HOW TO TALK SO KIDS WILL LISTEN &LISTEN SO KIDS WILL TALK by Adele Faber and Elaine Mazlish.

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यह किताब किसके लिए है –

वेजो अपने बच्चे से परेशान हैं।

-वै जो अपने बच्चे की समझा को विकसित करना चाहते हैं।

वे जो चाहते हैं कि उनके बच्चे उन्हें सारी बात बताएँ।

लेखिकाओं के बारे में -:

एडिनी फेबर ( Adele Faber) एक भरमेरिकी लेखिका है जो बच्चों और पेरेंट्स पर किताबे लिखती है। वेबच्चों और बड़ों के बीच में बातचीत बेहतर करने की एक्सपर्ट है। वे इस वक्त न्यूयार्क में रहती हैं।

इलायन मैजिलश (Elaine Mazlish } एक अमेरिकी लेखिका हैं जो बच्चों और बड़ों के बीच बातचीत सुधारने पर काम करती थी। उनकी गौत 2017 में हुई।

यह किताब आपको क्यों पढ़नी चाहिए -:

बच्चों को समझाना कभी कभी बहुत मुश्किल हो जाता है। आप उसे मना करते जाइए कि वो बाजार में पिज्जा के लिए रोना बंद कर दे और उसका रोना बढ़ता ही जाता है। ऐसे मैं आपको कुछ ऐसे तरीकों की जरूरत है जिससे आपका बच्चा आपकी बात सुने और समझे।

बच्चों से अपनी बात मनवाने के लिए सबसे पहले उन्हें यह एहसास दिलवाना जरुरी है कि आप उससे अपनी बात क्यों मनवाना चाहते हैं। लेकिन अगर आपका बच्चा रोते ही जाए और आपकी बात ना सुने तो? अगर वो आपको पूरी तरह से अनदेखा कर के अपनी जिंह करने लगे तो?

यह किताब आपको इस तरह की समस्याओं से निपटने के तरीके बताती है। इस किताब कि मदद से आप अपने बच्चे को सही रास्ते और गलत रास्ते के बीच में फर्क करना सिखा सकते जिससे अगली बार वो खुद समझ जाए कि उसका ऐसा करना गलत क्यों है।

इसे पढ़कर आप सीखेंगे:

बच्चों की भावनाओं को समझाना क्यों जरूरी है।

बच्चों को हर वक्त यह क्यों नहीं बताना चाहिए कि उन्हें क्या करना चाहिए और क्या नहीं।

तारीफ किस करनी चाहिए।

बच्चों को शांत करने के लिए उनकी भावनाओं पर ध्यान दीजिए।

हम सभी के साथ एक ना एक बार ऐसा जरूर हुआ है जब हमारा बच्चा बाजार में कोई खिलौना देख कर रोने लगता है और हमारे लाख समझाने पर भी वो नहीं भानता। वो सबके सामने जोर जोर से चिल्लाने लगता है और हम उसे चुप कराने के लिए कुछ नहीं कर पाते और नाकाम होते हैं

ऐसे हालात में हम बच्चों से उम्मीद करते हैं कि वो उस बेकार से खिलौने के लिए रोना बंद कर दे। हम चाहते हैं कि वो अच्छे से बर्ताय करे। लेकिन एक अगर एक बच्चे को अंदर से बुरा लग रहा हो तो वो अच्छा बर्ताव कैसे कर सकता है। इसलिए बेहतर है कि आप उसकी भावनाओं को समझने की कोशिश कीजिए।

बच्चे नहीं सुनते क्योंकि आप उन्हें समझने की कोशिश नहीं कर रहे हैं। उन्हें लगता है कि आप उन्हें अनदेखा कर रहे हैं। ऐसे में अगर आप उन्हें कोई बात जबरदस्ती मानने के लिए करते हैं तो उन्हें गुस्सा आने लगता है। इस वजह से उसका चिल्लाना बढ़ जाता है।

इस हालत से निकलने का सबसे अच्छा रास्ता है कि आप अपने बच्चे की भावनाओं को समझिए। आप उससे कहिए, ” वो खिलौना तो वाकई बहुत अच्छा है, और तुम्हारे पास ज्यादा खिलौने भी नहीं हैं, ना? “। इस तरह से बात करने पर आपका बच्चा यह समझेगा कि आप उसकी भावनाओं को समझ रहे हैं और ऐसे में वो आपकी बात सुनेगा। अब अगर आप उसे कुछ समझाने की कोशिश करेंगे तो वह समझेगा। लेकिन अगर आप ऐसे किए बगैर सिर्फ अपना हुक्म चलाएंगे तो वह चिल्लाने लगेगा।

इसके साथ ही इस बात का ध्यान रखिए कि अगर आप उसकी भावनाओं को नहीं समझा पा रहे हैं तो उसे समझाने का झूठा नाटक मत कीजिए क्योंकि वो यह समझा जाएगा और फिर चिल्लाने लगेगा। कुछ भी बोलने से पहले एक बार उसकी नजर से दुनिया देखने की कोशिश कीजिए और यह महसूस कीजिए कि आप उसकी जगह होते तो अपने पेरेंट्स से क्या उम्मीद करते।

अपने बच्चे से अच्छे से बात करने के कुछ तरीके सीखिए।

जब हमारे बच्चे हमारी बात नहीं सुनते तो हमें बहुत गुस्सा आने लगता है और हम गुस्से में उनके साथ मार पीट कर देते हैं। लेकिन क्या इससे वो शांत हो जाता है? नहीं, बल्कि इससे उसका गुस्सा बढ़ जाता है और फिर वो हमारी बात नहीं सुनता।

सबसे पहले आपको अपने बच्चों से बात करने के कुछ तरीके सीखने होंगे। जब तक आपका बच्चा आपकी बात को अपने गन से सुनने के लिए राजी नहीं होगा तब तक उसपर आपके समझाने का कोई असर नहीं होगा। आइए देखें आप ऐसा कैसे कर सकते हैं।

मान लीजिए कि आप अपने बच्चे को टीवी देखने से मना कर रहे हैं और वो आपकी बात नहीं सुन रहा है। अब, उसे डाँटने से पहले आप उसे समझाडार कि टीवी देवना ये नुकसान क्या है। एक्जाम्पल के लिए, आप उससे कह सकते हैं – टीवी देखकर तुम अपनी आँखे और समय दोनों खराब कर रहे हो।”

इसके बाद आप उसे समझाइए कि इसके और क्या नुकसान हो सकते हैं। आप कहिए,” जब आँखें खराब हो जाएगी तो तुम्हें क्लास का बलेकबोई अच्छे से नहीं दिखेगा और तुम्हारी नाक को जिन्दगी भर के लिए चश्गों का बोझ उठाना होगा।”

जव्य आप अपने बच्चों से इस तरह की बात करेंगे तो वह खुद समझ जाएगा कि इसके क्या नुकसान है और वो खुद ही वो काम करना छोड़ देगा।

बच्चों को सजा मत दीजिए, उनके साथ समझौता कीजिए।

बहुत बार हमें ऐसा लगने लगता है कि अपने बच्चों को सजा देने से ही वे सही रास्ते पर चल पाएगे। अगर आप उन्हें सजा नहीं देंगे तो उनके मन से डर खत्म हो जाएगा और वे गलत काम करने लगेंगे। लेकिन सजा देने का नुकसान यह है कि बच्चे यह समझ नहीं पाते कि जिस काम के लिए उन्हें सजा दी जा रही है वो गलत क्यों है।

कई बार ऐसा होता है कि हम अपने मनपसंद आइडियाज़ और विचारों को अपने बच्चों से मानने के लिए कहने लगते हैं। एकाम्पल के लिए आप ने अपने बच्चों से छोटे बाल रखने के लिए जरूर कहा होगा। लम्बे बाल रखने से उसे लगता है कि वो स्मार्ट लग रहा है लेकिन जब उसे छोटे बाल रखने को कहा जाता है तो वह समझ नहीं पाता कि लम्बे बाल रखना गलत क्यों है।

इसलिए आप उसे सजा देने से पहले उसे यह समझाइए कि वो जो काम कर रहा है वो क्यों गलत है। आप उसकी बात भी सुनिए क्योंकि जरूरी नहीं है कि आप जो मानते हैं वो सच हो। हो सकता है कि उसकी बात सुनने के बाद आपको लगे कि वो सही बोल रहा है। अगर देखा जाए तो लम्बे बाल रखने में वाकई कोई बुराई नहीं है।

तो आप उससे बात कर के उससे समझौता कीजिए। अगर आपका बच्चा स्कूल से छूटने के बाद सीधा खेलने चला जाता है तो उसे समझाइए कि यह गलत क्यों है या फिर उससे पूछिए कि वो ऐसा क्यों कर रहा है। फिर आप लोग साथ में बैठकर ऐसा हल निकालिए जिससे आपकी चिंता खत्म हो जाए और उसकी इच्छा पूरी हो जाए। एक बार उसे सही गलत की पहचान हो जाएगी तो भाप के ना रहने पर भी चौ एक अच्छा इंसान बनकर रहेगा। लेकिन अगर आप उसे सजा देंगे तो वह गलत काम तो जरुर करेगा, बस आपके सामने नहीं करेगा।

अपने बच्चों को खुद से फैसला लेने का मौका दीजिए।

एक वक्त ऐसा जरूर आएगा जब आप अपने बच्चों के साथ नहीं होंगे और उसे बाहर की दुनिया में जाकर अपने काम खुद से करने होंगे। उस चक्त उसे खुद से फैसला करना होगा कि उसके लिए क्या सही है और उसे क्या करना चाहिए। हो सकता है उससे गलतियाँ हों, हो सकता है वो मुँह के बल नीचे गिर जाए, लेकिन उसे फिर से उठना भी खुद से सीखना होगा क्योंकि वहाँ पर आप उसके साथ नहीं होंगे।

अपने बच्चे को उस वक्त के लिए तैयार करने के लिए आप उसे अभी से फेसले लेने दीजिए। आप उसे खुद से यह सोचने दीजिए कि उसे क्या करना चाहिए। अगर वो यह तय नहीं कर पा रहा है कि उसे अपना होमवर्क करना चाहिए या फिर खेलने जाना चाहिए तो आप बीच में अपनी राय देने मत जाइए। आप उससे कहिए कि वो अपने समय को बाँटना सीखे और कुछ ऐसा करे जिससे उसका होमवर्क भी हो जाए और वह रखेल भी ले।

जब आप हर बार अपने बच्चे के बगल में खड़े होकर उसे यह बताते रहेंगे कि उसे क्या और कैसे करना चाहिए तो वह समस्याओं से लड़ नहीं पाएगा। यह वैसे ही होगा जैसे कि एक कोकून से निकलने के लिए मेहनत करने वाली तितली का काम आसान करने के लिए आप कोकून काट दीजिए। शायद आपको अंदाजा ना हो, लेकिन यह बो जहर है जिसका स्वाद बहुत मीठा होता है।

इससे मापका बच्चा समय के साथ आप पर बहुत ज्यादा निर्भर रहने लगेगा। एक वक्त ऐसा आएगा जब उसे खुद आपके बच्चे को यह लगने लगेगा कि वो किसी काम का नहीं है। लगने लगेगा कि वो अकेला कुछ भी नहीं कर सकता।

इसलिए आप अपने बच्चे को उसका काम खुद से करने दीजिए। अगर उसे वाकई मदद चाहिए तो उससे कहिए कि चो बाहर जाकर किसी से मदद मांगे, जैसे कि अपने दोस्त या टीवर से। उसे थोड़ा सा खुला छोड़ दीजिए ताकि बो दुनिया को अपने तरह से समझने की कोशिश कर सके।

अपने बच्चे को उसकी गलतियों से सीखना सिखाइए।

हम सभी से गलतियाँ होती हैं। लेकिन गलतियों को सुधारा जा सकता है और अगर नहीं सुधारा जा सकता तो उससे बहुत कुछ सीखा जा सकता है। अगर आपके बच्चे से कोई गलती हो जाती है तो उसकी बुराई मत कीजिए, बल्कि उसकी मदद कीजिए कि वो इस गलती से क्या सीख सकता है।

ठीक वैसे ही अगर आपका बच्चा कोई अच्छा काम करता है तो उसके काम की तारीफ कीजिए। तारीफ करते वक्त आप इस बात का ध्यान रखिए कि आपकी तारीफ से भी आपके बच्चे को कुछ सीखने को मिले। उसे यह पता लगे कि उसने जो किया उसमें क्या अच्छा है। इससे वो खुद की तारीफ भी कर पाएगा।

एक्जाम्पल के लिए अगर आपका बच्चा एक ड्राइंग बनाता है तो आप यह मत कहिए- तुम तो बहुत अच्छे आर्टिस्ट हो। ऐसा कहकर आप बच्चे की तारीफ कर रही हैं ना कि उसके काम की। जब तक उसे पता नहीं लगेगा कि वो अच्छा आर्टिस्ट क्यों है तब तक वो खुद को नहीं समझा पाएगा।

आप उससे कहिए- जो नदी तुमने पहाड़ों से निकाली है वो बहुत खूबसूरत है, और यह पेड़ तो बिल्कुल असली लग रहा है।

इसके साथ आप इस बात का ध्यान रखिए कि तारीफ करते वक्त आप उसकी पुरानी गलतियों को मत उभारिए। आप यह मत कहिए कि- पिंली डराहंग तो बहुत स्वराब थी, लेकिन यह अच्छी है। ऐसा करने से आपके बच्चे पर तारीफ का असर नहीं होगा।

इसके बाद आप अपने बच्चे पर बेवकूफ, नालायक, घमडी या ओवर-काफिडेंट होने का लेबल मत लगाइए। इससे आपके बच्चे को लगने लगता है कि वो वाकई वैसा है और समय के साथ वैसी ही हरकत करने लगता है। अगर आप अपने बच्चे को बेवकूफ कहते रहेंगे तो वो मान लेगा कि वो कुछ नहीं सीख सकता और समय के साथ बेवकूफ बन जाएगा। इसी तरह आप भी खुद को अच्छे से बुरे का लेबल गत दीजिए। सिर्फ खुद को पहले से बेहतर बनाने की कोशिश कीजिए।

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