यह किसके लिए है
-येजो व्यापार के इतिहास के बारे में जानना चाहते हैं।
-वैजो भाज की इकोनोमी को बेहतर तरीके से समझना चाहते हैं।
वजो अगरिका के ग्रेट डिप्रेशन की वजह के बारे में जानना चाहते हैं।
लेखक के बारे में
विलियमजे बर्सटीन (William | Berristern) अमेरिका के एक फाइनेंशियन थ्योरिस्ट और एक न्यूरोलॉजिस्ट हैं। वे पोर्टलैंड में रहते हैं। वे माइन पोर्टफोलियो थ्योरी पर रीसर्च करते हैं। उन्होंने इस्टर्स के लिए बहुत सी किताबें लिखी हैं। अस्प्लेडिड एक्सचेंज उनको बेस्ट सेलिंग बुक है।
यह किताब आपको क्यों पढ़नी चाहिए
आज अगर आप मार्केट से कोई भी सामान लें तो यह जरुरी नहीं है कि यह आपके देश में ही बना हो। अक्सर उस पर “मेड इन चाइता” या”मेड इन जापान लिखा होता है। आज व्यापार पूरी दुनिया में फैला हुआ है। कंपनियां अपने प्रोडक्ट को कई देशों में बेचती हैं। इसे ही गलोबालाइज़ेशन कहते हैं।
लेकिन इस ग्लोबलाइज़ेशन की शुरुआत कहाँ से हुई? आज हर देश की कंपनियाँ अपने प्रोडक्ट को दुनिया भर में बेच रही है। यह सिलसिला शुरू कहाँ से होता है।
इस किताब में हम इन सवालों के जवाब को जानने की कोशिश करेंगे। इसकी मदद से हम जानेंगे कि पुराने समय में व्यापार केसे इहोता था और कैसे यह धीरे धीरे दुनिया भर में फैलने लगा। इस किताब के अंत में हम आज के व्यापार पर भी एक नज़र द्वालेंगे।
इसे पढ़कर आप सीखेंगे
- व्यापार की शुरुमात कैसे हुई थी।
किस तरह पहले के समय के यात्रियों ने साबित किया कि धरती गोल है।
टेक्नोलॉजी की मदद से व्यापार की रफ्तार कैसे बढ़ गई।
ग्लोबलाइज़ेशन की शुरुआत कब और कैसे हुई थी
पहले खेती के सामान और औजारों का व्यापार हुआ करता था।
आज मार्केट में आपको लगभग हर देश का बनाया हुआ सामान मिल जाएगा। ग्लोबलाइजेशन आज हमारी जिन्दगी का एक ऐसा हिस्सा बन चुका है जिसपर हम कभी ध्यान ही नहीं देते। लेकिन क्या आपको पता है कि ग्लोबलाइजेशन की शुरुआत कब और कैसे हुई थी?
इसकी शुरुआत अब से लगभग हजारों साल पहले मेसोपोटामियों में हुई थी जब लोगों ने खेती के सामान और कुछ सरल से औजारों और हथियारों का व्यापार करना शुरू किया। उस समय बेहतर औजार बनाने के लिए कुछ खास तरीकों का इस्तेमाल किया जाता था। पर्सिया की खाड़ी के रास्ते लोग अपना सामान एक दूसरे के देश में ले कर जाते थे।
पहले के समय में हथियार बनाने के लिए ओब्सीडियन नाम के एक पत्थर का इस्तेमाल किया जाता था जो कि ज्वालामुखी के लावा के ठंडे हो जाने के बाद बनता था। इस पत्थर को आसानी से काट कर इसे तेज धार के हथियार में बदला सकता था। ओब्सीडियन का व्यापार मुख्य व्यापारों में से एक था।
पुरातत्व विभाग के लोगों को मोब्सीडियन के निशान ग्रीक के फ्रांचिटी गुफा में मिलें हैं जो यह दिखाता है कि उस समय इसका व्यापार होता था। मगर व्यापार न हो रहा होता तो ओब्सडियन का वहाँ पर मिलना असंभव था।
