श्रीनिवास रामानुजन
श्रीनिवास रामानुजन मॉडर्न समय के महान mathematicians में से एक हैं.मैथ्स में कई इम्पोर्टेन्ट कांसेप्ट को उनके नाम पर रखा गया था. मद्रास के पोर्ट से कैंब्रिज में ट्रिनिटी कॉलेज तक रास्ता तय कर उन्होंने साबित कर दिया कि भारत एक्स्ट्राऑर्डिनरी, जीनियस और टैलेंटेड लोगों का घर है.ये बुक रामानुजन के अद्भुत जीवन की कहानी बताता है.
ये समरी किसे पढ़नी चाहिए?
- उन स्टूडेंट्स को जिन्हें मैथ्स में दिलचस्पी है और उन्हें भी जो मैथ्स को नापसंद करते हैं.
- आज की यंग generation को ताकि वो अपना पैशन फॉलो करने के लिए इंस्पायर हो सकें.
- हर भारतीय को ताकि वो रामानुजन के टैलेंट को जान सकें और उन्हें याद रख सकें.
ऑथर के बारे में
रॉबर्ट कैनिगेल एक राइटर, प्रोफेसर और बायोग्राफ़र हैं. उन्होंने7 किताबें और 400 से ज़्यादा आर्टिकल्स लिखे हैं.रॉबर्ट ने NewYork Times, Washington Post और कई अलग अलग पब्लिकेशन के लिए भी लिखा है.उनकी बुक "The Man Who Knew Infinity" पर 2015 में फ़िल्म बनाई गई थी.
इंट्रोडक्शन (Introduction)
क्या आपने श्रीनिवास रामानुजन के बारे में सुना है? कौन थे थो? वो एक जीनियस mathematician थे वो रॉयल सोसाइटी में फेलो बनने वाले दूसरे भारतीय और कैंब्रिज में ट्रिनिटी कॉलेज के फेलो बनने वाले पहले भारतीय थे. इस बुक में आप रामानुजन के बारे में कई दिलचस्प बातें जानेंगे, रामानुजन बहुत विनम्र इंसान थे. दुनिया भर के mathematician उन्हें काफ़ी मान देते थे. बहुत कम उम्र में उनकी मृत्यु हो गई लेकिन अपने पीछे वो कई महान अचीवमेंट छोड़ गए जिस पर भारत को गर्व होना चाहिए.
अ ब्रह्मा बॉयहुड (A Brahmin Boyhood)
श्रीनिवास रामानुजन का जन्म 22 दिसम्बर 1887 में हुआ था. उनके पिता श्रीनिवास एक साड़ी की दुकान में क्लर्क थे. उनकी माँ कोमल तामल हाउस वाइफ थी और पास के एक मंदिर में गाया करती थीं. रामानुजन साउथ इंडिया के कुंभ कोणम गाँव में पले बढ़े थे. रामानुजन एक जिद्दी लेकिन भावुक बच्चे थे. एक बार, जब वो बहुत छोटे और नासमझ थे तो उन्होंने मंदिर के प्रसाद के अलावा कुछ भी खाने से मना कर दिया था. अगर उन्हें मनचाहा खाना नहीं मिलता तो वो ज़मीन पर मिट्टी में लोटने लग जाते थे.
वो स्वभाव से बड़े शांत थे लेकिन हर बात को गौर से देखते और उसके बारे में सोचने लगते.उनके सवाल दूसरे बच्चों से काफ़ी अलग होते थे जैसे, "यहाँ से बादल कितनी दूर है" या "इस दुनिया में पहला आदमी कौन था ? रामानुजन को अकेले रहना पसंद था. जहां दूसरे बच्चे बाहर खेलने के लिए मौका मिलते ही तुरंत भाग जाते वहीं रामानुजन को घर पर समय बिताना अच्छा लगता था.
उन्हें स्पोर्ट्स में कोई रूचि नहीं थी. शायद यही कारण था कि वो थोड़े मोटे थे. वो अपनी माँ से अक्सर कहते कि अगर किसी दिन उनका किसी बच्चे से झगड़ा हो गया तो उन्हें लड़ने की ज़रुरत ही नहीं पड़ेगी, वो बस उस पर बैठ जाएँगे और उसका काम तमाम हो जाएगा, रामानुजन कंगायन प्राइमरी स्कूल में पढ़ते थे. वहाँ उन्होंने बहुत कम उम्र में इंग्लिश बोलना सीख लिया था, जब वो 10 साल के थे तो उन्होंने प्राइमरी exams पास की.वो पूरी डिस्ट्रिक्ट में फर्स्ट आए थे.
