यह किसके लिए है
वेजो खुशी पाने के तरीकों का इतिहास जानना चाहते हैं।
-वै जो खुशी पाने के तरीकों के नेगेटिव साइड को देखना चाहते हैं।
वे जिन्हे सल्फ हेला किताबें नहीं पसट है।
लेखक के बारे में
काल सेर्सट्रोम ( Carl Cederstrom) स्टाक्रहोम बिज़नैस स्कूल में प्रार्गनाइजेशन स्टडीस के प्रोफेसर हैं। वे काफी समय से उन तरीकों को खोज रहे हैं जिससे एक व्यक्ति खुद को बेहतर बना सकता है। वे एक लेखक है जो अपनी किताब द डेड गैन वर्किंग के लिए जाने जाते हैं।
यह किताब आपको क्यों पढ़नी चाहिए
“खुश रहने के लिए कामयाब होना बहुत जरूरी है”, “खुश रहने के लिए खुट को पहचानिष्ट’, “आपके अंदर वो ताकत है जिसकी कोई सीमा नहीं है और उसका इस्तेमाल कर
के आप कुछ भी कर सकते हैं; “सुनो तो अपने दिल की। इस तरह की बातें आप ने ना जाने कितनी सारी किताबों में और सेमिनारों में सुता होगा, लेकिन क्या आप ने कभी यह जानने की कोशिश की कि इन बातों की शुरुआत कहाँ से हुई थी? या उससे भी जरूरी सवाल यह कि – चया यह बातें सच हैं? आप वहीं जानते हैं जो आपको बताया जाता है। ज्यादातर लोग किताबों में लिखी गई बातों के पीछे की कहानी को जानने की कोशिश नहीं करते और वे उसे अपना लेते हैं।
यह किताब आपको बताती है कि स्खुशी पाने की जो अलर अलग थियोरी भाप अफ तक जानते हैं, उनकी शुरुआत किस तरह से हुई थी।
इसे पढ़कर आप सीखेंगे
हैपिनेस फैंटसी का क्या मतलब है।
हैपिनेस फैटसी की शुरुमात किस तरह से हुई थी।
सेल्फ हेल्प किताबें और पर्सनल डेवेलपटमेंट सेमिनारों की शुरुआत किस तरह से हुई थी।
हैपिनेस फैंटसी हमें बताती है कि किस तरह से हम खुश रह सकते हैं।
समाज हमें खुश रहने के अलग अलग तरीके बताता रहता है। कुछ का कहना है कि हम कामयाब हो कर खुश हो जाएंगे और कुछ का कहना है कि अगर हमारे पास सारी सुख सुविधा हो जाएगी, तो हम खुश हो जाएगे। क्योंकि यह सभी बातें हमें शुरुआत से बताई जाती है, हम यह मान लेते हैं कि सुशी हमें इसी तरह से मिल सकती है। हम खुद के तरीके नहीं अपनाते। हमें जो बात पहले से बताई गई है हम उसे मान लेते हैं।
इसे खुशी का टेम्पलेट कहा जाता है। अगर आप कभी माइक्रोसाफ्ट में एक बई डाक्यूमेंट बनाने जाएं, तो वहाँ पर आपको दो तरह के आप्शन मिलते हैं या तो आप एक तादा
टेप्लेट लेकर उसे अपने हिसाब से सजा सकते हैं, या फिर पहले से बनाए गए टेंप्लेट का इस्तेमाल कर के सिर्फ खाली जगह को भर सकते हैं। समाज में हमें इसी तरह के
टेप्लेट दिए जाते हैं और हमें उन वाली जगहों को भरना होता है।
इस टेंप्लेट का सबसे जरूरी भाग होता है खुद के बारे में जानना। खुद को समझाता। यह देखना कि आप खुद के बारे में क्या सोचते हैं, क्या महसूस करते हैं, आपकी अपनी क्या ख्वाहिशें हैं और क्या काबिलियत है। यह बातें बताती है कि आप असल में कोन हैं। लेकिन समस्या है इसके जरूरी भाग के आस पास की यीजें।
यह जरूरी भाग सबसे अंदर रहता है और इसके ऊपर बहुत सी लेयर्स चड़ी हुई है जैसे कि अंधविश्वास, बुरी आदतें, खतरनाक भावनाएं। यह सारी बातें समाज हमें बताता रहता है और हम इसे अपनाते रहते हैं। समय के साथ यह सारी परतें हमारी खुशी के उत जरुरी भाग के ऊपर कुछ इस तरह से चढ़ जाती है कि हम उस भाग को पहचान ही नहीं पाते। हम खुद के लिए ही एक झूठ बन जाते हैं और खुद को उन चीज़ों से खुश करते रहते हैं जिनसे हमें खुशी नहीं मिलती।