मेसोपोटामियाँ में ही सभ्यता का जन्म हुआ था। यहाँ पर उपजाऊ जमीन थी जो युफ्रेट्स और टाइग्रिस नदी के बीच में थी। यहाँ अनाज, ऊन, मछली सी चीजें पाई जाती थी लेकिन हथियार और घर बनाने के लिए पत्थर और मेटल यहाँ नहीं पाए जाते थे। ठीक इसी तरह बाकी देशों में भी कुछ चीजें भारी मात्रा में पाई जाती थी जबकि कुछ नहीं पाई जाती थी। व्यापार के शुरू होने कि यही मुख्य वजह थी।
मेसोपोटामिया के देशों जैसे सुमेरिया, एसीरिया और बेबिलोनिया ने अपने यहां उगने वाली चीजों को दूसरे देशों में ले जाकर वहाँ से उनकी चीज़ों को लेकर आने लगे। वे ओमान से मेटल, पर्सिया से संगमरमर और लेबानन से लंबर ले कर आते थे। बाद में इसमें और देश जैसे ग्रीक मी शामिल हो गया जिसने शराब और तेल बेचना शुरू किया। इसके बदले में ग्रीक अनाज लेता था जो उसके यहाँ नहीं उग पाते थे। इस तरह से रेड मेडिटेरिया के आस पास के इलाकों में भी व्यापार के रास्ते बढ़ने लगे।
अरब और चाइना के बीच व्यापार ऊँटों की मदद से शुरु हुआ।
पहले के समय में धरती का ज्यादातर भाग बर्फ से ढका हुआ था। इस बर्फ पर रास्ते बना यकर लोग व्यापार किया करते थे। इन्हीं रास्तों पर उनकी मुलाकात एक ऐसे जीव से हुई जिसकी मदद से लोगों ने अपना व्यापार बढ़ाया। इस जीव का नाम था- घोड़ा।
ये घोड़े ऊँटों के पूर्वज माने जाते थे। समय साथ इनमें पानी को अपने अन्दर बचाए रखने की काबिलियत आ गई और इन्हें हम ऊँट के नाग से जानने लगे। पहले इनका इस्तेमाल इनके दूध के लिए किया जाता था और गधों के जरिए लोग व्यापार का सामान ले कर आते थे। लेकिन ऊँट की काबिलियत को देखते हुए उन्होंने ऊँट का इस्तेमाल शुरू कर दिया। ऊँट रेगिस्तान में बहुत तेज चलते। थे और गधों से ज्यादा भार उठा पाते थे।
ऊँट के आ जाने से लोगों का व्यापार बढ़ गया। इनके आ जाने से अरब के देश में भी लोग अलग अलग सामानों का व्यापार करने लगे। समय के साथ चाइना और मुस्लिम देशों ने अपने बीच व्यापार शुरू कर दिया। यह व्यापार सन 620 के आस पास शुरू हुआ था। मुस्लिम देश के लोग अपने साथ ताँबा, आइवोरी, कछुए के शेल और अगरबत्तियाँ लाते और यहां से सोना, मोती और रेशम ले कर जाते थे।
हालांकि व्यापार के रासते बहुत खतरनाक हुआ करते थे। रास्ते में उन्हें पहाड़ों, नदियों और समुद्र का सामना करना पड़ता था जिसमें बहुत से लोग डूब कर मर गए। लेकिन सम्पत्ति के लिए बहुत से व्यापारी अपनी जान पर खेल कर दूर देशों से व्यापार करने आया करते थे।
मसाले के साथ दवाओं और गुलामों का व्यापार भी बढ़ गया।
मसालों का व्यापार सन 1000 में शुरू हुआ था। जब मसाले का व्यापार शुरू हुआ तब लोगों के अनदर इसकी भूख बढ़ गई। यूरोप के अभीर लोगों की भूख इसके लिए कभी शांत नहीं होती थी। व्यापारी इसका फायदा उठाते और उसे मनमाने दामों पर बेचते थे। उन्हें मसालों से बहुत फायदा हो रहा था।
व्यापारियों के अलावा वैद्यों ने भी इसका इस्तेमाल अपनी दवाओ में करना शुरू कर दिया। वे इसका इस्तेमाल इसलिए करते थे ताकि लोग उनकी दवाइयों को ज्यादा खरीदें और वे उन्हें ज्यादा दाम में बेच सकें।
मसाले के साथ ही गुलामों का व्यापार मी बढ़ गया। यूरोप के लोग अरब के बाजारों से मसाले खरीदते थे और बदले में उन्हें गुलाम देते थे। इन गुलामों का इस्तेमाल सैनिकों के रूप में किया जाता था। यूरोप के लोग इस बात से अनजान थे कि जो अरब के लोग मसालों को चाइना से खरीदा करते थे।
चाइना के हिमालय के इलाकों में प्लेग नाम की एक बीमारी फेलने लगी। यह बीमारी सबसे पहले चूहों में पाई गई फिर इसने दूसरे जानवरों और इंसानों को भी अपने कब्जे में ले लिया। बीमार चूहे और मक्खियाँ जहाजों पर चढ़ कर अरब और यूरोप में आने लगे जिससे यहाँ के लोगों में भी यह महामारी फैल गई।
प्लेग को काली मौत का नाम दिया गया था। वेनिस, जीनोआ और ब्रूग्स के बंदरगाह पर यह बीमारी बहुत तेजी से फैल गई। इन बंदरगाहों पर बहुत व्यापार हुआ करता था। वेनिस ने अपनी 60% आबादी इस बीमारी की वजह से खो दी।
स्पेन और पुर्तगाल ने हमारा मिलान दुनिया के उस नक्शे से कराया जिसे हम आज जानते हैं।
पहले के समय में लोगों के अन्दर यह भावना थी कि धरती सपाट है। लेकिन बहुत सारे पढ़े लिखे लोग अब इस बात को मानने से इनकार कर रहे थे और वे समुद्र में दुनिया के बारे में जानने और व्यापार करने के लिए निकल रहे थे। पुर्तगाल इनमें से सबसे आगे था। उन्होंने अपनी जहाजों से इंडियन ओशियन से होकर पूर्व में जाने का रास्ता ढूंठ निकाला। उन्होंने साउथ एफ्रिका से होकर इंडियन ओशियन में जाने का रास्ता खोजा। स्पेन के लोग भी इस मामले में पीछे नहीं थे। वे भी पश्चिम की तरफ एटलेंटिक में निकल पड़। उनका मानना था कि वे पश्चिम की ओर जा कर भारत और चाहना तक जल्दी पहुंच सकते हैं लेकिन यह आइडिया उस समय बेवकूफी भरा माना जाता था। लेकिन फिर भी क्रिस्टोफर कोलम्बस इस आइडिया को स्पेन के राजा को बेचने में कामयाब रहे।
उस समय लोगों ने पश्चिम के रास्ते से होकर भारत जाने के रास्ते की लम्बाई पता लगाने की कोशिश की। उन्होंने धरती की पूरी लम्बाई में से पूरब के रास्ते से होकर भारत जाने के रास्ते की लम्बाई को घटा दिया। लोग यह जानकर हेरान थे कि टोलेमी ने भी पश्चिम के रास्ते से होकर भारत जाने के रास्ते की लम्बाई यही बताई थी। यह लम्बाई पूरब वाले रास्ते से बहुत ज्यादा आ रही थी।
लेकिन कोलम्बस फिर भी पश्चिम की तरफ निकल पड़ा और उसके पैर उस द्वीप पर जाकर पड़े जिसे हम आज अमेरिका के नाम से जानते हैं। 1490 पर अमेरिका आ चुका था। दशक में यूरोप के नक्शे इसके अलावा पुर्तगाल के एक नाविक ने दुनिया का चक्कर लगाने के बारे सोचा। उसका नाम फडनिड मैगलेन था। उसने अपनी यात्रा 1519 में शुरू की थी। वह स्पेन से निकला अमेरिका के पश्चिम से होता हुआ फिलिपाइन्स में जा पहुँचा जहाँ पर उसकी जहाज पर कुछ लोगों ने हमला कर दिया। इसके बाद स्पेनियई जुआन सिबेस्टियन एल्केनो ने जहाज का बेड़ा उठाया और एफ्रिका के तट से होते हुए वापस स्पेन आ पहुँचे। इस तरह से उन्होंने धरती का पूरा एक चक्कर लगाया।
17वीं शताब्दी की शुरुआत में व्यापार पूरी दुनिया में तेजी से फैलने लगा।
हमने देखा कि किस तरह से बहुत सारे यात्री अपने देश से निकल कर दूसरे देशों में जाने के लिए समुद्री रास्तों का इस्तेमाल करते थे। उनकी इस यात्रा की मदद से उन्हें समुद्र मैं चलने वाली हवाओं का अच्छा ज्ञान हो गया। वे इन हवाओं का इस्तेमाल कर के व्यापार करने निकलते थे और दूसरों के मुकाबले बहुत जल्दी रास्ते तय करते थे।
समय के साथ व्यापार काफी बढ़ने लगा। लोग अपने देश में पाए जाने वाली चीजों को दूर देशों में ले जाकर बेचते थे और अच्छा पैसा कमाते थे। कोलम्बस के बाद स्पेन के कैनेरी आइलैंड से गनों को कैरिबियन लाया जाने लगा जहाँ पर इसकी खेती भारी मात्रा में की जाने लगी। ऐसा इसलिए किया गया ताकि वे यूरोप के व्यापारियों को वापस ला सकें।
जब पूरी दुनिया में व्यापार बढ़ने लगा तब बहुत सारे लोग कापरेट बनाने लगे जिससे वे लोगों को लोन की सुविधा दे कर उनसे इंट्रेस्ट ले सर्कें। इन में से दो बड़ी बड़ी कंपनियों के नाम थे- ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी और डच ईस्ट इंडिया कपनी। इच ईंस्ट इंडिया कपती को होतेंड सभालता था।
समय के साथ दोनों कंपनियां आसमान छूने लगी और उन्होंने दुनिया भर में अपना राज जगा लिया। होलैंड यूरोप से इस रेस में आगे निकल रहा था। वह सिर्फ 4% के हिसाब से सबको लोन देता था जिसकी वजह से बहुत सारे लोगों ने उससे लोन ले लिया। जब इच हस्ट इंडिया कंपनी बहुत विकास करने लगी तब सारे हंवेस्टर उसमें इंवेस्ट करने लगे।
दूसरी तरफ ब्रिटिश ईस्ट ईस्ट इंडिया कंपनी 10% पर लोन देती थी। यह इव ईस्ट इंडिया कंपनी के मुकाबले पीछे रह गई।
समय के साथ इंगलैंड में फ्री ट्रेड आ गया।
इग्लिश ईस्ट इंडिया कंपनी 18वीं शताब्दी में डच ईस्ट इंडिया कंपनी को पीछे छोड़कर उससे आगे निकल गई। भारत और ब्रिटेन के बीच रुई के व्यापार की मदद से वह दुनिया की सबसे बड़ी कंपनी बन गई।
जब इंग्लिश ईस्ट इंडिया कंपनी की ताकत बहुत बढ़ गई तब फ्री ट्रेड पर धीरे धीरे अस्तित्व में आने लगा। एडम स्मिथ जैसे इकोनोगिस्ट् यह समझ गए थे कि ब्रिटिश सरकार दूसरी कंपनियों को भी सहारा दे कर उभारने की कोशिश करेगी जिससे काम्पटीशन हो सके। सरकार यह कभी नहीं चाहेगी कि एक कंपनी मार्केट पर अपना राज चलाए।
इंग्लिश ईस्ट इंडिया कंपनी समझ गई थी कि अगर उन्हें अच्छे पैसे कमाने हैं तो दूसरों को काम्पटीशन से बाहर रखना होगा। इसके अलावा मटिलिस्म की थ्योरी के हिसाब से एक देश में जितना ज्यादा सोना या चाँदी होगी वह देश उतना ही विकासित माना जाएगा। इसलिए इंगलैंड की सरकार ने इंपोर्ट बंद कर के अपना पूरा ध्यान एक्सपोर्ट पर लगा दिया। जो लोग इपोर्ट किए गए कपड़े पहनते थे उनसे फाइन के नाम पर पैसे लिए जाते थे।
लेकिन यह सिर्फ एक तरफ की कहानी थी। दूसरी तरफ हेत्री मार्टिन जैसे वकीलों ने लोगों को यह बताया कि एक देश के लोग जितना ज्यादा खर्च करते हैं, वह देश उतना अमीर माना जाता है। इसका मतलब अगर किसी देश के लोग ज्यादा साधन इस्तेमाल कर रहे हैं तो वह देश विकसित माना जाएगा। 19वीं शताब्दी में फ्री ट्रेड की थ्योरी अपनाई जाने लगी। एडम स्मिथ की संधि लोगों पर बहुत असर डालने लगी जिससे बहुत सारे बिजनेस उभर कर काम्पटीशन करने आ गए।
कॉम्पटीशन बढ़ने की वजह प्रोडक्ट की क्वालिटी भी बढ़ गई और उसके दाम कम हो गए।
इसके साथ डेविड रिकार्डो ने यह सलाह दी कि सरकार को वो सामान बना कर बाहर बेचना चाहिए जो वो अपने देश में अच्छा बना सकते हैं। इसके अलावा जो वे नहीं बना सकते उसे इंपोर्ट करना चाहिए। उनके इस प्रिंसिपल को प्रिंसिपल आफ इकोनोमी एन्ड टैक्सेशन कहा गया जो 1817 में लागू हुआ था। 1860 तक फ्री ट्रेड यूरोप में फैलने लगा।
नई टेक्नोलॉजी के साथ व्यापार की रफ्तार और तेज हो गई।
आज आप अपने घर में जो टीवी या एसी इस्तेमाल करते हैं, उसके अन्दर बहुत सारे अलग अलग पुर्जे लगाए गए हैं। वे पुर्जे अलग अलग देशों में बनाए जाते हैं। फिर उसे अलग अलग साधनों की मदद से एक कंपनी में लाया जाता है जहा उन सभी को जोड़ कर फाइनल प्रोडक्ट तैयार किया जाता है।
इसका मतलब अगर आपके टीवी पर “मेड इन इंडिया लिखा है तो इसका मतलब उसके सारे पुजौ को जोड़ने का काम इंडिया में हुआ है। यह जरूरी नहीं है कि उसके सारे हिस्सों को भारत में ही बनाया गया हो। 19वीं शताब्दी में बहुत सी टेक्नोलॉजी का विकास हुआ जिससे यह सब संभव हो पाया है। आहार उस टेक्नोलॉजी पर एक नजर डालें।
•स्ट्रीमशिप 1890 में लोग जहाजों को छोड़कर स्ट्रीमशिप का इस्तेमाल करने लगे जिससे तेजी से यात्रा होने लगी।
रेलरोड रेलरोड की मदद से लोग किसी भी मौसम में सामान को भारी मात्रा में एक जगह से दूसरी जगह ले जाने लगे। इससे जमीन पर यात्रा तेजी से होने लगी। रिफ्रिजरेशन इस टेक्नोलॉजी की मदद से हम फूल, माँस और दूसरे खाने पीने की चीजों को लग्बे फ्रेश रख कर एक जगह से दूसरी जगह ले जाने लगे । स्वाने पीने की चीजें इससे खराब नहीं होती थी।
1900 तक जहाज से आने जाने का खर्च काफी हद तक कम हो गया जिससे अमेरिका से लाए जाने वाले अनाज अब यूरोप में उगाए जाने वाले अनाज लगे। अब लोग किसी एक मौसम में उगाए जाने वाले फल को हर मौसम में खा पा रहे थे। कॉम्पटीशन करने इस टेक्रोलॉजी का सीधा असर उस व्यापार पर पड़ा जिसमें भारी गात्रा में सामान को ले आने और ले जाने की जरूरत पड़ती थी। कोयले और और की कंपनी का इससे बहुत फायदा हुआ। इंगलैंड की स्मेल्टिंग फैक्ट्री अब दुनिया भर से ओर को इंम्पोर्ट कर पा रही थी।
फ्री ट्रेड के हटने की वजह से अमेरिका पर 1920 के दशक में ग्रेट डिप्रेशन का कहर बरसा।
हमने देखा कि किस तरह से टेक्रोलॉजी के आ जाने से व्यापार की रफ्तार तेज हो गई और लोगों को इससे फायदा होने लगा। लेकिन हर बात के दो पहलू होते हैं। अगर किसी का फायदा हो रहा है तो किसी का नुकसान भी जरूर हो रहा होगा। आइए देखें कि इसका असर किस पर और कैसे पड़ा।