मैथ्स के प्रति उनकी लगन
इसके बाद उन्होंने टाउन हाई स्कूल में एडमिशन लिया. वहाँ वो 6 साल तक पढ़े. यहाँ पढ़ाई करना उन्हें सबसे ज़्यादा अच्छा लगा था. वो हर सब्जेक्ट में अव्वल थे ख़ासकर मैथ्स में एक दिन, मैथ्स टीचर पढ़ा रही थीं कि अगर किसी भी नंबर की खुद से डिवाइड करो तो उसका जवाब हमेशा । होता है.
हज़ार फल हैं और उन्हें एक हज़ार लोगों में डिवाइड किया जाए तो सबको एक एक फल मिलेगा, तभी अचानक रामानुजन बोले, "अगर जीरो को जीरो से डिवाइड किया जाए तो क्या तब भी आंसर 1 होगा? अगर आप फल को किसी में डिवाइड नहीं करेंगे तो किसी को भी फल कैसे मिलेगा?" कम उम्र में भी उनके सवालों में लॉजिक होता था.
आयु | घटना |
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10 वर्ष | प्राइमरी exams में डिस्ट्रिक्ट में फर्स्ट |
13 वर्ष | ट्रीगोनोमेट्री की एडवांस बुक में मास्टरी हासिल की |
रामानुजन की पढ़ाई
रामानुजन के परिवार में पैसों की तंगी थी इसलिए वो किरायदार रखते थे, जब रामानुजन । साल के थे तो दो ब्राह्मण लड़के उनके परिवार के साथ रहने के लिए आए. वो पास के गवर्नमेंट कॉलेज में स्टूडेंट थे. उन लड़कों ने मैथ्स में रामानुजन की दिलचस्पी देखकर उसे पढ़ाना शुरू किया. लेकिन कुछ ही महीनों में रामानुजन नें उनसे सब कुछ सीख लिया था. इसके बाद वो उन्हें कॉलेज की लाइब्रेरी से और मैथ्स की किताबें लाने के लिए कहते.
एक बार, उन लड़कों ने रामानुजन को ट्रीगोनोमेट्री की एक एडवांस बुक दी. सिर्फ़ 13 साल की उम्र में रामानुजन ने उसमें मास्टरी हासिल कर ली थी. उन्होंने क्यूबिक equation और infinite सीरीज के काम्प्लेक्स कांसेप्ट को भी सीख लिया धा. उन्हेंगा (पाई और e के नुमेरिकल वैल्यू में बड़ी दिलचस्पी थी.
रामानुजन अपनी बुद्धि की वजह से अपने स्कूल में एक सेलेब्रिटी बन गए थे.दूसरे लोगों से वो काफ़ी अलग थे, कोई भी उन्हें पूरी तरह समझ नहीं पाया था.लेकिन हर कोई उनकी बुद्धि और उनके सवाल सुनकर चकित रह जाता, सब के मन में उनके लिए बहुत सम्मान था. उन्हें स्कूल में academic एक्सीलेंस के लिए कई सर्टिफिकेट भी मिले.
