WISE GUY by Guy Kawasaki.

Readreviewtalk.com

यह किताब किसके लिए है

-उन व्यक्तियों के लिए जो अपना खुद का व्यवसाय शुरु करना चाहते हैं।

-डिजिटल छत्र के व्यक्ति भी इस किताब को पढ़ सकते है।

-उन अध्यनकारियों के लिए जो प्रेरणादायक कहानी पढना पसन्द करते हैं।

लेखक का परिचय।

गाए कावासाकी जो कि इस समय सबसे बड़े लेखकों में से एक है, सबसे पहले तब फेमस हुए थे जब 1980 के दशक में इन्होंने एप्पल कम्पनों के लिए सॉपरवेयर बढलने का काम शुरू किया था। उसके कुछ सागरा बाद ही इन्होंने खुद को सॉफ्टवेयर कम्पनी भी शुरू की। कावासाकी मसिडीज बेंज के ब्राड एबेसडर होने के साथ साथ मोटोरोला कापनों में एडवाइजर भी है। 190 में आई गैकिोश वै. 2004 में आई द आर्ट ऑफ स्टार्ट और 2011 में आई इनचाटगेन्ट इनकी मुख्य रचनाओं में से एक है।

यह किताब आप को क्यों पढनी चाहिए?

जैसा कि हम सभी सुनते हैं भाग्य हमेशा बहादुरों का ही साथ देता है। इस बात का सबसे अच्छा उदाहरण है गाए कावासाकी। कावासाकी का जीवन बहुत सारे उतार चढ़ाव से भरा रहा है परन्तु अपने जीवन में आने वाली कठिनाइयों से वो कभी घबराए नहीं। उनके दृण निक्षय का अंतुमान हम इस बात से लगा सकते हैं कि 62 साल के हो जाने के बाद उन्होंने सफिंग सीखी।

लेकिन शुरु से ही कावासाकी के साथ ऐसा नहीं था। जीवन के शुरुआती लम्हों में उनको बहुत से लोग मिले जिन्होंने उनकी की काफी मदद की। उनके स्कूल टीचर से लेकर उनके कॉलेज के दोस्त तक जिसने की कावासाकी के लिए अपना बना बनाया करियर दांव पर लगा दिया था। इस किताब के जरिये वो अपने जीवन के सारे रहस्यों को हमारे साथ साझा करेंगे साथ ही साथ उन सभी लोगों को शुक्रिया अदा भी करेंगे जिन्होंने जिन्दगी के किसी न किसी मोड पर कावासाकी की सहायता की।

इसके अलावा आप जानेंगे कि

लॉ स्कूल छोड़ना कावासाकी के लिए गेम चेंजर कैसे साबित हुमा।

सर्फिंग हमारे जीवन से किस प्रकार जुड़ी हुई है।

-बच्चे होना एक सुखनुमा अनुभव क्यों है।

कावासाकी का परिवार जापान से अमेरिका चला गया क्योंकि उन्हें एक अच्छे भविष्य की तलाश थी।

कावासाकी का परिवार उन लोगों में से एक है जो एक बेहतर भविष्य की तलाश में दुनिया में दर दर भटकते हैं। उनके पिता से पहले उनके ग्रैंड पेरेंट्स भी जापान के हिरोशिमा

से हवाई में रहने आये थे।

1890 और 1900 के बीच जब जापान चीन और रूस के साथ युद्ध मे व्यस्त था तब कावासाकी के ग्रैड पेरेंट्स को लगा कि ये सही सगय है जापान से हवाई में जाकर बसने का। जापान में सभी को आर्मी में शामिल किया जा रहा रहा था इसलिए इन लोगों ने हकालू प्लांटेशन को जॉइन कर लिया जो आमी में शामिल होके जान गवाने से काफी बेहतर थी।

