PSYCHO CYBERNETICS by Maxwell Maltz.

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About Book

इस समरी में आप पढेंगे कि सेल्फ इमेज क्या है और ये कैसे एक्शन और बिहेवियर को अफेक्ट करती है. इस बुक से आपको पता चलेगा कि हमारी इमेजिनेशन और रेशनल थिंकिंग किस हद तक पॉवरफुल है. अपने फेलर टाइप पर्सनेलिटी को सक्सेस टाइप में कैसे चेंज करे, ये भी आप इस बुक से सीखेंगे. इस समरी को पढके आपको ये भी पता चलेगा कि हमारी पोजिटिव थिंकिंग और एटीट्यूड हमारी डेस्टिनी को चेंज कर सकता है.

ये समरी किस-किसको पढनी चाहिए?

जो लोग अपनी सेल्फ इमेज इम्प्रूव करना चाहते है.

जो सक्सेस टाइप पर्सनेलिटी चाहते है.

पेरेंट्स और टीचर्स को ताकि वो बच्चो को पोजिटिव

सेल्फ इनेज बिल्ड करने में हेल्प कर सके.

ऑथर के बारे में.

मैक्सवेल माल्टज़, इस बुक के ऑथर एक कॉस्मेटिक सर्जन भी है. प्लास्टिक सर्जरी की प्रेक्टिस करने के दौरान उन्हें रियेलाइज हुआ कि लॉस्ट कांफिडेंस को फिर से हासिल करने के लिए फेस सर्जरी से ज्यादा थौट सर्जरी की जरूरत है. उनके पास एक सर्जन और ह्यूमन साइकोलोजी दोनों का एस्पिरियेश है जिससे वो अपने पेशेंट्स को ट्रीट करते है. उन्होंने अपना वर्क एक्सपीरियंस इस बुक के जरिये रीडर्स के साथ शेयर किया है, जोकि अब एक बेस्ट सेलर बुक बन चुकी है

इंट्रोडक्शन (Introduction)

क्या आप भी ये सोचते है कि सक्सेस सिर्फ कुछ लोगो के ही हिस्से में आती है, जबकि बाकी लोग उनके ऑर्डर्स फोलो करने के लिए पैदा हुए है?

आपकी पर्सनेलिटी कैसी है? सक्सेस टाइप की या फेलर टाइप की? क्या ये पॉसिबल है कि अपनी पर्सनेलिटी को फेलर टाइप से सक्सेस टाइप बनाया

जा सके ? वेल, इन सारे सवालों के जवाब बहुत ही सिम्पल है. हर कोई एक मैकेनिज्म के साथ पैदा हुआ है जो हमे अपने माहौल के हिसाब से सर्वाइव करने में हेल्प करती है. आप फिश को तैरना नहीं सिखा सकते और ना ही पंछी को उड़ना.

आपकी सक्सेस आपके अपने हाथ में है. इस समरी में आप सीखेंगे कि आपकी सक्सेस या फेलर आपके सेल्फ इमेज पर , करती है यानी वो इमेज . जर्नी में आप ये भी जानेगे कि हैप्पीनेस को एक हैबिट बनाया जा सकता है और इस हैबिट को अडॉप्ट करने से आपकी पूरी लाइफ बदल सकती है. इस

जो आपने खुद के लिए क्रिएट की है. और जब आप ये सेल्फ इमेज चेंज करोगे तो आपकी किस्मत भी चेंज जायेगी. और ये चीज़ आपके हाथ में है. इस समरी में आप पॉवर ऑफ़ इमेजिनेशन के बारे में पढेंगे कि हमारी इमेजिनेशन में इतनी पॉवर होती है जो आपको बड़ी से बड़ी ससेक्स दिला सकती

है. आप इस समरी में पॉवर ऑफ़ रेशनल थिंकिंग के बारे में भी पढ़ेंगे. तो क्या आप अपनी किस्मत फिर से लिखने को तैयार है? वे समरी पढ़िए. ये आपको आपके गोल्स अचीव करने में काफी हेल्प करेगी और आप भी उन

लोगो में शामिल हो सकेंगे जिन्हें दुनिया फोलो करती है.

द सेल्फ इमेज: योर की टू अ बैटर लाइफ (The Self Image: Your Key to a Better Life)

हर आदमी अपनी एक मेंटल इमेज लेकर चलता है. हमारे माइंड में जो ये मेंटल पिवचर होती है उसे सेल्फ इमेज बोलते है. सेल्फ इमेज डिसाइड नहीं करती रियल में आप कौन हो बल्कि ये बताती है कि आप खुद के बारे में क्या सोचते सकता है कि आपकी अपने बारे में एक सेल्फ इमेज हो या फिर एक नेगेटिव, आपकी फीलिंग्स, बिहेवियर, और पर्सनेलिटी ये सब आपकी सेल्फ इमेज पर डिपेंड है. बचपन से लेकर अब तक आपको जैसा भी माहौल मिला या परवरिश मिली, उसी का रिजल्ट होती है आपकी ये सेल्फ इमेज, बचपन में आपने जो देखा, सुना, या आपके बारे में लोगो ने जो कहा, वहीं सब मिलकर आपकी सेल्फ इमेज को क्रिएट करता है. यही सेल्फ इमेज ये भी डिसाइड करता है। कि हम क्या कर सकते है और क्या नहीं कर सकते है.

