About the Book
क्या आप जानना चाहते है कि हमे आज़ादी कैसे मिली? बिर्टिश राज में हमारे देश के लोगो को क्या-क्या स्ट्रगल करने पड़े? क्या आप उन लड़ाईयों और विक्ट्रीज़ के बारे में जानना चाहते है जिसने हमारे देश के ना सिर्फ पोलिटिक्स बल्कि कल्चर को भी एक नया रूप दिया ? ये बुक हमारे फॉर्मर प्राइम मिनिस्टर जवाहर लाल नेहरु का मास्टरपीस मानी जाती है. ये बुक उन्होंने जेल में रहने के दौरान लिखी थी. इस बुक में उन्होंने कई ऐसे वैल्यूएबल इनसाइट्स दिए है जिन्हें पढकर आपको अपने देश पर और एक इन्डियन होने पर काफी प्राउड फील होगा.
ये समरी किस-किसको पढनी चाहिए? Who will learn from this summary?
हर उस इंसान को जो हमारे देश की ग्रेट हिस्ट्री, यहाँ के रिच हेरीटेज और कल्चर जानने की इच्छा रखता है.
ऑथर के बारे में About the Author
हम सब जानते है कि पंडित जवाहर लाल नेहरु एक ग्रेट स्टेट्समेन थे. लेकिन शायद बहुत कम लोगो को ये बात पता है कि वो एक अच्छे राइटर और जाने-माने हिस्टोरियन भी थे. नेहरु जी ने पांच किताबे लिखी है. वो हमारे देश के एक ग्रेट लीडर ही नहीं बल्कि एक अच्छे पिता और पति भी थे. सही मायनों में वो एक एक्स्ट्राओर्डीनेरी इंडियन लीडर थे जो हम सबके लिए एक सोर्स ऑफ़ इंस्पिरेशन है और रहेंगे.
इंट्रोडक्शन (Introduction)
डिस्कवरी ऑफ़ इण्डिया बुक हमारे देश के फॉर्मर प्राइम मिनिस्टर और फ्रीडम फाइटर पंडित जवाहर लाल नेहरु ने लिखी है, ये बुक उन्होंने 1942 और 1945 के बीच लिखी थी जब उन्हें अहमदनगर किले में नज़रबंद रखा गया था. नेहरु ने अपनी इस बुक में हिस्टोरिकल फैक्ट्स और एविडेंस के साथ इंडियन पोलिटिक्स के बारे में लिखा है.
इस बुक में काफी डिटेल्स से बताया गया है कि देश की आज़ादी के लिए हमे क्या-क्या स्ट्रगल करने पड़े और साथ ही कांग्रेस ने देश के लिए कौन-कौन से काम किये. इंडिया के रिच हेरिटेज़ और कल्चर के बारे में भी इस बुक में काफी कुछ लिखा गया है.
नेहरू ने इस बुक इण्डिया के उन ओल्ड रूलर्स का भी जिक्र किया है जिन्होंने हमारे देश में राज किया था. और उन्होंने इसमें ब्रिटिश राज और दो वर्ल्ड वार्स के दौरान इंडिया के फॉरेन अफेयर्स के बारे में भी काफी इन्फोर्मेशन दी है.
एक्चुअल में हिस्टोरिकल व्यू पॉइंट से ये बुक काफी इम्पोटेंट मानी जाती है क्योंकि इसमें हिस्ट्री के काफी इम्पोर्टेट फैक्ट्स दिए गए है. ये बुक हमे उन महान लोगो की लाइफ के बारे में जानने और समझने का मौका देती है जिन्होंने कंट्री की हिस्ट्री और कल्चर को काफी हद तक इन्फ्लुएंस किया था. धर्म, पोलिटिक्स, हिस्ट्री, इकोनोमिक्स और कल्चर में नेहरु जी के व्यूज गौर करने लायक है.
अहमदनगर फोर्ट (Ahmadnagar Fort)
मैं, जवाहर लाल नेहरू बाकि कैदियों के साथ 20 महीने पहले यहाँ अहमदनगर फोर्ट में लाया गया था. तीन हफ्ते तक हम बाहर की दुनिया से दुनिया से एकदम अनजान थे. हम तक कोई न्यूज़ नहीं पहुँचने दी जाती थी.
दरअसल हम लोग अहमद नगर फोर्ट में बंद किये गये है, ये बात अंग्रेज सरकार सीक्रेट रखना चाहती थी. सिर्फ ओफिशियल्स को ये बात मालूम थी पर बाद में पब्लिक तक ये बात पहुँच गयी, और कुछ टाइम बाद न्यूज़ पेपर को भी अंदर आने की परमिशन मिली तो हमे भी अपनी फेमिली के लेटर्स मिलने स्टार्ट हो गए, हालांकि हमे इंटरव्यू देने की इजाज़त नहीं दी गयी. न्यूजपेपर्स सेंसर्ड कर दिए थे पर इसके बावजूद हमने अपने तरीके से पता लगा लिया था कि बाहर क्या चल रहा है और साथ ही वॉर की इन्फोर्मेशन भी हमें मिल गयी थी.
हज़ारों इंडियंस को बिना ट्रायल के जेल में डाल दिया गया था जिनकी हालत हमसे भी बुरी थी, जेल का सड़ा खाना खाकर कई लोग बेहद बीमार पड़ गए थे, लोगों को प्रॉपर मेडिकल फेसिलिटीज़ भी नही दी गयी थी. उन्ही दिनों बंगाल, मालाबार और ओड़िसा के बीजापुर में भयानक अकाल पड़ा. हज़ारों आदमी, औरतों और बच्चे भूख से तड़प-तड़प कर दम तोड़ रहे थे, खेतों में, सड़को में हर जगह लोगों की लाशें पड़ी हुई थी. वर्ल्ड वॉर के चलते पूरी दुनिया में लोग मर रहे थे. मगर हमारे देश में बेवजह मौते हो रही थी. जब तक लोगों में रिलीफ बांटी गयी तब तक लाखो लोग थे. थे. मौत के मुंह में समा चुके थे
फासिज्म और नाजिज्म का राज बुलंद हो रहा था. 1936 में इटली के पोलिटिशियन सिम्नोर मुसोलिनी की तरफ से मुझे एक इनविटेशन मिला था जिसे मैंने रिजेक्ट कर दिया. बहुत से ब्रिटिश स्टेट्समेन जो पहले मुसोलिनी की बुराई करते थे, बाद में उसकी तारीफों के पुल बाँधने लगे. जो मुसोलिनी एक तानाशाह माना जाता था अब उसी के मेथड्स की तारीफ हो रही थी.
इसके दो साल बाद की बात है. नाज़ी गवर्नमेंट ने मुझे जर्मनी आने का इनविटेशन भेजा. हालाँकि उन्हें मालूम था कि मैं उनकी आडियोलोजी को सपोर्ट नहीं करता हूँ फिर भी वो लोग चाहते थे कि मैं उनसे मीटिंग करूँ लेकिन मैंने जाने से मना कर दिया और इसके बदले चेकोस्लावाकिया चला गया.
इन्डियन नेशनल कांग्रेस फासिज्म, नाज़ीज्म और इम्पीरियल रुल के सख्त खिलाफ़ थी फिर भी ब्रिटिश सरकार ने इसे पूरे दो साल तक इललीगल डिक्लेयर कर दिया था. सात साल पहले एक अमेरिकन पब्लिशर ने मुझे लाइफ की फिलोसोफी लिखने को बोला था. मुझे आईडिया पसंद तो आया लेकिन मै लिख नहीं पाया. क्योंकि तब मुझे पता ही नहीं था कि लाइफ की फिलोसफी आखिर होती क्या है. धर्म ने मुझे कभी अट्रेक्ट नहीं किया था. क्योंकि मुझे लगता है कि रिलिजन हमे अंधविश्वासी बना देता है. लेकिन साथ ही मुझे ये भी लगता है कि दुनिया में लोग किसी ना किसी धर्म में यकीन रखते है. कुल मिलाकर मुझे लगता है कि दुनिया के सारे धर्मों में अच्छे लोगो के साथ-साथ बुरे और नैरो माइंडेड लोग भी शामिल है.
कमला (Kamala)
4 सितम्बर, 1935 में मुझे अचानक एक दिन अल्मोड़ा की जेल से रिहा कर दिया गया क्योंकि मेरी वाइफ की हालत बहुत क्रिटिकल थी. वो उस वक्त जर्मनी के एक सेनीटोरियम में एडमिट थी. मैं अलाहाबाद तक गाड़ी से आया और उसी दिन वहां से योरोप की फ्लाईट ली. मुझे अपनी वाइफ के पास पहुँचने में र दिन लगे. मेरी वाइफ कमला दर्द से तड़प रही थी बावजूद इसके चो मुस्कुराती रहती थी, जब मै उससे मिलने गया तो उसे बहुत अच्छा लगा.
बीमारी की वजह से उसकी बॉडी बेहद कमज़ोर दिख रही थी. डॉक्टर्स ने मुझे भरोसा दिया कि वो जल्दी ठीक हो जायेगी. मैं कमला का मन बहलाने के लिए उसे एक किताब पढकर सुनाने लगा. उसने बिमारी में भी हिम्मत नहीं हारी थी. उसे पूरी उम्मीद थी कि हम एक दिन जरूर अपने मकसद में कामयाब होंगे, और हमारा एक ही मकसद था, देश की आज़ादी,
मेरी वाइफ ने कोई फॉर्मल एजुकेशन नहीं ली थी. वो एक सीधी-सादी कश्मीरी लड़की थी जो हमेशा खुश रहती धी. जिन दिनों हमारी शादी हुई थी, उन दिनों में कमला के साथ ज्यादा टाइम स्पेंड नहीं कर पाता था, मेरा पूरा फोकस देश और आज़ादी की लड़ाई पर धा. और ऐसा नहीं था कि कमला को कोई शिकायत थी बल्कि वो भी बराबर अपना कोंट्रीब्यूशन देना चाहती थी, जब देश के मर्द जेल में बंद थे तो परिवार की औरतों ने सारी जिम्मेदारी उठा रखी थी.
आज़ादी की लड़ाई में हमारे देश की औरतों का रोल भी काफी इम्पोटेंट रहा है. अमीर या गरीब हर क्लास की औरतों ने सड़को पर उतर कर नारे लगाये और प्रोटेस्ट किया. मुझे लगता है कि हमारे देश के हर की औरत देशभक्त कम्यूनिटी और बहादुर है.
मुझे नैनी जेल में रखा गया था जहाँ मुझे ये न्यूज़ मिली. जेल के सारे कैदी मेरी रिहाई से बहुत खुश थे. कभी-कभी मुझे लगता है कि मै अपनी वाइफ के लिए एक परफेक्ट मैच नहीं हूँ. हम नैचर में एक दुसरे से काफी अलग थे. हम एक दुसरे को कॉम्प्लीमेंट नही करते. लेकिन मै हमेशा से उसके लिए डिवोटेड रहा मेरे लिए.
1935 में क्रिसमस से पहले कमला की हालत में कुछ-कुछ इम्प्ूमेंट आ रहा था. तो मैं इस मौके का फायदा उठाते हुए अपनी बेटी इंदिरा से मिलने इंग्लैण्ड चला गया. लेकिन मै वापस जर्मनी पहुंचा तो कमला फिर से बीमार हो गयी. उस सेनिटोरियम में एक आईरिश लड़का था जो कमला को फ्लावर्स भेजता था. वो भी कमला की तरह वहां ट्रीटमेंट के लिए एडमिट था. हालाँकि वो देखने में कमला से हेल्थी लगता था पर अचानक एक दिन वो मे फ्रेंड की डेथ के बारे में सुनकर वाकई वो काफी बसा. मैंने अपनी वाइफ से ये बात छुपा कर रखने की पूरी कोशिश की पर उसे पता कुछ टाइम बाद मुझे दूसरी बार इन्डियन नेशनल कांग्रेस प्रेजिडेंट सेलेक्ट कर लिया गया, पर मैंने फैसला किया कि मै प्रेजिडेंट पोस्ट छोड़ दूंगा ताकि अपनी फैमिली पर भी फोकस कर सके, लेकिन कमला ने मुझे प्रेज़िडेंट की पोस्ट नही छोड़ने दी. वो नहीं चाहती थी कि मैं उसकी वजह से अपना काम छोड़ हूं.
जनवरी, 1936 में कमला को स्विट्ज़रलैंड के दूसरे सेनिटोरियम में शिफ्ट किया गया. मैंने सोचा कि मै कुछ महीनों के लिए मैं इंडिया जाऊँगा. पर कमला चाहती थी कि मै उसे छोड़कर कहीं ना जाऊं लेकिन वो ये भी नहीं चाहती थी कि मै अपनी प्रेजीडेंसी की ड्यूटीज़ मिस करूँ, अपने आखिरी दिनों में उसने मुझे बताया कि उसे कमरे में एक साया दिखता है जो उसका नाम पुकारता है, लेकिन मैंने कभी कोई साया नहीं देखा. और 28 फरवरी के दिन कमला मुझे छोड़कर चली गयी. उस वक्त सिर्फ मेरी बेटी इंदिरा और मेरा एक क्लोज फ्रेंड डॉक्टर एम. अटल मेरे साथ थे.
द इंडस वैली सिविलाईजेशन (The Indus Valley Civilisation)
हमे जो इण्डिया की सबसे पुरानी हिस्ट्री मालूम है वो है इंडस वैली सिविलाईजेशन, देस्टर्न पंजाब में हरप्पा और सिंद में गोहेंजो-दारो की डिस्कवरी हुई थी. इन दोनों साइट्स में खुदाई की गयी थी पर पिछले 13 सालों से खुदाई का काम रुका पड़ा था. इस एक्सकेदेशन प्रोजेक्ट को बंद करने की सबसे बड़ी वजह थी द ग्रेट डिप्रेशन.
मैं दो बार मोहेंजो-दारो की साईट देखने गया था. जब दूसरी बार मै वहां गया तो मैंने नोटिस किया कि बारिश और सूखी हवा ने काफी सारी बिल्डिंग्स को स्टार्टिंग में खोदी गयी थी. नुक्सान पहुंचाया था जो । ये जगह 5000 साल से भी ज्यादा टाइम से जमीन में दबी हुई थी, लेकिन जब इनकी खुदाई हुई तो ये देखभाल की कमी से खराब हो रही थी. आर्कियोलोजिकत डिपार्टमेंट के ऑफिसर ने बताया कि उन्हें बिल्डिंग्स को प्रोटेक्ट करने के लिए प्रॉपर फंडिंग नही मिल रही थी.
इंडस वैली सिविलाईजेशन काफी डेवल्प्ड मानी जाती है और हमारे पूर्वजो ने इतनी प्रोग्रेस करने के लिए काफी कुछ सीखा होगा. कुछ लोगों का कहना है कि इंडस वैली सिवीलाइजेशन अचानक आई एक तबाही के कारण खत्म हो गयी थी. लेकिन इतनी महान सभ्यता के खत्म होने की असली वजह पुराने इंडियन लिटरेचर में हिन्दू टर्म कहीं यूज़ नहीं हुआ है. तो हिन्दूइज्म को एक कल्चर समझ लेना भूल होगी क्योंकि ये एक रिलिजन में डेवलप हुआ क्या थी, निश्चिन्त तौर पर कोई नहीं जानता.
हिन्दू शब्द असल में संस्कृत के शब्द सिन्धु से निकला है. यानी लार्ज बॉडी ऑफ़ वाटर" सिन्धु नदी के लिए मान सकते है जो इस इलाके से होकर गुजरती वेदों में इन्डियन कल्चर के बहुत पुराने रीकोई मिलते है. कई हिन्दू वेदों को देवतओं की वाणी मानते है. यानी वेदों के श्लोक देवताओं ने इंसानों को सुनाये थे. आर्यन्स जब भारत आये तो एक नई प्रोब्लम शुरू हो गयी. दरअसल आर्यन्स खुद को सुपीरियर समझते थे, उन्हें अपनी जाति पर प्राउड था.
उनकी इसी सोच के चलते हमारे देश में कास्ट सिस्टम की शुरूदात हुई. आर्या शब्द का मतलब है" टू टिल" यानी खेती करने वाले. ये लोग फार्मिंग को एक नोबल प्रोफेशन मानते थे. उनके रेसियल सुपीरियरटी के आईडिया ने ही कास्ट सिस्टम की नींव रखी थी. लोगों को काम के आधार पर ग्रुप में डिवाइड किया गया. वैश्य, क्षत्रिय, ब्राह्मण और शूद्र बाहमण पुजारी होते थे, यानी कास्ट सिस्टम के टॉप पर. उसके बाद क्षत्रिय आते थे जो सोल्जेर्स होते थे. उसके बाद वैश्य जो बिजनेसमेन, खेती बाड़ी करने वाले, आर्टिस्ट और मर्चेट्स होते थे, शूद्रस सबसे नीचे रखें गये धे क्योंकि ये लोग लेबर और अनस्किल्ड वर्कर्स होते थे. ब्राह्मणों को ब्रह्मा यानी मोस्ट इंटेलीजेंट का सक्सेसर माना गया इसलिए उन्हें सोसाइटी में पॉवरफुल पोजीशन मिली थी.
द अरव्स एंड द मोंगोल्स (The Arabs and the Mongols)
जब फेमस चाईनीज़ स्कोलर हV-त्साग भारत के नालंदा यूनिवरसिटी में पढ़ने आया था तब अरब में इस्लाम अपने पैर पसार रहा था. नालंदा यूनिवरसिटी बिहार में है. इस्लाम को इण्डिया आने में पूरे 600 साल लगे. अरब्स ने दुनिया के काफी देशो में कब्ज़ा किया था. फिर अरबो को तुर्किशो ने रीप्लेस कर दिया. यही लोग इण्डिया में इस्लाम लेकर आये थे सिंट सिंद ब्रगादाद से अलग होकर एक मुस्लिम स्टेट बना. फिर धीरे-धीरे इण्डिया और अरब देश के बीच कांटेवट बढ़ता चला गया. एस्ट्रोनोमी और मैथमेटिव्स पर लिखी गयी इन्डियन बुक्स बगदाद ले जाई गई और अरबी लेंगुएज में ट्रांसलेट की गयी.
इंडिया और अरब देशो में बीच ट्रेड रिलेशन सिर्फ नार्थ इण्डिया तक ही लिमिट नहीं थे बल्कि साऊथ इण्डिया ने भी एशिया में मंगकर दिया था. धीरे-धीरे बगदाद भी कमजोर पड़ता गया और कई स्टेट्स में डिवाइड हो गया.
एम्परर चंगेज खान और इण्डिया
ने वेस्ट की तरफ मार्च करना शुरू कर दिया, हालाँकि उसने इण्डिया पर अटैक नहीं किया था. चंगेज खान की आर्मी इंडस नदी पर ही रुक गयी थी. चंगेज खान मुस्लिम नहीं था पर लोगों को उसके नाम से वो मुस्लिम लगता है. वो शामनिज्म में यकीन रखता था, एक रिलिजन जो स्काई यानी आसमान की पूजा करता है.
इस टाइम तक अरब फिजिशियंस योरोप और एशिया में फेमस हो चुके थे. इब्न सीना यानी अविसना को प्रिंस ऑफ़ फिजिशियंस बोला जाता है. इंडिया का फिलोसोफी में कोई सिग्नीफिकेंट इन्फ्लुएस नहीं था. इसलिए अरब्स ग्रीक फिलोसोफेर्स जैसे प्लेटो और अरोस्टोल में इंटरेस्ट लेने लगे थे, ए.सी.1000 में अफगानिस्तान का सुल्तान महमूद पॉवर में आया और उसने इण्डिया पर अटैक करने शुरू कर दिए.
इवेंट | विवरण |
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गजनी का महमूद | भारत को बुरी तरह से लूटा और यहाँ के के बहुत लोगो को मारा स्पेशली हिन्दुओ को. |
महमूद की मृत्यु | 1030 में महमूद की डेथ के बाद उसके सक्सेसर्स 160 सालो तक राज करते रहे. |
अफगान शहब उद दिन मौरी का आक्रमण
उसके बाद एक अफगान शहब उद दिन मौरी पहले लाहौर और फिर दिल्ली पर हमला करके यहाँ अपना राज कायम किया, उसके आने के बाद घजनी एम्पायर का खात्मा हो गया. लेकिन फिर दिल्ली के राजा प्रध्वी राज चौहान ने गौरी को हरा दिया था. गोरी वापस अफगानिस्तान चला गया और अगले साल एक नई और बड़ी आर्मी के साथ फिर से हमला किया. 1792 में गौरी ने दिल्ली पर कब्जा कर लिया.
1526 में जब बाबर ने दिल्ली पर अटैक करके अपने कब्जे में लिया तो मुगल एम्पायर की नींव पड़ी, वो मुगल डायनेस्टी का पहला एम्परर था, और चार साल बाद उसकी डेथ हो गयी थी.
अकबर और जहाँगीर
अकबर बाबर का पोता था. उसने करीब पचास साल राज किया. अकबर ने एक राजपूत राजकुमारी से शादी की जिससे उसे एक बेटा था, जहाँगीर जो आधा मुगल और आधा राजपूत था. जहाँगीर का बेटा शाह जहाँ भी आधा राजपूत था. इसी दौरान कश्मीर में मुस्लिम एम्पर्स ने बड़े पैमाने पर लोगों को कन्वर्ट करना शुरू कर दिया जिसके कारण कश्मीर में मुस्लिम कम्यूनिटी मेजोरिटी में आ गयी थी.
ब्रिटिश रूल का कंसोलिडेशन
मुगलों ने ब्रिटेन की ईस्ट इण्डिया कंपनी को सूरत में फैक्टरी चलाने की परमिशन दी थी. ईस्ट इण्डिया कम्पनी ने कुछ सालो बाद जमीन का एक टुकड़ा खरीद कर मद्रास शहर की नींव रखी. और 1690 में कलकत्ता शहर की नींव रखी गयी. 1757 में प्लासी की लड़ाई के बाद कई राज्य निर्टिश कण्ट्रोल में आ गए थे.
साल | घटनाक्रम |
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1757 | प्लासी की लड़ाई के बाद कई राज्य ब्रिटिश नियंत्रण में आ गए थे. |
1690 | कलकत्ता शहर की नींव रखी गयी. |
और फिर कुछ ही सालो में ब्रिटिशर्स ने पूरे बिहार, बंगाल, ओड़िसा, और ईस्ट कोस्ट को अपने कब्जे में ले लिया. और चालीस साल बाद ब्रिटिश सरकार ने मद्रास में पूरे 300 साल राज किया था. और बंगाल और बिहार में 187 साल और साऊथ इण्डिया में 125 साल राज किया. ब्रिटिश दिल्ली उनके हाथ में थी.
ईस्ट इण्डिया कंपनी का व्यापार
ईस्ट इण्डिया कंपनी का प्राइमरी बिजनेस था इन्डिया में बने हुए सामान, टेक्सटाईल्स और मसालों को योरोप में बेचना, इन प्रोडक्ट्स की वेस्ट में काफी डिमांड थी. अग्रेजी सरकार ने देश की बनी हुई लोकल चीजों को देश में बेचने से रोकने के लिए बहुत से कानून निकाले थे.
जबकि ब्रिटिश सामान की देश में हर जगह फ्री एंटी थी, इसका रिजल्ट ये निकला कि इन्डियन टेक्सटाईल इंडस्ट्री पूरी तरह से बर्बाद हो गयी, और इकोनोमी तेज़ी से डाउन होने लगी. ब्रिटिश पोलीसीज़ की वजह से हमारा देश गरीब होता जा रहा था. एग्रीकल्चर के फील्ड में भी काफी नुकसान हो रहा था. किसान दिनों-दिन क़र्ज़ में डूबता जा रहा था और मनी लैंडर्स उनकी जमीन हथियाते जा रहे थे.
ब्रिटिश कल्चर का प्रभाव
हालाँकि ब्रिटिश इन्डियन लोगो को कल्चर पर फोकस करने के लिए एंकरेज करते थे. वो इंडियंस को ये समझाने की कोशिश करते थे कि एग्रीकल्चर ज्यादा इम्पोर्टेट है और इंडस्ट्रियल रेवोल्यूशन सेकंड नंबर पर है. ब्रिटिश रुलर्स इंडियंस से काफी डिफरेंट थे. उनका ट्रेडिशन, कल्चर, कस्टम्स, इनकम और रहन-सहन का तरीका एकदम अलग था.
बिर्टिश लोग इंडियंस के साथ घुलते-मिलते नहीं थे इसलिए अक्सर दोनों कल्चर्स टकराते रहते थे. ब्रिटिशर्स ने प्राइवेट प्रिंटिंग प्रेसेस को कभी एकरेज नहीं किया. ऑफिशियल प्रेस एस्टेबिलिश किये गए. 1780 में कलकत्ता में फर्स्ट टाइम एक टंग्लिशमेन ने न्यूज़पेपर पब्लिश किया था, शुरू-शुरू में न्यूज़पेपर्स ब्रिटिश राज को क्रिटिसाइज़ करते थे इसलिए बाद में इनमे सेंसरशिप लगा दी गयी.
ब्रिटिश राज के खिलाफ संघर्ष
ब्रिटिश गवर्नमेंट इंडियंस को इंग्लिश नहीं सिखाना चाहती थी. प्रिंटिंग फ्रेस की बदौलत लोकल लिटरेचर काफी पब्लिश हुआ. नेशनलिज्म वर्सेस इम्पीरियलिज्म इन्डियन नेशनल कांग्रेस दो ग्रुप में डिवाइड हो गयी थी, एक गुप था एक्सट्रीमिस्ट का और दूसरा मोडरेट्स का, ये फर्स्ट वर्ल्ड वार के दिनों की बात है.
वार डिमांड वजह से इण्डिया का इंडस्ट्री सेक्टर प्रोग्रेस कर रहा था, बगाल की जूट मिल्स और बॉम्बे और अहमदाबाद की कॉटन मिल्स आर्मी के लिए प्रोडक्ट्स बना रही थी, वर्ल्ड वार खत्म होने के बाद पंजाब में मार्शल लॉ लग गया. पंजाब के किसान भूखे मरने लगे.
गाँधी जी का उदय
इस माहौल में गांधी उम्मीद की किरन बनकर उभरे, वो आम जनता की बोली बोलते थे और अपने देशवासियों की हर प्रोब्लम्स समझते थे. जब गाँधी कांग्रेस में आये तो उन्होंने कांग्रेस का कोस्टीट्यूशन पूरा ही बदल कर रख दिया था. उन्होंने कांग्रेस पार्टी को सही मायनों में एक डेमोक्रेटिक पार्टी बना दिया था.
वैसे तो कांग्रेस शुरू से ही डेमोक्रेटिक रही थी पर ये डेमोक्रेसी सिर्फ अपर क्लास तक ही थी, पर गांधी डेमोक्रेसी का आईडिया आम जनता तक लेकर आये, गाँधी हर तरह अन्याय के खिलाफ़ थे लेकिन उन्होंने हमेशा से नॉन-वायोलेंस यानी अहिंसा का रास्ता चुना था.
गाँधी जी का सपना
गाँधी एक रिलिजियस हिन्दू थे. वो एक ऐसे इण्डिया का सपना देखते थे जहाँ क्लास सिस्टम ना हो, कोई ऊंच-नीच या भेदभाव ना हो. सबको बराबरी का हक मिले. सब शान्ति और भाईचारे से मिलकर रहे. वो ये भी चाहते थे कि देश में औरतों को बराबर का दर्जा दिया जाए, गांधी जी छुआ-छूत के सख्त खिलाफ थे.
गांधी मानते थे कि भारतीय कल्चर ना तो हिन्दू है ना ही इस्लामिक. बल्कि उनका कहना था कि इण्डिया कल्चर अलग-अलग धर्मों और रीती-रिवाजों से कर बना है. जब कांग्रेस में बड़े-बड़े बदलाव आ रहे थे उन्ही दिनों बर्मा इण्डिया से अलग होकर एक सेपरेट कट्री मिलकर गया.
मुस्लिम लीग का गठन
1905 में मुस्लिम लीग की फाउंडेशन रखी गयी. कुछ स्माल मुस्लिम ऑर्गेनाइजेश्न्स थे जिन्हें पब्लिक सपोर्ट करती थी पर ये गुप्स ज्यादातर कांग्रेस के श्रू अपना काम करते थे. इंडिया में योरोप की तरह माईनोरिटीज़ रेस पर बेस्ड नहीं है बल्कि हमारे देश में रिलिजन बेस्ड माईनोरिटीज़ है. इसलिए मुस्लिम माईनोरिटीज़ को एक सेपरेट इलेक्ट्रोरेट्स दिया गया.
घटना | विवरण |
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मुस्लिम लीग की स्थापना | 1905 में मुस्लिम लीग की फाउंडेशन रखी गयी. |
माइनोरिटीज़ का आधार | रिलिजन बेस्ड माईनोरिटीज़ की अवधारणा. |
मुस्लिम कम्पूनिटी दो सेक्शन में डिवाइडेड है शिया और सुन्नी. दोनों सेक्शन में इस बात को लेकर डिस्प्यूट है कि प्रोफैट मुहम्मद का राईटफुल सक्सेसर कौन है जोकि इस्लामिक कम्यूनिटी का खलीफ़ा होगा. इण्डिया और बाकि देशो में सुन्नी ग्रुप मेजोरिटी में है. इण्डिया में शिया मुस्लिम्स का अपना एक सेपरेट ऑर्गेनाइजेशन है.
जिन्ना की टू नेशन थ्योरी
मगर मुस्लिम लीग के लीडर मुहमद अली जिन्ना मानते थे कि इण्डिया में दो देश है एक हिन्दू और एक मुस्लिम, और जिन्ना की इसी टू नेशन थ्योरी ने आगे चलकर पाकिस्तान को जन्म दिया, वर्ल्ड वार II (World War II) इन्डियन नेशनल कांग्रेस देश की लोकल प्रोब्लम्स में उलझी हुई थी.
कांग्रेस और फॉरेन अफेयर्स
इनके पास इंटरनेशनल मुद्दों के लिए वक्त नहीं था. 1920 के शुरुवाती दौर से कांग्रेस ने फॉरेन अफेयर्स में थोड़ी दिलचस्पी लेनी शुरू की. मुस्लिम ऑर्गेनाइजेशन्स पेलेस्टीनियन कोफ्लिक्ट में इंटरेस्टेड थे और उन्होंने वहां रह रहे मुस्लिम्स के लिए रेजोल्यूशन्स भी पास कर दिए.
साल | घटनाक्रम |
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1920 | कांग्रेस ने फॉरेन अफेयर्स में थोड़ी दिलचस्पी लेनी शुरू की. |
मुसोलिनी और फासिज्म
अभी इटली मुसोलिनी दुनिया की शान्ति के लिए कोई बड़ा खतरा बनकर नहीं उभरा था. मुसोलिनी के फासिस्ट रुल से ब्रिटिश गवर्नमेंट को कोई प्रोब्लम नहीं थी बल्कि दोनों के बीच अच्छे टर्म थे. हालांकि सोवियत यूनियन इटेलियंस के साथ नही थी. इस सिचुएशन की वजह से सोवियत यूनियन के खिलाफ़ फ्रांस और इंग्लैण्ड के बीच कोफ्लिक्ट चल रहा था.
इंडिया ब्रिटिश सरकार के अगेंस्ट सोवियत यूनियन का साथ दे रहा था. 1927 में कांग्रेस ने फॉरेन पालिसी का एक ड्राफ्ट बनाना स्टार्ट किया. अब तक हिटलर उसकी नाज़ी आर्मी पॉवर में आ चुकी थी. कांग्रेस नाज़ीज्म के खिलाफ़ थी. जिस तरह से नाज़ी आर्मी ज्यूज़ को मार रही थी, उन्हें टॉर्चर कर रही थी, किसी भी हालत में एक्स्पेट नहीं किया जा सकता था.
इंडिया की ज्यूज़ के प्रति हमदर्दी
इण्डिया को ज्यूज़ के साथ पूरी हमदर्दी थी. हम इंडियस भी इनके जैसे ही रेसिज्म के शिकार थे और गोरों के अत्याचार झेल रहे थे. पर इस सबके बावजूद यूनाइटेड स्टेट्स ने किसी की भी साइड नहीं ली बावजूद इसके कि उनकी हमदर्दी इंग्लैण्ड, चाइना और फ्रांस के साथ थी और नाज़िज्म से उन्हें भी उतनी ही नफरत थी.
यहाँ इण्डिया में गांधी जी नेशनलिज्म का नारा लगा रहे थे और साथ ही वर्ल्ड पीस की डिमांड भी कर रहे थे. गाँधी दुनिया के सामने नॉन वायोलेंस का एक्जाम्पल सेट करना चाहते थे इसलिए उन्होंने इन्डिया के लोगों को अहिंसा के रास्ते पर चलने के लिए इंस्पायर किया.
मुस्लिम लीग और इंटरनेशनल इश्यूज
और इस सबके बीच मुस्लिम लीग किसी भी इंटरनेशनल इश्यूज में इंटरेस्ट लेने के मूड में नहीं दिख रहा था. 1938 में कांग्रेस ने चाइना में रेशियल विक्टिम्स की हेल्प करने के लिए डॉक्टर्स की टीम और मेडिकल इक्विपमेंट्स भेजे. दुनिया भर में हमारी तारीफ हुई क्योंकि हम खुद एक नेशन के तौर पर रेसियल अब्यूज और अन्याय के शिकार थे.
साल | घटनाक्रम |
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1938 | कांग्रेस ने चाइना में रेशियल विक्टिम्स की हेल्प की. |
सिविल डिसओबीडीएस मूवमेंट
दुसरे देशो के बीच वार के दौरान इन्डियन टूप को भेजने प्रोटेस्ट कर रहे थे. पब्लिक चाहती थी कि हमारे टूप अपनी मर्जी से इस वॉर में पार्टिसिपेंट करे नाकि हमे फोर्स किया जाए. इसी बीच सिविल डिसओबीडीएस मूवमेंट शुरू हो गया था.
जो भी ब्रिटिश सरकार के खिलाफ बोलता था पोलिस तुरंत उसे अरेस्ट करके जेल में डाल देती थी. पब्लिक स्पीकिंग की वजह से पोलिस कई लोगो को बिना ट्रायल के डिटेन कर रही थी. मुझे भी पब्लिक स्पीकिंग के लिए चार साल की सजा हुई थी. कई जगहों में लोगों ने वायोलेंस प्रोटेस्ट किया था पर गांधी जी इस बात के खिलाफ़ थे.
अहमदनगर फोर्ट और 1942 का संघर्ष
9 अगस्त, 1942 की सुबह-सुबह पूरे हिंदोस्तान में जगह-जगह लोगो को अरेस्ट किया गया, अहमदनगर की जेल में बंद कैदियों को इस बारे में ज्यादा जानकारी नहीं मिल पाई. बाहर जो कुछ भी हो रहा था, हम बस उसका थोड़ा-बहुत अंदाजा लगा सकते थे.
लोग प्रोटेस्ट कर रहे थे और अंग्रेज सरकार जवाब में लोगो पर फायरिंग कर रही थी और आसू गैस के गोले छोड़ रही थी. शहर-शहर, गाँव-गाँव में लोग ब्रिटिश सरकार के अत्याचारों के खिलाफ प्रोटेस्ट कर रहे थे. लोग ब्रिटिश ऑथरिटी के सारे सिम्बल्स तोड़ रहे थे जैसे पोलिस स्टेशन, पोस्ट ऑफिस, रेलवे स्टेशन वगैरह.
ब्रिटिश ऑथोरिटी का विरोध
यहाँ तक कि पब्लिक ने टेलीफ़ोन और टेलीग्राफ वायर्स भी काट डाले थे, कई जगहों पर निहती भीड़ पर पोलिस ने अटैक किया था, सारे ऑफिस और दकाने बंद कर दी गयी थी और कम्प्लीट मायकाट कर दिया गया था. जमशेदपुर के स्कूल वर्कर्स को काम करने से रोक दिया गया था.
शर्त रखी गयी थी कि अगर सारे कांग्रेस लीडर्स छोड़े जायेंगे तभी वर्कर्स काम पर वापस आ सकते है, अहमदाबाद की टेक्सटाइल फेक्टरीज़ का कामकाज भी ठीक इसी तरह रोक दिया गया. ये पीसफील प्रोटेस्ट करीब तीन महीने तक चलता रहा. वर्कर्स कोई स्ट्राइक करने के लिए कोई फाइनेंशियल हेल्प नहीं दी गयी थी.
सरकार के खिलाफ पनिशमेंट
इस दौरान ऑफिशियल रिकार्ड्स में मारे गए लोगों की संख्या कम करके बताई गई थी क्योंकि एक्चुल नंबर इससे कहीं ज्यादा था, सरकार के खिलाफ जाने की पनिशमेंट के तौर पर लोगो पर फाइन लगाया गया. ब्रिटिश ओफिशियल्स ने टोटल नौ लाख रूपये का फाइन कलेक्ट किया था, गवर्मेंट ने बड़े पैमाने पर सेंसरशिप लगा रखी थी.
घटना | विवरण |
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पनिशमेंट | लोगो पर फाइन लगाया गया और नौ लाख रूपये कलेक्ट किया गया. |
फॉरेन कंट्रीज़ की न्यूज़ पर भी काफी स्ट्रीक्ट नज़र रखी जा रही थी. ऐसे माहौल में डिफरेंट प्रोपगंडा चलाये जा रहे थे. कई टाइप की फेक न्यूज़ भी फैलाई जा रही थी. इन सब घटनाओं के बाद देश में एक और मुसीबत आई. देश में भयंकर अकाल पड़ा जिसका सबसे ज्यादा इफेक्ट बंगाल और साउथ इंडिया में हुआ था.
बंगाल का अकाल और महामारी
इस अकाल के बाद मलेरिया और कैमरा की महामारी फ़ैल गयी. गरीब जनता भूखमरी और बिमारी झेल रही थी. वहीं कलकत्ता जैसे शहरों के अमीर लोग ऐशो-आराम की लाइफ जी रहे थे, अमीर और ज्यादा अमीर होते जा रहे थे. पैसे के नशे में चूर ये अमीर लोग लक्जूरियस लाइफ जी रहे थे, इनके मनोरंजन में कोई कमी नहीं आई थी.
ये लोग पहले जैसे ही हॉर्स रेस के मजे ले रहे थे. देश में अनाज बाँटने के लिए ट्रांसपोर्ट की कमी थी मगर रेस हॉर्स घोड़ों को स्पेशल पैकेज से डिलीवर करवाया जा रहा था. इतनी तरक्की बावजूद भी दुनिया में इतना वायलेंस, इतनी नफरत क्यों थी. हमारा देश गुलामी के अँधेरे में अपनी असली पहचान खो चूका था मगर वो दिन भी आएगा जब हम आज़ादी का और अपनी एक नई पहचान बनाने की
भारत की पहचान
तय करेंगे. आज का भारत अपने ओल्ड ट्रेडिशंस और वेस्टर्न सिविलाईजेशन के बीच कहीं फंसा हुआ है। कोशिश कर रहा है.
कनक्ल्यूजन
बुक इंडिया के फ्रीडम स्ट्रगल के बारे में लिखी गयी है और इसमें हमारे देश के सभी अली एम्पायस्स यानी हमारे देश में किस किसने राज किया था, इसकी इन्फोर्मेशन भी मिलती है. आपने इस बुक में इंडिया के रिलीजियस, पोलिटिकल और जियोग्राफिकल पोजीशन के बारे में नेहरू जी के व्यू पॉइंट्स पढ़े जो उन्होंने काफी डीपली डिसक्राइब किये है.
आपने इस बुक में उन सारी एक्टिविटीज़ के बारे में भी पढ़ा जिसने ब्रिटिश राज के दौरान हमारे देश की कंडीशन और हालात को इन्फ्लुएंस किया था. अपनी इस बुक में पंडित नेहरु ने कांग्रेस की हिस्ट्री, उसके सिग्नीफिकेंट लीडर्स जैसे गाँधी जी और जिन्ना के बारे में भी लिखा है. और दल्ल्ड वार के दिनों में इंडिया के फॉरेन अफेयर्स यानी दूसरे देशो के साथ हमारे रिश्तों के बारे में और इंटरनेशनल पोलिटिक्स पर भी काफी इन्फोर्मेशन दी है.
इस बुक के जरिये हमे अपने देश की हिस्ट्री को जानने और समझने का मौका मिलता है और हमे उन फैक्ट्स की जानकारी मिलती है जो हमारे देश की आज़ादी के लिए बेहद जरूरी थे. हमारे देश की आज़ादी के लिए कई महान आदमियों और औरतों ने बड़ी-बड़ी कुर्बानियां दी है. अब ये हमारी जिम्मेदारी है कि हम अपने-अपने इंडीविजुअल लेवल पर और साथ मिलकर इस देश को तरक्की के रास्ते पर ले जाए और इस देश को एक ग्रेट नेशन बनाए.
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