तो खुशी पाने का रास्ता बिल्कुल आसान है। इन परतों को हटाइए और खुद को पहवानिए। यह देखिए कि आप असल में कोन हैं। खुद को अदर और बाहर से एक बनाइए। खुद को अपनी खुशी के उस जरूरी भाग से जोड़ने की कोशिश कीजिए, जिसमें आपकी असली पर्सनेलिटी छिपी हुई है।
ऐसा करने से आप उस झूठ को अपने ऊपर से हटा कर एक सच्चे व्यक्ति बन जाते हैं और दुनिया के हिसाब से रहना छोड़कर खुद के हिसाब से रहने लगते हैं। आप वो काम करते हैं जिससे आपको खुशी मिलती है ना कि वो जो समाज करने के लिए कहता है। इस तरह से आप खुशी पा सकते हैं।
हैपिनेस फैंटसी की शुरुआत विल्हेल्म रीच से हुई थी।
1960 और 1970 दशक में कैलिफोर्निया में सभ्यता से संबंधित बहुत से अभियान निकाले जा रहे थे। यहाँ से हैपिनेस फैटसी की शुरुआत मानी जाती है क्योंकि लोग अपनी सभ्यता में खुशी खोजने की कोशिश कर रहे थे। लेकिन असल में इसकी शुरुआत 1920 के दशक में चिल्हेल्म रीच से हुई थी।
बहुत छोटी उम्र से ही रीच को सेक्स की लत लग गई थी। वो पाँच साल की उम्र से मैर्टेशन करते थे, अपनी माँ अपने टीचर के बीच चल रहे अफेयर को देखते थे और 1 साल की उम्र में उन्होंने पहली बार अपने घर की शेफ के साथ सेक्स किया। 1919 में वे 22 साल के हुए और इस समय भी उनके सेक्स की लत उनके साथ रही।
इस उम्र में वे एक मशहूर साइकोलाजिस्ट सिग्मंड फ्रियूड के हुनर सर्कल – विषना साइकोटनालिटिक सोसाइटी में काम कर रहे थे। यहाँ पर रह कर उन्होंने एक थियोरी बनाई जो कि आगैस्म के ऊपर थी। उनका मानना था कि बहुत से लोग पूरी तरह से आग्स्म को नहीं पा पाते और यही वजह है कि उन्हें तरह तरह की दिमागी बीमारियाँ होती हैं। अगर वे उन्हें किसी तरह से एक पूरा आर्गेस्म दे सकें, तो उनकी बहुत सी बीमारियों का इलाज हो सकता है।
1930 के दशक में वे अपनी इस थियोरी पर अड़ने लगे। उनका गानना था कि यह सच है, लेकिन विएना साहकोएनालिटिक सोसाहटी को उनकी बातें बकवास लग रहीं थी और वे उन्हें इसपर काम करने से रोक रहे थे। अंत में उन्हें यहाँ से निकाल दिया गया और कहा गया कि उनका काम पागलपन से भरा है।
इसके बाद वे जहाँ भी काम करने गए, उन्हें वहां से निकाल दिया गया। उन्हें बलिन साइकोएनालिटिक सोसाइटी इंटरनेशनल साइकोएनालिटिक एसोसिएशन से निकाला गया और उसके बाद जर्मनी, डेनमार्क, स्विडेन और नार्वे जैसे देशों में से भी निकाल दिया गया। जब हिटलर का समय आया तो वे यूएस के पूर्वी तट पर रहने के लिए चले गए क्योंकि वे एक ज्यू थे और हिटलर को ज्युस से नफरत थी।
वहाँ पर रहकर उन्होंने एक डिवाइस बनाई जिसका नाम आगे एक्युमुलेटर था जो कि एक लकड़ी का डब्बा था जिसमें एक व्यक्ति आ सकता था। उनका कहना था कि उस डिवाइस से आर्गोन एनर्जी निकलती है जो कि कास्मिक रेडिटशन है और उसमें लोगों का इलाज करने की चमतकारी काबिलियत है। उसमें नहा कर एक व्यक्ति खुद को हर तरह के रोग से ठीक कर सकता है और एक पुरा आगेस्म पाने की क्षमता हासिल कर सकता है।
लेकिन यूएस फूड एण्ड ड्रग एसोसिएशन ने उनकी बात नहीं मानी। उन्होंने रीच को खाली इब्बे बेचने के जुर्म में जेल में बंद कर दिया और 1957 में उनकी मौत हो गई। उनके मौत की काह अब तक नहीं पता लगी।
विल्हेल्म रीच के विचार आने वाले समय में बहुत प्रसिद्ध होने लगे।
