THE 7 HABITS OF HIGHLY EFFECTIVE PEOPLE by Stephen covey.

Readreviewtalk.com

About Book

एक हाइली इफेक्टिव आदमी कौन होता है? एक हाइली इफेक्टिव इंसान वो होता है जिसका केरेक्टर अच्छा हो. जिसके पास स्ट्रोंग वेल्यूज़ हो. क्या आपकी कभी अपने किसी रिश्तेदार या कलीग से खटपट हुई है? किसी से ये उम्मीद रखना कि वे बदले, उससे पहले आपको खुद को बदलना होगा. क्या आपको लगता है कि आपमें खुद को इम्प्रूव करने की क्वालिटी है?

एक हाइली इफेक्टिव इंसान के दुसरे लोगो के साथ भी अच्छे रिलेशन होते है. वो अपने परिवार, रिश्तेदारों, दोस्तों, पड़ोसियों और कलीग्स के साथ मिलजुल कर रहता है. और एक अच्छा रिलेशन सालो साल तक चलता है.

एक हाइली इफेक्टिव इंसान कैसे बना जाए, ये आप इस किताब को पढ़कर सीख सकते है. जो भी आपकी जॉब हो, आप इस किताब से ये बात जान सकते है. जैसे कि अगर आप एक पेरेंट है तो अपने बच्चे के साथ अपना रिलेशनशिप और भी बेहतर बना सकते है. अगर आप एक बॉस है जो इस किताब में आपको ऐसे टिप्स मिलेंगे जिनसे आप और भी अच्छे लीडर बन पायेंगे.

ये किताब किस के लिए है ?

1) जो इफेक्टिव लोगो की सात आदतों को जानना चाहते

है?

2) जो सिर्फ एक कॉमन ज़िन्दगी नहीं जीना चाहते बल्कि अपनी ज़िन्दगी में कुछ बड़ा करना चाहते है.

इस किताब के ऑथर कौन है ?

स्टीवन कवी एक अमेरिकन ऑथर, बिजनेसमैन और एक बहुत अचे स्पीकर थे | टाइम मैगज़ीन ने इन्हे टॉप 25 मोस्ट इन्फ्लुएंटीएल लोगो की लिस्ट में डाला है | स्टीवन कवी उटाह स्टेट यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर भी रहे है | इनकी किताब 7 हैबिट्स ऑफ़ हाइली इफेक्टिव पीपल एक बेस्ट सेलर रही है |

एक हाइली इफेक्टिव आदमी कौन होता है? एक हाइली इफेक्टिव इंसान वो होता है जिसका केरेक्टर अच्छा हो. जिसके पास स्ट्रॉग वेल्यूज़ हो. क्या आपकी कभी अपने किसी रिश्तेदार या कलीग से खटपट हुई है? किसी से ये उम्मीद रखना कि वे बदले, उससे पहले आपको खुद को बदलना होगा. क्या आपको लगता है कि आपमें खुद को इम्प्रूव करने की क्वालिटी है? एक हाइली इफेक्टिव इंसान के दुसरे लोगों के साथ भी अच्छे रिलेशन होते है. वो अपने परिवार, रिश्तेदारों, दोस्तों, पड़ोसियों और कलीग्स के साथ मिलजुल कर रहता है. और एक अच्छा रिलेशन सालो साल तक चलता है.

एक हाइली इफेक्टिव इंसान कैसे बना जाए, ये आप इस किताब को पढ़कर सीख सकते है. जो भी आपकी जॉब हो, आप इस किताब से ये बात जान सकते है. जैसे कि अगर आप एक पेरेंट है तो अपने बच्चे के साथ अपना रिलेशनशिप और भी बेहतर बना सकते है. अगर आप एक बॉस है जो इस किताब में आपको ऐसे टिप्स मिलेंगे जिनसे आप और भी अच्छे लीडर बन पायेंगे, जब आपका केरेक्टर अच्छा हो तो लोग भी आपसे नज़दीकी बढ़ाना चाहते है,

इसीलिए तो द सेवेन हैबिट्स ऑफ़ हाइली इफेक्टिव पीपल एक इंटरनेशनल बेस्ट सेलर है. ये किताब केरेक्टर इम्पूव करने में फोकस करती है.ज़्यादातर किताबे आपको इस बारे में किलेंगी कि दोस्त कैसे बनाये या लोगो को इम्प्रेस कैसे करे मगर सेवन हैबिट्स आपको सबसे पहले एक इफेक्टिव इंसान बनाने पर फोकस करती है. अगर आपकी पर्सेनिलिटी अच्छी है तो बेशक आप भी एक इफेविटेव इंसान बन सकते है मगर वो बस थोड़े टाइम के लिए होगा, लोगो को जल्द ही पता चल जाएगा कि आपके हर काम के पीछे कोई मतलब, कोई मोटिव है. लेकिन अगर आपका केरेक्टर अच्छा है तो वो लाइफ टाइम तक आपके साथ रहेगा. आप अपने आस-पास के लोगों को इन्फ्लुएंस करते रहेंगे और आपको इसका पता भी नहीं चलेगा.लेकिन याद रखे कि आपको सबसे पहले अपने अन्दर से शुरू करना है, तो क्या आप तैयार है चेंज होने के लिय? क्या आज आप एक हाइली इफेक्टिव पर्सन बनेगे?

हैबिट।

(PROACTIVE) प्रोएक्टिव बने

प्रोएक्टिव बनने का मतलब क्या है ? साकोलोजिस्ट विक्टर फ्रेंकल कहते है “हमारे आस-पास जो भी होता है हम उसे बदल नहीं सकते” लेकिन हम इस पर कैसे रीस्पोंड करे ये हमारे हाथ में है. प्रोएक्टिव होने का मतलब होता है कि दुसरे लोग चाहे जो भी ओपिनियंस दे या जैसा भी उनका बेहेवियर हो हमें उससे अफेक्टेड नहीं होना है. जब लोग हमारे बारे में कुछ बुरा बोलते है तो कमी हमारे अंदर नहीं होती बल्कि उनमे होती है. जो नेगेटिव बात वो आपके बारे में बोलते है उनसे उनके खुद के नेगेटिव व्यू का पता चलता है कि वे दुनिया को किस नज़र से देखते है, प्रोएक्टिव होने का मतलब ये भी है कि आप किसी भी बुरी सिचुएशन से अफेक्ट ना हो. फिर चाहे मौसम खराब हो या ट्रेफिक लेकिन एक प्रोएक्टिव इंसान को कोई फर्क नहीं पड़ेगा.

उसकी जिंदगी में बुरा वक्त या गरीबी आये मगर वो हर में खुश रहेगा. एक प्रोएक्टिव इंसान बुरे से बुरे हालत में भी बगैर कोई कम्प्लेन किये अपना काम करता रहेगा. प्रोएक्टिव का उल्टा रीएक्टिव होता है. और जो लोग रीएक्टिव होते है वो अपने एन्वायरमेंट से बहुत जल्दी अफेक्ट हो जाते है. अगर उनके साथ कुछ बुरा होता है तो वो खुद भी नेगेटिव बन जाते है। एक बार लेखक स्टीफन कोवी जब सेक्रामेन्टो में एक लेक्चर दे रहे थे तब अचानक भीड़ में से एक औरत खड़ी हुई , वो बड़ी एक्साइटेड होकर कुछ बोल रही थी कि तभी उसकी नज़र लोगों पर पड़ी जो उसे घूर रहे थे. लोगों को ऐसे घूरते देखकर वो औरत वापस बैठ गई. अपना लेक्चर खत्म करने के बाद स्टीफन कोची उस औरत के पास गए.

उन्हें मालूम पड़ा कि वो औरत दरअसल एक नर्स थी और एक बड़े बीमार पेशेंट की फुल टाइम देखभाल कर रही थी. उसका वो पेशट हर टाइम उस पर चिल्लाता रहता था. उसकी नज़र में चो सब कुछ गलत करती थी. उसने कभी भी उस नर्स को थैंक यू तक नहीं बोला था. इन सब बातों की वजह से वो औरत बड़ी दुखी रहती थी. वो अपनी जॉब से बिलकुल भी खुश नहीं थी. उस दिन स्टीफन कोवी के लेक्चर का सब्जेक्ट भी प्रोएक्टीवीटी ही था, कोची एक्सप्लेन कर रहे थे कि अगर तुम प्रोएक्टिव हो तो कोई भी चीज़ तुम्हे हर्ट नहीं कर सकती. जब तक आप खुद ना चाहे तब तक कोई आपको दुखी नहीं कर सकता. ये लेक्चर सुनकर वो औरत एक्साइटेड हो गयी थी क्योंकि उसे पता चल गया था कि रिस्पोंड करना या ना करना उसके हाथ में है.