लेकिन गुड न्यूज़ ये है कि हम अपनी सेल्फ इमेज को चेंज कर सकते है और अपना फ्यूचर भी, एक एक्साम्प्ल लेते है की सेल्फ इमेज का लाइफ में क्या रोल है. एक स्टूडेंट जोकि सोचता है कि वो मैथ में एकदम जीरो है इसलिए उसे मैथ में कम नंबर ही मिलेंगे. एक लड़की जो खुद को अनफ्रेंडली समझती है और सोचती है कि उससे कोई दोस्ती नहीं करेगा, यहाँ इन दोनों ने अपने बारे में एक सेल्फ इमेज बना ली है. और फिर उन्हें रिजल्ट भी वैसा ही मिलता है। तो जो आप अपने बारे में सोचोगे वही आपके साथ फ्यूचर में होगा.

जैसे कि प्रेस्कट लेकी (Prescott Lecky) ने सेल्फ इमेज साइकोलोजी को स्टडी करने के लिए एक एक्सपेरिमेंट किया. मान लो किसी स्टूडेंट को कोई सब्जेक्ट मुश्किल लगता है, तो उसकी सेल्फ इमेज को चेंज करके उसके दिमाग से ये बात निकाली जा सकती है, और सेल्फ इमेज चेंज होने से उसकी लर्निग एबिलिटी भी चेंज की जा सकती है. प्रेस्कट लेकी (Prescott Lecky | एक स्कूल टीचर थे और उन्होंने सेल्फ इमेज का इफेक्ट देखने के लिए अपने स्टूडेंट्स को ओब्जेर्व किया. एक

स्टूडेंट था जो हमेशा स्पेलिंग मिस्टेक करता था. एक साल वो कई सब्जेक्ट्स में फेल हो गया. लेकिन अगले साल वो स्कूल का बेस्ट स्पेलर बना. एक

लड़की थी जिसके कभी अच्छे नंबर नहीं आते थे. उसने पढ़ाई छोड़ दी थी. लेकिन बाद में उसे कोलंबिया में एडमिशन मिला और उसने एक ग्रेट स्टूडेंट

बन के दिखाया. ऐसा नहीं था कि ये लोग डम्ब स्टूडेंट्स डम्ब थे. बल्कि इन्हें सेल्फ इमेज की प्रोब्लम थी, इन्होने मान लिया था कि ये इस चीज़ में अच्छे नहीं है या उस चीज़ में अच्छे नहीं है. लेकिन जैसे ही इनकी सेल्फ इमेज चेंज हुई तो इनका एटीट्यूड भी चेंज हो गया, और इन्होने अपने फेलर को अपनी सक्सेस में बदल दिया. बस यही इनकी सबसेस का सीक्रेट है.

डिसकवरिंग द सक्सेस मैकेनिज्म विदिन यू (Discovering the Success Mechanism within you) हर लिविंग बीइंग यानी जीवित वस्तु में अपने गोल्स को अचीव करने का एक ऑटोमेटिक गोल स्ट्राईविंग मैकेनिज्म या इंस्टिंक्ट होता है. जानवरों में भी

इंस्टिंक्ट होती है जो उन्हें अपने माहौल में जिंदा करने के लिए हेल्प करती है. इसानों में भी एक “सक्सेस इस्टिक्ट” होती है. ये “सक्सेस मैकेनिज्म” लोगो को प्रोब्लम सोल्च करने और एक बैटर लाइफ जीने में मदद करती है. जानवरों के गोल्स प्री-सेट होते हैं जबकि इसानों के पास क्रिएटिव इमेजिनेशन होती है