हालांकि रीच की पूरी जिन्दगी में उनकी बात किसी ने नहीं मानी, लेकिन आने वाले समय में उनके विचार कुछ खास तरह के लोगों को बहुत पसंद आने लगे। इन लोगों को हिप्सटसं कहा जाता था। 1940 और 1950 के दशक में कुछ लोगों ने सभ्यता के विरुद्ध कुछ अभियान निकालना शुरू किया। वे खुद को समाज के रिती रिवाजों और नियमों से अलग रखते थे। वे लम्बी दाहि रखते थे, सेंडल पहनते थे, अजीब से ड्राइंग बताते थे और अफेक्टिच, फ्लियूड और आगेस्टिक जैसे शब्दों का इस्तेमाल करते थे। इन्हें नियम कायदे कानून नहीं पसंद थे।
हिप्सटर्स भागैस्टिक शब्दों का इस्तेमाल करते थे क्योंकि वे रीच की किताब द फंक्शन आफ आगैस्म से बहुत प्रभावित थे। वे इसी किताब के बारे में बातें किया करते थे। इस किताब में नियमों के विरुद्ध कुछ बहुत सी गहरी बातें बताई गई थी, जिसे हिप्सटर्स अपनाते थे।
रीच के हिसाब से समाज, सरकार और लोग वाहते हैं का हम उनके गुलाम बनकर रहें और जिन्दगी भर उनकी बातें मानते रहें। वे वाहते है कि हम अपने सपनों को छोड़कर उनके हिसाब से काम करें। रीव का कहना था कि हमारे अंदर दो तरह की ख्वाहिशें होती हैं। इनमें से पहला कुछ बाहरी काम हैं जैसे गाने सुनना या टीवी देखना। दूसरी ख्वाहिश हमारे अंदर होती है जो कि हमें उस काम को करने से मिलती है जो कि हम करता चाहते हैं या जो हमें पसंद है। सेक्स इन ख्वाहिशों में से सबसे ताकतवर ख्वाहिश है और इसे काबू कर पाना बहुत मुश्किल होता है।
समाज हमें हमेशा सिखाता रहता है का सेक्स गलत है। वो हमें सिखाता है कि हमें अपनी इस भावना को दबा कर रखना चाहिए। हमारा खुद का परिवार भी हम से यह करने के लिए कहता है और इस तरह से हम उनकी बातें मातकर उनके गुलाम बन जाते हैं। क्योंकि अगर वे हमारे अदर की इतनी ताकतवर ख्वाहिश को दबा कर रखने पर हमें मजबूर कर सकते हैं, तो ये हम से अपने दूसरे आदेश तो आसानी से मनवा सकते है।
इस तरह से रीच ने हिसटर्स के मन में अपनी जगह बनाई। हिप्सटर्स पहले से ही सभ्यता के खिलाफ जा रहे थे और रीच कि किताब ने उन्हें एक और वजह दे दी।
कैलिफोर्निया में सेक्स के आइडियाज़ ड्रग्स के साथ मिलने लगे।
रीच को अलावा बहुत से लोग इस तरह से आइडियाज़ को फैला रहे थे। इसमें हेत्री मिलर का नाम शामिल है जो कि अपनी अश्ील नॉवेल्स के लिए जाने जाते थे। इस वजह से उन्हें यूएस में बैन कर दिया गया था और 1950 के दशक में वे हिप्पीस के लिए एक मार्गदर्शक बन गए। 1957 में जब वे बिग सुर में जाकर रहने लगे तो बहुत से लोगों ने उन्हें फालो करना शुरू किया और ये जहाँ पर रहते थे उसका नाम बेस्ट ग्रीनचिंच विलेज़ रख दिया गया। यह कैलिफोर्निया का न्यू यॉर्क था जहां पर बोहेमियन जिन्दगी की नीव बनी।
बोहेमियन्स हेनी मिलर से बहुत प्यार करते थे और उन्हें बैन की गई किताबें, एकतंत्र की राजनीति और सेक्स से संबंधित बातें बहुत पसंद यौ। दूसरी तरफ हेन्री मिलर अब सेवस को कुछ अलग नज़र से देखने लगे और वे उसे एक देवीय शक्ति की तरह लोगों के सामने लाने लगे। वो उसे अब एक ऐसी चीज की तरह लोगों के सामने लाने लगे जो कि इसानों से बढ़कर है।
इस विचार को बोहेमियन्स ने अपनाया। वो अब सेक्स को सिर्फ शरीर तक सीमित बीज की तरह नहीं देखते थे, बल्कि वे अब उसे आत्मा के मिलन की तरह देखने लगे। उन्हें
लगने लगा कि इस तरह से वे प्रकृति के साथ ताल मेल बना सकते हैं। इसे ज्यादा मजेदार बनाने के लिए वे इग्स का सहारा लेने लगे।
1960 के दशक की शुरुआत में वे एलएसडी, मेस्कालीन और सिलोसाइबिन जैसे ड्रास का सहारा लेने लगे। 1952 में इसके ऊपर एक सेमिनार भी रखा गया जिसका नाम ड्रग इयूस्ड मिस्टिसिस्म था। यह सेमिनार इसलेन यूनिवर्सिटी में किया गया था जिसकी स्थापना माइकल मफी और रिचार्ड प्रिंस ने की थी। उन्होंने इस इवेंट को इसान की छिपी हुई ताकत को पहचानने का एक जरिया बताया।
