SHOE DOG by Phil knight.

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Phil Knight ने अपने सफर की शुरुआत एक क्रेजी आईडिया से की थी

क्या आपको Nike की टैग लाइन याद है? अगर नहीं याद है तो याद कर लीजिये. टैग लाइन है ‘जस्ट दुइट’

इस टैग लाइन से ही इस कम्पनी के संस्थापक की डेयरिंग स्किल्स का आपको पता चल गया होगा. इस समरी से आपको उनके पूरे सफर के बारे में पता चलेगा आपको ये भी पता चलेगा कि केसे Phil knight ने जीरो से शुरुआत की और फिर सक्सेसफुल बिजनेसमैन के रूप में खुद को स्थापित भी किया

इस समरौ में आप Phil Knight के सफर से तो रूबरू होंगे ही, साथ ही साथ आप कई स्किल्स भी सौखेंगे इन स्किल्स की मदद से आप भी अपने बिजनेस को सफलता की

उचाईयों तक ले जा सकते हैं,

बात साल 1962 की है. जब Phil Knight ने बिजनेस स्कूल से अपनी पढ़ाई पूरी की थी. वो काफी शर्मीले स्वभाव के हुआ करते थे.

लेकिन उन्होंने अपने स्वभाव को अपने सपने के बीच में आने नहीं दिया फिल जापान के रनिंग शूज को अमेरिका में इम्पोर्ट करना चाहते थे. इसी के साथ उनकी नज़र टाइगर ब्रांड पर थी. जिसे जापान की कम्पनी बनाया करती थी

स्टेफोर्ड बिजनेस स्कूल में पढ़ाई के दौरान ही उन्हें ये आइडिया आया था. उस समय ना ही उनके दोस्त या प्रोफेसर यहां तक कि उनके पिता ने भी भरोसा नहीं किया था. लेकिन इस बात से फर्क फिल को नहीं पड़ा और वो लगातार अपने कांसेप्ट के साथ लोगों से मिलते रहे. इसी क्रम में एक दिन वो समय भी आ गया जब ओनिटसुका के सीईओ ने फिल से कहा कि वो अपनी कम्पनी का नाम क्या रखने वाले हैं.

उस समय फिल को कुछ भी समझ नहीं आ रहा था. उन्होंने हड़बड़ी में एक नाम बता दिया ये नाम था ब्लू रिवन, ओनिंट्सुका से 300 पेयर टाइगर शूज की डील होने के बाद फिल ने पूरी दुनिया की यात्रा की, इस यात्रा के दौरान उन्हें कई अच्छे और इंस्पिरेशनल एक्सपीरियस भी हुए थे,

Phil Knight के पूर्व रनिंग कोच ने शुरुआती दौर के शूज को मॉडिफाई किया था. सभी की ज़िन्दगी में कोई ना कोई होता है जो उसे प्रेरणा देता है. फिल की जिंदगी में भी ऐसे एक शख्स थे. ये शख्स कोई और नहीं बल्कि उनके रनिंग कोच बिल बोवरमेन थे. फिल के आईडिया को बिल बोवरमैन का अप्रूचल मिल गया था. बिल के अप्रूवल के बाद से ही फिल के अंदर पॉजिटिव एनौं भी आ गई थी. बिल बोयरमेन ‘शू डॉग’ थे.

अब आपके मन में सवाल आया होगा कि सूडाँग क्या होता है? शुडॉग उस इंसान को कहा जाता है. जिसे शु इंडस्ट्री के बारे में सब कुछ पता होता है. जिसे शूज के बारे में सारी

जानकारी होती है. बिल हमेशा शूज में छोटे-छोटे बदलाव करते रहते थे. इन एक्सपेरिमेंट्स को वो सिर्फ इसलिए करते थे कि शूज खिलाड़ियों के लिए ज्यादा कम्फर्टेबल बन

सकें. इसलिए उन्हें इस इंडस्ट्री का शूज डाँग कहा जाता था.

बिल का प्राइमरी गोल शूज को हल्का बनाना होता था. बाद में यही नाईकी कम्पनी का ट्रेड मार्क फीवर भी बन गया था. अब आते हैं मेन कहानी पर, जब फिल जापान से लौटे तो उन्होंने बिल को ब्लू रिबन कम्पनी में पार्टनरशिप ऑफर की, बिल ने हाँ भी कर दी उनकी हा से फिल के अंदर गज़ब का कॉन्फिडेंस आया था

फिल को इस बात का भरोसा हो गया था कि उनका क्रेजी आईडिया कुछ ना कुछ बड़ा करने ही वाला है,

फिर से समय ने कुजी का खेल किया. जब ब्लू रियन की शुरुआत ही चल रही थी तभी बिल का कोचिंग करियर भी चल निकला. वो फ्यूचर के ओलम्पिक के एथलीट्स को भी कोचिंग देने लगे थे बिल स्टार रनर्स को टाइगर शूज ही रीकमेंड करते थे. उनके रीकमडेशन से फिल के शूज की सेल्स भी बढ़ गई थी.

ब्लू रिबन की ट्रस्ट वर्दी टीम

जैसे-जैसे ब्लू रिबन बढ़ रहा था. फिल ने भी अपने चारों तरफ भरोसेमंद लोगों को रखने की शुरुआत कर दी थी, ब्लू रिबन में काम करने वाले लोगों की एक खासियत थी कि वो नॉर्मल कॉर्पोरेट वर्कर की तरह नहीं थे. उनको आप टैलेंटेड मिस फिट लोग भी कह सकते हैं. वो सभी लोग साथ में इतना बढ़िया काम करते थे. शायद, इसके पीछे का कारण भी यही था कि वो लोग मिस फिट थे, एक दूसरे के काम की कद्र करना उन्हें अच्छे से आता था. कोई भी आदमी किसी दूसरे की तरक्की से जलता नहीं था. सभी की कोशिश रहती थी कि वो सामने वाले की और आगे बढ़ने में मदद कर सके.

ब्लू रिबन के जितने भी कर्मचारी थे सभी को फिल की विजन पर भरोसा था. ब्लू रिबन की टीम को मज़बूत बनाकर रखने के लिए फिल भी कई जतन किया करते थे. फिल

बीच-बीच में एक सेशन का आयोजन करते थे. इस सेशन को उन्होंने ‘बटफेसका नाम दिया था,

जब हर दिन के काम की बात आती थी तो फिल जनरल पेटन की बात को फॉलो किया करते थे. जनरल कहा करते थे कि कर्मचारी को ये मत बताओ कि केसे करना है? बल्कि उन्हें ये बताओ क्या करना है? विश्वास मानो तुम रिजल्ट से चौक जाओगे

फिल ने अपनी टीम को कभी नहीं बताया कि उन्हें काम कैसे करना है. फिल ने अपनी टीम पर हद से ज्यादा भरोसा जताया था, जब कभी कम्पनों के लिए कोई बड़ा फैसला लेना होता था. हमेशा फिल टीम के सभी मेम्बर्स को शामिल किया करते थे.

जब साल 1971 में कम्पनी ने ये फैसला किया कि अब वो खुद का एक बाद तैयार करेगी. ब्लू रिबन का नाम अब उनके लिए सही नहीं है. तब फिल ने टीम से नए नाम सजेशन

मांगा था. तभी जेफ जॉनसन ने NIKE नाम का सुझाव दिया था.

आपने एक बात सुनी होगी कि फेम पाने के लिए जी तोड़ मेहनत करनी पड़ती है. इसी के साथ अगर आप कभी किसी बड़े बिजनेसमैन से मिले हों तो आपको ये भी पता चला होगा कि उनकी सोच भी इसी के इर्द गिर्द घूमती है.

कई बड़े बिजनेसमैन का ये मानना भी होता है कि किसी भी अच्छे काम में लाखों रुकावटें आती हैं. फिल के सफर के आगे भी दो बड़ी मुसीबतों ने डेरा डाला हुआ था

पहली मुसीबत साल 1973 में ओनिट्सुका कम्पनी के द्वारा लायी गई थी. कम्पनी ने ब्लू रिबन के ऊपर लागत को लेकर मुकदमा दायर करने की कोशिश की थी. इस मुसीबत से भी फिल ने काफी हिम्मत के साथ लड़ा था फिल को हमेशा से भरोसा था कि उनके प्रोडक्ट में इतना दम है कि उनके ग्राहक उनका साथ कभी नहीं छोड़ने वाले हैं.

इसके बाद फिल के ऊपर दूसरी मुसीबत साल 1977 में आई जब सरकार ने ये दावा किया कि Nike के ऊपर हाई करोड़ डॉलर बकाया है. यह परेशानी तब शुरु हुई जब अमेरिका में नाइक के कॉम्पिटिटर केडस और कचर्स ने मिलकर काम करना शुरु किया था.

एक अनक्लियर कस्टम ड्यूटी कानून को उजागर किया, जिसे American Selling Price Law कहा जाता है. उन्होंने ये आरोप लगाया था कि Nike कंपनी ने इस नियम का उलंघन किया है. उन्होंने सरकार के ऊपर Nike के ऊपर एक्शन लेने का दबाव बनाया था उस कठिन दोर में भी फिल को ये भरोसा था कि Nike हार नहीं मानेगी उनको अपने काम के ऊपर खुद से भी ज्यादा भरोसा था फिल ने विश्वास के साथ काम करने को ही अपना लक्ष्य बनाया और आगे बढ़ने का फैसला किया था.

Nike के सफलता के पीछे Phil Knight का जुनून ही है

अगर आप Nike के सफर को देखेंगे तो आपको पता चलेगा कि ये कम्पनी आन जहाँ है, वहां तक पहुँचने के लिए इसे कई सारी मुसीबतों का सामना करना पड़ा है. टॉप तक पहुँचने से पहले फिल को कई सारी कठिनाइयों का सामना करना पड़ा था. उन मुसीबतों का सामना फिल ने अपने जये से ही किया था. अब आपके मन में सवाल आ रहा होगा कि Nike की सफलता के पीछे का राज़ क्या है?

आपको बता दें कि इस पूरे सफर के दौरान फिल को ये नहीं मालूम था कि जीत का मतलब क्या होता है? लेकिन उन्हें ये मालुम था कि उन्हें हारना नहीं है.

फिल हमेशा से ये सोचते थे कि काम मीनिंगफुल होने के साथ-साथ प्ले फुल भी होना चाहिए. उनकी इस सोच से उन्हें ताकत मिला करती थी. जब भी पिल के सामने कोई चौती आती थी. उनको उनका लक्ष्य दिखने लगता था. अपने लक्ष्य के प्रति ईमानदारी और प्रतिबद्धता ही वो चीज़ थी जिसमे Nike को आज इस मुकाम पर लाकर खड़ा कर दिया है.

इसके साथ ही रहे कुछ फाइनेंशियल प्रॉब्लम भी थीं. इसके समाधान के लिए उन्होंने सोचा था कि Nike को पब्लिक के बीच में लेने से उनकी इस दिक्कत का समाधान हो जाएगा.

अगर हम मिलाजुला कर बतार तो फिल एक मोटो के साथ काम करते थे वो मोटो येथा कि या तो काम करो या तो मर जाओ जब आप किसी काम को इतनी शिस्त से करेंगे तो आपको सफलता मिलेगी ही, सफलता के लिए अगर आपको कुछ करना है तो बस अपने काम के प्रति ईमानदारी और शिहत लेकरमा जाडा

फिल का एक मोटो और था. ये मोटो था कि जो भी पैसा बिजनेस से आएगा उसे बिजनेस में ही लगा दिया जाएगा. इसके साथ ही साथ फिल अपने यहां काम करने वालों को भी अच्छी सेलरी

दिया करते थे. अचछी सैलरी देने के कारण फिल केएमलाइन भी अपना शत प्रतीशत कामको दिया करते थे.

इस तरह की फाइनेंशियल स्ट्रेटजी का मतलब था कि फिल अपने बिजनेस के लिए बैंकों पर काफी हद तक आश्रित थे लेकिन अधिकत्तर बैंक फिल को बड़ा लोन देने से मना कर देते थे उस दौर में जापान की ट्रेडिंगकम्प्नी निशो ने Nike की काफी हद तक मदद की थी.

आज के दौर में जब Nike दुनियाभर में सबसे सफल काम्पनियों में से एक है. इसके पीछे का श्रेय फिल की काबिलियत और उनकी पूरी टीम की मेहनत को ही जाता है

Nike ने लगातार फेकटी वर्किंग कंडीशन पर काम किया है, खुद को इनोवेट किया है, शुरु से ही फिल भर Nike कम्पनी के एम्प्लाइज का उद्देश्य था कि वो ग्राहकों को बेहतर सुविधा दे सकें. उन सबके लिए ग्राहक से बढ़कर कोई भी नहीं था. यहीं से उनके अंदर कई खूबियों का जना भी हुआ था

बाज़ार में मौजूद कई सारी कम्पनियों में से Nike में ऐसी कोन सी खूबी थी जो उसे वाकियों से अलग करती थी? वो खूबी थी ग्राहकों का विश्वास जीतना Nike ने शुरु से ही रो कोशिश की थी वो

ग्राहकों के विश्वास को जीत सके

ग्राहकों के साथ-साथ Nike अपने लेबस के लिए भी बेहतर वर्किंग माहौल बनाने के लिए काम करती रहती है, कम्पनी समय-समय पर खुद के अदर इनोवेट करती रहती है. Nike अब अपने कारखाने के श्रमिकों के लिए बेहतर लेबर स्टैण्डर्ड स्थापित करने के लिए कड़ी महनत कर रही है. नब्बे के दशक में, एशियन स्वीट शॉप की एक रिपोर्ट आई थी. जिसमे कंपनी श्रम मानक पर कम्पनी की रेटिंग अच्छी नहीं थी. इसके बाद से ही कम्पनी ने अपने अंदर कई बदलाव किये थे.

हुन सबके अलावा Nike ने अपने वर्कर्स की सेलरी कैसे बढ़ाई जाए, इसके ऊपर भी काफी ज्यादा काम किया था कम्पनी की हमेशा से कोशिश रही है कि उनके वर्कर्स को अच्छी सैलरी मिल

सके. अपने चर्कर्स के लिए Nike कम्पनी हमेशा ही खड़ी रहती है,

एक वाकया तो ऐसा भी है कि एक देश के सरकारी आधिकारी ने यहां तक कह दिया था कि अगर आप अपने वर्कर्स को डॉक्टर से ज्यादा पोट देने लगेंगे तो ये अर्थव्यवस्था के लिए अच्छा नहीं होगा.

लेकिन इस तरह शर्मनाक बयान के बाद, फिल और उनकी टीम को पता था कि उन्हें कड़ी मेहनत करनी होगी.

कारखानों की स्थति में सुधार के लिए कंपनी ने जो पहला बहुत बड़ा अविष्कार किया था उसका नाम था वॉटर बेस्ट बॉन्डिंग एजेंट, कारखानों था मरम्मत के लिए ये एक बहुत बड़ा अविष्कार

Nike कंपनी का शुरू से ही एक मोटो रहा है कि अपने काम को इंटे प्रिटी से करना. अपनी फैक्ट्री में सुधार के बाद कंपनी ने अपने ग्राहकों से रिलेशनशिप मेंटेन करने पर काम किया था. कंपनी अपने ग्राहकों को बस सामान बेचने के लिए ही नहीं यूज़ करती थी, बल्कि कपनी का मोटिव हुआ करता था कि वो ग्राहकों को ऑपरर सैल्स सर्विस भी दे सक

कस्टमर के साथ कंपनी के रिलेशन इतने अच्छे थे कि जब फिल के बेटे की मौत हुई थी. तब कंपनी से जुड़े हुए सभी एथलीट्स ने खत लिखकर सांतवना प्रकट की थी.

अगर पूरी बात को संक्षेप पर खत्म की जाए तो यही होगी कि Nike जैसी कम्पनी ग्लोबल स्तर में बहुत कम ही देखने को मिलती हैं.

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