About Book
क्या आप भी किसी बुरी आदत से परेशान है? क्या आप कुछ न्यू हैबिट्स डेवलप करना चाहते है जो आपके लिए फायदेमंद हो? क्या आप भी ये मानते है कि लाइफ में सिर्फ चेलेन्जेस है ? या आपको कोई न्यू चेंज या न्यू एनवायरमेंट में एडाप्ट करना मुश्किल लगता है. अगर आपके माइंड में भी यही सवाल उठ रहे है और आप उन सवालों के जवाब ढूढ़ रहे है तो ये बुक “स्विच’ आपकी हेल्प कर सकती है. क्योंकि इस बुक में रियललाइफ सिचुएशन से निबटने के असरदार नुस्खे दिए गये है-जिन्हें आप प्रेक्टिकली अपनी लाइफ में इम्पलीमेंट कर सकते है.
1. हमे ये बुक क्या सिखाएगी?
एक ओल्ड बुद्धिस्ट टीचिंग के हिसाब से हर इंसान के अंदर दो पार्ट्स होते है – द राइडर और द एलिफेंट. द राइडर पार्ट इंसान का कोल्ड और रेशनल पार्ट है. ये पार्ट प्लानिंग करता है, शेड्यूल्स बनाता है और मैथ सोल्व करंता है वही हमारा एलिफेंट पार्ट इमोशनल होता है जो इम्पल्सिव और हेस्टी है. एलिफेंट और राइडर ये दोनों पार्ट अगर साथ मिलकर काम करे तभी इंसान लाइफ में एक बेलेंस पाथ ढूंढ सकता है. और ये पाथ हमारे इक्वेशनमें थर्ड एलिमेंट है और ये उस एनवायरमेंट को रीप्रजेंट करता है जिसने एलिफेंट और राइडर दोनों को घेरा हुआ है. हीथ ब्रदर्स हमे यही सिखाना चाहते है कि लाइफ में चेंज की पोटेंशियल डेवलपमेंट के लिए ये तीनो ही पार्ट एक्स्ट्रीमली इम्पोर्टेट है.
2. ये बुक किस किसको पढनी चाहिए?
हर कोई इंसान इस बुक का बेनिफिट ले सकता है क्योंकि ये बुक लाइफ के सभी एस्पेक्ट में काम आ सकती है. इस बुक से हम अपने इमोशंस और अपनी लोजिकल थिंकिंग को बेलेंस करके चलना सीख सकते है.
3. इस बुक के ऑथर कौन है?
इस बुक के ऑथर चिप और डेन हीथ बेस्ट सेलर् ऑथर्स है. चिप स्टैंडफोर्ड ग्रेजुएट स्कूल ऑफ़ बिजनेस में प्रोफेसर है वही डेन ड्यूक यूनिवरसिटी के केस सेंटर के सीनियर फेलो है. अब तक दोनों भाइयो ने मिलकर 4 बुक्स लिखी है और ये चारो ही बुक्स न्यू यॉर्क टाइम्स की बेस्ट सेलर्स रही है.
परिचय इंट्रोडक्शन (Introduction)
चेंज आसान नहीं है बल्कि बड़ा मुश्किल है. कभी-कभी तो इतना मुश्किल होता है कि आपको लगेगा ये सारी दुनिया ही उलट-पुलट हो रही है. लेकिन बाकी लोगों के तरह आपको भी अपनी लाइफ में आने वाले चेंजेस के लिए रेडी रहना होगा. और कुछ स्विचेस (“switches’) शायद आपको इतना परेशान कर दे कि आप एकदम सर पकड़ कर बैठ जाओगे. लेकिन हम आपको इसके लिए ब्लेम नहीं कर रहे क्योंकि लाइफ ऐसी ही है, कभी ईजी तो कभी हार्ड. लेकिन हाँ अगर आप पहले से प्रीपेयर रहेंगे तो चीजों को ईंजिली हैंडल कर सकते है. हीथ ब्रदर्स यहाँ आपकी हेल्प कर सकते है, अपनी इस बुक के धू वे आपको बतायेंगे कि चेंजेस को कैसे खुले दिल से एक्स्पेट किया जाये. अगर आप ये सोच के यहाँ आये है कि चेंजेस को कैसे अवॉयड किया जाए तो अभी इसी टाइम ये समरी पढ़ना छोड़ दो, क्योंकि आप बिग, इमोशनल चैंजेस को अवॉयड कर ही नहीं सकते, आपको उन्हें एक्सेप्ट (accept) करना ही पड़ेगा.
इस प्रॉब्लम को हीथ ब्रदर्स एक बड़े ही इंट्रेस्टिंग तरीके से अप्रोच करते है, एक ओल्ड बुद्धिस्ट मेटाफोर (old Buddhist metaphor) के यू जिसके हिसाब से इंसान दो पार्ट्स से मिलकर बना है. फस्स्ट वाला पार्ट रेशनल, कोल्ड और केल्च्यूलेटिव(calculative) है जिसे राइडर कहते है जबकि सेकंड पार्ट इमोशनल है, ऑटोमेटिक और विवक रिस्पोंस देता है जिसे एलिफेट बोलते हैं. हर इंसान इन दो एलिमेंट्स से मिलकर बना है. और ऑथर्स एक थर्ड एलिमेंट के बारे में बताते है -जिसे पाथ कहते है,जो आपकी लाइफ की सिचुएशन एस्पेक्ट है आपका एनवायरमेंट, सराउंडिंग, वे लोग जो आपके आस-पास रहते है. अगर आप हमारे साथ यूँ ही बने रहेंगे तो हम आपको बताएँगे कि इन तीनो पार्ट्स को कैसे बेलेंस किया जाए. हालांकि ये उतना ईजी नहीं है लेकिन फिर पॉइंट की बात ये है कि अगर ये ईजी होता तो हर कोई इसे कर ना लेता.
चैप्टर।
द श्री सरप्राइजेस (The Three Surprises)
इस बुक के फर्स्ट स्टेप है चेंज के ध्री एशेंशियल कम्पोनेन्ट्स (essential components) को डिस्क्राइब करना द एलिफेंट (The Elephant इमोशन (emotions), द राइडर (The Rider रेशनल साइड (rational side), और द पाथ (The Path सिचुएशन (situation). जैसा कि अब तक आप समझ चुके होंगे कि राइडर का काम है एलिफेंट को एक गोल की तरह गाइड करना. राइडर ही है जो पाथ चूज करता है -अब ये पाथ समृद्ध हो सकता है, या फिर रॉकी और खतरों से भरा हुआ भी. ये सब एंड में राइडर पर डिपेंड करता है, यहाँ एक बात इम्पोर्टेट है कि ये राइडर बिना एलिफेंट के कुछ नहीं कर सकता क्योंकि एलिफेट उसका ड्राइविंग फ़ोर्स है.
ठीक ऐसे ही अगर राइडर ना हो तो एलिफंट अकेला कुछ नहीं कर सकता, वो खुद अपने इमोशन्स और फीलिंग्स में भटक कर रह जाएगा. और सेम चीज़ आपकी लाइफ के साथ भी है-आपके इमोशंस ही वो ड्राइविंग फ़ोर्स है जो आपको एवशन लेने पर मजबूर करते हैं. आप कुछ भी इंट्रेस्टिंग सोच ले लेकिन आपके इस रेशनल इंटरेस्ट को इमोशंस ही बैंक अप करते है, हीथ ब्रदर्स अपने एक रिसर्च से शो कराते है कि ये एलिफेंट कितना पॉवरफुल हैं. इस स्टडी में शो किया गया था कि लोगो को अगर बड़ा कंटेनर दिया जाए तो वो नॉर्मली जितना खाते है उससे डबल अमाउंट का पॉपकॉर्न खा सकते है,
जाहिर है कि यहाँ इमोशनल और इररेशनल साइड (irrational side) काम कर रही थी. स्पेसिफिक तरीके से बोले तो सारे श्री कॉम्पोनेंट्स (components) इस ओवरईटिंग बिहेवियर के लिए जिम्मेदार है. जैसे इस सिचुएशन में राइडर का रीएक्शन होगा: लगता है खूब सारे पॉपकॉर्न है फिर एलिफेंट खूब सारा खा लेगा लेकिन फिर भी काफी पॉपकॉर्न बचते हैं” तो एलिफेंट बोलेगा” मै जितना हो सके उतने पॉपकॉर्न खाना चाहता हूँ” अब क्योंकि राइडर को पॉपकॉर्न से भरा कंटेनर (द पाथ) थमा दिया गया था तो उसे कोई वजह नहीं
दिखती कि वो सारे पॉपकॉर्न क्यों ना खाए. और इसलिए एलिफेंट को भी छूट मिल गयी कि जितना मर्जी हो उतना पॉपकॉर्न खा ले. अब बोलने की
ज़रूरत नहीं कि इसका इरेशनल साइड सिर्फ प्लेज़र है यानी इसको पॉपकॉर्न खाने में मज़ा आ रहा है और जब तक रेशनल साइड इसे रोकेगी नहीं ये
प्लेजर के लिए खाता ही जाएगा.
फर्स्ट चैप्टर का कनक्ल्यूजन (conclusion) है कि आपको अपनी लाइफ के श्री एस्पेक्ट्स (three aspects ) बेलेंस करने है रेशनल rational, इरेशनल (irrational )और सिचुएशनल एस्पेक्ट्स situational aspects तभी आप लाइफ के बिग चेंजेस को वेलकम कर पायेंगे या जैसे हीथ ब्रदर्स समझाते हैं।: “राइडर को डायरेक्शन चहिये और एलिफेंट को मोटिवेशन, और दोनों को अपनी डेस्टिनेशन तक पहुँचने के लिए पाथ में कम से कम फ्रिक्शन चाहिए जिससे वो जल्द से जल्द मंजिल तक पहुंचे””
चैप्टर 2Chapter 2 ब्राइट स्पॉट्स Bright Spots
सेकंड चैप्टर में औंधर्स राइडर की साईकोलोजी(psychology) को थोडा और बैटर ढंग से एक्प्लेन करने को कोशिश करते है. जैसा कि हम बता चुके है कि ये इमोशन के मामले में बड़ा कोल्ड, रेशनल और केलकुलेटिव टाइप का है और इसकी वजह से ये कभी-कभी कुछ ज्यादा ही सोचने लगता है. ये तो हम सबने एस्पिरियेश किया है- आप बेड पे लेटे हो, एक बढ़िया सी नींद का वेट कर रहे हो कि तभी आपके माइंड में ख्याल आने लगते है, आप कितना भी ट्राई कर लो आप सोचते ही चले जाते हो, लेकिन अपने लिए सो- काल्ड ब्राइट स्पॉट्स दूढ़ कर इस औवरथिंकिंग(Over thinking ) और ओवरएनालिसिस (overanalyzes) की हैबिट से छुटकारा पाया जा सकता है.