1960 के दशक के अंत तक यह यूनिवर्सिटी बहुत प्रसिद्ध हो गई। 1962 में जहाँ यह सिर्फ 4 कोर्स किया करती थी. 1968 में यह 129 कोसेंस देने लगी। उस समय यह हैपिनेस फेंटसी के आइडियाज़ को पैदा करने वाली जानी मानी जगहों में से एक बन गई।
यहाँ पर जो लोग इस सब्जेक्ट पर बोलने आते थे वे बहुत जाने माने लोग थे। एक्साम्पल के लिए – एलन वाट्स – जो कि एक फिलासफर थे, एब्राहम मास्लो और कार्ल रोजर्स – जो कि साइकोलाजिस्ट थे, एल्डस हक्सली – जो कि एक लेखक थे। उन्होंने जिस अभियान की शुरुआत की वह हामन पोटेंशियल मूवमेंट ये नाम से जाना जाने लगा। इनमें से सबसे मशहूर हस्ती थे जर्मनी में पैदा हुए साइकायट्रिस्ट फ्रिट्स पल््स थे जो 1930 के दशक में विल्हेल्म रीच के शिष्य थे।
फ्रिट्स पर्ल्स ने इसनेल इंस्टिट्यूट में रहकर हैपिनेस फैंटसी की एक थियोरी बनाई।
1964 में इसनेल इंस्टिट्यूट आने के बाद फ्रिट्स पर्ल्स ने अपना हुलिया बदल लिया। वै लम्बी लम्बी दाढ़ी रखने लगे। इसके अलावा वै सूट को छोड़कर चमकीले कपड़े पहनने लगे। यहाँ पर आने के बाद में विल्हेल्म रीच से प्रेरित होकर अपनी खुद की थियोरी बनाने लगे। वे इसपर काफी समय से काम कर रहे थे, लेकिन अब जाकर वे इसे पूरा कर पाए थे। इसका थियोरी का नाम गेस्टेल्ट थियोरी था।
इस थियोरी के हिसाब से यहाँ पर हम सभी एक एक्टर हैं और अपने अपने किरदार को निभा रहे हैं। हमारे पास दो आप्शन हैं या तो हम उस किरदार को निभाए जो लोग चाहते हैं, या फिर हम अपने किरदार खुद चुने और अपने हिसाब से जिन्दगी के इस नाटया को परा करें। उनका काम था लोगों को यह बताना कि वे अब तक पहले आप्शन के हिसाब से काम करते आए थे लेकिन अब उन्हें दूसरे आप्शन को चुनना है ताकि वे अच्छी जिंदगी जी सकें। ऐसा करने के लिए उन्हें सबसे पहले लोगों के दिमाग से उस कचड़े
को निकालना था जो कि उनके दिमाग में इतने सालों से भरा पड़ा था।
इस कचड़े में दूसरे लोगों की उम्मीदें थी जो यो व्यक्ति पूरा कर रहा था। यही कवड़ा एक व्यक्ति को खुद को पहचानने से रोकता है और उस जिन्दगी को जीने से रोकता है जो वो जीना चाहता है। ऐसा कर पाने के लिए ये लोग कुछ इस तरह के तरीके अपनाते थे।
सबसे पहले वे उस व्यक्ति को अपने बगल में एक कुर्सी पर बैठाते थे। फिर वे उनसे कहते थे कि वे अपने सपनों के बारे में बताएँ और यह सोचें कि वे किस तरह का रोल प्ले करना चाहते हैं। इसके बाद उस व्यक्ति से कहते थे कि वो सबसे सामने अपने सपनों की जिन्दगी को जीट। उसे रोना और विल्लना के लिए छूट दी गई थी। वो किसी भी तरह से अपने अंदर के उस छिपे हुए व्यक्ति को सामने ला सकता है।
ऐसा करने पर, पर्ल के हिसाब से, एक व्यक्ति अपने अदर के सच्चे व्यक्ति को प चान कल उसे बाहर ला पाता है। इससे यो खुद को समझ पाता है और खुद अपनी बीमारियों को ठीक कर पाता है। जब वो खुद को अच्छे से समझ जाता है, तो वो खुश हो जाता है।
1960 और 1970 के दशक में यह ट्रेनिंग नूरे अमेरिका में फैलने लगा और हजारों लोगों ने उसे अटेंड किया। बहुत सारे मिडल क्लास के लोग उन सेमिनारों में जाने लगे और
उनके आइडियाज़ को अपनाने लगे। 1971 में वर्नर एहर्दि के सेमिनार से यह सबसे कामयाब रही।
वर्नर एर्हाईड ने बहुत से आइडियाज़ को मिलाकर एक ट्रेनिंग सेमिनार बनाया जो कि बहुत कामयाब रहा।
