपने पर्सनेलिटी के रंग को पहचानें।

इसके बाद पूरे अमेरिका में इनकी यह थियोरी फेमस हो गई। सेल्फ – हेल्प की किताबों में इनकी यह बातें छपने लगी और अमेरिका के लोग इस तरह की जानकारी को और ज्यादा मात्रा में छापने की मांग कर रहे थे।

इसके बाद लोगों में साइकोलाजिस्ट की मांग बढ़ गई। हर रेडियो और हर न्यूज़पेपर में लोग अपनी समस्याओं का हल खोजने के लिए सवाल लिख रहे थे। उस समय के लोग बहुत सी परेशानियों से परेशान थे और वे उसका हल धर्म में नहीं खोजना चाहते थे। वे चर्च के पुराने तरीकों से ऊब गए थे और अपने पैरेंट्स के तरीकों को नहीं अपनाना चाहते थे। इसलिए जब अलग-अलग पर्सनैलिटी और उनके अलग-अलग तरह के बर्ताव के बारे में बताने वाली एक थियोरी निकली, तो लोग उसमें अपने हर रोज की समस्याओं का हल खोजने लगे।

एकाम्पल के लिए लोग इस बात से परेशान थे कि उस समय की लड़कियाँ अपने बाल छोटे क्यों काटती है, कुछ महिलाए चोरी छिपे शराब क्यों पीती है और लोग समय के साथ इतना बदलते क्यों जा रहे हैं।

लोग इस तरह से पर्सनैलिटी की थियोरी को इसलिए अपना रहे थे क्योंकि अब वे खुद को क्रिश्चन धर्म से जुड़ा हुआ नहीं देखना चाहते थे। वे अपनी हर समस्या का हल चर्च की मदद से नहीं खोजना चाहते थे। वे खुद को एक अलग व्यक्ति की तरह देखते थे, खुद को अलग बनाना चाहते थे और उसके हिसाब से काम करना चाहते थे। इसके लिए उन्हें सबसे पहले यह जानना होता कि वे असल में कैसे हैं, उनका स्वभाव कैसा है। इसलिए जब MBT सबसे पहले लोगों के सामने आया, तो उन्होंने उसे बहुत पसंद किया। बहुत से लोगों का मानना था कि इंसानों को अलग-अलग भाग में बाँटना किसी भी तरह से अच्छी बात नहीं है।

कैथरीन ब्रिग्स के बाद उनकी बेटी इसाबेल ने इस पर काम करना शुरू किया। यह पर्सनैलिटी टेस्ट इसलिए बनाया गया था ताकि लोग इसकी मदद से खुद को बेहतर तरीके से पहचान सकें। लेकिन बहुत से दूसरे लोगों का मानना था कि इंसानों को किसी भी तरह से अलग अलग कैटेगरी में रखना खतरे से खाली नहीं है। इसके पीछे की एक वजह का नाम था हिटलर।

दूसरे विश्व युद्ध के समय हिंटलर का आतंक फैला हुआ था। वो जर्मनी में रहने वाले सारे ज्यूस को मार रहा था। उसका मानना था कि में सिर्फ उन्हीं लोगों को जर्मनी में रहने का अधिकार है जो जर्मन हैं। उसका नारा था “एक आदमी, एक राज्य और एक राजा’, जिसका मतलब था- दुनिया में सिर्फ एक जर्मनी नाम का राज्य होगा, जहाँ सिर्फ एक हिटलर नाम का राजा होगा जो सिर्फ जर्मन लोगों पर राज करेगा।

कुछ सोशल थिंकर्स का मानना था कि जब हम लोगों को अलग- अलग कैटेगरी में रखने लगेंगे, तो उनमें तनाव पैदा हो सकता है। अगर हम हिटलर की बात करें, तो यह तनाव इतना ज्यादा हो सकता है कि लोग यह सोचने लगेंगे कि एक केटेगरी दूसरे से बेहतर है और जो बेहतर है सिर्फ उसे ही जीने का हक है। एडोनों नाम के एक सोशल थिंकर ने कहा कि हम चाहे लोगों को धर्म के हिसाब से बाँटे, नस्ल के हिसाब से बाँटे या फिर परनिलिंटी के हिसाब से, खतरा सबमें एक बराबर ही है।

