NO HARD FEELINGS by Mollie west duffy.

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लेखक के बारे में

लिज फोस्लीन (LiE Fosslar) मार्केटिंग और डिजाइन की सलाहकार हैं जो कि माउट माफदमाफिस नाम की एक वेब कामिक चलाती हैं। चे रेडिट अनर्ट एड यंग और जपर जैसी कंपनियों के

लिए काम कर चुकी हैं।

गाली वेस्ट डपफी (Molle west Dufing) आडियो के लिए डिजाइन का काग करती हैं। वे अपने क्लाईट्स की गदद करती है ताकि वे ज्यादा बेहतर और क्रीएटिव तरीके से अपनी कंपनी के लोगों के टैलेंट का इस्तेमाल कर सकें। वे कंपनियों की मदद करती हैं ताकि वे अपने कल्चर को पहले से बेहतर बना सकें।

यह किताब आपको क्यों पढ़नी चाहिए

आज के वक्त में लोगों में तनाव बढ़ता जा रहा है। लोग सुबह उठकर अपने काम पर नहीं जाना चाहते। बहुत से कर्मचारी एक कंपनी में ज्यादा दिन तक नहीं टिकते। मैनेजरों को कर्मचारियों की परवाह कम है जिससे कर्मचारी भी अपने काम की परवाह नहीं करते। बहुत से लोग एक मीटिंग में अपनी बात कहने से डरते हैं।

अगर इन में से एक भी समस्या आप से मिलती जुलती है तो यह किताब आपके लिए है। यह किताब आपको बताती है कि किस तरह से आप अपने काम के साथ बेहतर संबंध बना सकते हैं और किस तरह से अपनी कंपनी के कल्चर को सुधार सकते हैं। यह किताब हमें बताती है कि कैसे हम ऊपर दी गई समस्याओं से निपट सकते हैं।

इसे पढ़कर आप सीखेंगे

-लीडर्स को अपनी भावनाओं को दिखाने से पीछे क्यों नहीं हटना चाहिए।

अपने कर्मचारियों को काम करने की आजादी देने के क्या फायदे हैं।

किस तरह से आप अपनी कंपनी में एक अच्छा कल्चर बना सकते हैं।

आफिस के लोगों के बीच अच्छे संबंध बने रहने से कर्मचारी अपने काम से प्यार करने लगते हैं।

हम सभी को एक ऐसा माहौल चाहिए जहां पर होने पर हमें लगे कि वहां हमारी जरूरत है और वहाँ हमें प्यार किया जाता है। यह बात सिर्फ सुनने में ही अच्छी नहीं लगती, बल्कि बहुत से रीसर्व और स्टडीज़ में यह बात साबित होकर सामने आई है।

यूनिवर्सिटी ऑफ मिशिगन के प्रोफेसर किंग कैगेरान बताते हैं कि जिस आफिस के लोग एक दूसरे से सहानुभूति नहीं जताते. वहाँ के कर्मचारी जल्दी नौकरी छोड़कर चले जाते हैं। बली के प्रोफेसर बैरी स्टा ने देखा कि जो मैनेजर्स अपने कर्मचारियों से अच्छे से बात नहीं करते, वे अक्सर खराब फैसले लेते हैं और जानकारी को आसानी से भूल जाते हैं।

साथ ही रीसर्च में यह बात सामने आई कि कर्मचारियों के काम छोड़कर जाने की सबसे बड़ी वजह यह है कि वे कपनी में रहने पर अच्छा महसूस नहीं करते हैं। गूगल ने भी यह पाया कि जब मेनेजर्स नएट कर्मचारियों को सबसे मिलवाते हैं और उनके पहले दिन उनके स्वागत के लिए कुछ वक्त बिताते हैं, तो वो कर्मचारी 9 महीने के बाद भी बहुत अच्छा काम करता हुआ पाया जाता है।

तो किस तरह से आप अपनी कंपनी में एक अच्छा माहौल बना सकते हैं? इसके लिए आप रिट्ज़ कार्लटन होटल का 10/5 रुल अपना सकते हैं। यह नियम कहता है कि जब भी कोई नया ग्राहक होटल में जाए तो स्टाफ को उसे 10 फीट की दूरी पर देखकर मुस्कुराना है और जब वो 5 फीट की दूरी पर हो तो उन्हें उसे देखकर हेल्लो कहना है। इस नियम को अपनाने से ग्राहक को अच्छा महसूस होता है जिससे वो बार बार वापस आता है।