वर्नर एहाई का असली नाम जॉन पाउल रोसेंबरटे था जो 1959 में 24 साल की उम्र में अपनी पत्नी और चार बच्चों को छोड़कर चले गए और सैन फ्रांसिस्को में आकर एक सेल्समेनका काम करने लगे। यहाँ पर उन्होंने ह्यूमन पोटेंशियल मूवमेंट को बढ़ते हुए देखा। उन्होंने देखा कि किस तरह से इससे जुड़ने वाले लोग ड्रग्स लेते हैं और आध्यात्मिक बातें करते हैं। वे इसनेल यूनिवर्सिटी को फेमय होते हुए देख रहे थे और इस बीच उन्हें एक आइडिया आया।
एहोर्ड ने देखा कि लोग खुद को खुद से जोड़ने की कोशिश कर रहे हैं और उसके लिए वे खुद को पहचान रहे हैं। वे खुद को बदल रहे थे और पहले से बेहतर बना रहे थे। इस
बीच उन्हें लगा कि वे भी इस तरह के कुछ सेल्फ डेवेलप्मेंट कोर्स लोगों को बेचकर बहुत पैसे कमा सकते हैं। 1971 में वे हालिडे मेजिक के साथ जुड़ गाए जो कि एक नेवर्क
मार्केटिंग कंपनी थी और वो अपनी ट्रेनिंग बेचनी थी जिसका नाम माइंड डाइनैमिक्स था।
इस ट्रेनिंग में जाने के बाद एहार्ड वहाँ के सबसे जाने माने इस्ट्राक्टर में से एक बन गाए। यहाँ पर काफी कामयाबी हासिल करने के बाद उन्होंने खुद की एक संस्था बनाई जिसका नाम एहार्ड सेमिनार ट्रेनिंग था। उन्होंने इसे छोटा कर के ईएसटी ( est) का नाम दिया।
लेटिन में est का मतलब होता है यह है। यह शबटद खुद सेमिनार का संदेश लोगों तक पहुंचाने का काम करती थी। सेमिनाम का संदेश था – जो है वो है, और जो नहीं है वो नहीं है। यह संदेश बहुत ही मासान भाषा में लोगों तक पहुंचाया गया था। उन्होंने बहुत सी जगहों से प्रेरणा लेकर इस ट्रेनिंग को डिजाइन किया था। इसमें तीन मेन सोर्स शामिल थे।
-सबसे पहले सोर्स थे फ्रिट्स पर्ल्स जिनके वर्कशाप से एहाई ने अपने ट्रेनिंग टेक्रिक निकाले।
- दूसरा सोर्स था ह्यूरन मोटेशियल मूवमेंट, जिसमें एलन वाट्स ने पश्चिमी साहकोलाजी को पूर्वी मिस्टिसिंस्म के साथ जोड़ा था।
-तीसरी सोर्स थी कुछ सेल्फ हेप्ल किताबें जैसे कि नेपोलियन हिल की प्रसिद्ध किताब थिक एण्ड यो रिच, जो बताती है कि लोग अपनी गरीब मानसिकता की वजह से गरी हैं।
इन सभी सोसँस से अलग अलग जानकारियों को लेकर एार्ड ने साइटोलाजी और माईड डाइनैमिक्स से मिला दिया। इनके बाद उन्होंने बताया कि लोग आध्यात्मिक सुख को छोड़कर कामयाबी के सुख की खोज में निकले। उन्होंने इन सभी आइडियाज़ को कामयाबी से मिला दिया।
इससे उन्हें बहुत कामयाबी मिली। 1970 से 1980 के बीच में लगभग 7 लाख लोगों ने एहार्ड के ट्रेनिंग प्रोग्राम अटेंड किए।
एहर्डि के ट्रेनिंग कोर्स बहुत चुनौती भरे होते थे।
एहईि के सेमिनार को चार भागों में बाँटा गया था और हर भाग लगभग 15 से 19 घंटे तक का होता था। इस दौरान लोगों को उनकी कुर्सी से उठने नहीं दिया जाता था, अब चाहे उन्हें बाथरूम ही क्यों न जाना हो। उन्हें सिर्फ एक बार खाना दिया जाता था और उसके अलावा कुछ भी खाने से मना कर दिया जाता था। बीच में कुछ देर के लिए उन्हें थोड़ा सा ब्रेक मिलता था।
सेमिनार की शुरुआत एहाड़ की गालियों से होती थी। एहार्ड कई घंटों तक उन्हें गालियां देता रहता और उन्हें यह बताता रहता कि वे कितने निकम्मे हैं और उनके विचार
कितने छोटे हैं। सेमिनार की शुरुआत कुछ इस तरह से होती थी – इस ट्रेनिंग में तुम लोग यह जानोगे कि अब तक तुम इतने निकम्मे क्यों थे। तुम्हारी चालाकी और तुम्हारी
झूठी सोच तुम्हें कहीं नहीं लेकर गई।
इसके बाद वो उन्हें बहुत ही ईमोशनल अनुभव देता था। लगभग 250 लोगों सो कहा गया कि चे जमीन पर लेट जाए और उस शैतान के बारे में सोवें जो उनके अदर है और जिससे वो छुटकारा पाना चाहते हैं, जैसे कि डर, चिंता या बुरी यादें। इस एक्सरसाइज़ में बहुत से लोग चिल्लाने लगते थे और कुछ तो उल्टियाँ भी करने लगते थे।
यह सब कुछ करने का एक ही मकसद था- लोगों ने अपने ऊपर जो लेयर बिछाई है, उसे हटाकर उन्हें उनके असली रुप से मिलवाना। एहार्ड का मानना था कि इस तरह से वो लेयर्स हट जाएंगी और लोग खुद को देख पाएंगे। पर्ल भी कुछ ऐसा ही करने की कोशिश करते थे। उनका मानना था कि इसी वजह से बहुत से लोग पीछे हैं। एहई के हिसाब से वो गालियां और वो एक्सरसाइज़ ऐसा कर पाने के औजार थे।
एक बार जब वो उनके ऊपर से उन लेयर्स को हटा देता था तो वो उन्हें बहुत लम्बे लेक्चर देता था जिसमें वो उन्हें बताता था कि किस तरह से ये एक खुशहाल जिन्दगी जी
सकते हैं। उनके लेक्चर कुछ उस तरह के होते थे
इस लेयर के पीछे एक बहुत ही काबिल और ताकतवर व्यक्ति बैठा है जिसकी क्षमता का कोई अंत नहीं है। अगर उसकी कोई सीमा है, तो वो वही सीमा है जो हमने उसपर लगाई है। अगर हम किसी चीज़ को पाने के लिए मेहनत करें तो हम उसे पा सकते हैं। इसलिए कामयाबी आप से सिर्फ कोशिश करने भर से दूर है। कोई भी कामयाब बन सकता है अगर वो कोशिश करे तो।
एहर्डि के संदेश आज भी जिन्दा हैं और बहुत से लोग उसे अपनाते हैं।
एहर्दि के हिसाब से अगर किसी व्यक्ति को कामयाब होना है तो उसे उसके लिए मेहनत करनी होगी। अगर वो नाकाम होता है तो उसने सही तरीके से मेहनत नहीं की। इसका मतलब यह कि अगर किसी व्यक्ति के साथ अच्छा या बुरा होता है, तो यह उसके अपने कर्मों का फल है। वो अपने हालात के लिए खुद ज़िम्मेदार है। एहॉर्ड इस संदेश को बहुत दूर तक लेकर गए।
उन्होंने कहा कि सिर्फ बिजनेस में ही नहीं, अगर कहीं भी किसी व्यक्ति के साथ बुरा होता है तो वो खुद इसके लिए जिम्मेदार होगा। उन्होंने कहा कि जिनका रेप हो जाता है,
मर्डर हो जाता है या एक्सिडेंट हो जाता है, उनपर भी यह बात लागू होती है। यह बातें सुनने में कुछ अजीब लगती हैं, लेकिन आज भी बहुत से लोग हैं जो इस तरह की सोच रखते हैं और बताते हैं कि वे अपनी जिन्दगी की हर घटना के लिए जिम्मेदार हैं।
इस बात की वकालत करने वाली सबसे प्रसिद्ध हस्तियों में से एक है आप्राह विफ्री। उनके टेलिविज़न शो में जब एक महिला ने कहा कि वो एक माँ है और इस समय बहुत डिप्रेशन में रहती है, तो आप्राह ने कहा कि वो यह सोवना छोड़ दें कि वो इन घटनाओं की विक्टिम है। उन्होंने कहा कि उन्हें अपने अंदर की ताकत का इस्तेमाल कर के अपने हालात बदलने के लिए कुछ करना चाहिए और इस तरह से रोना नहीं रोना चाहिए।
हालांकि यहां पर उनका मकसद था उस महिला को यह बताना कि वो अब भी अपने हालात को बदलने के लिए बहुत कुछ कर सकती है, लेकिन इस संदेश के मंदर जो लाज्ञिक छिपा है, उसके बहुत से नेगेटिव प्रभाव हमारे समाज पर पड़ रहे हैं। लोग गरीबों से या पीडित लोगों से सहानुभूति नहीं जताते क्योंकि उन्हें लगता है कि वे लोग खुद अपने हालात के लिए जिम्मेदार है। लोग यह मानते है कि गरीब व्यक्ति गरीब सोच रखता है और इसलिए वो ऐसा है। अगर वो मेहनत करे, तो कामयाब हो सकता है।
आप्राह के अलावा बहुत से लोग है जो एहार्ड के इस संदेश को अपनाते हैं जिनमें रटीचेन स्पीलबर्ग और बार्बरा स्ट्रीसेंड शामिल हैं। एहाई के गरने के 30 साल बाद भी उनके सेमिनार की बातें आज भी लोगों को सिखाई जाती हैं। est का नाम अब लैंडमार्क वर्ल्डवाइड हो गया है, लेकिन उसका संदेश अब भी वही है।
