SMARTER FASTER BETTER by Charles duhigg.

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Book Summary

About the Book

Frozen फ़िल्म एक ब्लॉकबस्टर हिट कैसे बनी? ऐसी क्या खासियत है जो टोयोटा को इतनी सक्सेसफुल कंपनी बनाती है? General Electric के एम्प्लाइज की प्रोडक्टिविटी का राज़ क्या है? ये बुक इन सभी सवालों का जवाब देगी. ये बुक आपको क्लियर गोल्स सेट करना, अपने फोकस को बढ़ाना, टीम में क्रिएटिविटी और टीमवर्क को बढ़ावा देना सिखाएगी.

यह समरी किसे पढ़नी चाहिए?

  • मैनेजर और एम्प्लोई को
  • टीम के लीडर और मेंबर्स को
  • बिजनेसमैन को

ऑथर के बारे में

चार्ल्स डुहिग एक बेस्ट सेलिंग ऑथर और अवार्ड विनिंग जर्नलिस्ट हैं. उन्होंने The New York Times के रिपोर्टर के रूप में दस साल काम किया है. 2013 में उन्हें उनके बेहतरीन राइटिंग स्किल्स के लिए Pulitzer Prize से नवाज़ा गया था. इस बुक के अलावा, चार्ल्स ने "The Power of Habit" नाम की बुक भी लिखी है.

इंट्रोडक्शन

इस बुक में आप ऐसे कई इम्पोर्टेन्ट कॉन्सेप्ट्स सीखेंगे जो आपकी टीम के पोटेंशियल और प्रोडक्टिविटी को बढ़ाकर उसे सक्सेस की ओर पुश करेंगा. इनमें इनोवेशन, पीपल मैनेजमेंट, गोल सेटिंग, फोकस, टीम वर्क और मोटिवेशन शामिल हैं, इसके साथ-साथ आप अपने स्किल को अपग्रेड करने के तरीके भी सीखेंगे.

आप टोयोटा ब्रांड के ट्रस्ट कल्चर और Frozen मूवी के पीछे की क्रिएटिविटी के दिलचस्प किस्सों के बारे में जानेंगे, आप General Electric से इफेक्टिव गोल सेटिंग और Google से बेहतरीन टीमवर्क के बारे में सीखेंगे. तो क्या आप खुद को और अपनी टीम को स्मार्टर, फास्टर और बेटर बनाने के लिए excited हैं? इसके लिए आपको सिर्फ़ इस बुक की ज़रुरत है.

Innovation

किसी भी इंसान के लिए क्रिएटिविटी का सबसे अच्छा मीडियम उसकी अपनी जिंदगी होती है. हमारे फीलिंग्स और इमोशंस हमारे पर्सनल एक्सपीरियस को इनोवेटिव प्रोडक्ट्स और आर्ट में री-क्रिएट यानी दोबारा बनाने में मदद करते हैं.

स्टीव जॉब्स ने एक बार कहा था कि क्रिएटिविटी का मतलब है कई अलग-अलग चीज़ों के बीच एक कनेक्शन बनाना. जब लोग इस बात पर ध्यान देते हैं कि चीजें उन्हें कैसा महसूस कराती हैं तो वो बेहतर और इनोवेटिव प्रोडक्ट्स बना पाते हैं. आइए इसे एक एग्ज़ाम्पल से समझते हैं. क्या आपने Frozen मूवी देखि है? कई लोगों की ये पसंदीदा फिल्मों में से एक है. लेकिन क्या आप इस कमाल की फ़िल्म के पीछे की कहानी जानते हैं?

जब Frozen मूवी का पहला ड्राफ्ट तैयार हुआ तो उसे पूरी टीम को दिखाया गया. ड्राफ्ट को देखने के बाद, फ़िल्म के डायरेक्टर क्रिस बक ने फीडबैक के साथ मीटिंग की. उस समय फ़िल्म की कहानी रिलीज़ की गई कहानी से काफी अलग थी. एक एक कर टीम मेंबर्स स्टोरी लाइन में खामियां निकालने लगे. ज़्यादातर कमियाँ इस बात से जुड़ी थी कि फिल्म में ज़्यादा भावनाएं शामिल नहीं थीं जिस वजह से उन्हें लग रहा था कि ऑडियंस को फिल्म से कोई कनेक्शन महसूस नहीं होगा. इसके अलावा भी कई छोटी मोटी कमियाँ थीं जिन्हें बदलकर फ़िल्म को और भी बेहतर बनाया जा सकता था.

