PEACEFUL PARENT HAPPY KIDS by Laura Markham.

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About Book

Peaceful Parent, Happy Kids: How to Stop Yelling and Start Connecting.

इंट्रोडक्शन(Introduction)

ज्यादातर पेरेंट्स अपने बच्चे पर चिल्लाते क्यों हैं? क्या बच्चे का व्यवहार बदलने के लिए उस पर चिल्लाने से, डराने से या ज़ोर ज़बरदस्ती करने से कोई असर होता है? आप कैसे अपने बच्चे को एक disciplined, इंडिपेंडेंट और सहयोग देने वाला इंसान बना सकते हैं? क्या बच्चों को पनिशमेंट देना सच में काम करता है? इस बुक में आपको इन सवालों का जवाब मिलेगा जो आपकी सोच हमेशा के लिए बदल देगा.

एक बार सिंधिया नाम की एक माँ ने डॉ. लॉरा से मदद मांगी. उसने कहा कि जब वो छोटी थी तो उसकी माँ उस पर बहुत चिल्लाती थी. उसकी दादी भी बिलकुल ऐसा ही करती थीं. उसके परिवार में ज़्यादातर पेरेंट्स अपने बच्चों पर चिल्लाते थे लेकिन अब वो इस cycle को तोड़ना चाहती थी. हम सभी शांत और खुश मिजाज़ बच्चे चाहते हैं. हम सभी उनके नखरों और बुरे व्यवहार को खत्म करना चाहते सालों की स्टडी से पता चला है कि ऐसा करना पॉसिबल है, एक असरदार तरीका है जिससे आपके बच्चे खुशहाल होंगे और आप पीसफुल पेरेंट्स. आपको ये नकार आश्चर्य होगा कि अपने बच्चों के साथ एक अच्छा रिश्ता बनाने से पहले आपको अपने आप सेएक अच्छा और बैलेंस्ड रिश्ता बनाने की ज़रूरत है.पीसफुल पेरेंट्स बनने का पहला स्टेप है खुद को कंट्रोल करना, इस बुक में आप सीखेंगे कि खुद के बचपन का सामना कैसे करना है और अपने इमोशंस को कैसे कंट्रोल किया जाता है. दूसरा स्टेप है कनेक्शन बनाने पर बढ़ावा देना. आप सीखेंगे कि आप कैसे अपने बच्चे के साथ प्रीस्कूल में, स्कूल में,उम्र के हर पड़ाव में उसके साथ एक स्ट्रोंग रिलेशनशिप बना सकते हैं. टीनऐन का पड़ाव बहुत नाजुक होता है, इसमें बच्चे अलग चीजें महसूस करते हैं और अक्सर पेरेंट्स से कनेक्ट नहीं कर पाते. लेकिन निश्चित रहे क्योंकि अपने टीनऐज बच्चे के साध भी एक क्लोज़ बॉंड बनाना बिलकुल पॉसिबल है और ये आपको इस बुक को पढ़ने के बाद समझ में आ जाएगा.

तीसरा स्टेप है, कोचिंग, कट्रोलिंग नहीं. आप सीखेंगे कि अपने बच्चे की भावनाओं को कैसे पहचाना जाए. आप इमोशनल इंटेलिजेंस के बारे में जानेंगे और आप सीखेंगे कि उसे अचीव करने में आप अपने बच्चे की कैसे मदद कर सकते हैं. इमोशस हमारी पर्सनालिटी का एक अहम हिस्सा होता है. उन्हें समझ कर अपने बच्चे को समझाना, आपके बच्चे को लाइफ के हर challenge से लड़ने के लिए तैयार करेगा.

PART ONE REGULATING YOURSELF

योर नंबर वन रिस्पांसिबिलिटी एज़ अ पैरेंट (Your Number One Responsibility as a Parent)

कई लोग कहते हैं कि एक पेरेंट होना दुनिया का सबसे मुश्किल काम है. लेकिन वो ऐसा क्यों कहते हैं? इसके दो कारण हैं – पहला, क्योंकि ये बहुत ज़िम्मेदारी का काम होता है और दूसरा इसके लिए कहीं कोई क्लियर इस्ट्रक्शन नहीं हैं कि इसे कैसे किया जाना चाहिए. लेकिन अब असल में क्या ये सच है? ऊपर बताया गया पहला कारण तो सौ फीसदी सच है लेकिन दूसरे सवाल का जवाब आपको चौंका देगा.कई स्टडीज हो सात शाट खार सामने आई है कि जो पेरेटस प्यार शांति और एक कनेक्शन द्वारा अपने बच्चों की करते जो बच्चे आगे चलकर हसमुख, ज़िम्मेदार और disciplined बनते हैं, एक्सपर्टस ने ये साबित किया है कि चिल्लाकर अपने बच्चो से आात मनवाना एक असरदार तरीका हो ही नहीं सकता. इसके बजाय ये परिवार के रिश्तों को ही बर्बाद कर देता है।

आप इसे अपने घर में होने से रोक सकते हैं, नज़रिया बदल कर तो देखिए, पहली चीज़ जो आपको सीखने की ज़रुरत है वो है माइंडफुलनेस यानी अपने इमोशंस को मैनेज करना. यानी जब आप परेशान होने के बावजूद उसका असर खुद पर नहीं होने देते तब उसे माइंडफुलनेस की स्टेट कहा जाता है. बच्चों का नेचर ही ऐसा है कि वो हर रोज कुछ ना कुछ करेंगे जो आपको पागल बना देगा, दो नहीं जानते सही और गलत क्या है. उन्हें अभी बहुत कुछ बाकि है, अपने इमोशंस को कंट्रोल करना सीखना बाकि है और पैरेंट होने के नाते आपको उन्हें ये सब सिखाना होगा. लेकिन अगर आप खुद समझना अपने इमोशंस कट्रोल नहीं कर सकते तो आप उन्हें कैसे सिखाएंगे.