1980 के दशक में ह्यूमन पोटेंशियल मूवमेंट में बहुत से बदलाव आए।
एहर्दि के सेल्फ डेवेलप्मेंट सेमिनारों का नाम 1984 में est से बदलकर फोरम रख दिया गया और 1991 में उसे बदलकर लैंडमार्म वल्र्डवाइड कर दिया गया, लेकिन बदलाव सिर्फ यहीं तक सीमित नहीं था। समय के साथ इसका इस्तेमाल लोग पैसे कमाने के लिए करने लगे।
1970 के दशक में यह मूवमेंट वेस्ट कोस्ट पर रहने वाले बोहेमियन्ससे फैलकर अमेरिका के मिडल क्लास अमेरिकन परिवारों तक पहुंच गया था। बहुत से लोग फ्रिट्स पल््स की तरह लम्बी दाढ़ी रखने लगे और उनकी तरह ही बर्ताव करने लगे। इसके अलावा इस मूवमेंट का बहुत बड़ा हिस्सा हुआ करता था एकतंत्र कि राजनीतिक बाते, जिंसे हटाकर अब पैसे कमाने से जोड़ दिया गया था मतलब अब इसका फोकस राजनीतिक बातों पर नहीं, बल्कि पैसे कमाने पर और अच्छी चौजे स्वरीदने पर लगा हुआ था।
एक तरफ मूवमेंट का पूरा राजनीति माहौल बदल रहा था और दूसरी तरफ यह मूवमेंट हर एक व्यक्ति को आजाद रहने वाली जिन्दगी देने पर अपना ध्यान लगा रही थी। इसका मतलब यह कि जो बोहेमियन्य अब तक अपनी खुशी को समाज की खुशी में खोजते थे, वे अब सिर्फ खुद को खुश रखने की कोशिश करने लगे । वे अब भी पुरानी राजनीति बातें मानते थे, लेकिन अब वे समाज को साथ में लेकर चलने के बारे में नहीं सोचते थे. वे खुद को कामयाब बनाने के बारे में सोचने लगे।
इस तरह की कामयाबी उन्हें सिर्फ पैसे कमाने से मिल सकती थी, जिससे वे वो सब कुछ कर पाते जो वे करना चाहते थे। जबकि इससे पहले वे सोशियलिस्म पर ध्यान देते थे जहां पर वे एक दूसरे की मदद कर के और अपने साधनों को बाँटने में विश्वास करते थे। लेकिन अब वे खुद पर ध्यान देने लगे।
इसका मतलब यह था कि अब हामन पोटेंशियल मूवमेंट का खुद को पहचानो” वाला सिद्धांत उभरकर सामने आने वाला था। 1980 और 1990 के दशक में बहुत से कापोरेट लीडर्स जैसे फोईप्रोकर एण्ड गैम्बल, पोलाराइड एहार्ड के फोरम को अपनी कंपनियों में बुलाकर उन्हें ट्रेनिंग देने के लिए कहा। 1990 के दशक मे इसनेल यूनिवर्सिटी भी कैलिफोर्निया की सभ्यता का विरोध करने वाली इस्टिट्यूट से बदलकर कार्पोरेट कंपनियों के लिए काम करने वाली सस्था बनने लगी।
लेकिन इस ह्यूमन पोटेंशियल मूवमेंट के कुछ दूसरा असर यह हुआ कि कापोरेट की दुनिया और यह मूवमेंट एक दूसरे में ढलने लगे। वे एक दूसरे का रूप लेने लगे।
1980 के दशक के खत्म होने तक ह्यूमन पोटेंशियल मूवमेंट को कार्पोरेट कल्चर में शामिल किया जाने लगा।
1970 के दशक के दौरान कर्मचारियों के काम करने का समय बढ़ा दिया गया लेकिन उनकी सैलेरी उतनी ही रखी गई। यह बात कंपनियों के लिए अच्छी थी, लेकिन कर्मचारियों इससे खुश नहीं थे। इसके अलावा बहुत से कर्मचारी अब अमेरिका के काउंटरकल्चर मूवमेंट में शामिल होने लगे जिससे लोग सच्चाई को, एक व्यक्ति की आजादी को और क्रांति को पसंद करने लगे। वे लोग उन कार्पोरेशन्स के खिलाफ कधे जो अपनी मनमानी करते थे और कर्मचारियों को तंग करते थे।
इससे निकलने के लिए कार्पोरेट की दुनिया को दो तरह की समाधान दिख रहे थे। या तो वे अपने कर्मचारियों को अच्छी तनख्वाह और काम करने के लिए अच्छा माहौल दें, या फिर वे उन्हें काम करने की आजादी दें और अपने आइडियाज़ को लागू करने की ताकत दें। दूसरे आप्शन में फायदा यह था कि वे इस बात का नाटक कर सकते थे कि वे अपने कर्मचारियों के हिसाब से काम कर रहे हैं, लेकिन अंदर से वे खुद के हिसाब से काम करेंगे।