वो लोग हमेशा के लिए होनुलुलु में ही बस गाए। कावासाकी के ग्रेड पेरेंट्स के तीन बच्चे थे। जब कावासाकी की एल्मा का देहांत हो गया तब उनकी आटी यानी कि उनकी दादी की बहन ने उनकी देखभाल की। कावासाकी को उन्होंने काफी कुछ सिखाया। उनकी आटी का नाम कैथरीन था। कावासाकी आज भी उस बात को याद करते हैं जब उन्होंने अपनी खिलोने वाली गन से एक पक्षी को मार दिया था और उस घटना के बाद उनकी आटी को काफी दुख हुआ था।

कावासाकी की दादी एल्मा के देहांत के बाद परिवार की सारी जिम्मेदारी अचानक से कावासाकी के पिता के कंधों पर आ गयी थीं। उस समय उनके पिता ड्यूक की उम्र मात्र 14 वर्ष ही थी। लेकिन उनके पिता काफी मेहनती थे। उन्होंने सभी तरह के इंस्टुरेंट्स को बजाना सीखा और उसके बाद उन्होंने अपना एक बैंड भी खोल जिसका नाम था इयूक कावा।

कावासाकी के नाना नानी भी उनके परिवार की तरह ही जापान से हवाई आये थे। उनकी एक सन्तान का नाम लुसी था जोकि बाद में कावासाकी की माँ बनी। उनकी माँ काफी

सम्पन्न परिवार से थी इसलिए उनको 1939 में पड़ने के लिए उनको जापान भेज दिया गया। 3 साल बाद 1942 में वो इबाई वापस लोटी।

शादी के बाद ड्यूक और लूसी ने ही कावासाकी और उनकी बहन जेन के देखभाल की। कावासाकी का बचपन काफी खुशनुमा था। उनके माता पिता ने अपने बच्चों के सफल भविष्य के लिए वो सब कुछ किया जोकि एक माता पिता को करना चाहिए। उन्होंने अपने बच्चों को यही सिखाया की मौके का फायदा उठाकर उसका अच्छे से इस्तेमाल करना चाहिए। यही एडवाइस कावासाकी को जीवन में बहुत काम आयी।

कावासाकी को उनके अध्यापकों द्वारा दी गई सलाह ने उन्हें स्टैनफोर्ड के मार्ग पर भेज दिया।

कावासाकी के ग्रैंड पेरेंट्स अमेरिका के हवाई में इसलिए आ गए थे क्योंकि उन्हें इस बात का एहसाह था कि उनको अच्छी शिक्षा नहीं मिली है परन्तु वो यह भी नहीं चाहते थे कि उनके बच्चों को भी अच्छी शिक्षा से वंचित रहना पड़े। इसलिए वो अमेरिका चले आये।

एक बार कावासाकी के पेरेंट्स को उनकी छटवीं कक्षा की टीचर ने बुलाया और उनसे कहा कि कावासाकी को एक अच्छे कॉलेज में एडमिशन दिलाए। उन्होंने उनको यह सलाह दी कि होनुलुलु में मौजूद पनहोऊ कॉलेज में उनका एडमिशन करवाये। ये वही कॉलेज है जहां पर बराक ओबामा जैसे विख्यात व्यक्ति ने पढ़ाई की थी।

अंत में कावासाकी का एडमिशन लोलानी में हुआ। उस समय वहां की फीस बहुत ज्यादा थी लेकिन इसके बावजूद उनके पेरेंट्स ने अलग अलग खर्चे कम करके उनके कॉलेज को फीस अदा की। लोलानी में जाने के बाद कावासाकी का जीवन बहुत बदल गया। उसी की वजह से आगे चलके कावासाकी को स्टैनफोर्ट जाने का मौका मिला। और कावासाकी खुद कहते हैं कि अगर वो स्टेनफोर्ड न जाते तो शायद आज जो इसान वो बन पाए है कभी न बन पाते।

