BRAINSTORM by Daniel J. Siegel.

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ये किताब किसके लिए उपयोगी है

-पैरेंट्स और गार्जियन के लिए

-टीनेजर्स के लिए

-साईकोलागी में हटरेस्ट लेने वालों के लिए

लेखक के बारे में

Dariel 1 Siegel ने हाई विश्वविद्यालय से पढ़ाई की है. साथ ही साथ लेखक नै यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया में रिसर्च भी की है. मोजूदा समय में लेखक UCLA में गडिसिन के प्रोफेसर है. इसके साथ ही ये साइकोथेरेपी को प्रेजिरस भी करते हैं. इन्होने कई किंताबे ब्रेन और एजुकेशन के ऊपर लिली है:

टीनेजर्स का बिहेवियर एक दम नॉर्मल होता है

आप इस बात से तो वाकिफ होंगे ही कि टीनेज का समय कैसा होता है? हर तरफ से उस उम्र से गुजर रहे इंसान को सवालों का सामना करना पड़ता है. उसके शरीर में भी काफी बदलाव हो रहे होते हैं. शायद, आज भी आपको याद हो वो किस्सा जब आप टीनेज के दौर से गुजर रहे थे. अगर आप टीनेज बच्चे के पिता या माता है. एक बार इस किताब को जरूर पढ़ियेगा.

किशोरावस्था को लेकर समाज में इतनी सारी भ्रांतियां फैली हुई हैं. लेकिन हम भूल जाते हैं या फिर हम ध्यान नहीं देना चाहते कि इस बारे में न्यूरो साइंस क्या कहता है?

अगर आपको ग्रोनअप लाइफ के बारे में समझना है तो फिर आपको न्यूरो साइंस के ऊपर भी नज़र दौड़ानी ही पड़ेगी.

इस समरी को पढ़कर आपको इसानी दिमाग के बेसिक साइस के बारे में भी पता चल जायेगा उस उम्र के पड़ाव को समझाने की समझ़ा भी आपके अदर विकसित होगी.

इस बात में कोई संदेह नहीं है कि उम्र के पड़ावों में से टीनेज का समय काफी कठिन होता है. इस बात से भी कोई गुरेज नहीं है कि समय उसके लिए भी कठिन होता है, जो इससे गुजर रहा होता है और उसके लिए भी जो इसे मॉनिटर कर रहा होता है. इसीलिए कई बार ये देखा जाता है कि टीचर्स और पैरेंट्स अपनी आँखे चढ़ा लेते हैं, जब उनसे टीनेज की बात की जाती है.

टीनेजर्स से बात करता कठिन सकता है. लेकिन फिर भी आप उनसे इस तरीके से बात ना करें जैसे कि आप कोई जंग में जा रहे हों. नॉर्मल रहिये हमेशा

छोटे बच्चे अपने माता-पिता से काफी प्रभावित होते हैं लेकिन जब वो बड़े होने लगते हैं. यानी टीनेज के पड़ाव में पहुँचते है तो अधिकतर देखा गया है कि वो अपने माता-पिता से परहेज करने लगते हैं. कई बार ये सियु्शन पेरेट्स के लिए काफी कठिन भी हो जाती है. अगर इसी समय पेरेंट्स ये समझ जाएँ कि उनके बच्चे के बिहेवियर में ये बदलाव आने के पीछे का कारण क्या है? तो काफी हद तक प्रॉब्लम सॉल्व हो सकती है.

इसको आप इस एग्जाम्पल से भी समझ सकते हैं. चिड़िया अपने बच्चे को घोसले में रखती है. लेकिन एक वक्त आता है जब उन बच्चों को आकाश में उड़ जाना पड़ता है. यही चीज टीनेजर्स के साथ भी होती है, वो खुद को इस दुनिया के लिए तैयार कर रहे होते हैं.