सारे कार्पोरेशन ने दूसरा आप्शन चुना। “आटोनामी” और “प्पावरमेंट” जैसे शब्द का्पॉलेट बोर्डरूम में इस्तेमाल किए जाने लगे। ह्यूमन पोटेंशियल मूवमेंट की भाषा अब कार्पोरेट कल्चर में शामिल होने लगी थी। लेचि स्टाउस ने कहा कि उनकी कंपनी उन लोगों से बनी है जो अपनी पुरी कालियत का इस्तेमाल करने के लिए आजाद हैं। माइक्रोसोफ्ट ने कहा कि उनकी कंपनी दुनिया भर के लोगों को उनकी पूरी क्षगता का एहसास दिलाने के लिए काम करती है।
माज के वक्त में यह बातें लगभग हम सभ्यता का हिस्सा बनने लगे। एक्साम्पल के लिए जैप्पोस को ले लीजिए जो कि एक आनलाइन जूतों की और कपड़ों की वेबसाइट है। वहाँ पर लोगों से अलग अलग तरह के मजेदार काम करवाए जाते हैं। कभी वहाँ के कर्मचारी रोबोट की तरह कपड़े पहनते हैं तो कभी समुद्री लुटेरों की तरहावहाँ पर गाना बजाना, खोल कूद और बहुत तरह की एक्टिविटीस होती है।
आज के वक्त में आजादी से काम करने की बातों का बड़ावा दिया जाता है। जैप्पोस कहता है कि उनकी सबसे गहरी बेल्यू हे अपने काम करने वाली पगह को गजेदार और थोड़ा अजीब बनाना। यह सुनने में तो अच्छा लगता है, लेकिन इसके कुछ नेगेटिव साइड भी हैं।
हैपिनेस फैंटसी का कार्पोरेट कल्चर से मिलन बहुत सारी समस्याओं को अपने साथ लेकर आया है।
आइए देखते हैं कि इन दो चीजों के मिलने के क्या नुकसान हैं। हम फिर से जैप्पोस का एक्साम्यल लेते हैं। जैप्पोस ने कहा कि वे अपने काम करने की जगह पर इतना पागलपान इसलिए करते हैं क्योंकि वे नहीं चाहते कि एक व्यक्ति सिर्फ अपने काम से बाहर की दुनिया में मजा करे। वे चाहते हैं कि उनके कर्मचारी काम के चक्त भी खुश रह सकें। वे नहीं चाहते कि लोग काम ओर जिन्दगी के बीच में एक बैलेंस खोजें, बल्कि वे चाहते हैं कि लोग काम जिन्दगी से मिला दें, ताकि काम करने पर भी उन्हें मजा आता रहे।
जब एक कर्मचारी की अपनी खुद की जिन्दगी और काम की जिन्दगी के बीच की रेखाएँ मिट जाती हैं तो वो अपने काम की समस्या को अपने घर पर ले जाता है और अपने घर की समस्या को काम पर ले आता है। उनका खुद का समय और काम का समय एक दूसरे से मिलने लगा है और वे तनाव में जा रहे हैं। लगभग 38% कर्मचारी कहते हैं कि वे रात को एक भार उठकर अपना ईमेल चेक करते हैं।
जब काम की जिन्दगी और पर्सनल जिन्दगी एक दूसरे से मिल जाते हैं तो इसी तरह की समस्याएं पैदा होने लगती हैं। एक तरह हम अपने इट्रेस्ट, अपनी ख्वाहिशे और अपनी खूबियों को बढ़ाने की कोशिश में लगे होते हैं और उन कामों को करते हैं जो हमें पसंद है, ना कि के जो समाज कहता है कि हमें पसंद होने चाहिए।
दूसरी तरफ हमें मार्केट के हिसाब से भी काम करना पड़ता है। उन कामों को सोसखना पड़ता है जिसकी मार्केट को जरुरत है, काम्पटीशन को हराने के तरीके खोजने होते हैं और अपने खुद के ब्रांड बनाने होते हैं। अगर हम यह सब नहीं करेंगे तो हमें ना तो कोई काम मिलेगा और ना ही हम पैसे कमा पांगे। इस तरह से एहार्ड की खुद को पहचानो वाली बातें बेकार लगती हैं क्योंकि उनका असल जिन्दगी में कोई इस्तेमाल होता हुआ नहीं दिख रहा है।
आज के वक्त में काम्पटीशन बहुत ज्यादा है और लोग खुद को पहचानने और अपना पेट भरने के बीच में पिस रहे हैं। आज के वक्त में ज्यादातर लोगों को एक नौकरी चाहिए जिससे वे सुरक्षित रह सके और इस बीच वे खुद की ख्वाहिशों को खोजने के बारे में सोच ही नहीं पाते।
तो इस तरह से हैपिनेस फैंटसी सिर्फ एक फैंटसी ही है।