इसके अलावा दोनों का कहना था कि इससे पूंजीवाद समाज पनप सकता है। भारत में पहले लोगों को जाति के हिसाब से काम सौंपे गए थे। ब्राम्हण का काम पूजा करवाना और शिक्षा देना था, क्षत्रीय का काम राज करना, लोहार का औजार बनाना और क्षुद्र का काम छोटे काम करना था। इस तरह के समाज को, जहाँ पर सिर्फ एक तरह के लोगों के पास यह ताकत होती है कि वो राज कर सकें, पूजीवाद समाज कहा जाता है।

अगर हम लोगों को इस तरह से पर्सनैलिटी के हिसाब से बाँटने लगे, तो इस तरह का समाज फिर से पनप सकता है जहां पर सिर्फ कुछ खास तरह के लोग ही ऊपर तक पहुंच पाएंगे। इसलिए एडोनों के हिसाब से यह सोचना गलत है कि लोग सिर्फ एक खास तरह की पर्सनैलिटी के साथ पैदा हुए हैं जिसे बदला नहीं जा सकता। लोग एक तरह से सोच या काम कर सकते हैं, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि वो खूबियां जन्म जात हैं। सभी को कैटेगरी में बाँटने से एक ग्रुप दूसरे ग्रुप के ऊपर हावी हो सकता है और इसलिए यह गलत है।

इस तरह से मायर्स और ब्रिग्स ने सोचा कि वे इसकी मदद से लोगों की मुलाकात उनकी पर्सनलिटी से करवा सकती हैं लेकिन कुछ लोगों का मानना था कि ऐसा करना गलत है।

MBIT के कामयाब होने के पीछे एक वजह यह है कि यह हमें खुद को अपनाना सिखाती है।

अब आप यह सोच रहे होंगे कि अगर यह टेस्ट पूरी तरह से बेबुनियाद है और इसमें बहुत सी कमिया हैं, तो जाहिर सी बात है कि यह कामयाब नहीं होगा। अगर यह कामयाब नहीं है तो हम इसके बारे में बात क्यों कर रहे हैं? असल में बेबुनियाद होने के बाद भी यह टेस्ट इतना कामयाब है कि हर साल लगभग 20 लाख लोग इस टेस्ट को करवाते हैं। इसे 20 भाषाओं में ट्रॉस्लेट किया गया है और यह 25 देशों में फैला हुआ है। लेकिन फिर भी बहुत से लोग इस टेस्ट पर भरोसा नहीं करते। वो लोग जो इस टेस्ट को दूसरी बार करवाते हैं, वे पाते हैं कि उनकी पर्सनैलिटी बदल गई है। सिर्फ एक महीने के अंतर पर भी जो लोग इस टेस्ट को 2 बार लेते हैं, वे कहते हैं कि उन्हें अलग नतीजे मिल रहे हैं। इस तरह से वो 16 तरह की पर्सनैलिटी आपस में मिल जाती है और हम यह पता नहीं कर पाते कि एक व्यक्ति की पर्सनैलिटी असल में कौन सी है।

अब आप फिर से यह सोच रहे होंगे कि जब यह टेस्ट पूरी तरह से बेकार है तो लोग इसे करवाते ही क्यों है? यह इतना फेमस क्यों है? इसके पीछे की वजह यह है कि यह टेस्ट हमें खुद को अपनाना सीखाता है। यह हमें बताता है कि हमारी सारी खूबियां जन्मजात हैं। इस तरह से हम खुद को हर वक्त बेहतर बनाने की कोशिश नहीं करते। हम अपनी बुरी आदतों को भी अपने स्वभाव का एक हिस्सा मान लेते हैं। हम यह मान लेते हैं कि हमने अपनी जिन्दगी में जो भी गलत काम किए वो हमारी परनिलिटी का एक हिस्सा है और हम उसे बदलने के लिए कुछ नहीं कर सकते थे। इस तरह से यह टेस्ट हमें एक सांत्वना देता है।

लेकिन इस टेस्ट की सिर्फ खराब बात है कि इसके हिसाब से हम अपनी पर्सनैलिटी को बदल नहीं सकते। यह हमें बताता है कि हम आज तक जैसे रहे हैं वैसे ही सारी उन्न रहेंगे।

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