ये वो चीजे होती है जिनमे कि आप बैटर करते हो और ये ज़रूरी नहीं कि आप लाइफ की हर चीज़ में एक्सपर्ट हो, बशर्ते कि आप कोई सुपरमेन या वंडरवुमन हो. और इसीलिए आपको बस एक या दो ही ब्राइट स्पॉट्स चूज़ करने है जिन पर आप पूरा फोकस कर सको. अक्सर लोगों की आदत होती है कि वे नेगेटिव स्टफ को ही देखते है जिसकी वजह वे उन्हें अपनी लाइफ की कुछ अच्छी बाते भी दिखाई नहीं देती. इसे पोजिटिव-नेगेटिव असिमेंटट्री (positive-negative asymmetry) या नेगेटिव बायेस(negativity bias) भी बोलते है.हम ह्यूम्स के एवोल्यूशन (evolution ) के दौरान नेगेटिव बायेस(negativity) सरवाईवल (survival) के लिए बहुत ज़रूरी था क्योंकि नेगेटिव स्टफ पर फोकस करने से हमारे सरवाईवल के चांसेस बड़ गए थे. वही दूसरी तरफ आज टाइम में पोजिटिव-नेगेटिव असिमेट्ट्री (positive negative asymmetry) नहीं चलेगी क्योंकि इससे नए एन्वायरमेंट को एडाप्ट करने में आपको मुश्किल होगी.
यही रीजन है कि चिप और डान हीथ आपको ब्राइट स्पॉट्स पर फोकस करने की एडवाईस देते है और ऐसा करने के कई तरीके है, आप चाहें तो डेली एक टू-डू लिस्ट लिखकर स्टार्ट कर सकते है. इस लिस्ट के टॉप में उन चीजों को रखो जो आपको करना पसंद है, और जो कम पंसद है उन्हें बोटम (bottom) में, फिर इसके अकोर्डिग अपना हर डे प्रीपेयर करो.
चैप्टर 3Chapter 3
लर्न क्रिटिकल मूव्स बाई हार्ट (Learn Critical Moves by Heart)
इस चैप्टर में हीथ ब्रदर्स डिसीजन पैरालिसिस के बारे में बता रहे है. हम सब के साथ ये हुआ है -जैसे कभी आपके सामने कोई डिफिकल्ट सिचुएशन आई हो, आपको पब्लिक के सामने बोलना है, कोई ऐसी ही बड़ी प्रॉब्लम या कोई स्ट्रेसफुल एक्टीविटी, आपने शायद नोटिस किया हो कि ऐसी मुश्किल सिचुएशन में आप डर से पीले पड़ जाते है, आपके हाथ-पांव फूलने लगते है, आपको समझ ही नहीं आता कि करना क्या है. और हम यहाँ आपको बेवकूफ बनाने की कोशिश भी नहीं करेंगे -इस सिचुएशन में स्ट्रेस के सिम्प्टमस (symptoms ) कम्प्लीटली एलिमिनेट करना पोसिबल होगा भी नहीं, तो ऐसे में आपको क्रिटिकल मूव्स स्क्रिप्ट करने चाहिए,
यानी कि ऐसी स्ट्रेसफुल सिचुएशन आने से पहले ही आप उसे फेस करने को तैयार हो जाओ. एक एक्जाम्पल लेते है, जैसे कि आपको एक लार्ज क्राउड के सामने स्पीच देनी है, तो आप क्या करे कि लोगो के ग्रुप्स के सामने एक मोकMock) स्पीच दो जिससे आप डर खुल जाए. इस तरह बड़े और बड़े ग्रुप्स के सामने बोलने की प्रैक्टिस करते रहे जब तक कि आप पूरा कांफिडेंस ना आ जाये. ये बात माईंड में रखे कि हर किसी को पब्लिक स्पीच में थोड़ा बहुत अनकम्फर्टेबल (uncomfortable) फील होता है.
चैप्टर 4 Chapter 4
द डेस्टीनेशन (The Destination)
जब आप कुछ गोल्स सेट करते है तो चेंज आपके लिए और भी ईजी हो जाता है. लेकिन ये गोल इमोशनली चार्ज्ड(emotionaly-charged) होना चाहिए और रेशनल भी, ताकि ये राइडर और एलिफेंट दोनों को अपील करे. ये एक बेस्ट तरीका है”स्विच” (“switch”) का लेकिन थोडा ओनेस्ट वे में सोचे तो आप हर हमेशा अपनी चॉइस का काम नहीं कर सकते. ऐसा अवसर होता है कि हमे कुछ ऐसे काम भी करने पड़ते है जो हम अवॉयड करना चाहते है. लेकिन आफ्टर आल यही लाइफ है -ये हमेशा ही ईजी नहीं होगी, और देखा जाए तो यही लाइफ की ब्यूटी भी है. ये बुक स्विच Switch” आपको सिखाती है कि अपने नॉट सो इमोशनली चार्जड गोल्स (not-so-emotionally-charged goals कैसे अचीव किये जाए.
उन्हें आपको ब्लैक एंड वाइट गोल्स में बदलना है. ब्लैक एंड वाइट गोल्स को बाकी गोल्स से अलग करना इजी है. इन गोल्स के साथ ये ओबिचिय्स (obvious) है कि ये फेल हो सकते है. जैसे कि अगर आपको वेट लूज़ करना है तो बोल सकते है कि” आई विल स्टॉप ईटिंग फ़ास्ट फूड”, अब ये एक टिपिकल ब्लैक एंड वाइट गोल है -ये स्पेशिफिक और सॉलिड है. वही दूसरी तरफ एक अनस्पेशिफिक, अनक्लियर गोल कुछ ऐसा होगा “आई वांट टू ईट लेस हम आपको एक और एक्जाम्पल देंगे, मान लो आपको कोई डिग्री लेनी है तो आप एक हाईली स्पेशिफिक ब्लैक एंड वाइट गोल रखते हे “आई वांट टू स्टडी 4 आवर्स पर डे” और इसके उल्टा आप ये भी बोल सकते है: “आई वांट टू स्टडी मोर” जोकि एक अनस्पेशिफिक, अनक्लियर गोल का एक परफेक्ट एक्जाम्पल होगा क्योंकि आप स्टडी अवॉयड करना चाहते है. “होप एलिफेंट के लिए एक फ्यूल की तरह है, एक छोटी सी सक्सेस भी एक्सट्रीमली मैटर करती है कि लोग खुद पे बीलीव करने लगे”
चैप्टर 5 Chapter 5 द चेज (The Change)
चिप और डान हीथ 2 मेथड्स (2methods) बताते है जिससे आप बिहेवियरल चेंज ला सकते है. जिसमे फर्ट है एसएफसी मेथड (SFC method शोर्ट फ्रॉम सी फील चेंज) (short from see-feel-changejजबकि सेकंड वाला है एटीसी ATC (एनालाइज थिंक चेंज) (analyze think-change) इसमें फर्स्ट वाला ज्यादा इमोशनल है और नॉट सो क्लियर सिचुएशन में बेस्ट है और सेकंड वाला ज्यादा एनालिटिकल और प्रोब्लम ओरिएंटेड (analytical and problem-oriented) है. जैसे एटीसी मेथड (एनालाइज थिंक चेंज) ATC (analyze-think-change) विलयर और ब्रिफ प्रोब्लम्स के हिसाब से बैटर काम करता है जैसे कि मैथमेटिक्स और प्लानिंग, जब आपको शेड्यूल प्लान करना हो तो आप जितना पॉसिबल हो उतना रेशनल रहना चाहते है है.
सिर्फ तब आप इस प्रॉब्लम को एनालाइज थिंक चेंज पर्सपेक्टिव (analyze-think-change perspective} के साथ अप्रोच करते है तभी आप एक अच्छा शेड्यूल बना पाते है. दूसरी तरफ एसएफसी SFC (सी फील चेंज) (see-feel-change) तब बेस्ट है जब आपको बड़ी प्रोब्लम्स सोल्व करनी होती है जैसे कि आपके रिलेशनशिप प्रोब्लम्स. क्योंकि कोई भी अपने रिलेशनशिप्स को सिर्फ एनालिटिकल पर्सपेक्टिव (analytical perspective) से सोल्व करना नहीं चाहेगा जैसे कि अगर आप किसी रिलेशनशिप को लेकर श्योर नहीं है तो एक सेकंड के लिए रुक के सोचे कि आपका दिल क्या कहता है. उसके बाद आपको अपने फीलिंग्स एक्स्पेट करनी होंगी और फिर अगर आपको लगे कि सिर्फ चेंज ही बेस्ट आप्शन है तो आप वही डिसीज़न लो. जब अपना बेहिएवियर चेंज करे तो एक बात माइंड में रखे कि हर इसान के अंदर पोजिटिव इल्यूजन बायेस (positive illusion bias) नाम की एक चीज़ होती है.ये बायेस (Dias) बड़ा सिम्पल है इसके हिसाब से हम खुद को दूसरो से ज्यादा पोजिटिव समझते हैं.
जिसकी वजह से होता ये है कि हमें कई बार खुद को चेंज करना उसना ज़रूरी नहीं लगता है. तो पोजिटिव इल्यूजन बायेस (positive illusion bias) खुद को चेंज ना करने का सिर्फ एक बहाना है. ऑफ़ कोर्स हम ये नहीं कहते कि आप हर बात पे खुद को क्रीटीसाइज़ (criticize} करना स्टार्ट कर लेकिन हम ये ज़रुर कहते है कि खुद के लिए धोडा और क्रिटिकल स्टांस अडॉप्ट कर लो. कई रॉक स्टार्स है जिनकी लाइफ के हम ले सकते है. जैसे कि अपने करियर के फर्स्ट फेस में वे कुछ ऐसे होते है: म्पल
* जस्ट लुक हाउ फेबुलस आई एम, बो टू मी यू पेटी अर्थलिंग्स” (Just look how fabulous I am, bow to me you petty earthlings}!”, और इस फेस इन लोगो को सिरियस ड्रग्स रिलेटेड प्रोब्लम्स भी रहती है, और जब उनका पोजिटिव इल्यूजन बायेस (positive lusion bias) टूटता है तब जाकर ये अपनी बेड हैबिट्स छोड़ते है, कन्कल्यूजन (conclusion) में कहे तो हर इंसान में कुछ नेगेटिव हैबिट्स होती है, और ये नेगेटिव हैबिट्स तभी हमारे लिए प्रोब्लम्स बनती है जब हम इन्हें एक्सेप्ट करने के बजाये रिफ्यूज करने लगते है,
चैप्टर 6 Chapter 6:
हाउ टू श्रिंक द चेंज (How to Shrink the Change)
क्या कभी ऐसा हुआ है कि आपने कोई बड़ा चैलेंज लिया और फिर बीच में ही येसोच के छोड़ दिया कि ये आगे बड़ा हार्ड और टफ होने वाला है ? क्योंकि हीथ ब्रदर्स को भी ऐसा लगता है कि कोई चीज़ एकदम स्टार्टिंग से स्टार्ट करना काफी मुश्किल काम है. जब आप रॉक बॉटम में होते है तो आपको समिट (summit) की झलक तक नहीं दिखती, हालांकि स्नेच/scratch) से स्टार्टिंग एक्सट्रीमली मुश्किल होता है लेकिन हम प्रॉब्लम्स को इतना बड़ा-चढ़ा कर सोच लेते है कि ये और भी हार्ड लगता है. साइंटिस्ट ने ये चीज़ एक बड़े इंट्रेस्टिंग एक्सपेरीमेंट से पूद की है – उन्होंने अपने पार्टीसिपेंट(participants) को अपने लोयेलिटी कार्ड दिए- इन शोर्ट एक बोनस कार वाश जीतने के लिए पार्टीसिपेंट्स(participants) को सबसे पहले एक फिक्स नंबर के कार वाशेस खरीदने थे.
फर्स ग्रुप को एक कार्ड दिया गया जिसमें पहले से ही कुछ स्टैम्प्स (stamps} लगे थे, जबकि दुसरे ग्रुप को एक बिलकुल एम्प्टी कार्ड (empty card) दिया गया, लेकिन दोनों ही गुप्स को बोनस लेने के लिए सेम नंबर के कार वाशेस खरीदने थे, और जो रिजल्ट आये वो सरप्राइजिंग थे फर्स्ट ग्रुप, जिसे कार्ड स्टाम्प वाला कार्ड मिला था, उसने ज्यादा कार वाशेस खरीदे. उनके कार्ड में लगे स्टैम्प्स की बजह से उन्हें लग रहा था कि गोल एटलीस्ट कुछ हद तक तो अचीव है तो कार वाश खरीदने के लिए वे ज्यादा मोटीवेट हुए. तो आप इससे क्या सीखे ? यही ना कि स्माल से स्टार्ट करे, जब आप एकदम जीरो से शुरू कर रहे हो तो लार्ज चेलेंजेस मत लो जो पूरे करने मुश्किल होते है,
क्योंकि इससे आपके फेल होने के चांसेस ज्यादा है और फिर आ मोटिवेशन लूज़ कर लेंगे, बैटर है कि स्माल स्टेप ले -ऐसे गोल सेट करे जो ईजिली अचीव हो सके, बिग चेलेंजेस बाद के लिए रखो. मान लो कि आपको गिटार सीख रहे है और अगर स्टार्टिंग में ही आप कोई मुश्किल ट्यून जैसे “स्टेयर वे टू हेवन” “Stairway to Heaven”), प्ले करने का ट्राई कर रहे है तो ये आपके लिए टफ होगा, आप ट्राई करते रहोगे और फिर जल्दी ही फ्रस्ट्रेट(Trustrate) हो जाओगे, इससे अच्छा है कि आप कोई स्लो और ईजी सोंग की प्रेक्टिस करो, और जब आप इतने एक्सपर्ट हो जाओगे तो एक दिन “स्टेयर वे टू हेवन” (“Stairway to Heaven”) भी मजे से बजा लोगे.
चैप्टर 7 Chapter 7:
फिक्स्ड वर्सेज ग्रोथ माइंडसेट (Fixed vs. Growth mindset)
फिक्सड माइंडसेट वाले लोगों को लगता है कि एबिलिटीज और पोटेंशियल स्टेटिक(static) होती है -उनके हिसाब से एबिलिटीज को चेंज करना बड़ा हार्ड है. वही दूसरी ओर ग्रोथ माइंडसेट वाले लोग मानते है कि एबिलिटीज जिंदगी भर इम्प्रूव की जा सकती है. आप देख सकते है कि इनमे से कौन सा माइंडसेट ज्यादा फ्लेक्सीबल और कंस्ट्रकटिव (constructive) है -एक ग्रोथ माइंड सेंट. ग्रोध माईंडसेट वाले लोग अपनी हार को अंजली एक्सेप्ट कर लेते है और ये क्वालिटी जैसा कि हमने चैप्टर 5 में पढ़ा, चेंज के लिए एक नेसेसरी (necessary)कंडिशन है. साइकोलोजिस्ट्स (Psychologists) जो ह्यूमन स्किल्स और एबिलिटीज पर रिसर्च करते है, उनका मानना है कि ह्यूमन बीइंग थ्रूआउट द लाइफ चैंज और इम्प्रूव हो सकते है,
भले ही ये बात हमें इम्पोसिबल लगे. और कुछ ऐसे एक्सट्रीम एक्जाम्पल है जो इस बात को पूव करते है. आपने शायद सुना होगा कि अमेरिकन फूटबाल
प्लेयर्स काफी ब्रेन डेमेज सस्टेन (sustain) करते है. और अभी तक सारे न्यूरोलोजिस्ट(neurologists) यही मानते आये है कि ब्रेन ऐसी क्रोनिक
इन्ज्रीज़ रिकवर नहीं कर सकता. लेकिन वे रोंग (wrong) थे. कुछ स्पेशिफिक तरीको से इस तरह के डैमेज ट्रीट किये जा सकते है- और ये अजीब
बात है कि इसका मेडीकेशन से कुछ लेना-देना नहीं है! जो फूटबालर्स डेमेंटिया (dementia) के शिकार होते है, वे मेंटल एक्सरसाइज़ के भ्रू अपने
ब्रेन को फिर से हेल्दी और एक्टिव बना लेते हैं.
ड्रग एडिक्ट्स (drug addicts) का ब्रेन भी कुछ ऐसे ही सिरियस डेमेज सफर करता है -लेकिन एब्स्टीनेन्स (abstinence )के एक लॉन्ग पीरियड के बाद उनका ब्रेन दुबारा हेल्दी और फिट हो जाता है. दुसरे वर्ड्स में बोले तो किसी भी इंट्रेस्टिंग एक्टिविटी से आप ब्रेन की एक्सरसाइज़ करके उसके पाथवेज और सर्किट्स(circuits )चेंज कर सकते है.
चैप्टर 8Chapter 8:
चेंज द एनवायरमेंट (Change the Environment)
इस चैप्टर में हीथ ब्रदर्स एक इंट्रेस्टिंग साइकोलोजिकल टॉपिक के बारे में बात करते है -फंडामेंटल एट्रीब्यूशन एरर (fundamental attribution error) काफी टाइम पहले साइंटिस्ट ने पाया कि लोग एनवायरमेंटल फैक्टर्स की इम्पोर्टस को अंडरएस्टीमेट करते है जिसकी वजह से हम अक्सर प्रोब्लम्स की रूट किसी स्पेसिफिक पर्सन में देखते है जबकि इसमें एनवायरमेंटल का भी एक बड़ा रोल होता है. इसे एक डेलीलाइफ की सिचुएशन से समझने की कोशिश करते है. इमेजिन करो कि आप किसी ग्रुप प्रोब्लम पर काम कर रहे है,अब अगर आपसे कोई छोटी सी मिस्टेक भी होती है तो सारे लोग कुछ यू बोलेंगे ये आदमी कितना स्टुपिड है, सारा टाइम बस मिस्टेक ही करता रहता है. बताने की ज़रूरत नहीं कि इस टाइप की रीजनिंग कभी टू नहीं होती.
ऐसी सिचुएशन में लोग अक्सर अनजस्टिफाइड जेर्नलाइजेशन and (unjustified generalization) वाले स्टेटमेंट देते है -यही है फंडामेंटल एट्रीब्यूशन एरर (fundamental attribution error) जबकि सच तो ये है कि बहुत बार एनवायरमेंट ही हमारे फेलर्स और मिसडीड के लिए रिसर्पोंसीबल होता है. किसी के फेलर्स के पीछे उसकी पर्सनेलिटी ट्रेट्स (personality traits)को ब्लेम करने के बजाये, उन सारी बालों पर गोर करे जो उसके बिहेवियर को अफेक्ट करती है, ऐसे में आपको कुछ ऐसा बोलना चाहिए:” ओके, इस आदमी ने ब्लंडर मिस्टेक की है, लेकिन क्या ये सच में इतना स्टुपिड है? या क्या पता ये रात को ठीक से सो ना पाया हो, या कुछ परेशान हो.” इस चैप्टर का सबसे बड़ा लेसन है कि खुद को चेंज करना है तो अपना एनवायरमेंट चेंज कर दो. अब जैसे ऐसे कई टेलेंटेड और अच्छे लोग है जो अपने निकम्मे दोस्तों की कंपनी में बर्वाद हो गए है.
अगर उन्हें ऐसी बुरी सोहबत से दूर रखा जाता तो दें आज उनकी लाइफ कुछ और होती. सेम चीज़ आपके साथ भी है, और ये सिर्फ आपके फ्रेंड्स के बारे में नही है, अगर आप एक डल, अनइनवाईटिंग (dull, uninviting environment,) माहौल में काम कर रहे है तो इसमें कोई हैरानी की बात नहीं कि आप में इसपिरेशन और मोटिवेशन की हमेशा कमी रहेगी. लेकिन इसके लिए खुद को ब्लेम करने से पहले एक बार जरा अपना वर्क एनवायरमेंट चेंज करके देख लो. हम इस चैप्टर को इस बुक के एक कोट (quote) के साथ कम्प्लीट करेंगे: बाई ट्वीकिंग द एनवायरमेंट, यू बेसिकली आउटमार्ट योरसेल्फ” (By tweaking the environment, you basically outsmart yourself.”)
चैप्टर 9Chapter 9
अक्वायर गुड हैबिट्स (Acquire good habits)
हमारी लाइफ हैबिट्स से भरी हुई है. आपने शायद नोट ना किया हो लेकिन हैबिट्स ना हो तो हमारी लाइफ का हर दिन डिफरेंट होगा. ऑफ़ कोर्स हम सब के अंदर गुड और बैड हैबिट्स होती है, हीथ ब्रदर्स आपको सिखायेंगे कि अपने अंदर न्यू बेनीफिशियल हैबिट्स कैसे डेवलप की जाए. सबसे पहले तो ऐसा माना जाता है कि हैबिट्स रीफ्लेक्सेस (reflexes) की तरह है- ये ऑटोमेटिक होती है और अक्सर किसी ना किसी एनवायरमेंटल फैक्टर से ट्रीगर होती है जिन्हें एक्शन ट्रीगर बोलेते है. जैसा कि हमने पहले भी मेंशन किया है कि एनवायरमेंट यानी द पाध (The Path) बहुत इम्पोटेंट है. और हैबिट्स के साथ बेस्ट चीज ये है कि आप अपने न्यू एक्शन ट्रीगर सोच समझ कर चूज़ कर सकते हो. अब मान लो, आपने एक्सरसाइज़(exercising) स्टार्ट करने की ली है, तो मोनिंग में उठने के साथ ही ये करना एक स्मार्ट डिसीज़न होगा. हम सबका एक मोनिंग रूटीन होता है, और एक्सरसाइज़ सबसे बेस्ट रूटीन है जो आप सुबह कर सकते हो. तो एक्सरसाइज़ करने के लिए आपका एक्शन ट्रीगर है
मोर्निंग वर्ड. अगर आपको फिर भी कोई मोटिवेशन नहीं मिल रही तो आप एक काम करो, आप अपने रूम में कोई साईन बनाकर लगा दो जो आपको अपने नए रूटीन का रीमाइंड कराता रहेगा लेकिन ये साईन ठीक अपने बेड के सामने लगाओ ताकि मोनिंग में उठते ही सबसे पहले इस पर आपकी नज़र पडे, न्यू बेनेफिशियल हैबिट्स सस्टेन (sustain) करनी हो तो चेकलिस्ट भी बड़े काम आते है -हाँ ये थोड़े टायरसम और बोरिंग तो है लेकिन एंड में ये रहते है. एक और चीज़, आप डेली का चेकलिस्ट फिल करके भी अपना एक्शन ट्रीगर पा सकते है -अब जैसे कि आप अपने फेवरेट टीवी शो को चेकलिस्ट से असोशियेट (associate]कर सकते है हर एपिसोड से पहले आप चेकलिस्ट फिल कर सकते। और इस तरह आप खुद को ट्रीट करके एक नयी हैबिट डाल लोगे. इन जेर्नल बोले तो हैबिट रीइन्फोर्समेंट (Habit reinforcement)एक बड़ी इम्पोरटंट चीज़ है इसलिए जितनी बार आप कोई न्यू बेनेफिशियल हैबिट मेंटेन करे, खुद को रीवार्ड देना ना भूले.
चैप्टर 10 Chapter 10 द हर्ड (The Herd)
हम सब सोशल एनीमल है, हमे लोगो की कंपनी चाहिए. ये एक बड़ा फैक्ट है और जिनके साथ हम रहते है उन लोगों का बिहेचियर एक तरह से हमारे लिए एक कम्पास/compass} की तरह है – एक्चुअल में हम जिनके साथ घुमते, रहते है उसने एवरेज होते है. यहाँ हम ईजिली अपना डायरेक्शन देख सकते है -अगर आप एक नार्मल, फुलफिलिग लाइफ जीना चाहते है तो हमारे आस-पास वाले हमारी इस एसपाईरेशन(aspirations) को रीपलेक्ट करने चाहिए. अगर आप एक बहुत ओनेस्ट (honest) और शांत पर्सन बनना चाहते है तो हमेशा जल्दबाजी में रहने वाले लोगो के साथ घूमना स्टुपिड डिसीज़न होगा. क्योंकि अनकांशस्ली (unconsciously) आपका बेहिवियर उनसे इन्फ्लुयेंश होता है जिनके साथ आप रहते है. और आपको खुद पता नहीं चलता कि कब आप उनके जैसे बन जाते है.
ये एक बड़ा फैक्ट है सोशल साइकोलॉजी से पूर्व हुआ कि कन्फर्मिज्म (conformism) स्ट्रोंगेस्ट (strongest )ह्यूमन मोटीव्स (human है। motives) में से एक है. वैसे हम यहाँ कन्फर्मिज्म (“cornformism”) वर्ड का यूज़ थोड़े डीग्रेडिंग वे में कर रहे है लेकिन कोई भी इससे बचा नहीं है – जैसा हम पहले भी मेंशन कर चुके है कि, ये ऑटोमेटिक है. आप हार्डली इसे कंट्रोल कर सकते है. अपनी लाइफ से इसे पूरी तरह एलिमिनेट करने से बैटर है कि आप अच्छे लोगो के साथ रहे जिनका लाइफ गोल आपकी तरह सेम हो. ये चीज़ दुसरे एंगल से भी अप्लाई होती है. अगर कुछ लोग बाकी ग्रुप से अलग हो जाते है तो आप इस फैक्ट को एम्फेसाइज़ (emphasize) करके उन्हें कन्फर्म होने के लिए मोटीवेट कर सकते है.
चैप्टर 1 Chapter n
कीप इट गोइंग (Keep it going)
परजरवेंस (Perseverance) की(key) है. आप यहाँ मेशन किये गए सारे स्टेप्स फोलो करके भी पेल हो सकते है अगर आपमें परजरवेंस (Perseverance) की कमी है तो. सबसे बड़ी मुश्किल यहाँ पर ये है कि फेलर्स कैसे हैंडल किये जाए? और ये भी हम बता चुके है कि फेलर्स इन्विएटेबल (inevitable) है-जितनी जल्दी आप ये इम्पोर्टेट फैक्ट एक्सेप्ट करोगे, उतना ही बैटर. फ्यूचर डिफीकल्टीज हेंडल कर पाओगे, जितने भी सक्सेसफुल लोग है उनका सीक्रेट परजरवेंस (Perseverance) ही है. वे इतने स्टबर्न(stubborn) होते है कि एंड में फेलर्स भी उनके आगे हार मान लेती है.
कभी भी फेल होने के डर से हार मत मानो बल्कि इसके उलटे हर अनसक्सेसफुल अटेम्प्ट (unsuccessful attempt) के साथ आप अपनी सक्सेस के स्टेप और क्लोज आ जाते हो. हम ये सब बनाकर नहीं बोल रहे, आप किसी भी सक्सेसफुल पर्सन को ले लो, आप खुद देखोगे कि परजरवेंस (Perseverance) ही उनका सीक्रेट है.
एक और इम्पोटेंट चीज़ है -कई ऐसे रेंडम फैक्टर्स है जो प्रेडिक्ट नहीं कर सकते. आपकी लाइफ बहुत अच्छी होगी, लेकिन ये कभी बहुत बुरी भी हो सकती है. लेकिन इन रेंडम इवेंट्स से खुद को टूटने ना दो, इन रेंडम फैक्टर्स का एक टिपिकल सा एक्जाम्पल है, जब आपका पार्टनर बिना किसी वजह के आपको छोड़ देता है. अब तक सब ठीक था, आप दोनों साथ में खुश थे, कि तभी एक दिन आपका पार्टनर आपसे कहता है: ” इट्स नॉट यू, इट्स मी (irs not you, it’s me”) या फिर ऐसा ही कोई स्टुपिड सा रीजन, अब ज़ाहिर है आपका दिल टूट जाएगा -ऐसे में कुछ दिन सेड फील करना बड़ी
नार्मल सी बात होती है,
रोने से भी दुःख हल्का होता है, लेकिन आप इसकी वजह से खुद को टूटने नहीं दे सकते क्योंकि आपको डिप्रेशन में नहीं जाना है. हमे लगता है कि इस तरह के रेंडम इवेंट्स झेलना फेलियर्स से कहीं ज्यादा मुश्किल है जो प्योरली आपकी फाल्ट होती है. लेकिन ये लाइफ है, और जो आपके कण्ट्रोल में नहीं है उसे रेशनलाइज (rationalize) करना इतना ईजी नहीं है. बहुत से लोगो की नज़र में अब्राहम लिंकन अमेरिका के मोस्ट इम्पोर्टेंट प्रेजिडेंट में से एक है. उन्होंने अमेरिका में स्लेवरी हटा कर डेमोक्रेसी कायम की थी, लेकिन उनकी लाइफ इतनी दुःख भरी थी कि उन्हें सक्सेस मिलना किसी मिराकल से कम नहीं था, जब लिंकन बहुत छोटे से थे तो उनकी माँ चल बसी, उनकी एक सिस्टर थी साराह, जिसने उन्हें पला पोसा. लेकिन बदकिस्मती से साराह भी जल्दी ही चल बसी. लिंकन की फर्स्ट वाइफ शादी के तुरंत बाद मर गयी थी.उनके तीनो बेटे भी एक के बाद एक चल बसे.
उनका प्रोफेशनल करियर भी मुश्किलों से भरा रहा, लेकिन अब्राहम लिंकन ने हार नहीं मानी, वे अपनी मंजिल की तरह बढ़ते रहे. आपको भी इसी
तरह अपने गोल की तरफ चलते रहना है चाहे कुछ भी हो जाए. चलो अब इस समरी को हम “स्विच” (“Switch”) के एक फेवरेट कोट के साथ खत्म करते है : “व्हेन पीपल ट्राई टू चेंज थिंग्स, दे आर यूज्वलि टिंकरिंग विद बिहेवियर्स देट हेव बिकम ऑटोमेटिक, एंड चेंजिंग दोज़ बिहेदियर्स रीक्वायर्स केयरफुल सुपरविज़न बाई द राइडर, द बिगर द चेंज यू आर स्जेस्टिंग, द मोर इट विल सेप पीपल स सेल्फ कंट्रोल, एंड व्हेन पीपल एक्ज़स्ट देयर सेल्फ कंट्रोल, व्हट दे आर एक्जिस्टिंग आर द मेंटल मसल्स नीडेड टू थिंक क्रिएटिवली, टू फोकस, टु इनहिबिट देयर इम्पल्स, एंड टू परसिस्ट इन द फेस ऑफ़ फ्रस्ट्रेशन और फेलियर”
Conclusion: तो दोस्तो इस आडियो में हमने देखा कि अगर हमें चेंज होना है तो हमे 3 चीजो को समझना पड़ेगा पहला है राईडर, यानि हमारा रेशनल माईन्ड,
इन्टलीजेन्ट माईन्ड जो सोचता है, दूसरा है एलिफेन्ट यानि हमारा इरेशनल माईन्ट इमोशनल माईन्ट और तीसरा आता है पाथ यानि हमारी डूरराऊडिंग,
हमारा एनवायरमेंन्ट और हमारे आस-पास के लोग। अगर हमें चेंज होना है। सिवच करना है तो हमें इन तीनो को बैलेंस करना सीखना पडेगा।सिवच के लिये हमे सबसे पहले अपनी सारी एनर्जी सिर्फ एक टास्क पर लगानी पड़ेंगी ताकि हमे ज्यादा सोचने ना पडे और कन्फयूजन ना हो। उदाहरण के लिये अगर आप हेल्दी रहना चाहते है तो आप अपनी सुबह की चाय या कॉफी में चीनी डालना बन्द कर सकते है। अगर आप एक साथ 10 एकशन के बारे में सोचेंगे कि मैं जिम भी जाँयन कर लू, तीनो मीलस में कोई फेट ना खाऊ, मोरनिंग में जोगिंग में भी जायूँ तो सच बोलू तो कुछ नहीं होगा। सिर्प एक छोटे टास्क पर फोकस कीजिये।सेकण्ड स्टेप आता है कि खुद को एक स्टरोंग इमोशनल थाट दीजिये। उदाहरण के लिये अगर आप स्मोकिंग क्विट करना चाहते है और खुद से आप कहते है कि मै स्मोकिंग बन्द कर के हेल्दी भी रह सकता हूँ और पैसे भी बचा
सकता हूँ तो ये एक वीक आप्सन है और आप इस हेबिट को सिवच नही कर पायेंगे। इसलिये बेटर है कि आप खुद को इमेजिन कीजिये पीले दाँतो के
साथ, जिसके पास कोई नहीं आना चाहता। ये एक स्ट्रोंग इनोशन है और आपकी मदद कर सकता है।
लास्ट स्टेप आता है की अपना इनवायरमेन्ट चेंज करिये । अगर आपके आस पास सब ही टाईम वेस्ट करने वाले है तो ना चाहते हुए भी ये इनवायरमेन्ट आपको भी टाईम वेस्ट करने में मजबूर कर देगा। उसी तरह अगर आपके आस पास सब गोल आरियन्टट है और बिल्कुल टाईम वेस्ट नही करते तो ये इनवायरमेन्ट आपको भी फोक्सड बना देगा।