हम इन्सान नए गोल्स सेट कर सकते है. हमारा ब्रेन और नर्वस सिस्टम मिलकर एक गोल स्ट्राईविंग मशीन बनाता है. इन्सान कोई मशीन नहीं है लेकिन हमारे पास एक मशीन है जिसे हम अपने गोल्स अचीव करने के लिए ऑपरेट कर सकते है, अगर गोल स्ट्राईविंग मैकेनिज्म उसके फेदर में काम करती है तो इसे सक्सेस मेकेनिज्म बोलते है और अगर उसके खिलाफ काम करती तो ये फेलर मैकेनिज्म कहलाती है. ते है। गिलहरी को कोई पेड़ पर चढ़ना नही सिखाता और ना ही ये सिखाता है कि उसे सर्दियों के लिए खाना जमा करना है. अगर कोई गिलहरी स्पिँंग में भी । है जन्मी होगी तो भी वो तो भी वो विंटर के लिए फूड जमा करेगी. उसे पता होता है कि ठंड में कुछ नहीं मिलेगा इसलिए वो एडवांस में खाना इकठ्ठा करती है. ऐसे ही चिड़ियाँ को कोई उड़ना और घोंसला बनाना सिखाता है, पंछी बिना किसी नेविगेशन सिस्टम के आसमान में ऊँचे उड़ते है और सही सलामत धरती पर भी लौट आते है. चिड़ियों को डायरेक्शन के लिए मैप की ज़रूरत नहीं होती. ठंडी या गर्मी के लिए ये किसी वेदर रिपोर्ट पर डिपेंड नहीं होते. নा है. पछी हर साल, माइग्रेट्स चिड़ियों के झुण्ड ठंडी जगहों से उड़कर गर्म जगहों पर आते है. ये पंछी कई मील समुन्द्र के उपर से उड़ते हुए ट्रेवल करते हैं. उनकी सक्सेस इस्टिक्ट उन्हें अपने एन्वायरमेंट के हिसाब से एडजस्ट करने में हेल्प करती है. इंसानों में अंदर भी सक्सेस इंस्टिंक्ट होती है. आपको अपनी बाजू स्ट्रेच करने के लिए बताना नहीं पड़ता. आप अपनी मसल्स को ये नही बोलते कि टेबल से उठाकर मुझे सिगरेट दे दो, अगर आपको सिगरेट चाहिए तो दो आपका गोल बन जाएगी और आपका गोल स्ट्राईविंग मैकेनिज्ज़ खुद से एक्टिव हो जाएगा. अगर आपका काशस माइंड टारगेट सेलेक्ट करता है तो आपका सबकांशस माईंड टारगेट को हिट करता है, इसलिए लाइफ में हमेशा ऊँचे और बेटर गोल्स रखो,

इमेजिनेशन- द फर्स्ट की टू योर सक्सेस मैकेनिज्म (Imagination-The First Key to Your Success Mechanism) हमारा ब्रेन रियल और इमेजिनरी एक्स्पिरिवेश के बीच का फर्क नहीं बता सकता है. और ये रियेलिटी से मुकाबले हमारी इमेजिनेशन पर रिएक्ट करता

है. हमारी खुद के बारे में इमेजिनेशन जोकि हमारी सेल्फ इमेज है, हमारी फीलिंग्स और एक्श्न्स डिसाइड करती है. जो आप खुद के बारे में सोचते हो, वही आपके सबकाशस माइंड का सच बन जाता है और फिर ये उस पर रिएक्ट करने लगता है. आप अपनी इमेजिनेशन चेंज करके अपनी फीलिंग्स और एक्शन्स चेंज कर सकते हो

मेंटल प्रेक्टिस उतनी ही इफेक्टिव है जितनी कि रियल प्रेक्टिस. हम यहाँ एक एक्जाम्पल लेंगे, ये पूव करने के लिए कि ब्रेन रियल और इमेजिनेटिव एविस्परियेश में फर्क । फील करने र्क नहीं बता सकता. अगर किसी हिप्नोटाईजड (nypnotized ) पर्सन को बोला जाए कि तुम अभी नॉर्थ पोल में हो, तो वो ठंड और शिविंग भी करेगा. इस थ्योरी को पूव करने के लिए कॉलेज स्टूडेंट्स पर एक एक्सपेरिमेंट किया गया. कुछ स्टूडेंट्स को बोला लगेगा गया” इमेजिन करो कि तुम्हारा एक हाथ ठंडे पानी में डूबा हुआ है” हालाँकि इन स्टूडेंट्स को हिम्रोटाईजड नही किया गया था और ये लोग पूरे होश में थे फिर भी इनकी टेम्प्रेचर रीडिंग ड्राप हो ग गई थी.

मेंटल प्रेक्टिस को रियल प्रेक्टिस से कम्पेयर करने के लिए एक और एक्सपेरिमेंट किया गया. मेंटल प्रेक्टिस स्किल इम्प्रूव कर सकती है या नहीं ये देखने के लिए बास्केट बाल प्लेयर्स के तीन गुप्स से मेंटल प्रेक्टिस करवाई गयी. फर्स्ट गुप को 20 दिनों तक फ्री थ्रो की रियल प्रेक्टिस करने को बोला गया. को प्रेक्टिस करने से एकदम मना कर दिया गया, और थर्ड गुप से कहा गया कि वो रोज़ 20 दिनों तक बॉल धरो करने की मेंटल प्रेक्टिस करे, सेकंड ग्रुप का में सेकंड ग्रुप की कोई इम्यूवमेंट नही दिखी. लेकिन फर्स्ट और थर्ड ग्रुप के रिजल्ट लगभग बराबर थे. फर्स्ट ग्रुप ने 24% स्कोर किया था जबकि थर्ड ग्रुप का स्कोर था 23%

एक और एक पल है जिससे मेंटल प्रेक्टिस की इफेक्टिवनेस का पता चलता है. कापब्लान्का(Capablanca) ग्रेट चेस चैम्पियन अलेखिने(Alekhine से चैम्पियनशिप हार गए थे. एक्सपर्ट्स का मानना था कि कापब्लान्का (Capablanca) को चेस में हराना इम्पॉसिबल हैं. लेकिन फिर जब उसे एक नए प्लेयर ने हरा दिया तो सब शॉक रह गए. लेकिन ये हुआ कैसे? ये मेंटल प्रेक्टिस का असर था. अलेखिने (Alekhine) कई महीनो से मेंटल प्रेक्टिस कर रहा था, उसे अपने माइंड में चेस खेलते हुए आलरेडी 3 महीने हो चुके थे,