एग्ज़ाम्पल के लिए, एक दिन आपकी बड़ी बेटी ने आपकी छोटी बेटी को मारा, तो आपको क्या लगता है, क्या आपको अपनी बड़ी बेटी को तुरंत सज़ा देनी चाहिए? बेशक, क्योंकि उसने जो किया वो गलत है, लेकिन पहले आपको ये समझना चाहिए कि वो गुस्सा कहाँ से आ रहा है, क्यों आ रहा है. शायद आपकी बड़ी बेटी अपनी बहन से जलती है और क्योंकि वो खुद बच्ची है, वो अपने इमोशंस को कंट्रोल नहीं कर सकती. अब अगर आप अपनी बड़ी बेटी पर चिल्लाएँगे या उसे मारेंगे तो ये दिखाता है कि आप खुद अपने इमोशंस को कंट्रोल नहीं कर सकते. इसलिए एक पैरेंट के रूप में सबसे पहले आपको माइंडफुल और केयरफुल होने की ज़रूरत है.

ब्रेकिंग द साईकल: हीलिंग योरओन बुंड्स (Breaking the Cycle: Healing Your Own Wounds)

कभी-कभी ऐसा भी वक्त आएगा जब आप किसी सिचुएशन को सहन नहीं कर पाएँगे. इसके लिए आपको कुछ और भी समझने की ज़रुरत है. अपने बच्चों को बड़ा करना आपको अपने बचपन में वापस ले जाता है. अगर आपके बचपन की कोई ऐसी कड़वी याद या घाव है जो अब तक भरे नहीं हैं तो ऐसा हो सकता है कि आप अपने बच्चे को वही दर्द देंगे, आपका बच्चा आपको उस समय की याद दिलाएगा जब आपके पापा हमेशा घर से दूर रहते थे और आपकी मम्मी आप पर गुस्सा किया करती थीं.

आपके बच्चे बचपन आपकी बुरी यादों को ट्रिगर करेगा, अब आपको खुद से पूछना होगा, क्या आप चाहते हैं कि आपका बच्चा भी उस दुःख और दर्द से गुज़रे जिससे आप गुज़रे थे? क्या आप चाहते हैं कि उसके मन में भी बचपन की बुरी यादें घर कर जाए जैसे आपके मन में कर गई? आप इस साईकल को ब्रेक कर सकते हैं. आप खुद अपने बचपन के घाव को भर सकते हैं ताकि आपका बच्चा उसे एक्सपीरियंस ना करे. आपके बच्चे डाउट, अकेलापन और डर र जैसे इमोशस, जो आपके मन में थे, को दूर कर एक अच्छी जिंदगी जी सकते हैं. यहाँ तीन तरीके हैं जिनसे आप अपने बचपन के घावों को भर सकते हैं और अपने बच्चों के लिए एक बेहतर बचपन बना सकते हैं.पहला है, “Use

your inner pause button”. अगर आपके बच्चे ने कुछ ऐसा किया है जो जिससे आपको गुस्सा आ जाए तो गहरी सांस लें और अपने अंदर के पॉज़ बटन को दबाएँ. यहाँ पॉज़ का मतलब है ठहराव. रुक कर सोचे कि आप किस तरह रियेक्ट करने जा रहे थे. क्या आप अपने बच्चे को मारने वाले क्या आप उसकी insult करने वाले थे?

अपने पॉज़ बटन को दबाएँ.

अगर आपने चिल्लाना शुरू कर दिया है तो भी रुक जाएँ और रूम से बाहर चले जाएं. अगर आपने उसे मारने अपना हाथ रोक लेना, इसमें कोई शर्मिंदगी की बात नहीं है. शर्मीदगी की बात तब होगी जब आप अपने बच्चे को दिखाते हैं कि आप खुद को कंट्रोल नहीं के लिए हाथ उठा दिया है तो बीच में कर सकते. आपको शर्मिंदा तब होना चाहिए जब आप अपने इमोशंस में बहक कर बेकाबू हो जाते हैं. दूसरा तरीका है, “Reset your own story,” एग्ज़ाम्पल के लिए, जब आप छोटे थे तब आपके पापा घर छोड़ कर चले गए. उस वजह से आपको लगने लगा कि आपमें ही कोई कमी है, आप इतने बेकार हैं कि आप अपने पापा के रुकने का कारण भी ना बन सके. लेकिन अब आपको अपने सोचने का नज़रिया बदलना होगा.

अब आप बड़े हो चुके हैं और आपको ये एहसास होना चाहिए कि आप एक यूनिक इंसान हैं. आपके पापा के अपने कारण थे जिस वजह से उन्होंने घर पुणे है । छोड़ा. इससे आपका कोई लेना देना नहीं है.

एक और एग्ज़ाम्पल है, बचपन में गलती करने पर आपकी मम्मी अवसर आपको थप्पड़ मारा करती थीं, उस वजह से आपने मन में ये बात बैठा ली कि प एक बुरे बच्चे हैं और आप प्यार पाने के हकदार नहीं हैं. अब यहाँ फ़िर आपको अपने माइंड को रिसेट करने की ज़रुरत है.आपको ये समझना होगा आप।

कि आपकी मम्मी के अपने प्रोब्लम्स थे. हर बच्चा प्यार और अर्टेशन के लिए तरसता है, जिस चीज़ से उसे अटेंशन मिलती है वो उसे ही दोहराने लगता है. उसे इस बात की समझ नहीं होती कि

सही क्या है और गलत क्या है, अगर आपको भी कोई गलती करने पर ही अटेंशन मिलती थी, तो आप अपने बच्चे के साथ ऐसा ना करें,

तीसरा तरीका है,”Relieve your stress.” आप अपने बच्चे पर इतना गुस्सा क्यों करते हैं? शायद इसका कारण है कि आप बहुत थके हुए हैं या शायद आपकी नींद पूरी नहीं होती. या हो सकता है कि आपका अपने पार्टनर या बॉस के साथ बहस हुआ हो. लेकिन इसका गुस्सा अपने बच्चे पर निकालना तो सही नहीं स्ट्रेस तो हम सब की लाइफ का हिस्सा बन गया है तो क्या आप खुशी से जीना छोड़ देंगे? अपने स्ट्रेस को कम करने की कोशिश करें. ये आप कैसे भी कर सकते हैं जैसे हॉट बाथ लेकर, मैडिटेशन, योगा, एक्सरसाइजया अपना favourite चीज़ बर्गर खाकर आप म्यूजिक सुनकर या टीवी देखकर भी अपना मूड चेंज कर सकते हैं. जब आप शांत और ठंडे दिमाग से सोचेंगे सिर्फ तब आप एक अच्छे पैरेंट बन सकते हैं, ऐसा पैरेंट नाबनें जिन्हें देखकर बच्चे डर कररूम से भाग जाएं बल्कि ऐसे पैरेंट बनें जिन्हें देखते ही वो दौडकर गले लगा लें.

