THINKING IN Bets by Annie Duke.

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यह किसके लिए है

-वेजो बेहतर फैसले लेना सीखना चाहते हैं।

वैजो गोकर खेलना पसंद करते हैं और उसके बारे में जानना चाहते हैं।

वे जो अपनी गलतियों को पहचानना सीखना चाहते हैं।

लेखक के बारे में

एनी ड्युक (Ante Duke) अमेरिका की एक प्रोफेशनल पोकर प्लेयर और एक लाखका हैं। उन्होंने 2004 में वाल्ड सिरीज़ आफ पोकर ब्रेसलेट जीता था। महिला खिलाड़ियों में वै पोकर की

सबसे अच्छी खिलाड़ी मानी जाती हैं।

यह किताब आपको क्यों पढ़नी चाहिए

लगभग सारे लोगों का यह माना होता है कि अगर कुछ खराब हो रहा है, तो वो हालात का दोष है और अगर कुछ अच्छा हो रहा है तो वो उनकी अपनी काबिलियत की वजह से हो रहा है। अगर किसान की खेती अच्छी होती है तो वो कहता है कि यह उसकी मेहनत का फल है और अगर वो खराब होती है तो वो भगवान पर दोष देने लगता है।

इस तरह की बातें हमें सच जानने से रोकती हैं। यह बातें हमें हमारी काबिलियत जानने से और अपनी गलतियों को पहचानने से रोकती हैं जिससे हम खुद को पहले बेहतर नहीं बना पाते। यह किताब हमें बताती है कि किस तरह से हम इस मानसिकता से निकल सकते हैं। यह किताब हमें एक ग्रुप की अहमियत के बारे में बताती है।

इसे पढ़कर आप सीखेंगे

-फैसले सही या गलत क्यों नहीं होते हैं।

किस तरह से भाप अपनी गलतियों को पहचान सकते हैं।

एक ग्रुप किस तरह से आपको बेहतर बना सकता है।

फैसले गलत या सही नहीं होते हैं, लेकिन उनसे मिलने वाले नतीजे हमें यह सोचने पर मजबूर कर देते हैं।

हम सभी की यह आदत होती है कि हम एक फैसले के नतीजे से यह बताने लगते हैं कि वो फैसला सही था या गलता एक्जाम्प्ल के लिए, अगर एक व्यक्ति बिजनेस करने जा रहा है और उसका उसमें नुकसान हो जाता है, तो सारे लोग कहने लगते हैं कि उसे बिजनेस में जाने का फैसला नहीं लेना चाहिए था। लेकिन अगर वही व्यक्ति कामयाब हो जाता. तो सारे लोग कहते कि उसका फैसला सही था।

फैसले लेते वक्त कभी कभी हमें यह नहीं पता होता कि उसके नतीजे क्या हो सकते हैं। कभी-कभी एक फैसला जो देखने में गलत लगता है, वो सही साबित हो जाता है

और कभी कभी एक फेसला जो देखने में सही लग रहा था. वो गलत साबित हो जाता है।

इसलिए फैसले कभी सही या गलत नहीं होते। यह जिन्दगी एक जुएट के खेल की तरह है, जिसमें आपको यह पता नहीं रहता कि सामने वाले के पास कौन से पत्ते हैं। आप अपनी समझ के हिसाब से चाल चलते हैं, लेकिन अगर सामने वाले के पास इक्का है, तो आपकी कोई चाल काम नहीं करेगी।

इस समस्या से निकलने के लिए आपको एक फैसले को पूरी तरह से सही या गलत की कैटेगरी में ना रखकर उस फैसले के अलग-अलग नतीजे के बारे में सोचिए। यह सोचिए कि उस फैसले से गलत नतीजे मिलने की क्या संभावना है और सही नतीजे मिलने की क्या संभावना है। इस तरह से आप यह पता कर पाएँगे कि उस फैसले को लेने पर आपको कितना नुकसान और कितना फायदा हो सकता है।

इस तरह से अगर अच्छे नतीजे मिलने की संभावना 80% है और खराब नतीजे मिलने की संभावना 20%, तो उस फैसले को ले लीजिए। लेकिन अगर आपको अच्छे नतीजे नहीं मिलते हैं, तो यह मत सोचिए कि आपका फैसला गलत था। अगर गलत नतीजे मिलते हैं, तो वो 20% की संभावना सव हो गई है। इसमें वो फैसला गलत नहीं था, क्योंकि उसमें नुकसान की संभावना भी थी। लेकिन क्योंकि उसके फायदे की सभावना ज्यादा थी, आप ने उस फैसले को लेकर एक तरह से सही फैसला लिया।