इस नेगेटिव फीडबैक से बक को आश्चर्य नहीं हुआ. उनकी टीम अच्छे से जानती थी कि उस वक़्त फ़िल्म परफेक्ट नहीं बनी थी. लेकिन टीम के पास कहानी बदलने और फिल्म खत्म करने के लिए सिर्फ 18 महीने थे.

अब यहाँ बदलाव और इनोवेशन के साथ काम करने की एक प्रॉब्लम ये थी कि उन्हें एक डेडलाइन तक इसे पूरा करना था. इस बारे में टीम के बीच खूब चर्चा हुई, फ़िर फ़िल्म की एक राइटर जेनिफर ली ने सबसे कहा कि ये सोचना बंद करो कि क्या काम नहीं कर रहा है, इसके बजाय इस बारे में सोचना शुरू करो कि आप स्क्रीन पर क्या देखना चाहते हैं. कुछ मेंबर्स ने कहा कि ये फ़िल्म इसलिए exciting थी क्योंकि इसने दो स्ट्रोंग, इंडिपेंडेंट और स्मार्ट लड़कियों की कहानी से गर्ल पॉँवर को दिखाया था.

जहां लड़के नहीं बल्कि दो लडकिया हीरो थीं कुछ लोगों ने कहा कि ये इसलिए अच्छी फिल्म थी क्योंकि ये दो बहनों को साथ ले आई थी, इस तरह सोचने से लोग अपने पर्सनल एक्सपीरियंस जैसे भाई-बहन के साथ उनके रिश्ते या वो किस माहौल में बड़े हुए इन सबको याद कर नए नए आईडिया देने लगे.

एक ऐसी ही घटना थी जब Song राइटर बॉबी और क्रिस्टन लोपेज़ पार्क में टहल रहे थे. क्रिस्टन ने बॉबी से पूछा, "अगर तुम फ़िल्म के कैरेक्टर Elsa होते तो तुम्हें कैसा लगता जब लोग तुम्हें जज करते?" इस तरह के सवालों ने उन्हें अपनी खुद की जिंदगी की उन घटनाओं के बारे में सोचने पर मजबूर कर दिया जब लोगों ने उन्हें जज किया था.

सोचते-सोचते वो दोनों इस नतीजे पर पहुंचें कि किसी इंसान को परफेक्ट ना होने के लिए जज नहीं किया जाना चाहिए. Elsa में भी कई कमियाँ थी लेकिन इसके लिए उसे माफ़ी मांगने की कोई जरूरत नहीं थी, उस पर जादू का असर जिस पर उसका कोई कंट्रोल नहीं था, तो पूरी जिंदगी हर किसी से इतनी नफ़रत महसूस करने के बाद Elsa को क्या करना चाहिए?

इसका जवाब बड़ा ही गहरा है, उसे इन बातों को पकड़ कर रखने के बजाय बस जाने देना चाहिए. जिंदगी में "Let Go" का attitude होना बहुत ज़रूरी है नहीं तो आप कभी अपने बीते हुए कल से निकल कर आने वाले कल में कदम नहीं रख पाएँगे. इसलिए Elsa को भी किसी की परवाह नहीं करनी चाहिए. इन सब बातों पर गहराई से सोचने के बाद बॉबी और क्रिस्टन ने Frozen का फेमस थीम song "Let it Go" लिखा था, ये गाना कहानी के साथ इतना फिट बैठ रहा था कि इसे सुनने के बाद पूरी टीम ने अपने अपने पिछले एक्सपीरियंस को जोड़कर एक कमाल की कहानी तैयार की. जैसा कि हम सब जानते हैं कि Frozen एक इंटरनेशनल ब्लॉकबस्टर हिट साबित हुई. ये एग्ज़ाम्पल हमें दिखाता है कि लोग कैसे अपने पर्सनल एक्सपीरियंस और इमोशन का इस्तेमाल कर ज़्यादा क्रिएटिव और इनोवेटिव हो सकते हैं.

Managing Others

एक कंपनी के अंदर विश्वास का माहौल सक्सेस पाने के लिए बहुत ज़रूरी होता है. एक कंपनी का कल्चर उसकी स्ट्रेटेजी जितनी ही मायने रखती है. अगर एम्प्लोईज़ एक दूसरे पर भरोसा नहीं करते हैं तो चाहे कितना भी यूनिक और कमाल का प्रोडक्ट क्यों ना हो या चाहे कंपनी के कितने भी लॉयल कस्टमर क्यों ना बन जाएं वो भी कंपनी को फेल होने से नहीं रोक सकते. इसके साथ साथ ये भी बहुत ज़रूरी है कि प्रॉब्लम जिस लेवल पर है उसे उसी लेवल पर सोल्व करने की परमिशन दी जानी चाहिए.

टॉप लेवल के एम्प्लाइज नीचे के लेवल के प्रोब्लम को उतनी बेहतर तरीके से नहीं समझ सकते जितना उस लेवल के वर्कर्स समझ पाएँगे. इसलिए खुद प्रॉब्लम को सोल्व करने की बजाय बॉस को उन लोगों को ये ज़िम्मेदारी देनी चाहिए जिनके पास उसकी ज़्यादा नॉलेज हो. आइए एक एग्जाम्पल से इसे समझते हैं.

रिक मैड्रिड ने 27 साल फ्रीमोंट, कैलिफ़ोर्निया के General Motors plant में काम किया. फ्रीमोंट को दुनिया की सबसे खराब ऑटो फैक्ट्री के रूप में जाना जाता था. उस समय कंपनी का कल्चर इतना बिगड़ा हुआ धा कि वर्कर्स ने वर्किंग hour के दौरान ही पीना शुरू कर दिया था. सभी अपनी मनमानी करते थे. वर्कर्स जानते थे कि जब तक वो हर दिन के टारगेट को पूरा करते रहेंगे तब तक उन्हें कोई टोकने वाला नहीं है और वो किसी मुसीबत में नहीं पड़ने वाले.

रिक को अपनी जॉब पसंद नहीं थी, वो वहाँ सिर्फ पैसा कमाने के लिए रुका था. कार की क्वालिटी कैसी है इससे उसे कोई मतलब नहीं था. उसे तो बस ज़्यादा से ज्यादा कार बनाने से मतलब था.

काम के दौरान एम्प्लाइज जब किसी पार्ट में कोई गलती देखते तो उसे ठीक करने के लिए कन्वेयर बेल्ट को रोकते नहीं थे, बस उस पर एक मार्क लगा देते ताकि उसे बाद में रिपेयर किया जा सके. ऐसा इसलिए या क्योंकि सभी एम्प्लाइज को असेंबली लाइन रोकने से सख्त मना किया गया था. इस सिस्टम के साथ प्रॉब्लम ये थी कि रिपेयर करने के लिए पहले से बने बनाए पार्ट्स को तोड़कर, उसकी गलती ठीक कर उसे दोबारा जोड़ना पड़ता था. इस inefficient तरीके से बहुत समय और पैसा बर्बाद होता था. इसके साथ ही, कस्टमर के यूज़ करने के कुछ ही सालों बाद रिपेयर किया गया पार्ट एक बार फिर प्रॉब्लम का कारण बनने लगा था.

रिक मानना था कि वर्कर्स के साथ भी एक मशीन के पार्टस की तरह ही बर्ताव किया जा रहा था, वहाँ हर डिपार्टमेंट के लिए अलग अलग वर्कर्स मौजूद थे लेकिन मैनेजर ने कभी भी किसी एम्लोई के विचार नहीं पूछे या उससे कोई राय नहीं ली. जल्द ही, General Motors को फ्रीमोंट प्लांट को बंद करना पड़ा. दो साल बाद उसे दोबारा खोलने के लिए General Motors ने Japanese ऑटो मेकर टोयोटा के साथ पार्टनरशिप की, General Motors टोयोटा के बेहतरीन प्रोडक्शन सिस्टम के बारे में सीखना चाहता था, जो बहुत कम कॉस्ट में हाई क्वालिटी कार बनाया करती थी. तो वहीं दूसरी ओर, टोयोटा General Motors के माध्यम से अमेरिका में अपनी कार बेचना चाहता था.

जब General Motors दोबारा खोला गया तब रिक ने जॉब के लिए अप्लाई किया और उसे हायर कर लिया गया. टोयोटा प्रोडक्शन सिस्टम को देखने और समझने के लिए उसे जापान भेजा गया.

वाहारिक ने जो पहली बात देखी वो ये थी कि कार के किसी भी हिस्से में कोई भी गलती मिलने पर तुरंत कन्वेयर बेल्ट को रोक दिया जाता और उस गलती को उसी वक्त ठीक किया जाता था, वर्कर उस गलती पर काम करता और सीनियर मैनेजर उसके फ़ीडबैक लेने के लिए उसके पास खड़े रहते,

रिपेयर खत्म होने के बाद ही असेंबली लाइन को दोबारा चालू किया जाता था. अगली बात जो राखी ने देखीं दो ये थी कि एक वर्कर खुलकर अपनी राय या किसी मशीन और टुल के बारे में मैनेजर को बताता था. एक डिजाईन को पूरा करने के लिए वो साथ मिलकर काम करते थे. वहाँ वर्कर की दी गई राय को सुना जाता था. रिक को बताया गया कि प्रॉब्लम को हमेशा उन लोगों को सोल्व करने देना चाहिए जो उसके साथ काम करते हैं यानी जो उसके सबसे करीब होते हैं. उस कंपनी में प्रॉब्लम को हमेशा सबसे नीचे लेवल पर ले जाकर सोल्व किया जाता था. इससे रिक को ये समझ में आया कि कंपनी में हर एक एम्प्लोई की राय कितनी मायने रखती है.

अपनी कंपनी के बेहतरीन कल्चर द्वारा टोयोटा ने खुद को जापान में ही नहीं बल्कि अमेरिका में भी एक सक्सेसफुल बैंड के रूप में साबित किया था और इसी कल्चर को अपनाकर General Motors ने एक नई शुरुआत कर सक्सेस हासिल की.

Goal Setting

डट कर अपने काम में लगे रहने के लिए सबसे जरूरी होता है एवरेज और अनक्लियर गोल्स के बजाय एक फिक्स्ड और क्लियर गोल सेट करना. जिन लोगों के पास बड़े सपने और क्लियर गोल होते हैं वो ज़्यादा कमाने वालों लोगों में से एक होते हैं. उनकी यही इच्छा इन एचीवर्स को अपने बारे में अच्छा महसूस कराती है.

क्लियर गोल्स प्रॉब्लम को सोल्व करने में और लाइफ में प्रोग्रेस करने में मदद करते हैं. इस इच्छा को cognitive closure कहा जाता है. ये आपके अंदर जितना ज्यादा होगा आपके लिए उतना ही अच्छा होगा.

1980 के समय में अमेरिका में सबसे वैल्युएबल कंपनी General Electric (GE) हुआ करती थी. वो लाइट बल्ब, रेफ्रीजिरेटर, जेट इंजन से लेकर कई अलग-अलग चीजें बनाते थे. उस पोजीशन तक पहुँचने का उनका सीक्रेट था कमाल की गोल सेंटिंग. GE के हर एम्प्लोई को अगले साल के लिए उनके गोल्स को क्लियर तरीके से सेट करने और मैनेजर से उसे approve कराने के लिए कहा जाता था.

SMART Technique Description
S-Specific एक फिक्स्ड गोल
M-Measurable जिसे मापा जा सके
Article with SMART Goals and Teamwork

Achieving Goals with SMART and Stretch Goals

A - Achievable यानी जिसे अचीव करना पॉसिबल हो

R-रीयलिस्टिक यानी जो रियल वर्ल्ड में किया जा सकता हो T-टाइम बेस्ड यानी उसे एक डेडलाइन के अंदर अचीव करना होगा

अगर कोई गोल 5MART के रूल्स के मुताबिक़ नहीं होता तो उसे बदलने के लिए कहा जाता था. SMART इस SMART कल्चर ने लोगों के अंदर छुपे उस पोटेंशियल को भी अनलॉक कर उभार दिया था जिसके बारे में वो खुद भी नहीं जानते थे.

ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि इसने लोगों को गों को कन्फ्यूज्ड अनक्लियर गोल्स के बजाय रियल और ठीक से प्लान किए गए गोल्स सेट करने पर मजबूर किया था. एम्प्लाइज को ये SMART सिस्टम बहुत पसंद आया. उन्होंने कहा कि रीयलिस्टिक गोल्स को अचीव करने के बाद उन्हें सेंस ऑफ़ अचीवमेंट महसूस हो रहा था. लेकिन लोगों को इस तरह गोल्स सेट करने के लिए फ़ोर्स करने का ये मतलब नहीं था कि सब कुछ स्मूथली काम कर रहा था. इस सिस्टम में ये tendency हो सकती है कि एम्प्लाइज बिना क्रिएटिव हुए आसान काम को चुनकर उसे पूरा करने में लग जाते हैं.

GE के मालिक, जैक वेल्च, चाहते थे कि उनके एम्प्लाइज क्रिएटिव तरीके से सोचें. इसे अचीव करने के लिए जैक ने "stretch goals" नाम के कांसेप्ट को पेश किया.

Stretch Goals vs SMART Goals

वो गोल्स इतने हाई थे कि शुरू में कोई नहीं बता सकता था कि उसे कैसे अचीव किया जा सकता है और यही तो इसका ट्रिक था क्योंकि अगर एप्लाइज़ को पता हो कि उसे कैसे अचीव किया जा सकता है तो उसे "stretch goals" नहीं कहा जा सकता.

Stretch goals और SMART गोल्स दोनों का ही होना जरूरी होता है. जो लोग SMART गोल्स को ठीक से समझते हैं वो बड़े गोल्स को छोटे-छोटे हिस्सों में ब्रेक करना जानते हैं.

जब CE के एम्प्लाइज "stretch goals" की तरह ही बड़े गोल्स का सामना करते हैं तो वो अच्छे से जानते हैं कि उन्हें क्या करना है. ये नामुमकिन से लगने वाले काम तक पहुँचने में मदद करता है. इसी stretch और SMART goals" के कॉम्बिनेशन ने GE को इतना सक्सेसफुल बनाया था. इसलिए कई और कंपनियों और आर्गेनाइजेशन ने उनके इस मेथड को अपनाया.

Importance of Focus in Automation

आज कई तरह के ऑटोमेटिक मशीन हमारे रोज़मर्रा की जिंदगी का हिस्सा बन गए हैं. जैसे हम जिस कार को चलाते हैं उसमें अलग अलग पर्पस के लिए छोटे कंप्यूटर लगे हुए हैं, अगर हमें कहीं जाना हो तो हमारे फ़ोन में ऑटोमेटिक नेविगेशन सिस्टम होता है. इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि ऑटोमेटिक चीजों ने हमारी लाइफ बहुत आसान बना दी है.

लेकिन इसका एक नुक्सान भी है कि हमने अब काम पर ध्यान देना कम कर दिया है, जब एक ऑटोमेटिक मशीन काम करती है तो इंसान लापरवाह यानी careless हो जाता है. जब ये मशीन काम करना बंद कर देती है तब जाकर इंसान अपने रिलेक्स्ड स्टेट से बाहर आकर फोकस करना शुरू करता है. ऐसे केस में उस इंसान की आँखों के ठीक सामने जो होता है वो उससे शुरुआत करता है. इस स्टेट को cognitive tunneling कहते हैं.

Case Study: Air France Flight 447

इस कहानी से आप सीखेंगे कि चीज़ों को ऑटोमेटिक मोड की बजाय खुद करना यानी मैन्युअली करना कितना ज़रूरी होता है क्योंकि ये हमारे कंसंट्रेशन और टेंशन के साथ काम करने के टाइम को इम्प्रूव करता है. 3 मई 2009 को Air Air France Flight 447 ने रियो डी जनेरो से पेरिस जाने के लिए उड़ान भरी उस फ्लाइट में 228 लोग सवार थे.

उड़ान भरने के चार मिनट बाद, पायलट ने ऑटो पायलट मोड को एक्टिवेट कर दिया. उस प्लेन को ऐसे डिजाइन किया गया था कि पायलट को ज़्यादा डिसिशन लेने की ज़रूरत नहीं थी. तो इस हिसाब से अगले दस घंटों के लिए प्लेन को अपने आप बिना किसी परेशानी के उड़ना चाहिए था.

लेकिन चार घंटे बाद जब प्लेन ने equator को क्रॉस किया तब सामने भयानक तूफ़ान का एक बादल जैसा बना हुआ था. पायलट tube जो एयर स्पीड को मापने के लिए यूज किया जाता है अचानक बर्फ़ के छोटे-छोटे टुकड़ों से भर गया. इस बजह से एयरस्पीड घटने लगा.

Crisis Management

प्लेन के कंप्यूटर ने एयरस्पीड का इनफार्मेशन डिस्प्ले करना बंद कर दिया और आटो पायलट मोड खुद-ब-खुद बंद हो गया. उस समय दोनों पायलट आराम कर सुस्ता रहे थे. अलार्म ने सबको चौंका दिया था, तब था, तब जाकर वो होश में आए, को-पायलट पिअर बोनिन ने देखा कि ऑटो- मोड बंद हो चुका था इसलिए प्रॉब्लम को सोल्व करने के लिए उन्होंने कमांड स्टिक का कंट्रोल अपने हाथों में लिया.

बोनिन इस अचानक से आई इमरजेंसी के लिए बिलकुल तैयार नहीं थे. उन्होंने कमांड स्टिक को पीछे खींचा जिससे फ्लाइट ऊपर की ओर हो गया और एक मिनट के अंदर ही तीन हज़ार फीट ऊपर पहुँच गया. जब कोई प्लेन अपनी पोजीशन के कारण उड़ नहीं पाता और नीचे गिरने लगता है तो उसे aerodynamic stall कहते हैं.

Understanding Aerodynamic Stall

शुरुआत के स्टेज में, प्लेन के आगे के हिस्से को थोड़ा नीचे कर इस सिचुएशन को कंट्रोल किया जा सकता है. लेकिन अगर उसकी पोजीशन बहुत ज्यादा ऊँची है तो aerodynamic stall प्लेन को गिराने लगता है. फ्लाइट 447 के ऊपर की ओर जाने से atmosphere पतला हो गया था. कॉकपिट में रिकॉर्ड की गई आवाज़ ने aerodynamic stall की वार्निंग देना शुरू कर दिया.

पायलट tube अब भी बर्फ के टुकड़ों से भरा हुआ था इसलिए पायलट अपनी स्पीड नहीं देख पाए. कॉकपिट के अंदर रिकॉर्ड हुई बातचीत के अनुसार बोनिन ने अपने को-पायलट से कहा कि वो प्लेन को नीचे की ओर ले जाएँगे लेकिन इसके बजाय वो पहले की तरह कमांड स्टिक को पीछे खींचते रहे जिस वजह से प्लेन के आगे का हिस्सा ऊपर की ओर चलता जा रहा था.

ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि बोनिन खुद cognitive tunnel के mode में चले गए थे. उनका माइंड और अटेंशन पिछले चार घंटों से रिलेक्स्ड स्टेट में था. लेकिन इस अचानक आई इमरजेंसी की वजह से उनका माईंड फोकस करने के लिए कुछ ढूँढने लगा. बोनिन का ध्यान सबसे पहले उनके सामने लगे विडियो मॉनिटर पर गया, जो प्लेन के विंग्स की पोजीशन दिखा रहा था.

The Role of Team Dynamics in Success

Teams के बारे में एक आम धारणा ये है कि इसकी सक्सेस इसके मेंबर्स के स्किल पर डिपेंड करती है. अगर वो सभी स्मार्ट और हार्ड वर्किंग होंगे तो कोई उनका मुकाबला नहीं कर पाएगा. लेकिन सच्चाई तो ये है कि हमेशा ऐसा नहीं होता.

टीम का कल्चर और मेंबर्स का एक दूसरे के साथ सहयोग करना होता है. यही डिसाइड करता है कि टीम सक्सेसफुल होगी या नहीं. एक टीम के अंदर इस पैटर्न को group norms या रूल्स ज्यादा इम्पोर्ट कहते हैं.

रूल्स ही डिसाइड करते हैं कि एक मेंबर अपने साथियों के साथ सेफ़ फील करता है या नहीं, वो motivated फील करता है या नहीं. ये रूल्स नेगेटिव भी हो सकते हैं जैसे लीडरशिप रोल को लेकर एक दूसरे से जलना या दूसरों की बुराई करना.

Positive and Negative Norms

वहीं दूसरी ओर वो पॉजिटिव भी हो सकते हैं जैसे दूसरों के आईडिया को सपोर्ट करना या किसी को लीडरशिप रोल के लिए encourage करना. कंपनियों को लगता है कि उन्हें सक्सेसफुल होने के लिए एक सुपरस्टार एम्प्लोई या मैनेजर की ज़रुरत है लेकिन ये सिर्फ़ एक वहम है.

क्योंकि रिसर्च ने प्रूव किया है कि एवरेज परफॉर्म करने वालों की टीम भी वो सब कुछ अचीव कर सकती है जो एक टॉप परफ़ॉर्मर कर सकता है, उन्हें बस एक साथ मिलकर ठीक से कम्यूनिकेट कर काम करने की ज़रुरत है. आइए इसे Google की कहानी से समझते हैं.

Google's Approach to Teamwork

Google 6 सालों तक अमेरिका की टॉप वर्कप्लेस रही है, ऐसा इसलिए पॉसिबल हुआ क्योंकि वो हमेशा इस बात का ध्यान रखते हैं कि उनके एम्प्लाइज खुश और प्रोडक्टिय बने रहे. Google के ह्यूमन रिसोर्स द्वारा किए गए एक स्टडी को प्रोजेक्ट ऑक्सीजन का नाम दिया गया.

इस प्रोजेक्ट का मकसद ये जानना था कि कुछ managers दूसरों की तुलना में ज़्यादा efficient क्यों थे. लेकिन इस स्टडी का कोई रिजल्ट नहीं निकला क्योंकि इस स्टडी से ये पता चला कि Google के एम्लाइज एक लीडर के पोटेंशियल से ज़्यादा टीमवर्क को इम्पोटेंस देते थे.

अगर टीमवर्क अच्छा था तो एम्प्लाइज को इस बात की परवाह नहीं थी कि लीडर ज़्यादा efficient था या नहीं. इससे Google को एहसास हुआ कि उन्हें लीडरशिप के बजाय टीम के फंक्शन पर फोकस करना चाहिए.

Project Aristotle: High Performing Teams

अब उनका नया मिशन ये पता लगाना था कि ऐसी कौन सी क्वालिटी है जो एक टीम को हाई परफोर्मिंग टीम बनाती है. इसके लिए Google ने अपने अगले प्रोजेक्ट, Project Aristotle, की शुरुआत की. रिसर्च करने वालों ने कई अलग-अलग लिटरेचर पढ़े लेकिन जो क्वालिटी एक टीम को सक्सेसफुल बनाती है उस बारे में उन सभी में अलग अलग बातें लिखी हुई थीं.

इसलिए बाहर जवाब हूँढ़ने के बजाय उन्होंने Google एग्लाइज से पूछना शुरू किया कि उनके हिसाब से ऐसी कौन सी क्वालिटी है जो एक ज़बरदस्त और इफेक्टिव टीम बनाती है?

ज्यादातर लोगों का कहना था कि सहयोग (cooperation), आपसी विश्वास, रिस्पेक्ट और मेंबर्स के बीच अपनेपन की भावना वो फैक्टर्स हैं जो एक हाई परफोर्मिंग टीम को क्रिएट करते हैं. किसी भी काम को कम्पलीट करने में पूरी टीम का एफर्ट शामिल होता है.

The Power of Motivation

आज की इकॉनमी में सक्सेस का मतलब है ये पता होना कि अपना टाइम और एनर्जी आपको कहाँ लगाना है. अगर कोई इंसान सेल्फ़-मोटिवेशन के बारे में जानता है तो वो ज्यादा पैसे कमा सकता है, एक खुशहाल जीवन जी सकता है और उसके पास जो कुछ भी है उससे satisfied हो सकता है.

ज़्यादातर लोग ये नहीं जानते कि मोटिवेशन भी रीडिंग और राइटिंग की तरह एक स्किल है, कोई भी इसे सीख सकता है और कड़ी मेहनत से धीरे-धीरे इसे इम्प्रूव भी कर सकता है. खुद को मोटीवेट करने का ट्रिक ये समझना है कि इसका कंट्रोल हमारे पास है.

खुद डिसिशन लेने की फ्रीडम और पॉवर ही कंट्रोल कहलाती है, आइए एक एग्जाम्पल से समझते हैं, पिट्सबर्ग यूनिवर्सिटी में एक एक्सपेरिमेंट किया गया जिससे ये बात सामने आई कि किसी चीज़ को चुनने का मौका मिलने से, लोग जो काम कर उसके प्रति वो वो ज्यादा मोटीवेट हो जाते हैं.

Mauricio Delgado's Experiment

मौरिसियो डेलगाडो नाम के एक researcher ने एक एक्सपेरिमेंट किया, FMRI मशीन के अंदर एक प्लास्टिक की टेबल थी जिस पर पार्टिसिपेंट था, उसके बगल में एक छोटा कंप्यूटर स्क्रीन लगा हुआ था, पार्टिसिपेंट को ये guess करना था कि स्क्रीन पर दिखाया जाने वाला नंबर पांच को लेटना था. से कम था या ज्यादा.

इसके लिए वहाँ कुछ बटन दिए गए थे. बटन दबाने पर नंबर स्क्रीन पर दिखाई देने लगता और पार्टिसिपेंट देख सकता था कि उसने सही guess किया था या नहीं.

पार्टिसिपेंट जब गेम खेल रहा था तब FMRI का इस्तेमाल उसके ब्रेन में चल रही एक्टिविटी को रिकॉर्ड करने के लिए किया गया था. पार्टिसिपेंट कभी भी गेम छोड़ कर जाने की आज़ादी थी. लेकिन कुछ पार्टिसिपेंट ऐसे थे जो हारने के बावजूद कई धंटों तक गेम खेलते रहें.

Insights from the Experiment

गेम खत्म होने के बाद, एक पार्टिसिपेंट ने डेलगाडो से पूछा कि वया वो गेम घर ले जा सकता था. डेलगाडो ने कहा कि वो मुमकिन नहीं था क्योंकि उस गेम को सिर्फ एक्सपेरिमेंट के लिए बनाया गया था.

उन पार्टिसिपेंट को ये भी बताया कि वो गेम हमेशा सही जवाब i दिखाता उसे जानबूझकर इस तरह डिज़ाइन किया गया था कि खेलने वाला पहला राउंड जीतेगा, दूसरा हार जाएगा और यही सिलसिला चलता रहेगा.

ये सब जानने बाद भी वो पार्टिसिपेंट उसे घर पर खेलने की जिद करने लगा. डेलगाडो को जवाब सुनकर बहुत अजीब लगा और वो ये सोचने लगे कि कोई ऐसा गेम क्यों खेलना चाहेगा जहां उसकी चॉइस का रिजल्ट पर कोई ही नहीं होता है और इस तरह के गेम ने कई लोगों कैसे उलझाए रखा?

Delgado's New Experiment

इसलिए डेलगाडो ने नए लोगों के साथ एक नया एक्सपेरिमेंट किया, इस गेम और पिछले गेम में बस एक ही फ़र्क था कि इस बार पार्टिसिपेंट को 50% इसलिए डेलगाडो ने नए लोगों के साथ एक नया करना था और बाकी के 50% कंप्यूटर नंबर guess करना guess करने की बारी थी.

FMRI रीडिंग से डेलगाडो ने देखा कि जब पार्टिसिपेंट खुद जवाब चूज़ कर रहे थे तो उनके ब्रेन के सेंट्रल डिस्पैच में पिछले एक्सपेरिमेंट की तरह ही एक्टिविटी चल रही थी. लेकिन जब कंप्यूटर guess करने का काम कर रहा था तो उनके ब्रेन को वो हिस्सा बिलकुल शांत था. उसमें कोई एक्टिविटी एक लाइट जल नहीं हो रही थी.

ऐसा लग रहा था जैसे उनके ब्रेन को गेम में कोई दिलचस्पी ही नहीं थी और वो बोर हो गए थे. पूछने पर सभी participants ने डेलगाडो कों बताया कि जब उन्हें चुनने का मौका दिया गया तब उन्होंने गेम को ज्यादा एन्जॉय किया लेकिन जब चुनने की बारी कंप्यूटर की थी तब वो एक बोरिंग काम जैसा लगने लगा, इस एक्सपेरिमेंट ने ये साबित किया कि चूज़ करने की पॉवर ने उनके ब्रेन में एक्टिविटी को बढ़ा दी थी.

Conclusion

इस बुक में आपने सीखा कि कैसे खुद को motivate करते रहे और अपने गोल्स को पाने के लिए डट कर लगे रहे. आपने सीखा कि चूज़ करने की पॉवर लोगों को पावरफुल होने का एहसास कराती है और उन्हें काम करने के लिए मोटीवेट करती हैं.

आपने इफेक्टिव गोल सेटिंग के बारे में जाना. आपने SMART technique के बारे में सीखा जिसका मतलब होता है Specific, Measurable, Achievable, Realistic और Time based गोल्स बनाना. आप इस technique को बड़े गोल्स को छोटे छोटे हिस्सों में ब्रेक करने के लिए यूज कर सकते हैं.

आपने डिजिटल वर्ल्ड में फोकस के इम्पोर्टेस को समझा. सब कुछ टेक्नोलॉजी घर छोड़ देना कोई अकलमंदी नहीं है. हमारे ह्यूमन माइंड की पाँवर और क्रिएटिविटी का कोई मुकाबला नहीं नहीं कर सकता.

आपने सीखा कि आप किस तरह पर्सनल एक्सपीरियंस को यूज़ कर इनोवेटिव हो सकते हैं और जो आपके अंदर पहले से मौजूद है उससे कुछ नया कैसे बना सकते हैं. अपने पर्सनल एक्सपीरियंस को याद कर आप नए कनेक्शन बनाकर कुछ नया क्रिएट कर सकते हैं.

इसके साथ-साथ आपने टीमवर्क और पीपल मैनेजमेंट के बारे में भी सीखा, अगर आप एक लीडर हैं तो अपने टीम मेंबर्स की एबिलिटी और पोटेंशियल पर भरोसा रखें.

Final Thoughts

अगर आप किसी टीम के मेंबर हैं तो आपको अपने के साथ सहयोग करने की शुरूआत करनी चाहिए. खुद पर विश्वास करें और अपने विश्वास पर विश्वास करें कि ऐसा कुछ भी नहीं है जो आप नहीं कर सकते. आप अपनी जिंदगी को अपनी इच्छा के हिसाब से बदल सकते हैं.

इसके लिए आपको मोटिवेशन, फोकस, टीमवर्क, गोल सेटिंग और इनोवेशन को समझने की ज़रुरत है. एक एक कर जब आप इनमें मास्टरी हासिल कर लेंगे तब आप अपनी पूरी पोटेंशियल को अनलॉक कर पाएँगे.

Aspect Description
SMART Goals Specific, Measurable, Achievable, Realistic, Time-based
Stretch Goals High goals that seem initially unachievable
Cognitive Tunneling Focus shift during emergencies due to automation
Team Dynamics Importance of cooperation, trust, and mutual respect
Motivation Power of choice and self-motivation

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