हाउ टू मैनेज योर ऐंगर (How to Manage Your Anger)

अब ये डिस्कशन हमें anger मैनेजमेंट पर ले आई है.तो गुस्से के कारण आपका जो रिएक्शन होता है, उसे आप कैसे रोक सकते हैं? इमोशंस ही हमें इंसान बनाते हैं और वो हमारे लाइफ का एक अहम् हिस्सा होते हैं इसलिए गुस्सा आना भी नेचुरल है. लेकिन दया आप जानते हैं कि आप जितना ज्यादा अपने गुस्से की वजह से कोई एक्शन लेंगे, आप उतना ही ज्यादा गुस्सा करते जाएँगे. क्या आप अपने बच्चे को दिखाना चाहते हैं कि गुस्से में किसी को चोट पहुंचाना सही है? इसके बजाय आप बच्चे को बिना मारे, बिना उसकी इंसल्ट किए, उसे शांत रहना भी तो सिखा सकते हैं ना. अगर आपको चिल्लाने का मन कर रहा है तो आप अपनी कार का शीशा बंद कर अंदर जितना मर्जी है चिल्ला सकते हैं. आइए गुस्से को मैनेज करने के कुछ और तरीकों के बारे में जानते हैं.

पहला technique है “Help your body to release anger” यानी गुस्सा रिलीज़ करने में अपनी बॉडी की मदद करें. गुस्सा आने पर आपकी बॉडी में अलग तरह के होमोंस रिलीज़ होते हैं और ब्रेन में न्यूरो-ट्रांसमीटर्स अपना काम करने लगते हैं जिसकी वजह से आपके मसल्स में तनाव सांसें तेज़ हो जाएगी और आपकी पल्स दौड़ने लगेगी. इस टेंशन को आप अपने हाथों को हिलाकर, दस गहरी सांर्से लेकर या कोई प्यारा से गाना होगा,

गुनगुनाते हुए रिलीज़ कर सकते हैं.

यहाँ तक कि जब आपको सच में बहुत ज्यादा गुस्सा आ रहा हो तब हंसने या मुस्कुराने का कोई ना कोई तरीका हूँढने की कोशिश करें. हंसने या । से आपके ब्रेन में एक नया मैसेज जाता है. ऐसा करने के बाद आप नोटिस करेंगे कि आपकी बॉडी शांत और रिलेवस होने लगेगी. आपकी पल्स और सांसें वापस नार्मल हो जाएंगे.

दूसरा technique है “Avoid physical force, no matter what” यानी चाहे कुछ भी हो जाए लेकिन उठाएं, बच्चों पर हाथ उठाना, कुछ वक्त के लिए तो आपके बच्चों को आपकी बात मानने के लिए मजबूर कर सकता है लेकिन इससे रिश्ते में दरार आने आप बच्चों पर हाथ ना

लगती है. आपका बच्चा ये नहीं समझ सकता कि उसका बिहेवियर बुरा है, वो बुरा नहीं है. तीसरा technique है “Avoid threats” यानी बच्चों को ना धमकाएं. आपने भी कभी ना कभी अपने पेरेंट्स से कुछ ना कुछ धमकी ज़रूर सुनी होगी तो बात ऐसी है कि इन धमकियों का तब तक कोई असर नहीं होता जब तक वो सच नहीं हो जाते. अगर आपका बच्चा समझ गया कि आप कोरी धमकी देते हैं तो वो बुरा बर्ताव करता ही रहेगा.

चौथा technique है “Monitor your words and tone of voice” यानी अपने शब्दों और टोन पर ध्यान दें. कई स्टडीज से पता चला कि शांति से बात करने से । हम शांत महसूस करते हैं और हमारे आस पास के लोग भी हमारे साथ शांति से पेश आते हैं. अगर आप शांति से बात करेंगे तो आपको उसका response भी शांति से मिलेगा और जहां आपने तेवर दिखाकर बात की तो आपको सामने वाले का तेवर भी झेलना होगा. पांचवी technique है “Choose your own battles” यानी आपको डिसाइड करना है कि आप किस वक्त कैसे रियेक्ट करना चाहते आपको ज्यादा इम्पोर्टेन्ट बातों पर फोकस करना चाहिए. अगर आपकी बेटी ने अपने गंदे कपड़े फ़र्श पर छोड़ दिए हैं तो आप गुस्सा ना कर उसे इग्नोर भी कर सकते हैं. लेकिन आपको तब ऐसे रियेक्ट नहीं करना है जब वो अपनी छोटी बहन को चोट पहुंचाए. बच्चे को हर समय डांटना फटकारना बिलकुल ठीक नहीं है. इसलिए आपको डिसाइड करना है कि आप किन बातों को अनदेखा कर सकते हैं और कब उसे डिसिप्लिन सिखाने के लिए सज़ा

देना ज़रूरी है. पेरेंट होने का मतलब है ठहराव के साथ अपने बच्चे की परवरिश करना. कभी-कभी बड़े होने की जिम्मेदारियों का बोड़ा हमें थका देता है. लेकिन प्रेजेंट मोमेंट में जीने की कोशिश करें. आपका बच्चा जो चचलता, प्यार और खुशी आपकी जिंदगी में लेकर आया है उसे appreciate करना सीखें, उसकी छोटी-छोटी हरकतें जैसे उसकी हंसी, उसकी शरारत और जब वो कोई गेम जीत जाता है तो उसके चेहरे पर उस गर्व को एन्जॉय करें क्योंकि ये वो अनमोल मोमेंट्स हैं जो एक बार बीत गए तो आप बाद में उनके लिए तरसते रह जाएँगे.माना बच्चे शरारती होते हैं लेकिन वो मासूम भी तो होते हैं.

PART TWO: FOSTERING CONNECTION हर बच्चा चाहता है कि उसके पेरेंट्स 10% उसकी साइड में हो. जब एक बच्चा जानता है कि उसके पेरेंट्स उसके साथ हैं तो वो बेखौफ़ होकर बाहर की दुनिया में निकलता है. अपने पेरेंट्स के सैल्फलेस प्यार गिलनेके कारण वो खुदसे और दूसरों से प्यार करना सीखता है. ऐसे बच्चों की साइकोलॉजिकल ग्रोथ बहुत अच्छी होती है.उसके अंदर गुस्सा और नफ़रत नहीं बल्कि प्यार और understanding जैसे इमोशंस डेवलप होने लगते हैं जो उसे एक अच्छा इसान बनने में मदद करते हैं.अब हमें डॉ. लॉरा बताने वाली है कि हम अपने बच्चे के जन्म से उसके हर स्टेज में उससे कैसे कनेक्ट कर सकते हैं.

Babies 0-13 months: Rewiring the Brain देन के वो हिस्से जिनका संबंध इमोशंस से होता है, वो बच्चे के जन्म से ही डेवलप होना शुरू हो जाते हैं. ये हिस्से right hemisphere,

hippocampus और amygdala हैं. ये हिस्से मेंटल हेल्थ, anger मैनेजमेंट, चिता और दमोशंस को कंट्रोल करने के लिए ज़िम्मेदार होते हैं, 0-13 महीनों के बच्चों से डीप कनेक्ट बनाने से उनकी इमोशनल हेल्थ बहुत स्ट्रॉंग हो जाती है. एग्ज़ाम्पल के लिए. अगर किसी बच्चे की माँ डिप्रेस्ड रहती है तो उस बच्चे को पॉजिटिव फीलिंग की कमी की आदत हो जाएगी. इसे ठीक कैसे किया जा सकता आइए समझते हैं.

इमेजिन कीजिए कि आपका छोटा सा बच्चा आपको देख रहा है, अगर आप उसे मुस्कुरा कर देखेंगे तो आपका बच्चा भी मुस्कुराएगा और excitement में अपने पैरों को किक करने लगेगा. अगर आप थोड़ा और मुस्कुराएँगे तो वो और ज़्यादा excited हो जाएगा. इससे आप दोनों को एक जुड़ाव, एक प्यारा सा कनेक्शन महसूस होगा.

लेकिन थोड़ी देर बाद, बच्चा थक जाएगा. उसने अपने हिस्से की मस्ती कर ली और आप देखेंगे कि वो इधर उधर देखने लगेगा, क्योंकि आप बहुत खुश इसलिए आप उसे और खुश करना चाहते हैं लेकिन इस बार वो आपको देखकर मुस्कुराता नहीं है

लेकिन वो दोबारा आपको देखता है ये समझने के लिए कि क्या आप भी शांत हो गए हैं. अगर हाँ, तो वो आपके करीब आकर आपसे लिपट जाएगा. बच्चा इस बात से संतुष्ट होगा कि आपने उसके साथ खेला और जब थक गया तब आप उसका इशारा समझ गए. इससे आपका बच्चा ये सीखता है कि आप उसकी जरूरतों को समझते हैं और उसके लिए हर वक्त मौजूद हैं. उसे ये एहसास हो जाता है कि वो सेफ़ है, वो सीखने लगता है कि भरोसा कैसे करना है. ऐसे बच्चे खुश होते हैं और बड़े होने के बाद उनमें मदद और सहयोग करने की भावना डेवलप होती है.

एक गलत धारणा ये है कि बच्चों के रोने पर उन्हें नज़रदाज़ करना अच्छा होता है. लेकिन ये सिर्फ आपके बच्चे को चिडचिडा बना देता है. बच्चों को

दुलार की ज़रुरत होती है और जब ये प्यार उसे अपने माँ बाप से मिलता है तब जाकर वो अपने झमोशंस को कंट्रोल करना सीखता है. वो शात होना सीखता है क्योंकि वो जानता है कि आप उसकी ज़रुरत का ध्यान रखने के लिए मौजूद हैं. ये विश्वास और ट्रस्ट ही उसे एक खुशहाल बच्चे के रूप में बड़ा करता है क्योंकि वो जानता है कि उसके आस पास का माहौल सेफ़ है और वो खुल कर

खुद को एक्सप्रेस कर सकता है.

Toddlers (13-36 months): Building Secure Attachment क्या आप सिक्योर अटैचमेंट के बारे में जानते हैं? ये तब होता है जब आपका बच्चा आपके साथ एक स्ट्रोंग कनेक्शन को एन्जॉय करता है.ये तब

होता है जब प्यार एक बच्चे को सेफ महसूस कराता है और इसलिए उसमें हाई सेल्फ़ कॉन्फिडेंस और सेल्फ रिस्पेक्ट होती है, वो किसी भी स्ट्रेसफुल सिचुएशन से डील कर सकता है, स्कूल में अच्छा परफॉर्म करता है और दोस्तों के साथ अच्छे रिलेशन बना सकता है, बहुत छोटे बच्चे खुला रहना पसंद करते हैं इसलिए इधर उधर घूमते रहते हैं, लेकिन वो समय समय पर चेक करते हैं कि आप उनके आस पास हैं या

नहीं.आप अपने बच्चे के लाइफ के स्टार होते हैं, जन्म से लेकर 3 साल की उम्र तक वो आपके चारों और चक्कर काटता रहता है. एग्ज़ाम्पल के लिए, है.

जब आप अपने बच्चे को प्लेग्राउंड में ले जाते हैं, वो जहां खेलता है आप उसके पास वाली बेंच पर बैठ जाते हैं, अब बच्चा खुशी-खुशी अपने खेल में

ले।

जहा ।

मगन हो जाता है लेकिन वो बीच बीच में आपको देखता भी रहता है।

आप

ह या

नहीं.

अगर आप दूर के बेंच पर बैठेगे तब वो घबरा जाता है. वो तब भी आपको देखता रहेगा और आप अपना हाथ हिलाकर उसे देख सकते हैं लेकिन उसके पर थोड़ा गुस्सा भी होगा. उसका ध्यान खेलने में नहीं लगेगा और हो सकता है कि वो रोने लगे. दो आपको पुकारेगा और आपकी तरफ़ दोीड़ कर आएगा. वो आपसे गले लगेगा और फिर खेलने के लिए चला जाएगा. तो अभी जो हुआ वो क्यों हुआ? ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि अपने आपको आस पास ना देखकर बच्चा कंफ्यूज होकर खोया हुआ महसूस करता है. इसलिए अपने बच्चे के साथ आपका कनेक्शन बहुत ज़रूरी होता है. ऐसे कई पेरेंट्स हैं जो अपने बच्चों को दो साल की उम्र से ही डे-केयर या क्रेश की देखभाल में छोड़ देते हैं. लेकिन उन्हें इस बात का एहसास ही नहीं कि ये बच्चों पर कितना नेगेटिव असर डालता है. बच्चे जब अपने माँ बाप से दूर होते हैं तो उन्हें स्ट्रेस होने लगता है, वो अपने इमोशस को कंट्रोल करना नहीं जानते इसलिए या तो वो नखरे करते हैं या दूसरे बच्चों को चोट पहुंचाते हैं.

Preschoolers (3 to 5 Years): Developing Independence

3 साल की उम्र के बच्चे अपनी बात कहकर उसके पूरा होने का इंतज़ार करते हैं. इसलिए दो प्रीस्कूल जाने के लिए तैयार होते हैं. लेकिन अब भी आप कई पेरेंट्स कहते हैं कि उनके 3 साल के बच्चे को स्कूल में छूट जाने से डर लगता है. उन्हें आश्चर्य होता है, “मेरा बच्चा ऐसा क्यों सोच रहा है? वो मुझ उनके स्टार हैं जो उन्हें दुनिया के बारे में सब बताते हैं,

पर इतना डिपेंडेंट क्यों है?

शायद हमें इंडिपेंडेंट होने का सही मतलब समझना होगा. कुछ पेरेंट्स ये उम्मीद करते हैं कि उनका छोटा सा बच्चा बिना रोए आसानी से स्कूल चला जाए, उनका 5 साल का बच्चा अकेले सोना सीख जाए या 9 साल की उम्र में वो एक महीने के लिए समर कैंप में चला जाए. लेकिन ऐसा करना इंडिपेंडेंट होना नहीं होता. इसे अलग होना या detachment कहते हैं.

नेचर ने बच्चों को ऐसा बनाया है कि वो अपने पैरेंट्स को ही फॉलों करते हैं. अगर बो मौजूद नहीं हैं तो वो अपने टीचर्स या दोस्तों को फॉलो करते हैं. बच्चे डिपेंडेंट होकर ही जन्म लेते हैं ताकि उनके पेरेंट्स उन्हें गाइड और प्रोटेक्ट कर सकें. अगर एक छोटा बच्चा अपने पेरेंट्स को रूम से बाहर जाता देखकर परेशान नहीं होता तो वो इंडिपेंडेंट नहीं हो रहा है बल्कि वो उन्हें अनदेखा कर रहा है।

है. हो सकता है कि उसकी ज़रूरतों को उसके पैरेट्स ने पूरा नहीं किया इसलिए उसने इसकी उम्मीद छोड़ दी. उसके पेरेंट्स को उसकी परवाह नहीं है इसलिए जब वो अकेला होता है तो अपने दुःख और गुस्से को छुपाना सीख जाता है लेकिन उसके दिल में बहुत कुछ चलता रहता है. जब हम एक बच्चे पर इंडिपेंडेंट होने के लिए प्रेशर डालते हैं तो वो ज़रूरतमंद और मोहताज हो जाता है. अगर आप उसकी ज़रूरतों को पूरा नहीं करेंगे तो वो इमोशनल अटैचमेंट के लिए किसी और को हूँढने लगता है. जो बच्चे अपने पेरेंट्स से होते हैं वही इंडिपेंडेंट होते हैं. उसका अपने पेरेंट्स से डीप कनेक्शन होता है इसलिए वो अपनी उम्र के अनुसार सारे काम ठीक से कर लेता है. वो बिना मारपीट के शांति से दूसरे बच्चों के साथ खेलता है, अपने आप होमवर्क कर लेता है, बिना नखरे दिखाए क्लास और स्पोर्ट्स की एक्टिविटीज में participate करता है.

उसके पेरेंट्स का प्यार उसमें कॉन्फिडेंस भर देता है इसलिए वो ख़ुद को अच्छे से संभालना सीख जाता है. अगर आपके बच्चे को पता है कि आप उसके लिए हमेशा मौजूद हैं तो वो दूसरी चीज़ों पर अच्छे से फोकस कर पाएगा जिससे उसका all राउंड डेवलपमेंट होता है.जिन बच्चों को उनके पेरेंट्स का अटेंशन नहीं मिलता वो अक्सर पिछड़ जाते हैं.अगर वो सिर्फ़ आपका ध्यान अपनी ओर खीचने में लगे रहेंगे तो लाइफ में कुछ अचीव नहीं कर पाएँगे.