अगर आपको सच जानना है तो आपको अपने विश्वास को चुनौती देनी होगी।

हम में से हर किसी का कुछ मानना होता है। हर कोई कहता है – ‘मेरे हिसाब से यह सच है , “ मैं मानता हूँ कि ऐसा होता है।”

लेकिन क्या यह सिर्फ आपकी राय है, या फिर आपके ऐसा मानने के पीछे कुछ खास च्ह है? बहुत से लोग अक्सर शार्टकट इस्तेमाल करते हैं ताकि वे जल्दी से फेसले ले सके। इसलिए यह जरूरी नहीं है कि आप जो सोच रहे हों वो सच ही हो। सच जानने के लिए आपको रीसर्च करना होगा।

लेकिन उससे पहले यह जानते हैं कि क्यों हम अपने भरोसे को सच मानते हैं। इसकी एक वजह है हमारे पूर्वजों की मानसिकता। जब उन्हें जगल कि झाड़ियों में से कुछ बाहर निकलने की आवाज सुनाई देती थी, तो वे यह मान लेते थे कि वह एक शेर होगा और वे भाग जाते थे। इस बात पर भरोसा ना करना मतलब मौत को गले लगाने का निमंत्रण देना था। अगर आप यहाँ पर रुक कर सच जानने की कोशिश करते, तो आप सच तो जान लेते, लेकिन उसके बाद कुछ भी जानने के लायक नहीं बचते।

इसलिए हमें अपनी सोच पर भरोसा करने की आदत है। जब हम बोलने लगे, तो हम इस तरह की बातों के बारे में लोगों को बताने लगे। हम उनसे कहने लगे कि मेरे हिसाब से यह सच है और लोग मानने भी लगे, क्योंकि ना मानने की कीमत बहुत ज्यादा थी।

हम बातों पर बहुत आसानी से भरोसा कर लेते हैं। एक बार जब हम किसी चीज़ पर भरोसा करने लगते हैं, तो उस भरोसे को तोड़ना बहुत मुश्किल होता है। साथ ही, हम जो भी मानते हैं, हम कोशिश करते हैं कि दूसरे मभी उस बात को मारने। हम सोचते हैं कि हम जो मान रहे हैं वो सच है और इसलिए हम उस सच के बारे में दूसरों को भी बताने लगते हैं। लेकिन फिर से आप कैसे कह सकते है कि आप जो मान रहे है वो सच है?

लेकिन अच्छी बात यह है कि हम अपने भरोसे को बदल सकते हैं। इसके लिए आप एक तरीका अपना सकते हैं, जिसका नाम है – शर्त लगाते हो। जब भी आप अपनी बात को किसी को मनवा रहे हों, तो खुद से पूछिए कि आप अपनी बात पर 1000 रुपाए की शर्त लगा सकते हैं। अगर आप अपनी बात को साबित नहीं कर पाए, या सामने वाले ने आपको गलत साबित कर दिया, तो आपको 1000 रुपए खोने होंगे।

इस तरह से आपको एक वजह मिलती है अपनी ही कही गई बात पर शक करने की। इस तरह से आप ना सिर्फ सच जान पाएंगे, बल्कि कुछ नई जानकारी भी हासिल कर पाएंगे।

अपने फैसलों से मिलने वाले नतीजों से हम बहुत कुछ सीख सकते हैं।

लोग कहते हैं कि हम अपनी गलतियों से सीखते हैं। अगर हमने कुछ काम किया और उसका नतीजा हमें गलत मिलता है तो वह काम गलत था और वो हमें फिर से कभी नहीं करना है। लेकिन हमने अभी अभी देखा कि कोई भी फैसला गलत नहीं होता। कभी कभी एक सही लगने वाला फैसला भी गलत नतीजे दे देता है। कभी कभी हालात हमारे काबू में नहीं होते हैं और इसलिए हर फैसले का हमें खराब नतीजा ही मिलता है। ऐसे हालात में आपको यह जानना होगा कि अगर आपको खराब नतीजे मिले तो वो हालात का दोष था या फिर आप उससे बचने के लिए कुछ कर सकते थे। अगर आप

उससे बचने के लिए कुछ कर सकते थे तो यह पता लगाहए कि वो क्या था ताकि आप से वो गलती फिर से ना हो।

यहाँ पर आपको पता लगाना होगा कि आपकी गलती कितनी थी और हालात का कितना दोष था। लेकिन यह पता लगाने में सबसे बड़ी परेशानी होती है हमारी मानसिकता। हम अच्छे नतीजों का क्रेडिट अपनी काबिलियत को देते हैं और खराब नतीजों का क्रेडिट अपने हालात को।

एक रीसर्च में यह बात सामने आई कि 91% ड्राइवर्स एक एक्सिडेंट के वक्त अपनी गलती नहीं मानते हैं। यहाँ तक कि जब वे किसी चीज़ से भिड़ जाते हैं, तो इस हालात में भी 37% लोग किसी दूसरी चीज़ पर इल्जाम लगाते हैं। इस तरह से खराब नतीजे मिलते ही हम सारा इल्जाम हालात पर लगाने लगते हैं।

लेकिन अगर हम यह बात दूसरों पर लागू करें, तो बात कुछ उल्टी हो जाती है। अगर किसी दूसरे व्यक्ति को अच्छे नतीजे मिलते हैं, तो हम सोचते हैं कि उसके हालात अच्छे थे और अगर खराब नतीजे मिलते हैं, तो हम सोचते हैं उसने गलत फैसला लिया था। इस तरह से यह मानसिकता अच्छे से सोचने में और सच्चाई तक पहुंचने में एक

मुश्किल बन जाती है। अगर आपको सच तक पहुंचना है, तो आपको इसे बगल में रखना होगा।

अपने नतीजों के पीछे की वजह को जानने के लिए आपको अच्छी आदतें बनानी होंगी।

फिल आइवी दुनिया के सबसे महान पोकर खिलाड़ी माने जाते हैं। उनकी कामयाबी की वजह है उनकी आदतें। आदतें कामयाब बनने के लिए बहुत जरुरी होती है और इसके तीन हिस्से होते हैं – क्यू. रुटीन और रिवाई। अच्छी आदतें बनाने के लिए आपको क्यु और रिवार्ड को ना बदलकर अपने रूटीन को बदलना होगा।

एक्जाम्पल के लिए जब हम पोकर स्वेलते हैं और जीत जाते हैं तो हम जीतने की वजह अपनी काबिलियत को मानते हैं। इससे हमारी सेल्फ इमेज़ सुधरती है और हम खुद के बारे में अच्छा सोचने लगत हैं। यहाँ पर पोकर में जीतना एक क्यु है, उसकी वजह अपनी काबिलियत को मानना एक रूटीन है और खुद को काबिल समझ कर अपने सेल्फ इमेज़ को मजबूत बनाना हमारा रिवार्ड है।

फिल आइवी इस तरह से नहीं खेलते। वे हर बार जीतने पर हालात को अच्छे से समझाते हैं और इस तरह से यह फैसला लेते हैं कि जीतने की बजह उनकी किस्मत थी या फिर उनकी काबिलियत। यहाँ पर आपको भी कुछ ऐसा ही करना होगा।

मान लीजिए कि आप पोकर खेलते हैं और उसमें जीत जाते हैं। आपका जीतना एक क्यू है। अब आप अपने जीतने की वजह अपनी काबिलियत को बताने लगते हैं जो कि आपका रूटीन है। इससे आप खुद के बारे में अच्छा सोचने लगते हैं जो कि आपका रिचार्ड है। अपनी मानसिकता से बच कर सही फेसला लेने के लिए आपको अपनी इस आदत को बदलना होगा। इसके लिए आपको सिर्फ अपने रुटीन को बदलने की जरुरत है।

अब जब आप जीतें, तो उसकी वजह सीधा अपनी काबिलियत को ना बताकर यह सोचने की कोशिश कीजिए कि कहीं आप हालात के अच्छे होने से तो नहीं जीते? अब आप यह सोच रहे होंगे कि ऐसा सोचने से आप अच्छा केसे महसूस करेंगे। अच्छे महसूस करने के लिए आप खुद को एक ऐसे व्यक्ति की तरह देखिए जो सही और गलत में अंतर करना जानता है।

इस तरह की सोच को अपनाने के लिए आप शर्त लगाते हो’ वाला तरीका अपना सकते हैं। अब जब आप किसी नतीजे की वजह पता लगाएँ, तो खुद से यह पूछिए कि क्या आप उसपर 1000 रुपए की शर्त लगा सकते हैं

हम एक ग्रुप का सहारा लेकर सही फैसला लेना सीख सकते हैं।

लेखिका बहुत खुश किस्मत थी कि उन्हें अपने कैरियर की शुरुआत में एक ऐसा ग्रुप मिल गया जहां उन्हें पोकर खेलते वक्त अपनी गलतियों को पहचानना सिखाया गया।

इस ग्रुप में महान पोकर खिलाड़ी एरिक सीडल थे। लेखिका की आदत कि वे हर बार हार जाने पर अपनी किस्मत का रोना रोने लगती थी। लेकिन एरिक उन्हें चुप करा देते थे और अच्छे से सोचने के लिए कहते थे। वे उन्हें यह सोचने को लिए कहते थे कि कैसे बे उस हालात से बच सकती थी। क्या वो सब में पूरी तरह से किस्मत का दोष था? इस तरह से एक ग्रुप में होना हमें हमारी गलतियों का एहसास दिलाता है। दूसरे हमारी गलतियों को हमसे बेहतर तरीके से देख पाते हैं। इसलिए अपनी कमियों को पहचानने के लिए आपको ऐसे ग्रुप में शामिल होना होगा जहां के लोग एक दूसरे को उनकी गलतियां बताते हों और उन्हें सुधारने के तरीके भी बताते हों।

लेखिका को जब ऐसा ग्रुप मिला तो उन्हें अच्छे से सोचना आ गया और वे हार या जीत के पीछे की सही वजह को पहचान पाने के काबिल बन गई। एक ग्रुप में होने का फायदा यह होता है कि हम दूसरों का सहारा पाने की कोशिश करते हैं। जब हम खुद को बेहतर बनाने लगते हैं, तो दूसरे लोग हमें सहारा देने लगते हैं, जिससे हमें और बेहतर बनने की प्रेरणा मिलती है। इस तरह से हम खुद को पहले से और बेहतर बनाते रहते हैं।

लेकिन आपको किसी ऐसे ग्रुप का हिस्सा नहीं बनना है जहां के लोग बिना वजह एक दूसरे को सहारा देते रहें। आपको ऐसा ग्रुप खोजना है जहां के लोग एक दूसरे की गलतियों को बता सकें और उन्हें पहले से बेहतर बना सकें। एकज़ाम्प्ल के लिए, सीआईए में एक रेड टीम होती है, जिसका काम होता है सीमाहर के लोगों के लाजिक में गलतियां निकालना ताकि वे बेहतर फैसले ले सकें। आपके ग्रुप में भी कुछ इस तरह के लोग होने चाहिए जो अलग तरह से सोचते हों जो एक हालात को अलग तरह से देखकर लोगों की गलतियां बता सकें! इस रह के ग्रुप में रहकर आप बेहतर बन सकते हैं।

एक ग्रुप के साथ बेहतर तरीके से काम करने के लिए आपको CUDOS का सहारा लेना होगा।

मर्टन आर स्कोल्निक एक सोशियोलाजिस्ट थे जिन्होंने बताया कि किस तरह से हम एक बेहतर तरीके से ग्रुप में रहकर काम कर सकते हैं। इसके लिए उन्होंने CUDOS का

तरीका दिया, जिसकी मदद से आप सब तक पहुंच सकते हैं।

c का मतलब होता है कायुनिस्मा इसका मतलब है कि एक ग्रुप को कोई भी फैसला लेने से पहले सारी जानकारी हासिल कर लेनी चाहिए। साथ ही उन्हें किसी भी व्यक्ति की साइड लेकर काम नहीं करना चाहिए। अगर कोई ऐसी बात है जिसे बताने में उन्हें घबराहट हो रही है या फिर शर्म आ रही है, तो उन्हें वो जानकारी भी सबके सामने रखनी चाहिए।

का मतलब है यूनिवर्सलिस्म, जिसका मतलब है ग्रुप के हर एक व्यक्ति पर एक ही नियम को लागू करना। हम अक्सर ग्रुप के काबिल लोगों के साथ अलग तरह का बर्ताव करते है और वे जो काबिल नहीं है, उनके साथ अच्छा बर्ताव नहीं करते। इस तरह से साइड लेकर काम करना हमें सव तक पहुंचने से रोक सकता है। इसलिए आपको हर किसी को एक नजर से देखकर उनकी गलतियों को समझने की कोशिश करनी चाहिए।

डी का मतलब होता है डिसइंट्रेस्टेडनेस। अमेरिका के एक फिजिंसिस्ट रिचर्ड फेट्रमैन ने कहा कि जब हमें नतीजे पता होते हैं तो हम हालात को अलग नजर से देखने लगते हैं। जैसा कि हमने पहले सबक में कहा, एक सही लगने वाले फैसले के गलत नतीजे हो सकते हैं और एक गलत लगने वाले फैसले के सही नतीजे भी निकल सकते हैं। ऐसे में अगर आपको यह बता दिया जाए कि आपके फैसले का नतीजा सही होगा, तो आप अचानक से गलत फैसले को भी सही मानने लगेंगे। पोकर में इस तरह से सोचना आपके लिए नुकसान की वजह बन सकता है। इसलिए आप नतीजे के बारे में सोवना बेद कर के सिर्फ यह देखिए कि आप ने जो फैसला लिया था, वो कितना सही और कितना गलत था।

osका मतलब है आर्गनाइस्ड स्केटिंसिस्टम। इसका मतलब है अगर हम सारे लोग यह बात कर रहे हैं कि किंस तरह से एक फैसला सही था, तो किसी ना किसी को यह जरूर बोलना चाहिए कि वो फैसला कैसे गलत था। हमें हमेशा यह पता लगाते रहना चाहिए कि हमें अभी क्या नहीं पता है और इस तरह से हम खुद को बेहतर बना सकते हैं।

इस तरह से CUDOS का तरीका अपना कर आप खुद को बेहतर बना सकते हैं और एक ग्रुप में रहकर अच्छे काम कर सकते हैं।

बेहतर फैसले लेने के लिए आपको कुछ समय भविष्य में बिताना चाहिए।

हम अक्सर कुछ ऐसे काम करते हैं जिनसे हमें अभी तो मजा मिल रहा होता है, लेकिन लम्बे समय में वे हमारे लिए नुकसान दायक होती भविष्य में बिता कर यह जानने की कोशिश करनी चाहिए कि आपके काम का क्या अजाम हो सकता है।

हैं। इसलिए आपको कुछ समय

इसके लिए हम सूजी वेल्च का 10-10-10 रूल अपना सकते हैं। इसका मतलब है यह सोचना कि आप इस समय जो कर रहे हैं, उसे करने के 10 मिनट बाद आपको केसा लगेगा, 10 महीने के बाद कैसा लगेगा और 10 साल के बाद कैसा लगेगा। इस तरह से अगर आपको लगता है कि आप इस समय जो काम कर रहे हैं उससे आपको लम्बे समय में पछतावा होगा, तो आप उस काम को मत कीजिए।

भविष्य में कुछ समय बिताने का एक फायदा भी होता है कि आप उसके लिए प्लानिंग करने लगते हैं। आप यह कल्पना करने लगते हैं कि आप जिस तरह के नतीजे चाहिए, उसके लिए आपको किस तरह के काम करने होंगे।

ऐसा करने के लिए आप यह सोचिए कि आप भविष्य में कामयाब हो गए हैं। अब खुद से यह पूछिए कि आप वहां तक कैसे पहुंचे। इसके बाद एक एक कदम पीछे आते जाइए और खुद से यह पूछिए कि किस तरह के फैसलों ने आपको उतना कामयाब बनाया होगा।

साथ ही इससे आप अपनी परेशानियों से निपटने की प्लानिंग भी कर सकते हैं। यह सोचिए कि भविष्य में आप कामयाब नहीं हुए। आप ने ऐसा क्या किया होगा कि आपके साथ ऐसा हुआ कौन से ऐसे काम थे जो आप करते या ना करते तो आप कामयाब हो जाते या किन मुश्किलों ने आपको वहाँ तक पहुंचने से रोका था? इस तरह के सवाल यह सोचने में मदद करते हैं कि रास्ते में किस तरह की परेशानियाँ आ सकती है और आप कैसे उससे निपट सकते हैं।

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