THE LITTLE BOOK OF LYKKE by Meik Wiking.

Readreviewtalk.com

यह किसके लिए है

-एर उस व्यक्ति के लिए जो अपनी जिंदगी को खुशहाल बनाना चाहता है

यात्री जो स्कैनडीनेविवा के लोगों के जीवन के बारे में जानने को उत्सुक हैं

लोग जो खुशी के विज्ञान के बारे में जानने में रुचि रखते हैं

लेखक के बारे में

लेखक मैक वाइकिंग हैपीनेस रिसर्च इंस्टिट्यूटकोगेनहेगन के सीईओ हैं जहाँ जीवन की संतुष्टि से जुड़े वैश्विक ट्रेडों का अध्ययन करते हैं। इनकी पहली किताब ‘दि लिटिल बुक ऑफ गंगा दुनिया भर में सबसे अधिक बिंकने वाली किताबों में से एक है जो आज 30 सभी अधिक देशों में उपलब्ध है।

ये किताब आपको क्यूँ पढ़नी चाहिए?

क्या ऐसा कोई व्यक्ति है जो कि अपनी जिंदगी में अब और ज्यादा खुशिया नहीं भर सकता है? इस सवाल का जवाब ढूंटने के लिए डेनमार्क से बेहतर जगह इस दुनिया में शायद ही कोई होगी जो खुशनुमा देशों की फेहरिस्त में सबसे पहले नंबर पर आता है।

लेखक मेक वाइकिंग ने डेनिश लोगों की खुशी के कारणों को इस किताब में अच्छी तरह से व्यवस्थित किया है। इसमें वहाँ के परिवहन, शिक्षा व साम्प्रदायिक सक्रियता से लेकर चैरिटी के कामों को पूरे शोध व आंकड़ों के साथ प्रस्तुत किया गया है।

तो अगर आपने भी कभी एक खुशहाल जीवन जीने के लिए देनमार्क जाने का सपना सँजञोया है तो क्यों न यह जानने की कोशिश करें कि वे कौन-सी चीजें हैं जो डेनमार्क को दुनिया की सबसे खुशहाल जगह बनाती है। इससे हो सकता है कि आप अपना मन बदल लें और वहीं पर खुश रहने का प्रयास करें जहाँ पर आप वर्तमान समय में जी रहे है।

इसे पढ़कर आप सीखेंगे

-क्यों बहुत सारी मोटरबाइकें कोपेनहेगन में हर किसी को खुश रखने का काम करती है

  • कैसे वृद्ध लोग नए पेरेंट्स की खुश रहने में मदद कर सकते हैं

क्यों फर्स्ट क्लास वर्ग हवाई जहाज में रुड व्यवहार करता है

इंटरनेट के बजाय लोगों के साथ वक्त बिताना और सबके एक होने का भाव रखना एक खुशहाल जीवन जीने के लिए आवश्यक शर्त है।

समय समय पर एक फेहरिस्त निकलती है जो दुनियाभर के सबसे खुशहाल देशों अपने में जगह देती है और जो देश इस लिस्ट में अक्सर अव्वल आता है, वह है डेनमार्क। मगर क्या आपने कभी सोचा है कि वह कौन-सी चीज है जो डेनमार्क के लोगों को इतना खुश बनाती है?

संयुक्त राष्ट्र की ‘बई हैपीनेस रिपोर्ट के मुताबिक जिस देश में सामाजिक भाव और अच्छे काम के प्रति अधिक एकता पाई जाती है उस देश को उतना ही अधिक खुशहाल माना जाता है। जब लोग अपने हमवतन लोगों को एक-दूसरे का सहारा मानते हैं तो इससे उन्हें मुश्किल वक्त में मानसिक शांति का एहसास होता है और यही मानसिक शांति उनकी प्रसन्नता में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। साल 2014 में गॉल-अप द्वारा द्वारा कराए गए पोल में पता चला कि औसत टेक्स रेट 45% होने के बावजूद भी 10 में से 9 डेनमार्की खुशी-खुशी टैक्स चुका देते हैं। और जो लोग 61 500 यूरो से ज्यादा कमाते हैं उनके लिए तो यह रेट 52% है।

डेनमार्क के लोग खुशी-खुशी टैक्स भर देते हैं इसकी एक वजह यह भी है कि उन्हें यह स्पष्ट तौर पर पता होता है कि टैक्स का पैसा उनकी भलाई के लिए ही उपयोग किया जा रहा है। यह एक सुरक्षा निधि के जैसे काम करता है। डेनमार्क के करदाता जानते हैं अगर वे कभी बीमार पड़ जाते हैं या फिर दुर्भाग्य से कभी बेरोजगारी उन्हें घेर लेती हेतो यही वह पैसा है जो उनके काम आने वाला है।

