HAPPIER by Tel Ben Shahar.

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यह किताब किसके लिए है?

-उन विद्यार्थियों के लिए जो अपने लिए सही करियर चुनने की सोच रहें हैं।

  • शिक्षक और विद्यार्थी जो अपने बच्चों को अर्थपूर्ण और खुशी से रहने के लिए प्रेरित करना चाहते हैं। और

-हर उस व्यक्ति के लिए जो खुट को सकाराताक रूप से बदलना तो चाहता है मगर कहीं अटक सा गया है।

लेखक के बारे में

तल बेन शहर एक इस्राइली-अमरीकी लेखक और विश्वविद्यालय प्रवक्ता है। हार्वर्ड विश्वविद्यालय के पुरे इतिहास में सकारात्मक मानसिकता और नेत्रत्वक्षमता की मानसिकता पर इनके कोर्स सबसे प्रसिद्ध थे। कई अन्य पुस्तका के साथ वज चिंग हॉप्पी: यू डॉन्ट देव टू लीव अ रिचर, हैपीयर लाइफ के लेखक भी हैं।

यह किताब आपको क्यों पढनी चाहिए?

पश्चिमी दुनिया के लोगों को यह चीज कभी अच्छी तरह से नहीं मिल पाई। उन्हें अच्छा खाना मिला; अच्छा पैसा मिला और इंटरनेट की कृपा से किसी भी दूसरी पीढ़ी की तुलना में आज अच्छी जानकारी भी मिल रही है। असीम दौलत और ऐसो-आराम के बावजूद एक चीज है जिसकी आज भी हमें कमी खलती है और वो वीज है- खुशी।

पूरी पक्षिमी सभ्यता में बहुत ज्यादा लोग अपने जीवन से निराश हैं। बहुत सारे लोग जिंदगी की इन परेशानियों से पार पाने के लिए हल हुंडने की कोशिश करते हैं और उनमें से कई सारे तो कभी हूंड भी नहीं पाते।

इस किताब का उद्देश्य ही लोगों को जिंदगी की परेशानियों के हल बताना है। इसके सबों में आप जानेंगे कि आरिचर खुशी असल में है क्या और कैसे आप इसे ढूंढ सकते हो। अगर आप अपनी जिंदगी में आए दिन आने वाली दिक्कतों से परेशान है तो इस किताब को आगे जरुर पढ़े क्योंकि आने वाले पाठों में हम जानने वाले हैं कि कैसे आप अपनी सोच बदलकर अपनी जिंदगी की समस्याओं के समाधान प्राप्त कर सकते है।

इससे आप सीखेंगे कि

क्यों आपको पढाई इस तरह करनी चाहिए जैसे आप मोहबत कर रहे हों।

-बों एक भावनारहित जीवन नौरस होता है।

  • क्यों “अर्थपूर्ण” होना प्रसन्न जीवन का एक जरूरी हिस्सा है।

प्रसन्नता मनुष्य का सबसे बड़ा उदेश्य और सफलता का एक महत्वपूर्ण अंग है

हममे से बहुत सारे लोगों ने रैगे संगीत के जाने-माने नाम बॉबी मकफेरिन का प्रसिद्ध गुरुमंत्र तो जरूर सुना होगा- डॉन्ट वरी, बी हैप्पी यानि बेकार की चिंता ना कीजिए और मौज में रहिए।

बहुत सारे लोग खुशी को अपने जीवन का प्राथमिक लक्ष्य मानते हैं। अगर कोई ऐसे लोगों से पूछता है कि तुम कोई काम क्यों कर रहे हो, तो इनमें से ज्यादातर का जवाब होता है- “क्योंकि मुझे इस काम को करने में मजा आता है। यह बात अपने अर्थों में बिल्कुल सटीक है और निर्विरोध है।

इसके अलावा जो भी जवाब लोग इस प्रश्न की खातिर देते हैं, चाहे वे प्रसिद्धि, पैसा, ताकत या फिर इज्जत से संबंधित हों, असल में उन सबका स्थान खुशी के बाद ही आता है। अगर आप कहें कि मैं अमुक काम पैसे के लिए कर रहा हूँ। तो इसपर शायद कोई आपसे पूछ सकता है कि पैसे किस चीज के लिए कमा रहे हो?

