लेखक के बारे में
स्टीफेन रोगेलबर्ग (Steven G. Ragelberg) यूएनसी सालाट के चांसलर प्रोफेसर हैं। वे मार्गनाइज़ेशनल साइंस, मैनेज़मेंट और साइकोलाजी के प्रोफ़ेसर हैं। इसके अलावा वे आर्गनाइजेशनल
साइंस के साइरेक्टर भी हैं।
यह किताब आपको क्यों पढ़नी चाहिए
चाहे आप एक कर्मचारी हों या फिर एक मैनेजर, अगर आप एक बड़ी कंपनी के लिए काम करते हैं तो आप ने एक मीटिंग जरूर अटेंड की होगी। ऐसे में शायद आपके दिमाग में भी यह खयाल आया होगा कि आखिर इन मीटिंग्स कि क्या फायदा होता होगा। शायद आप भी यह सोचते होंगे कि इससे बचने का कोई तरीका मिल जाए।
यह किताब बताती है कि किस तरह से आप अपनी मीटिंग्स को बेहतर बना सकते हैं। यह किताब बताती है कि किस तरह से मीटिंग्स की वजह से देश का बहुत सारा पैसा और समय बरबाद जो रहा है। इस किताब किं मदद से हम जान पाएंगे कि कर्मचारियों का एंगेजमेंट और पर्मिस बढ़ाने के लिए आप क्या कर सकते हैं।
इसे पढ़कर आप सीखेंगे
सेटिंग्स को किस तरह से बेहतर बनाया जा सकता है।
कम समय तक मीटिंग करना किस तरह से फायदेमंद है।
किस तरह से आप अपनी टीम के लोगों को क्रीएटिव बना सकते हैं।
मीटिंग करने में लोगों का बहुत सारा समय बरबाद होता है और इसका कोई फायदा नहीं होता है।
अमेरिका में हर रोज लगभग 5 करोड़ से ज्यादा मीटिंग्स होते हैं। एक आम कर्मचारी अपना ज्यादातर समय मीटिंग्स में ही बिताता है और इन मीटिंग्स का कोई फायदा नहीं होता है। 1976 में अमेरिका के सारे कर्मचारी एक दिन में 1 करोड़ से ज्यादा बार मीटिंग्स करते थे और हाल में ही किए गए सर्वे से यह पता लगा कि अब सारे कर्मचारी 5
करोड़ से ज्यादा मीटिंग्स करते हैं। 40 सालों में हम 5 गुना ज्यादा मीटिंगस करने लगे है और यह सख्या कम होने का नाम ही नही ले रही है। एक हफ्ते में एक आम कर्मचारी 6 से 8 बार और एक मैनेजर 12 बार मीटिंग करता है। हार्वर्ड और कोलंबिया यूनिवर्सिटी की स्टडी में यह बात पता लगी कि एक सीईओ अपना 60% समय तो सिर्फ मीटिंग्स में बिता देता है। अगर एक कर्मचारी महीने के र50,000 कमा रहा है और महीने में 25 दिन और एक दिन में 8 घंटा काम करता है, तो वो एक घंटे के 1250 कमा रहा है। हर बार जय एक कर्मचारी एक घंटा मीटिंग में बरबाद करता है, तो कपनी को इतने रुपए का नुकसान हो रहा होता है। अब अगर करोड़ों
लोग हर रोज करोड़ों मीटिंग में जा रहे हैं, तो आप कैल्कुलेट कर सकते हैं कि इससे देश को कितने खरबों का नुकसान होता होगा।
जेराक्स नाम की एक कंपनी में 24.000 लोग काम करते हैं और उसे हर साल 10 करोड़ डॉलर का नुकसान हो रहा है। कुछ लोगों का कहना है कि अमेरिका को इन मीटिंग्स से 1.4 अरब डॉलर का नुकसान हो रहा है जो कि अमेरिका के जीडीपी का 8% हैं।
मौटिंग्स में इतना ज्यादा समय और पैसा बरबाद करने के बाद मी लगभग 69% लोग कहते हैं उन्हें मीटिंग्स करने का कोई फायदा नहीं दिखाई देता। दूसरे कुछ सर्वे में यह पता लगा कि आधे से ज्यादा लोग तो मीटिंग से नफरत करते हैं। वे कहते हैं कि वे सब कुछ कर सकते हैं लेकिन मीटिंग्स नहीं।
इन सभी बातों से यह साफ हो जाता है कि मीटिंग्स के लिए हमें कुछ तो करना होगा।