इसके अलावा डेनमार्क दुनिया का पहला ऐसा देश है जिसने अपने यहाँ बोफलेसकबर यानि ‘जीवन समुदायों की स्थापना की है। ये एक प्रकार की स्वेक्षिक सह-हाउसिंग व्यवस्था होती है जिसमें वहाँ निवास करने वाले लोग और परिवार मिलकर अपने स्व-पर्यांप्त पड़ोस का निर्माण करते हैं।

महला बोफलेसकब यानि जीवंत समुदाय तब सामने आया जब लेखक बाँडील गराई ने “चिल्डून शु् हेव हंड्रेड पेरेंट्स नाम से एक प्रभावी लेख लिखा। यह लेख सामुदायिक जीवा जीने का पक्षधर था। इस लेख से प्रभावित होकर वहाँ के कुछ परिवारों ने मिलकर सेटरडेमननाम के एक जीवन समुदाय का गठन किया। इसके लिए उन्होंने डेनमार्क की राजधानी कोपेनहेगन के उत्तर में बसी जगह हिलेरोडको चुना।

बीतते समय के साथ इनकी संख्या में भी वृद्धि हुई। साल 2017 की बात करें तो 50 हजार से ज्यादा डेनमार्की इस को-हाउज़िंग प्रणाली को अपना चुके हैं। डेनमार्क के अलावा भी सैकड़ों अमरीकी और यूरोपियन लोग जीवन जीने की इस उम्दा प्रणाली को अपना रहे हैं।

माना जाता है कि एक सामाजिक भाव प्रसन्नता में वृद्धि करने के लिए जरूरी होता है हालांकि आभासी दुनिया से बाहर आने की भी अपनी ही एक खुशी होती है। वर्ष 2015 में हैपीनेस रिसर्च इस्टिट्यूट ने एक प्रयोग किया जिसमें उन्होंने प्रतिभागियों को एक पूरे हफ्ते तक फेसबुक से दूर रखा और उनकी खुशी के स्तर को मानिटर किया। एक हफ्ते बाद प्रयोग में भाग लेने वाले लोगों ने बताया कि एक हफ्ते तक नकली दुनिया से अलग रहने के कारण उनकी जिंदगी के अकेलेपन में कमी आई है और उनकी जीवन संतुष्टि के स्तर में वृद्धि हुई है।

यह बात सच है कि फेसबुक से खुद को दूर रख पाना उतना आसान नहीं है जितना कि यह सुनने में लगता है। लेकिन आप योजनाबद्ध तरीके से अपने परिवार और दोस्तों के साथ समय बिताकर इस काम में सफलता अर्जित कर सकते हैं।

आप और आपके आसपास रहने वाले लोग साथ मिलकर यह निर्णय ले सकते हैं कि हम हफ्ते के किसी निशित दिन या फिर दिन के किसी निश्चित वक्त पर तकनीकी गेजेट्स का इस्तेमाल ना के बराबर करेंगे और जितना हो सके उन्हें अपनी नज़रों से दूर रखेंगे।

पैसा आपको उतनी खुशी नहीं देता है जितना कुछ अच्छा होने की उम्मीद देती है

आपको क्या लगता है जिसके पास जितना ज्यादा पैसा होता है वह उतना ही ज्यादा खुशहाल होता है? क्योंकि हैपीनेस रिपोर्ट में ज्यादातर अमीर देश अव्वल आते हैं। इस तथ्य से यह गलतफहमी मत पाल लीजिएगा कि अमीरी और मुशी में कोई सीधा-सीधा कनेक्शन है।

मिसाल के तौर पर दक्षिण कोरिया को ही ले लीजिए। सिर्फ दो पीढियों के अंतराल में यह देश दुनिया के सबसे गरीब देशों की फेहरिस्त से निकलकर सबसे अमीरों की कतार में शामिल हो गया है। अमीरी बढ़ने के बावजूद भी आज दक्षिण कोरिया में प्रति व्यक्ति दुनिया में सबसे ज्यादा आत्महत्याएं होती हैं और इस देश को बल्ल्ड हैपीनेस रिपोर्ट में 55वें स्थान पर जगह दी गई है।

कई अध्ययनों में इस बात को माना गया है कि जिंदगी के हमारे अनुभव हमारी खुशी को सीधे तौर पर प्रभावित करते है और इन अनुभवों के द्वारा जो हम उम्मीदें बनाते हैं वे भी हमारी खुशी में एक बड़ा योगदान देती है।

शोधकर्ता एलिजाबेथ इन और माइकल नोर्टन को कई अध्ययनों के बाद पता चला कि 57% लोग कोई चीज़ केवल खरीदने मात्र से ही खुश नहीं हो जाते हैं बल्कि इसके साथ ही साथ उन्हें उस चीज को खरीदने की उम्मीद भी होनी चाहिए। उम्मीदके मौजूद होने से भौतिक वस्तुओं को पाने पर खुशी और भी अधिक बढ़ जाती है। इसके अलावा उनके अध्ययनों में सिर्फ 34% लोगों ने कहा कि सिर्फ चौजों का मिलना ही उन्हें खुश कर देता है।

एएजाम्पल के लिए, आप अपने बैठक कक्ष यानि लिविंग रूम के लिए नया सोफा लेना चाहते है तो एकदम से उसे ऑर्डर न कर दें। बल्कि इसके बजाय खुद से कहें कि अगर मैं अपनी कामों की लिस्ट से ये बड़ा काम खत्म कर लूगा तो में खुद को नए सोफे का तोहफा दूंगा। इस तरीके से आप सिर्फ नया सोफा खरीदने की वजह से ही खुश नहीं होंगे बल्कि जब-जब भी आप उस सोफे पर बैठेंगे तो यह आपको उस बड़े काम को खता करने के एहसास की याद दिलाएगा जिससे आपको लगातार खुशी की प्राप्ति होगी।

दूसरा तरीका जो आप इस्तेमाल कर सकते हैं वह है- पहले से ही योजना तेयार करना और फिर उस मानंद का मज़ा लेना जो उम्मीद के साथ आती है। इसलिए बिना रुके मज़ा करने के बजाय अपना फन पहले ही शेड्यूल करें और बीच में उस खुशी का मज़ा लें जो उस फन के बारे में सोचने यानि उम्मीदकरने से मिलती है।

इसके साथ ही साथ खुशी को मारने वाले कुछ ऐसे कारक है जिनसे आपको दूरी बनानी चाहिए। जैसे अपनी सम्पति को की तुलना दूसरों की धन-सपदा से करना। खुद की सम्पत्ति की तुलना दूसरे की संपत्ति से न करने का यह काम थोड़ा-सा कठिन हो सकता है क्योंकि लोग अक्सर अपनी धन-संपदा का दिखावा करना पसंद करते हैं। इसी दिखावे को उन्नीसवी सदी के मनोवैज्ञानिक थोरेस्टीन बेबलें ने कॉन्सटीपीक्यूअस कन्सम्शनकहा है। जिसका मतलब है कि लोग, जितना वे खर्च कर सकते हैं, उससे भी ज्यादा खर्च करते हैं, सिर्फ इसलिए ताकि वे दूसरे लोगों से अधिक अमीर और कामयाब दिखें।

जब हर कोई दिखावे के इस खेल में शामिल हो जाता है तो यह खेल विभिन्न देशों के बीच चलने वाले हथियारों की प्रतिस्पर्धा के जैसा हो जाता है, जिसमें हर कोई अपने प्रतिस्पर्धी से किसी भी सूरत में आगे निकलना चाहता है। और दिखावे की यह अंधी दौड़ बस हमें दयनीय और टूटा हुआ बनाकर छोड़ देती है।

इसलिए अपने पर एक एहसान कीजिए कि आप अपनी धन-संपदा और खुशी की तुलना किसी और से नहीं करेंगे।

एक स्वस्थ शरीर और दिमाग हमारे जीवन को और अधिक खुशहाल बनाते हैं।

हम सभी को अक्सर जिम या फिर टहलने जाने के लिए अपने मन को मारना पड़ता है। मन मारना आखिर किसे पसंद होता है लेकिन फिट रहना न सिर्फ हमारे स्वास्थ्य के लिए अच्छा है बल्कि यह हमें और ज्यादा खुशहाल बनाता है।

आपको यह जानकर हैरानी हो सकती है

डेनमार्क के लोगों की खुशी का एक अन्य कारण है- उनकी फिटनेस। डेनमार्क को फिट रखने में इस बात का बड़ा योगदान है कि यहाँ के लोग गाड़ी चलाने की तुलना में बाइक दौड़ना ज्यादा पसंद करते हैं। वर्ष 2017 में ग्लासको विश्वविद्यालय द्वारा किये गए एक अध्ययन में पता चला है कि केवल मोटरसाइकिल से दफ्तर जाने भर से ही अपरिपक्व मीत का खतरा 41% तक कम हो जाता है।

आप शायद इस तथ्य से वाकिफ न हों कि अकेले कोपेनहेगन में ही करीब 63% लोग रोज दफ्तर जाने के लिए बाइक का इस्तेमाल करते है और पूरे डेनमार्क में किये जाने वाले सफरों में से करीब 17% बाइकों पर किये जाते हैं। और कोपेनहेगन की सड़कों पर मात्र एक किलोमीटर साइकिल चलाने भर से, ट्राफिक, वायु प्रदूषण, सड़कों का ईमेज आदि न होने के कारण शहर का 7 सेन्ट (यानि 0.07डॉलर) बचता है।

अगर आपके पास बाइक नहीं है फिर भी आप खुशी-खुशी सफर कर सकते हैं। मॉन्टरेयल की मैकगिल यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने यह पता लगाने के लिए कि कौन-से वाहनों का सफर इंसान को सबसे अधिक खुशी देता है, परिवहन के सभी वाहनों का रिव्यू किया। इस शोध में पाया गया कि पेदल चलना इंसान को सबसे अधिक संतुष्टि देता है जबकि बस में यात्रा करने पर अक्सर इंसान सबसे अधिक असन्तुष्ट होता है।

इसलिए यदि आप एक ज्यादा स्वस्थ और खुशहाल जीवन जीना चाहते हैं तो आपको घर और दफ्तर के बीच का सफर पैदल या फिर बाइक से तय करने को प्राथमिकता

देनी चाहिए।

लेकिन अच्छे स्वास्थ्य का मतलब सिर्फ अच्छे शरीर से ही नहीं होता है बल्कि हमारी खुशी में हमारे शरीर के साथ ही साथ हमारे दिमागी स्वास्थ्य का भी रोल होता है।

जापान में आजकल एक खास तरह की ऐक्टिविटी बहुत तेजी से बढ़ रही है जिसे वहाँ पर ‘सिनरिन-योकुयानि ‘वन स्नान कहा जाता है। इस क्रियाकलाप के अंतर्गत लोगों को जगल में जाना होता है और वहाँ जाकर उन्हें अलग-अलग तरह के प्राकृतिक दृश्यों को निहारना होता है। अलग-अलग तरह की आवाजों को सुनना और खुशबुओ को सूघना होता है। माना जाता है प्रकृति में इस तरह ध्यानमग्न हो जाने से शरीर के साथ-साथ ही मानसिक स्वास्थ्य में भी काफी अच्छा सुधार आता है। बहुत सारी संस्कृतियाँ इस तथ्य को स्वीकार करती हैं कि मानसिक स्वास्थ्य हमारी खुशी को प्रभावित करता है। हालांकि अभी भी बहुत सारे समुदाय ऐसे हैं जो इस तथ्य को शक की निगाह से देखते हैं। दक्षिण कोरिया की संस्कृति भी कुछ इसी तरह की है। इसके परिणामस्वरूप यह देश डिप्रेशन का इलाज करने के मामले में लिस्ट में सबसे नीचे माता है और आत्महत्या के मामलों में शीर्ष पर।

समाज में बहुत सारे लोकप्रिय लोग मानसिक स्वास्थ्य से जुड़े अपने व्यक्तिगत अनुभव ईमानदारी से दुनिया के साथ साझा कर रहे हैं जिससे मानसिक स्वास्थ्य के प्रति दुनिया का ओवरआल नजरिया बदल रहा है। ब्रिटेन के शाही राजकुमार प्रिंस हेरी ने मानसिक स्वास्थ्य से जुड़े अपने अनुभव खुले मन से साझा किये हैं और लोगों को हौसला दिया है कि जब भी वे खुद को मानसिक रूप से अस्वस्थ पाएँ तो शर्माने के बजाय मदद ढूंढने का प्रयास कीजिए।

ज्यादा खाली वक्त आपको और अधिक खुशहाल बना सकता है।

खुश रहने के उपायों की आप चाहें कितनी भी फेहरिस्ते बना लीजिए; एक चीज जो हर लिस्ट में हमेशा अव्वल रहने वाली है वो है आजादी। इससे पहले कि आप आजञादी के अर्थ को अपने मन की सुनने और अपनी पसंद का काम करने तक सीमित कर लें, में आपकों बताना चाहूंगा कि आजादी का एक दूसरा पहलू भी है जिसे लोग अक्सर नजरअंदाज कर देते हैं, जो है- फुरसत का वक्त।

लोगों को काम के बीच में फ्री टाइम की भी जरुरत होती है। इसलिए जब बात हेल्थी वर्क-लाइफ रूटीन वाले देशों की आती है तो डेनमार्क लिस्ट में टॉप पर आता है।

अमरीका और यूके जैसे देशों में शाम 5 बजे तक दपत्तर में काम करते रहना एक आम बात है जबकि एक डेनमार्की व्यक्ति के लिए यह एक बड़ी बात है। यही कारण है कि एक ईेनमार्कीयन व्यक्ति एक आम अमरीकी व्यक्ति की तुलना में सालभर में औसतन 300 घंटे कम काम करता है। एक तरफ जहाँ एक अमरीकी व्यक्ति साल में औसतन 1790 घंटे काम करता है वही दूसरी तरफ एक डेनमाकी व्यक्ति सालभर में करीब 1457 घंटे काम करता है।

नए पेरेंट्स अक्सर खाली समय को लेकर बहुत ज्यादा चिंता में रहते हैं और यहाँ डेनमार्क में उनकी इस चिंता का इलाज भी गौजूद है। यहाँ नए पेरेंट्स को काम से बाकायदा 52 हफ्तों यानि पूरे एक साल की छुट्टी दी जाती है और साथ ही साथ उन्हें पुरी तनख्वाह भी दी जाती है। इन छुट्टियों को दोनों पेरेंट्स आपस में बाँट सकते हैं। लेकिन पेरेंट्स को खाली वक्त के अलावा भी एक अन्य चीज़ की जरूरत होती है और वह चीज है- सहारा। सहारा होना बहुत जरूरी चीज है क्योंकि पेरेंटल हैप्पीनेस गैप के अनुसार नार पेरेंट्स उन लोगों से कम खुश होते हैं जो होते तो उन्हीं की उम्र के है मगर उनके बच्चे नहीं होते।

इस बात को यूरोपीय देश पुर्तगाल के एग्जांपल के माध्यम से अच्छी तरह से समझने का प्रयास करते हैं जहाँ दुनिया के सबसे खुशहाल पेरेंट्स रहते हैं। पुर्तगाल की यह बात अनोखी है कि वहाँ के करीब 72% नए पेरेंट्स मानते हैं कि बच्चों के दादा-दादी उनकी परवरिश और शिक्षा-दिक्षा में अहम किरदार अदा करते हैं। इस तरह के सपोर्ट से नए पेरेंट्स के पास ज्यादा फ्री टाइम होगा और वे उन अभिभावकों से ज्यादा खुश होंगे जिनके पास इस तरह का कोई सपोर्ट सिस्टम मौजूद नहीं है।

इसी की तर्ज पर डेनमार्क ने भी अपने यहाँ उन परिवारों के लिए “बोनस ग्राडपेरेंट्स-प्रोग्राम चलाया है जिनके यहाँ बुजुर्ग लोग बच्चों की परवरिश करने में किसी कारण से असमर्थ है। इस प्रोग्राम के लिए रजिस्टर करने वाले परिवारों को ही उनके समुदाय के बुजुर्ग लोगों से मिलवाया जाता है जिससे पेरेंट्स को फुरसत का वक्त मिल पाता है और बड़ों का भी खाली वक्त मजे से कट जाता है- यही वास्तविक जीत है।

ऊपरी तौर पर ऐसा प्रतीत होता है कि स्व-रोजगार प्राप्त व्यक्ति इस स्थिति में एक नौकरीपेशा व्यक्ति से कम स्खुश होगा। क्योंकि बल्ल्ड हैप्पीनेस स्पट के मुताबिक इस तरह के लोगों को अक्सर कम पैसों में ज्यादा काम करना पड़ता है और इनकी जॉब सिक्युरिटी भी बहुत ही कम होती है।

लेकिन इन तथ्यों के बावजूद भी अक्सर जॉब संतुष्टि और जीवन संतुष्टि दोनों आधारों पर फ्रीलासर नौकरीपेशा व्यक्तियों से अधिक खुश होते हैं।

हालांकि उनके पास समय की काफी कमी होती है लेकिन फिर भी एक फ्रीलांसर के पास नौकरीपेशा आदमी से अधिक आजादी होती है- उसके पास अपने पसंदीदा काम को, पसंदीदा वक्त पर और पसंदीदा व्यक्ति के साथ करने की आजादी होती है।

विश्वास और सहानुभूति एक खुशहाल समाज के निर्माण के लिए आवश्यक चीजें हैं।

केवल हां या ना में जवाब दीजिए. अगर पैसों से भरा हुआ आपका बटवा खो जाए तो क्या आपको लगता है कि कोई अजनबी आदमी आकर पैसों से भरा आपका बटवा लौटा जाए?

दी कनाडियन जनरल सोशल सोसाइटी ने यही सवाल टोरोंटो शहर के लोगों से पूछा और 25% से भी कम लोगों ने इस सवाल का जवाब हाँगे दिया लेकिन जब इस बात का परीक्षण करने के लिए टोरोन्टो के पूरे शहरभर में पैसों से भरे हुए 20 वॉलेट जानबूझकर गिराष्ट्र गए तो करीब 80% बटुवे पूरे पैसों के साथ लोगों द्वारा उनके मालिकों को वापस लौटा दिये गए।

यह प्रयोग दर्शाता है कि लोग अपने पड़ोसियों पर भी उतना भरोसा नहीं करते भरोसा करते हैं तो खुशी का हमारा एहसास भी अपने आप बढ़ जाता है। जितना कि उन्हें करना चाहिए, जो कि बड़े ही शर्म की बात है। क्योंकि जब हम दूसरों पर छोटी-छोटी बातों को भी मैनेज करने के कारण हमारी खुशी के स्तर पर पड़ने वाले बुरे प्रभावों पर भी थोड़ा-सा विचार कर लेते हैं। बीते समय में कोपेनहेगन में काम करने वाले सोशल-केयर-वर्कर्स का समय बुरी तरह से माझक्रोमैनेज़्ड होता था। जब वे किसी वृद्ध व्यक्ति के यहाँ काम पर जाते थे तो उनके काम के स्केजूल का हर सेकंड पहले से ही प्लेन्ड होता था ताकि वे एक ही काम को पूरी तरह तरह ध्यान लगाकर कर सके।

इसके बाद साल 20 में इसमें बदलाव हुआ जिसके अनुसार अब वर्करों को क्लाइट के घर पहुँचने पर क्लाक इन करना पड़ता है और घर से बाहर निकलते समय क्लाक आउट। इस बीच वे किसी खास काम को करने में कितना समय लगाते हैं यह सिर्फ-और-सिर्फ उनपे निर्भर धा। दूसरे शब्दों में कहें तो इस बदलाव से कामगारों पर ज्यादा भरोसा किया गया और यह माना गया कि वे अब ज्यादा अच्छी तरह से काम कर पाएगे। क्योंकि इस तरह से ये एक वृद्ध व्यक्ति की जरूरतों को सुनने-समझने के लिए ज्यादा स्वतंत्र होंगे और उनका हर संभव तरीके से बेस्ट जवाब देने की कोशिश करेंगे।

यह नया प्रयोग उस्मीदों पर खरा उतरा और सफल रहा। इससे तनख्वाह के बड़े बिना भी सामाजिक कामगारों की अपने काम के प्रति संतुष्टि बहुत शानदार तरीके से बढ़ी। जल्द ही यह ट्रस्ट रिफॉर्म कार्यक्रम कोपेनहेगन शहर के पब्लिक सेक्टर में भी फैल गया। तो आप भी कैसे अपनी जिंदगी में ज्यादा भरोसा पैदा कर सकते हैं। इसके लिए आपमें एम्पर्थी यानि सहानुभूति का होना बहुत जरूरी है।

साल 2015 में अमेरिकन जर्नल ऑफ पब्लिक हेल्थ में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार, जिन प्रीस्कूलर (स्कूल न जाने वाले) बच्चों में ज्यादा सहानुभूति मौजूद होती है, भविष्य में शिक्षा और रोजगार में उनके सफल होने की काफी अधिक संभावना होती है। इस अध्ययन में यह भी पाया गया कि ऐसे बच्चों ऐसे बच्चों का मानसिक स्वास्थ्य भी काफी बेहतर होता है और भविष्य में उनके गुनाह करने और सध्सटेस अव्यूज़ करते यानि नशा करके झगड़ा करने की भी कम संभावना होती है।

यही कारण है कि डेनमार्क की शिक्षा व्यवस्था बच्चों के सामाजिक और भावनात्मक विकास पर काफी जोर देती है। एजाम्पल के लिए, वहाँ पर युवा विद्यार्थियों को अलग-अलग भावों वाले चेहरों को दिखाया जाता है और फिर चर्चा की जाती है कि कोई व्यक्ति किन कारणों से ऐसी भावनाएँ अनुभव कर सकता है।

न्यू यॉर्क के न्यू स्कूल फॉर सोशल रिसर्च के अनुसार, लोगों में दूसरे लोगों की भावनाओं के प्रति संवेदना उत्पन्न करने का एक अन्य तरीका है- एक साथ मिलकर वास्तविक जौवन की कहानियाँ पढ़ना। और निश्चित रुप से स्कैनडेवीया (यूरोपीय देशों का एक समूह) के विद्यालयों में यह भी एक क्लासरूम ऐक्टिविटी है। यह भी माना जाता है कि बचपन में सहानुभूति का विकास हो जाने के ही कारण यहाँ के स्कूल और कॉलेजों में बच्चों की बुलिडग की घटनाएँ ना के बराबर होती है।

आर्थिक और कथित दोनों तरह की असमानताएं ही खुशी की दुश्मन हैं।

हमारे पास एक दूसरा सवाल है जिसका जवाब भी आपको बस हाँ या ना में देना है क्या आपको लगता है कि ज्यादातर लोग भरोसे के काबिल होते हैं यानि उनपे भरोसा किया जा सकता है?

जिन लोगों ने इस सवाल का जवाब हाँ में दिया उनमें से ज्यादातर लोग उन देशों या प्रांतों के थे जहाँ पर ज्यादा आर्थिक समानता मौजूद थी। यह इस बात के कारण है कि एक समानता पसंद समाज में लोग खुद को ज्यादा सुरक्षित महसूस करते हैं और दूसरे लोगों को प्रतिद्वंदी की दृष्टि से देखने के बजाय सहयोगी की नज़र से देखते हैं।

इसलिए जब समाज में असमानता का स्तर बदलता है तो भरोसे के प्रति हमारी भावनाओं में भी बदलाव आता है। फिलहाल अमरीका और ब्रिटेन जैसे देशों में असमानता अपने चरम पर है, इसलिए वहाँ पर भरोसे की भावनाएँ लगातार खोती जा रही हैं।

आप असमानता से उत्पन्न होने वाले दुष्परिणामों का अंदाजा आसानी से लगा सकते हैं। नोटिनघम विश्वविद्यालय और युनिवर्सिंटी ऑफ यॉर्क के शोधकर्ताओं ने अपने अध्ययन में पाया है कि असमानताओं के उच्च स्तर से न सिर्फ लोगों का अन्य लोगों से विश्वास कम होता है बल्कि यह समाज में घटती सहानुभूति और स्वास्थ्य के लिए भी जिम्मेदार है। इससे हिंसा, अपराध, बुरी आदतों और तीन प्रेगनेंसी जैसी चीजों में वृद्धि होती है।

इसलिए यह कहना कतई गलत नहीं होगा कि असमानता की भावना हमारी खुशी के स्तर से गहराई से प्रभावित करती है।

प्राइमेट जंतुओं पर अध्ययन करने वाले येज्ञानिक फ्रांस डी वाल ने यह प्रदर्शित किया कि ये भावनाएँ जीवों में स्वाभाविक रूप से पाई जाती हैं। कैपयूवी बदरों पर किये गए एक प्रयोग में डी वाल ने ऐसी व्यवस्था बनाई जिसमें बदर उन्हें एक पत्थर देता था जिसके बदले वे बंदर को एक ककड़ी खाने को देते थे।

लेकिन जब फ्रांस डी वाल ने एक कैपयूची बंदर को ककड़ी की जगह उसकी पसंद का फल अंगूर खाने को दिया तो वहाँ मौजूद दूसरे बंदर इस अन्याय पर भड़क गए और उन्होंने प्राइमेटोलॉजिस्ट फ्रांस पर ककड़ियों की बौछार कर दी।

आपने कुछ इसी तरह का बर्ताव हवाई जहाज में सफर करने के दौरान कुछ लोगों में देखा होगा जो कि अपनी यात्रा के दौरान बहुत ज्यादा चिड़चिड़े हो जाते हैं, इसे ‘एयर रेज’कहते हैं। ऐसी स्थितियों में गुस्सा उत्पन्न होता है जो कई बार हिंसा में भी बदल जाता है।

हावर्ड बिजनेस स्कूल की कैथरीन डी-केलेस और टोरोन्टो विश्वविद्यालय के माइकल नॉर्टन ने अपने शोध में पाया है कि अन्याय की भावनाएँ एयर रेज में वृद्धि करती हैं और इस वृद्धि में सबसे ज्यादा हाथ होता है- फर्स्ट क्लास वर्ग का। इसकी वजह से सफर करने वाले यात्री के भड़क जाने की संभावना 4 गुना तक बढ़ जाती है जो कि फ्लाइट के नौ घंटे देर हो जाने से भी ज्यादा मड़काऊ है।

यह भी सच है कि ईकोनमी वर्ग में सफर करने वाले यात्रियों को अपनी जगह तक पहुँचने के लिए फर्स्ट क्लास से होकर गुज़रना होता है जो कि किसी यात्री के एयर रेज होने की संभावना को और दो गुना बढ़ा देता है।

दयालु और दानी होना एक ऐसा गिफ्ट है जो हमेशा पलटकर वापस आता है।

आपने कभी न कभी आनंद की उस हल्की सी अस्पष्ट अनुभूति को तो जरूर महसूस किया होगा जो तब आती है जबकि हम किसी की मदद बिना किसी फल की चाह के निस्वार्थ भाव से करते हैं। इस अनुभूति को हेल्पर्स हाई यानि मदद करने से मिलने वाली खुशीकहा जाता है। और हम आसानी से इसे अपनी रोजमर्रा की जिंदगी का हिस्सा बना सकते हैं।

जब हम किसी के लिए कुछ दयालुता या उदारता का काम करते हैं तो हमारे दिमाग के हिस्से न्यूक्लियस अकमबेन्स, जो कि सेक्स और भोजन करने से उत्पन् होने वाली अच्छी फीलिंग के लिए जिम्मेदार होता है, से एक अनुभूति निकलती है। यहाँ तक कि अमेरिका के नैशनल इंस्टिट्यूट ऑफ हेल्थ के शोधकर्ताओं ने पाया है जब लोग अपना धन चैरिटी में दान देने का विचार करते हैं तो दिमाग का यह हिस्सा ठीक उसी तरह से सक्रिय हो जाता है जैसे कि यह तब होता है जब कि इंसान कोई स्वादिष्ट भोजन या फिर सेक्स कर रहा हो।

एक तरह से यह विकासवादी तरह की घटना है क्योंकि मानव जाति का विकास ही एक-दूसरे की मदद करने के कारण हुआ है।

इसलिए अगर आप स्वेकण से पूरी तरह से स्वार्थहीन होने की सोच रहे हैं तो जरुर होडए, क्योंकि यह आपके साथ-साथ अन्य लोगों के लिए भी लाभकारी है।

आसान भाषा में कहें तो लोग जो समाजसेवी किस्म के होते हैं अवसर उन लोगों से ज्यादा खुश होते हैं जो समाजसेवा से खुद को दूर रखते हैं।

अब आप यह सोच सकते हैं कि लोग जो समाजसेवा करते है हो सकता है कि चे पहले से ही खुश हों, यह बात पूरी तरह सच है। लेकिन यह बात भी सच है कि समाजसेवा में शामिल लोग अपने पास मौजूद चीजों के प्रति पूरी तरह से कृतघ्न होते हैं क्योंकि वे अवसर ऐसे लोगों से मिलते हैं जो उनकी तुलना में कम भाग्यशाली होते हैं। इसके अलावा कई अध्ययनों में इस बात की पुष्टि हुई है कि जो लोग समाजसेवी मिजाज के होते हैं, उनकी अक्सर अच्छी दोस्ती और सामाजिक जान-पहचान होती है। और अगर आप सोच रहे हैं कि डेनमार्क के लोग भी अच्छे समाजसेवक होंगे तो आप बिलकुल सही हैं। डैनिश इंस्टिट्यूट फॉर चौलन्टरी एफस के सर्वे के मुताबिक करीब 70% देनिश लोगों ने बीते 5 सालों में कभी-न-कभी समाजसेवा का कोई-न-कोई काम किया है।

सो. इतने सारे फ़ायदे होने के बावजूद भी हममें से ज्यादातर लोग समाजसेवा क्यों नहीं करते हैं?

नॉर्वेयन इंस्टिट्यूट फॉर सोशल रिसर्च के जिल लोगा के अनुसार, चैरिटी के कामों के व्यक्तिगत फ़ायदों को हाइलाइट करने के लिए हमें काफी अधिक प्रयास करने होते हैं जिनमें दोस्तो बढ़ाना और हेलपर्स हाई जैसे प्रयास शामिल होते हैं।

अगर आपको यह अधिक आकर्षक लगना शुरु हो जाता है तो बहुत सारे संसाधन आपके नियंत्रण में आ जाते हैं।

आर.ए.के टिविस्ट (RAKtivist) उन लोगों के लिए इस्तेमाल किया जाने वाला शब्द है जो बिना फल की चाह किये लोगों की मदद करते हैं और हर किसी को एक बेहतर इसान बनने के लिए उत्साहित करते हैं। इनके बारे में अधिक जाने के लिए आप randomactsofkindness.org नामक वेबसाइट पर जा सकते हैं।

बी माय आई एक फ्री एप है जो सम्यक दृष्टि वाले लोगों को उन लोगों से जोड़ता है जिनकी दृष्टि असामान्य हे और पढ़ने या फिर कुछ ढुंढने जैसे कामों में उनकी मदद करता है।

इस बात की काफी संभावना है कि आपके आसपास भी ऐसी कोई सस्था हो जो स्वयंसेवियों और समाजसेवी लोगों की तलाश में हो और किसी ऐसे मुद्दे पर बात कर रही हो जिसके बारे में आप भी संवेदित महसूस करते हैं।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *