THE ROAD LESS TRAVELED by M.Scott Peck.

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ये किताब किसके लिए है

जो लोग निरंतर सेल्फ- हम्पूवमेट में विश्वास करते हैं.

साइकोलॉजी और रिलिजन सब्जेक्ट्स के स्टूडेंट्स

जो लोग अपना सोशल और स्पिरिवुभल विकास चाहते हैं.

लेखक के बारे में

एग.स्कॉट पेवक (M Scott Peck) ह्वर्वर्जैसी जानी मानी यूनिवर्सिटी से पासआउट साहकोलोज़िस्ट थे जिन्होंने अपने गेंटल हेल्थ क्लिनिक के बरसों के एक्सपैरिएस को कई बस्ट सलिंग किताबों के रूप में पेश किया. उनकी राइटिंग में साइकियाट्रिक (psychiatric) नॉलेज और धार्मिक बातों का अनोखा संगम देखने को मिलता है जो की लोगों के दिलों को छ जाता था. 1983 में उन्होंने पीपल ऑफ चलाय (People of the lle), एक्सप्लोरिंगट नेवर ऑफ ईविल इन ह्यूमैनिटी (exploring the nature or evil in humanity) जैसी कई बेहतरीन किताबें लिखी. 2005 में 69 साल की उम्र में उनका निधन हो गया.

ये किताब आप को क्यों पढ़नी चाहिए?

टेक द हाई रोड (Take the high road), द रोड टू हेल (The road to hel), ज़िन्दगी के सफर को किसी रोड से जोड़ती हुई ऐसी ही कई कहावतें अपने अक्सर सुनी होंगी इनमें से कुछ अच्छे तो कुछ बुरे रास्तों की ओर इशारा करती है. लेकिन इस किताब में लेखक ने उस रोड के बारे में बताया है जो की आपको स्पिरिवअल ग्रोथ और एक सेटिसफाइड लाइफ की तरफ ले जाता है.

तो आईये इस समरी में हम स्पिरिचुअल ग्रोथ के रास्ते की सैर करते हैं ताकी आप अपने अंतर मन में झांक कर वो ताकत हासिल कर सके जो आपको एक बेहतर ज़िन्दगी

जीने में मदद करेगा.

इससे आप ये भी जानेंगे

जल्दी संतुष्ट होना क्यूँ अच्छी बात नहीं है,

कैसे प्यार बस एक फीलिंग से कही बटकर है.

कैसे बस एक सेब को स्वाना एडम और ईव के लिए उनकी लाइफ का पहला पाप बन गया.

अगर आप एक बेहतर ज़िन्दगी चाहते हैं तो आपको अपनी ज़िन्दगी में डिसिप्लिन और देर से संतुस्ट होना यानी डिलेड ग्राटीफीकेशन (delayed gratifcation) सीखना होगा

अगर सीधे तौर पर कहूँ तो जिन्दगी एक बहुत ही उलझी हुई पहेली है, और हम इस बात को जितनी जल्दी समझ लें उतना ही हमारे लिए बेहतर है हमारी जिन्दगी की हर सुबह हमारे लिए कई सारी नयी प्रोब्लम्स को लेकर आती हैं, लेकिन आपको इन प्रोब्लम्स से डरने की कोई जरूरत नहीं क्योंकि आप जितनी जल्दी इन्हें समझेंगे उनका सोल्यूशन पाना आपके लिए उतना ही आसान होगा. कई लोग ज़िन्दगी से ये आशा रखते हैं वो हमेशा आसान और खुशनुमा रहेगी, जबकि ऐसा होता नहीं है, जिन्दगी तो संघर्ष का दूसरा नाम है, इसलिए लेखक कहते हैं कि जो लोग जिन्दगी को एक कठिन रास्ता गान लेते हैं उनके लिए रास्ता आसान हो जाता है क्योंकि वो ज़िन्दगी की कठिनाईयों से लड़ने के लिए पहले से ही तैयार रहते हैं.

इस अच्छी सोच के साथ साथ आपको जिन्दगी को बेहतर बनाने के लिए कुछ अच्छी आदतों की भी जरुरत है जो सेल्फ-डिसिप्लिड होने में आपकी मदद करेगा, सबसे पहली अच्छी आदत है देर से संतुष्ट होना यानी डिलेड ग्राटीफीकेशन (delayed gratifcation) ज्यादातर लोग किसी भी आनंददायक चीज के लिए सब्र नहीं कर सकते जैसे की अगर घर में कुछ मीठा बना है तो उसे डिनर के पहले ही खा लेंगे, और ऐसे लोग अपनी सारी ज़िन्दगी आज करो और बाद में भरो’ की फिलोसफी पर ही चलते रहते है. लेकिन ऐसा जरुरी नहीं कि ये लोग बेवकूफ़ हो बस बात इतनी होती है कि वो अपनी इच्छाओं के अनुसार ही काम करते हैं अपनी इच्छाओं पर उनका कण्ट्रोल नहीं होता. जैसे कि कुछ बच्चे अपनी बोरिंग पोलिटिकल साइंस की क्लास के बदले अपने दोस्तों के साथ मौज करना ज्यादा प्रेफर करते हैं फिर चाहे उनको एजाम में कम नंबर ही क्यूँ ना आ जाये

हम में से कौन रोजमर्रा की ज़िन्दगी में प्रोक्रासटीनेशन (procrastination) यानि काम टालने की आदत से नहीं जुड़ाता हम सबको आदत होती है कि आसान काम को पहले ख़तम कर बाकि का पूरा दिन कठिन काम को पूरा करने की टेंशन में बिताने की लेखक के पास भी ऐसे ही प्रोक्रासटीनेशन (procrastination) से लड़ता हुआ एक पेशेंट आया और लेखक ने उसे डिलेड प्राटीफीकेशन (delayed gratifcation) की प्रेक्टिस करने की सलाह दी, लेखक ने उस से कहा कि आज से वो अपनी जिन्टगी में हर काम अपनी आदत विपरीत तरीके से करेगा. ऐसा करने के लिए वो अपने कठिन कामों को पहचान कर पहले करेगा ताकी आसानी के 1 घन्टे के चक्कर में उसे नाई के 6 घन्टे न झेलने पड़े, और वो 2 घंटे में मेहनत से काम स्वतम कर बाकि पुरे दिन आराम से अपने आसान काम कर सकता है.

डिसिप्लिन का मतलब है अपनी जिम्मेदारियों को समझना, अपने आप से बफादार रहना और अपनी ज़िन्दगी में एक हेल्थी बैलेंस बना के चलना.

लेखक कहते है कि डिलेड ग्रैटीफिकेशन (delayed gratifcation) तो सेल्फ डिसिप्लिन का मात्र पहला स्टेप था असल सेल्फ डिसिप्लिन का मतलब है अपनी जिम्मेदारियों को समझ कर उन्हें निभाना आपने अपने जीवन में ये मेरी प्रॉब्लम नहीं है कहते हुए न जाने कितनों को सुना होगा. असल में जिन कामों से लोगों को खुद नहीं डील करना पड़ता है वो उसे अपनी जिम्मेदारी नहीं समझते. लेकिन ये तो प्रॉब्लम अवॉयड करने का एक तरीका है कोई सलूशन नहीं.

ऐसी ही प्रॉब्लम अवॉयड करने की आदत लेखक को भी धी, वो कहते हैं कि जब वो अपने साइकियाट्रिक ट्रेनिंग के अंतिम दिनों में थे तब उन्हें अपने दोस्तों से ज्यादा देर तक हॉस्पिटल में रुकता पड़ता था और वो सोचते थे की पेशेंट ज्यादा होना उनकी प्रॉब्लम नहीं है. तो एक दिन जब लेखक अपनी बात को लेकर डायरेक्टर के पास गए तो डायरेक्टर का जवाब सुन कर वो दग रह गए डायरेक्टर ने उनसे कहा कि आप ज्यादा देर नही रुक सकते आपके पास टाइम नहीं है तो ये मेरी प्रॉब्लम नहीं है: फिर लेखक इस बात से महीनों तक डायरेक्टर से नाराज रहे फिर उन्हें ये समझ में आया की असल बात तो ये थी कि वो खुद ही अपनी जिम्मेदारी को अपनी प्रॉब्लम समझ रहे थे जबकि उन्हें किसी ने देर तक रुकने के लिए फ़ोर्स नहीं किया था, और इसका सोलुशन निकालना तो लेखक के हाथ में ही था,

सेल्फ-डीसिप्लिन बढ़ाने के लिए अगला कदम है जिंदगी के सच को समझना हो सकता ये थोड़ा टफ हो आपके लिए क्योंकि इसके लिए आपको खुद के अन्दर झांक कर अपनी कमियों को स्वीकार करने की बहुत मज़बूत इच्छा शक्ति चाहिए ताकि आप दुनिया के प्रति अपना नज़रिया बदल सकें.

अपने अन्दर झाँकने और सेल्फ-एनालिसिस (self-analysis) करने में अगर आपको कोई दिक्कत आ रही हो तो आप इसके लिए किसी थेरापिस्ट की मदद भी ले सकते हैं.

सेल्फ डीसिप्लिन का आरवरी स्टेप है लाइफ की प्रॉपर बैलेंसिंग जिसका मतलब है अपनी जिंदगी की सभी बुरी और एक्सट्रीम अदातों को अपने अन्दर से निकाल बाहर करना जो की आपकी लाइफ का बैलेंस खराब कर रही है. इस बात को लेखक ने अपनी ज़िन्दगी के एक एक्सपीरियंस के साथ जोड़ के समझाया है. हुआ यूँ कि एक बार लेखक अपनी बाइक को फुल स्पीड में चलाते हुए पहाड़ी के रास्ते से जा रहे थे, इस रफ्तार से लेखक बहुत रोमाचित महसूस कर रहे थे और इसे कायम रखने के लिए वो इसी स्पीड मैं बाइक चलाते रहे और फिर उनका बैलेंस बिगड़ा और एक्सीडेंट हो गया. लेखक कहते है कि तब उन्हें समझा आया की जो चीजें आपको रोमाच देती है उन्हें छोड़ना बहुत मुश्किल है, लकिन बैलेंस बिगड़ने से लगी चोटों से उबरना उससे भी मुश्किल है फिर चाहे वो चोटें आपके जीवन की हो या सड़क हादसे की.

प्यार का एहसास भी आपके स्पिरिचुअल ग्रोथ और सेल्फ-डीसिप्लिन का ही एक हिस्सा है.

प्यार के बारे में कई किस्से, कहानियाँ और बातें लिखी और कही गयी है लेकिन आसान से शब्दों में कहें तो अपने और अपने चाहने वालों की आत्मा के स्पिरिचुअल ग्रोथ को बढ़ाना ही सही प्यार है, ऐसा इसलिए है क्योंकि प्यार में आप अपने अन्दर के में को भूल कर हम की भावना को महसूस करते, और यही भावना आपके स्पिरिचुअल ग्रोथ को भी बढ़ाती है.

अगर आप किसी से प्यार करते हैं को उसके लिए जरूरी है कि आप पहले खुद से प्यार करें ये उसी तरह है जैसे अगर किसी पैरेंट को अपने बच्चे को कोई अच्छी आदत सिखानी है तो उसके लिए जरूरी है कि पहले वो खुद भी उसे फॉलो करे.

किसी को प्यार करने का मतलब है कि आपको बहुत से एफर्टस लगाने पड़ेंगे बस प्यार करने की इच्छा रखने से प्यार नहीं हो जाता, लेकीन फिर भी दुनिया में लोग ज्यादातर बस प्यार करने की इच्छा रखते है जबकि इन में से बहुत कम ही असल में प्यार कर पाते हैं. प्यार करने की चाहत रखना और असल में प्यार करने के बीच वैसा ही फर्क है जैसे कि किसी को कहना की मै आपके लिए अच्छा खाना बनाना चाहती हूँ लेकिन बनाना नहीं और बिना कुछ बोले बस खाना बना के ले आने में है अगर आपके दिल में प्यार भरा है तो आप हमेशा एनर्जेटिक फील करेंगे और ये प्यार की ताकत ऐसी है कि आप जितना इसका इस्तेमाल करेंगे ये उतना ही बढ़ता जाएगा. पर किसी भी रिश्ते में प्यार को बनाये रखने के लिए डीसिप्लिन की ज़रुरत पड़ती है.

लेखक अपनी ज़िन्दगी का एक अनुभव शेयर करते हुए कहते हैं कि एक बार लेखक ने एक ऐसे कपल की काउन्सलिंग की थी जिनका दावा था कि उनके डागडे उनके प्यार का एक हिस्सा है, जबकि उन झगड़ों से दोनों को हर्ट होता था और जब उन्हें ये बताया गया की इस काउन्सलिंग का मकसद उनके सेल्फ-डीसिप्लिन को बढ़ा कर उनके झगडे कम करने का है तो उन्होंने काउंसलिंग के लिए आना छोड़ दिया लेकिन लेखक कहते हैं कि बिना सेल्फ-डीसिप्लिन के यो झगड़ते रहेंगे और एक दुसरे को हर्ट करते रहेंगे प्यार सिर्फ एक फीलिंग नहीं बल्कि एक एक्शन है जिसके लिए प्रॉपर अटेंशन चाहिए और जिसमें बहुत रिस्क है.

ज्यादातर हम प्यार को एक एक्शन की बजाये एक भावना समझते हैं, और यही सारी परेशानियों की जड़ है. प्यार की भावना कैथेटिंग (cathecting) से जुड़ी हुई है जिसका मतलब हैं किसी चीज़ या व्यक्ति में अपनी सारी इमोशनल एन्जी को लगा देना, जैसे की आपको अपनी फेवरेट ज्वेलरी से बहुत प्यार होगा या फिर मान लें किसी बार में दो लोग टकराए और एक दुसरे की ओर आकर्षित हो गए. ऐसे में लगता है कि सारी दुनिया एक तरफ और वो व्यक्ति एक तरफ, लेकिन लेखक कहते है कि आकर्षण और कैथेटिंग (cathecting) की भावना तो चंद पलों के लिए होती है जबकि प्यार तो सदा-सदा के लिए किया गया कमिंटमेंट डै.

जैसे कि शादी के पवित्र बंधन में बंधने के बाद दो लोग हमेशा के लिए एक हो जाते हैं, लेकिन इसका ये मतलब नहीं कि उनमें टकराव नहीं होता, सब होता है झगडे भी होते हैं गुस्सा भी आता है, लेकिन दोनों इन सबको भूल कर बस अपने गोल की तरफ फोकस कर सारी जिन्दगी साथ रहते हैं. और ये कमिटमेंट किसी मोमेंट्री फीलिंग का मोहताज़ नहीं होता.

लेकिन प्यार को कायम रखने के लिए कमिटमेंट के साथ साथ अटेशन और अइरस्टेडिंग की भी जरूरत होती है. प्यार का तो असली मतलब ही यही होता है कि आप अपने प्रेमी की हर बात ध्यान से सुनें कि वो क्या महसूस कर रहा है और उसके कदम पर उसका सपोर्ट करें, अगर आप ऐसा करते हैं तो आपको सामने वाले व्यक्ति के बारे में जानने का और अधिक मौका मिलेगा.

लेकिन प्यार के साथ साथ उसे खोने का रिस्क भी होता है, वैसे तो देखा ज्ञाए पूरी जिंदगी ही एक रिस्क है कब कहाँ कौन आपका दिल तोड़ दे कुछ कह नहीं सकते. इसलिए लेखक कहते है कि आप बाहरी दुनिया में अपने प्यार का दायरा जितना बढाएगे ये रिस्क उतना बढ़ता जाएगा.

धर्म बस दुनिया को देखने का आपका एक नज़रिया है और आप जैसे जैसे अपने नज़रिए को बढ़ाते हैं ये भी साथ साथ बढ़ता है.

जब भी आप धर्म का नाम सुनते हैं तो जो सबसे पहली बात आपके दिमाग में आती है चो यक़ीनन यही होगी की बस इश्वर की भक्ति करना, एक रास कल्चर और रिचुअल्स को फॉलो करना और एक ग्रुप के लोगों द्वारा बनाये गए नियमों को मानना ही धर्म है लेकिन धर्म की ये परिभाषा बहुत ही छोटी है क्योंकि असल में तो धर्म हमारी सोच का एक हिस्सा है जो हमारे कल्चर से उत्पन्न होता है. इसालिए लेखक कहते हैं कि हर किसी का अपना धर्म होता है और इसका किसी देवी देवता से कोई लेना देना नहीं है, बल्कि दुनिया के प्रति हमारी सोच का ही दूसरा नाम धर्म है जो की हमारी परवरिश और हमारे संस्कारों से आता है.

इसी सोच ने लेखक के स्टीवर्ट (stewart) नाम के पेशेंट की मदद की थी जो खुद को नास्तिक समझता था, लेकिन लेखक ने उसे धर्म के प्रति अपना नजरिया समझा कर डिप्रेशन से बाहर निकलने में उसकी मदद की, उसने अपने धर्म को पहचाना और एक सतुलित जीवन जीता शुरु कर दिया. इस उदहारण से ये पता चलता है कि हमारा धर्म हमारे परिवार की सोच से ज्यादा उनके किसी भी काम को करने के तरीके पर निर्भर करता है. इसलिए लेखक कहते हैं कि जिंदगी के अनुभवों के मुताबिक जिंदगी और समाज के प्रति अपनी सोच को बदल कर हम अपनी स्पिरिचुअल ग्रोथ को बढ़ा सकते हैं.

एक साइंटिस्ट के नजरिये से इस दुनिया को देखें और हमेशा खुद से कुछ नए सवाल-जवाब करते रहें और उसके मुताबिक अपनी सोच को और पक्का करते जाएँ जो लोग अपने परिवार के नज़रिए या अपने पास्ट की घटनायों को अपनी सोच पर हावी नहीं होने देते उनके लिए ज़िन्दगी में स्पिरिचुअल ग्रोथ के कई रास्ते खुल जाते हैं.

आपकी साधारण सोच से आप अपने जीवन के असाधारण ग्रेस यानि कृपा को खो सकते हैं

आपने ये कहावत तो सुनी ही होगी Amazing gracel How sweet the sound’ शायद इसी कहावत ने ग्रेस वर्ड को इतना फेमस कर दिया और ग्रेस को हमेशा कुछ बहुत ही अमेजिंग चीज़ से जोड़ा जाने लगा लेकिन क्या ये ग्रेस इतना अमेजिंग है, आखिर क्या है ये प्रेस आईये जानते हैं.

ग्रेस एक ऐसी फ़ोर्स है जो इंसान की फिजिकल और मेंटल हेल्थ की सुरक्षा उसकी जिंदगी के सबसे चुनौतीपूर्ण परिस्थितियों में भी करती है. इसे इस तरह से समझा जा सकता है कि दुनिया में कई लोग बहुत कठिन परिस्थितियों से गुजर कर भी इतनी बुरी मानसिक स्तिथी में नहीं जाते जबकि कुछ लोग जिंदगी में एक छोटे से ही सदमे से टूट जाते हैं इसमें प्रेस का ही रोल होता है.

लेखक ने इस बात को समझाने के लिए अपने एक पेशेंट का उदहारण देते हुए कहा है कि इसके बावजूद कि उसने अपनी शुरुवाती ज़िन्दगीं में बहुत सी कठिन परिस्थितियों का सामना किया फिर भी वो एक बहुत बड़ा बिजनेसमैन बना और अपना पूरा बचपन एक अनाथ आश्रम में और जवानी के कई साल जेल में बिताने के बाद भी उसकी दिमागी हालत पर कोई खास फर्क नहीं पड़ा था उसे बस थोड़ी सी न्युरोसिस ही थी, लेखक कहते हैं कि उसकी न्युरोसिस का कारन बता पाना और उसका इलाज करना आसान है पर इस बात को समझ पाना की ऐसी परिस्थितियों के बावजूद भी वो इतना कामयाब कैसे बना ये बता पाना मुश्किल है. इसके पीछे जरुर कोई अदरुनी ताकत का हाथ है जो की इंसान के मानसिक संतुलन को ऐसी विपरीत परिस्थितियों में भी बचाती है,

इसलिए ग्रेस बस एक अमेजिंग सी लगने वाली कोई फीलिंग नहीं है बल्कि वो तो हमारी सोच से भी परे परमात्मा के द्वारा दी गयी एक ऐसी ताकत है जो कि एक अच्छे मनुष्य के तौर पर हमारा विकास करने में हमारी मदद करती है. ये ताकत हमें परमात्मा ने इसलिए दी है ताकि हम बुरे वक्त और कठिन परिस्थियों को उस तरह से न लें जैसे यो दीखते हैं बल्कि उन्हें पार कर अपने विकास की और अग्रसर रहे.

ये ग्रेस हमारे जीवन में और भी बहुत जगह पाई जाती है जैसे हमारे सपनों की दुनिया में और ऐसी घटनाओं में जो सेरेनडिपिटी (serendipity) और सिंक्रोनीसिटी (synchronicity) को दर्शाती हैं.

हम मनुष्यों की ये आदत होती की हम अपने आस पास चल रही हर घटना को किसी न किसी केटेगरी में डाल देते हैं, ये आदत ठीक वैसी ही है जैसे अलग अलग किस्म के फुटवियर को अलग रैक में जमाना। जैसे शूज अलग और सेंडल अलग,

लेकिन ग्रेस हमारे ट्रेडिशनल सेंस से बढ़ कर है वो हमारे सब-कॉनशिंगस माईड यानी हमारे सूक्ष्म शरीर का एक चमत्कार है इस बात को लेखक ने अपनी क्लिनिकल प्रैकटिस के दौरान समझा, उन्होंने ने पाया की हमारे सब-कॉनशिभस माइंड के अन्दर वो पॉवर होती है जो हमारे मन के बड़े से बड़े घावों को भी पॉजिटिव सपनों से भर सकता है.

साइंटिस्ट द्वारा की गयी एनालिसिस से पता चला है कि हम जो सपने देखते हैं वो भी हमारे सूक्ष्म शरीर के इसी ग्रेस की देन है. कई सपने हमारे लिए चार्निंग के रूप में होते हैं, तो कई हमें जीवन के आगे बढ़ने का रास्ता दिखाते हैं. ये सपने हमारे मेटल और स्पिरिचुअल दोनों तरह के विकास में मददगार साबित हो सकते हैं.

लेखक कहते हैं कि उन्होंने अपने करियर में ऐसे साइकिक केसेस देखें हैं जहाँ दो बिलकुल ही अनजान लोग एक जैसे सपने देखते हैं और यहाँ तक की एक दुसरे के विचारों को समझा जाते है. इस घटना को सिंक्रोनीसिटी (Synchronicity) कहते हैं. जिस तरह कोई भी वैज्ञानिक प्रैस का रौज़न नहीं जान पाया उसी तरह सिंक्रोनीसिंटी (synchronicity) के रीज़न को भी डिफाइन कर पाना मुश्किल है. लेखक के अनुसार सिंक्रोनीसिटी (5yrnchronicity) भी ग्रेस से ही उत्त्पन्न होती है.

लेखक ने कहा है कि उनके जीवन में भी उन्हें एक बार सिंक्रोनीसिटी (synchronicity) का अनुभव हुआ था. हुआ ये कि वो अपने फ्रेंड की लाइब्रेरी में रोज़ की तरह ही अपनी किताब पर काम कर रहे थे, उन्हें कुछ समझ नहीं आ रहा था की क्या लिखें एक तरह से वो राइटर्स ब्लाक का सामना कर रहे थे. तभी अचानक उनकी फ्रेंड की बीवी वहां आई, हालाकिं वो ज्यादा पसंद नहीं करती थी पर जाने क्यूँ उस दिन उसने उन्हें खुद ही एक किताब निकाल के दी वो किताब थी एलन व्हीलिस (Allen Wheelis) की हाउ पीपल चेंज (how people change), वो किताब उनके लिए सही समय पर सही मदद साबित हुई और उसे पढ़ कर उन्हें अपना आगे का काम करने में बहुत आसानी हुई.

लेखक कहते है कि जब भी ऐसी कोई घटना होती है तो वो दोनों व्यक्तियों के लिए फायदेमंद होती है, और डिक्शनरी की मार्ने तो इस फायेदे की प्रोसेस को हम सेरेनडिपिटी (serendipity) यानि नसीब का नाम दे सकते हैं.

आलस मनुष्य का सबसे पहला पाप है, जो कि हमारी स्पिरिचुअल ग्रोथ को रोक देती है.

अगर आपको एडम (Adem) और ईव (ईव) की कहानी याद होगी तो ये किस्सा भी याद होगा की कैसे ईडन गार्डन में एक सांप ने ईव को अपने झांसे में लेकर नॉलेज ट्री का वो फ्रूट खाने पर मजबूर कर दिया था जिसे पाना मना था आगे चलकर ये उनकी जिंदगी का एक बहुत बड़ा पाप बन गया लेकिन उनके इस पाप की असली वजह उनकी आलस थी क्योंकि एडम और ईव दोनों में से किसी ने भी ईश्वर से ये नहीं पुछा की आखिर वो फल खाना क्यूँ गना थाह अगर कारण जान लेते तो शायद उनसे ये गलती नहीं होती. इसी तरह हम भी अपने जीवन में कई बार डिंसक्श्न्स (discussion) को आलस्य के कारण अवॉयड करते हैं, जिसके कारण हमें आगे जाकर परेशानियों का सागना करना पड़ जाता है,

लेखक कहते हैं कि अपने अंदर की अच्छाई या बुराई में से चुनाव करना इतना आसान नहीं है, इस चुनाव के लिए हमारे अन्दर ही अन्दर एक लडाई चलती रहती है. इस लड़ाई से बचने के लिए अक्सर हम इस अदरुनी डिस्कशन को अवायड करते हैं और इसलिए हमारी बुराईयाँ हम पर दावी हो जाती है,

हमारी ज़िन्दगी का सबसे बड़ा पाप होने के साथ साथ आलस्य वो सबसे बड़ी बाधा है जो हमारे और हमारे स्पिरिचुअल प्रोथ के बीच खड़ी हो जाती है. ये आलस्य हमारे रोजमर्रा की जिंदगी के आलस्य से अलग है हो सकता है आप अपने ऑफिस में काफी अच्छा काम करते हो अपने परिवार की सभी जिम्मेदारियों को बखूबी निभाते हो लेकिन जब बात आपके स्पिरिचुअल ग्रोथ की आती है तब आप अपना कम्फर्ट जोन छोड़ने से कतराते हों. कई लोग ज़िन्दगी में बदलावों के प्रति उतने सहज नहीं होते और किसी भी नयी सोच को इतनी जल्दी नहीं अपनातें. लेकिन अगर भाप अपनी सोच को बदल कर अपने जीवन में स्पिरिचुअल ग्रोथ की राह पर चल पड़ेंगे तो ज़िन्दगी और भी आसान हो जाएगी और आप अपने आप में बेहतर महसूस करेंगे.

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