एक महान लीडर वो होता है जो कि अपने काम की जिम्मेदारी लेता है।
एक मीटिंग को आर्गनाइज़ करने वाला व्यक्ति ही अक्सर कंपनी का लीडर होता है। मीटिंग में लीडर ही सबसे ज्यादा बातें करता है और यही वजह है कि उसे लगता है
मीटिंग्स का बहुत फायदा होता है। जो भी व्यक्ति एक मीटिंग को लीड करेगा, वो मीटिंग के बारे में पाजिटिव सोचेगा। लेकिन जो लोग मीटिंग में जाकर बैठते हैं और जिन्हें बोलने का मौका नहीं मिलता. वे लोग उससे ऊब जाते हैं और उन्हें मीटिंग का कोई फायदा नहीं दिखता। ज्यादातर लीडर्स को यह लगता है कि वे बहुत अच्छे लीडर हैं और वे बहुत अच्छा बोलते हैं। लेकिन यह सच नहीं है। अगर आपको वाकई जानना है कि आप कैसे लीडर हैं,
तो आपको अपने कर्मचारियों से फीडबैक लेना होगा।
फीडबैक लेने के सिस्टम को वेट वाचर्स नाम की एक कंपनी से बहुत अच्छे से अपनी कंपनी में लागू किया है। उन लोगों ने मीटिंग रूम के बाहर एक टच स्क्रीन लगा दिया है जिसमें कि एक कर्मचारी अपना फीडबैक दे सकता है। आप इमोजी की मदद से यह बता सकते हैं कि मीटिंग में जाकर आपको कैसा लगा। कपनी के लीडर्स अलग अलग तरीके इस्तेमाल कर के कर्मचारियों से मिलने वाले फीडबैक को सुधारने की कोशिश करते रहते हैं।
एक्जाम्पल के लिए एक बार उन्होंने मीटिंग रूम में वाइटबोर्ड लगा दिया। इससे उन्होंने देखा कि कर्मचारियों की असंतुष्टि 44% से 16% पर आ गई। इसी तरह से वे अपनी मीटिंग में अलग अलग तरीकों का इस्तेमाल करते रहते हैं और यह देखते हैं कि क्या करने से उन्हें ज्यादा पाजिटिव रेटिंग मिली।
लीडर्स खुद को एक सर्वेट लीडर बना कर अपनी मीटिंस को बेहतर बना सकते हैं। एक सर्वेट लीडर वो होता है जो कि अपनी टीम के हर व्यक्ति की जरुरत को पूरा कर के
उन्हें पहले से बेहतर बनाने की कोशिश करता है। एक सर्वेट लीडर बनने के लिए आपको दूसरों की मदद करनी होगी और दूसरों के साथ जानकारी को बाँटना होगा।
मीटिंग्स के दौरान आपको यह देखना होगा कि समय का इस्तेमाल सही से हो रहा है या नहीं। अगर बातें टापिक से हट रही हैं तो आपको उने वापस टापिक पर लाना होगा। आपको मीटिंग को उसके एजेंडा के हिसाब से लेकर जाना होगा। अगर कोई भी व्यक्ति किसी बात से सहमत नहीं हो रहा है, तो आपको उसकी बात सुननी होगी। आपको हर किसी को बोलने का मौका देना होगा। आपको इस तरह का माहौल बनाना होगा जहां पर हर कोई खुलकर अपने विचारों को सबके सामने रख सके और एक दूसरे से असहमत हो सके। इस तरह से आप एक सर्वेंट लीडर बन सकते हैं।
आप मीटिंग्स को कम समय तक के लिए रखकर उसकी पर्फार्मेंस को बढ़ा सकते हैं।
मीटिंग्स बहुत सारा समय खाती है, यह तो हम पहले ही देख चुके है। इस सबक में हम यह देखेंगे कि किस तरह से मीटिंग्स को हम कम समय में ही पूरा कर के उससे ज्यादा नतीजे पा सकते हैं। यह समझने के लिए हमें सबसे पहले पार्किन्सन्स ला के बारे में जानना होगा।
पार्किन्सन्स ला का कहना है कि आपके पास एक काम को पूरा करने के लिए जितना ज्यादा समय होगा, आप उस समय को उतने सगय में पूरा करेंगे। अगर आपको मीटिंग करने के लिए 1 घंटे का समय दिया जाए, तो आप घंटे में अपनी बात कहेंगे। लेकिन जब आपको सिर्फ 15 मिनट दिया जाता है, तो आप वही काम सिर्फ 15 मिनट में कर के दिखा देते हैं।
पार्किन्सन्स ला का इस्तेमाल नासा के साइंटिस्ट भी करते है और स्टेट्स भी करते हैं। वे खुद को एक काम पूरा करने के लिए कम समय देते हैं और उसी समय में वो काम कर के दिखा देते हैं।
आप भी अपनी मीटिंग का एक खास समय तय कीजिए। मीटिंग बुलाने से पहले आप यह तय कीजिए कि आपके गोल्स क्या है, आप किस बारे में बात करने वाले हैं. कितने और कौन से लोग इस मीटिंग में शामिल होंगे और कब तक यह मीटिंग चलने वाली है। इसके बाद आप अपनी मीटिंग को एक अजीब से समय पर शुरू कर दीजिए। एक्जाम्पल के लिए टाइनीपल्स नाम की एक रीसर्च फर्म अपनी मीटिंग्स को सुबह 5:48 पर शुरु करते हैं। ऐसा करने से मीटिंग में कभी कोई लेट नहीं होता।
इसके अलावा आप अपनी मीटिंग्स को सिर्फ 15 मिनट लम्बा रखिए। इस तरह की मीटिंग्स को आप रोज रख सकते हैं और इसका नाम हडल्स रखा गया है। हडल्स का इस्तेमाल ओबामा एडमिनिस्ट्रेशन, एप्पल और डेल जैसी कंपनिया करती है। याहू की सीईओ को अपने मीटिंग्स को सिर्फ 10 मिनट लम्बा रखती है। इस तरह से वे पार्किन्सन्स लॉ का इस्तेमाल अच्छे से कर पाती हैं।
सिर्फ एक एजेंडा के होने से आप अपनी मीटिंग्स को बेहतर नहीं बना सकते।
हर कोई चाहता है कि उन्हें उनकी समस्या का एक आसान सा समाधान मिल जाए। इसी मानसिकता का इस्तेमाल कर के बहुत से लोग ग्राहकों को कोई बकवास सा प्रोडक्ट बेच देते हैं। वे बस दावे करते है कि उनका सामान सब कुछ ठीक कर देगा, लेकिन असल उनका प्रोदक्ट कुछ भी नहीं करता। वे उसे बेचकर पेसा कमा लेते हैं और अगली सुबह कहीं और चले जाते हैं।
एजेंडा भी कुछ इसी तरह से काम करते हैं। हमें लगता है कि सिर्फ एक एजेंडा के होने से हम मीटिंग्स को बेहतर बना सकते हैं और यही हमारी सबसे बड़ी भूल है। बहुत सारी
स्टडीज़ में यह देखा गया कि एजेंडा के होने या ना होने से मीटिंग की प्रोडक्टिविटी पर कोई असर नहीं पड़ता। इकोनमिस्ट की माने तो इसकी दो वजह हो सकती है
सबसे पहला तो यह कि एक कंपनी अपनी ज्यादातर मीटिंग्स में एक ही एजेंडा को बार बार इस्तेमाल करती है। इस वजह से लोग बोर हो जाते हैं और वो इसमें हिस्सा नहीं लेना चाहते। इसके अलावा अगर वै एक अलग तरह का एजेंडा तैयार करते भी हैं, तो वे उसे मीटिंग शुरू होने से पहले जल्दबाजी में बनाते हैं और उसके बारे में ज्यादा सोचते नहीं हैं। इसलिए हम जिस तरह से एजेंडा का इस्तेमाल कर के मीटिंग्स को बेहतर बनाने की कोशिश कर रहे हैं, यो तरीका काम नहीं करता और हमें एक बदलाव की जरूरत है।
मौटिंग्स को बेहतर बनाने के लिए आपको सबसे पहले यह तय करना होगा कि आप किस टापिक पर बात करने वाले हैं। इन टापिक्स को आप अपने मन से मत चुनिए, बल्कि अपने कर्मचारियों के मन से चुनिए। मीटिंग रखने के कुछ दिन पहले अपने सभी कर्मचारियों को एक ईमेल भेजिए और उनसे पूछिए कि मीटिंग में वे किस टापिक पर बात करना चाहेंगे। इसपर आपको बहुत से ईमेल मिल जाएंगे। फिर उनमें से कुछ टापिक्स को अलग कीजिए और उनपर बात करना शुरू कीजिए। रीसर्च में यह देखा गया है कि जब मीटिंग के पार्टिसिपेंट्स खुद से यह तय करते हैं कि उन्हें किस टापिक पर बात करनी है और मीटिंग में अपना योगदान देते हैं, तो वे मीटिंग में ज्यादा इट्रेस्ट लेते हैं।
एक बार आपको सारे टापिक के बारे में पता लग जाए, तो आप यह तय कर लीजिए कि किस टापिक पर आपको पहले बात करनी है और किंसपर बाद मे। क्योंकिं जिंस टापिक पर आप सबसे पहले बात करेंगे, लोग उसपर सबसे ज्यादा ध्यान देते हैं। मीटिंग की शुरुआत में सारे लोगों में एनर्जी भरी होती है और इसलिए आपको जरूरी टापिक्स के बारे में पहले और दूसरे टापिक्स पर बाद में बाद करनी चाहिए
अपनी मीटिंग को बेहतर बनाने के लिए उसमें कम से कम लोगों को बुलाइए।
मीटिंग में जब ज्यादा लोग हो जाते हैं, तो उन में से बहुत से लोग सिर्फ अपनी कुर्सी पर बैठकर दूसरे लोगों की बात सुन रहे होते हैं। कभी कभी तो वे सुनते भी नहीं कि वहाँ पर
क्या चल रहा है। वे बस अपने ही खयालों में खोए रहते हैं। इसका मतलब आपको सिर्फ उन्हीं लोगों को मीटिंग में बुलाना चाहिए जो वहाँ पर आने के लायक हों। ज्यादा लोगों को मीटिंग में बुलाने के बहुत से नुकसान हैं। जब बहुत से लोग मिलकर काम करने लगते हैं, तो उसमें एक व्यक्ति कम मेहनत करने लगता है। ग्रुप में काम करने पर लोग काम जिम्मेदारी लेने लगते हैं क्योंकि उनके दिमाग में यह चलता है कि सारा काम वे ही क्यों करें। बहुत बार वे अनजाने में ही कम एफर्ट लगाकर काम करन लगते
हैं। इसका मतलब जितने ज्यादा लोग होंगे, हर कोई उतना कम योगदान देगा।
साथ ही जब बहुत से लोग मौजूद होते हैं, तो हमारे काम करने की और फैसले लेने की काबिलियत भी कम होने लगती है। बेन एन्ड कंपनी नाम की एक कंसल्टिंग फर्म ने यह देखा कि जैसे जैसे एक मीटिंग में लोगों की संख्या बढ़ती जाती थी, वैसे वैसे उनके फेसले लेने की ताकत कम होती जा रही थी।
तो आखिर कितने लोगों के होने से एक मीटिंग से हम ज्यादा से ज्यादा पफ्फाेस पा सकते हैं? जॉन केल्लो एक गैनेजमेंट कंसल्टेंट हैं और उनका मानना है कि एक मीटिंग में सिर्फ 7 लोगों को होना चाहिए। इसके बाद जितने ज्यादा लोग बढ़ते जाएंगे, लोगों की प्रोडक्टिविटी उतना कम होती जाएगी। सात लोगों को बाद हर एक व्यक्ति के बड़ने से लोगों के फैसले लेने की ताकत 10% से कम हो जाती है। जितने ज्यादा लोग होंगे, उतने ज्यादा विचार होंगे। ज्यादा विचारों के बीच में उलझ कर हम अच्छे फैसले नहीं ले पाते हैं।
मीटिंग्स में लोग अक्सर अपनी बात को खुलकर नहीं कहते जिससे कंपनी को बहुत नुकसान हो जाता है।
बहुत बार आप ने देखा होगा कि कामयाब कंपनियां कुछ ऐसे प्रोडयर मार्केट में लेकर आती है जो कि बहुत बुरी तरह से नाकाम हो जाते हैं। नई कंपनियां यह गलती करें तो समड़ा में आता है, लेकिन कामयाब कपनिया इस तरह क्यों काम कर रही है, जबकि उनके पास सब कुछ है? इसका जवाब है उनकी खराब मीटिंग्स। अक्सर यह देखा गया है कि लोग मीटिंग्स के वक्त अपने गन की बात को लोगों के सामने लाकर रखने से कतराते हैं। एक स्टडी में एक ग्रुप के लोगों को एक समस्या सुलझाने के लिए दी गई। ग्रुप के कुछ लोगों को समस्या से संबंधित बहुत खास बात बताई गई थी, जो कि दूसरे लोगों को नहीं बताई गई थी। उस खास बात की मदद से
ही समस्या का सबसे अच्छा समाधान खोजा जा सकता था। इस तरह से अगर ग्रुप के सारे लोग एक दूसरे से बात कर के अपने आइडियाज़ को बाँटेंगे. तो वे सबसे अच्छा
समाधान खोज पाएंगे। लेकिन हर बार लोग अपनी बात को सबके सामने नहीं रखते थे। इस वजह से वे कभी उस समस्या का कारगर समाधान नहीं खोज पाते थे।
यह स्टडी 65 से ज्यादा बार दोहराई गई है और हर बार हमें यही ततीजा देखने को मिलता है। ग्रुप के जिन लोगों को समस्या से सबंधित खास बात बताई जाती थी, वे उस खास बात को सबके सामने लाकर नहीं रखते थे। यही उन कामयाब कंपनियों के साथ भी होता है। वहाँ के कर्मचारी अपनी पुरी जानकारी को नहीं बाँटते जिससे कंपनी खराब फैसले ले लेती है।
इस समस्या से निकलने के लिए हमारे पास एक तरीका है जिसका नाम है – ब्रेनराइटिंगा लोगों को सबके सामने बोलने में परेशानी होती है, लेकिन वे अपने विचारों को लिख जरूर सकते हैं। अपने कर्मचारियों से कहिए कि वे एक कागज़ पर अपने विचारों को लिखकर एक डब्बे में डाल दें। इसके बाद आप उन सारे विचारों को पहिए और एक फैसला लीजिए। इस तरह से हर किसी के विचार आपके पास आ जाएंगे और लोगों को अपनी बात खुलकर कहने में कोई परेशानी भी नही होगी।
ब्रेनाइटिंग एक बहुत ही कामयाब तरीका है। एक स्टडी में देखा गया कि इसके इस्तेमाल से लगभग 42% ज्यादा नए आइडियाज़ निकलकर सामने आते हैं।
अपनी मीटिंग्स का वातावरण पाजिटिव बनाकर रखने की कोशिश कीजिए।
आप यह बात अच्छे से जानते होंगे कि खराब मूड में होने से हम अपने काम को बेहतर तरीके से नहीं कर पाते हैं। आप ने शायद यह भी महसूस किया होगा कि जब आपके
पास कोई ऐसा व्यक्ति आकर बैठ जाता है जिसका मूड खराब होता है, तो आप भी उदास हो जाते हैं। इसका मतलब साफ है कि सराब मुड़ में होना आपके लिए और आपके आस पास के लोगों के लिए नुकसानदायक है। मीटिंग्स में नेगेटिविटी के मौजूद होने से वहाँ के लोग अच्छे से काम नहीं कर पाते हैं। इसके अलावा जब आप अच्छे मूड में होते हैं तो आप काम को अच्छे से कर पाते हैं। जब आपके आस पास के लोग हँसते खेलते रहते हैं, तो वे आपकी ज्यादा मदद करते हैं। इससे लोग खुलकर बातें भी कर पाते हैं जिससे कि टीम की पर्मिस बढ़ जाती है।
इस तरह का माहौल बनाने के लिए आपको अपनी मीटिंग का माहौल पाजिटिव बनाना होगा। इसके लिए आप बहुत से छोटे छोटे तरीकों को अपना सकते हैं। आप मीटिंग से पहले रुम में कुछ म्यूजिक बजा सकते हैं। जो भी व्यक्ति सबसे पहले कमरे में आए, आप उससे पूछिए कि उसका मतपसंद आर्टिस्ट कोन है और फिर आप उस आर्टिस्ट के गाने लगाइए।
इसके अलावा आप अपने लोगों के लिए कुछ स्वादिष्ट खाने का भी इंतजाम कर सकते हैं। इससे उनका मूड ठीक हो जाता है। अत में आप चाहें तो लोगों के लिए कुछ खिलौने भी रख सकते हैं। या फिर कुछ छोटे छोटे पज़ल भी रख सकते हैं। इन सभी तरीकों से आप अपने लोगों के मूड को ठीक कर सकते हैं और उन्हें मीटिंग में अपनी बात खुलकर कहने के लिए तैयार कर सकते हैं।