टेक्नोलॉजी की मदद से सामान का इंपोर्ट एक्सपोर्ट बहुत तेजी से और बहुत कम दाम में होने लगा। इसकी वजह से इंपोर्ट किए गए सामान की कीमत कम हो गई और उसका कॉम्पटीशन लोकल प्रोडक्ट के साथ होने लगा। इससे लोकल प्रोड्यूसर्स का घाटा होने लगा और वे सरकार से माँग करने लगे कि इन बाहरी कंपनियों पर टैक्स लगाया जाए जिससे उनका घाटा ना हो।
1922 में फोर्नी मैकम्बर टैरिफ को लागू किया गया। इसे राष्ट्रपति वैरन हार्डिग ने लागू किया था जिससे वे अमेरिका के किसानों और कंपनियों को बाहरी काम्पटीशन से बचा सकें। उन्होंने रिपोर्ट किए गए सामान पर 40% का टैक्स लगा दिया। शुरू में उन्हें इसका फायदा हो रहा था लेकिन बाद में इसका नतीजा हुआ द ग्रेट डिप्रेशन।
ग्रेट डिप्रेशन के आने के बाद सरकार ने स्मूट हॉली टेरिफ एक्ट को लागू किया जिसमें टेक्स को बढ़ा कर 60% तक कर दिया गया। ऐसा करने की वजह थी लोकल किसानों को बचाना। 1870 में लिवरपूल में मोट का दाम शिकागो के मुकाबले 93% ज्यादा था। लेकिन टेक़ोलॉजी के आ जाने से यह अन्तर घट कर सिर्फ 16% पर आ गया। अपने बिजनेसमैन को बचाने के लिए उन्होंने टेक्स को बढ़ा दिया।
यूरोप की हालत इससे भी खराब थी। वहाँ के देशों ने अपने हिसाब से अमेरिका के सामान पर टैक्स लगाना शुरू किया। उनके सामानों पर 50% से ज्यादा टैक्स लगने लगा।
बहुत सारे लोगों का मानना है कि स्मूट हॉली टेरिफ एक्ट की वजह से हो अमेरिका पर ग्रेट डिप्रेशन क कहर बरसा। वे इसे ग्रेट डिप्रेशन की मुख्य वजह बताते हैं।
युद्ध के खत्म होने के बाद अमेरिका ने फ्री ट्रेड का स्वागत किया।
जब वर्ल्ड वार 2 खत्म हुआ तब अमेरिका ने सारे टैक्स को हटा कर एक बार फिर से फ्री ट्रेड को लागू कर दिया। इससे व्यापार करने के रास्ते फिर से खुल गए और दूसरी कंपनियों अमेरिका में आने लगी।
समय के साथ टेक्नोलॉजी और बेहतर हो गई। हवाई जहाज और तेल चलने वाले इंजन के आ जाने से फ्री ट्रेड का फायदा लोगों को मिलने लगा। अब अमेरिका व्यापार करने के लिए नए तरीके खोजने लगा। वो ऐसे देश खोजने लगा जहां उसके सामान सस्ते दाम में बनाए जा सकते हैं। इस तरीके को अपनाने से उसका काफी हद तक फायदा हुआ है।
स्टेटिस्टिक्स से हमें यह देखने को मिलता है कि जिन देशों ने फ्री ट्रेड को अपनाया वे समय के साथ फायदे की तरफ बढ़ते चले गए। वे उन देशों से आगे वले गए जो फ्री ट्रेड को नहीं अपनाते। इसके साथ ही उनकी पावर भी बढ़ गई।
लेकिन फ्री ट्रेड से सबका फायदा नहीं हुआ है। जिन लोगों के पास कम कोशल था वे इससे बहुत घाटे में चले गए। दूसरी तरफ ज्यादा कोशल रखने वाले लोगों का इससे बहुत फायदा हुआ। कर्मचारियों की सैलेरी में कोई खास बदलाव नहीं हुए हैं जबकि बिजनेसमैन की इनकम बढ़ती चली गई है। अमीर और गरीब के बीच की दूरियाँ बढ़ती चली जा रही है जो कि एक सामाजिक और राजनीतिक मुद्दा है। इसकी वजह से पूरक देश तरक्की नहीं कर पा रहा है और लोग सही से इंवेस्टमेंट नहीं कर पा रहे हैं। इसलिए इस अंतर को भरने की जरुरत हर दिन बढ़ती जा रही है।