स्टेनफोर्ड में जाना इतना आसान नहीं था क्योंकि लोलानी में उनको बहुत अच्छे नम्बर नहीं मिले थे। अगर आज के ज़माने में किसी के उतने कम नम्बर हो तो फिर यो इसान स्टेनफोर्ड में जाने के बारे में नहीं सोच सकता। लेकिन कॉलेज कॉउन्सिलर डैन फिल्दौस जोकि स्टेनफोर्ड में मैथ्स भी पढ़ते थे उन्होंने कावासाकी को सलाह दी कि स्टेनफोर्ड का एप्पलीकेशन फॉर्म भर दें।

स्टैनफोर्ड के साथ ही यूनिवर्सिटी ऑफ हवाई और ऑक्सीडेंटल कॉलेज जो कैलिफोर्निया में है उन सभी ने गाय कावासाकी को 1972 में अपने मनोवैज्ञानिक प्रमुख के रुप में जगह दी। कावासाकी को कैलिफोर्निया वाले कॉलेज में जाना था क्योंकि वहां पर उन्हें फुटबाल खेलने का मोका मिल रहा था। हालांकि उनको यह भी पता था कि उनके

पेरेंट्स उनके खेलने के लिए नहीं बल्कि उनकी पढ़ाई के लिए इतना पैसा लगा रहे थे।

अंत में उन्होंने अपने पिता के कहने पर स्टैनफोर्ड जॉइन किया जहां पर बाद में उन्हें एक दोस्त भी मिला जिसका नाम माइक बोडश था। बाद में दोनों ने मिलके एक साथ एप्पल में काम किया।

लॉ स्कूल छोड़ने के बाद कावासाकी को एड्साह हुआ कि छोड़ने और फेल होने में काफी फर्क है।

कावासाकी ने सबसे पहले स्टैनफोर्ड में मेडिसिन की पढ़ाई शुरु की लेकिन उनको जल्द ही इस बात का एहसास हो गया की मेडिसिन की पढ़ाई उनके लिए नहीं बनी गौ। उन्होंने डेन्टिस्ट बनना भी अस्वीकार कर दिया।

इसके बाद उन्होंने स्टेनफोर्ड से ग्रेजुएट होने के बाद रसल काटो को जॉइन किया। रसल काटो कावासाकी के दोस्त थे जो उन्हें लोलानी में मिले थे।

कॉलेज में जाने के बाद वहां ओरिएन्टेशन वीक के दौरान ही कावासाकी ने यह फैसला ले लिया कि वो कॉलेज छोड़ देंगे क्योंकि वहाँ पर प्रोफेसर बच्चों को अपनी क्लास के दौरान तंग करते थे। एक बार कावासाकी को यह डर सताया कि कॉलेज छोड़ने के बाद उनके माता पिता उनसे बात करना बन्द कर देंगे लेकिन इसके बावजूद उन्होंने निश्चय किया कि वो कॉलेज छोड़ देंगे।

लॉ कॉलेज छोड़ने के बाद उन्होंने 1977 में यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया में एमबीए का प्रोग्राम जॉइन कर लिया। इस कोर्स के दौरान कॉलेज में वार दिन क्लास होती थी और एक दिन प्रैक्टिकल किया जाता है। प्रैक्टिकल के दौरान ही कावासाकी एक ज्वेलरी ट्रेडर से मिले और उन्हें वो काफी पसंद आये इसलिए कावासाकी ने यह निक्षय किया वो अपना हर शुक्रवार उसी ट्रेडर के साथ बिताएंगे।

ज्वैलरी बेचना काफी आसान काम हुआ करता था। उस समय भज की तरह मोल भाव नहीं किया जाता था। न ही उस समय ऑनलाइन शॉपिंग का जमाना था।

कावासाकी का मानना था जब तक कोई खरीदार आपके सामान को बड़े पैमाने पर न खरीद ले, तब तक आप वास्तव में एक सेल्समेन नहीं बन सकते।

जैसा कि गाय कावासाकी कहते हैं, आप तब तक एक सेल्स पर्सन नही होते हैं जब तक गहने खरीदने वाला आप के सामान को तराजू पर रख कर, ये पता ना कर ले कि उसमें कितना सोना है और उस सोने की असली कीमत का 10 प्रतिशत आप को ऑफ़र ना कर दे और वो भी 120 दिन में देगा तत्काल नहीं।

यहाँ से मिली सौख उनके बहुत काम आयी जब उन्होंने एप्पल कम्पनी में जॉब शुरू की।

कावासाकी को एप्पल में जॉब मिली और उन्होंने जल्द ही यह साबित भी कर दिया कि वो इस जॉब के लिए बिल्कुल सही व्यक्ति हैं।

कावासाकी का कंप्यूटर के प्रति प्यार सबसे पहली बार तब देखने को मिला जब उनके एक दोस्त माइक बोइश ने उनको एप्पल कम्पनी के द्वारा बनाये गए एक नए कप्यूटर मॉडल से अवगत कराया। जब कावासाकी ने उस नए कप्यूटर को इस्तेमाल किया तब उनको वो नया वाला अपने पुराने मॉडल से काफी अच्छा और काफी तेज लगा। उसके बाद उनके दोस्त माइक बोडच ने बताया कि कावासाकी जिस कम्पनी के कंप्यूटर का इस्तेमाल कर रहे हैं उस कम्पनी में उनको जॉब करने का मौका भी मिल सकता है। कावासाकी ने तुरंत ही उस जॉब के लिए अप्लाय कर दिया।

सितम्बर 1983 में कावासाकी ने सॉफ्टवेयर एवेंजलिस्ट के तौर पर एप्पल कम्पनी जॉइन की। कावासाकी का खुद भी मानना था कि वो जिस जॉब के लिए हायर किये गाए थे उस जॉब के लिए उनसे ज्यादा अच्छे व्यक्ति मौजूद थे और तो और स्टीव जॉब्स जो ऐप्पल कम्पनी के सीईओ थे वो भी नहीं चाहते थे कि कावासाकी जैसे कम क्वालिफाइड व्यक्ति को यह जांब दी जाए लेकिन कावासाकी के दोस्त माइक बोइश ने स्टीव जॉब्स को भरोसा दिलाया कि कावासाकी उस जॉब के लिए एकदम सही व्यक्ति हैं। उन्होंने कहा कि अगर कावासाकी सही काम न करें तो उनके साथ साथ माइक खुद अपनी जॉब छोड़ने को भी तैयार थे।

अब कावासाकी की नौकरी उनके खुद के हाथ में थी। उनको जल्द ही यह एहसाह हुआ कि ज्वेलरी ट्रेडिंग में काम करने के दौरान उन्होंने जो सीखा था वो एप्पल में भी कम आ सकता है क्योंकि यहां पर भी उनको सेल्समैन के काम से ही शुरू करना था। ‘इवेंजीलाइज़िंग एपपल कम्पनी में सॉफ्टवेयर और हाईवेयर निर्माताओं को रिझाने समझाने के लिए कंपनी कोड था। कावासाकी को यह सब जितना आसान मालूम पड़ रहा था असल में यह काम उतना आसान नहीं था क्योंकि एप्पल उस समय वास्तविकता से हटकर विचारों की कम्पनी थी।

पहले 6 महीने कावासाकी ने अपने दोस्त माइक बोडश के अंडर में काम किया उसके बाद उन्होंने खुद को साबित करना शुरु किया। एप्पल द्वारा कावासाकी को नौकरी पर रखने का फैसला अब सही साबित होता दिख रहा था। कावासाकी को और आकर्षित कर रहे थे। को लगता है कि ऐसे कुछ कारण जिसकी मदद से वह लोगों को संदेह को समझाने में सक्षम थे। सबसे पहले, एप्पल जो कर रहा था वह एकदम नया काम था, और उनके इस विचार ने लोगों में एक चर्चा मैदा की, जिसने लोगों को एप्पल के तरफ स्विच लिया। यह सही समय पर सही जगह पर रहने का भी मामला था। आखिरकार 1980 के दशक में एप्पल पर्सनल कम्प्यूटर को बाजार में उतारना शुरू कर दिया गया। कभी कभी लकी होना भी फायदेमंद होता है।

कावासाकी को यह काम बहुत पसंद आया। एप्पल के आफिस में बहुत से लोग ऐसे थे जो या तो अपनी जॉब के प्रति बहुत कमिटेड थे या फिर वो बहुत डेटरमिनटेड थे। परन्तु ऐसे बहुत से कम लोग थे जो कमिटेड होने के साथ साथ डेटमिनटेड भी थे और कावासाकी उन्हीं में से एक थे।

कावासाकी का एप्पल में काम करना काफी उतार चढ़ाव भरा रहा और अंत में उन्होंने जॉब छोड़ कर खुद का काम करने का विचार अपनाया।

एप्पल में काम करना उतना आसान नहीं था क्योंकि एप्पल कम्पनी के अधिकारी हमेशा अपने कर्मचारियों से ज्यादा की उम्मीद रखते थे। कावासाकी के समय में कर्मचारियों को रोज खुद को साबित करना पड़ता था।

कावासाकी ने खुद को रोजाना साबित भी किया। उनको कम्पनी में काम करते करते तीन साल हो चुके थे और उनको उम्मीद थी कि अब उनका प्रोमोशन होगा। न केवल प्रोमोशन बल्कि उनको उम्मीद थी कम्पनी की तरफ उनको वो सभी सुविधाएँ मिलेंगी जोकि कम्पनी में मौजूद डायरेक्टर्स को मिलती थी। लेकिन कावासाकी के बॉस डेल योकॉम इस बात का समर्थन नहीं करते थे। उस समय एप्पल अपने कॉम्पिटीटर के ऊपर काफी डिपेंड रहती थी और कावासाकी ने छोटे छोटे कॉम्पिटीटर के साथ अच्छे सम्बंध स्थापित कर लिए थे जिससे कि एप्पल को अपना प्रोडक्ट मार्किट में लाने में ज्यादा दिक्कत नहीं होती थीं। लेकिन तीन बड़ी कंपनियां ऐसी थी जिनसे की एप्पल को काफी कॉम्पिटिशन मिल रहा रहा। माइक्रोसॉफ्ट, लोटस और एश्टन-टेट एप्पल के साथ साथ कावासाकी को भी कम पसन्द करती थी।

कावासाकी को लगा यह सही समय है कि वो अपनी कम्पनी के लिए कुछ अच्छा करें और अपने खिलाफ खड़े हो रहे कॉम्पिटिशन को कम करें। उनके बाँस डेल योकॉम का मानना था कि अगर छोटी छोटी कम्पनी एप्पल के साथ मिल जाएंगी तो जो बड़ी कम्पनी हैं उनसे निपटना आसान हो जाएगा। बड़ी कम्पनी को खुश करने का एकमात्र तरीका कावासाकी का प्रमोशन रोकना था। डेल ने वही किया और इस डिसिजन से कावासाकी इतने नाराज हुए की वो कम्पनी तक छोड़ने वाले थे लेकिन आज जब कावासाकी पीछे मुड़ कर देखते हैं तो उनको डेल का वह डिसिजन सही मालूम पड़ता है।

अंत में, कावासाकी, एश्टन-टेट की पसंद के साथ तालमेल करने के लिए एप्पल के निर्णय को स्वीकार करने वाले एकमात्र व्यक्ति नहीं थे। मैकिटोश को एक संबंधित डेटाबेस की आवश्यकता थी जोकि एक संग्रहित जानकारी के विभिन्न बिट्स के बीच कनेक्शन को व्यवस्थित करने के लिए। एश्टन-टेट ने आईबीएम पीसी के लिए पहले से ही एक डेटाबेस लाया था, जिसे डीबेस कहा जाता है, लेकिन मैक के लिए इसको विकसित करने के लिए संसाधनों के बारे में संकोच था।

कुछ समय बाद फ्रांस के दो डेवलपर ने मिलकर एक ऐसे ही सॉफ्टवेयर का निर्माण किया। उनसे सॉपटवेयर खरीदने के लिए एप्पल ने उनसे मोल भाव शुरू किया। उस सॉफ्टवेयर का नाम फोर्थ डायमेंशन था। एस्टन टेल को पता चल गया था कि उनके लिए एक प्रतिद्वंद्वी तैयार हो चुका है। उन्होंने एप्पल से डील करने की कोशिश की लेकिन शायद इसके लिए बहुत देर हो चुकी थी और एप्पल ने उन दोनों डेवलपर के साथ दील कर की। इस डील के बाद एस्टन टेल और एप्पल में मौजूद तीन लोग के बीच सम्बंध बिगड़ गए। कावासाकी, डेलबॉर्ग और रिबर्डिएरे। डेलबॉर्ग और रिबर्डिएरे वही थे जिन्होंने फोर्थ

डायमेंशन नाम का सॉफ्टवेयर डेवेलप किया था। एस्टन का साथ न मिलने के बाद इन तीनों ने खुद ही इस सॉफ्टवेयर को लांच करने का प्रोग्राम बनाया। और इसलिए 1 अप्रैल 1987 को गाए कावासाकी ने एप्पल को छोड़ दिया और ACIUS के सीईओ बने। आज फोर्थ डायमेंशन हर एक कंप्यूटर में इस्तेमाल किया जाता है और ACIUS जोकि इस सॉफ्टवेयर की पैरेंट कम्पनी है अपनी 36वी सालगिरह मनाने जा रही है।

नब्बे के मध्य दशक में कावासाकी ने फिर से एप्पल जॉइन की क्योंकि कम्पनी के डूबने के डर था।

आज विश्व की सबसे बड़ी कम्पनी में शुमार एप्पल के लिए एक समय ऐसा भी था जब लग रहा था कि इस कम्पनी का नामोनिशान तक नहीं बचेगा। 1995 एक ऐसा साल था जब बड़े बड़े बिजनेसमैन एप्पल का अंत मान रहे थे। स्टीव जॉब्स ने दस साल पहले एप्पल को छोड़ दिया था, कम्पनी का सबसे पापुलर प्रोडक्ट मेरकिंटोश भी बाजार में सघर्ष कर रहा था, और कंपनी को छंटनी द्वारा विघटित किया जा रहा था क्योंकि यह अपने फाइनेंस को स्थिर करने के लिए सघर्ष कर रही थी। इन समस्याओं से छुटकारा पाने के लिए एप्पल के वाइस प्रेसिडेंट इन एयलर, कावासाकी के पास पहुँचे।

इस समय तक कवासाकी का एप्पल के लिए प्यार खत्म नहीं हुआ था और उन्होंने दोबारा कम्पनी जॉइन करने के लिए हां कर दिया। अबकी बार कम्पनी में उनको चौफ एवेंजलिस्ट का पद मिला। उनका काम यही था कि वो मैकिटोश को फिर से पॉपुलर करें और कम्पनी को फिर से उसकी सही दिशा में ले जाटा एप्पल में अपने पहले “ड्यूटी टूर के दौरान, कावासाकी ने यूजर्स के ग्रुप का समर्थन करने में बहुत समय बिताया और व्यक्तिगत अनुभव से वह इस बात को जानते थे कि जब भाप यूज़र का विश्वास जीत लेते हैं, तो फिर मैक उपयोगकर्ता कम्पनी के प्रति निष्ठावान हो सकते हैं।

अपने यूज़र्स को लुभाने के लिए कावासाकी ने एक और चाल चली। उन्होंने एक ईमेल श्रेड एवेजलिंस्ट का निर्माण किया जिसके जरिये सभी यूज़र्स को एप्पल के द्वारा दी जाने वाली सर्विस के बारे में बताया जाता था और साथ ही साथ उस ईमेल के जरिये एप्पल के नए प्रोडक्ट का प्रचार भी होता था। इस ईमेल के जरिये लगभग 40000 लोग एप्पल से जुड़े जोकि अविश्वसनीय था। अगर हम इन नंबर्स को आज के मुकाबले में देखे तो ये काफी कम लगेंगे लेकिन उस समय इतने लोगों का जुड़ना किसी चमत्कार से कम नहीं था। अगर एवेंजलिस्ट न होता तो शायद यूज़र्स एप्पल को छोड़ कर किसी और कम्पनी पर चले जाते।

गाए कावासाकी ने अपना काम तो किया लेकिन एप्पल के सब कुछ अचानक से तब बदला जब स्टीव जॉब्स ने 1997 में दोबारा कम्पनी जॉइन की। जॉब्स ने 12 साल बाद वापस आ कर मैकिंटोश को जगह एक कलरफुल imac का निर्माण किया। कावासाकी का मानना था कि स्टीव जॉब्स जैसा जीनियस हो इस काम को कर सकता था। स्टीव जॉब्स ही थे जिनकी सोच से प्रेरित होके कावासाकी ने दोबारा एप्पल छोड़ी और कुछ अलग करने की कोशिश में जुट गए।

पैरेंटिंग के जरिये गाए ने सहानुभूति और दया के बारे में सीखा।

1983 में एप्पल में काम करने के दौरान कावासाकी को अपने साथ काम करने वाली महिला मित्र बेथ के साथ प्यार हुआ और दोनों ने बाद में शादी कर ली। कावासाकी का मानना था कि बच्चों को पालना उतना आसान नहीं होता जितना कि लोग सोचते हैं। उनका कहना कि बच्चे हमें वो सब कुछ सिखाते हैं जो कि हमे स्कूल, कॉलेज और यूनिवर्सिटी में भी सीखने को नहीं मिलता।

सबसे जरूरी चीज़ यह सीखने को मिलती है कि कभी भी किसी को बिना जाने उसके बारे में कोई बात न कहें क्योंकि कोन किस सिंचुएशन से गुज़र रहा है ये तो बस वो इंसान हो जानता है। यह बात कावासाकी ने अपने बेटे नेट से सीखी। नेट डिस्लेक्सिया से पीड़ित था। इस बीमारी में अक्षर और नम्बर्स को समझने में परेशानी होती है। इसी बीमारी की वजह से नेट स्कूल में अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पा रहा था जिसके कारण बेथ और कावासाकी काफी परेशान थे। लेकिन कुछ समय बाद नेट के टीचर ने डिस्लेक्सिया से पीड़ित बच्चों के पेरेंट्स की अलग से क्लास लेनी शुरू की जब कावासाकी और बेथ उस क्लास में बुरी तरह फेल हुए तब उन्हें एहसाह हुआ कि उनका बेटा नेट किस परेशानी से जुड़ा रहा था। ऐसा पहली बार हुआ था जब कावासाकी ने अपने बेटे की नजर से दुनिया को देखा था।

बच्चे अपने माता-पिता को दूसरों को देखने के तरीके में बदलाव नहीं करते बल्कि वे माता-पिता द्वारा खुद को देखने के तरीके को भी बदल सकते हैं। कभी कभी ये काफी दुख भी देता है। जब कावासाकी ने सर्फिंग सीखनी शुरू की तो शुरुआत में उनका लहरों को पहचानने में काफी दिक्कत का सामना करना पड़ रहा था। इस बारे में उन्होंने अपनी बेटी नोहोनी ने बात की जोकि सर्फिंग में बहुत अच्छी थी। नोहोनी बताया कि पापा भाप लहरों को पढ़ने में असफल हो रहे हैं। और सर्फिंग में लहरों को जानना सबसे ज्यादा जरूरी होता है। यह सुनने के बाद कावासाकी को अपने पिता से कही एक बात याद आ गई। जैसा कि हमने पहा था कि कावासाकी के पिता ज्यूक को ईस्टमेंट बजाना पसन्द था। वो सब तरह के इस्ट्रमेंट प्ले कर सकते थे। परन्तु पिआनो एक ऐसा इस्ट्मेंट था जिसमें वो हमेशा पीछे रह जाते थे। ड्यूक हर दिन पिआनो पर एक ही गाने की प्रेक्टिस करते थे। एक दिन तंग आकर कावासाकी ने पिता से यह कह दिया कि पिताजी आप पिआनो बजाना छोड़ दीजिए क्योंकि यह आपसे नहीं हो पायेगा। यह बात यादकर के कावासाकी को बहुत तकलीफ हुई।

किसी भी चीज को सीखने के लिए उम्र नहीं देखनी चाहिए।

62 की उम्र में सर्किंग सीखना कावासाकी को काफी रास आया। सर्फिग सीखने से ना सिर्फ उन्होंने अपनी बेटी के साथ अच्छा रिश्ता स्थापित किया बल्कि उन्हें यह भी ज्ञात हुआ कि कोई भी नई चीज सीखने के लिए कभी भी उम्र का बहाना नहीं करना चाहिए।

अगर आप सफिंग के बारे में नहीं जानते हैं तो हम आपको बता दें कि सर्फिंग दो तरह की होती है पेडल और प्रोन। पेइल सर्फिंग में ईसान को खड़े होकर सर्फ करना पड़ता है यह प्रोन सर्फिंग के मुकाबले में काफी आसान होती है। प्रोन सफिंग काफी मुश्किल होती है। यह एक ट्रेडिशनल तरीके की सर्फिंग है। इसमें राइडर को अपने बोर्ड पर लेट के सर्फ करना होता है।

शुरुआत में कावासाकी ने पेडल सर्किंग सीखना शुरू की। उसमें वह काफी अच्छी तरीके से प्रोग्रेस भी कर रहे थे। लेकिन कुछ समय बाद जब उनकी बेटी ने प्रोन सर्फिंग में दिलवस्पी दिखाई और उसने बहुत ही जल्द प्रोन सर्फिंग सीख भी ली तो उसके बाद कावासाकी ने सोवा कि क्यों ना वह भी प्रोन सर्फिंग सीखकर अपनी बेटी को खुश करें। लेकिन यह उतना आसान नहीं था जितना कि कावासाकी को लग रहा था। कावासाकी को प्रोन सफिंग में काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ा। इसलिए उन्हें उनके दोस्त ने एक ऐसे इंसान से अवगत कराया जो प्रोन सफिंग में माहिर था। जेफ बल्लार्क जो प्रोन सर्फिंग के चैंपियन थे उन्होंने कावासाकी की क्लास लेनी शुरु की।

सही टीचर की मदद से आखिरकार कावासाकी ने प्रोन सर्फिंग सीख ली लेकिन उन्हें इसके लिए सर्फिंग के रूल में बदलाव करना पड़ा। कावासाकी ने अपने पेडल सर्फिग बोर्ड का इस्तेमाल प्रोन सर्फिंग सीखने के लिए किया। क्योंकि प्रोन सर्फिंग में जो बोर्ड इस्तेमाल होता था वह कम चौड़ा होता था और पेडल सफिंग में इस्तेमाल होने वाला बोर्ड काफी चौड़ा होता था। इसकी मदद से कावासाकी ने जल्द ही प्रोत सर्फिंग भी सीख ली।

इसके बाद कावासाकी को इस बात का एहसास हुआ कि अगर इसान किसी भी चीज़ का हड़ निश्चय कर ले तो वह चीज़ वह जरूर पा लेता है। जिस तरह से कावासाकी ने 62 साल की उम्र में सर्किंग सीखी उसी तरह से कोई भी इंसान अपने जीवन में निर्धारित लक्ष्य को पा सकता है, परंतु उसे उस लक्ष्य के अकॉडिंग मेहनत करने की आवश्यकता होती है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *