About Book
ये बुक हमारे देश में इंडीविजुअल ओलिंपिक गोल्ड मेडलिस्ट अभिनव बिंद्रा की लाइफ में बारे में है. ये बुक वैसे तो सबको इंस्पायर करेगी पर ख़ास करके स्पोर्ट्स की फील्ड के लोगो को जरूर पढ़नी चाहिए और जानना चाहिए कि बिंद्रा की टैक्टिस ने कैसे उन्हें एक परफेक्ट शूटर बनाया. इस बुक को पढकर वहुत से लोग इंस्पायर हुए है. इसलिए अगर आप भी स्ट्रगल और मुश्किलों से निकल कर अपनी मंजिल पाना चाहते है तो ये बुक एक बार जरूर पढ़े.
ये समरी किस किसको पढ़नी चाहिए? Who will learn from this summary?
- स्पोर्ट्स एन्थूज़ियास्ट्स Sports enthusiasts
- शूटर्स Shooters
- बड़े सपने देखने वाला हर इन्सान To anyone having big dreams
ऑथर के बारे में About the Author
अभिनव बिंद्रा एक बिजनेसमेन और रीटायर्ड शूटर है. 2008 के बीजिंग ओलंपिक्स में इण्डिया के लिए गोल्ड मेडल जीतने वाले वो अब तक के इंडीविजुअल शूटर है. 2000 में बिंद्रा को अर्जुन अवार्ड मिला था और 2009 में पद्म भूषण. उनकी लाइफ पर एक बायोपिक भी बनने जा रही है जिसका नाम है "अ शॉट एट हिस्ट्री".
इंट्रोडक्शन (Introduction)
"अ शॉट एट हिस्ट्री" इण्डिया के इकलौते ओलिंपिक गोल्ड मेडलिस्ट शूटर अभिनव बिंद्रा की ऑटोबायोग्राफी है. ये बुक एथलीट के पर्सनल एक्सपीरिएस के बारे है कि उन्हें एक वर्ल्ड क्लास शूटर बनने के लिए किन-किन चैलेंजेज से गुजरना पड़ा था. अभिनव बिंद्रा को भारत सरकार ने अर्जुन अवार्ड और पद्म भूषण सम्मान भी दिया है. इस बुक की स्टोरी उनके बचपन के दिनों से शुरू होती है जब वो टॉय गन्स से खेला करते थे तभी उन्हें गन्स से बेहद प्यार हो गया था.
अपने पेरेंट्स और कोच के सपोर्ट और गाइडेंस की हेल्प से वो कैसे वर्ल्ड और ओलिंपिक टाईटल जीतने में कामयाब हुए, ये सब उन्होंने अपनी इस बुक में शेयर किया है.
डीफीट एंड डिसपेयर इन एथेंस
एथेंस में हार और निराशा (Defeat and Despair In Athens)
मैंने एथेंस के ओलंपिक्स के सपने देखने छोड़ दिए थे. यू तो अपने शूटिंग करियर में मैंने कई बार हार का सामना किया था लेकिन इस हार के बाद मुझे जर्मनी में थेरेपी लेनी पड़ी थी. चंडीगढ़ में मेरे शूटिंग रेंज की दीवारे सर्टिफिकेट्स, बैजेस, फोटोग्राफ्स और स्कोरशीट्स से भरी पड़ी है. इन सबको शीशे में फ्रेम करके लगाया हुआ है सिवाए उस सर्टिफिकेट के जो मुझे एथेंस के ओलंपिक्स में मिला था.
इसमें लिखा था कि मुझे 10 मीटर एयर राइफल इवेंट में सेवंथ पोजीशन मिली थी. था. मै इस सर्टिफिकेट को वैसे देखता नही हूँ पर जब भी देखता हूँ तो मुझे मेरी हार याद आ जाती है. एक बार तो मैंने इसे उठाकर जमीन पर फेंक दिया था. लेकिन इस हार ने मुझे लाइफ में एक पर्पज भी दिया है. मै एक टेलेंटेड लड़का था जो अपनी गन 110 मीटर से 0.5 पर बुल्सआई को हिट कर सकता था.
और मै वो पहला इन्डियन भी हूँ जो इंडीविजुअल ओलिंपिक गोल्ड मेडल जीतने एथेंस आया था, मैंने प्रेक्टिस में काफी अच्छा परफोर्म किया था. एट-मैन-फाइनल में फोर्टी सेवन प्लेयर्स के बीच कॉम्पटीशन था जिसमे मे थर्ड आया था. लेकिन फिर मै फाइनल में आठ प्लेयर्स में से सेवेंथ नंबर पर पहुँचकर हार गया. आमतौर पर विनर डिसाइड करने के लिए फाइनल स्कोरिंग डेसीमल प्लेस तक जाती है. और बात जब बुल्सआई की हो तो आप 100 से लेकर हाएस्ट 10,9 तक स्कोर कर सकते हो, और जीत सिर्फ उसी की होगी जो एकदम परफेक
द पेरेंट फैक्टर (The Parent Factor)
कई बार ऐसा भी होता है कि जब मेरी स्टेबिलिटी परफेक्ट नही होती, पर मै अपनी प्रेक्टिस नहीं छोड़ता चाहे कितनी भी थकान हो या पोस्चर खराब हो, ऐसी हालत में भी मैं अपनी गन दस टाइम उठाकर शूटिंग करता था. प्रेक्टिस के मामले में मैंने कभी कोई बहाना नहीं किया. और मेरी इस विलपॉवर के लिए मैं अपने पेरेंट्स का शुक्रगुज़ार हूँ जिन्होंने मुझे हमेशा सपोर्ट दिया.
क्योंकि सपने कभी अकेले पूरे नही किये जा सकते इसके लिए टीम वर्क की जरूरत पड़ती है, मेरे पेरेंट्स और कुछ एक्सपर्ट्स है जिनके सपोर्ट और गाइडेंस के बिना मैं अपने गोल्स अचीव नही कर सकता था और ना ही अपने गेम में इतना आगे जापान बचपन में कई लोग मुझे एक दब्बू लड़का समझते थे और उन्हें लगता था कि मेरे अंदर डिसप्लीन की बड़ी कमी है, पर मेरी फेमिली और मेरे कोचेस ने मिलकर मुझे उस लेवल तक पहुँचने में हेल्प की जहाँ मैं आज खड़ा हूँ.
मेरे पेरेंट्स मेरे लिए पिलर ऑफ स्ट्रेन्थ है, उनकी वजह से ही मेरा कांफिडेंस हुआ है, जब में एथेंस ओलंपिक्स में हारा था तो मेरी मदर बबली ने मुझे आकर बोला कि सेकंड बेस्ट चीज़ जो में कर सकता हूँ, वो है सिल्वर बिल्ट मेडल जीतना, लेकिन वो तुम्हारा गोल नही होना चाहिए. तुम्हारा गोल सिर्फ और सिर्फ गोल्ड मेडल जीतना है.
द स्मेल ऑफ़ गन ऑइल (The Smell of Gun oil)
बचपन में मै काफी मोटा था. मुझे पढ़ना और कोई फिजिकल एक्टिविटी पसंद नही थी. मै फिजिकल ट्रेनिंग की क्लासेस बंक करता था. फिर मैं कुछ सालो के लिए दून स्कूल चला गया पर वहां मेरा नन नहीं लगा, मै अपने फादर के साथ गोल्फ खेलता था और कभी-कभी फुटबॉल भी खेल लेता था पर उससे भी मै जल्दी बोर हो गया. मुझे लगता था कि मेरे अंदर कोई टेलेंट नही है.
मै जब दून बोर्डिंग स्कूल में था फादर मुझे रोज़ एक लैटर लिखते थे. उन सारे लैटर्स में एक बात कॉमन होती थी. वो मुझे स्पोर्ट्स में जाने के लिए एंकरेंज करते थे. मेरे फादर मानते है कि स्पोर्ट्स इन्सान को हाएस्ट ग्लोरी देता है. फिर कुछ ऐसा हुआ कि मुझे गन्स अट्रेक्ट करने लगी. मेरे फादर के पास एक डबल्यू, लारा देता डब्ल्यू, ग्रीन शॉटगन, एक 22 चेक ब्रूनो राइफल, और एक देब्ले एंड स्कॉट रीबोल्वर है.
मैं अक्सर बैठकर उन्हें अपनी गन्स को साफ़ करते हुए देखता था. वो हर गन के पार्ट्स अलग करते, बैरल में क्लीन रोड्स ऑइल से लगाकर डालते थे. एक बार में अपने फादर के साथ गन्स रीपेयर करवाने के लिए देहरादून की लोकल गन शॉप में गया तो वहां रखी राइफल्स देखकर बड़ा फेसिनेट हुआ. मैं दस साल का था जब फर्स्ट टाइम मेरे फादर ने मुझे शूटिंग करने दी, उन्होंने शॉटगन अपने हाथ में पकड़ी थी और उन्होंने मुझे ट्रिगर पुल करने को बोला.
निर्वाना इन द शेड (Nirvana in the Shade)
मेरे दो मेंटर्स है. कर्नल ढिल्लन और अमित भट्टाचार्जी. दोनों मेरा निशाना सही करते है और मेरी मैथमेटिकल एक्यूरेसी चेक करते है. बल्कि अमित तो मेरे लिए एक बड़े भाई की तरह हो गए थे. मुझे जब भी कोई उलझन होती मैं अमित के पास जाता और वो मेरे अंदर एक पोजिटिव फीलिंग जगा देते थे, अमित तब एक पार्ट टाइम टीचर थे जो सिविल सर्विसेस एक्जाम्स की तैयारी कर रहे थे.
मेरी मदर काफी ऑर्गनाइज्ड लेडी थी. वो एक मिनट में ही मेरे १ थी पर अमित से मेरी फ्रेंडशिप थी इसलिए वो मुझे अलो कर देते थे कि मुझे जब जो अच्छा लगे, वो करू. पूरे दिन की प्लानिंग कर देती थी. प एक बार जब मेरे पेरेंट्स कहीं गए हुए थे, तो उन्होंने मुझे अपनी मारुती 800 चलाने दी. हमने गेट पर खड़े गाईस को ये बोलकर मनाया की हम कुछ बुक्स लेने जा रहे है. और फाइनली मैं ड्राइविंग सीट पर बैठा कार ड्राइव करने लगा.
द एज ऑफ़ अनरीजन (The Age of Unreason)
चंडीगढ़ में स्टेट शूटिंग चैम्पियनशिप के कॉम्पटीशन में मैंने 200 में से 200 शॉट किये. उसके बाद फ्राइडे को फिर से मैंने 600 में से 600 स्कोर किये. और वर्ल्ड रीकोर्ड था 597/600 का जो ऑस्ट्रिया के वोल्फ्रम वैबेल ने शॉट किया था म्यूनिख के वर्ल्ड चैंपियनशिप में मै थर्टीन का था और अब वर्ल्ड रिकॉर्ड मेरे नाम था, लेकिन यूआईटी यानी वर्ल्ड शूटिंग बॉडी यूनियन इंटरनेशनल डे टिर ने कॉम्पटीशन को रेकोकनाइज़ नहीं किया.
तो मेरा स्कोर भी रैकोकनाइज़ नहीं हो पाया. मेरे कोच कर्नल ढिल्लन ने यूआईटी को लैटर लिखकर एकनॉलेज करने की रिक्वेस्ट की पर उन्होंने मना कर दिया. पर मुझे यकीन था मेरे अंदर वर्ल्ड रीकोर्ड बनाने की पोटेंशियल है. जहाँ मेरे कॉम्पटीटर्स को 60 शॉट्स लेने के लिए 150 मिनटस लगते था, मुझे सिर्फ 50 मिनट्स लगते थे.
मेरे पेरेंट्स मुझे लेकर और भी एम्बीशीय्स हो गए थे. उन्हें मेरे टेलेंट पर पूरा भरोसा था. अहमदाबाद के जी. दी. मावलंकर शूटिंग चैंपियनशिप में मेरा स्कोर था 400 में से 400 लेकिन ओफिशियल्स ने मेरे स्कोर एक्सेप्ट करने से रीपयूज़ कर दिया. मैंने कोई गलती नहीं की थी पर उन्हें ये इम्पॉसिबल लग रहा था, उन्हें मेरे टेलेंट पर शक था. और इसलिए उन्होंने गोल्ड मेडल सेकंड प्लेस के शूटर को दे। | और मुझे नेशनल्स में क्वालीफाई करने के लिए री-शूट का आर्डर दिया, ऑफिसियल्स क्लेम कर रहे थे कि उन्हें मेरे पेलेट्स राउंड नोज के मिले धे जबकि ये नॉर्मली फ्लेट होते है, और इन्हें यूज़ करना इललीगल है.
Table of Achievements
Year | Achievement |
---|---|
2000 | Arjuna Award |
2008 | Olympic Gold Medal |
2009 | Padma Bhushan |
मदर ने पेलेट्स बनाने वाली कंपनी एली और यूआईटी को लेटर्स फैक्स कर दिए
इस पर यूआईटी के सेक्रेटरी जर्नल ने बताया कि राउंड नोज़ पेलेट्स इललीगल नहीं है लेकिन ऑफिशियल कुछ सुनने को तैयार नही थे. मैंने उनसे पुछा "क्या आपने मुझे कुछ गलत करते देखा है?" तो उनसे कुछ जवाब देते नही बना.
फॉरेन कोच डॉक्टर लास्जलो हम्मेल (Dr Laszlo Hammerl) को इनचाईट किया गया कि वो मेरी शूटिंग देखे कि कहीं मैंने कोई फ्रॉड तो नहीं किया. मैंने 548 शॉट किया और क्वालिफाईड हो गया. एली में (At EIley,) बिमिंघम के पेलेट मेन्यूफेक्चर्स ने जब मेरी परफोर्मेस के बारे में सुना तो काफी इम्प्रेस्ड हुए और मुझे कोंग्रेचुलेट किया.
उन्होंने ये भी कहा कि वो हर साल मेरे लिए 50,000 वास्प नंबर पेलेट्स भेजेंगे. ये बड़े दुःख की बात थी कि अपने देश के लोग मुझ पर शक कर रहे थे जबकि समुद्र पार दूर के लोग जिन्होंने मुझे देखा तक नहीं था, उन्हें मुझ पर पूरा विश्वास था.
लीविंग माय कम्फर्ट ज़ोन (Leaving my Comfort Zone)
एक यंग एथलीट को पता नहीं होता कि उसे कितनी नॉलेज होनी चाहिए. उसके पास टेलेंट और एम्बिश्स तो होते हैं पर उसे कोई गाइड करने वाला भी चाहिए जो उसे परफेक्ट बना सके. यही वजह है कि शूटर्स को अपने देश से बाहर निकल कर इस गेम की प्रॉपर एजुकेशन लेनी चाहिए. खासकर अगर वो इंडियन है तो.
कर्नल ढिल्लन इस बात से एग्री थे कि मुझे और ज्यादा एक्सपर्ट कोच चाहिए, अवसर कोचेस अपने स्टूडेंट्स को ईजिली छोड़ना नहीं चाहते, वो इस बात को एक्सेप्ट नही कर पाते कि उनसे भी बैटर कोई और उनके स्टूडेंट्स को सिखा सकता है. पर कर्नल दिल्लन ऐसे नहीं थे.
मैंने यूआईटी को एक लेटर लिखा तो उन्होंने मुझे जर्मन शूटिंग स्कूल वीएसबेडेन (Wiesbaden.) रेकमेंड किया, पर मेरे लिए अपना कम्फर्ट जोन छोड़कर जाना बड़ा मुश्किल था यानी मेरा घर, लेकिन मुझे जाना पड़ा. मेरी माँ मेरे साथ आई, उन्हें डर था कि कहीं में बिगड़ ना जाऊं, उन्होंने केंप में कुछ तंबाकू पीने वाले शूटर देखे थे इसलिए उन्हें मेरी फ्रिक्र थी.
Training in Wiesbaden
मेरी मदर और में होटल भलम्पिया में स्टे कर ोकि शूटिंग रेंज के एकदम बगल मेरी में था. ये एक होस्टल जैसा था जिसमें एक रेस्ट्रोरेन्ट था. ग्राउंड फ्लोर में रहे थे. ब्लैक मेटल का फोन था. सिक्का डालने पड़ते थे, होटल में सिवाए हमारे और किसी के लिए कमे क से ी न पा.
जब किसी को कोल करनी होती थी तो फोन में आता फोन नहीं आती थी. जब भी फोन की घंटी बजती मैं समझ जाता कि डैड का कॉल होगा. इस होटल को मिस्टर स्त्रेइबेर (Mr Schreiber चलाते थे, कभी अगर मुझे की काल खाना पसंद ना आये तो वो मुझे खाना फिनिश करने के लिए इंसिस्ट करते थे.
विएस्बरेडेन (Wiesbaden.) में कभी लाइट नहीं जाती थी जिससे मुझे प्रेक्टिस करने में कभी कोई प्रोब्लम नहीं हुई. मेरा फर्स्ट इंटरनेशनल चैम्पियनशिप 1998 वर्ल्ड चैपियनशिप बार्सिलोना में था. मैंने 574 शॉट मारा और जूनियर कैटेगरी में फोर्टी फोर्थ पर आ गया.
International Achievements
इसकी वजह से कॉमनवेल्थ गेम्स, कुआला लम्पुर के लिए मेरा सेलेवशन भी हो गया. मैंने 57 हिट किया और सिक्स्टीन्ध फिनिश कर लेकिन इस टाइम स्कोर उतना अच्छा नही था. जानता था कि मुझे 20 और पॉईंट्स शॉट करने क्योंकि मेरे स्कोर बार्सिलोना के लिए काफी नहीं थे.
1998 में इण्डिया में कॉम्पटीशन पर रोक थी. सिर्फ एक ही नेशनल चैपियनशिप होती थी जहाँ 250 लोग आए थे. 1998 के एक ट्रायल में मैंने अपने से बड़ी उम्र के एक्सपीरिएंस वाले सीनियर्स राईफलमेन को हराकर 579 शॉट किया.
तब से मुझे लगने लगा था कि ओलिंपिक गोल्ड कोई भी जीत सकता है चाहे कोई टीनएजर हो या अपना सेबंध ओलंपिक्स खेलने वाला कोई चालीस साल का इंसान, ओलिंपिक जीतने के लिए सिर्फ एक ही चीज़ चाहिए और वो है इसकी पूरी तैयारी और फ्लेक्सीबिलिटी जो कोई भी मेहनत से अचीव कर सकता है.
Inspiration from Takacs
एक ग्रेनेड एक्सीडेंट में वर्ल्ड क्लास शूटर टाकास (Takacs.) का राईट हैण्ड बुरी तरह घायल हो गया था जिसकी वजह से वो शूटिंग करने के काबिल नहीं रहा. लेकिन उसने हार नहीं मानी, उसने अपना लेफ्ट हैण्ड यूज़ करना शुरू कर दिया और शूटिंग का मास्टर बन गया.
1948 में उसने लंदन ओलंपिक्स में गोल्ड मेडल जीता. और उसके चार साल बाद एक और गोल्ड जीता. आज इंडिया में शूटिंग काफी कॉमन गेम हो गया है, लेकिन 1990 के दौर में सिर्फ आर्मी शूटर्स ही इस गेम को खेलते थे.
यंगेस्ट शूटर जिसे मै जानता था वो जसपाल राना है. वो मेरे से आठ साल बड़े थे जब इस गेम में आये थे. तो मेरी कम एज की वजह से बाकि शूटर्स मुझे सिरियसली नहीं लेते थे. वो मुझे लाइन से पीछे हटने को बोलते थे और कोई भी मुझ जैसे बच्चे से हारना नही चाहता था.
Facing Challenges
चाहे मैं कितनी प्रेक्टिस कर या कितना अच्छा खेलू उन्हें फर्क नहीं पड़ता था. मै रेंज में 30 मिनट पहले पहुँचता था और शूटिंग रेंज के गेट से कोई 100 कदम दूर गाड़ी से उतर कर पैदल रेंज के अंदर जाता था.
दरअसल मै लोगो को शो नहीं करना चाहता था कि मेरे पास फैसी कार है. क्योंकि मुझे डर था कि वो लोग मुझे अपने ग्रुप से आउट व कर देंगे, कैम्पस के दौरान मेरी मदर हमेशा मुझे होटल में स्टे करने को बोलती थी ताकि मैं आराम से रहें, पर मै मना कर देता था.
मुझे डर था कि कोई मुझे बड़े घर का बिगड़ा हुआ बच्चा न समझ ले. फिर मुझे रिएलाइज हुआ कि जो मै फिट होने की इतनी कोशिश कर रहा हूँ, उसका कोई लोजिक नहीं है. बल्कि मुझे अपना सारा फोकस अपने गेम पर करना चाहिए. बस, उसके बाद से मैं एकदम फोकस्ड हो गया.
गनिंग फॉर सिडनी (Gunning for Sydney)
मैं रेंज में आता था, अपनी गन लोड करता, फायर और घर चला आता, चाहे मेरी हार हो या जीत फर्क नही पड़ता था, जैसे ही गेम खत्म होता मै चला आता था. करता 1999 के शुरुवात में मैंने सिडनी ओलंपिक्स में जाने की तैयारी शुरू कर दी थी.
इण्डिया से बाहर में 580/500 से ऊपर कभी शॉट कर ही नहीं पाया था. बैंगलोर में मैंने 594 शॉट किया था जिसकी वजह से मै काठमांडू के साउथ एशियन गेम्स के लिए क्वालिफाईड हो गया था. इस इवेंट में मैंने एक सिल्वर जीता था. 2000 के वर्ल्ड कप में मेरी पोजीशन ट्वेंटी फोर्थ थी.
और फाईनली मुझे सिडनी ओलंपिक्स में परफोर्म करने के लिए ट्रायल देने का चांस मिला, वहाँ इतने सारे एथलीट्स को एक साथ देखना मेरे लिए काफी फेसिनेटिंग था. हालाँकि प्रेक्टिस में मेरी परफोर्मंस अच्छी नहीं थी. राईफल पकड़ते वक्त मुझे स्ट्रगल करना पड़ रहा था.
Year | Event | Achievement |
---|---|---|
1998 | World Championship, Barcelona | 574 Shots |
2000 | World Cup | 24th Position |
मेरा हाथ भी बार-बार हिल रहा था. मेरा ओलिंपिक स्कोर धा 590. और मेरे सिर्फ एक पॉइंट,591 ने मुझे फाइनल में जगह दिला दी. पर मैंने उम्मीद अभी छोड़ी नहीं थी, मेरी नजर अब एथेंस ओलंपिक्स पर थी.
ब्रेकथू एंड बैटल्स (Breakthrough and Battles)
गोल्फ स्टार्स के पास प्राइवेट जेट्स होते है जबकि हम शूटर लोग एयरपोर्ट के चक्कर लगाते है. फ्लाईट से चार घंटे पहले हम एयरपोर्ट पहुंचे धे क्योंकि हमे एयरलाइन वालो को, कस्टम्स और सिक्योरिटी को अपनी गन्स शो करनी थी.
इसके लिए हमे पेपर्स शो दिखाने होते है और कुछ फॉर्म्स फिल करने पड़ते है. एक शूटर के तौर पर टीम के साथ ट्रेवल करना मुश्किल है. कस्टम्स में एक गन शो करने तक तो ठीक है पर 20-20 गन्स चेक करवाना काफी पेनफुल होता है.
एक बार तो मुझे नानजिंग एयरपोर्ट के पोलिस स्टेशन में नौ घंटे रहना पड़ा था. एयरपोर्ट के बाद शूटर्स कभी भी सीधे होटल्स नहीं जाते बल्कि उन्हें शूटिंग रेंज में जाकर अपनी गन्स डिपोजिट करवानी पड़ती है. 2007 में इण्डिया में मेरी ग्रांडमदर कैंसर से चल बसी थी लेकिन फेमिली में किसी ने मुझे ये बात नही बताई.
मेरी दादी मुझे शाइनिंग स्टार" बोलती थी और उसने मुझे दो लकी कॉइन्स भी दिए थे जो मै हमेशा अपने साथ रखता हूँ. बिसले, लंदन के कॉमनवेल्थ गेम्स में मैंने गोल्ड जीता तो मुझे अर्जुन अवार्ड मिला था. इण्डियन पार्लियामेंट, राष्ट्रपति भवन में मुझे ये अवार्ड दिया गया.
Overcoming Adversity
मेरे ग्रांडफादर व्हीलचेयर पर थे लेकिन वो मुझे टीवी में देख रहे थे. वो मुझे अवार्ड लेते देखकर बहुत खुश हुए थे. और उसके अगले ही दिन उनकी डेथ हो गयी, साल 2002 मेरे लिए काफी खराब रहा था. जब इंडियंस नेशनल टूर्नामेंट्स में कोम्प्टीट कर रहे थे तो उस वक्त मेरा सारा फोकस एथेंस में होने वाले ओलंपिक्स पर था.
उस टाइम मै योरोप में अकेला रह रहा था. बेहद ठंड पड़ रही थी, मेरे दिन उदासी में कट रहे थे. योरोपियंस टीम में ट्रेवल करते थे. एक कोने में पोल्स बैठे रहते थे, इटेलियंस भी ग्रुप बनाकर बैठते थे, और जर्मन्स भी हमेशा टीम में होते थे.
एक मै ही था जो अपने रूम में टीवी का रीमोट हाथ में पकड़े अकेला बैठा रहता था. मेरा ज्यादा टाइम शूटिंग में बीजी रहता और बहुत कम ब्रेक लेता धा. मुझे एक बार तब ब्रेक लेना पड़ा था जब 2006 में मुझे बैक इंजरी हुई थी. दूसरी बात मैंने तब ब्रेक लिया जब मेरी सिस्टर की शादी थी.
Challenges in Training
वर्ल्ड का हर शूटिंग इवेंट अटेंड किया था, मैंने कभी कोई होलीडे नहीं लिया, बीजिंग: मिशन इम्पॉसिबल Beijing:Mission Impossible मै एकदम बेफिकर होकर बीजिंग आया था, पर जैसे-जैसे शूटिंग मैच का दिन पास आता जा रहा था मेरी रातो की नींद उड़ गयी थी.
मै स्लीपिंग पिल्स लेने अपने डॉक्टर के पास गया तो उन्होंने बोला" मेडिटेशन करो, पिल्स की जरूरत नही पड़ेंगी, लेकिन मै इटेलियन्स के पास जाकर नींद की गोलियां मांग ली. ओलिंपिक ओपनिंग सेरेमनी काफी पोजिटिव एनर्जी से भरपूर इवेंट है पर साध ही काफी थकाता भी है.
शूटिंग से एक दिन पहले मैंने मैकडोनाल्ड का मील खाया और एक लॉन्ग वाक पर गया. मै अपने रूम की बालकनी में सुबह के 3 बजे तक खड़ा था. हालाँकि मैं हैबीचुअल ड्रिंकर नहीं हूँ पर उस रात सोने से पहले मैं जैक डेनियल्स की पूरी बोटल पी गया.
Competing in Beijing
नेक्स्ट डे जजमेंट डे था. चाएनीज़ जहू कीनन (ZhuQinan) डिफेंडिंग चैंपियन था. मैच स्टार्ट हुआ, मेरा फर्स्ट शॉट 10.9 था. पर इसे सिर्फ 10 ही काउंट किया गया. और दस शॉट्स के बाद मेरी गेम पर मेरी पकड़ ढीली पड़ती जा रही थी.
मेरा लास्ट शॉट 9 था. मैंने 596 का स्कोर बनाया और फाइनल में पहुँच गया, फाइनल में क्वालीफाई होने के बाद में नंबर चार ! फिनलैंड का हेनरी हविकिने (Henri Hakkinen 1598 पर पहले नंबर पर था. उसके बाद डिफेंडिंग ओलंपिक चैंपियन जहू कीनान 597 पर और फिर एलिन ज्योज मोल्दोवेन्यू (Alin George Moldoveanu) और लास्ट में मै 596 पर.
हमे फ़ाइनल के लिए 30 मिनट तक लगातार शूटिंग करनी थी. मेरा फर्स्ट वार्म अप शॉट 4 था जिसकी वजह से मै काफी डरा हुआ था. लेकिन फाइनल का मेरा फस्स्ट शॉट 10.7 था, उसके बाद मेरे सारे शॉट 10 से ऊपर गए.
थर्ड शॉट तक में सेकंड पोजीशन पर पहुँच गया था और सेवेध शॉट आते-आते में सबसे आगे था. नाइंथ शॉट में मेरा और हक्किनेन का टाई-अप हुआ था. मेरा लास्ट शॉट 10.B था और हक्किनेन ने 9,7 स्कोर किया था.
मेरे कोच, गैबी ने मुझे धम्स अप का ईशारा किया पर मुझसे समझने में गलती हो गयी. मुझे लगा कि वो बोल रही है कि मैंने मेडल जीता है. डर के मारे मैंने स्कोर बोर्ड को देखा तक नही, मैंने उससे पुछा" मैंने कोई मेडल जीता क्या?" तो उसने कहा" हाँ गोल्ड मेडल".
कनक्ल्यू जन (Conclusion)
ये बुक एक वर्ल्ड क्लास शूटर और इण्डिया के इंडीविजुअल ओलिंपिक गोल्ड मेडलिस्ट अभिनव बिंद्रा की लाइफ का पर्सनल रिकॉर्ड है. इस बुक में बिंद्रा अपने सालो की मेहनत, ट्रेनिंग और एक्सपीरिएंस को अपने शब्दों में रीडर्स के साध शेयर करते है.
बुक शोर्ट चैप्टर्स में लिखी गई है जो पढ़ने में काफी इंट्रेस्टिंग है. अभिनव ने अपने कोचेस के बारे में और जर्मनी के शूटिंग रेंज में ट्रेनिंग के बारे में तो लिखा ही है साथ ही अपनी विक्ट्रीज़ और अपरी हार के बारे में भी बताया है.
उन्होंने एथेंस के ओलंपिक्स में अपनी हार का भी जिक्र किया है और ये भी बताया कि केसे ये हार उनके लिए एक स्टेपिंग स्टोन बनी जिससे कि वो फाइनली बीजिंग ओलंपिक्स में गोल्ड मेडल जीत पाए. ये बुक ना सिर्फ एथलीट्स को पढ़ने में अच्छी लगेगी बल्कि हर किसी को इंस्पायर करेगी जो अपनी लाइफ में कई तरह के चैलेंजेस से जूझते हुए अपने अल्टीमेट गोल तक पहुंचने की कोशिश कर रहे है.
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