पेरेंट्स को समझना वाहिए कि इस दौर में इंसानी शरीर में काफी ज्यादा उर्जा रहती है. तो अगर आपका बच्चा थोड़ा रिस्क भी ले रहा है तो वो कुछ गलत नहीं कर रहा है. आप बस उसका साथ देते हुए उसे गाइड करते रहिये युवा रिस्क लेने से नहीं डरते लेकिन उन्हें पता नहीं होता है कि रुकना कहां है

लेखक की एक पेशंट है. टीनेज ही है. नाम है कैटी. स्कूल में इनके बिहेवियर के कारण इन्हें लेखक के पास ले आया गया केटी ने अपने स्कूल की पार्टी में शराब पीने की शुरुआत की थी. ये आदत इतनी बढ़ गई कि केटी को अस्पताल तक जाना पड़ा.

नशा उतरने के बाद केटी काफी आचम्भित दिख रही थी कि वो हॉस्पिटल कैसे पहुंच गई? कई लोग सोचते हैं कि टीनेजर्स को परिणाम का पता नहीं होता है. लेकिन ये सोच पूरी तरह से सत्य नहीं है. सत्य तो ये है कि टीनेजर्स को पता होता है कि उनके इस कदम से क्या हो सकता है? लेकिन वो बस अपनी क्षमता को परखना चाहते हैं.

यही चीज़ केटी भी कर रही थी. केटी को मालुम था कि स्कूल में शराब पीने से क्या हो सकता है? लेकिन फिर भी उसने वो किया क्योंकि उसे वो करना था. केटी का बिहेवियर दिखाता है कि केटी रिस्क लेने से नहीं डरती है. लेकिन उसे पता नहीं था कि रुकना कहाँ है. इसके पीछे एक साइटिफिक रीजन है. वो रीजन है डोपामाइन हॉर्मोन जो कि दिमाग में रिलीज होता है. इसी हॉमोंन से इंसान को खुशी का एहसास होता है.

बड़ों की अपेक्षा ये हॉर्मोन टीनेजर्स के ब्रेन में ज्यादा रिलीज होता है. उसी की बजह है कि टीनेजर्स बहुत ज्यादा उत्तेजित भी हो जाते हैं,

टीनेजर्स को समझाने के लिए आपको पहले उनके दिमाग की केमेस्ट्री को समझना पड़ेगा. इस एनर्जी का गलत असर भी हो सकता है. इसलिए सबसे पहले आप उन्हें समझने की कोशिश करिए फिर उन्हें समझाइये. इसी पर हम आगे बात करने वाले है.

हमने देखा भी है ओर पड़ा भी है कि टीनेजर्स रिस्क लेने से तहीं इरते हैं. कई बार यो रिस्क फायदे दे जाता है तो कई बार नुकसान भी देता है. उन्हें अच्छे से पता होता है कि इस रिस्क के बाद क्या-क्या परिणाम आ सकते हैं। लेकिन जब उन्होंने मन बना लिया तो बना लिया. अब सवाल उठता है कि वो फैक्टर क्या है जिसकी वजह से वो रिस्क ले पाते हैं, आपको बता दें कि वो है दोस्ती और फ्रेंड्स,

टीनएज में बच्चों की सोशल इंगेजमेंट काफी ज्यादा बढ़ जाती है. एक स्टडी में कई युवा बच्चों से कहा गया कम्प्यूटर गेम खेलने के लिए. ये गेम कार ड्राइविंग का था. इस अध्ययन में ये निकलकर सामने आया कि बच्चे जब अपने दोस्तों के साथ खेल रहे थे तो उनकी ड्राइविंग काफी रिस्की थे यानी आप समझ सकते हैं कि बच्चों के अदर अपने दोस्तों को देखकर रिस्क लेने की क्षमता आती है.

अब छोटा सा किस्सा आपको सुनाते हैं. लेखक के दोस्त का एक बच्चा है. उसका नाम बेंजी है. बेजी जब 13 साल का था तब कहीं वो दूसरों के साथ घूमने गया था वहां पर सब ऊपर से समंदर में छलांग लगा रहे थे. उन्होंने बैजी वे भी बोला. बैंजी ने छलांग भी लगा दी लेकिन उसे नहीं मालुम था कि पैर को मोड़ना भी है जिसके कारण उसके दाटे पैर में फ्रेवचर हो गया था. बाद में बेंजी ने बताया कि वो बिल्कुल छलांग नहीं लगाता अगर दूसरे बच्चे प्रेशर ना डालते तो, इसे यहते हैं पीयर प्रेशर. इसी एवोल्यूशन से बच्चों का सोशल कनेक्शन भी जुड़ा रहता है. इसी का कनेक्शन उनका घर छोड़ने से भी रहता है.

याद करिए जब आप पहली बार घर से बाहर रहने के लिए गये थे. तब आपने क्या किया था? सबसे पहले तो इंसान ये कोशिश करते है कि उसकी कुछ जान पहचान हो जाए. उसी को न्यू सोशल बॉन्डिंग भी कहा जाता है,

आज के दौर में भी एक बेसिक प्रिंसिपल सच है. वो प्रिंसिपल ये है कि अगर टीनएजर घर से बाहर जाते हैं तो वो अपना एक सोशल कनेक्शन भी बनाते हैं. इसी सोशल कनेक्शन से उनकी एक अपनी पहचान बनती है. ये पहचान सफलता के मार्ग में जाने के लिए सहायक भी बन सकती है. जब वो अपने कम्फर्ट जोन से बाहर निकलकर काम करेंगे तभी वो जीवन का सही मतलब भी जान पायेंगे विड़िया के बच्चे को भी उड़ने के लिए घोंसला छोड़ना ही पड़ता है. तो ये तो ईसान है. अगर लांग रन में देखा जाए तो घर

से बाहर जाना अच्छा ही होता है. इस सफर में युवा अच्छी एजुकेशन के साथ नौकरी भी पाते हैं. साथ ही साथ उन्हें जीवन के सघर्ष का भी पता चलता है.

टीनेजर्स को गाइड करिए

माज के दौर में जब बात पैटिंग की मानी तो अधिकलापोट्स ये कोशिश करते है कि अके बच्चों को वौ टीनेज की उम्र में अकेला छोड़ दे, इसके पौधे का रीजा यह होता है कि मेरदम मौनते है कि बच्ने अपने रास्ते वो खुद तलाश करें, यहां पर हम सवाल यह करना पाइले हें कि आम इस इमोच को सही मानों है या गलत मानते हो इस तात की सोच रखने में कोई बुराई नहीं है लेकिन तब भी कुछ पैरेटल इवाल्चमेंट होना जरूरी है, लेखक इस बारे में ऐसे ही नहीं बोल रहे है बाकि लेखक का एक पर्सनल एक्सपीरियस भी है

लेखक के दोस्त का एक टीनेज लड़का है. जिसे डाइजिंग का बहुत शौक है, उसके परिट्स ने उनको खुली छूट दे दी थी कि जैसे मन हो तैसे गाड़ी चलाभो. एक दिन उसने अपनी गाड़ी को पेड़ से तोक दिया था उस एक्साईट में दास गाड़ी का ही नुकसान हुआ था इस पर उसके पैरेंट्स का रिस्पास था कि वो उसै नई कार टिलया टेंगे.

उसके पैरेंट्स ने उसे दूसरी कार भी गिपE में दी. लेकिन इस बार हादसा बड़ा था इस बार उस बच्चे ने कार को दूसरी कार से ठोका वा राब्वे की कार्ड पसलियाँ टूट चुकी थी और वो डॉमिरल में एडमिट था आपको बता दे कि कई सारे तरीके हैं जिनकी मदद से आप अपने बयों की हेल्प कर सकते हैं आप उसे बता सकते हैं कि कैसे वो सिकल रिस्क लेते समय उन्हें किन चीजों का ख्याल रखना है. सबसे जरूरी बात आप उन्हें बताइए कि अगर वो रिस्क लेते हैं तो जन्म रुकता कहा हो, महाभारत के युद्ध में जो गलती अभिमन्यु के माता-पिता ने की थी. तो गलती आप ना करिए सलिए इस कांसे को तेज विंग से ही समाते । तेशा माइमि के समय बेन से डोपामाइन रिलीज होता है इसी डोपामाइन के कारण इसान को काफी बेहतर लगता है लेकिन तेज़ विंग से आप सिर्फ अपनी ही जात को रिस्क में नहीं डालते हैं बल्कि सामने वाले की जान के साथ मी आप खिलवाड़ कर रहे होते हैं.

इसीलिए अगर आपके बनेको स्पीड पसंद है तो उसे बताइए कि और भी ऑप्शन है जिसमे रिस्क का है स्पीड के लिए आपकाबला एक्लेटिक का सहारा ले सकता है गो-कार्ट सिंग का ऑप्शन भी उसके पास है. लेकिन टीनेज बव्ये को आपको इन सब चीजों की भूबियों से रूबरू करवाना पड़ेगा लेखक ने खुद इस टेकनिक का उपयोग अपने बच्चे के साथ किया था. बता दें कि लेखक का बेटा भी टीनेज उस काही लेखक उसके साथ स्केट बोडिग कने गये थे, इस तरीके से उन ने अपने बेटे को भी बेहतर हमसे समझाने की कोशिश की थी

अगर टीनेजर्स को मौका मिलता है सैपटी के साथ किसी रिस्की एक्टिविटी में भाग लेने का तो एक्टिविटी से ना डाउट सको काफी ज्यादा फायदा ही होता है इसलिए उन्हें ग्रिल एक्सपीरियम कसे से मत रोकिये बस उन पर ध्यान रखिये कि वो जो कर रहे हैं उसमें सेपटी मेवा का यूश हुआ है कि नहीं, अगर नहीं हुआ है तो आप उनके सामने कोई दूसरा ऑप्शन रखिये.

सचाई की बात करे तो सबके दिमाग में टीनेजर्स को लेकर एक इमेज रहती है. आपके दिमाग में भी होगी मुई की बात ये है कि ये इमेज सही नहीं रहती है. अगर कोई टीजर आपको दिखता है तो आप उसके बारे में कया गोक्ते टपाला व्याल आपके दिमाग में आता हे किये आलसी होगा. ये रात भर पार्टों करता दोगा लोग टोनेज् को काफी जल्दी जाकरलेते उन मन बातों के अलग अगर बात करें तो टीनारज वो समय होता है जब किसी बच्चे का सबसे ज्यादा स्पीड में विकास हो रहा होता है इस विकास की रफ्तार आपको जके साये से भी पता चाल जाती होगी. यही यो जागय होता है जब उसके अंदर बायसे ज्यादा मोडक्टिविटी होती है अगर सास मोडक्टिविटी को वो सही जगह इस्तेमाल करता है तो आका भविष्य भी उज्जवल होता है इसी के विपरीत अगर इसी प्रोडक्टिविटी का इस्तेमाल सही से ना हो तो इसके परिणाम काफी भयानक भी हो सकते किशोरावस्था में भेन के एक प्रोसेस की शुरुआत होती है इस पसेस की प्रनिग कहते हैं.

अचपन में इसान का दिमाग काफी ज्यादा मात्रा में याराम का प्रावधान करता है जिसे सीप्सेस कहते हैं जय किशोरावस्था आता है तब दिमाग को सीप्सिन की ज़रूरत नही रहती है प्रमी वजह से कुछ न्यूरल सर्कट भी कमजोर पड़ जाते हैं.

इससे एक सवाल का भी जम होता है कि पाखिर ग्रेग का कसे पता चलता है कि से भय गयुरोन की जरूरत नहीं है इसका जवाब ये है कि ये पहले के एक्सपीरियंस पर डिपड करता है

अगर काव्या ये दिखाष्ट कि उसे म्यूजिक में इंटरेस्ट है तो ये कोशिश करनी चाहिए कि किशोरावस्था में पहुंचने से पहले ही वो म्यूजिक इंग्मेंट हाजाना सौख्य जाए अगर वो बचपन में ही स्टुमेट सीख जाता है. तो उसका दिमाग भी मान लेगा कि ये चीज़ जरूरी है, सकी में नहीं भूल सकता है, एक बात समझा लौजिये दिमाग के खेल में पूरी चीज मानने की ही होती है।

प्ररिंग की पूरी प्रोसेस टीनएज से शुरु होती है और एडल्टहुड तक चालती है इस प्रोसेम से बच्चों का मोकन और कसंदेशन अका डोला है. प्रातग कीী प्रोसेस टीनेजर्स को फोकस करने में मदद करती है. अब ये पाईट ऑफ फोकल कुछ भी हो सकता है, ये कोई खेल या म्यूजिक भी हो सकता है जब बच्ची अपनी रूचि में फौकस करते हैं तब दिमाग अपने नयूरोस को आटेश टेता है कि यो बाँडी में इस तरीके से काम करे जिससे बच्चों की मदद हो सके दिमाग की कैमिस्ट्री पहाइ बढ़ने से भी ज्यादा काम्पलेवा है

अब आपके मन में एक सवाल भा रहा होगा कि क्या प्रतिग की प्रौसेस सभी के दिमाग में होती है और अगर ये प्रोसेस ना हो तो क्या होगा भापको बता दे कि अगर ये प्रोसेस नहीं होती है तो दूसरी प्रोसेस होली है. दूसरौ प्रोसेस का नाम है माईलिनेशन इस प्रोसेस से इनानी दिमाग और मजबूत होता है उस फेज में न्यूरोस से माइलोन नाग का फैटी पचाय मिलता है, वो फैटी पदार्थ नयूरोग की कोटिंग कर देता है कोटिंग करने में फायदा ये होता है कि एक नयूशंस से दूसरे तुरंत ठीक मैसेज काी जल्ती-जल्ती टान्मफर होते हैं

किशोरावस्था में दिमाग में हो रही ये विन्या इतनी महत्वपूर्ण है कि इसी की वजह से वजे की कैसशन बैतर होती है इसीलिए कहा गया है कि नीम का सबसे महत्वपूर्ण समय यो होता हे जब आपको कोई महत्वपूर्ण नहीं समझता है इसका सीधा मतलय निज में ई टीनेज के समय ना हो गव्यों का कोई सम्मान करता है और ना ही उन्हें महल दिया जाता है लेकिन कई अध्ययन में ये बात साबित हो चुकी है कि जीवन का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा टोज ही होता है इसके पीए का एक कारण ये भी है कि इसी सनय इसान अपने भविष्य का निर्माण कर रहा होता है इसलिए अगर आपके आस-पास कोई टीज है या फिर आप टीनेज के पारस है तो अपने बच्चों से दोस्ती कर लीजिये, इस समय आपके बच्चों को एक दोस्त की जरूरत है जो उन्हें समझ सके और उनको अकी राह दिमा सके टोज के समय ही बच्चा बचण में सीखी गई स्किल को परफेक्ट भी बना सकता है टीनेजम के दिमाग में काफी ज्याला कर्जा रहती है अगर जो इन उर्जा का इस्तेमाल सही दिशा में कर दें तो उनका जीवन निखार जार. एक और महत्वपूर्ण बात ये है कि उसी समय टीनेजर्स अपने अदर क्रिटिकल चिकिंगमी पैदा करते हैं इसक़ा मटलब साफ है कि बच्चे से बड़े बनने मैं बीच की ये प्रक्रिया काफी ज्यादा महत्वपूर्ण है.

टीनेजर्स को माफ़ करना भी आपको सीखना पड़ेगा

बाजार में नएज के ऊपर बहुत सी किता भौजी है. इस समाज में भी कई गलतफहमिया तैरती है कि टीनएज में बगै कैसे हो जाते है। उनके साथ कैसे त करना चाहिए लेकिन सबसे जरूरी बात जो हम जानते हैं कि जोगाच्या टोरज में है वह अपनी स्वतंत्रता के लिए अपने आप को आगे उबल रहा होता है और कई बार यही स्वतन्त्रता की मांग उसके भाई आती है. लोगों को ये मांग पसंद नहीं आती है

अधिकतर बार आपको ये भी देखने को मिलेगा कि न की चाइस में कई बार बच्चे काफी रयुड भी हो जाते हैं

आगर आपने अभी तक इन साथ बातों के बारे में नहीं सोचा हे तो अब सोचना चाहिए. इमें टीनटार्स को सीरियसली लेना चाहिए क्योंकि टीनएजर्स डी गोसाइटीका पधुवर सोसाइटी को कुछ देना हे तो बड़े नहीं दे सकते हैं टीनस ही दे सकते हैं. इसलिए अ ये जिम्मेवारी हमारी बनती है कि हम इनका बडा ख्याल रखें. जाज जितना हम इनका ख्याल रखेंगे हमारा कल और हमारे समाज की रूपरेा जनी ही बेहतर बनेगी. ववों हे टीनए अग होटे हैं इसके पौधे कारण यह है कि े प की तरह हते हैं, जी अपने टीवर और अने पेरंट्स से फमशन को गत कते हैं और उन्हें जो सिाा जाता है वह ठौक उसी पद धिन्ों गें इत चीज को करते हैं

वो ये नहीं सोचते कि इससे अलग भी दुनिया हो सकती है।

लकिन टीना का दिमाग ऐसा नहीं होता है टीनेजर्म का टिमाग थोड़ा रिॉल की तरह होता है, वो थोडे बागी तेवर के हो जाते हैं क्योंकि के दिमाग में न्यूरास का मंचार बत जाता है इसलिए उनको भगर कोई कुछ सीता है, तो वो उस सीन के बाहर भी सोचते हैं कि इसके अलावा भी दुनिया हो जाती है।

किशोरावस्था में बब्वे सब से अलग हो जाते हैं इसका कारण यह है कि उनके अटर एटस्टक्ट थिकिंग का डेवलपमेंट होता है और इसी डेवलपमेंट के कारण के अंदर किरातवटी आती है तो अपो अस्तित्व को पहचानने लगते हैं, मके अंदर एक ऐसी सोच का निर्माण होता है जिससे वह अपने नजरिए का ठेवलपमेंट कर पाते हैं वन समर जाते हैं कि किसी भी प्रॉब्लम का मलशान वा खुट भी टूठ सकते हैं इसका एजापल हम डिजिटल क्रांति से भी समझ सको समाज में देखिए सोशल मीडिया का प्रभाव कितनी तेजी से बढ रहा. सबसे पहले रोनेजर्स ने ही इस प्रभाव बडाया था.

असाल आप देख सकते हैं कि माज के समय पर सोशल मीडिया में कम्युनिकेशन के लिए कितनी बड़ी तादाद में टीनेजर्स मौजूद है. उन्हें पता है कि हटरनेट का मोटेशियल क्या है इसके साथ ही उन्हें ये भी पता है कि सोशल मीडिया से बचा-बचा हो सकता है?

इसी के साथ भाप यूट्यूब की जाति को टैरियर यूट्यूब के टरेड लौडर्स में कई टीनेजर्म हैं

हम ये समझते हैं कि उनके पेरेंट्स को मुस्किल होती है ये समझने में कि उनके बच्चे क्या चाहते है लेकिन आज के दौर की ये जरूरत है कि समझे कि इस समाज के टीनेजर्स क्या चाहते हैं। कई बार देखा गया है कि टीनेजर्म ते बसों में हेतु सुझाव दिए हैं काई बार ऐसा देखा गया है कि टीनेजाम ने सुझाव तो मही टिया है लेकिन लोगों ने उन्हें गलत समझ लिया है इस बारे में लेखक का निजी एक्सपीरियम भी रहा है।

लेखक का टोटा है वो भी टीनेज ही है. एक बार की बात है उनका बेटा अपने स्कूल के प्रेसमेंट में अपने बैंड के साथ प्रेफ्टिस करने पहुंचा था प्रावटेस के दौरान उन्होंने सभी स्तिव को औन फरके अपने सिस्टम को लगा टिया और जाल्यूम तेज कर दिया. वॉल्यूम तेज करने से उनकी प्रैक्टिस सडिया होती थी. लेकिन स्कूल की खिड़कियों के कुछ ग्लास टूटे हुए थे. जिमके कारण आचाज क्लास मैं भी जाने लगी थी.

अ स्कूल टीचर की एटी होती है उन्होंने ये नहीं देखा कि स्कूल की खिड़कियां टूटी हुई हयाल्के उस पव्वे को डॉट लगाने लगीं कि तुमने जान बूझकर क्लास को हिस्टय किया है. हालांकि बाद में टीचर का ध्यान खिडकिया पर गया और को अपनी गलती का एहसास भी हुभा लेकिन इस किस्से से ये तो पता चलता है कि हम जज़ भी गलत करते हैं. कई बार टीजन सही होते हैं लेकि हम अपनी हो के कारण उन्हें सही मानने से इंकार करते रहते हैं,

इस अध्याय का सार ये है कि टीजर्स को समा थोड़ा मुश्किल जरूर होता है लेकिन असभव नहीं होता है इसलिए हमें कोशिश करते रहना चाहिए कि हमारे समाज का कल बेहतर हो. कल बेहतर करी के लिए हमें आज उसके ऊपर काम करना पडेगा. समाज का कल और मान टीनेजर्स ही है इसलिए पूरी कोशिश करिए उनका सही मार्गदर्शन करने का आप अगर इन्हें सही मार्ग दिखाते में तो ये उसपर चलकर आपको कभी निरा नहीं होने देंगे,

टीनेजर्स को इनकरेज करते रहिये

हीनएजर्स का समय बहुत दुविधाओं से भरा हुआ होता है. एक तरफ तो टीमेजस ये चाहते हैं कि उनका अपने माता-पिता से कनैक्सन अच्छा यी तो वहीं दूसरी तरफ चौ जिमेदारों से भी थोड़ा दूर ही मागते है. उन्हें हमेशा ये भी लगता है कि लोग उन्हें एपष्ट नहीं कर रहे हैं इस यात का फ्रस्टटेशन भी इनके अंदर रहता है कि आखिर लोग उनको जैसे वो ई वैसे डी ग्याँ नयाँ एक्सेए कर रहे हैं

इसलिए हमेशा टीनेजर्स की मदद के लिए आगे आना चाहिए, उनकी चुप्पी में भी कई सारे सवाल छपे हुए सोते हैं, उनकी मदद करिए, मदद सके रिलेशनशिप को लेकर भी हो सकती है. कई बार तो ये देखने को मिला दे कि पहले प्यार में धोखा क्याए बध्ये काफी दुखी रहने लगते हैं, यही यो समय हे जब आप उनकी मदद कर सकते हैं. उनको ज्यादा कुछ नहीं चाहिए बस एक बड़े की सलाह और साब चाहिए अगर कोर्ट पन्या यामक भान-पान टीनेज का हो तो उसे आप एक्सट करिए ठीक वैसे ही जैसा वो है भगर आप उसके पास जाकर कहते हैं कि तुम मुझे पसंद हो जैसे तुम हो, सिर देखिएगा उसके चेहरे की दमफ ही अतल जाएगी.

एकटरीवा और है इस तरीके का नाम हे पिले विकन्वर्सेशन’ अब अगर आप सोच रहे हों कि ये किस चिंडिया का नाम ह? तो आपको बता दें कि ये भी बाल्यौत हो है बस इसका ये मतलब होता है कि आप उनसे बात करिए बिना फिल्टर के टॉपिक कोई भी हो सकता है.जसे वैसा ही रखिये जैसा जो है.

बिना फिल्ल बात करते समय आपको फर्क नहीं पड़ना चाहिए किमाने याला आपके बारे में क्या सोचता है आपको बस ये कोशिश करनी है कि सागने वाला आपको सुने और अपनी पूरी बात आपको बता दे समझ लीजिय कि आपको उसके सारे राज जानने की कोशिश करता है, ये रमलावटव कत्तासशन इतना आसान नहीं है. इसके लिए आपको काफी चतुर होना पड़गा.

ये आगिया बस बेहतर बातचीत के लिए या तो अगर की मापका मूड ऑफ रहता है तो आप उनसे सीधे बता दीजिये किमान आपका मुह गयोहा सराब है कई लोग नको पार कर देते हैं या फिर कल तरीके से जवाब देते हैं इसी के साथ अगर आपको और पर्सनल मैटर पर बात करनी है तो भी आप उनको सीधा बोलिए कि मुझे थे नौज जानता है, नसे आप उनके सपनों के बारे में, रिलेशनशिप के बारे में, प्यार और सेक्स के बारे में भी बात । कर सकते हैं. यहां पर ये जिम्मेदारी पेरेंट्स की होती है कि वो अपने बच्चे को बताएं कि रेफ्लेविटेव कन्वर्सशन काम कैसे करता ह? अगर आप इस बातचीत के बारे में अपने बच्यों को समझाने में कामयाब हुए तो आप खुद देखेंगे कि आपके बच्चों का रिलेशन आपसे कारण बेहतर हो गया है

इस बातचीत के बाद प्रों को ऐसा लगेमा ही नहीं कि अब मुझे कोई बात अपने माता-पिता से शुपानी याटियः इसी के साथ उन्हें ये भी पता पल जाएगा कि कोई भी यात अवछे तरीके से कैसे की जा सकती है? रेफलेक्टि कन्जर्सेश मे एक फडानेंटल समझ पढा होती है कि बड़ी-बड़ी बात को आराम से भी किया जा सकता है

रेपले्टिव कन्याशन के कई फायदे भी हैं इसका पहला फायदा। दक्रिएशन ऑफ एराधी

इसके पीछे साइन काम करता है उसके ऊपर कह रिसर्द भी है अधिकतर मध्ययन में ये निकलकर सामने आया है कि रैफ्लैक्टिव कन्वन से ब्रैन में अच्श प्रमाव पडता है ब्रेन के प्रीफ्रम्टल कोटक्स में इसका अछा प्रभाव पड़ता अब आप सोचो कि फ्रीफ़नटल को्टेक्स आन्िर सोता क्या है।

आपको बता दें कि ये खेल का वही हिस्सा होता है, जहाँ पर स्तानिंग और प्रॉब्लम सॉल्विंग टास्क होता है. इसके सा ही ये हमारे दिमाग को ये भी बताता है कि नुसरों से बात केसे करें पजाम्मत के लिए समझिये कि आप किसी को पाते हैं. आप उसको सिर्फ सुनने के लिए नहीं सुा रहे हैं. ताल्कि भाप उसकी छातो में गुपी गई भावनाभी को भी समझ रहे हैं

अ आप सोचिंबो हमारा दिमाग कितना काम करता है? आप सोते भाई को भी आपका दिमाग काम कर रहा होता है इसलिए कहा जाता है कि शरीर में सबसे ज्यादा ख्याल दिमाग का हो रखना चाहिए. इसका मतलब साफ है कि जागर मेजस रफ्लेटिव कन्चन में हिम लेगे तो वो अपने दिमाग में द क्रसन फ एम् की मी जना देंगी, एमी बस किसी से बागि के लिए ही जरूरी नहीं है बल्कि ये एक ऐसी नायल चीज जो हमारे पास होना ही चाहिए.

अब आती है एक और मुटे की बात कि आखिर टीनेजर्स को गाईड कैसे करे इसका जवाब सिंपल सा है कि पहले तो आप जको ओब्सर्व करिष्ट जब एक बार भाप उनकी जानते रहे कि उनकी रूह में क्या चल रहा है, तब आप उनसे बेहतर कनेक्ट हो सकेंगे. इस समाज के क का निर्माण आजा के टीनेज के ऊपर है. इसलिए टीनेजर्स के टीचर्स और माता-पिता के ऊपर काफी बड़ी जिम्मेदारी है, अब इस जिम्मेदारी को उन्हें कैसे पूरा करना है इसका जवाय आपणे उपर के आयायों में मिला चुका है.

एकाएगाामा से समझाते हैं, उससे पहले आप खुद से एक सवाल करिए कि क्या बिना मजबूत नींव के पोई ईमारत बन सकती है? और अगर धन भी गई तो कितनों की जान खतरे में रहेगी जब एक ईमारत बिना ठोस गीत के नहीं बन सकती है. तो फिर एक समाज और देश कसे बनेगा बिना टीनेज को सही मार्ग दर्शन मिले हुए इसलिए टीनेजस अपनी शिमेवारी समझते हैं. वो अपना काम बेहतर तरीके से कर लेंगे लेचिन क्या आप अपनी शिशोदारी समझाते हैं? आपकी जिम्मेदारोबस अपनी आँखे और कान खुली रसाने की हैं आपको उन्हें इतना बताना है कि इस सफर का सोड में साइ कर आरता गाड़ा धीमा कर ले. गाड़ी धामा करने के लए हक की जरूरत होती है उन्हें बस आम जन डाक बता दीजिये. उसके बाद वो खुद इन्ले काबिल है कि अपनी जिंदगी कोरफ्तार कम नहीं होने देंगी

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