रामानुजन का करियर
ग्रेजुएशन सेरेमनी के दिन, स्कूल के हेडमास्टर ने उन्हें मैथमेटिक्स के लिए जो सबसे ऊँचा अवार्ड होता है उससे सम्मानित किया. उन्होंने रामानुजन को ऑडियंस से introduce कराया और कहा कि "ये लड़का 100% या A+ से भी ज्यादा deserve करता है. मैथ्स में इसकी कोई बराबरी नहीं कर सकता,
रामानुजन हाई स्कूल में एक आल-राउंडर थे. उन्हें गवर्नमेंट कॉलेज में स्कॉलरशिप मिली थी, लेकिन मेथ्स में उनकी रूचि इतनी ज़्यादा हो गई थी कि वो दूसरे सब्जेक्ट को नज़रंदाज़ करने लगे, उन्हें इंग्लिश, फिजियोलॉजी, ग्रीक या रोमन हिस्ट्री पढ़ने में बिलकुल इंटरेस्ट नहीं चा.जिस वजह से वो इन सभी सब्जेक्ट्स में फेल हो गए. वो स्कूल में सारा वक़्त मैथ्स के प्रॉब्लम सोल्व करने में बिता देते.ना वो क्लास के लेसन में ध्यान देते और ना किसी डिस्कशन में हिस्सा लेते. हर वक्त वो बस अलजेब्रा, ज्योमेट्री और ट्रीगोनोमेट्री की किताबों में खोये रहते. उनके इस रवैये के कारण उन्होंने स्कॉलरशिप भी खो दी थी क्योंकि मैथ्स के अलावा दूसरे सब्जेक्ट्स में उनके नंबर नहुत खराब थे. उन्होंने कुछ समय तक स्कूल जाने की कोशिश भी की लेकिन वहाँ प्रेशर बहुत ज़्यादा था. 17 साल की उम्र में रामानुजन घर से भाग गए थे. एक साल बाद उन्होंने फिर से पचैयप्पा कॉलेज में फर्स्ट आर्ट्स या (FA) डिग्री के लिए एडमिशन लिया.उनके नए मैथ्स टीचर ने जब उनकी नोटबुक देखी तो चकित . वो मैथ्स की प्रॉब्लम सोल्व करने के लिए रामानुजन के साथ उ्यादा वव्रत बिताने लगे. जिस प्रॉब्लम को उनके टीचर 12 स्टेप्स में गए.॥ हो लिए सोल्व करते, उसे रामानुजन तीन स्टेप्स में ही सोल्व कर देते थे,
एक सीनियर मैथ्स के प्रोफेसर ने भी उनके टैलेंट को नोटिस किया. उन्होंने रामानुजन को मैथ्स के जर्नल में दिए गए प्रोब्लम्स को सोल्व करने के लिए नहीं कर पाते तो वो उसे प्रोफेसर को सोल्व करने दे देते थे, लेकिन आश्चर्य की बात तो ये encourage किया.अगर रामानुजन किसी प्रॉब्लम को सोल्व थी कि जो सवाल रामानुजन सोल्व नहीं कर पाते, उसे उनके प्रोफेसर तक सोल्व नहीं कर गवर्नमेंट कॉलेज में भी यही सिलसिला कायम रहा. सभी जानते थे कि रामानुजन मैथ्स के जीनियस थे. वो तीन घंटे के मैथ्स के exam को सिर्फ 30 मिनट में पूरा कर देते थे. लेकिन फिर से वो बाकि सबसब्जेक्ट्स में फेल हो गए. पाते थे.
एक बार,फिजियोलॉजी सब्जेक्ट के एग्जाम में digestive सिस्टम के बारे में पूछा गया. रामानुजन ने बिना जवाब लिखे, बिना अपना लिखे exam शीट वापस कर दी. उन्होंने शीट पर सिर्फ इतना लिखा था, "सर, मैं digestion के चैप्टर को डाइजेस्ट नहीं कर पाया", प्रोफेसर ये पढ़ते ही समझ गए कि ये किसने लिखा था.
रामानुजन FA के exam में फेल हो गए थे. उन्होंने अगले साल दोबारा कोशिश की लेकिन वो फ़िर फेल हो गए. सभी जानते थे कि रामानुजन एक exam गिफट इंसान थे लेकिन एजुकेशन सिस्टम के कुछ रूल्स थे इसलिए कोई कुछ नहीं कर सकता था. फिर उन्होंने कुछ स्टूडेंट्स को मैथ्स में tution देने की कोशिश की लेकिन किताबों में दिए गए स्टेप्स से वो कभी सहमत ही नहीं हुए. रामानुजन उसे अपने तरीके से सोल्व करते. 20 साल की उम्र में ना उनके पास कोई जॉब थी, ना कोई डिग्री और ना में कोई डायरेक्शन, वो अपना समय घर की छत पर बैठे मैथ्स के प्रॉब्लम सॉल्व करते हुए बिताते थे. उनके पास से ना जाने कितने लोग गुज़र जाते लेकिन वो बस अपने equation दातर और थ्योरम की दुनिया में मगन रहते.
रामानुजन की कहानी
उनके माता पिता उन्हें समझते थे लेकिन धीरे धीरे उनके सब्र का बाँध टूटने लगा. एक दिन उनकी माँ ने कहा कि बस बहुत हुआ. उन्होंने रामानुजन को कुछ ऐसा करने के लिए कहा जिसे एक साइकोलोजिस्ट "टाइम टेस्टेड इंडियन साइकोथेरपी" कहते हैं. कुछ समझे आप? वो कुछ और नहीं बल्कि अरेंज मैरिज की बात कर रही थी।
सर्च फॉर पेटरंस (Search for Patrons)
एक दिन, रामानुजन की माँ कुछ दोस्तों से मिलने दूसरे गाँव गई. वहाँ उन्होंने 9 साल की एक लड़की को देखा जिसका बड़ा प्यारा सा चेहरा था शरारती आँखें थीं. उसका नाम जानकी था. उन्होंने लड़की की कुंडली मांगी और उसे रामानुजन की कुंडली से मिलाने लगी, उन्होंने सोचा कि रामानुजन और जानकी के साथ उसकी जोड़ी बहुत अच्छी रहेगी इसलिए उन्होंने जानकी के परिवार से बात चलाई, जानकी का परिवार गरीब था और वो दहेज में बस कुछ तांबे के बर्तन ही दे सकते थे. जानकी उनकी पांच बेटियों में से एक थी.
रामानुजन जवान थे लेकिन ना उनके पास जॉब थी और ना ही कोई डिग्री. उनका परिवार भी गरीब था लेकिन उनकी माँ ने बड़े गर्व से उन्हें बताया कि उनका बेटा मैथ्स का जीनियस था. शादी के दिन, रामानुजन और उनकी माँ को देर हो गई. जिस ट्रेन से वो आ रहे थे उसने वहाँ पहुँचने में घंटों लगा दिए. इसलिए वो जानकी के घर रात 1 बजे पहुंचे. इस शादी में कुछ और बुरी घटनाएँ भी घटी लेकिन फिर भी रामानुजन की माँ इस शादी से खुश थी. इस तरह, 22 साल की उम्र में रामानुजन की शादी हुई.
नया सफर
शादी होने के बाद अब रामानुजन घर पर नहीं बैठ सकते थे इसलिए एक अच्छे मौके या जॉब की तलाश में निकल पड़े. पहले वो मद्रास गए. उन्होंने घर-घर जाकर दोस्तों से मदद मांगी. उनके पास अपनी टैलेंट का बस एक ही सबूत था, उनके नोटबुक्स जिसमें उन्होंने मैथ्स के अनगिनत प्रॉब्लम सोल्व किये थे और कई थ्योरम लिखे थे. दो उनके लिए बहुत खास थे. लेकिन ये रास्ता उनके लिए आसान नहीं था क्योंकि उनके पास कोई डिग्री नहीं थी जिस वजह से कई लोगों ने उन्हें रिजेक्ट कर दिया था.
चंद लोग ही थे जिन्होंने रामानुजन के पोटेंशियल को पहचाना और उन्हें एक मौका दिया. उनमें से एक थे रामचंद्र राव जो इंडियन मैथमेटिकल सोसाइटी के डिस्ट्रिक्ट कलेक्टर और सेक्रेटरी थे, उन्होंने उन्हें कोई जॉब लिए लिख सरक, इस काम के लिए उन्हें हर महीने 25 रुपए दिए थे.
नया अवसर
रामानुजन ने जर्नल के लिए कुछ रिसर्च पेपर्स और कुछ इंटरेस्टिंग मैथ्स के सवाल लिखे. धीरे-धीरे सबका ध्यान उनकी ओर जाने लगा. मद्रास में समुद्र के पास रहना उन्हें बड़ा अच्छा लगता था. एक बार रामानुजन से बोर्डिंग हाउस में उनके एक दोस्त मिलने आए. उसने कहा, "रामानुज, सब तुम्हें जीनियस कहते हैं". रामानुजन ने कहा, "मैं कोई जीनियस नहीं हूँ. मेरी कोहनी को देखो, ये तुम्हें मेरी कहानी बता देगा". उनकी कोहनी इंक के कारण काली हो गई थी. चो बोर्ड पर लिखे equation को मिटाने के लिए उसका इस्तेमाल करते थे.
उनके दोस्त ने पूछा, "तुम पेपर का इस्तेमाल क्यों नहीं करते"? रामानुजन ने कहा कि पेपर खरीदने की उनकी हैसियत नहीं थी. उन पैसों को वो खाना खरीदने के लिए बचाकर रखना चाहते थे. कभी-कभी वो पहले से इस्तेमाल किये हुए पेपर पर लाल इंक से लिखा करते थे.
असंभावनाओं का सफर
ऐसे ही एक चीज़ से दूसरी चीज़ का रास्ता बनता गया और रामानुजन ने मद्रास पोर्ट ऑफ़ ट्रस्ट में काम करना शुरू कर दिया. उन्हें ऑफिसर इन चार्ज सर फ्रांसिस स्प्रिंग और सेकंड इन कमांड नारायण अय्यर ने जॉब पर रखा था. उन्हें एकाउंटिंग क्लर्क की पोजीशन दी गई जिसके लिए उन्हें महीने के 30 रूपए मिलते थे. सर फ्रांसीस और नारायण अय्यर दोनों उनके प्रति बड़े दयालु थे. जब ज्यादा काम नहीं होता तो वो उन्हें मैथ्स के प्रॉब्लम सोल्व करने की इजाज़त दे देते, वो कैंब्रिज यूनिवर्सिटी के mathematicians के लिए लिखे जाने वाले लैटर का ड्राफ्ट तैयार करने में भी उनकी मदद करते.
सर फ्रांसीस के जरिए, ब्रिटिश ऑफिसर्स को रामानुजन के एक्स्ट्राऑर्डिनरी टैलेंट के बारे में पता चला. लेकिन वो फ़ैसला नहीं कर पा रहे थे कि उन्हें क्या करना चाहिए. उनमें से कुछ को लगता था कि रामानुजन पागल थे, उनमें से कुछ ने सलाह दी कि अगर भारत में रामानुजन को कोई नहीं समझता तो उन्हें कैंब्रिज में बेहतर सपोर्ट और ट्रेनिंग मिल सकती है.
अंतरराष्ट्रीय मान्यता
रामानुजन ने कैंब्रिज में अपने काम के सैंपल के साथ लैटर भेजे, वहाँ के दो mathematicians ने उन्हें रिजेक्ट कर दिया. सिर्फ एक ने हाँ कहा, उनका नाम जी.एच. हार्डी था. उन्होंने रामानुजन का लैटर देखा और उनके थ्योरम को पढ़ा, जो उन्हें असाधारण और पूरी तरह से मौलिक लगे.
हार्डी ने ट्रिनिटी कॉलेज में अपने सभी साथियों को रामानुजन का लैटर दिखाया. उन्होंने लंदन में इंडियन ऑफिस को भी एक लेटर लिखा कि उनकी इच्छा थी कि रामानुजन को कैंब्रिज बुलाया जाए. हार्डी ने रामानुजन के लेटर का भी जवाब दिया. उन्होंने लिखा, "सर, मुझे आपके थ्योरम काफी दिलचस्प लगे. मैं जल्द से जल्द आपका और भी काम देखना चाहूंगा."
अब जब रामानुजन को हार्डी का सपोर्ट मिल गया तो ब्रिटिश ऑफिसर्स उन्हें सीरियसली लेने लगे. रामानुजन के पास अब भी कोई डिग्री नहीं थी लेकिन मद्रास यूनिवर्सिटी के चांसलर ने उनके लिए रूल्स में थोड़े बदलाव किए. उन्होंने उन्हें प्रेसीडेंसी कॉलेज में रिसर्च स्कॉलरशिप ऑफर की. इसके लिए उन्हें महीने के 75 रूपए दिए गए.
Year | Event |
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1914 | रामानुजन इंग्लैंड के लिए रवाना हुए |
1916 | कैंब्रिज में स्नातक डिग्री प्राप्त की |
1919 | भारत लौटे |
रामानुजंस स्प्रिंग (Ramanujan's Spring)
रामानुजन जब कैंब्रिज गए तो स्प्रिंग का मौसम था. उस प्यारे मौसम में कई खूबसूरत फूल खिलते हैं. उन्हें कैंपस में रहने की जगह दी गई. उन्होंने हार्डी और लिटिलवुड के साथ काम करना शुरू कर दिया. रामानुजन ने कहा कि वो दोनों उनके प्रति बहुत दयालु और मददगार थे. दो कहते हैं ना जैसा देश वैसा भेष, तो बस रामानुजन ने भी वेस्टर्न कपड़े पहनना शुरू किया लेकिन दो चप्पल हिन्दुस्तानी ही पहनते थे. वो कहते कि जूते उनके पैरों को तकलीफ़ देते हैं.
रामानुजन ने पिछले दस सालों में लिखे लगभग 3,000 थ्योरम हार्डी और लिटिलवुड को दिखाए. हार्डी ने कहा कि उनमें से कुछ गलत थे, कुछ पहले से ही कई mathematicians ने खोज लिए थे लेकिन उनमें से 2/3 एक्स्ट्राऑर्डिनरी थे जो किसी को भी आश्चर्यचकित कर सकते थे.
रामानुजन के साथ कुछ महीने काम करने के बाद, हार्डी और लिटिलवुड को लगा कि अभी तो उन्होंने रामानुजन के के पोटेंशियल की बस एक झलक देखी थी, वो तो एक समंदर की तरह थे जिसमें बहुत ज्ञान भरा हुआ था. हार्डी ने तो यहाँ तक कहा कि उन्होंने आज तक रामानुजन के स्किल जैसा mathematician नहीं देखा था और उनकी तुलना सिर्फ Euler और Jacobi जैसे जीनियस दिग्गजों से की जा सकती थी. हार्डी ने एक बार लिखा, "रामानुजन मेरी खोज थे. लेकिन मैंने उन्हें नहीं बनाया है, उन्होंने खुद अपने आप को बनाया है".
रामानुजन की जीनियस यात्रा
रामानुजन का काम और पहचान
1914 में रामानुजन के जीनियस काम को पब्लिश किया गया. हार्डी ने उसे तुरंत लंदन मैथमेटिकल सोसाइटी में अपने दोस्तों के साथ शेयर किया. रामानुजन के पहले पेपर का टाइटल था "Modular Equations and Approximations to Pi". आखिर, रामानुजन कैंब्रिज के अति बुद्धिमान कम्युनिटी के मेंबर के रूप में चर्चित होने लगे.
वहाँ कई जीनियस थे जिन्होंने उन्हें समझा और उनके काम के पोटेंशियल को पहचाना. 1915 तक, रामानुजन के 9 पेपर पब्लिश हो चुके थे. इंडियन स्टूडेंट्स उन्हें बहुत पसंद करते थे. वो एक मैथ्स के जीनियस के रूप में जाने जाते थे जिन्हें कैंब्रिज बुलाने के लिए अंग्रेजों ने एड़ी चोटी का ज़ोर लगा दिया था.
Year | Achievement |
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1914 | Published first paper "Modular Equations and Approximations to Pi" |
1915 | 9 papers published |
1917 | Fell ill due to tuberculosis |
1918 | Became F.R.S (Fellow of the Royal Society) |
1920 | Passed away |
कैम्ब्रिज का अनुभव
कभी-कभी रामानुजन लंदन के जू या ब्रिटिश म्यूजियम देखने जाया करते थे. "Charley's Aunt" नाम का एक कॉमेडी प्ले उन्हें बेहद पसंद था, वो अंडरग्रेजुएट लाइफ के बारे में था. वो इतना मज़ेदार था कि हँसते-हँसते रामानुजन की आँखों से आंसू आने लगते थे. कैंब्रिज में रिसर्च स्टूडेंट बनने के लिए यूनिवर्सिटी की डिग्री होना ज़रूरी था लेकिन वहाँ के लोगों ने खास रामानुजन के लिए कुछ छूट दे दी थी.
मद्रास में अॉरिटीज ने उनकी स्कॉलरशिप को दो सालों के लिए और बढ़ा दी थी. एक ऑफिसर ने पहले ही अनुमान लगा लिया था कि रामानुजन एक दिन ट्रिनिटी कॉलेज के फेलों बनेंगे. मद्रास से स्कॉलरशिप के रूप में रामानुजन को हर साल 250 pound मिलते थे. इसके साथ उन्हें कैंब्रिज से हर साल 60 pound मिलते थे.
स्वास्थ्य समस्याएँ और परिवार से दूरी
1976 में वो हुआ जिसे अब तक रामानुजन अचीव नहीं कर पाए थे, ट्रिनिटी कॉलेज ने उन्हें बैचलर ऑफ़ आर्टस की डिग्री दी. उन्हें रिसर्च के ज़रिए ये डिग्री मिली थी. ये उन्हें "highly composite numbers" पर लिखे उनके पेपर के लिए दिया गया था. फ़ाइनली, उन्होंने बाकि स्टूडेंट्स के साथ ग्रेजुएशन फ़ोटो के लिए पोज़ किया.
रामानुजन के पैंट की लंबाई कुछ इंच छोटी थी और उनके सूट के बटन कसे हुए थे लेकिन आखिर अब वो रामानुजन से रामानुजन, बी.ए पास हो गए थे.
रॉयल सोसाइटी की फेलोशिप
रामानुजन ज्यादातर अपने कमरे में अकेले ही खाना खाते थे. उनके पास एक छोटा सा स्टोव था जिसपर वो सब्जियाँ बनाते थे. जहां हार्डी और दूसरे लोग हाई टेबल में खाना खाते, रामानुजन अकेले खाना पसंद करते थे.
इसका कारण ये था कि वो अपना स्ट्रिक्ट वेजीटेरियन डाइट बनाए रखना चाहते थे. अंग्रेज़ मटन और बीफ़ खाने के शौकीन थे और डिनर टेबल पर वेटर घूम-घूम कर नॉन-वेज खाना सर्व करता था. लेकिन रामानुजन को तृप्ति अपने सांभर चावल और दही से ही मिलती थी.
Challenges and Achievements
रामानुजन को बाहर घूमने फिरने के शौक़ नहीं थे, वो भीड़ भाड़ से ज्यादा कम लोगों के समूह में कम्फर्टेबल महसूस करते थे. इसलिए ज्यादातर समय वो अपने कमरे में ही बिताते थे. हार्डी अपने खाली समय में क्रिकेट या बेसबॉल खेलते थे. वो संडे एस्से सोसाइटी के मेंबर भी थे.
सर्दियों का मौसम शुरू हुआ, उस ठिठुरती ठंड में और World War I के दौरान रामानुजन को घर की याद आने लगी. वो अपने देश की परंपरा और कल्चर को मिस कर रहे थे जिनके बीच वो बड़े हुए थे. लेकिन सबसे ज़्यादा उन्हें अपनी पत्नी की याद आ रही थी और वो अपनी माँ के लाड़ को तरस रहे थे.
Ramanujan's Health Struggles
1917 में रामानुजन के लिए सिचुएशन और मुश्किल हो गई थी. उन्हें ट्यूबरक्लोसिस हो गया था जिस वजह से उन्हें कई महीनों तक हॉस्पिटल में रहना पड़ा. डाक्टरों ने इसका कारण खाने पीने की कमी और nutrition डेफिशियेसी बताया था जो उस वक्त यूरोप में काफ़ी फैला हुआ था.
ये सब उनके लिए और ज़्यादा तकलीफ़ देह तब हुआ जब कई महीनों तक उन्हें अपने घर से कोई लैटर नहीं मिला. उनकी माँ या जानकी की तरफ़ से भी कोई लैटर नहीं आया था. बाद में पता चला कि उनकी माँ ही उनके लैटर को रोक रही थीं.
Final Years and Recognition
रामानुजन चाहते थे कि जानकी कैंब्रिज आ जाए लेकिन उनकी माँ ने उन्हें आने नहीं दिया, जानकी अपनी सास के व्यवहार से परेशान हो गई थी. फ़िर उसे अपने भाई की शादी में वहाँ से बचकर निकलने का मौका मिला, जानकी लंबे समय तक अपने ससुराल वापस नहीं गई.
रामानुजन बहुत चिंतित थे. घर से कोई खबर नहीं मिलने के कारण वो बहुत दुखी थे. ट्यूबरक्लोसिस का उनके शरीर पर और इस चिंता का उनके मन पर गहरा असर हो रहा था, वो बहुत कमज़ोर हो गए थे और उनका वज़न गिरता जा रहा था.
Legacy and Inspiration
खाने के अलावा 1977 का साल उनके लिए बेहद मुश्किल वक्त था. दुनिया में जंग छिड़ी हुई थी, बीमारी ने उन्हें घेर रखा था, परिवार से कोई खबर नहीं आई थी और कपकपाने वाली सर्दी में वो बिलकुल अकेले और हताश हो गए थे.
इन सब का रामानुजन के दिलो दिमाग पर गहरा असर हुआ और January 1918 में उन्होंने खुद की जान लेने की कोशिश की. उन्होंने रेल की पटरियों पर छलांग लगा दी थी और सामने से एक ट्रेन तेजी से उनकी तरफ़ बढ़ रही थी. ये तो एक चमत्कार ही था कि एक गार्ड ने उन्हें देख लिया और समय रहते स्विच खींच लिया.
इस घटना के एक महीने बाद, हार्डी का बोला हुआ झूठ हकीकत में बदल गया. रामानुजन इस पर विश्वास नहीं कर पा रहे थे. उन्होंने तीन बार लैटर को पढ़ा. उस साल, रॉयल सोसाइटी का फेलो बनने के लिए 104 कैंडिडेट्स में से सिर्फ़ 15 लोगों को चुना गया था. रामानुजन उनमें से एक थे. May 1917 में, रामानुजन ऑफिशियली एस.रामानुजन, ऍफ़.आर.एस (F.R.S) बने.
घर वापसी और विरासत
जंग खत्म होने के बाद रामानुजन घर लौटने की तैयारी करने लगे. हार्डी और डॉक्टरों ने सुझाव दिया कि रामानुजन के हेल्थ के लिए यही बेहतर होगा कि वो घर लौट जाएं. इस बीच, इंडियन मैथमेटिकल सोसाइटी उनकी सक्सेस का जश्न मना रही थी.
उन्होंने उनके ऍफ़.आर.एस के महान अचीवमेंट के लिए उन्हें सम्मानित किया. उनके घर वापसी की खबर सोसाइटी जर्नल के फ्रंट पेज पर छपी थी. March 1979 में, रामानुजन मुंबई पहुंचे. वहाँ डॉक पर उनकी माँ और उनके छोटे भाई उनका इंतज़ार कर रहे थे. वहाँ से मद्रास जाने के लिए वो एक शिप में सवार हुए.
मद्रास में रामानुजन अपनी पत्नी और परिवार के बाकी लोगों से मिले. जानकी तब 18 साल की हो गई थी. रामानुजन को मद्रास यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर बनने का ऑफर मिला. लेकिन उनकी तबियत दिन-ब-दिन ख़राब होती जा रही थी.
वो कहने लगे थे कि वो 35 की उम्र से ज़्यादा नहीं जी पाएँगे और जल्द ही उनकी सांसें बंद हो जाएंगी, जानकी ने उनकी बहुत देखभाल की. वो अंत तक उनके साथ खड़ी रही. एक दिन, रामानुजन पेट में भयंकर दर्द की शिकायत कर रहे थे. उनका शरीर सूख कर हड्डियों का ढांचा बन गया था.
April 26, 1920 को रामानुजन ने आखरी सांसें ली. 32 साल की कम उम्र में वो दुनिया को छोड़ कर चले गए. हार्डी को रामानुजन की मौत की खबर से गहरा सदमा लगा था. बीस साल बाद भी, वो रामानुजन के साथ बिताए हुए वक्त को उसी सम्मान और भावुकता से याद करते थे.
उन्होंने हमेशा इस बात पर ज़ोर देकर कहा था कि रामानुजन एक सेल्फ-मेड आदमी थे. वो कई बार फेल हुए लेकिन अंत में वो एक सक्सेसफुल इंसान बन कर उभरे. वो एक परफ़ेक्ट इंसान नहीं थे लेकिन उन्होंने अपनी पूरी जिंदगी अपना पैशन फॉलो करने में लगा दिया.
उनकी हमेशा बस एक ही इच्छा थी, मैथ्स के बारे में ज्यादा से ज़्यादा जानना. उनके समय का एजुकेशन सिस्टम सख्त था, कई लोगों ने उन्हें गलत भी समझा. बस कुछ लोग ही इस हीरे की चमक को देख पाए थे. कुछ लोगों ने उन्हें पागल भी समझा लेकिन उनके जीनियस माइंड को कभी कोई पीछे पकड़ कर नहीं रख पाया.
अपने छोटे से जीवन में, जिस चीज़ से उन्हें प्यार था उसके माध्यम से उन्होंने नॉलेज के फील्ड में बड़ा योगदान दिया. सब का मानना है कि रामानुजन के एफर्ट कभी व्यर्थ नहीं जाएँगे. हर भारतीय को उन पर गर्व है और वो हम सब के लिए एक इंस्पिरेशन हैं.