डीहाईड्रेट योरसेल्फ फ्रॉम फाल्स बिलिफ्स (Dehypnotize Yourself From False Beliefs) हिमोटिज्म हर जगह है. हम सब एक हद तक हिनोटिज्म में जी रहे है, या तो पोजिटिव या नेगेटिव, ये किसी इन्सान की फिजिकल स्ट्रैग्ध को अफेक्ट

नहीं करती लेकिन मेंटल स्टेट को ज़रूर करती है, हिप्नोटिज्म आपके बिलिफ्स को चेंज करती है. ऑथर मैक्सवेल माल्टज़ कहते है कि करीब 95%

लोग इस बात पर हिप्नोटाइज़ है कि उन्हें इन्फियेरिटी कॉम्प्लेक्स हैं. हम हेमशा खुद को दुसरे लोगो से कम्प्येर करते है और खुद को कम समझते है. ये इनसिक्योर फीलिंग हमारी स्कसेस और खुशियों को अफेक्ट करती है.

हमें ये नही भूलना चाहिए कि हर इन्सान यूनीक है. हमे दूसरो से खुद की तुलना नहीं करनी चाहिए. इसलिए अगर हमें अपने गोल्स अचीव करने है तो हमे खुद को डीहिप्नोटाईज़ रखना होगा, फिजिकल रिलेक्सेसन और मेंटल पिक्चर हमे इसमें हेल्प कर सकती है.

अल्फ्रेड नाम का एक छोटा लड़का था जिसके अरिदमेटिक में अच्छे मार्स नहीं आते थे. उसके टीचर्स को लगता था कि मैथमेटिक्स उसके बस की बात नहीं है. उन्होंने उसके पेरेंट्स को बोला कि इससे मैथ्स में ज्यादा उम्मीद मत रखना. अल्फ्रेड और उसके पेरेंट्स को यकीन हो गया था कि टीचर ने जो जब टीचर ने स्टूडेंट्स को बोर्ड पे लिखा प्रोब्लम सोल्व करने को बोला तो अल्फ्रेड आगे आया. पूरी क्लास और टीचर उस पर दिन कहा सच है. एक हंस रहे थे.

अल्फ्रेड ब्लैकबोर्ड के पास गया और प्रोब्लम सोल्व करके दिखा दिया, उस दिन से अल्फ्रेंड का कांफिडेंस बढ़ गया और उसने एक टॉप मैथ स्टूडेंट बनके

दिखाया. अल्फ्रेड के केस में हम देखे तो वो अपने टीचर की बातों से हिप्नोटाईजड हो गया था. मैथ उसे इसलिए मुश्किल लगता था क्योंकि टीचर ने उसे बोला था कि तुम कभी मैथ में अच्छा नहीं कर सकते” लेकिन अल्फ्रेंड ने अपना एटीट्यूड चेंज किया जिससे उसकी बिलिफ्स भी चेंज हुई. एक और एक्जाम्पल लेते है जो पूव करती है कि हिप्नोटिज्म फिजिकल स्टेट से ज्यादा मेंटल स्टेट को अफेक्ट करती है. एक हिप्नोटिस्ट ने एक फूटबाल प्लेयर को हिप्नोटाइज किया और कहा ” तुम्हारा हाथ टेबल में फंस गया है, तुम उसे उठा नहीं सकते. प्लेयर को यकीन हो गया. उसने काफी जोर लगाया पर अपना हाथ नहीं उठा पाया. वो फुटबाल प्लेयर फिजिकली फिट था पर हिमोटिस्ट ने उसे मेंटली वीक कर दिया था. डॉक्टर नाइट डनलप

(Dr. Knight Dunlap)एक साइकोलोजिस्ट

है,

हेबिट्स और लर्निंग प्रोसेस पर उन्होंने काफी एक्सपेरिमेंट्स किए है और लोगो को उनकी कुछ सिरियस हैबिट्स छुडवाने में हेल्प की है जैसे नाखून चबाना, अंगूठा चूसना वगैरह-वगैरह, वो कहते है कि अगर तुम कोई बेड हेबिट्स चेज करना चाहते हो तो तुम्हे अपने माइंड में रिजल्ट की एक क्लियर मेंटल पिक्चर बनानी होगी. मान लो तुम्हे स्मोकिंग छोड़नी है तो आप सिगरेट के बगैर अपनी पिक्चर इमेजिन करो. इससे आपको स्मोकिंग की बुरी

आदत से से छुटकारा पाना पाने में काफी हेल्प

हाउ टू यूटीलाइज द पॉवर ऑफ़ रेशनल थिंकिंग (How to Utilize the Power of Rational Thinking) आपका अनकांशस माइंड किसी मशीन की है आप इस इसके ऑपरेटर हो. इस मशीन की खुद की कोई मर्जी नहीं है.