आसान शब्दों में कहा जाए तो लोग जो कुछ भी करते हैं और जिस चीज के लिए भी करते हैं (याहे यो पैसा हो या प्रसिद्धि), उनका सबसे अतिम जो लक्ष्य होता है वो होता “खुशी के रास्ते पर चलना। सोचिए एक आदमी है जो इसलिए पैसे बचा रहा है ताकि वह एक पानी के नीचे की तस्वीरें और चलचित्र खींचने वाला एक कैगरा ले सके और समंदर की सैर करके अच्छे से अपनी छुट्टियाँ बिता सके। इस आदमी के लिए पैसा उन चीजों को खरीदने का जरिया है जो इसे प्रसन्नता देंगी।

इसान का खुशी को अपनी जिंदगी का अंतिम लक्ष्य बनाना कोई नई बात नहीं है। इस बात पर तो दर्शनशास्त्रियों का ध्यान सदियों से रहा है। अट्ठारवीं सदी के ब्रिटिश फिलोसफर डेविड ह्यूम ने कहा था “विज्ञान से लेकर कला और कला से लेकर नियम कानून, ये जो भी चीजें बनाई गई है, इन सबका अतिम उद्देश्य ईसानी जिंदगी को खुशनुमा बनाना है।”

सिर्फ यही नहीं बल्कि खुशी और सफलता को भी एक दूसरे से बंधा हुआ माना गया है। मनोविज्ञानी सोनजा ल्यूमबोगिरस्की, एडवर्ड डीनर और लोरा किंग द्वारा “वेल बीडंग” यानि मानंदमय रहने पर की गई रीसर्च में भी यह बात सामने आई है कि खुशनुमा लोग ज़िंदगी के अलग-अलग क्षेत्रों में बेहतर करते हैं चाहे वह क्षेत्र पेशेवर-व्यक्तिंगत जीवन में सामंजस्य बिठाने का हो अथवा स्वास्थ्य और वित्तीय चीजों से संबंधित हो।

ऐसा क्यों होता है?

ऐसा इसलिए हो सकता है क्योंकि सकारात्मक लोग दुनिया को एक सकारात्मक नजरिए के साथ देखते हैं, जिससे कि वे सही चीजों से जुड़ पाते हैं। इसलिए चाहे आप खुशी को जिंदगी का अंतिम लक्ष्य समझें या फिर सफलता की एक सहायक सीढी समझे, यह दोनों ही मामलों में महत्वपूर्ण है।

आनंद और अर्थ खुशनुमा जीवन जीने के लिए जरुरी हैं

यह तो हम सब जानते हैं कि खुशी जरूरी है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि खुशी आखिर है क्या?

जीवन में प्रसन्नता दो चीजों से आती है

  1. सकारात्मक तत्वों को स्वीकार करने से। और,

२. जीवन को अर्थपूर्ण बनाने से।

दूसरी तरह से कहें तो आनंद और जीवन में अर्थ टूठ लेने से खुशी मिलती है।

आनंद एक सकारात्मक भावरूपी तत्व है जिससे हमें प्रेरणा मिलती है और हम खुशी की खोज कर पाते हैं। भावनाओं के बिना हम किसी चीज की इकछा नहीं कर सकते। सरल भाषा में कहें तो भावनाएँ हमें किसी काम को करने के लिए प्रेरित करती हैं।

भावनाओं को अंग्रेजी में इमोशन” कहा जाता है। ईमोशन शब्द लेटिन भाषा के दो शब्दों से मिलकर बना है. ई + मौशन ई यानि आगे या परे और मोशन यानि “गति या ले जाना । इसलिए कुल मिलाकर ईमोशन का मतलब का मतलब निकलता है “किसी चीज़ या काम को आगे बढ़ाने वाली वीज”। भावनाएं हमारी स्थिरता को तोड़ती है और हमें किसी काम को करने के लिए बाध्य करती हैं।

अब ईर्ष्या की भावना को ही देख लीजिए। यह लोगों को दूसरे लोगों से ज्यादा बेहतर करने के लिए प्रेरित करती है। इसके अलावा उत्तेजना की भावना भी हमें किसी काम को जल्दी से करने के लिए प्रेरित करती है।

मनोविज्ञानी नाथेनलियल ब्रांडेन ने आनंद को सभी भावनाओं में श्रेष्ठ और एक संतुष्ट जीवन का सबसे जरूरी अंग माना है। क्योंकि जिन लोगों की जिंदगी में कोई मानद नहीं होता उन्हें शायद ही प्रसन्नता की प्राप्ति हो पाती है।

परंतु सतुष्टीपूर्ण जीवन जीने के लिए आनंद ही एकमात्र आवश्यकता नहीं हैं। एक बेहतर जीवन जीने के लिए आनंद के साथ ही साथ एक उद्देश्य की भी जरूरत होती है। आप चाहें परमानन्द ही क्यों ना पा चुके हों अगर आपको इसका अर्थ ही पता नहीं है तो इससे आपको कोई प्रसन्नता की प्राप्ति होने वाली नहीं है।

इसलिए सच में प्रसन्न रहने के लिए हमें सिर्फ उन कामों को ही नहीं करना है जिनसे कि सिर्फ आनंद मिले, बल्कि हमें इसमें अर्थपूर्णता को भी शामिल करना होगा। इससे फरक नहीं पड़ता कि हमारे द्वारा बनाए गए लक्ष्य कितने विशुद्ध हैं। जबतक कि वे आनंद और अर्थपूर्णता की इस कसौटी पर खरे नहीं उतरते हैं तबतक उनसे किसी प्रकार की खुशी की उम्मीद नहीं की जा सकती हैं।

एक बैंकर को ही देख लीजिए जो कि अपने करियर से काफी संतुष्ट है क्योंकि उसने अपनी मर्जी से बैंकिंग क्षेत्र को चुना है। निसन्देह उसकी ज़िंदगी उस पुजारी से ज्यादा अर्थपूर्ण और आनंदमय होगी जिसने अपने अभिभावकों के दबाव में आकर पंडिताई को चुना है।

खुशी के लिए वर्तमान और भविष्य में संतुलन होना चाहिए

अब तक शायद आप यह जान चुके होंगे कि खुशी पाने के लिए आप में भूख होनी चाहिए। लेकिन यह कहने में जितना आसान है उतना करने में नहीं है। सच में खुश रहने के लिए आपको वर्तमान और भविष्य दोनों का सही से मूल्यांकन करना होगा।

हैरानी की बात है कि लोग वर्तमान और भविष्य के महत्व को अलग-अलग नजरिए से देखते हैं। मुख्यता इसमें 4 तरह के समूह होते हैं सबसे पहले वे लोग होते हैं जो सिर्फ वर्तमान क्षण की सोचते हैं और भविष्य पर कोई ध्यान नहीं देते हैं।

फिर आते है वे लोग जिन्हें जिंदगी से कोई मतलब नहीं होता- ना वर्तमान से और ना ही भविष्य से।

तीसरे समूह में वे लोग आते हैं जो भविष्य में ही जीते हैं। ऐसे लोग बस जिंदगी की दौड़ में दौड़ते ही रह जाते हैं। भविष्य के लिए बहुत ज्यादा मेहनत करते हैं और अच्छे दिनों के इंतज़ार में रहते हैं।

और सबसे अंत में माते हैं वो लोग जो अपने वर्तमान को तो खुलकर जीते ही हैं पर साथ ही साथ अपने भविष्य को लेकर सजग रहते हैं।

अतिम समूह सबसे ज्यादा खुशहाल है। दरअसल एक व्यक्ति इन चारों समूहों का मिश्रण होता है और उसका लक्ष्य ज्यादा से ज्यादा प्रयास करके खुद को चौथे समूह में ले जाने का होना चाहिए।

लेकिन ज्यादातर मामलों में भविष्य के बारे में ज्यादा सोचने वाली व्यक्ति इस संतुलन को ढूंड नहीं पाते। क्योंकि समाज उस व्यक्ति को ज्यादा परांद करता है जो अपने आज को कष्टदायी बनाकर अपने भविष्य की सोचता है। समाज नो पेन नो गेन” की धारणा पर चलता है।

अब स्कूल में पढ़ने वाले बच्चों को ही देख लीजिए। उन्हें कड़ी मेहनत और संघर्ष करने की शिक्षा दी जाती है क्योंकि अच्छे अंकों से उनका भविष्य उज्चल होगा। इससे फरक नहीं पड़ता कि उनका वर्तमान कितना दयनीय स्थिति में है।

भविष्य की खुशियों के साथ दिक्कत यह है कि ये गृग-मारीचिका की भांति आगे-आगे खिसकती रहती है। जब बच्चे स्कूल में कड़ी मेहनत से अच्छे नंबर लाते हैं तो उनसे बोला जाता है अब कॉलेज जाकर कड़ी मेहनत करो, डिग्री कमाओ, जिंससे तुम्हें एक प्रतिष्ठित नौकरी मिल सके।

इसके बाद जब वे नौकरी लग जाते हैं तो उन्हें कंपनी में बॉस द्वारा कहा जाता है कि अब अपने पेशेवर जीवन के लिए मेहनत करो। इसके फलस्वरूप वे कभी भी अपनी मेहनत के फल का मजा नहीं ले पाते। इसलिए अपनी वर्तमान खुशी को भविष्य पर थोपने के बजाय अपनी जिंदगी में उपयुक्त लक्ष्य बनाइये ताकी आपके पास लक्ष्य और खुशी दोनों हों।

खुशी विशिष्ट लक्ष्यों और उपयुक्त इरादों से आती है

अब तक हम जान चुके है कि जिंदगी में कोई लक्ष्य होने के लिए उसका अर्थपूर्ण होना जरूरी होता है। लेकिन अपनी जिंदगी भरा काम हो सकता है। अपनी जिंदगी का लक्ष्य बना लेने से जिंदगी सुधर जाती है । मगर इसकी शुरुआत कहाँ से करें? लक्ष्य को पूरा कर पाना असल में एक चुनौती

जब भी आप प्रसन्न हो रहे हो तो ध्यान रखिए कि आप साथ ही साथ अपने लक्ष्यों को भी पूरा कर रहे हो। अपने भावी लक्ष्यों को इस तरह बनाना चाहिए कि वे आपको आनंदपूर्ण और प्रसन्न बनाने में सहयोग करे। मतलब ऐसे लक्ष्य बनाइये जो आपको अपने सपने के करीब तो लाये ही, साथ ही साथ आपको वर्तमान में खुश रहने का भी मौका दे।

इस तरह के लक्ष्यों को बनाने के लिए आपको अपने अंतर्भन से पूछना पड़ेगा। क्योंकि आपके लक्ष्य ऐसे होने चाहिए जो कि आपके खुद के बनाए गए हो ना कि किसी और ने आप पर थोपे हो। वे आपकी इकक्षाओं से प्रेरित होने चाहिए ना कि दूसरों को को प्रभावित करने के लिए बनाए जाने वाहिए।

ऐसे लक्ष्यों को ढूंढने के लिए आपको अपने अंतर्मन में झांकना होता है और अपने आनंद के पहलुओं का अध्ययन करना चाहिए। लंबे और छोटे दोनों तरह के लक्ष्यों को ढूंढने

का प्रयास कीजिए जो आपको प्रसन्न बनाएंगे।

मान लीजिए आप अपना लक्ष्य जानवरों की सेवा को बनाना चाहते हैं। यह एक अच्छी बात है और एक लंबी इकक्षा है। जब आप इस लक्ष्य का निर्णय ले लें तो इसके बाद इसे और छोटे-छोटे टुकड़ों में तोड़ दीजिए। जैसे पहले मुझे किसी स्थानीय जानवरों के शेल्टर में काम करना है इसके बाद मुझे पशुओं के हकों के लिए काम करना है।

इसके बाद ये निश्चित करने के लिए कि आप अपने लक्ष्यों में आगे बढ़ रहे हैं अपने लक्ष्यों के साथ समयसीमा जोडिए। जैसे- आप उन्हें 3 महीने, 6 महीने, 1 साल या फिर जरूरत के हिसाब से 5 साल का समय भी दे सकते हैं। यह समय आपका लक्ष्य कैसा है इस पर निर्भर करता है।

अब तक आप ऊपरी तरह से समझ गए होंगे कि अपने जीवन में खुश कैसे रहें। आने वालों पाठों में जाने की कोशिश करते हैं कि कैसे आप अपने काम, शिक्षा और रिश्तों में खुशहाली ला सकते हैं।

स्कूल में अपने पसंदीदा काम को करने से खुशी मिलती है

क्या आपको कॉलेज में बड़ी परीक्षाओं से पहले की उन रातों में किताबों को रटने में मजा आता है। नहीं ना?

जब भी आप कोई नई चीज सीख रहे हों तो उसमें आनंद और अर्थ ढूढने से सतुष्टि मिलती है। विद्यार्थियों को सबसे पहले इस बात पर गोर करना चाहिए कि उन्होंने जो क्षेत्र अध्ययन करने के लिए चुना है वह उन्हें सच में कितना पसंद है। एक बार जब आप ऐसा कर लेते हैं तो आपको अपनी रूचियाँ और पसंदीदा विषय हंडने में बहुत मदद मिलती हैं।

ऐसा करना ना सिर्फ स्कूल को एक मजेदार जगह बनाएगा बल्कि आपको प्रेरणा भी देखा। ऐसा करने के बाद आपको पढ़ाई एक सुखदायौ चीज़ मालूम पड़ेगी और आपको पढ़ाई की चुनौतियों बोड़ा के बजाय अपनी जिंदगी का एक महत्वपूर्ण अंग लगेगी।

आप पढ़ाई के विभिन्न चरणों को प्रेम करने की भाति समझ सकते हैं। आप पढ़ाई की रीसर्व और लेखन को प्रेम की नटखट हरकतों की भांति समझ सकते हैं। और जब आप अपने अध्ययन क्षेत्र में महारत हासिल कर लेंगे तब आप पाएंगे की यह सब करना बहुत मजेदार होता है।

अगर आप जापानी भाषा सीखना चाहते हैं तो कोई किसी ऐसे शिक्षक को तलाशें जो कि रचनात्मक तरीकों से जापानी की शिक्षा देता हो। इससे आपको सीखने में मज़ा आएगा। सबसे अधिक मजा तो आपको तब आएगा जब कि आप आप बिना किसी प्रयास के जापानी बोलना और बातचीत करना शुरू कर दोगे।

अपने सीखने की प्रक्रिया बढ़ाने का एक दूसरा तरीका है- फ़्लो के लिए तरसना। इस सिद्धांत को मनोविज्ञानी मिहाली सिक्सजेरिमिहाली ने बनाया था। सीखने में रफ्तार तब आती है जब कि आप सीखने की प्रक्रिया में अपने आप को पूरी तरह डूबा लेते है। जब आप रफ्तार की अवस्था में होते हैं तब आप सौखने की चीजों की मात्रा बढ़ने से चिंतित नहीं होते हैं बल्कि आप बिना कुछ सोचे और बिना किसी चीज़ की चिंता किये सौखते हो जाते हैं। इस अवस्था में पहुँचने के लिए आपको तैयार होने से पहले अपने आपको बहुत ऊपर के स्तर में ले जाने से बचना चाहिए। ताकि आप एक स्तर पर रुककर प्रसन्नता का मजा ले सकें। इस स्तर पर रफ्तार अपने आप आने लगती है।

अपना पसंदीदा करियर ढूंढने से आपको प्रसन्नता मिलेगी

कई लोग अपनी नौकरी से इतने परेशान होते हैं कि आप दफ्तर में उन्हें अपनी नौकरी की बेइज्जती करते आराम से सुन सकते हैं। क्या हमारे आप ये भी सोचने का वक्त नहीं है कि हम अपने जीवन में पूरे दिन भर क्या करना चाहते हैं।

खैर एक बात तो निश्चित है कि अगर आप अपनी कथनी और करनी एक जैसी रखते हैं तो आपकी जिंदगी काफी खुशहाल रहेगी।

मनोवैज्ञानिक एमी रेजस्विसकी कहते थे कि जो लोग अपने काम को एट्टियों की भाति हजॉय करते हैं उन्हें अपने आप ही अपनी जिम्मेदारिया अपने काम ईनाम की भांति नजर माने लगते हैं। ऐसे लोग पैसे की फिक्र तो करते हैं मगर वे सिर्फ पैसों के लिए अपनी नौकरी नहीं करते हैं बल्कि वे अपने काम से प्यार भी करते हैं। जाहिर सी बात है कि जो लोग अपने काम से प्यार करते है वे उन लोगों से ज्यादा प्रसन्न होंगे जो कि सिर्फ बाहरी चीजों जैसे- पैसा, प्रमोसन और प्रसिद्धि पाने के लिए काम करते हैं। मगर अपना पसंदीदा काम ढूंढने के लिए आपको थोड़ी हंड-खोज करनी पड़ेगी। क्योंकि हमारे शिक्षा तंत्र और रोजगार परीक्षाएँ हमें उन चीजों को करने के लिए प्रेरित करते हैं जिनमें हम अच्छे हैं ना कि जिन्हें हम प्रेम के साथ करते हैं।

इन सब सामाजिक दबावों से ऊपर उठने के लिए और अपनी अंदर की ताकत को पहचानने के लिए अर्थ, आनंद और ताकत टेस्ट (MPS) टेस्ट लेकर देविटा यह टेस्ट 3 सूचियाँ बनाने से शुरू होता है

सबसे पहले खुद से पूछिए- “मुझो कोन-सा काम सबसे अर्थपूर्ण लगता है?” हो सकता है कि आपका जवाब लेखन, सगीत, बच्चों के साथ काम करना या फिर परेशानियाँ दूर करना हो।

इसके पश्चात अपने आपसे पूछिए- “कौन-सा काम करने में मुझे मजा आता है?”हो सकता है आपका जवाब घुड़सवारी, लेखन, संगीत या बच्चों के साथ काम करना हो।

और अंत में आपसे पूछिए- कौन-सा काम करने में में अच्छा हूँ? संभवता आपका जवाब दूसरों को समझना, समस्याएं सुलाता और बच्चों को सिरवाना हो सकता है।

इसके बाद आखिर में आपको वे काम ढुउने हैं जो इन तीनों सूवियों में हैं। यानी जो अर्थपूर्ण भी है; आपको पसंद भी है और साथ ही साथ आपको आते भी हैं। जैसे ऊपर के उदाहरण में बच्चों के साथ काम करना या घुलना-मिलना तीनों सूचियों में आता है। तो यह काम किसी व्यक्ति के लिए लक्ष्य हो सकता है।

इसके बाद जिंदगी के दूसरे पहलुओं पर गौर कीजिए। हो सकता है कि आप बहुत ही ज्यादा व्यवस्थित हो और योजना बनाना और घूमना पसंद करते हों। इस तरह की और जानकारी को अपने लक्ष्य(बच्चों के साथ घुलना-मिलना) में शामिल करके शायद आप एक संगीत शिक्षक बनने का विचार कर सकते हैं।

हो सकता है कि इस टेस्ट से कुल मिलाकर जो आपकी जिंदगी का लक्ष्य बनता है वह वित्तीय रूप से बहुत ज्यादा सफल ना हो, लेकिन यकीन मानिए यहीं वो वीज है जिसे करके आप जिंदगी में सबसे ज्यादा खुश रहोगे जितना ज्यादा प्रयास आप अपने रिश्तों को मजबूत बनाने में करते हैं उतने ही ज्यादा खुशी आप पाते हैं

कल्पना कीजिए कि आप दफ्तर से थके हारे घर पहुंचते हैं लेकिन तभी आपके दोस्त आकर आपको शहर की रात्रि की सैर पर ले जाते हैं। संभवता आप कितने भी थके हुए क्यों ना हो, आप इस बात पर उन्हें मना नहीं करोगे। और शाम ठलते ही आप ऊर्जा से भर जाएंगे। शायद इस तरह की रात्री यात्रा से ऊर्जावान हो जाना थोड़ा विपरीतार्थक लग सकता है लेकिन यह सच है कि अपने सामाजिक रिश्तों को वक्त देने से जिंदगी की लंबी दौड़ में आपकी खुशी बदेगी। मनोवैज्ञानिकों एडवर्ड डीनेर और मार्टिन सेलिंगमेन ने बहुत ज्यादा खुश लोगों और “कम संतुष्ट लोगों के बीच में फर्क दूंढने का प्रयास किया।

इन दोनों तरह के लोगों में वे सिर्फ एक ही महत्वपूर्ण अंतर ढूंढ सकेा बहुत ज्यादा खुश लोगों का परिवार, दोस्तों और प्रेमी से बना सामाजिक दायरा बहुत मजबूत था जबकि कम संतुष्ट लोगों के मामले में ऐसा नहीं पाया गया। यद्यपि सिर्फ अपने पसंदीदा लोगों के साथ वक्त बिताना खुश रहने के लिए काफी न हो, फिर भी यह हमारी खुशी में एक बड़ा किरदार जरूर अदा करता है।

आखिरकार आप अपनी जिंदगी दूसरे लोगों के साथ साझा करके उन्हें अपनी जिंदगी आपके साथ साझा करने के लिए आमंत्रित करते हों। आप अपने विचार, भावनाएँ और अनुभव अपने आसपास के लोगों के साथ साझा करते हैं। इस तरह के साझेपन की भावना जिंदगी को अर्थपूर्ण बनाती है। खुशी साझा करने से आनंद मिलता है और दुख साझा करने से दुख में कमी आता है।

जिंदगी में साझोपन के लिए दोस्त बहुत जरूरी है। हालांकि एक स्थायी और संतुष्ट रोमाटिक पार्टनर भी खुशी का स्तर बढ़ाने में सहायक होता है। “अच्छी जिंदगी जीने पर शोध करने के दौरान प्रवक्ता डेविड मायर्स ने पाया कि एक गहन, ख्याल रखने वाला और अंतरग रिश्ता होना खुशी लाने के सबसे अच्छे तरीकों में से एक है।

ऐसा इसलिए होता है क्योंकि जब कोई दो व्यक्ति सच्चे प्रेम मे होते हैं, तो ये बिना किसी शर्त के प्यार करते हैं और प्यार किये जाते हैं और वे मुक्त होते हैं अपने सच्चे मन को व्यक्त करने के लिए। लेकिन एक कामयाब रोमांटिक रिश्ते के लिए आपको आनंद और अर्थ दोनों को पकड़ के लिए रखना चाहिए।

एक हेडोनिस्टिक रिश्ता जो सिर्फ आनंद और वासना पर आधारित होता है, बहुत जल्द ही अर्थहीन हो जाता है। जबकि साझी भावनाओं पर आधारित रिश्ता आनंद के अभाव में भी चलेगा। संतुलन ही कुंजी है।

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