इसके अलावा आप एक नए कर्मचारी को उनके पहले दिन पर सबसे मिलवाइए और उन्हें बताइए कि उनकी कोन सी खुबी की वजह से उन्हें काम पर रखा गया है। आप अपने कर्मचारियों को समय समय पर उनका मनपसंद खाना देते रहिए, ताकि उन्हें यह लगे कि यहाँ पर उनकी कदर की जाती है।

लीडर्स को भी अपनी भावनाओं को दिखाने से पीछे नहीं हटना चाहिए।

2012 के लीडरशिप क्वाटली स्टडी में यह बात सामने आई कि जब कर्मचारियों को यह महसूस होता है कि वे अपने लीडर के साथ भावनात्मक रूप से जुड़े हुए है, तो वे कुछ बेहतर तरीके से पफार्म कर पाते हैं। इसलिए यह जरूरी है कि लीडर्स अपने कर्मचारियों के सामने अपने डर और अपनी चिंता को खुलकर रखें। लेकिन इसके साथ ही उन्हें अपने कर्मचारियों को यह भी बताना होगा कि किस तरह से वे उस समस्या से बाहर निकलने की प्लानिंग कर रहे हैं।

जो लीडर्स बहुत ज्यादा चिंता या गुस्सा दिखाते हैं, वे अपने कर्मचारियों पर से अपने काबू को खो देते हैं। 2015 की एक स्टडी में यह दिखाया गया कि जब कर्मचारियों को

उन मैनजर्स के साथ काम करना होता है जो बहुत गुस्सा करते हैं, तो उनका मन काम में कम लगता है। इसलिए यह जरूरी है कि इस तरह की भावनाओं को ज्यादा उभर कर

सामने ना आने दिया जाए।

होवार्ड शुल्टा स्टारबक्स के सीईओ है। वे जब 10 साल के बाद स्टारबक्स में लोटे, तो स्टारबक्स बहुत नुकसान में जा रही थी। उन्होंने अपने कर्मचारियों के सामने अपने इर को रखा, लेकिन साथ में ही, उन्हें एक प्लान भी दिया कि किस तरह वे इस समस्या से निकलने वाले हैं। उस साल स्टारबक्स के शेयर्स बहुत ऊपर उठ गए और वो एक बार फिर से कामयाब हो गई।

इसलिए अपनी चिंता की भावना को एक प्लान के साथ लोगों के सामने रखिए, लेकिन अपने गुस्से या तनाव को अपने पास ही रखिया

अपने काम पर बहुत ज्यादा ध्यान देने से आपका काम बिगड़ सकता है।

हम में से हर कोई हर वक्त काम के बारे में सोचता रहता है। लेकिन यह जरूरी नहीं है कि आप कितना काम करते हैं, बल्कि यह जरूरी है कि आपके काम से कितना नतीजा पैदा होता है। अगर हम आप से कहें कि आप कम काम कर के ज्यादा नतीजे पा सकते हैं, तो आप क्या कहेंगे?

अगर आप हर वक्त काम करने के बारे में सोचते रहते हैं, तो वक्त आ गया है अपने बारे में सोचने का। इसके लिए आप सबसे पहले एक छुट्टी ले लीजिए। बहुत से लोग छुट्टी नहीं लेते, क्योंकि उन्हें लगता है कि वे उस छुट्टी में कुछ ज्यादा काम कर पाएंगे। साथ ही, उनके बॉँस भी उन्हें छुट्टी लेने के लिए नहीं कहते, तो इसलिए वे उन्हें खुश करने के लिए और अपना फायदा करवाने के लिए और ज्यादा काम करते हैं।

अगर आप एक लीडर है, तो अपने कर्मचारियों से कहिए कि वे छुट्टी ले लें। साथ ही लीडर्स भी खुद को ज्यादा काम करने पर मजबूर ना करें, बल्कि कुछ दिनों के लिए छुट्टी

पर चले जाए।

अगर आप छुट्टी नहीं ले सकते, तो कुछ वक्त का ब्रेक ले लीजिए। आप चाहें तो हफ्ते के एक खास दिन पर लोगों को छुट्टी दे सकते हैं। इससे आपके कर्मचारी खुश रहेंगे और

वे जल्दी काम छोड़कर नहीं जाएंगे। साथ ही इससे उनकी सेहत सुधरेगी और वे अपने काम को बेहतर तरीके से कर पाएंगे।

इसके अलावा आप खुद को एक दिए गए समय तक काम करने के लिए मजबूर मत कीजिए। आप अपने काम को लेकर कुछ ज्यादा परेशान मत रहिए बल्कि समय समय पर ब्रेक लेकर काम करते रहिए। अगर आप एक दिन किसी वजह से काम नहीं कर पाते हैं, तो खुद को डॉटिए मत।

लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि आप अपने काम के बारे में सोचना छोड़ दीजिए। इसका मतलब यह है कि अपने काम पर हर वक्त ध्यान ना देकर खुद पर भी थोड़ा ध्यान दीजिए। इससे आपकी सेहत सुधरेगी, दिगाग फ्रेश रहेगा और आप बेहतर तरीके से काम कर पाएंगे।

अपने काम में एक मतलब खोजिए और उस काम को चुनिए जिसमें आपको आजादी मिले।

रीसर्च में यह बात सामने आई है कि ज्यादातर बिजनेसमैन और सीनियर मैनेजर्स एक आम कर्मचारी से ज्यादा काम करते हैं। लेकिन जब बात तनाव की आती है, तो एक कर्मवारी के पास ज्यादा तनाव होता है। ज्यादातर लोग जिनकी मौत दिल के दौरे से होती है, वे कर्मचारी होते हैं, ना कि बिजनेसमैन। लेकिन जब कर्मचारी कम काम करते हैं, तो उन्हें तनाव ज्यादा क्यों होता है?

इसका आसान सा जवाब है अपने काम पर अपना काबू होता। बिजनेसमैन के पास पूरा काबू होता है और वो एक तरह से किसी दूसरे के कहने पर काम नहीं कर रहा होता।

उसके पास बहुत सारे मुश्किल काम होते हैं, लेकिन क्योंकि उसे किसी के नीचे रहकर काम नहीं करना पड़ता, वो आजादी महसूस करता है और कम तनाव में रहता है।

इसलिए अगर आप एक लीडर है, तो अपने कर्मचारियों को कुछ आजादी दीजिए। उन्हें एक ऐसा माहौल दीजिए जहाँ पर उनके नतीजे मायने रखें, ना कि उनका हर रोज 8 घंटे का काम करना। उन्हें आफिस में आने या जाने की आजादी दीजिए, ताकि वे अपने समय को अपने हिसाब से मैनेज कर सकें, ना कि अपने आफिस के समय के हिसाब से।

इसके अलावा अपने काम को करने की प्रेरणा पाने के लिए यह देखिए कि किस तरह से आपके काम से दुनिया में बदलाव हो रहा है। जब आपको यह पता लगेगा कि आपके काम से इतने सारे लोगों की जिन्दगी में असर पड़ रहा है, तो आप अपने काम को सिर्फ मैसे के लिए नहीं करेंगे। आपको यह लगेगा कि आप दुनिया में कुछ बदलाव ला रहे हैं और आपकी यहाँ पर जरूरत है।

अपनी भावनाओं पर खास ध्यान दीजिए क्योंकि वो फैसले लेने में बहुत ज्यादा मायने रखती हैं।

हम ज्यादातर फैसले अपनी भावनाओं से लेते हैं, ना कि सोच समझ कर। इसलिए यह बहुत जरूरी है कि आप उनपर ध्यान दें, क्योंकि वो बहुत जरूरी जानकारी आपको दे

सकती है। खास तौर पर एक नया काम चुनते वक्त अपनी भावनाओं को अच्छे से समझिए क्योंकि यहाँ पर बहुत से लोग गलती कर देते हैं। मान लीजिए कि आप एक सेल्समेन की नौकरी करने के लिए जा रहे हैं। उस काम में आपको कमिशन तो अच्छा मिल रहा है, लेकिन आपको साथ में इस बात का डर भी लग रहा है कि लोग आपको ना कह देंगे। हम में से किसी को भी ना सुनना पसंद नहीं है और इसलिए बहुत से लोग सेल्समैन की नौकरी करना नहीं चाहते।

लेकिन उसी वक्त भगर आप उस काम को ठुकरा देते हैं, तो आपको इसका पछतावा भी होगा कि आपने अच्छा काम छोड़ दिया। यह जरूरी नहीं है कि आप हमेशा अपनी भावनाओं पर ध्यान दीजिए। साथ ही में, उन्हें हमेशा अनदेखा करना भी ठीक नहीं है। तो किस तरह से अपनी भावनाओं पर आप जीत हासिल कर सकते हैं?

इसके लिए आपको उन भावनाओं पर ध्यान देना होगा जो जरूरी हैं और उन्हें अनदेखा करना होगा जो बेकार हैं। इसके लिए आप यह तरीका अपना सकते हैं।

खुद से यह सवाल पूछिए कि आज आप जो भी फैसला लेंगे उसका 5 साल के बाद आपकी जिन्दगी पर क्या असर होगा? क्या आप इस फैसले को लेकर उस समय खुश रहेंगे, पहले से कामयाब रहेंगे या नहीं? आपको जो जवाब मिले, उसके हिसाब से उस काम को करने या ना करने का फैसला लीजिए अगर आपको लगता है कि उस काम से लम्बे समय में भाप खुश रहेंगे, तो अपनी सारी भावनाओं को अनदेखा कर के उस काम को कर दीजिए।

बेकार की भावनाएं वो होती हैं जो अच्छे से सोच पाने में मुश्किलें पेदा करती हैं। एकताम्पल के लिए, अगर आप भूखे हैं, या फिर दिन भर के काम से थके हुए है, तो उस समय आपको चिढ़ अपने आप होगी। इस समय कोई भी फैसला करना आपके लिए अच्छा नहीं होगा क्योंकि इस समय आप अच्छे से सोच नहीं पा रहे हैं।

एक दूसरा तरीका यह है कि जब भी आप एक फैसला करने बैठे, तो अपने सारे आप्शन को एक पेज पर लिख लें और साथ ही यह भी लिख ले कि आपको क्या महसूस हो रहा है। इस तरह से आपके पास सारी जानकारी आजाएगी और आप अपनी भावनाओं को समझा कर बेहतर फैसले ले पाए्ये।

अपनी टीम के लोगों को ऐसा माहौल दीजिए कि वे अपने आइडियाज़ को खुलकर सबके सामने रख सकें।

बहुत बार ऐसा होता है कि हम एक मीटिंग में अपने आइडियाज़ को सबके सामने नहीं रखते क्योंकि हमें लगता है कि अगर हमारा आइडिया बेकार निकला तो लोग हमारे बारे में बुरा सोचेंगे। इस तरह की टीम में साइकोलाजिकल सेफ्टी नहीं होती है जिससे वहां के लोग सबके साथ रहने पर मानसिक रुप से सुरक्षित नहीं महसूस करते। इसका मतलब यह है कि इस तरह के माहौल में कोई भी व्यक्ति कुछ नया करने की कोशिश नहीं करता क्योंकि उसे लगता है कि ऐसा करने पर लोग उसके बारे में गलत सोचेंगे।

साथ ही जब टीम के लोग एक दूसरे को सहारा देने के बजाय काम बिगड़ने पर एक दूसरे पर इल्जाम लगाने लगते हैं, तो हालात और भी बिगड़ने लगते हैं। इस तरह के

हालात से निकलने के लिए आपको अपने टीम के लोगों में इस तरह की मानसिकता विकसित करनी होगी कि वे अलग तरह के विचारों को या अलग तरह के लोगों को

अपनाना सीखें।

एकाम्पल के लिए, बहुत से लोगों को एक्शन फिल्में पसंद होती हैं और बहुत से लोगों को रोमेरिक। ऐसे में अगर इन दो तरह के लोगों को एक साथ मिलकर काम करना है, तो इनहें सामने वाले की पसंद की बुराई ना कर के उसे अपनाना सीखना होगा। कुछ लोगों को स्पोटर्स में दिलचस्पी नहीं होती। अगर ये कुछ ऐसे लोगों के बीच बैठें हैं जो क्रिकेट की बात कर रहे हैं, तो उन्हें यह मानना होगा कि हर कोई उनकी तरह नहीं है और सबकी अपनी पसंद हो सकती है।

जय आपके टीम के लोगों में इस तरह की मानसिकता पैदा होगी तो वे एक दूसरे के साथ भच्छे से मिलकर काम भी कर पाएंगे और वे अपने विचारों को खुलकर सबके सामने रख भी पाएगे। अब सवाल यह है कि किस तरह से आप इस तरह की मानसिकता को अपनी टीम में ला सकते हैं।

इसके लिए आप अपनी टीम के साथ बैठकर ब्रेन स्टार्मिंग कर सकते हैं। हर व्यक्ति से एक टापिक के ऊपर उसकी राय लीजिए। इस तरह से जब सारे लोग बहस करेंगे, तो वे एक दूसरे की बात को सुनने लगेंगे। या फिर अगर आपको टीम में कुछ इस तरह के लोग हैं जो कम बोलते हैं या अपने विचारों को सबके सामने रखने से डरते हैं, तो आप अपने टीम के लोगो से कह सकते हैं कि ये अपने आइडियाज़ को लिखकर एक डब्बे में डाल दें। इसके बाद आप उस डब्बे में से एक एक आइडिया को निकालिए और उसे पढ़कर सबके सामने रखिए। इस तरह से किसी को यह नहीं पता लगेगा कि किसने क्या कहा, लेकिन सबको सबके आइडिया के बारे में जरूर पता लग जाएगा।

अपने काम पर जब आप अच्छे से अपनी बात को कह पाते हैं, तो आप अपने काम से अच्छे रिश्ते बना पाते हैं।

आज के वक्त में हम अपने आफिस में अपने साथ काम करने वाले लोगों को फीडबैक देने से बहुत घबराते हैं। अगर हमें किसी व्यक्ति से कुछ समस्या है, तो हम उसे खुलकर

बता नहीं पाते जिससे हमारे अंदर उस बात को लेकर तनाव बढ़ता जा रहा है।

इस समस्या से निकलने के लिए आप स्टेफोर्ड बिजनेस स्कूल की सलाह को अपना सकते हैं। आप अपने साथ काम करने वाले व्यक्ति से कह सकते हैं – जब तुम ऐसा करते हो तो मुझे ऐसा महसूस होता है। एक्जाम्पल के लिए अगर आप किसी व्यक्ति को कुछ समझा रहे हैं और वो आपकी बात को बीच बीच में काट दे रहा है, तो आप उनसे कह सकते हैं – जब तुम मुझे काटते हो, तो मुझे चिढ़ होती है।

इस तरह से आप अपनी भावनाओं को बगल पाते हैं। रखकर अपनी बात को साफ साफ कह सकते है। इसका नतीजा यह होता है कि आप सामने वाले से साफ साफ बात कर

लेकिन आज के वक्त में हम ज्यादातर बात मैसेज के जरिए करते हैं। हम चैट करते हैं या फिर ईमेल करते हैं। इसमें सिर्फ हगारे शब्द सुनाई देते हैं, हमारे भाव नहीं दिखाई देते, जिससे लोग अक्सर एक ही बात का अलग मतलब निकाल लेते हैं। असल जिन्दगी में जब आप मजाक करते हैं तो आप थोड़ा हँसते हुए उस बात को कहते हैं जिससे सामने वाले को बुरा नहीं लगता। लेकिन मेसेज़ में आप हँस नहीं सकते, जिससे सामने वाला आपके मजाक को दिल पर ले सकते है।

इस तरह के हालात से बचने के लिए अपने मैसेज में शब्दों का इस्तेमाल सोच समझा कर करें। उसे बार बार पढ़िए और यह जानने की कोशिश कीजिए कि किस बात का

लोग गलत मतलब निकाल सकते हैं। इसके बाद उसमें सुधार कीजिए। अगर आप मज़ाक भी कर रहे है एक इमोजी का इस्तेमाल कीजिए, जिससे आपकी बात को समझा जा

सके।

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