आप इसे जो डेटा प्रोवाइड

करते हो, ये उसी से चलती है. क्या डेटा फीड होगा.ये मार इस मशीन को आप काशस थिंकिंग से कण्ट्रोल कर सकते हो. आप प्रोसेस कण्ट्रोल नहीं कर सकते मगर मशीन में

अगर आप सोचते हैं कि कोई एक पर्टीक्यूलर काम आपसे नहीं होगा तो खुद से पूछो”क्यों” “व्यों नहीं होगा?’ इसे हम कांशस थिंकिंग या रेशनल थिंकिंग बोलते हैं. इस तरह करने से आपको पता चलेगा कि आपके कुछ बिलिफ्स आपके पुराने अनुभवों की वजह से थे, और वो बिलिफ्स गलत थे और उन्हें अब चेंज करना होगा. जब आप अपने बिलीफ चेंज करोगे तो आपने अनकांशस माइंड से सारी नेगेटिविटी भी चली जायेगी, एना को हरेलिप की प्रोब्लम थी. फटे होंठो के साथ पैदा हुआ थी. यही वजह धी कि अपने लुक्स को लेकर वो कभी भी काफिडेंट नही हो पाई, और एटी सोशल बनती चली गयी, उसका ना ई फ्रेंड था ओर ना ही कोई सोशल लाइफ, उसे लगता था कि वो बदूसरत है इसलिए कोई उसका दोस्त नहीं बनेगा. अपने आस-पास लोगों के साथ एना का बिहेव बड़ा रुखा और कोल्ड था. फिर उसकी हरेलिप सर्जरी हुई तो उसका फेस नार्मल हो गया.

लेकिन उसका बिहेव अभी भी चेंज नहीं हुआ था.

उसने काफी कोशिश की लोगों के साथ फ्रेंडली होने की मगर अपने पास्ट बिहेवियर की वजह से ये उसके लिए बड़ा मुश्किल था. उसे अभी भी लगता था कि कोई उससे दोस्ती नहीं करना चाहता. उसने लोगो के साथ जो बुरा बर्तात किया है लोग उसे भूले नही होंगे, लेकिन वो फिर गलती कर रही थी. उसने अपने माइंड में अपनी जो नेगेटिव सेल्फ इमेज बना रखी थी दो उसे कभी खश नहीं रहने देती थी. हमारे साथ पास्ट में जो हुआ उसके बेस पर अपने प्रेजेंट डिसीजन नहीं लेने चाहिए, हमे पास्ट की गलतियों और फेलीयर्स को भूल कर आगे बढ़ना होगा तभी हम सही मायनो में खुश रह सकते है, माल्ज(Malcz) कहते है कि हमे खुद से ही अपने बिलिपस को लेकर रेशनल क्वेश्चन करने चाहिए. रेशनल थिकिंग की पॉवर देखने के लिए एक और एक्जाम्पल लेते है. एक ओल्ड फार्मर स्मोकिंग छोड़ने की बड़ी कोशिश कर रहा था. एक दिन जब वो खेतो में काम कर रहा था, तो उसे याद आया कि वो अपना तम्बाकू घर भूल आया है. वो तम्बाकू लेने घर की तरफ चल पड़ा, घर पहुँचने के बाद उसे फील हुआ कि उसकी स्मोकिंग की हैबिट ने उसे अपने खेत से वापस घर आने पर मजबूर कर दिया. उसे बड़ा गुस्सा आया, क्योंकि आने-जाने में उसका टाइम वेस्ट हो गया था, वो तम्बावकू लिए बगैर ही वापस खेत की तरफ लौट गया और खुद से वादा किया कि वो आज के बाद कभी स्मोकिंग नहीं करेगा,

रिलेस्क एंड लेट योर सक्सेस मैकेनिज्म वर्क फॉर यू (Relax and Let Your Success Mechanism Work for You) एक गलती जो सब करते है वो है अपनी प्रोब्लम सोल्व करने के लिए काशस थिंकिंग या फोरब्रेन थिंकिंग पर डिपेंड रहना, लोग अक्सर भूल जाते है कि हमारे फोरब्रेन का कम डेटा कलेक्ट करना, ओब्जर्वेशन और जजमेंट करना है नाकि डेटा को प्रोसेस करना. आपका फोरब्रेन प्रोब्लम्स को समझ सकता है मगर उनके सोल्यूशन नहीं ढूंढ पाला. क्योंकि प्रोब्लम सोल्च करने का काम है आपके ऑटोमेटिक गोल स्ट्राईविंग मैकेनिज्म का. हम सभी क्रिएटिव वर्कर्स है.

कभी- कभी हमारी कांशस थिकिंग हमारे क्रिएटिव मैकेनिज्म को जैम कर देती है. इसलिए कभी भी अपनी प्रोब्लम्स को लेकर ज्यादा स्ट्रेस मत लो. रिलेक्स रहो और अपने सबकांशस क्रिएटिव मैकेनिज्म को अपना काम करने दो, फाइव रूल्स है जो आपके क्रिएटिव मशीनरी को फ्री रखते है. फर्स्ट, कोई भी शर्त लगाने से पहले अच्छे से सोच लो, लेकिन एक बार शर्त लग जाए तो राइड एन्जॉय करो सेकंड, प्रेजेंट मोमेंट पर ध्यान दो, कल की चिंता छोड़ दो, थर्ड, एक टाइम में एक ही काम करो, मल्टीटास्किंग मत करो, फोर्थ, जब आप नींद में होते हो तो आपका सबकाशस माइंड प्रोब्लम्स के सोल्यूशन ढूंढ हंस रहा होता है और फिफ्थ, रिलेक्स रहो. यहाँ एक क्लासिक एक्जाम्पल है कि कांशस थिंकिंग हमारे क्रिएटिव मैकेनिज्म को कैसे जैम कर देती है. चार्ल्स डार्विन दुनिया के मशहूर बायोलोजिस्ट और नैचु्लिस्ट थे. वो अपनी एक बुक लिख धे” द ऑरिजिन ऑफ़ स्पीशीज”, डार्विन अपनी इस बुक के लिए कोई राईट आईडिया टूढ़ने की काफी कोशिश कर रहे थे लेकिन उनसे हो नहीं पा रहा था. एक दिन जब वो अपने कैरिज में बैठे थे तो अचानक उन्हें एक आईडिया आया और उन्हें अपनी प्रॉब्लम का सोल्यूशन मिल गया. जब उनका सारा ध्यान प्रॉब्लम पर था तो उन्हें सोल्यूशन नहीं मिल रहा था मगर उन्हें अचानक से सोल्यूशन मिल गया जब उनका धयान कहीं और था.

एक और एक्जाम्पल है सिखाने का कि हमे उस वक्त सोचना चाहिए जब डिसीजन लेना हो, क्योंकि एक बार जब आपने डिसाइड कर लिया तो फिर उस पर सोच विचार करने का कोई फायदा नहीं है. रौलेट प्लेयर्स अपना बेट लगाते वक्त बिलकुल भी नहीं सोचते, उस वक्त ऐसा लगता है जैसे उन्हें प्रॉफिट या लोस से कोई फर्क नहीं पड़ता है. लेकिन एक बार बेट लग जाए, और व्हील घूमने लग जाए तो प्लेयर्स रिजल्ट के बारे में सोचकर परेशान होने लगते है. हालाँकि उन्हें इसका एकदम अपोजिट करना चाहिए, उन्हें बेट लगाने से पहले सोच लेना चाहिए कि उन्हें फायदा होगा या नुकसान, लेकिन एक बार बाज़ी हाथ से निकल जाए तो हम कुछ नहीं कर सकते. इसलिए बेट लगाने के बाद उन्हें टेंशन छोड़कर रिलेक्स होकर गेम एन्जॉय करना चाहिए प्रेजेंट में अटेंशन का एक और एक्जाम्पल लेते है. सीन लोगों की भीड़ नवस फील करने लगता था, स्पेशली जहाँ कोई फॉर्मल गेदरिंग हो या कोई फेस्टिवल हो, लोगों के बीच में जाते ही उसे बचपन का एक हादसा याद आ जाता था, दरअसल ये हादसा तब हुआ जब सीन एलीमेंट्री स्कूल में था. एक बार उसने गलती से अपनी में पेशाब कर दिया था,

सीन टीचर ने उसे पूरी क्लास के सामने हयूमिलेट किया जिसकी वजह से सीन काफी शर्मिंदा हुआ था. लेकिन इतने सालो बाद भी ये बात उसके माइंड से निकल नहीं पाई थी, और जब भी वो लोगों का ग्रुप देखता तो उसे वही बात याद आ जाती थी जो उसे न्वस फील कराती थी. उस वक्त सीन ऐसे बिहेवा करता जैसे वो 10 साल का कोई बच्चा हो. उसे लोगों के अंदर अपनी टीचर नजर आती जिसने उसे ह्यूमिलेट किया था. फिर सीन ने साइकोलोजिस्ट की हेल्प ली. उसे पता चला कि वो पास्ट सिचुएशन में नहीं बल्कि प्रेजेंट में रिएक्ट कर रहा है.फिर धीरे-धीरे उसकी नर्वसनेस दूर होती गयी. ये एवचसाम्प्ल प्रुव करता है कि हमे पास्ट फ्यूचर से निकलकर अपने प्रेजेंट मोमेंट में जीना चाहिए,

यू कैन एक्वायर द हैबिट ऑफ़ हैप्पीनेस (You Can Acquire the Habit of Happiness)

एक हेल्थी और सक्सेसफुल लाइफ के लिए हैप्पीनेस बहुत ज़रूरी है. हर कोई हर वक्त खुश नहीं रह सकता लेकिन हम ज्यादा से ज्यादा खुश रहने की कोशिश तो कर ही सकते है, लेकिन हमें हैप्पीनेस को पैसे, पॉवर या सक्सेस से तौल कर नहीं देखना चाहिए. क्योंकि जिसके पास ये सब है, वो लोग भी पूरी तरह खुश नहीं है. असल में हैप्पीनेस एक प्लीजेंट स्टेट ऑफ़ माइंड है, खुश रहने की कला सीखी जा सकती है. हैप्पीनेस अपनी हैबिट में शामिल किया जा सकता है इसलिए इसकी रोज़ प्रेक्टिस करो. जो लोग हर हाल में खुश रहना सीख जाते हैं फिर उन्हें से डर नहीं मुश्किलों से डर लगता. इनके सामने कोई प्रोब्लम हो तो गुस्से के बजाये ठंडे और शांत दिमाग से फैसले लेते हैं. खुश रहने की आदत हमे रिएक्शन पैटर्न को कण्ट्रोल करने में भी हेल्प करती है. फेमस बेसबॉल प्लेयर, कार्ल एस्किने ने इस बारे में अपना एक्स्पिरियेंश शेयर किया है. जब भी उन्हें कोई स्ट्रेस होता तो वो उस जगह के बारे में सोचने लगते जहाँ वो बचपन में फिशिंग करने जाया करते थे, ऊँचे-ऊँचे पेड़ो से घिरे पानी के झरने का ख्याल ही उन्हें बड़ा सुकून देता था, और उनकी सारी टेंशन दूर हो जाती. पॉल एक यंग सेल्समेन है. उसे लगता था कि उसकी सेल्स इसलिए कम है क्योंकि उसकी नाक काफी बड़ी थी. उसने अपनी जॉब छोड़ दी और नोज की सर्जरी करवाई, वैसे उसकी नाक वाकई में काफी बड़ी थी. लेकिन दरअसल कस्टमर्स को उसकी नाक से नहीं बल्कि उसके रुड़ बिहेवियर से दिक्कत थी. कुछ कस्टमर्स ने उसकी कम्प्लेंट भा काऔर इस वजह से पिछले दो हफ्तों से उसकी कोई सेल नहीं हो पाई थी. डॉक्टर मैक्सवैल ने पॉल को कन्विंस किया कि उसकी नोज़ नहीं बल्कि उसका नेगेटिव एटीट्यूड प्रोब्लम है. उन्होंने पॉल को बोला कि वो 30 दिनों तक किसी भी नेगेटिव थौट से दूर रहो पोजिटिव थौट रखो. पॉल ने यही किया. उसके बाद हुआ वो हैरान करने वाला था. उसकी सेल्स इन्रीज हो गयी थी, उसके कस्टमर्स खुश थे, और उसके बॉस ने सबके सामने उसकी तारीफ की. एक यंग बिजनेसमेन ने डॉक्टर मैक्सवैल से पुछा” मै कैसे खुश रहूँ जबकि स्टॉक मार्किट में मुझे 2 मिलियन डॉलर का लोस हुआ है” उस बिजनेसमैन को काफी नुकसान पहुंचा था इसलिए यो बड़ा दुखी था. डॉक्टर मैक्सदैल ने उसे बोला” तुम अपने पैसे के लिए दुखी नहीं हो बल्कि तुम्हे इस बात का दुःख है कि तुम्हारे गोल्स अचीव नहीं हुए और तुम्हारा एटीट्यूड भी एग्रेसिव है. बिजनेसमेन ने उनकी बात गौर से सुनी और फिर से एक बार हिम्मत करके अपना बिजनेस संभाला, इस बार भी उसने स्टॉक मार्किट में पैसा लगाया लेकिन काफी सोच समझ कर, और इस बार उसे पहले से भी ज्यादा सक्सेस मिली.

थॉमस एडिसन की मिलियन डॉलर की लेबोरेट्री आग में जल गयी थीं. जब उनसे किसी ने पुछा” अब आप क्या करोगे?” तो एडिसन ने कहा कि वो कल से ही नयी लेबोरेट्री बनाना शुरू कर देंगे. एडिसन अपने नुकसान पर दुखी नहीं धे. उन्होंने इतनी बड़ी मुसीबत में भी अपना एग्रेसिव गोल स्ट्रिविंग एटीट्यूड नहीं छोड़ा था.

इंगरेडीएंट्स ऑफ़ द सक्सेस टाइप पर्सनेलिटी एंड हाउ टू एक्वायर देम (Ingredients of the “Success-Type” Personality

and How to Acquire Them)

इस चैप्टर में डॉक्टर मैक्सवैल ने वो खास बाते बताई है जो एक सक्सेस टाइप पर्सनेलिटी बनाती है. और एक सक्सेस टाइप पर्सनेलिटी बनती है सेन्स ऑफ़ डायरेक्शन, अंडरस्टेडिंग, करेज, चैरिटी, एस्टीम, सेल्क-कांफिडेंस, और सेल्फ एवसेप्टेंस से मिलकर, जब तक आपमें सेन्स ऑफ़ डायरेक्शन है

आप बेलेंस बनाकर रखोगे. मगर जैसे ही आप ये डायरेक्शन खो दोगे, आप दुखी और अनसक्सेसफुल हो जाओगे. आपके क्रिएटिव मैकेनिज्म को प्रॉपर ढंग से काम करने के लिए राईट इन्फोर्मेशन चाहिए. और राईट इन्फोर्मेशन तभी मिलेगा जब आपको अपने करते है करते है. सक्सेस का. का एक और र है सेल्फ-कार्फिडेंस, इसलिए अपने गुज़रे हुए खूबसूरत लम्हों को याद करके अपना सेल्फ-कांफिडेंस बढाओ, आप जो हो जैसे हो, एक्सेप्ट करो. यहाँ हम एक एक्जाम्पल लेते है कि सक्सेस के लिए सेन्स ऑफ़ डायरेक्शन क्यों ज़रूरी है. क्रिस (Chris) करा. यहा एडवरटाईजिंग की फील्ड में जॉब करता है. उसे प्रोमोशन मिली और वो बिजनेस एक्ज़ीक्यूटिव बन गया. वो काफी लम्बे टाइम से इस प्रोमोशन का चेट कर रहा था, लेकिन अब जबकि उसे प्रोमोशन मिल गयी है तो इनसिक्योर फील कर रहा है, उसे अपने अंदर कॉन्फिडेंस की कमी फील हो रही है.

एन्वायर्नमेंट यानी माहौल की अच्छी समझ हो, सिर्फ डायरेक्शन और अंडरस्टेडिंग ही काफी नहीं है. इंसान में वो हिम्मत भी होनी चाहिए कि वो अपने गोल्ड की तरफ हाथ बढाए. दुनिया में हर कोई इम्पोर्टंट है, हर कोई रिस्पेक्ट के काबिल है. और जो लोग सक्सेसफुल होते है वो हमेशा दूसरो की केयर क्रिस अपनी फिजिकल बॉडी को लेकर खुश नहीं है.

उसे लगता है कि जो बिजनेस एक्ज़ीक्यूटिव जैसा नहीं दिखता है. उसने फैसला किया कि उसे प्लास्टिक सर्जरी करवा लेनी चाहिए. लेकिन असल प्रोब्लम उसके लुक्स में या बॉडी में नहीं है. पूरी लाइफ उसके सामने कोई ना पर्सनल गोल्स रहे है या तो उसकी प्रेजेंट पोजीशन या कोई बिजनेस रिलेटेड गोल्स, मगर प्रोमोशन के बाद उसे दूसरों के बारे में भी सोचना है. उसने अपनी डायरेक्शन खो दी इसलिए वो हेल्पलेस फील करने लगा. दरअसल वो एक माउंटेनियर की तरह है जो पीक की तरफ देखता है और चढ़ाई शुरू कर देता है, उस वक्त उसके माइंड में सिर्फ एक गोल होता है कि उसे पीक तक पहुंचना है. मगर एक बार जब वो पीक पर पहुँच गया तो उसे समझ नहीं आता कि अब कहाँ जाये. क्रिस की भी यही हालत है. उसने अपना डायरेक्शन लूज कर दिया है. और अब उसे समझ नहीं आ रहा कि वो आगे क्या करे.

इसलिए उसका कांफिडेंस भी लूज़ हो गया. तब उसने अपने लिए नए गोल्स सेट किये और अपनी सक्सेस जर्नी एक बार फिर से शुरू कर दी. इसलिए सक्सेस टाइप पर्सनेलिटी के लिए अपने एन्वायर्नमेंट को जानना बहुत जरूरी है. हिस्टोरियंस का मानना है कि हिटलर सेकंड वॉर इसलिए हार गया था क्योंकि उसे अपने एन्वायर्नमेंट की समझ नहीं थी. जो लोग उसे बुरी न्यूज़ देते थे, उन्हें वो पनिश करता था. इसलिए उसके लोग उससे सच्चाई छुपाने लगे और यही वजह थी कि अल्टीमेटली हिटलर हार गया.

कनक्ल्यू जन (Conclusion)

इस बुक में आपने पढ़ा कि लाइफ में सेल्फ इमेज कितनी इम्पोटेंट हैं, आपने ये सीखा कि हमारी सेल्फ इमेज हमारी लाइफ बना भी सकती है और बिगाड़ भी सकती है. इस बुक में आपने सिखा कि इमेजिनेशन पॉवर कितने कमाल की चीज़ है, यहाँ तक आप सिर्फ माइंड प्रेक्टिस से चेस का हारा हुआ गेम भी जीत सकते हैं.

इस जनी में आपने पर्सनेलिटी टाइप के बारे में पढ़ा, लोग या तो सक्सेस टाइप होते है या फेलर टाइप, आपने ये भी सीखा कि एक सस्केस टाइप पर्सनेलिटी कैसे बनाई जा सकती है. इसलिए सक्सेस या फेलर दोनों हमारे हाथ में है. दुनिया में कुछ भी इम्पॉसिबल नहीं है अपने अंदर ये यकीन रखो. क्योंकि अगर आपको खुद पे भरोसा है तो आपको कोई चीज़ नही रोक सकती. अपने नाकामयाबीयों से सबक लेकर जीत की खुशी मनाओ. कॉंफिडेंट बनो, सक्सेस आपसे ज्यादा दूर नहीं है. तो आओ, आज से ही सफलता की सीढ़ियों पर कदम बढ़ाने के लिए तैयार हो जाओ.

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