Elementary Schoolers (6 to 9 Years): Foundation for the Teen Years

ये एक ऐसा पॉइंट है जब बच्चे अपने दोस्तों के साथ ज़्यादा समय बिताने लगते हैं और उन्हें दूसरी चीज़ों पर फोकस करने का मौका मिल जाता है, ऐसा भी हो सकता है कि आपको अपने 8 साल के बच्चे से पूरे हफ्ते के दौरान ज्यादा बात करने का भी मौका ना मिले क्योंकि वो कई एक्टिविटीज जैसे क्लासेस, दोस्तों के साथ घूमना, उनके घर पर ठहर जाना इन सब में बिजी हो जाता है.अब प्रोब्लम यहाँ से शुरू होती है. आपका और आपके बच्चे का कनेक्शन इतना मज़बूत होना चाहिए कि मीडिया और उसके उम्र के बच्चे उसे ज्यादा इन्फ्लुएंस ना कर सके.इस उम् में उसका सामना बाहर की रियल दुनिया से होने लगता है. इसलिए बहुत देर होने से पहले, आपका और आपके बच्चे का रिलेशनशिप बहुत गहरा और होने से प्रह़ स्टॉग होना चाहिए.बिना डीप ऐसा भी हो सकता है कि बच्चा अपने माँ बाप की बात सुनना बंद कर दे यावो बच्चा अपने पेरेंट्स कनेक्शन करें? बजाय दूसरे से टेंशन और अटैचमेंट की तलाश करने लगे. क्या आप चाहते हैं कि जपकव्या मा कला कान के के सरता आती जमिली के लिए कुछ यहाँ तीन इफेक्टिव तरीके बताए गए हैं जिनकी मदद से आप अपने बिजी स्टूडेंट बच्चे से कनेक्ट कर सकते रूल्स बनाएं जैसे सन्डे को साथ में खाना खाना या सैटरडे को घर के सामान की शौपिंग करने जाना, समर वेकेशन में घूमने जाए या हैलोवीन पार्टी के लिए अपने बच्चे के साथ मिलकर उसका costume डिज़ाइन करें. ये कोई भी एक्टिविटी हो सकती है जिसे आपकी पूरी फॅमिली एन्जॉय करे. अगर ये रेगुलर बेसिस पर होता रहेगा तो आपका बच्चा फॅमिली के साथ वो क्वालिटी टाइम बिताने का वेट करेगा. दूसरी technique है, अक्सर अब हमें खुद के साथ समय बिताने का या कुछ करने का मन करता है तब हम बच्चों को बाहर जाने की परमिशन दे देते हैं, तो आपको इसे बंद करना होगा. इसके बजाय अपने बच्चे के साथ कुछ समय बिताएं जिसमें आप दोनों रिलैक्स कर सकते हों और आपको कोई काम करने की ज़रुरत ना हो. आप घर पर रह कर बस एक दूसरे से बात भी कर सकते हैं. आप जितना ज्यादा उससे बातें करेंगे आपका रिश्ता उनका गहरा होता जाएगा. ये कम्युनिकेशन आपके रिलेशनशिप के लिए एक र एक फाउंडेशन का काम करेगा. तीसरी technique है, कभी कभी आपका बच्चा आपका पूरा अटेंशन डिमांड करेगा तो इसे आपको allow करना चाहिए. आपका बच्चा अब थोड़ा इंडिपेंडेंट हो गया है लेकिन कभी कभी उसे इमोशनल सपोर्ट की ज़रुरत होगी.उस वक़्त उसे ये कहकर शर्मिंदा ना करें कि तुम अब बच्चे नहीं नो.अपने बच्चे को वो प्यार और अटेंशन दें जो उसे चाहिए.

PART 3: COACHING, NOT CONTROLLING

हम अपने बच्चों को कई चीजें सिखाते हैं जैसेकि ब्रश कैसे करना है, काउंटिंग कैसे करनी है. हम उन्हें सिखाते हैं कि क्या सही है और क्या गलत. लेकिन अक्सर हम उन्हें सबसे ज़रूरी बात सिखाना भूल जाते हैं. वो ये है कि अपनी फीलिंग्स को कैसे मैनेज करना चाहिए और दूसरों की फीलिंग्स को कैसे समझना चाहिए. हम यहाँ EQ या Emotional Intelligence Quotient की बात कर रहे हैं. लेकिन ये इतना ज़रूरी क्यों है? EQ बहुत इम्पोर्टेन्ट हैं क्योंकि म इमोशस बहुत इम्पोर्टेन्ट होते अगर आप ज्यादा सोचते हैं या ज्यादा चिंता करते हैं तो आप ऑफिस में एक बड़ा प्रोजेक्ट हैंडल नहीं कर पाएँगे.अगर आप ये नहीं समझ सकते कि आपका पार्टनर कैसा फील कर रहा है तो आप मैरिड लाइफ में होने वालों झगड़ों को सुलझा नहीं पाएँगे. आपके बच्चे का EQ उसके लाइफ की क्वालिटी डिसाइड करता है. अगर वो स्ट्रेस और चिंता को मैनेज करना नहीं जानता तो वो स्कूल में अच्छा परफोर्म नहीं कर पाएगा.जिस बच्चे की इमोशनल हेल्थ अच्छी होती है उसका व्यवहार अच्छा होता है, वो दूसरों के साथ सहयोग करने वाला और disciplined बन जाता है. तो आपका बच्चा EQ कहाँ से सीखता है? वो इसे स्कूल में, दोस्तों से या टीवी से नहीं सीखता, वो इसे आपसे सीखता है. पेरेंट्स ही बच्चे के इमोशनल कोच होते हैं. आप बचपन से ही इमोशनल कोचिंग शुरू कर सकते हैं. आपको अपने बच्चे को उसके इमोशंस को समझने में मदद करनी होगी और उन्हें सिखाना होगा कि उसे एक्सप्रेस करने का सही तरीका क्या है, Babies: A Bedrock of Trust

एक बच्चे के EQ की फाउंडेशन होती है ट्रस्ट यानी विश्वास, उसे ये भरोसा होना चाहिए कि वो एक सेफ़ एनवायरनमेंट में है. साइकोलोजिस्ट हैरी स्टैक सलिवन ने आज से 100 साल पहले पता लगाया था कि बच्चे अविश्वास की भावना और चिंता दोनों अपने पेरेंट्स से सीखते हैं. जब वो टीवी पर या अपने पेरेंट्स की गुस्से भरी आवाज़ सुनते हैं तो उनका स्ट्रेस हॉर्मोन बढ़ने लगता है.

इस घबराहट से बचने के लिए, आपके बच्चे को आपके शांत आवाज़, जेंटल टच और आँखों में प्यार और नरमी की ज़रुरत होती है.जब आप उसे प्यार से गले लगाते हैं, वो उसे सेफ़ महसूस कराता है. इससे उसे मैसेज मिलता है कि उसे घबराने की ज़रुरत नहीं है और वो शांत और रिलेक्स हो सकता है. जब आपके बच्चे को भूख लगती है या उसे डर लगता है तो उसके होर्मोस डिस्टर्ब हो जाते हैं ख़ासकर cortisol और adrenaline, जिस वजह से रोने लग जाता है और नखरे करने लगता अगर आप एक पीसफुल पैरेंट होंगे तो आप जाकर उसे बाहों में भर लेंगे और सच पूछिए तो उसे इसी की ज़रुरत है. हर बार को समझ कर respond करते हैं तो आप उसके इमोशनल इंटेलिजेंस को बनाने में मदद करते हैं. इससे आपके बच्चे को विश्वास हो जाता है कि कोई जब आप बच्चे के इशारे उसकी मदद करने ज़रूर आएगा.यही विश्वास उसे दूसरों के साथ एक अच्छा रिश्ता बनाने में मदद करता है. क्या आप ये सोच रहे हैं कि जब आपके बच्चे को आपकी ज़रूरत थी तो आप उसके लिए मौजूद थे या नहीं? क्या आप उसकी फीलिंग्स को ठीक से समझ पाए? तो खुद पर डाउट करने की कोई जरूरत नहीं है. परफेक्ट पैरेंट जैसी कोई चीज़ नहीं होती. आपको बस अपना काम अच्छे से करना है. समय रहते आपको अपने बच्चे के साथ अपने रिलेशनशिप को रिपेयर कर लेना चाहिए नहीं तो वो आपसे दूर होता चला जाएगा.

Toddlers: Unconditional Love

B साल के बच्चे बड़े हक़ से अपनी बात कहते हैं. वो ये जताना चाहते हैं कि वो यूनिक हैं और अपने तरीके से काम करते हैं. वो हमेशा यहाँ से वहाँ 1-2 घूम घूम कर नई चीजें देखते रहते हैं इसलिए उनका खयाल रखना इतना मुश्किल होता है, आइए इसे केटी की कहानी से समझते हैं. बचपन से ही केटी के पेरेंट्स ने उसके साथ एक डीप कनेक्शन बना लिया था, वो केटी के लिए हर वक्त मोजूद थे, इसलिए केटी ने भरोसा करना सीख लिया था. वो जानती थी कि उसके मम्मी पापा उससे प्यार करते हैं. लेकिन जब वो थोड़ी और बड़ी हुई तो वो उसे टोकने लगने, डाटने लगे और तरह तरह की बातें काहने लगे जैसे “केटी ये मत छओ, जब मैं तुम्हारे कपड़े बदलती हूँ तो सीधी खड़ी रहो, तुम बुरी लड़की हो” वगेरह वर्गेरह, करने वाले मम्मी पापा अचानक कैसे हो गए केटी के स्मी ो हे इतने बुरे एक दिन, केटीको शरारात सूझी और उसने डोनट को सीडी में फिट कर दिया,लेकिनइसके बाद वो अपने पापा का रिएक्शन देख कर सहम गई. वो के हाथ पर ज़ोर से मारा, केटी ज़ोर ज़ोर से रोने लगी और फर्श पर लेट गई. वो सोच रही थी कि उसे इतना प्यार र उन्होंने केटी के और अचानक वहां आए मैंने अब केटी और ज़ोर से रोने लगी, उसे लगा कि उसके पेरेंट्स ने उसे हुए सुना, “उस पर ध्यान मत दो. हम उसके नखरे बर्दश्त नहीं कर छोड़ दिया था. बच्चे नखरे करते हैं क्योंकि वो अपने इमोशंस को कंट्रोल करना नहीं जानते. एक पैरेंट होने के नाते आपको अपने बच्चे को शांत करना होगा और उसके इमोशंस को हैंडल करना होगा. ऐसा आप उससे प्यार और शांति से बात करके कर सकते हैं.

अपने बच्चे को अनदेखा करना, उसे डराना, धमकी देना या पनिशमेंट देना कभी भी सही तरीका नहीं हो सकता. ऐसा करना उसके ब्रेन को पैनिक और घबराहट के सिग्नल भेजने लगता है. अगर ऐसा ही चलता रहा तो वो जिद्दी और बदतमीज़ हो जाएँगे,

ये आपको समझना होगा कि अभी उनमें समझ नहीं है. अगर आप उसे कहेंगे कि वो बुरी लड़की है तो वो सच में वैसा ही व्यवहार करने लगेगी. जब आपका बच्चा नखरे करे तो आपको शांत होकर उसे कंट्रोल करना चाहिए. उसे गले लगाएं, रोने दें और उसकी फीलिंग्स को समझें, हो सकता है कि उसे जलन हो रही हो क्योंकि आपका ध्यान फ़ोन पर है उस पर नहीं, हो सकता है कि पापा के बाहर जाने से वो उदास हो. उसे अपने इमोशन को एक्सप्रेस करने दें. ऐसा करने से आप उसे अपने इमोशंस को मैनेज करना सिखाते हैं.

Pre-schoolers: Empathy

Empathy का मतलब होता है सहानुभूति या हमदर्दी, ये वो इमोशन है जो हमें दूसरों की भावनाओं को फील करने की और उन्हें समझने की एबिलिटी देता है. जैसे, जब फॅमिली का कोई मेंबर दुखी होता है तो उसे उसका pet डॉग महसूस कर सकता है. वो उसके पास बैठ जाता है और उसे चाटकर आराम पहुंचाने की कोशिश करता है. जब एक बच्चा किसी दूसरे बच्चे को रोता हुआ देखता है तो वो भी रोने लगता है. नयूरो लोगिस्ट्स कहते हैं कि हमारे अंदर “mirror neurons” होते हैं और जब हमारे सामने कोई स्ट्रोंग इमोशन होता है तो उनमें हलचल होने लगती है। लगता ह.

प्रीस्कूल जाने वाले बच्चे अक्सर अपने दोस्त को धक्का मार कर गिरा देते हैं या उन्हें चोट पहुंचाते हैं, तो ये दिखाता है कि उनके हमदर्दी का इमोशन हो गया है. डमज ही। इस तरह एक बच्चा दादागिरी करना सीख जाता है. आइए ट्रॉय की कहानी से समझते हैं, ट्रॉय जब बहुत छोटा था तो रोने पर अक्सर उसे यू हीं छोड़ दिया जाता था. उसे प्यार देने कोई नहीं आता था. इस वजह से वो चिडचिडा हो गया और नखरे करने लगा. उसके पेरेंट्स इस इमोशन को समझ ही नहीं पाए. उनके अनुसार नखरों को बर्दाश्त नहीं किया जाना चाहिए,अगर वो किसी शोपिंग मॉल में होते और ट्रॉय नखरे करता तो वो उसे वहाँ छोड़कर जाने की इस कारण ट्रॉय बेचैन रहने लगा. अब वो बहुत demanding हो गया था, जब वो थोड़ाऔरबड़ा हुआ तो उसके मम्मी पापा से उसके स्टूरगल बढ़ने धमकी देते.

लगे. उसने अपनी फीलिंग्स को दबाना सीख लिया था क्योंकि वो समझ गया था कि उसके मम्मी पापा या तो उसे छोड़ देंगे या उसे सज़ा देंगे. इस कारण ट्रॉय अपने इमोशंस को मैनेज करना सीख ही नहीं पाया.उसके मन में डर और गुस्से ने घर कर लिया था. उसके नखरे बढ़ने लगे छोटी-छोटी बात पर वो छोड़ जाता. जब वो किसी बच्चे को रोता हुआ देखता तो चिल्लकरकहता, “चुप रहो”, अगर कोई बच्चा उसके खिलौनों को छूलेता तो वो उसे पंच करने के लिए तैयार हो जाता.

तो क्या इसमें ट्रॉय की गलती है? नहीं, बिलकुल नहीं ट्रॉय के पेरेंट्स के व्यवहार के कारण उसके अंदर इमोशनल इंटेलिजेंस डेवलप ही नहीं हुआ. वोगखुद को एक असहाय बच्चे की तरह नहीं दिखाना चाहता था और इसे छुपाने के लिए वो दादागिरी करने लगा,अगर ट्रॉय के घर का माहौल नहीं बदला तो हो सकता है कि वो 12 सालकी उम्र तक आते आते घर से भाग जाए या 15 साल की उम्र तक ड्रग्स का सहारा लेकर अपना अकेलापन और दुःख कम करने लगे.

कन्क्लू ज़न (Conclusion)

तो इस बुक ने आपको सिखाया कि अपने बच्चे को disciplined बनाने के लिए चिल्लाना, मारना या उसे छोड़ देना सही तरीका हो ही नहीं सकता. अगर आपने अपने बच्चे से डीप कनेक्शन बनाया है तो उसका इमोशनल इंटेलिजेंस डेवलप होगा और वो खुद-ब-खुद एक समझदार और शांत बच्चा बन जाएगा. आपने पीसफुल पेरेंट्स बनने के तीन स्टेप्स के बारे में भी सीखा,पहले आपको खुद को कंट्रोल करना होगा, फ़िर अपने बच्चे के साथ एक डीप कनेक्शन बनाना होगा और अंत में उसे उसके इमोशंस को समझने में उसकी मदद करनी होगी. इसमें पेशेंस और एफर्ट दोनों की जरूरत होतीहै लेकिन ये आपके बच्चे को आपके करीब ले आएगा, इमेजिन कीजिये कि ऐसा करने से आपका रिश्ता अपने बच्चे से कितना गहरा और मजबूत होगा. वो इमोशनली healthy होगा और लाइफ के किसी भी चैलेंज का बखूबी सामना कर पाएगा और कितना कुछ अचीव करेगा.

याद रखें कि आप अपने बच्चे के स्टार हैं. वो आपके इर्द गिर्द ही चक्कर लगाएगा और अगर आपने उसे छोड़ दिया तो वो हमेशा के लिए खोया हुआ और एक complicated इंसान बन कर रह जाएगा.अगर आपका बचपन बुरा था तो आप उसे बदलकर अपने बच्चे को एक खुशहाल बचपन दे सकते हैं. हम अक्सर बच्चों को दोष देने की गलती करते हैं लेकिन कभी समझने की कोशिश नहीं करते कि उसके व्यवहार के पीछे क्या साइकोलॉजी है. आपका बच्चा जैसा भी है, आपने उसे पैसा बनाया है. जैसे खाना पेट को भरता है, ठीक वैसे ही अलग अलग इमोशंस हमारे मन को भरते है और जब वो हमें नहीं मिलता तब हमारा मन बिलकुल खाली रह जाता है और हम बेचैन होने लगते हैं. इस स्टेट को इमोशनली starved स्टेट कहा जाता है जहां बच्चा अपनेपन और प्यार के लिए तरसता रहता है, दो करता ऐसे बच्चे सक सफल नहीं सही डि सीजन नहीं ले पाते, वो हमेशा दूसरों को criticise करते रहते हैं और कन्फ्यूज्ड और खोए हुए रहते हैं.जब इन बच्चों को घर में प्यार नहीं मिलता तब वो बाहर इसे तलाशने लगते हैं और अवसर या तो गलत रास्ते पर चले जाते हैं या गलत संगत में पड़ जाते हैं. तो इसके लिए कौन ज़िम्मेदार है? सिर्फ उसके पेरेंट्स.हम सब उम्र के अलग अलग पड़ाव से गुज़रते हैं, उनमें से कुछ उम्र बहुत नाजुक होते हैं इसलिए बच्चों के लाइफ में interfere मत करिए बल्कि उनके मन में झांकिए कि वहाँ क्या चल रहा है. आपको अपने बच्चे को ग्रो करने देने के लिए उन्हें खुला तो छोड़ना ही होगा लेकिन अगर आपका उनके साथ गहरा कनेक्शन होगा तब कोई भीगलत चीज़ उन्हें बहका नहीं पाएगी.

अगर आप थोड़ी सी कोशिश कर ह्यूमन साइकोलॉजी को समझेंगे और चिल्लाना बंद कर अपने बच्चे से कनेक्ट करना शुरू करेंगे तो आप उसेइमोशनली healthy बनाकर एक अच्छी जिंदगी दे सकते हैं और उसके साथ एक ऐसा रिश्ता बना सकते हैं जिसमें सिर्फ प्यार और विश्वास होगा.

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