उसने कोवी को बताया” मैंने दुखी होना खुद चुना था मगर अब मुझे रिलायिज हो गया है कि दुखी या सुखी होना मेरे हाथ में है लेकिन अब किसी दुसरे इसान का बिहेवियर मुझे कंट्रोल नहीं कर सकता. एक रिएकटिव इन्सान का मूड TV की तरह होता है जिसका रिमोट कन्ट्रोल दुनिया के हाथ में है। जब भी कोई चाहेगा वो उस रिएक्टिव इन्सान का मूड चेंच कर सकता है। लेकिन एक प्रोडक्टिव इन्सान वो हैं जिसने अपने मूड का रिमोट कन्ट्रोल अपने पास रखा है। एक प्रोडक्टिव इन्सान को कोई फर्क नही पड़ता कि दूसरा इन्सान उसके बारे में क्या सोच या बोल रहा है।

हैबिट 2

Begin with the end mind

आपकी लाइफ की सबसे ज़रूरी चीज़ क्या है? अपने माइंड में एंड को लेकर शुरुवात से हमारा मतलब है कि आपके सारे एक्शन आपकी देल्यूज़, आपके पर्पज से मैच होने चाहिए. आपक फाईनल गोल /आपका डेस्टिनेशन पता होना चाहिए ताकि आपका हर स्टेप उसी तरफ जाए. हम कई बार बहुत सी प्रोब्लेम्स फेस करते है. हमें आये दिन किसी ना किसी चीज़ के लिए कंसर्न होना पड़ता है. और लाइफ में इतने चेलेन्जेस है कि हम कई बार भूल जाते है कि हमारे लिए सबसे ज़रूरी चीज़ क्या है, जैसे कि आपको अपने बच्चों का ध्यान रखना पड़ता है, उन्हें हर चीज़ प्रोवाइड करानी पड़ती है. लेकिन आप इसके लिए इतना ज्यादा हार्ड वर्क करते है कि उनके साथ टाइम स्पेंड ही नहीं कर पाते. आप ये भूल जाते है कि मेटेरियल चीजों से ज्यादा उन्हें आपके प्यार और सपोर्ट की भी जरूरत है. अगर आप सच में अपने बच्चो से प्यार करते है तो उन्हें हर दिन शो कराये कि आप उन्हें कितना चाहते

है. आपकी बातो और आपके एक्शन में उनके लिए प्यार झलकना चाहिए. और आपका यही बेहेवियर आपके पेरेंट्स और उन बाकी लोगो के साथ भी

होना चाहिए जो आपकी लाइफ में बहुत मायने रखते है. बिगीन विद द एण्ड इन माईन्ड से मतलब है ये जानना कि आपके लिए सबसे वेल्युब्ल क्या है.

वो आपके अपने लोग हो सकते है, या फिर आपके प्रिंसिपल जिन पर आपकी पूरा वकीन है.

अगर आप कुछ ऐसा करते है जो आपके प्रिंसिपल से मैच नहीं करता तो आप एक इनइफेक्टिव इंसान बन रहे है.

मान लीजिये कि आप एक घर बना रहे है. मगर इसके लिए सबसे पहले आपको अपने दिमाग में प्लानिंग करनी पड़ेगी फिर जाकर आप टूल्स लेंगे. अगर आपके घर में बचचे है तो आपके घर का हर कोना चाइल्ड फ्रेंडली होना चाहिये. अगर आप कुकिंग का शौक रखते हैं तो आपको अपनी किचन अपग्रेड रखनी पड़ेगी. तो किसी भी काम को शुरू करने से पहले उसका ब्लू प्रिंट आपके दिमाग में क्लियर होना चाहिए. अगर आपने अपना घर अच्छे से प्लान नहीं किया है तो इसे प्रोप्रली कन्सटरकट करना मुश्किल हो जाएगा. और लास्ट में आपको इसे रिपेयर कराने में फ़ालतू पैसे ही खर्च करने पड़ेंगे.

लाइफ में हर चीज़ प्लानिंग मांगती है..और इसी तरह एंड को माइंड में रखकर चलने की शुरुवात होती है. ये सोचे कि आपको सबसे पहले क्या करना है. और ये श्योर कर ले कि वो आपके वेल्यूज़ के साथ फिट हो सके. क्या आप सबसे ज्यादा आनेस्टी को वेल्यू करते है? या फिर आप रीस्पेक्ट की ज्यादा वेल्यु करते है? इसी को ध्यान में रखते हुए अपने दिन की शुरुवात करे, अपने वेल्यूज़ पर पूरा यकीन रखे, ताकि आपकी लाइफ में जो भी चेलेन्जेस आये आप अपने वेल्यूज़ के हिसाब से उन चेलेन्जेस को फेस कर सके.

हेबिट 3

सबसे पहले ज़रूरी चीज़े करे.

सबसे पहले जरूरी कामों को करने का मतलब सिर्फ टाइम मेनेजमेंट से नहीं है ये सेल्फ मेनेजमेंट भी है. इंसान होने के नाते हम सब सेल्फ अवेयर होते है, और यही चीज़ हमें सारी लिविंग थिंग्स में सुपीरियर बनाती है. क्योंकि सिर्फ हम इंसान ही खुद को इवेयुलेट कर सकते है और जब हमें लगता है कि हम कुछ गलत कर रहे है तो हम उसे चेंज कर सकते है. जब हमें बहुत से काम करने होते है तो सबसे पहले हमें अपनी प्रायोरिटीज़ सेट करनी चाहिए, कुछ लोगों प्लानर्स की हेल्प लेते है ताकि उन्हें याद रहे.कुछ लोग टू डू लिस्ट और बोर्ड्स बनाते है ताकि उन्हें ज़रूरी काम याद रहे. लेकिन बावजूद इन सबके कई बार हम अपने बेहद ज़रूरी काम टाइम पर कम्प्लीट नहीं कर पाते है.

जब आपकी प्रायोरीटीज़ पूरी नहीं हो पाती तो सेल्फ डिसिप्लिन आपकी प्रॉब्लम नहीं है. असली प्रॉब्लम ये है कि आपने अपनी प्रायोरीटीज़ को दिल

दिमाग में बिठाया ही नहीं. आपने ये सोचा ही नहीं की ये आपकी टॉप प्रायोरीटीज़ क्यों है? क्यों ये आपके लिए इम्पोर्टेट है ? सोचिये ज़रा इसके बारे में. ये आपको और ज्यादा मोटिवेट करेगा. “टाइम मैनेज करना चेलेंज नहीं है बल्कि खुद को मेनेज करना है” सबसे पहले ज़रूरी चीज़े करे इस बात का मतलब है कि अपनी प्रायोरीटीज़ को पहले नम्बर पे रखे. इसका मतलब ये भी है कि ज़रुरत पड़ने पर आप ना” बोलना सीखे, जब आपके पास करने के लिए ढेर सारा काम हो तो उन टास्क को ना बोल दीजिये जो आपकी प्रायोरीटीज़ का हिस्सा नहीं है. एक्जाम्पल के लिए सेंड्रा को एक कम्युनिटी प्रोजेक्ट का चेयरमैन बनने को बोला गया. मगर उसके पास पहले से ही इम्पोटेंट टास्क थे मगर प्रेशर में

आकर उसे हाँ बोलना पड़ा. सेंड्रा ने अपने पड़ोसी कोनी को पुछा कि क्या वो भी इस प्रोजेक्ट को ज्वाइन करना चाहेगी. सेंड्रा की बात सुनकर कोनी ने कहा” सैंड्रा, ये प्रोजेक्ट काफी मजेदार लगता है…मगर कुछ रीजन्स से मैं इसमें पार्टिसिपेट नहीं कर पाऊँगी मगर सच में तुम्हारे इस इनविटेशन को मै एप्रिशिएट करती हूँ.” उसके बाद सेंड्रा को लगा कि जैसा कोनी ने किया उसे भी वही करना चाहिए धा. वो भी तो पोलाईटली “ना” बोल सकती थी जब उसे चेयरमेन बनने के लिए बोला गया था, ये प्रोजेक्ट कम्यूनिटी के लिए अच्छा था मगर कोनी को अपनी टॉप प्रायोरीटीज़ मालूम थी इसलिए उसने ना बोला, उसके पास करने के लिए दुसरे ज़रूरी काम थे. और इसलिए उसने पोलाईटली ना बोलने की हिम्मत की. अगर आप अपनी प्रायोरीटीज अपने दिल और दिमाग में अच्छे

से प्लान कर लेंगे तो आपके लिए बाकी चीजों को ना कहना आसान रहेगा. और आप अपने ज़रूरी कामो को आसानी से टाइम पर पूरा भी कर पायेंगे.

सेल्फ डिसलीन से ज्यादा ज़रूरी है कि आपके पास विल पॉवर हो जिससे आप ज़रूरी कामो को सबसे पहले निपटा सके.

हैबिट 4 थिंक विन विन

विन विन एक ऐसा सोल्यूशन है जो आपको और उन लोगों को जिनसे आप इंटरेक्ट करते है, काफी बेनिफिट देगा. जब भी आपका अपनी फेमिली और कलीग्स के साथ कोई इस्यु होता है तो उसका कोई सोल्यूशन निकालना ही पड़ता है जिससे सबको भला हो. विन विन बेस्ट सोल्यूशन है. अगर कोई जीतता है और दूसरा हारता है तो इससे एक लम्बा और मज़बूत रिलेशन नहीं बन पायेगा. इमेजिन करो कि आपका अपने कलीग से डिसएग्रीमेंट हो जाता है तो आपको ये करना है कि जो भी प्रॉब्लम है उस पर खुलकर बात करनी है. उसका कोई ऐसा सोल्यूशन निकाले जो आप दोनों के लिए सही हो. लेकिन अपने कलीग को खुद पर हावी ना होने दे ना ही आप उस पर हाथी हो. आप दोनों का रिश्ता बेलेंस होना चाहिए जिसमे दोनों की जीत हो.

इस तरह से आपके और आपके कलीग में कोओपरेशन रहेगा जिससे आप एक टीम की तरह काम कर सकते है. एक दुसरे के साथ कम्पटीट करने से ये कहीं ज्यादा अच्छा है. अब इमेजिन करे कि आप बॉस हो और अपने किसी एम्प्लोयी से आपका डिसएग्रीमेंट होता है तो जाहिर सी बात है कि आपकी ही बात ऊपर रहेगी क्योंकि आपका एम्प्लोयी अपनी जॉब की वजह आपके सामने चुप ही रहेगा. एक बॉस होने के नाते आप बेशक आग्गुयमेंट में उससे जीत जाए मगर लॉन्ग रन में देखे तो ये आपकी हार होगी. क्योंकि अपने एम्प्लोयीज़ को नीचा दिखाकर आप उन्हें मोटिवेट नहीं कर सकते, वो आपके लिए काम तो करेगा मगर मन मार के. तो कुल मिलाकर नुक्सान तो आपका ही हुआ.

कम्प्रोमाईज़ करना हमेशा अच्छा होता है फिर भले ही आप बॉस ही क्यों ना हो. आपके लिए यही अच्छा होगा कि आप अपनी पोजीशन का इस्तेमाल ना करे, अपने एम्प्लोयीज़ को खुश रखने में ही आपका ज्यादा फायदा है, अगर आप हमेशा विन विन सिचुएशन सेटल मे है तो आपके एम्प्लोयीज़ ज्यादा इफेक्टिव होंगे, और ये आपकी कंपनी के लिए भी फायदेमंद होगा, साथ ही आपको बार-बार लोगो को हायर करके उन्हें ट्रेन करने की ज़रुरत नहीं पड़ेगी, विन विन सिचुएशन सिर्फ वर्क प्लेस पर ही अप्लाई नहीं होती. ये हर तरह के रिलेशनशिप में एप्लीकेबल है. जब भी आपके अपने पार्टनर, आपके बच्चों, दोस्त या पड़ोसियों के साथ डिसएग्रीमेंट हो तो विन विन सिचुएशन के बारे में सोचे.. फिर आप देख्नेगे कि कैसे आपके हर रीलेशन में और भी ज्यादा प्यार और ट्रस्ट आएगा.

हैबिट 5

पहले खुद दुसरो को समझने की कोशिश करे फिर दुसरो से उम्मीद करे कि वे आपकी बात समझे

क्या आपको याद है कि लास्ट बार कब किसी ने आपसे अपनी प्रॉब्लम शेयर की थी? और क्या आपने उनकी बात सच में सुनी भी थी? क्या आपने एडवाइस देने से पहले उनकी फीलिंग्स को समझा था ? पहले आप दुसरों को समझने की कोशश करे फिर उनसे उम्मीद करें कि वो आपकी बात समझे. ये अच्छे कम्युनिकेशन का यही तरीका है. हम अपनी राइटिंग, रीडिंग स्पीकिंग और लिसनिंग के जरिये कम्युनिकेट करते है. बचपन में हम लिखना, पढना और बोलना सीखने में सालों लगा देते है. लेकिन किसी की बात सही ढंग से सुनने के लिए ऐसी कोई ट्रेनिंग नहीं है. किसी के साथ कम्युनिकेट करने का सबसे बेस्ट तरीका ये है कि पहले हम ये समझने की कोशिश करे कि आखिर वे कहना क्या चाहते हैं.

गुड लिसनिंग वो होती है जब आप खुद को सामने वाले की सिचुएशन में रखकर सोचते हैं. तभी आप सही तरीके से समझ पायेंगे कि वो इंसान कहना क्या चाहता है. जब आप सुनते नहीं है तो आप उस इंसान की बात समझे बगैर रिप्लाई करने लगते हैं मगर ज़ब आप समझने की कोशीश करते है तभी आपको पता चलता है कि वो इंसान असल में कैसा फील कर रहा है, और जब आप इस तरीके से किसी की बात सुनेंगे तभी जाकर उस इंसान को कोई अच्छी एडवाईस दे पायेंगे या उनकी सच में कोई हेल्प कर पायेंगे.

एक बार एक आदमी किसी ऑप्टोमेटरिस्ट के पास गया. उसको कुछ विजन की प्रॉब्लम हो गयी थी. उस आदमी ने ऑप्टोमेटरिस्टको बताया कि उसको क्लीयरली कुछ दिखाई नहीं दे रहा है. तो उस ऑप्टोमेटरिस्ट ने क्या किया कि उसने उस आदमी को अपना चश्मा दे दिया आप्टोनेटरिस्ट ने कहा ” इन्हें पहनो, मै पिछले 10 सालो से यही चश्मा पहनता आया हूँ और मुझे साफ़ दिखता है मेरे पास एक जोड़ी एक्स्ट्रा पेयर घर पे रखा है तो तुम ये वाले पहन लो” उस आदमी ने ऑप्टोमेटरिस्टकी बात मानकर वो चश्मा पहन लिए मगर कोई फायदा नहीं हुआ बल्कि उसे और भी धुंधला दिखाई देने लगा.

“ये बहुत अच्छे ग्लासेस है, तुम और कोशिश करो सही ढंग से देखने की उस ऑप्टोमेटरिस्ट ने कहा तो उस आदमी ने फिर से ट्राई किया मगर उसकी लाख कोशिशों के बावजूद उस ऑप्टोमेटरिस्ट के चश्मा पहन के उसे कुछ भी साफ नहीं दिख रहा था, अब आप्टोमेटरिस्ट ने उससे कहा कि वो पोजिटिव सोचे. इस पर उस आदमी ने जवाब दिया ओके, अब भी मुझे पोजिटिवली कुछ साफ़ नहीं दिखाई दे रहा” ये बात सुनकर ऑप्टोमेटरिस्ट अपसेट हो गया. क्योंकि आखिरकार वो तो उस आदमी की बस मदद करना चाहता था. उसे लगा कि शायद वो आदमी बोल रहा है और अनग्रेटफुल है.

हम भी कई बार ठीक इसी तरह उस ऑप्टोमेटरिस्ट के जैसे ही बीहेव करते है. हम यही कहते रहते हैं कि “अगर मै तुम्हारी जगह होता” या “मेरी बात मान के देखो “. लेकिन हम कभी भी ये ट्राई नहीं करते कि यो आदमी वाकई में कैसा फील कर रहा है. और इसका रिजल्ट ये निकलता है कि वो इंसान हम पर कभी यकीन नहीं करेगा. और ना ही कभी दुबारा हमारे पास अपनी प्रॉब्लम लेकर आएगा. अगर आप सच में किसी की हेल्प करना चाहते है तो सबसे पहले उन्हें समझने की कोशिश करे, ऐसा करके आप उनका ट्रस्ट जीत सकते है. और उन्हें यकीन हो जाएगा कि आपके एक्शन के पीछे कोई मोटिव नहीं नहीं बस हेल्प करने की इच्छा है, वो फिर वो भी आपको समझाना शुरू कर देंगे,

हैबिट 6 सिनर्रजाइज़

सिनेर्जी का मतलब है “द होल इज ग्रेटर दन द सम आफ इटस पार्टस” “the whole is greater than the sum of its parts” यानि जब एक आदमी दुसरे की मदद करता है तो दोनों साथ मिलकर बहुत कुछ अविम्प्लश कर सकते है, जब एक टीम का मेम्बर दुसरे टीम मेम्बर के साथ मिल के काम करता है तो वो दोनो मिल कर अकेले इन्सान के मुकाबले बहुत ज्यादा अचीव कर सकते हैं। जब भी कोई नेचुरल डिजास्टर या कालामेटी जैसे आग, टाईफून या अर्थक्वेक होता है तो लोग सिनर्रजाइज़ होते है यानि साथ मिलकर काम करते वो मुसीबत में पड़े लोगो को मदद करने के लिए आगे आते है. तब लोग अपने डिफरेंसेस भूल जाते है. मुश्किल सिचवेशन लोगो के अंदर कोपरेट करने की फीलिंग्स ले आती है. और सब तुरंत मिल जुल कर सर्वाइव करने के लिए करते हैं.

सिनेर्जी के मतलब कोओपरेट या कोलाब्रेशन भी है. इसका मतलब साथ मिलकर चलना और कम्बाइनड एफरट भी है. चाहे कोई भी ग्रुप हो, अगर आपस में सिनर्जी होगी तो इसका बेनिफिट जरूर मिलेगा. लेकिन प्रॉब्लम तो ये है कि ये सिनर्जी हमारी लाइफ में हर रोज़ नहीं होती, लोग आपस में अपने डिफरेंसेस दूर करना ही नहीं चाहते. उन्हें ये बड़ा मुश्किल लगता है. क्योंकि हर किसी का एक डिफरेंट पॉइंट ऑफ़ व्यू होता है, डिफरेंट वे ऑफ़ थिंकिंग होती है. हम इस दुनिया को अलग नज़र से देखते है क्योंकि हम अपने खुद के हिसाब से ये दुनिया देखते हैं. हमें ये समझना ही होगा कि दुनिया को देखने का हमारा नजरिया लिमिटेड होता है इसीलिए हमारी सोच भी लिमिटेड हो जाती है,

हमें दुसरे लोगो को जानने और उनके एक्स्पीरियेंश को समझने की खास ज़रुरत है. ये किसी ओप्टीकल इल्यूज़न की तरह है. हो सकता है कि जो मुझे एक यंग लेडी नज़र आ रही है वही आपको एक बूढ़ी औरत दिखाई दे हम दोनों ही उस इमेज को डिफरेंटली इंटरप्रेट कर रहे है हालाँकि हम दोनों ही अपनी जगह सही है. तो इस बात पर बहस करने का कोई फायदा नहीं है. सिनर्रंजाइज़ करने के लिए हमें एक दुसरे के पॉइंट ऑफ़ व्यू को समझना ही पड़ेगा. और इस तरीके से हम एक बड़ी पिक्चर देख सकते है.

सिनर्जी का मतलब है कोओपरेशन. इसका मतलब है अपने डिफरेंसेस को एक्सेप्ट करना और एक दूसरे के विचारों की कद्र करना, ये कभी साबित करने की कोशिश ना करे कि बस आप सही है और दूसरा बाँदा गलत है.उस इंसान के नज़रिए से भी समझने की कोशिश करे. इससे आपकी नॉलेज ही बढ़ेगी और कोई नुक्सान नहीं होगा. बहसबाजी करने से बेहतर और भी कई आल्टरनेट है. जब आप दुसरो के व्यूज की रीस्पेक्ट करने लगते है तो आप उनके साथ मिलकर काम कर सकते है, आप कोपरेट करके मिलकर काम करने से कई सारी नई और अच्छी चीजे क्रियेट कर सकते है.

हैबिट 7 शार्पन द सा

शार्पन द सों से हमारा मतलब है कि अपने सबसे बड़े एस्सेट को शार्पन करे. यानि हमेशा कुछ नया सीखते रहे और आपका सबसे बड़ा एस्सेट आप खुद है. आपको रेगुलरली खुद को रीन्यू करना पड़ेगा. अपनी लाइफ के हर एस्पेक्ट में आपको इमपूव करना पड़ेगा मतलब फिजिकली, स्प्रिच्यूली, मेंटली, सोशली और इमोशनली. आप रेगुलर एक्सरसाइज से खुद को रीन्यू रख सकते है. इसके लिए ज़रूरी नहीं कि आप जिम जाए या फिर महंगे इकुपमेंट ही खरीदे. आप घर पे ही सिम्पल एक्सरसाइज कर सकते हैं. आप रन कर सकते है, जोगिंग कर सकते है या फिर रेपिड वाक ले सकते हैं. अगर आप एक्सरसाइज नहीं करना चाहते तो स्लो तरीके की कोई भी एक्टिविटी कर सकते है और फिर आप देखेंगे कि. डे बाई डे आपकी बॉडी इम्प्रूव हो रही है,

इसी तरह आप अपनी स्पिरिट को भी रीन्यू करने की ज़रूरत है. ऐसा कई बार होता है जब आप खुद को पूरी तरह थका हुआ पाते है. रोज़मर्रा के चेलेन्जेस से हम बेहद थक जाते है. तो हमें खुद को इंस्पायर रखने की बेहद ज़रुरत है. और आप प्रेयिंग म्युज़िक, बुक रीडिंग करके या फिर नेचर के साथ जुड़कर खुद को इंस्पायर कर सकते है. ये आप पर डिपेंड है कि आपकी स्पिरिट किस तरीके से अच्छा फील करेगी., कभी कभी एक बेक लेना भी ज़रूरी होता है ताकि आप खुद को टाइम दे सके और अपने बारे में सोच सके. हम जब यंग होते हैं तो हमारा दिमाग खुद ही अपनी एक्सरसाइज कर लेता है लेकिन एक बार स्कूल खत्म करने के बाद हम शायद ही कोई बुक पढ़ने का टाइम निकाल पाते हो या कुछ नया सीखते hai? लेकिन लर्निंग सिर्फ स्कूल तक ही लिमिट नहीं होनी चाहिए.

हम इसके बाद भी खुद को एजुकेट करने के तरीके ढूंढ सकते है. अपने डेली रूटीन के कामो से हटकर कुछ अलग चीज़े ट्राई करे. खुद को चेलेंज करे कि आप कम से कम हर महीने एक बुक पूरी पढ़ सके. ओर जो लोग बहुत बिजी है और बुक नही पढ़ सकते उनके लिये हमने गिगल एप बनायी है। हमारे सोशल और इमोशनल एस्पेक्ट एक दुसरे के साथ क्लोज़ली जुड़े होते है. ऐसा इसलिए क्योंकि हमारे इमोशन लोगो के साथ इन्टरेकट करने से ही पैदा होते है. हर दिन हमें दुसरों के साथ अपने रिलेशन इम्प्रूच करने का मौका मिलता है, तभी तो कहा है कि अर्न योर नेगवोयर लव” यानि अपने पड़ोसियों से प्यार करे, अगर आप एक काइंड नेचर पर्सन है तो यकीन मानिए आप एक लंबी खुशहाल लाइफ जियेंगे.

अब इमेजिन करे कि जैसे आप जंगल में वाक पर गए हो, आपको एक आदमी नज़र आता है जो एक छोटे से पेड़ को काट रहा है. आप देखते है कि वो आदमी काफी थक गया है तो आप उससे पूछते है कि वो कितनी देर से ऐसा कर रहा है. वो आदमी कहता है” पांच घंटे हो गए है और मै अब थककर चूर हो गया हूँ! ये बड़ी मेहनत वाला काम है” तो आप उस आदमी को सलाह देंगे कि उसे कुछ मिनट का ब्रेक लेना चाहिए. हो सकता है कि उसे अपना साँ यानि अपनी आरी को शार्पन करने की ज़रूरत है. और आप उसे ये भी कहते है कि ” मुझे यकीन है कि इससे आपका काम तेज़ी से होगा” मगर वो आदमी मना कर देता है. वो कहता है कि वो इतना बिजी है कि उसके पास सा शार्प करने का यानी अपनी आरी को तेज करने टाइम ही नहीं हैं,

अब किसी भी चीज़ को इफेक्टिवली कट करने के सौ यानि आरी को तेज़ करने की ज़रुरत होती है ठीक इसी तरह खुद को और भी इफेक्टिव बनाने के लिए हमें भी अपने एस्सेट शार्पन करने होंगे. आपको टाइम निकाल कर खुद को रीन्यू करना ही पड़ेगा. क्योंकि जो टूल आपकी लाइफ में जरूरी है वो तो आपके पास है ही बस उनको शार्पन करने की जरुरत बीच बीच में पड़ती रहती है, और आपके एस्सेट्स है आपकी बॉडी, माइंड और सोल और उन्हें शार्पन करना कभी ना भूले,

कन्वलुज़न्

आपने हाइली इफेक्टिव लोगो को 7 हैबिट्स सीखी. हैबिट नंबर ] है प्रोएक्टिव बने. हैबिट नंबर 2 है एंड को ध्यान में रखकर किसी भी काम की शुरुवात करे. हैबिट नंबर 3 है कि सबसे पहले जरूरी चीजों को प्रायोरिटी दे. हैबिट नंबर 4 है विन विन सिधुएशन सोचे. हैबिट नंबर 5 है कि अपनी बात समझाने के बजाये पहले दुसरो की बात समझने की कोशिश करे. हैबिट नंबर 6 है सिनेज़ाईज़. और लास्ट में हैबिट नंबर 7 है अपने एस्सेस्ट्स शार्पन करे. हैबिट नंबर 12 और 3 आपको अपना केरेक्टर इम्प्रूव करने में मदद करेंगे. हैबिट नंबर 4,5 और 6 दुसरों के साथ आपके रीलेशन इम्पूव करेंगे. और लास्ट में हैबिट नंबर 7 से आप अपनी ये अच्छी क्वालिटी लाइफ टाइम तक मेंटेन करके रख सकते है.

अब जो भी आपने सीखा है उसे डेली लाइफ में अप्लाई करना सीखे, जब कभी भी आप किसी बुरी सिचुएशन में होते है तो प्रोएक्टिव बनने की कोशिश करे. जब भी आपका किसी के साथ कोफ्लिक्ट होता है तो विन विन सिचुएशन चुने. और जब आप कोई चीज़ बार-बार करेंगे तभी वो आपकी हैबिट बन पायेगा, जैसा कि एरिस्टो ने कहा है” हम वही बनते है जो हम बार-बार लगातार करते हैं. तो एक्सीलेंस कोई एक्ट नहीं है बल्कि हैबिट से आती है”. तो दोस्तो इसी के साथ ये समरी यहाँ पर खतम होती है। आप रिव्यू सेक्शन में हमें लिख कर बता सकते है कि आपको ये समरी कैसी लगी और अगली समरी आप किस बुक पर चाहेंगे। अगर आपको हमारी मेहनत पसन्द आयी तो आप हमें अपना प्यार दिखा सकते है गुगल प्ले में रिव्यू देकर। गिगल को इसी तरह सुनते रहियें। जय हिन्द”

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *